पुस्तक का विवरण (Description of Book of वाल्मीकि रामायण / Valmiki Ramayan PDF Download) :-
नाम 📖 | वाल्मीकि रामायण / Valmiki Ramayan PDF Download |
लेखक 🖊️ | महर्षि वाल्मीकि / Maharshi Valmiki |
आकार | 5.8 MB |
कुल पृष्ठ | 127 |
भाषा | Hindi |
श्रेणी | उपन्यास / Upnyas-Novel, धार्मिक, हिन्दू धर्म |
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हर कोई पढ़ना जानता है, पढ़ना एक कला है, पढ़ना मस्तिष्क को विस्तृत करता है और व्यक्तित्व में सुधार करता है। लेकिन क्या पढ़ें, यह हर कोई नहीं जानता। इसलिए हमने आपकी पसंद-नापसंद को सरल रखा है, यह किताब आसान भाषा में तैयार की गई है। इस किताब में हिंदी में परियों की कहानियां शामिल हैं। पढ़कर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इसे स्वयं पढ़ें और दूसरों को भी सीखने के लिए प्रेरित करें।
पुस्तक का कुछ अंश
बालकाण्ड
अयोध्या का वैभव पूर्वकाल में सरयू नदी के किनार कोसल नाम का एक धन-जन सम्पन्न सुविशाल राज्य था। अयोध्या नामक विश्वविख्यात नगरी उस राज्य की राजधानी थी। उसका निर्माण स्वयं प्रजापति मनु ने किया था। वह बारह योजन लम्बी और तीन योजन चोड़ी थी. उसके चारों और ऊंची दीवार और गहरी खाई थी। दुर्ग की दीवारों पर यत्र-तत्र सैकड़ों शतब्नियाँ रखी हुई थी। राजसेना के अगणित शस्त्रधारी सैनिक और महारथी बाहर-भीतर से उसकी रक्षा में तत्पर रहते थे। उसका अयोध्या नाम वास्तव में सार्थक था क्योंकि बाहरी शत्रु उसमें कहीं से किसी भी प्रकार प्रवेश नहीं कर सकता था।
शोभा और समृद्धि में अयोध्यापुरी इन्द्र की अमरावती से स्पर्धा करती थी। उसमें अनेक प्रशस्त मार्ग, गगनस्पशी भव्य भवन, रमणीक उद्यानसरोबर और कोड़ा-गृह आदि बने थे सारी पुरी सहस्यों मनुष्यों से भरी हुई थी। उसमें एक से बढ़कर एक कितने ही तपस्वी, विद्वान, शूरवीर,शिल्पी और वसायी निवास करते थे। सभ्य सुशिक्षित और धनी-मानी नागरिकों का वैभव देखते ही बनता था घर-घर में लक्ष्मी का ग्रास थाहाट भांति-भांति की उत्तमोत्तम वस्तुओं से भरे-पूरे थे। सड़कों पर दिन भर चहल-पहल रहती थी। वाणिज्य व्यवसाय का यह बहुत बड़ा केन्द्र था।
अयोध्या के नागरिक धनधान्यपूर्ण गृहों में रहते थे, उत्तम भोजन करते थे और सुन्दर वस्त्र आभूषण पहनते थे। उनके पास दूध-दही के लिए अच्छी से अच्छी गौर थो सच सदाष्ट पुष्ट और रहकर जौवन का पूरा आनन्द भांगते थे। समय-समय पर वहाँ यज्ञ महोत्सव और भांति-भांति के आमोद-प्रमोद होते रहते थे। जनता सबसे सुखी और सन्तुष्ट थी।
• अयोध्या अपनी सम्पन्नता के लिए ही नहीं अपनी सभ्यता के लिए भी संसार में प्रसिद्ध थी।
वहाँ के स्त्री-पुरुष अत्यन्त शिष्ट, विनयी, सुशिक्षित और सदाचारी थे। एक-एक व्यक्ति लोकमर्यादा और सर्वहित का ध्यान रखता था संयम सदाचार में तो साधारण नागरिक भी महर्षियों की बराबरी करते थे। समाज में गुणौ सुशाल और चरित्रवान व्यक्ति ही दिखाई पड़ते थे। द्रोही, दम्भी र कापुरुष, स्वार्थी, स्वच्छाचारी , निज आलसी, प्रमादी मिथ्यावादी, निन्दित और नास्तिक मनुष्यों के लिए अयोध्या में स्थान नहीं था। सार्वजनिक जीवन में वर्णाश्रम धर्म की पूर्ण प्रतिष्ठा थी सर्वत्र एकता शान्ति और पवित्रता का वातावरण मिलता था।
दशरथ का ऐश्वर्य-सभी दृष्टियों से संसार में अयोध्या के जोड़ की दूसरी नगरी नहीं थी। उसी महापुरी में बहुत पहले कोसल देश के शासक राजा दशरथ बहे ठाट से रहते थे। वे उसी प्राचीन और प्रतिष्ठित इत्वाकु वंश के रत्न थे, जिसमें सगर और रघु जैसे प्रतापी नर नेता हो चुके थे। राजा दशरथ आठ मंत्रियों को सहायता से धर्म के अनुसार राजकाज चलाते थे।
उनको राजसमिति में मन्त्रियों के अतिरिक्त सिष्ट वामदेव, जाबालि, कात्यायन और गौतम आदि भी सम्मिलित थे। महत्त्वपूर्ण विषयों में राजधर्म का निश्चय इन्हीं की सम्मति से होता था. कोसल नरेश दशरथ इन सबके सहयोग से इन्द्र की भांति शासन करते थे। एक समृद्धिशाली राष्ट्र का सम्पूर्ण वैभव उनके चरणों पर पढ़ा रहता था अन्य देशों के बड़े-बड़े सत्ताधारी भी उनकी महत्ता को स्वीकार करते थे। पुत्रेष्टि यज्ञ- राजा दशरथ ने बहुत दिनों तक राजलक्ष्मी का भलीभांति उपभोग किया। उन्ह किसी वस्तु की कमी नहीं थी, धन, मान, यश, ऐश्वर्य और सुख के सभी साधन सुलभ थे। फिर भी राजा को अपना जीवन सूना-सा और सारा भय-विभय लगता था क्योंकि ये जीवन के एक बहुत बड़े सुख-सन्तान सुख से वंचित थे उनकी तीन रानिया थी, लेकिन एक से भी कोई पुत्र नहीं था। आयु के साथ-साथ उनकी पुत्र-लालसा भी बढ़ती ही जाती थी।
राजा दशरथ धरे-धीरे वृद्ध हो बल पर उनकी यह कामना पूरी नहीं हुई। एक दिन उन्होंने इस विषय में अपने मल्वियों और धर्मगुरुओं से परामर्श किया सघन उन पुत्र प्राप्ति के निमित्त कोई उत्तम यज्ञ करने की सम्मति दी। यह कार्य किसी सिद्ध तपस्वी और कर्मकाण्डी विद्वान् की अध्यक्षता में हो सम्पन्न हो सकता था अतः राजसचिव सुमन्य ने सोच-विचार कर ऋष्यश्रृंग को यज्ञ का आचार्य बनाने का प्रस्ताव किया राजाने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।
ऋष्य उन दिनों अंगदेश में निवास करते थे। दशरथ स्वयं वहाँ गए और बड़े आग्रह से उन्हें अयोध्या ले आए। ऋष्य ने अदके अनुसार पुत्रेशि-यज्ञ करने का निश्चय किया। उनके आदेश से सरयू नदी के किनारे एक सुन्दर यज्ञशाला का निर्माण हुआ और सभी आवश्यक वस्तुएं की हो गई। दशरथ ने पत्र और दूत भेजकर देश-विदेश के गणमान्य व्यक्तियों को उस यज्ञ में आमन्त्रित किया।
नियत समय पर विविध देशों के अनेक राजा, विद्वान और ऋषि-मुनि यहां आ पहुंचे तपस्वी विद्वान ऋष्यश्रृंग ने शुभ मुहूर्त में यज प्रारम्भ कर दिया। यज्ञ मण्डल वेद मंत्री की मंगल ध्वनि से गूंज उठा। नवौच्चारण के साथ ही अग्नि में आहुतियां पड़ने लगी। सभी शास्त्रोक्त अनुष्ठान उत्तम रीति से किए गए। राजा दशरथ ने जब अन्तिम आइति डाली तो ऐसा प्रतीत हुआ पानी....
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हमने वाल्मीकि रामायण / Valmiki Ramayan PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 5.8 MB है और कुल पेजों की संख्या 127 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक महर्षि वाल्मीकि / Maharshi Valmiki हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ वाल्मीकि रामायण / Valmiki Ramayan को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।Answer. महर्षि वाल्मीकि / Maharshi Valmiki
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