मैडिटेशनस | The Meditations Hindi PDF Download : Books by Marcus Aurelius

पुस्तक का विवरण (Description of Book of मैडिटेशनस PDF | The Meditations PDF Download) :-

नाम 📖मैडिटेशनस PDF | The Meditations PDF Download
लेखक 🖊️   मार्कस औरिलिअस / Marcus Aurelius  
आकार 5.4 MB
कुल पृष्ठ119
भाषाHindi
श्रेणी,
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मेडिटेशन: मार्कस औरिलिअस, जो की एक रोमन सम्राट थे के खुद के लिखे विचारों की एक श्रृंखला है जिसे उन्होंने 161 से 180 ईशा पूर्व लिखा था. यह विचार श्रृंखला जीवन को कैसे जीएं, और कैसे हर परिस्थिति में बेहतर तरह से जीया जा सकता है इसकी महत्वपूर्ण प्रस्तुति हैं.

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पुस्तक का कुछ अंश

अध्याय- 1

अपने दादा विरस से मैंने अच्छी नैतिकता और अपने स्वभाव पर बेहतर नियंत्रण करना सीखा.
अपने पिता की प्रतिष्ठा और यादों से मैंने नम्रता और हिम्मती चरित्र का होना सीखा.
अपनी माँ से, धर्मपरायणता और नेक, और संयमी, न केवल बुरे कृत्यों से बल्कि बुरे विचारों से भी; और उससे आगे, सादगी मेरे रहना, जिसने मुझे अमीर लोगों की आदतों से दूर रखा.
अपने पितामह से, सामुदायिक विद्यालय की जगह अपने घर में बेहतर शिक्षक से पढ़ना, और जाना की इस तरह की चीजों में आदमी को खुल कर खर्च करना चाहिए.
अपने नियंत्रक से, न हरे न ही नीले खेमे का समर्थक होना खेलों में, न ही ग्लेडियेटरों की लड़ाई में परिमुलिरियस का या स्कटूयूरियस का समर्थक होना. उनसे सीखी मेहनत करने की ललक, और कम की चाहना रखना, और खुद अपने हाथों से काम करना, और दूसरों के मसालों सें हस्तक्षेप न करना, और बुराइयों को सुनने को तैयार न रहना.
डायोनियस से, अपने को हल्की बातों में व्यस्त न रखना, और उस बात पर ध्यान न देना जो कि चमत्कार करने वाले और बाजीगरों द्वारा मंत्र और टोना-टोटका करने के लिए कही जाती हैं; न बटेरों को लड़ाई के लिए पालना और न ही अपने को ऐसी चीजों की तरफ आकर्षित करना; और खुद के बोलने पर नियंत्रण रखाना; और दर्शन से आत्मीयता रखना; और सुनना, पहले बचुसियस को, फिर टेन्डिस और मार्केनियस को; अपने युवक होने पर भाषणों को लिखना; और कठोर बिस्तर और त्वचा की इच्छा, और जो कुछ भी जरूरी हो गर्सियन अनुशासक बनने के लिए. [adinserter block="1"]
रस्टीस से, मैंने यह प्रभाव लिया की मेरा चरित्र सुधार और अनुशासन चाहता है; और उनसे मैंने सीखा कैसे मिथ्या से भरे अनुकरण से भटक न जाऊं, न ही काल्पनिक मुद्दों पर लिखना, न ही तुच्छ भाषण देना, न यह दिखाना की मैं बहुत अनुशासित हूँ, या प्रदर्शन के समय अनियंत्रित व्यवहार; और वाक्पटुता, और कविता, और अलंकार पूर्ण लिखने से बचना;  और अपने बाहर के कपड़ों को पहनकर घर में प्रवेश न करना, न ही ऐसी और किसी चीज को करना; और अपने पत्रों को सरल भाषा में लिखना, जैसे रस्टीस ने मेरी माँ को साईनस से लिखे; और उनको सम्मान देना जिन्होंने मुझे अपने शब्दों से आहत किया, या मेरे साथ बुरा किया, सहमत होना और निर्णय लेना जैसे ही वह तत्परता दिखाएं सहमती देने में; और सावधानी से पढ़ना, किताब की सतही जानकारी से संतुष्ट न होना; न जल्दबाजी में उनको अपनी स्वीकृति देना जो ज्यादा बोलते हैं; और मैं उनका ऋणी हूं कि मुझे उन्होंने इपिकेटुस के वचनों से परिचित कराया, जिसका वह अपने खुद के संग्रह से मेरे से संवाद करते थे.
अपोनियस से मैंने सीखा इच्छा शक्ति की स्वतंत्रता और उद्देश्य के लिए न भटकने वाली स्थिरता; उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, किसी भी चीज के तरफ एक पल के लिए भी ध्यान न देना; और हमेशा एक जैसा बना रहना, गहरे दर्द में, अपने बच्चे को खोने पर, और लंबी बीमारी में; और स्पष्ट रुप से जीवंत उदाहरण की तरह देखना की एक आदमी काफी दृढ़ और नर्म दोनों हो सकता है, और अपने निर्देश देने में चिड़चिड़ा नहीं है; और मेरी आँखों के सामने जो स्पष्टतः अपने अनुभव और अपनी योग्यता से अपनी छोटी से छोटी प्राथमिकता में दार्शनिक सिद्धांतों कि व्याख्या करते हैं; और उनसे मैंने सीखा कैसे बिना उनसे दीन दिखे या उनसे बिना संज्ञान में लिए, अपने मित्रों का सम्माननीय समर्थन लिया जाए.
सेक्टस से, उदार स्वभाव, और किस तरह से परिवार को प्यार के साथ पाला जाता है, और प्रकृति के साथ कैसे आराम से रहा जा सकता है; आकर्षण बिना अनुराग के, और मित्रों के हितों को ध्यान रखाना, और अज्ञानी व्यक्ति को और जो बिना विचार किए राय बनाते हैं उनको बर्दाश्त करना. अपने साथ सभी से सामंजस्य बैठाने की उनमें ताकत थी, जिससे की उनके साथ संवाद ज्यादा सहमति से भरा होता था न कि किसी तरह की चापलूसी से. साथ ही उस समय वह सभी से सम्मान पाते थे जो उनसे जुड़े होते थे: और उनके पास जीवन के आवश्यक सिद्धांतों को बुद्धिमत्ता और तरीके से खोजने की और व्यवस्थित करने की क्षमता थी; और उन्होंने कभी गुस्सा नहीं किया या भावावेश में रहे, बल्कि पूरी तरह से भावावेश से मुक्त, और काफी स्नेह करने वाले; वह सहमती बिना  प्रदर्शन के व्यक्त करते थे, और वह बिना आडंबर के काफी ज्ञानी थे. [adinserter block="1"]
सिकंदर, भाषा विज्ञानी से, गलतियों को खोजने से बचना, और तिरस्कार से उनको न डाटना जिन्होंने बर्बर या अशुद्ध या अजीब-आवाज के साथ अभिव्यक्ति की है. बल्कि कुशलता से हर उस अभिव्यक्ति की व्याख्या करना जिसे प्रयोग किया गया है, और जवाब देते हुए या पुष्टि करते हुए, या चीजों की पूछताछ में खुद से जुड़ते हुए, न केवल शब्द, या कुछ उचित सुझाव.
फरन्टो से मैंने सीखा तानाशाही में क्या बुराई, और कपट, और पाखंड है, और आमतौर पर जो हमारे बीच हैं जिन्हें पेट्रिसियन कहा जाता है उनमें पारिवारिक स्नेह की कमी होती है.
सिकंदर जो प्लेटों को मानने वाले थे, न बात-बात पर न ही अनावश्यक रूप से किसी से कुछ कहना, या पत्र का लिखना, जिससे मेरा कोई वास्ता नहीं है; न ही आवश्यक जिम्मेदारियों की अवहेलना करना जो कि हमारे संबंध में जरूरी हैं जिनके साथ हम रहते हैं, अतिआवश्यक काम को दोष देते हुए.
क्टूलस से, असहमत न होना जब दोस्त गलती खोजता है, जब भी वह गलती बिना किसी कारण के खोजता हो, बल्कि उसका समाधान करना; और शिक्षकों से अच्छी तरह से बोलना; और अपने बच्चों से वास्तविक प्यार करना.
अपने भाई सविरस, अपने संबंधियों से प्यार करना, और सत्य से प्यार करना, और न्याय से प्यार करना; और उनके द्वारा मैंने जानना सिखा थरेसिया, हैलविडस, कैटो, डायन, ब्रुटस को; और उनसे मैंने राजनीति के इस विचार को ग्रहण किया की सभी के लिए समान नियम होते हैं, संगठन पर समान अधिकारों और समान बोलने की स्वतंत्रता पर शासित हो सकता है, और बेहतर सरकार सभी की स्वतंत्रता पर निर्भर करती है; मैंने उससे सीखा दर्शन के लिए मेरी संगत और स्थिरता बनी रहे; और अच्छा करने का स्वभाव, और दूसरों को आसानी से देना, और अच्छी उम्मीद को जगाए रखना, और विश्वास करना की मुझे मेरे दोस्तों द्वारा प्यार किया जाता है; और उसमें मैंने अवलोकन किया की किसी कि निंदा करने के बाद अपने दृष्टिकोण पर न अड़ना, और उसके दोस्तों को यह अनुमान नहीं लगाना होता था की वह क्या चाहते हैं या नहीं चाहते हैं, बल्कि  वह काफी सहज थे. [adinserter block="1"]
मैक्सिमस से, मैंने सीखा आत्म नियंत्रण और किसी चीज से विचलित न होना; हर परिस्थिति में, साथ ही बीमारी में भी खुश रहना; और नैतिक चरित्र में मिठास और गरिमा का सही मिश्रण. और बिना किसी शिकायत के वह करना जो कि उनके सामने प्रस्थापित किया गया है. मैंने यह अवलोकन किया है कि हर कोई सोचता है की वह विचार करते हैं बोलने से पहले, और इस सभी में उनका कोई गलत उद्देश्य नहीं होता है; वह कभी अचंभा और आश्चर्य नहीं दिखाते हैं, और वह कभी भी जल्दी में नहीं रहते हैं, और कभी जिम्मेदारी से नहीं बचते हैं, न ही व्याकुल और उदास होते हैं, न ही वह अपने क्लेश को छिपाने के लिए हंसते हैं, न ही, दूसरी तरफ, वह कामुक और संदेहजनक दिखे. वह भले कामों को करने को तैयार रहते हैं, और भूल जाने को भी तैयार रहते हैं, और वह झूठ से मुक्त हैं; और उन्होंने आदमी का वह प्रस्तुतिकरण दिया है जिसे सही करने से विचलित नहीं किया जा सकता है इसकी जगह की उसे यह सिखाया जाए. मैंने यह भी अवलोकन किया, की कोई आदमी यह सोच भी नहीं सकता है उसका तिरस्कार मैक्सिमस द्वारा किया गया था, या उन्होंने अपने को उससे बेहतर समझा हो. उनके पास सहमती के साथ विनोदी बने रहने की कला थी.
अपने पिता में मैंने निहारा की वह स्वभाव से सौम्य थे, और उन चीजों के लिए दृढ़ संकल्पित जिनको वह पूरी विवेचना के बाद करना चाहते थे; और उन चीजों के लिए अनिच्छुक जिन्हें आदमी सम्मान कहता है; और मेहनत और दृढ़ता से प्यार; उन लोगों को सुनने की तत्परता जिनके पास आम परेशानियों को दूर करने का प्रस्ताव होता था; और हर आदमी को उसकी मेहनत के अनुसार देने की अविचलित करने वाली दृढ़ता; और ज्ञान जिसे जोश पूर्ण कृत्यों और माफ करने के अवसरों से अर्जित किया गया. मैंने अवलोकन किया बच्चों के लिए सभी तरह के भावावेश से उबर चुके थे; और वह अपने को किसी अन्य नागरिक से ज्यादा नहीं समझते थे; और उन्होंने अपने मित्रों को लिए समर्थन करने या जब वह बाहर जाते हैं तो उनके साथ चलने की सभी तरह की बाध्यता से मुक्त रखा था.  किसी विशेष परिस्थिति को छोड़कर, मैं उनको हमेशा एक जैसा पाता था. मैंने अवलोकन किया सावधानी से सभी चीजों की विवेचना करने की आदत का, और उनकी जिद्द का, और उन्होंने अपनी जांच को तब तक बंद नहीं किया जब तक वह संतुष्ट नहीं हों उस बात से जो उनके सामने प्रस्तुत की गई थी. और उनका अपने दोस्तों को साथ रखने का स्वभाव था, और वह उनसे जल्दी नहीं थकते थे, न ही अपने स्नेह को हद से पार जाने देते थे. [adinserter block="1"]और सभी अवसरों पर संतुष्ट और हंसमुख रहना; और काफी पहले से चीजों को दूर से देख लेना, और छोटी चीजों को बिना प्रदर्शन के उपलब्ध करना. और तत्काल सार्वजनिक स्तुति और सभी तरह की  चापलूसी को जांचना. और उस पर निगरानी रखना जो कि साम्राज्य के प्रशासन के लिए जरूरी हैं, और अच्छे प्रबंधक खर्च करने में, और धैर्य से आरोपों को सहन करना जो कि उनके इस आचरण के लिए लगाए जाते थे. और न वह देवताओं के प्रति अंधविश्वास करते थे, न वह दरबारियों को तोहफे देते थे या उन्हें खुश करते थे, या जनता की चापलूसी करते थे. लेकिन उन्होंने सभी चीजों में संयम और दृढ़ता दिखाई, और कभी अपने विचारों में या कृत्यों में तुच्छता नहीं दिखाई, न ही नई चीजों के लिए अधीरता दिखाई. और सभी चीजें जो कि जीवन में किसी भी तरह से मदद करती है, और जिनकी सौभाग्य प्रचुर मात्र में आपूर्ति करता है, उसे उन्होंने बिना घमंड के और बिना अपने से बहाना बनाए प्रयोग किया; जिससे की वह जब उनके पास होती थी, वह उनका बिना मोह के आनंद लेते थे, और जब वह नहीं होती थी वह उनकी चाहना नहीं रखते थे. कोई उनसे यह नहीं कह सकता था की वह तर्क करते हैं या क्षुद्र मानसिकता के हैं या अभिमानी हैं; बल्कि हर कोई उन्हें बिना चापलूसी के परिपूर्ण और अनुभवी व्यक्ति के रुप में स्वीकार करता था, जो खुद के और दूसरे लोगों के मसलों को संभाल सकते थे. इसके अलावा, वह उनका सम्मान करते थे जो सच्चे दार्शनिक थे, और वह उनको तिरस्कार से नहीं देखते थे जो दार्शनिक बनने का प्रयास करते थे, न ही फिर भी उनका उनके लिए झुकाव होता था. वह बातचीत करने में पहुंच में थे, और वह बिना प्रतिवाद के अपने को सहमत कर लेते थे. वह अपने शरीर के स्वस्थ की समुचित देखभाल रखते थे, परंतु उसकी तरह से नहीं जो जीवन से बहुत लगाव रखता है, न ही खुद के प्रस्तुतिकरण में बहुत संजीदा, न ही लापरवाह, बल्कि, खुद की देखभाल से, उन्हें शायद ही चिकित्सक की सलाह का या दवाइयों की या बाहरी चीजों की जरूरत होती थी. वह उन्हें बिना ईर्ष्या के देने को तैयार रहते थे जो कुछ विशेष जानकारी रखते थे, जैसेकि कानून और नैतिकता की जानकारी और ज्ञान, या कुछ दूसरा; और वह उन्हें अपनी मदद भी देते थे, जिससे हर कोई सम्मान पा सके उनके पुरस्कार से; और उन्होंने अपने देश के संस्थानों के साथ सुविधापूर्ण काम किया, बिना उनसे लगाव को दिखाते हुए. आगे, वह बदलाव के ज्यादा इच्छुक थे न ही अस्थिरता के, बल्कि वह एक ही जगह पर रहना पसंद करते थे, और खुद से उन्हीं एक जैसी चीजों  में व्यस्त रखते थे. [adinserter block="1"]और सिर दर्द के होने के बाद वह तुरंत ताजगी से भरे हुए और जोश से अपने काम में व्यस्त हो जाते थे. उनके पास छिपाने को कुछ भी नहीं था बल्कि बहुत थोड़ा था, और वह भी केवल सार्वजनिक मसलों में; और वह सार्वजनिक समारोह में प्रदर्शन में और सार्वजनिक इमारतों के बनने, लोगों को दान देने में, और ऐसी ही चीजों में मितव्ययिता दिखाते थे. क्योंकि वह वे व्यक्ति थे जो देखते थे की क्या किया जाना चाहिए, न की आदमी के कृत्यों से प्रतिष्ठा पाने का प्रयास करना. वह असमय नहाते नहीं थे; उनका इमारतों के बनाने में झुकाव नहीं था, न ही वह जिज्ञासु रहते थे उन्होंने क्या खाया, न ही अपने कपड़ों के रंग और उसकी बनावट पर, न ही अपने गुलामों की सुंदरता को लेकर. उनके वस्त्र आमतौर पर लौरिम, उनका घर जो तट के निकट था और लेनिवयूम से आते थे. वह जानते थे कि कैसे कर संग्राहक से व्यवहार करें टस्कलम जिसने उनसे माफी चाही थी; और इस तरह का उनका व्यवहार था. उनमें कुछ भी कठोर, न ही निष्ठुर, न ही हिंसक, न कोई कह सकता था की पसीना छुड़ा सकता था ऐसा था; बल्कि वह सभी चीजों का एक-एक करके परीक्षण करते थे, जैसे उनके पास समय की बहुतायत है, और बिना उलझन के, व्यवस्थित तरीके से, उत्साह से और निरंतर. और यह उस पर भी लागू हो सकता है जो सुकरात को मानने वाला है, जिससे की वह संयम भी रख सकते हैं और आनंद भी ले सकते हैं उन चीजों का जिनके लिए अनेक संयम नहीं रख पाते हैं और अनेक बहुतायत के न होने पर आनंद भी नहीं ले पाते हैं. बल्कि मजबूत होने के लिए किसी को एक को धारण करना चाहिए और दूसरे पर नियंत्रण होना चाहिए यह उस आदमी के विशेषताएं हैं जिनकी अजेय और दोष रहित आत्मा है, जैसेकि उन्होंने मैक्सिमस की बीमारी के समय दिखाई थी.[adinserter block="1"]
मैं आभारी हूँ देवताओं का, अच्छे पितामह, अच्छे माता-पिता, अच्छी बहन, अच्छे शिक्षक, अच्छे सहयोगी, अच्छे संबंधी और मित्र, सभी कुछ तकरीबन अच्छा होने के लिए.  देवताओं के आगे स्वीकार करता हूँ की मैंने उनमें से किसी के विरुद्ध कोई अपराध करने की जल्दबाजी नहीं की, जबकि मेरा स्वभाव है यदि परिस्थिति ऐसी होती, मुझे इस तरह के किसी काम को करना होता; बल्कि उनके समर्थन से, मेरे सामने ऐसी कोई परिस्थिति नहीं आई जिसने मेरी परीक्षा ली हो. आगे में देवताओं को धन्यवाद देता हूँ की मेरा मेरे दादा की परिचारिका के द्वारा पालन पोषण नहीं किया, और मैंने अपनी जवानी को बचा कर रखा, और मैंने आपने पौरुष का उचित मौसम से पहले साक्ष्य नहीं दिया, बल्कि उसे स्थगित रखा समय पर; मेरा संबंध उस शासक और पिता से था, जो मेरे सभी तरह के दंभ को दूर करने के सक्षम थे, और मुझे वह ज्ञान दिया की आदमी के लिए यह संभव है की वह महलों में बिना पहरेदार के या कढ़ाईदार कपड़ों के, या मशालों और मूर्तियों के, और इस तरह के दिखावे के बिना रहे; बल्कि यह आदमी के अधिकार में है की वह अपने को खुद का बनाए रखे, या कृत्यों में उन चीजों को लेकर बेपरवाह जिन्हें सार्वजनिक हित में किसी शासक के भले के लिए किया जाना जरूरी है. मैं देवताओं को ऐसा भाई देने के लिए धन्यवाद देता हूँ, जिसने अपनी नैतिकता से मुझे अपने ऊपर निगाह रखने के लिए तैयार किया, और जिसने उसी समय अपने श्रद्धा से और प्यार से मुझे संतुष्ट किया; और मेरे बच्चे नालायक नहीं हैं और न शरीर से अस्वस्थ; मैंने वाक पटुता, कविता, और इसी तरह की अन्य शिक्षा में ज्यादा प्रवीणता नहीं ली, जिनमें संभवतः मैं पूरी तरह से अपने को व्यस्त कर लेता, यदि मैं देखता की इनमें मैं बढ़त ले रहा हूँ; जिन्होंने मुझे सम्मानजनक स्थान दिलाया, बिना देरी किए मैंने जल्दबाजी की उन्हें स्थापित करने में जिसकी उन्हें इच्छा थी, क्योंकि वह तब अभी युवा थे; मैं अपोनियस, रस्टीस, मैक्सिमस को जानता हूँ; यह कि मैंने प्रकृति के अनुसार रहने का स्पष्ट और अकसर प्रभाव पाया, और किस तरह की यह जिंदगी है, जिससे यह, जब तक वह देवताओं पर निर्भर है, और उनके तोहफों, और मदद, और प्रेरणा पर, किसी ने भी मुझे भयभीत नहीं किया प्रकृति के अनुसार रहने से, जबकि मैं अभी भी अपने को असंतुष्ट पाता हूँ अपनी गलतियों से, और अवलोकन न कर पाने से देवताओं की चेतावनियों को, और, मैं अभी भी कहता हूं, की मेरा शरीर इस तरह के जीवन में काफी समय से है; मैं कभी बैनडिटा या थेरोडोस को छू भी नहीं पाऊंगा, और प्यार करने वाले जनून से मैं ठीक हो गया हूं; और, जबकि मैं अकसर रस्टीस से हंसी मजाक करता रहता हूं, मैंने कोई ऐसी चीज नहीं की है जिसके लिए मुझे बाद में पश्चाताप करना पड़े; यह कि, यह मेरी माता का भाग्य था की उनकी युवा अवस्था में मृत्यु हो गई उन्होंने अपने जीवन के अंतिम साल मेरे साथ बिताए; यह कि, जब भी मैंने किसी आदमी की उसकी जरूरत के समय, या किसी अन्य अवसर पर मदद करने की इच्छा की, मुझे कभी यह नहीं कहने की जरूरत पड़ी मेरे पास ऐसा करने के साधन नहीं हैं; और मेरे को कभी इसकी जरूरत नहीं पड़ी, की दूसरों से कुछ लेना पड़े; मेरे पास, ऐसी पत्नी, जो काफी आज्ञाकारी है, और काफी स्नेही, और काफी सरल है; मेरे पास अपने बच्चों के लिए अच्छे शिक्षकों की भरमार है; और सपनों में मेरे पास तिलमिलाहट का समाधान है; और यह, जब मेरा झुकाव दर्शन की तरफ था, मैं मिथ्या वाद के हाथों में नहीं गिरा, और मैं अपना समय इतिहास के लेखकों के बीच खराब नहीं करता हूँ, या न्याय के संकल्पों को लेकर या अपने को स्वर्ग को खोजने के प्रकटीकरण में व्यस्त रखूँ; क्योंकि यह सभी चीजें देवताओं और सौभाग्य की मदद चाहती हैं.
केवेदी के साथ गरनुआ में. [adinserter block="1"]

अध्याय- 2

सुबह की शुरूआत अपने से यह कहते हुए करो, मैं आज व्यस्त शरीर से, कृतघ्न, अभिमानी, धोखेबाज, ईर्षा पूर्ण, असामाजिक से मिलूंगा. जो कुछ भी उनके साथ होता है इस अज्ञानता के कारण होता है की क्या अच्छा या बुरा है.
परंतु मैं जिसने अच्छे के स्वभाव को देखा है जो खूबसूरत है, और बुरा जो बदसूरत है, और उनका स्वभाव जो गलत करते हैं, जो कि मेरे संबंधी हैं, न केवल एक ही खून या बीज के, बल्कि यह समान बुद्धि और देवत्व के हिस्से में भागीदारी करते हैं, मैं किसी से भी घायल नहीं हो सकता, क्योंकि कोई भी मुझ पर वह लाद नहीं सकता जो बदसूरत है, न मैं अपने संबंधी से गुस्सा हो सकता हूं, न ईर्ष्या कर सकता हूं. क्योंकि हम सहयोग के लिए बने हैं, जैसे पैर, जैसे हाथ, जैसे पलकें, जैसे दांतों की ऊपर और नीचे की पंक्ति. एक दूसरे के विरुद्ध काम करना तब स्वभाव के विपरीत होगा; और एक दूसरे के खिलाफ होना झगड़ा करना होगा.
जो कुछ भी मैं हूँ, वह थोड़ा मांस, और सांस, और शासन करने वाला हिस्सा है. किताबों को फेंक दो; यह आपका ज्यादा ध्यान न खींचें: इसकी अनुमति नहीं है; बल्कि जैसे यह व्यर्थ मर रहा है, मांस से घृणा करो; यह खून है और हड्डियां है और जाल है नसों, शिराओं और धमनियों का. सांस को भी देखें, किसी तरह की चीज यह है, वायु, और हमेशा एक तरह की नहीं, बल्कि हर पल बाहर भेजी जाती है और फिर से अंदर खींची जाती है. तीसरा तब शासन करने वाला हिस्सा है: इस पर ध्यान दें: वृद्ध व्यक्ति पर निगाह डालें; वह अब गुलाम नहीं है, न ही अब वह असामाजिक गतिविधियों में कठपुतली की तारों से खींचा जा रहा है, न ही अब वह वर्तमान गतिविधियों से असंतुष्ट है, या भविष्य की चिन्ता में परेशान है.
वह जो कुछ देवताओं से प्राप्त होता है वह विधि के अनुकूल है. वह जो कि सौभाग्य से है उसे अलग नहीं किया जा सकता है या गुथा हुआ नहीं है उन चीजों से जो विधि द्वारा आदेशित हैं. उनसे सभी चीजें का प्रवाह होता है; और आवश्यकता के अतिरिक्त, और वह जो कि पूरे ब्रह्मांड के हित में है, उसका यह हिस्सा है; लेकिन जो प्रकृति के हर हिस्से के लिए अच्छा है जिसे पूरी प्रकृति लेकर आती है, और जो इस प्रकृति को बनाए रखने में मदद करता है. अब ब्रह्मांड संरक्षित है, तत्वों के बदलाव से इसलिए चीजों के बदलाव से भी जो कि तत्वों से बनी हैं. इसलिए यह सिद्धांत तुम्हारे लिए काफी हैं, इनके लिए निश्चित राय रखो. परंतु प्यास को किताबों से बुझाते रहो, जिससे तुम बुदबुदाते हुए न मरो, बल्कि हर्षित, सत्य से परिचित, और देवताओं के लिए आभारी हृदय के साथ.[adinserter block="1"]
याद रखे कितने समय से तुम उन चीजों को करने से बच रहे हो, और कितनी बार तुमको देवताओं से अवसर मिला है, और फिर भी तुमने उसका इस्तेमाल नहीं किया है. तुम को यह अंततः पता होना चाहिए की तुम ब्रह्मांड का हिस्सा हो और जो कुछ भी ब्रह्मांड के प्रशासक ने उपलब्ध कराया है वह प्रवाह है, और एक निश्चित समय उनके लिए सुनिश्चित है, जिसके लिए यदि तुम अपने दिमाग से संदेह दूर नहीं करोगे, यह चीजें तुम से दूर चली जाएंगी और फिर कभी वापस नहीं आएंगी.
हर पल निरंतर अपने को रोमन और उस आदमी की तरह सोचो जिसके हाथ में जो कुछ भी है वह परिपूर्ण और सहज गरिमा से है, स्नेह पूर्ण, और स्वतंत्र और न्यायपूर्ण; और अपने को अन्य सभी विचारों से राहत दो. और इस तरह खुद को राहत देकर, तुम जीवन के हर कृत्य को इस तरह से करते हो की वह अंतिम है, हर तरह की लापरवाही और उसके होने के कारण के भावावेश से घृणा को एक तरफ रखते हुए, और सभी पाखंड, और खुद से स्नेह, और उससे असंतोष को जो तुम को दिया गया है. तब तुम देखते हो कितनी कम चीजें हैं, जिनको आदमी नियंत्रित करके, शांति से जीवन के बहाव में और देवताओं के उपस्थिति को महसूस करते हुए जी सकता है; जिसके पक्ष में देवता होते हैं उसे किसी चीज की जरूरत नहीं होती जो इन चीजों पर निगाह रखते हैं.
खुद से गलत करो, खुद से गलत करो, मेरी आत्मा; परंतु फिर तुम्हारे पास खुद के सम्मान के लिए अवसर नहीं होगा. हर आदमी का जीवन परिपूर्ण है. परंतु वह अंत के करीब होता है, जिसकी आत्मा खुद को सम्मान नहीं देती है बल्कि अपनी खुशी दूसरों की आत्मा में खोजती है.
उन चीजों को भी करें जो आपसे अलग हो? अपने को कुछ नया और अच्छा सीखने का समय दो, और एक ही चीज के चक्कर लगाने को रोको. लेकिन तब तुम इससे भी बचो की दूसरे रास्ते पर चलते रहो. क्योंकि जो लोग अस्थिर होते हैं वह लोग भी इस तरह की गतिविधियों से जीवन में उकता जाते हैं, और उनके पास कोई उद्देश्य नहीं होता किस दिशा में अपनी हर हलचल को निर्देशित करें, और, शब्दों में, अपने सभी विचारों को.
जो दूसरों की बुद्धि पर निगरानी नहीं रख रहा है वह शायद ही कभी अप्रसन्न रहता हो; लेकिन जो अपनी खुद की बुद्धि पर निगरानी नहीं रखते हैं वह निश्चित ही दुःखी रहते हैं.[adinserter block="1"]
अपने दिमाग में यह हमेशा रखो, क्या संपूर्ण की प्रकृति है, और मेरी प्रकृति क्या है, और कैसे यह इससे संबंधित है, और किस तरह का यह हिस्सा है और किस तरह का संपूर्ण है; और यहाँ कोई नहीं है जो तुम्हें हमेशा डरा सके करने और कहने से जो कि उस प्रकृति के अनुसार हैं जिसका तुम हिस्सा हो.
थियोपास्टस, गलत कृत्यों की तुलना करने पर- वह तुलना जो कोई आम धारणा के साथ करता है- दार्शनिक की तरह से कहता है, अपराध जो कि चाहना से किए जाते हैं वह ज्यादा दोषी होते हैं उनकी जगह जो कि गुस्से से किए जाते हैं. क्योंकि जो गुस्से में है वह अपने को निश्चित दर्द और अचेतना घबराहट के साथ उद्देश्य से दूर कर लेता है; लेकिन जो चाहना से घिरा है, वह जबरदस्त आमोद से भर हुए, ज्यादा असंयम से अपने कामों को करता है. तब दर्शन की दृष्टि से सही यह है, की कृत्य जो आमोद से किए जाते हैं वह ज्यादा दोषी है उनसे जो कि दर्द में किए जाते हैं; और सार यह है कि पहला जो गलत है, वह उस आदमी की तरह से है जो दर्द के कारण गुस्सा करता है; लेकिन दूसरा अपने आवेग के चलते गलती करता है, और किसी चीज को चाहना से करने को आकर्षित होता है.
चूंकि यह संभव है तुम इस जीवन को हर पल जी सको, हर कृत्य और विचार को तदनुसार नियंत्रित करो. उन लोगों के साथ जाना, यदि वहां देवता हैं, यह कोई डरने की बात नहीं है, क्योंकि देवता तुम को बुराई में हिस्सेदार नहीं बनाएंगे; लेकिन यदि उनका अस्तित्व ही नहीं है, या उनका मानवीय पहलुओं से कोई वास्ता नहीं है, तब मेरे पास उस ब्रह्मांड में जीने के लिए क्या है जो देवताओं और विधि से रहित हो? लेकिन वास्तव में वह अस्तित्व में हैं, और वह मानवीय वस्तुओं का ध्यान रखते हैं, और उन्होंने आदमी के अधिकार में यह दिया है की वह अपने को वास्तविक बुराइयों का हिस्सा न बनाए. और बाकी के लिए, यदि यहाँ कुछ बुरा है, उन्होंने इसके लिए भी व्यवस्था की है, की यह मनुष्य के अधिकार में है वह इसमें न गिरे. अब वह जो आदमी को बदतर नहीं बनाता है, वह कैसे आदमी के जीवन को बदतर बना सकता है? न तो अज्ञानता से, और न ही ज्ञान के न होने से, बल्कि इन चीजों से अपने को बचा न पाने या उन्हें सही न कर पाने की ताकत के न होने से, यह संभव है की ब्रह्मांड की प्रकृति ने उनकी अनदेखी कर दी हो; और न ही यह संभव है की उसने इतनी महान गलती की हो, चाहे ताकत की चाहत में या कौशल की चाहत में, कि बुरा और अच्छा अंधाधुंध अच्छे और बुरे के साथ होता रहे. लेकिन मृत्यु निश्चित ही, और जीवन, सम्मान और अपमान, दर्द और आनंद, सभी चीजें अच्छे और बुरे आदमी को बराबर से होती है, वह चीजें हैं जो हमें न तो बेहतर न ही बदतर बनाती हैं. इसलिए वह न तो अच्छी न ही बुरी हैं.[adinserter block="1"]
कितनी तेजी से ब्रह्मांड में चीजें गायब हो जाती हैं, खुद से शरीर भी, बल्कि समय के साथ उनकी यादें भी; सभी संवेदनशील चीजों का स्वभाव क्या है, और विशेषतः उनका जो कि आनंद की चाहना में आकर्षित होती हैं और दर्द से आतंकित होती हैं, या परेशान रहती है अनहोनी से; कितनी बेकार और घृणित, और घिनौनी, और खराब और मरी हुई वह हैं- इन सभी का बुद्धि को अवलोकन करना चाहिए. उनका भी अवलोकन वह कौन है जिनकी राय और आवाज सम्मान देती है; क्या मृत्यु है, और यह तथ्य भी, यदि आदमी खुद में यह देखे, और भावनात्मक शक्ति से उन सभी चीजों का हल खोजे जो खुद को उन सभी की कल्पना कराती हैं, इसके बाद वह इन पर केवल स्वभाव के एक व्यवहार के रुप में विचार करे; और यदि कोई स्वभाव के इस व्यवहार से डरता है, वह बच्चा है. यह, केवल स्वभाव का व्यवहार नहीं है, बल्कि यह वह चीज भी हैं जो स्वभाव के व्यवहार को प्रेरित करता है. यह अवलोकन भी करना कैसे आदमी देवत्व के निकट आता है, और उसका कौन-सा हिस्सा, और कब आदमी का यह हिस्सा इतना आरोही होता है.
कुछ भी उस आदमी से ज्यादा खराब नहीं है जो हर चीज को घुमाता रहता है, और धरती के अंदर घुसकर चीजों को सुंघता रहता है, जैसे की कवि ने कहा है, और अनुमान लगाता रहता है की पड़ोसी के दिमाग में क्या है, बिना यह देखे की उसके अंदर क्या चल रहा है, और उसे गंभीरता से लेता है. और उसके अंदर की भावना सनक और विचारहीनता और असंतुष्टि से भरी होती है जो कुछ भी उसे देवताओं और आदमी से मिलता है. उन चीजों के लिए भी जो देवताओं ने हमें श्रेष्ठता से दी हैं; और जो आदमियों ने भी हमारे संबंधी होने के कारण दी हैं; और कभी-कभी, उस तरह से, वह बड़े अफसोस से आदमी के अच्छे या बुरे कारण को न जानने का कारण बनते हैं; यह कमी उससे कम नहीं है जो हमें वंचित करती हैं काले और सफेद में भेद करने से.[adinserter block="1"]
हो सकता है की तुम तीन हजार साल तक जीने जा रहे हो, और अनेक बार दस हजार साल, तब भी याद रहे कोई भी आदमी उतनी जिंदगी नहीं खोता है जितनी की वह अभी जी रहा है, और न ही जिसे अभी वह खो रहा है उसके अतिरिक्त किसी दूसरी को जी सकता है. लंबी और छोटी तब एक सी ही हैं. क्योंकि वर्तमान सभी में एक जैसा है, जब की हो सकता है जो बीत चुकी है वह एक जैसी न हो; और इसलिए जो बीत चुकी है वह केवल एक पल है. क्योंकि आदमी न तो भूत न ही भविष्य को जी सकता है; जो आदमी के पास नहीं है, उसे कोई कैसे ले सकता है? इन दो चीजों को तब अपने दिमाग में रखो; पहली, सभी चीजें अनंत काल से एक जैसी हैं और बार-बार आती हैं, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आदमी देख सके एक ही चीज को सौ साल में या दो सौ साल में, या अनंत काल में; और दूसरी, जो लंबे समय तक जीए या जो जल्दी मर जाए एक ही तरह से खोते हैं. क्योंकि वर्तमान ही एक ऐसी चीज है जिससे आदमी वंचित रह सकता है, यदि यह सही है की यही एक चीज है जो उसके पास है, और आदमी उसे नहीं खो सकता जो उसके पास नहीं है.
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Q. मैडिटेशनस PDF | The Meditations किताब के लेखक कौन है?
Answer.   मार्कस औरिलिअस / Marcus Aurelius  
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