पुस्तक का विवरण (Description of Book of ठाकुरबाड़ी PDF | Thakurbadi PDF Download) :-
नाम 📖 | ठाकुरबाड़ी PDF | Thakurbadi PDF Download |
लेखक 🖊️ | Abha Jha Bhatia / आभा झा भाटिया |
आकार | 3.8 MB |
कुल पृष्ठ | 104 |
भाषा | Hindi |
श्रेणी | उपन्यास / Upnyas-Novel, कहानी |
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आभा द्वारा रचित पुस्तक 'ठाकुरबाड़ी' एक अपूर्व कृति है । मिथिलांचल के मिट्टी की खुशबू और ग्रामीण परिवेश को ध्यान में रखकर बुनी गई , इस नारीप्रधान उपन्यास में नारी संवेदना, कर्तव्यनिष्ठता तथा पारिवारिक व्यवहारिकता को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है । यह समाज में हुए परिवर्तन और उस परिवर्तन के लिए समर्पित व्यक्ति के परिवार की व्यथा-कथा है। जैसे आजादी प्राप्ति हेतु कई लोगों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, उसी प्रकार समाज की रुढि प्रधान परम्परागत कट्टरपंथी विचारधाराओं और आस्थाओं को खत्म करने के लिए भी लोगों ने अपना परिवार और जीवन तक उत्सर्ग कर दिया। इसे लिखते समय आधुनिक सामाजिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में नहीं रखा गया था, किन्तु जहाँ तक इसे वर्तमान संदर्भ में जोड़ने का प्रश्न है, तो आज भी उच्च वर्ग और निम्न वर्ग का संघर्ष, धर्म की राजनीति इत्यादि समस्याओं से हमारा समाज (खासकर ग्रामीण समाज) जूझ रहा है, इन मूल्यों के प्रति युवाओं का उपेक्षित रवैया देखकर ऐसा प्रतीत होता है, कि यह कहानी समाज को जागृत करने में प्रेरणास्त्रोत बन सकती है। आजादी से सम्बन्धित बहुत कहानियाँ और उपन्यास लिखे गए, किन्तु समाज में आये परिवर्तन का जिक्र इक्का-दुक्का ही पढने को मिलता है।
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पुस्तक का कुछ अंश
1.
परिवार के लिए अगर प्रेम की गहराई को मापा जाता, तो उसका प्रेम सबसे गहरा साबित होता। कहने को जोगिया वस्त्र पर वास्तविक रूप में पूर्णतः सामाजिका हरिभजन के साथ साथ अगर कपास ओटने की क्रिया को चरितार्थ होते देखना हो, तो इस वृद्धा की दिनचर्या पर एक दृष्टि डालिए। एक ओर ईश्वर के लिए पूजा-पाठ, तिलक चन्दन सबका आचरण. तो दूसरी ओर खेती बारी, मजदूरों के साथ सर खपाना, घर-खलिहान सबके हिसाब-किताब में चौकस और कार्यकुशल क्या मजाल कि उसकी अनुमति के बिना उसके ठाकुरबाड़े का एक पत्ता भी हिल जाये। आज पचहतर वर्ष की आयु भी उसकी चुस्ती और उसको कम नहीं कर पायी। जिस प्रकार किसी पूजा में देवता का आह्वान् आवश्यक है, उसी प्रकार इस गाँव में कोई भी धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठान ठाकुरबाड़े की इस देवी के समक्ष उसकी आज्ञा से ही पूर्ण होता।
इस ठाकुरबाड़े के वार्षिक आयोजनों में सबसे प्रमुख जन्माष्टमी समारोह को माना जाता है, पूरे गाँव की बेटियों और रिश्तेदारों को न्योता जाता, वृन्दावन से साधुसन्त बुलाये जाते पूरा गाँव मेहमानों से खचाखच भरा रहता। इस घर की जन्माष्टमी को आसपास के दस गाँवों में सर्वाधिक महत्व दिया जाता। दस दस कोस दूर से लोग चलकर यहाँ इस त्योहार की छटा देखने आते। कान्हा के जन्म से लेकर छठी तक उसी प्रकार उत्सव मनाया जाता, जैसे मथुरा-वृन्दावन या अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों पर उन दिनों सारा इलाका या कहो कि पूरा जिला ही सिमटकर इस ठाकुरबाड़े में समा जाता ठाकुरबाड़े की शोभा चहुँ ओर बिखेरनेवाली इस वृद्धा के व्यक्तित्व की चमक यौवन की कालाग्नि में तपकर निखरने का ही परिणाम है। इस स्त्री के सम्मान और गौरव के पन्नों (पृष्ठों) को यदि आप पलटेंगे तो आपके समक्ष होगी 'एक व्यथित महारानी की मनोरंजक कथा।
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2.
बात उन दिनों की है, जब उन्नीसवीं सदी की यौवनावस्था में मधुबनी जिले के अड़रिया गाँव में शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को पंडित दीनानाथ झा को एक बेटी के पश्चात पुनः एक पुत्री ही पैदा हुई। अपेक्षा के प्रतिकूल पुत्री के जन्म की खबर सुनकर उदासी व्याप्त हो गई। परंतु जैसे ही दादी ने नवजात शिशु के रूप को देखा, तो पुत्र न होने का दुख भूलकर बोल पड़ी "साक्षात् लक्ष्मी का रूप है, रे। दीनू इस फूल सी बच्ची का नाम गुलाब रख। बस, तबसे वो सुन्दर कली गुलाब के नाम से जानी जाने लगी।
अपार धन-सम्पदा के मालिक गुलाब पिता पंडित दीनानाथ दरभंगा महाराज की रियासत में रंगकमी थे। खलिहान में अनाजों की भरमार, दरवाजे पर घोड़े हाथी और गाय-भैंसों के साज-बाज कुल मिलाकर राजसी ठाठ-बाट और इसी ऐश्वर्य के बीच नाजों से पलने लगी गुलाब की क्लो पिता का स्वभाव जितना ही विनम्र और शांत था, बेटियाँ उसके विपरीत उतनी ही स्वाभिमानी और चंचल ।
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3.
मैथिल ब्राह्मणों में मधुश्रावणी बहुत बड़ा त्योहार होता है। श्रावण मास में होने वाले इस त्योहार में सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति के कल्याण के लिए गौरी माँ का व्रत रखती है और पूजा करती है। 'मधुश्रावणी' के दो दिन पूर्व गुलाब के पिता पं. दीनानाथ गुलाब की विदागरी कराने उसकी ससुराल पहुँचे। गुलाब को इसबात की भनक लगते ही उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। इधर कई दिनों से गुलाब को माँ की बहुत याद आ रही थी, ऐसा नहीं था कि उसे ससुराल में किसी प्रकार का कष्ट था, किन्तु जिस कारण ससुराल से सम्बन्ध स्थापित हुआ था, उसी मूल कारण' का कष्ट वो कहे तो किससे ? कारण जो भी रहा हो, पर यह तो निश्चित था, कि गुलाब कुछ दिनों के लिए इस माहौल से निकलना चाहती थी। गुलाब को 'कुहार' तक छोड़ने घर के सबलोग आये पं. दीनानाथ ने हाथ जोड़कर विदा माँगा और गुलाब ने सबसे पैर छूकर आशीर्वाद ।
पं. सर्वेश्वर झा जो अपनी बहु से बेटी स्वरूप स्नेह करते थे, समधी से भावविहल होकर बोले "कनियाँ को दुर्गापूजा में अवश्य भेज दीजिएगा समधी जी। हरि भी आनेवाला है, अब इनदोनों को गृहस्थी का भार सौंपकर हम भी निश्चित होना चाहते हैं।"
डाउनलोड लिंक (ठाकुरबाड़ी PDF | Thakurbadi PDF Download) नीचे दिए गए हैं :-
हमने ठाकुरबाड़ी PDF | Thakurbadi PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 3.8 MB है और कुल पेजों की संख्या 104 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक Abha Jha Bhatia / आभा झा भाटिया हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ ठाकुरबाड़ी PDF | Thakurbadi को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।Answer. Abha Jha Bhatia / आभा झा भाटिया
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