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विएना से पलायन करने के बाद और बुडापेस्ट में प्रवेश करने से पहले डेन्यूब नदी एक वीराने और उजाड़ क्षेत्र से होकर बहती है जहाँ इसका पानी अपनी मुख्य धारा से विभाजित होकर कई जगहों में बहने लगता है जिसकी वजह से यह इलाका मीलों दूर तक एक दलदल का रूप ले लेता है | और इस इलाके को ढंके हुए रखते हैं यहाँ उगने वाले अनगिनत विलो के झाड़ीनुमा वृक्ष | बड़े नक्शों पर यह इलाका हल्के नीले रंग से दर्शाया गया है और जैसे जैसे तट से इसकी दूरी बढ़ती जाती है, इसका रंग और भी फीका होता जाता है और नक़्शे पर इसके ऊपर बड़े और बेतरतीब अक्षरों में लिखा देखा जा सकता है - 'सेम्फ' जिसका अर्थ होता है दलदल |
यह रेतीला तटीय इलाका, जो विलो के बने छोटे-छोटे द्वीपों सा लगता है, बाढ़ के मौसम में लगभग जलमग्न रहता है पर सामान्य मौसमों में यही विलो की झाड़ियां जब धूप में चमकती, खुली हवाओं में मुड़ती और सरसराती हैं तो एक हिलते-डुलते मैदान के भ्रामक से सौंदर्य का एहसास दिलातीं हैं | यह विलोज़ 'पेड़' कहलाने लायक तक नहीं बढ़ पाते जिसका कारण हैं उनके तनों का सख्त न होना | वे गोलाकार सिरों और नम्र रूपरेखा वाली सामान्य झाड़ियों से ही प्रतीत होते हैं | हल्की हवा के झोंकों में भी वे अपने पतले तनों पर घास की तरह बहते दिखतें हैं और उनके लगातार होने वाले बहाव को देखकर लगता है जैसे पूरा मैदान ही जीवित हो और घूम रहा हो | हवा का बहाव पूरे मैदान में लहरों को जन्म देता है, पानी के बजाय पत्तियों की लहरें | लहरें जो उभरती हुईं हरे रंग की प्रतीत होती हैं और फिर टहनियों के पलट जाने पर उनका रंग सूरज की किरणों में सुनहरा हो जाता है |[adinserter block="1"]
अपने अडिग तटों के निर्धारित बहाव से छूटकर डेन्यूब नदी इस इलाके में अपनी इच्छा के अनुरूप अलग अलग प्रवाहों में बहती है | इन प्रवाहों का पानी द्वीपों को चीरते हुए अपने अपने मार्ग में जैसे चीखते हुए बहता है; अपने उतार में भंवर और बवंडरों को जन्म देता हुआ; रेतीले किनारों को ढहाता हुआ; अपने अंदर मिट्टी और विलो के टुकड़ों को दबाए अनगिनत नये द्वीपों का निर्माण करता है | इन द्वीपों का आकार हर दिन बदलता रहता है और उनका अस्तित्व भी अस्थाई ही होता है क्योंकि बाढ़ के समय में उनका नामोनिशान भी नहीं बचता |
सच कहा जाए तो इस नदी का सबसे आकर्षक हिस्सा प्रेस्बर्ग छोड़ने के बाद शुरू होता है, जहाँ हम पहुंचे मध्य जुलाई में अपनी कैनेडियन कैनो (नांव) पर सवार हुए, एक तम्बू और फ्राइंग पैन साथ में लिए | हमारा आगमन एक उठती हुई बाढ़ के दौरान हुआ | उसी दिन की सुबह में, सूर्योदय होने से पहले ही हमने विएना से पलायन कर लिया था और करीब दो घंटे के सफर के बाद वो शहर विनरवॉल्ड के नीले पहाड़ों के क्षितिज के पीछे कहीं धुएं सा खो गया | हमने फिशरआमंड पहुँच कर बर्च के कोलाहल मचाते पेड़ों तले सुबह का नाश्ता किया | फिर नदी के प्रचंड बहाव पर नौका चलाते हुए हमने और्थ, हेनबर्ग और पेट्रोनेल (मार्कस औरेलिएस का रोमन किला) को पार किया | और ऐसे ही फिर हमने थैलसन और कारपेथीयन्स के नजदीक से बहते हुए मार्च के क्षेत्र से ऑस्ट्रिया की सीमा को लांघ कर हंगरी में प्रवेश किया |
बारह किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से बढ़ते हुए हम एक घंटे के भीतर हंगरी के अंदरूनी क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे और यहाँ कीचड़युक्त पानी -- जो की बाढ़ का निश्चित संकेत होता है -- की वजह से हम कई बार तटों के बजरीले हिस्सों पर अटके और पानी के भंवरों में कई बार घूमते हुए अंततः प्रेसबर्ग (हंगेरियन : परोज़नी) पहुंचे जहाँ की मीनारें आकाश के समक्ष हम देख पा रहे थे | और फिर हमारी कैनो एक उत्साही घोड़े सी छलांग लगाती हुई आगे बढ़ी | मटमैली दीवारों के नीचे तीव्र गति से बहते हुए, फलीगेंड ब्रूक बेड़े की डूबी हुई ज़ंजीरों से बचते हुए कैनो ने एकाएक बायां मोड़ लिया | फिर पीले झाग से पानी को पार कर हम पहुंचे इन टापुओं, टीलों और दलदलों के जंगल के इलाके में - इन विलोज़ के इलाके में |
यह अचानक आया बदलाव ऐसा था मानो जैसे किसी बॉयोस्कोप में चलती हुई शहर की तस्वीरों की श्रृंखला में एकाएक नदी और जंगल की तस्वीर प्रकट हो जाए | हमने ये निर्जन क्षेत्र को तीव्र गति से जैसे पंखों पर उड़ते हुए होकर प्रवेश किया था, और अगले आधे घंटे तक यहाँ हमें ना तो कोई दूसरी नांव और ना ही कोई मछुआरों की झोपड़ियां दिखाई दी | चारों और नज़र के दायरे में कोई मानव निवास या सभ्यता के निशान दिखाई नहीं पड़ रहे थे | इस स्थान का मानव जाती से अलगाव, इसकी पूर्ण निर्जनता और इस क्षेत्र का सिर्फ विलोज़, हवा और पानी से घिरा होना हम पर जादू कर रहा था | हमने मज़ाक में हँसते हुए कहा की ऐसे क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति के लिए तो हमारे पास एक ख़ास अधिकारों वाला पासपोर्ट होना चाहिए | और हमें ऐसा लगा जैसे बिना किसी से पूछे अपने दुस्साहस से ही हम इस आश्चर्य और जादू के इलाके में घुस आए थे - एक ऐसा इलाका जो उसके असली हकदारों के लिए ही संरक्षित था और जहाँ अतिक्रमियों के लिए कुछ था तो सिर्फ अलिखित चेतावनियां |[adinserter block="1"]
हालांकि अभी दोपहर की शुरुआत ही हुई थी पर निरंतर चलती हवाओं के थपेड़ों से हम इतने थक चुके थे कि तुरंत हमने रात को कैंप डालने के लिए जगह ढूँढना शुरू कर दिया | पर उन द्वीपों की भ्रमित करनेवाली बनावट ने हमारा किनारे पर उतरना मुश्किल कर दिया; बाढ़ के घुमाव ने हमें किनारे पर पहुँचाया पर अगले ही पल वापिस नदी में धकेल दिया; विलो की शाखाओं को पकड़कर कैनो को रोकने की कोशिश में हमारे हाथ छलनी हो गए, हमारे इन प्रयासों से और कैनो और किनारे के टकराव से कई गज़ रेत को पानी में धकेलने के बाद अंततः हवा के एक विशाल झोंके की मार से हम ठहरे पानी के क्षेत्र में आ पहुंचे और इस तरह हम पानी की फुहारों में कैनो को किनारे लगाने में सफल हुए | इस संघर्ष के बाद हम हाँफते और हँसते हुए गर्म पीली रेत पर पस्त हो कर पड़े रहे, हवा के बचाव से, चिलचिलाती धूप में, बादल रहित नीले आकाश के तले | विलोज़ की विशाल सेना हमारे इर्द-गिर्द झूमते, चिल्लाते, चमकते हुए, अपने हज़ारों छोटे हाथों से तालियां बजाकर जैसे हमारी सफलता की वाहवाही करने लगी |
"क्या नदी है!" मैंने अपने साथी से कहा | मैं सोच रहा था कि किस प्रकार हमने अपने सफर की शुरुआत ब्लैक फारेस्ट में नदी के स्त्रोत से की थी और किस प्रकार जून के शुरूआती दिनों में मेरे साथी को कई बार उथले पानी में उतरकर कैनो को धकेलना पड़ा था |
"यह नदी अब और दुस्साहस बर्दाश्त नहीं करेगी, क्या कहते हो?" उसने कहा | उसने कैनो को सुरक्षित करने के लिए उसे थोड़ी दूर रेत में और धकेला और फिर शांत होकर वो झपकी लेने लगा |
मैं भी उसके पास ही की ज़मीन पर आकर लेट गया | मैं खुश और शांत महसूस कर रहा था हवा, पानी, रेत और सूरज की आग से घिरे हुए और मैं सोचने लगा हमारी अब तक की लम्बी यात्रा के बारे में और आगामी ब्लैक सी तक जाने वाले विशाल रास्ते के बारे में | मुझे महसूस हुआ कि मैं खुशकिस्मत हूँ कि मुझे अपनी यात्रा के लिए ऐसा रमणीक और हंसमुख सहयात्री मिला - मेरा दोस्त जो की एक स्वीड (स्वीडन देश का निवासी) था |
हमने इस तरीके की कई यात्राएं साथ में की थीं, लेकिन डेन्यूब, किसी भी अन्य नदी से अधिक, जिन्हें मैं जानता था, ने अपनी शुरुआत से ही अपनी जीवंतता से हमें बहुत प्रभावित किया था। इस नदी की छोटी बुलबुलाती शुरुआत डोनाऐशीगेन के देवदार के उध्यानों से हुई थी, लेकिन अब यह अपना रूप बदल कर एक विशाल नदी बन कर वीरान दलदलों में से असंयमित होकर बह रही थी | इसके इस कायाकल्प को देखकर ऐसा लगा जैसे हमने किसी जीवित प्राणी को विकसित होते देखा हो | अपने शुरूआती समय में नींद में डूबी यह नदी बाद में जैसे ही अपनी गहरी आत्मा के प्रति सजग हुई तो इसके अंदर हिंसक इच्छाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया | यह उन सभी देशों से, जहाँ से हम गुज़रे थे, से एक विशाल तरल जीव की तरह बहती हुई निकली, हमारी छोटी नांव को अपने बड़े कन्धों पर टिकाए हुए, कभी-कभी बेरुखी से हमसे खेलते हुए पर हमेशा मैत्रीपूर्ण सलीका रखते हुए | अंततः बिना शक के हमें मानना पड़ा कि यह नदी अपना एक ख़ास व्यक्तित्व लिए पैदा हुई है |
और इसके अलावा हो भी क्या सकता था ? आखिर इस नदी ने अपने गुप्त प्रवाहों वाले जीवन से हमें परिचित जो करवाया था | रातों को हमने, अपने टैंट में लेटे हुए, इसको गुनगुनाते हुए सुना था | किनारों से इसकी लहरों के टकराने से और तट की रेत को काटने से उठने वाले इसके अजीब सिसकते हुए सुरों को हमने सुना था | हम चित-परिचित हो चुके थे इसके भंवरों की गड़गड़ाहट से, जो अचानक ही पैदा हो जाती थी पानी की शांत सतह में; इसके उथले और तेज़ उतार की दहाड़ से; इसकी सतही आवाज़ों के नीचे निरंतर उठती रहती गर्जन से; और इसके ठन्डे पानी की तट से लगातार चलने वाली तकरार से | जब बारिश इसके चेहरे पर सपाट गिरती तो इसका खड़े होकर उस पर चिल्लाना ! और जब हवा का इसके तेज़ बहाव को रोकने की कोशिश करना तो कैसे इसकी हंसी का गरज़ना ! हम जानते थे इसकी सब ध्वनियों और आवाज़ों को, इसके उतार और चढ़ाव को; पुलों से इसकी अनावश्यक भिड़ंत से उठने वाली फुहारों को; इसकी पहाड़ों को देखकर उठने वाली बुदबुदाहट को; छोटे शहरों से गुज़रने पर इसकी गरिमापूर्ण बोली को, जिसके पीछे एक हंसी छिपी हुई होती थी; और वो सब मंद मीठी फुसफुसाहटों को, जो उठती थी इसके पानी के भाप बनने पर, जब भी सूरज की गर्मी इस पर बरसती थी |[adinserter block="1"]
इस नदी की पूरी तरह से खोज होने से पहले दुनिया इसकी चालाकियों से अनजान थी | अपनी नियति के फैसले से छुपते हुए, यह नदी स्वाबियन के जंगलों में गड्ढों में बहकर गायब हो जाती और फिर दूसरी ओर चूना पत्थर की बनी पहाड़ियों में से फूटकर एक नई नदी के नाम से बहने लगती | और यहाँ इसके तल में पानी इतना कम हो जाता था कि जिसके कारण हमें भी, अपने सफर के दौरान, अपनी कैनो से निकलकर उसको मीलों तक हाथों से धकेलकर ले जाना पड़ा था |
अपनी जवानी के शुरूआती लापरवाह दिनों में इस नदी का प्रमुख मनोरंजन का साधन होता था इसका लोमड़ी की तरह छुपकर ऐल्प्स के पहाड़ों से बहकर आती उपनदियों का इंतज़ार करना | और फिर इन नवागंतुकों के आगमन को नकार कर इसका उनसे मिलाप ना करके उनसे सामानांतर दूरी बनाए रखकर अलग राह में मीलों बहते रहना | पर पसैओ शहर में आने पर यह चाल उसको छोड़नी पड़ती क्योंकि यहाँ 'इन्न' उपनदी गरजते हुए और पूरी ताकत से आकर डेन्यूब से आ मिलती थी और फिर एक घुमावदार घाटी में से दोनों को गुज़रना पड़ता था और डेन्यूब को समय रहते अपने निकास के लिए, चट्टानों से भिड़ते हुए और बड़ी लहरों संग मशक्कत करते हुए, दौड़ना पड़ता था | और इस घमासान के दौरान हमारी कैनो डेन्यूब के कंधो से फिसलकर उसके सीने में आ अटकी थी और इन लहरों के संघर्ष का लुत्फ़ उठाती रही | पर 'इन्न' उपनदी से भिड़ने के बाद डेन्यूब ने अपना पाठ सीख लिया था और फिर पसैओ से निकलने के बाद उसने किसी नई नदी को नज़रअंदाज़ नहीं किया |
हाँ यह सब बहुत दिनों पहले की बातें हैं और अब तक के हमारे सफर में हम इस विशाल जीव के और भी कई पहलू जान चुके थे | स्ट्रॉबिंग के गेहूं के मैदानों में से यह नदी इतनी धीरे-धीरे भटकती हुई चल रही थी कि ऐसे लगा कि जैसे इसकी ऊपरी कुछ इंच की सतह ही पानी की हो और इसके नीचे जैसे प्रेतों की एक पूरी सेना, रेशमी लबादों से ढंकी, चुपचाप गुज़र रही हो |
अक्सर हम भी उसके तटों पर मंडराने वाले पक्षियों और जानवरों से उसकी दोस्ती देखकर उसकी उद्दंडता भूल जाते थे | कोर्मोरंस (जलकाग) उसके तटों पर लकड़ी के बाड़ों की तरह दिखने वाली पंक्तियों में खड़े रहते; स्लेटी रंग के कव्वे इसके कंकड़ों वाले किनारों पर भीड़ बनाए रखते; सारस इसके द्वीपों के बीच उथले पानी में खड़े होकर मछली पकड़ते; और बाज़, हंस और कई प्रकार के दलदल के पक्षी वातावरण को अपने चमकीले परों और तीखी आवाज़ों से भर देते थे | इस नदी के सनकीपन से हमें होने वाली परेशानी तब दूर हो जाती जब हम किसी हिरण को पानी में छलांग लगाकर हमारी नौका के समीप से तैरते हुए देखते; और तब जब कई बार हमें झाड़ियों के बीच हिरण के बच्चे हमारी ओर झांकते दिखते; या फिर जब हम किसी तीव्र मोड़ से नदी के एक भाग से दूसरे भाग में प्रवेश करते और अचानक किसी बारहसिंघा की भूरी आँखों को हमारी नज़रों में झांकते पाते | लोमड़ियाँ भी तटों पर मंडराती रहती थीं और उनका किनारों पर जमा लकड़ियों पर लड़खड़ाना और फिर यकायक आँखों से औझल हो जाने का हुनर हमें कभी समझ नहीं आया |
लेकिन अब, प्रेसबर्ग छोड़ने के बाद, सब कुछ थोड़ा बदल गया, और डेन्यूब अधिक गंभीर हो गई | उसकी अस्थिरता अब बंद हो चुकी थी | यह ब्लैक सी तक जाने वाले रस्ते का मध्य पड़ाव था और यहाँ के इलाकों में इसकी चालों और तुनकमिजाजी को कोई अनुमति नहीं थी | यह नदी अचानक से जैसे प्रौढ़ हो गई और इसके इस बदलाव को देखकर हम अचम्भे और इसके प्रति आदर से भर गए | यहाँ पर यह तीन भुजाओं में विभाजित हो गई | और मुश्किल की बात सिर्फ यही नहीं थी कि ये तीनों रस्ते कई सौ किलोमीटर के बाद एक दूसरे से मिलते थे बल्कि यह भी थी कि एक नांव के लिए कौनसा रस्ता चुना जाए इसके भी कोई दिशानिर्देश वहां मौजूद नहीं थे |[adinserter block="1"]
"अगर तुमने नदी की मुख्य धारा छोड़ कोई सहायक धारा में प्रवेश किया," एक हंगेरियन अधिकारी ने हमें प्रैसबर्ग की एक दूकान में, हमारे राशन खरीदने के दौरान बताया था, " तो तुम लोग खुद को, बाढ़ कम होने के बाद, चालीस मील दूर ऐसी जगह में पाओगे जहाँ तुम आसानी से भूख और गर्मी के शिकार हो सकते हो | वहां पर न कोई लोग होंगे, न कोई खेत और न ही कोई मछुआरे | मैं आपको सलाह दूंगा कि आगे का सफर जारी ना रखें | नदी अभी भी उफान पर है और हवा भी तेज़ होने वाली है |"
नदी के उफान से हमें कोई डर नहीं था पर अचानक से पानी के कम हो जाने से किसी ऊँची और सूखी जगह पर अटक जाना खतरनाक हो सकता था | तो परिमाणस्वरूप हमने थोड़ा अधिक राशन खरीद लिया था | पर उस अधिकारी की बाकी की भविष्यवाणी सही साबित हुई | हवा, जो शुरुआत में साफ़ आसमान में बह रही थी, धीरे-धीरे उसने एक आंधी का रूप ले लिया था |
सूरज के क्षितिज में छुपने से एक दो घंटे पहले ही हमने टैंट बांधकर कैंप लगा लिया था | और फिर मैं अपने दोस्त को रेत पर सोता छोड़कर अपने इस नए प्रवास स्थान का मुआयना करने चल दिया | मैंने पाया कि जिस द्वीप पर हम रुके थे वो एक एकड़ से भी कम क्षेत्रफल का एक रेतीला तट था जिसकी ऊंचाई नदी के स्तर से दो या तीन फ़ीट की थी | इस द्वीप का अंतिम छोर, सूर्यास्त की ओर मुख किए, हवा के तेज़ बहाव से बिखरे लहरों के फव्वारों में ढंका हुआ था | इसका छोर का आकार एक त्रिकोन की तरह था जिसका शीर्ष हिस्सा नदी की धारा के विरुद्ध खड़ा था |
मैं कुछ समय वहां खड़ा उसको देखता रहा | वो प्रचंड लाल रंग का पानी तेज़ गर्जना करता हुआ बह रहा था | किनारे से भिड़कर उसको बहा ले जाने की कोशिश करता हुआ, पर टकराने के बाद उसके इर्द-गिर्द दो धाराओं में विभाजित हो रहा था | इस बहाव के झटकों में थरथराती ज़मीन और हवा में झूमते विलोज़ को देख ऐसा लग रहा था जैसे ये द्वीप खुद ही हिलडुल रहा हो | करीब एक या दो मील दूर एक ऊंचाई से बहते हुए इस नदी को मैं अपनी ओर आते देख पा रहा था | उसको देखना ऐसा लगा जैसे एक पहाड़ को नीचे से खड़े देखना | एक ऐसा पहाड़ जो झाग से बना, सरकता हुआ, खुद को सूरज के समक्ष रखना चाह रहा था |
द्वीप के बाकी के हिस्से में विलोज़ की सघनता के कारण चलना दूभर हो गया था पर फिर भी मैंने अपना मुआयना जारी रखा | यहाँ द्वीप के निचले छोर पर असामान्य रौशनी के कारण नदी अंधकारमय और क्रोधित लग रही थी | हवा के बड़े थपेड़े लहरों की पीठ पर प्रहार करते हुए उन्हें दबाए हुए थे और उनसे झाग उठ रही थी | यहाँ से करीब एक मील की दूरी तक इस नदी को मैं देख पा रहा था, जो इन द्वीपों में कहीं छिपती तो फिर कहीं उभरती हुई दौड़ रही थी, और यहाँ एक बड़ा घुमाव लेकर विलोज़ में जैसे गुम हो रही थी | विलोज़ का झुण्ड जैसे प्राचीन दैत्यों के समूह की तरह इसके पानी को निगलने के लिए इकठ्ठा हुआ लग रहा था | उनको देखकर मुझे लगा कि वो जैसे एक दैत्याकार स्पंज-नुमा उपज की तरह नदी के पानी को चूस रहे हों | उनकी इतनी अधिक संख्या में जुटे हुए के कारण नदी आँखों से औझल हो गई थी |
कुल मिलाकर यह एक प्रभावशाली दृश्य था, इसके अकेलेपन, इसके अजीब सम्मोहन के साथ; और उसको लम्बे समय तक कौतुहलता से देखते रहने पर मेरे भीतर एक अजीब सी भावना उठने लगी | इस जंगली सुंदरता को देखने के दौरान एक बिन-बुलाए अजनबी डर और बेचैनी के भाव ने मेरे अंदर प्रवेश किया |[adinserter block="1"]
एक उफनती नदी शायद हमेशा ही एक अपशकुन होती है; यहाँ दिखने वाले कितने ही छोटे द्वीप सुबह तक बह जाने वाले थे | इसके निर्बाध, गरजते बाढ़ के पानी ने मुझे अचंभित कर दिया था | पर मैं जानता था कि मेरे इस आश्चर्य और उत्सुकता के भीतर कहीं एक बेचैनी छिपी हुई थी | पर इस बेचैनी का कारण यह बाढ़ का पानी नहीं था | ना ही इसका कारण ये तेज़ हवा की उद्दंडता था - यह चीखता तूफान जिसमें इतना बल था कि वो विलोज़ के एक एकड़ को भी उखाड़कर भूसे के ढेर में तब्दील कर सकता था | हवा तो बस अपने आनंद में मग्न थी क्योंकि इस सपाट क्षेत्र में उसको कोई रोकने वाला नहीं था और मैं भी उसके इस खेल को देखकर उत्साह से भर गया था | पर यह भाव इस हवा को महसूस कर नहीं उठ रहे थे | वास्तव में मेरी व्यथा का कारण इतना अस्पष्ट था कि उसके स्त्रोत का पता लगाकर उसका हल निकालना मुमकिन ही नहीं था | हालाँकि मुझे आभास था कि इसकी वजह थी मेरा इन असीम ताकतों के सामने बिलकुल तुच्छ महसूस करना | इस नदी को भी देखकर ऐसा मह्सूस हो रहा था कि जैसे हमने यहाँ आकर इन प्राचीन ताकतों का अनादर किया हो | ऐसी ताकतें जिनके बल के सामने हम बिलकुल असहाय थे | निस्संदेह यहाँ पर इन शक्तियों का एक महान खेल चल रहा था जिसको देखकर विस्मय की भावना उठना लाज़मी था |
पर मेरा यह मनोभाव, जहाँ तक मैं समझ पा रहा था, इन विलोज़ की झाड़ियों को देखकर पैदा हो रहा था | कई एकड़ों में फैले, घने और विशाल विलोज़ भीड़ बनाए खड़े थे | आसमान के नीचे मीलों मील तक एक सघन विस्तार के रूप में नदी के ऊपर दबाव बनाए हुए, देखते, सुनते और किसी का इंतज़ार करते खड़े थे | इस उग्र मौसम के प्रभाव के अलावा, विलोज़ की उपस्थिति भी मेरी बेचैनी बढ़ा रही थी | उनकी बड़ी संख्या, कुछ द्वेष की भावना से, मुझे एहसास दिला रही थी एक ऐसी शक्ति की मौजूदगी का जो हमारे हित में नहीं थी |
निश्चित ही, प्रकृति के ऐसे राज़ उजागर होने पर ताज्जुब तो उठता ही है | और मैं भी ऐसे प्रभावों से अनभिज्ञ नहीं था | पहाड़ हमें अचम्भे में डालते हैं और सागर हमें डराते हैं पर जंगलों के रहस्य हमें अपने वश में करने की ताकत रखते हैं | लेकिन ये सभी भाव कहीं न कहीं मानव जीवन और मानव अनुभव के साथ अंतरंग रूप से जुड़े हुए हैं। वे हमारे भीतर अचंभित कर देने वाली, पर फिर भी परिचित भावनाओं, को जन्म देते हैं | पर कुल मिलाकर ये हमारी सीमित सोच को विस्तार देते हैं |[adinserter block="1"]
पर इन विलोज़ के समूह को देखकर मुझे कुछ अलग महसूस हुआ | वो कुछ ऐसा तत्त्व अपने में समाए थे जो मेरे मन को जकड़ रहा था | एक अचम्भे की भावना तो मुझमें जग रही थी पर उस अचम्भे के भीतर कहीं एक डर भी छुपा हुआ था | उनकी कंधे से कंधा मिलाए खड़े सैनिकों की जैसी छवि, अँधेरा बढ़ने पर, मेरे चारों ओर गहराती जा रही थी और मेरे अंदर एक आशंका जग रही थी कि हम एक अजनबी स्थान में घुसपैठियों की तरह बिना आमंत्रण के घुस आए थे और हमारे लिए ये स्थान जोखिम से भरा सिद्ध हो सकता था !
वो अनुभूति, हालाँकि जिसका विश्लेषण करके कोई अर्थ निकालने में मैं असमर्थ था, उसकी वजह से मैं ज़्यादा परेशान नहीं हुआ | पर फिर भी ना ही मैं उसको भूल पा रहा था | इस आंधी में टैंट (तम्बू) लगाने और खाना बनाने के लिए आग की व्यवस्था करने दौरान भी मैं उस भाव से ही घिरा हुआ था | इस परेशानी और उलझन की वजह से मेरे लिए इस कैंपिंग के स्थान का आकर्षण भी कम हो गया था | मैंने अपने साथी को इस बारे कुछ नहीं बताया क्योंकि वो ऐसी कल्पनाओं से दूर रहने वाला शख्स था | पहली बात तो यह थी कि मैं उसको समझा ही नहीं पाता जो मुझे महसूस हो रहा था और दूसरी बात वो मुझ पर पागलों की तरह हँसता |
द्वीप के मध्य में, जहाँ ज़मीन थोड़ी धंसी हुई थी, वहां हमने अपने टैंट को लगाया | आसपास के विलोज़ के कारण हवा का वेग भी कुछ कम हो चुका था |
"बहुत साधारण कैंप है यह," स्वीड ने स्थिर शब्दों में टैंट को देख कर कहा, "कोई पत्थर नहीं और कोई जलाऊ लकड़ी भी नहीं | मैं तो सुबह जल्दी निकलने के पक्ष में हूँ | यह रेत भी अपनी मजबूती नहीं बनाए रखने वाली |"
लेकिन आधी रात को ढहते हुए तम्बू के एक अनुभव ने हमें कई तरीके सिखा दिए थे, और हमने अपने आरामदायक घर को यथासंभव तरीके से सुरक्षित बना लिया, और फिर सोने के समय तक जलाने के लिए लकड़ियों का एक ढेर इकट्ठा करना शुरू किया | विलोज़ से टहनियां ना गिरने की वजह से हमारा लकड़ी का एकमात्र स्त्रोत किनारे पर बहाव में आई लकड़ियां ही थीं | हमने किनारों पर अच्छे से खोज की | हर जगह, बौछारों और कोलाहल के बीच, बढ़ती हुई बाढ़ की मार से तटों से बड़े हिस्से ढह कर अलग हो रहे थे |
"यह द्वीप हमारे यहाँ आने के बाद और भी सिकुड़ गया है," स्वीड ने सटीक अनुमान लगाते हुए कहा | "ऐसी दर से यह ज़्यादा देर टिकने वाला नहीं | हमें अपनी कैनो को तम्बू के थोड़ा और नज़दीक ले आना चाहिए और किसी भी वक़्त निकलने के लिए तैयार रहना चाहिए | मैं तो अपने पूरे कपड़ों में ही सोऊंगा |"
वो मुझसे थोड़ी दूरी पर, किनारे पर चढ़ाई करते चल रहा था और उसकी बात के साथ-साथ मुझे उसकी खुशमिज़ाज़ हंसी भी सुनाई पड़ रही थी |[adinserter block="1"]
"हे भगवान !" कुछ क्षणों बाद उसकी यह पुकार मुझे सुनी और मैं उसकी ओर मुड़ा | पर वो विलोज़ के पीछे कहीं था और कुछ पलों तक मेरी नज़रों से ओझल रहा |
"यह क्या बला है ?" मैंने फिर उसकी पुकार सुनी जो इस समय गंभीर हो गई थी |
मैं उसकी ओर भागा और किनारे पर उसे खड़ा पाया | वो नदी की ओर देख रहा था और पानी में किसी चीज़ की ओर इशारा कर रहा था |
"ये तो एक मानव शव है !" उसने उत्तेजित होते हुए कहा | "देखो !"
एक काले रंग की आकृति, लहरों में घूमती पलटती, हमारे सामने से तेजी से बहकर निकली | वो कभी डूबती तो कभी सतह पर आती दिख रही थी | वो तट से करीब बीस फ़ीट की दूरी पर ठीक हमारे विपरीत थी और तभी उसने मुड़कर हमारी तरफ देखा | उसकी आँखें सूर्यास्त की रौशनी में पीले रंग से चमक रही थीं | फिर उसने तेजी से पानी में डूबकी लगाई ओर हमारी आँखों से औझल हो गई |
"ओह, ऊदबिलाव !" हम दोनों ने एक साथ हँसते हुए कहा |
वो एक ऊदबिलाव था, ज़िंदा, और शिकार की तलाश में; पर वो हमें ऐसा दिखा जैसे किसी डूबे आदमी का शव पानी पर तैर रहा हो | कुछ दूरी पर वो फिर सतह पर आया और उसकी काली त्वचा, भीगी हुई और सूरज की रौशनी में चमकती दिखाई दी |
फिर कुछ समय बाद जब हम लकड़ियां इकठ्ठा कर वापस जा रहे थे तो एक और घटना ने हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया | इस बार सच में हमें एक आदमी दिखा | और वो भी एक नांव पर | डेन्यूब पर किसी भी समय एक छोटी नांव का दिखना पहले से ही एक असाधारण बात थी और ऊपर से ऐसे निर्जन क्षेत्र में बाढ़ के समय में उसको देखकर हमें उसकी वास्तविकता पर यकीन नहीं हो रहा था | हम खड़े रहकर उसको घूरते रहे |
उस समय सूरज की तिरछी किरणों से या फिर पानी से परिवर्तित होते प्रकाश के कारण मेरा उस उड़ते साये जैसे जीव पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो रहा था | हालांकि उसको देख कर ऐसा प्रतीत हुआ कि वो आदमी एक सपाट तले वाली नांव पर एक बड़े चप्पू से उसको चलाते हुए हमसे विपरीत दिशा की और तेज़ी से आगे बढ़ रहा था | वो निश्चित ही हमारी तरफ देख रहा था पर उसकी हमसे दूरी और प्रकाश की कमी के कारण हम उसका अंदाज़ा नहीं लगा पा रहे थे | मुझे ऐसा लगा कि जैसे वो हमारी ओर कुछ इशारे कर रहा था | उसके चिल्लाने की तीख़ी आवाज़ तो हम तक पहुंची पर तेज़ हवा के कारण उसके कहे शब्दों को हम सुन नहीं पा रहे थे | इस पूरे दृश्य में कुछ तो अजीब था - एक आदमी, नांव, उसके संकेत, आवाज़ - जिसने मेरे ऊपर एक गहरा प्रभाव किया |[adinserter block="1"]
"वो अपनी बाजुओं को तिरछा कर रहा है !" मैंने कहा | "देखो वो अपनी बाजुओं से एक क्रॉस का संकेत दे रहा है !"
"हाँ सही कह रहे हो," स्वीड ने अपनी आँखों पर हाथों की छाया करते हुए और उस आदमी की तरफ देखते हुए कहा | वो आदमी अगले ही पल आँखों से ओझल हो गया | दूर नदी में एक मोड़ मुड़ते ही वो जैसे विलोज़ की चमकती लाल दिवार में विलीन हो गया | कोहरा भी बढ़ने लगा था जिसके कारण हवा में धुंधलापन बढ़ गया था |
"पर वो शाम के समय इस बाढ़ से त्रस्त नदी में कर क्या रहा था ?" मैंने बुदबुदाते हुए पूछा | "वो इस समय कहाँ जा रहा था और उसके संकेतों और चिल्लाने का मतलब क्या था ? क्या तुम्हें लगता है वो हमें किसी चीज़ के बारे चेतावनी दे रहा था ?"
"उसने हमारी जलाई आग का धुआँ देखा होगा और सोचा होगा कि हम कोई भूत हैं," मेरे साथी ने हँसते हुए कहा | "ये हंगेरियन लोग बहुत सी बकवास बातों में विश्वास रखते हैं; तुम्हें याद हैं वो प्रेस्बर्ग की दूकान की मालकिन जिसने हमें चेताया था कि कोई इस जगह नहीं रुकता क्योंकि यहाँ कोई बाहरी दुनिया के जीवों का वास है ! मुझे लगता है वो लोग तो जादुई और अलौकिक शक्तियों में और यहाँ तक की शैतानों में भी विश्वास रखते होंगे |" कुछ देर बाद वो फिर बोला "उस नाविक ने पहली बार इन द्वीपों पर किसी को देखा होगा और इससे वो डर गया होगा, बस यही बात है |"
स्वीड की आवाज़ में मुझे कुछ विश्वास की कमी लगी और उसके हाव-भाव भी सामान्य से कुछ बदले हुए लग रहे थे | उसका यह बदलाव तुरंत मेरे समझ में आ गया पर इसको शब्दों में बयां करना मेरे लिए मुमकिन नहीं था |
"अगर उन लोगों में कल्पनाएं गढ़ने के गुण कुछ अधिक होते," मैंने हँसते हुए कहा - और मैं ज़्यादा से ज़्यादा आवाज़ करने की कोशिश कर रहा था - "तो अब तक उन्होंने इस जगह को पुरातन काल के देवताओं का घर घोषित कर दिया होता | कम से कम रोमन लोगों ने तो ज़रूर यहाँ आकर अपने तीर्थ और पवित्र स्थानों का निर्माण कर प्रकृति के देवताओं का आह्वान किया होगा |"
फिर इस विषय को भूलकर हम अपने स्टू-पॉट (खाना पकाने की हांडी) के रख-रखाव में लग गए क्योंकि मेरे दोस्त को इन काल्पनिक बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी | और वैसे भी मैं इस बात में राहत महसूस कर रहा था कि वो कल्पनाशील नहीं था; उसका शांत और व्यावहारिक स्वभाव मुझे सुकून देने के लिए काफी था | उसका स्वभाव सराहनीय था, मैंने सोचा; वो किसी रेड इंडियन की तरह लहरों की सवारी कर सकता था; उसका कश्ती पर भयानक भंवरों और सेतुओं को पार करने का कौशल अतुलनीय था | वो ऐसी साहसी यात्राओं के लिए उपयुक्त साथी था, एक ताकतवर खम्बे की तरह वो कठिन परिस्थितियों से भीड़ सकता था | मैंने उसके कठोर चेहरे और घुंघराले बालों को देखा | वो लड़खड़ाता हुआ मुझसे दुगुनी लकड़ियों का ढेर उठाए चल रहा था और उसे देखकर मेरी चिंता कम हो गई | सच में, मुझे इस बात से राहत मिली कि मेरा स्वीड दोस्त ज़रूरत से ज़्यादा न बोलने वाला व्यक्ति था |[adinserter block="1"]
"पर ये नदी का स्तर अभी भी बढ़ रहा है," उसने कुछ सोचते हुए कहा और लकड़ियों का गट्ठर जमीन पर रख दिया | "अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये द्वीप दो दिनों के अंदर पानी में डूब जाएगा |"
"मैं त यही चाहता हूँ कि बस ये हवा थम जाए," मैंने कहा | "मुझे नदी की कोई परवाह नहीं |"
वास्तव में बाढ़ से हमें कोई खतरा नहीं था; हम किसी भी वक़्त सिर्फ दस मिनट के अंदर इस जगह से निकल सकते थे और जितना ज़्यादा पानी होता उतना ही हमारे लिए अच्छा होता | ज़्यादा पानी की वजह से हम तेजी से बहाव पार सकते थे और पथरीले तलों के पानी के नीचे समां जाने से हमारी कैनो को चोट पहुँचने का खतरा भी कम होता |
पर हमारी उम्मीदों के खिलाफ, सूरज के ढलने के साथ हवा का बहाव धीरे नहीं हुआ | ऐसा लगा कि अँधेरा बढ़ने पर हवा और तेज़ बहने लगी | वो चिल्लाते हुए और विलोज़ को तिनकों समान झकझोरते हुए बह रही थी | कभी कभी कुछ अजीब ध्वनियाँ हमें सुनाई पड़ती जैसे कहीं कोई बड़ी तोपें दागी जा रही हों और जो पानी और ज़मीन पर बरस कर भारी थपेड़ों की तरह मार कर रही हों | इसको सुनकर मैं उन आवाज़ों के बारे सोचने लगा जो एक गृह से, अंतरिक्ष में चलने के दौरान, उठती होंगी |
पर आकाश में बादलों का कोई निशान नहीं दिख रहा था और हमारा रात का खाना खाने तक पूर्णिमा का चाँद पूर्व दिशा में उठ चुका था | उसकी रौशनी में नदी और विलोज़ का मैदान दिन के समय जैसे प्रकाशित हो रहा था |
हम मैदान के एक रेतीले हिस्से पर, धूम्रपान करते हुए, रात की आवाज़ों को सुनते हुए लेटे हुए थे और हम अपने अब तक के सफर की और आने वाले सफर की बात कर रहे थे | नक्शा हमारे टैंट के प्रवेश-द्वार पर रखा था पर हवा के कारण उसको पढ़ने में परेशानी हो रही थी | फिर हमने टैंट के पर्दों को बंद किया और लालटेन को भी बुझा दिया | हम, मैदान में बैठे हुए, वहां जलती आग की रौशनी से एक दूसरे के चेहरे को देख पा रहे थे | उससे उठती चिंगारियां हवा में उड़कर आतिशबाजियों सी लग रहीं थी | कुछ गज की दूरी पर नदी गड़गड़ाते और फुफकारते हुए बह रही थी और समय-समय पर एक बड़ी बौछार की आवाज़ के साथ तट का कुछ भाग पानी में गिरकर बह जा रहा था |
मैंने पाया कि हमारी बातें सुदूर दृश्यों और ब्लैक फॉरेस्ट के हमारे पुराने कैम्पों के बारे में थी या फिर ऐसे दूर के विषयों के बारे में जिसका वर्तमान परिस्थितियों से कुछ लेना-देना नहीं था | हम दोनों में से कोई भी मौजूदा हालात की बात नहीं कर रहा था मानो जैसे कैंप और इसकी घटनाओं का ज़िक्र ना करने का हम दोनों ने मौन रूप से फैसला कर लिया था | हमने एक बार भी उस ऊदबिलाव और उस नाविक का ज़िक्र नहीं किया हालाँकि ऐसी घटनाएं शाम की बातों का मुख्य हिस्सा बन सकती थीं क्योंकि उन घटनाओं का ऐसी जगह में होना काफी अनोखी बात थी |
लकड़ियों की कमी ने आग को बनाए रखना एक चुनौती बना दिया था | ऊपर से आग के बुझने पर उठते धुएं से बचने के लिए हमें न चाहते हुए भी लकड़ियों की तलाश में बार बार उठना पड़ रहा था | हमने तय किया कि हम अपनी-अपनी बारी से लकड़ियों की खोज में अँधेरे में जाएंगे पर मुझे लगा कि स्वीड जिस मात्रा में लकड़ियां ला रहा था उसके लिए वो अत्यधिक समय लगा रहा था | हालांकि मुझे अपने-आप को अकेला छोड़े जाने की चिंता नहीं थी पर मुझे लग रहा था कि हर बार मुझको ही झाड़ियों में और चिकने किनारों पर जाकर लकड़ी ढूंढने की मशक्कत करनी पड़ रही थी | पूरे दिन ऐसी हवा और पानी से भिड़ते रहने के बाद हम पूरी तरह से थक चुके थे और जल्दी सो जाना ही हमारे लिए उपयुक्त था | पर फिर भी हम में से कोई भी सोने के लिए टैंट की और नहीं बढ़ा | हम वहीँ, आग का रखरखाव करते, बेमतलब बातें करते, विलोज़ की सघन झाड़ियों को देखते और हवा और पानी की गड़गड़ाहट सुनते हुए लेटे रहे | इस जगह का एकाकीपन जैसे हमारी हड्डियों तक सीप चुका था और खामोश रहना ही स्वाभाविक लग रहा था क्योंकि कुछ समय बाद हमारी बातों की आवाज़ भी अवास्तविक और मजबूर लगने लगी | फुसफुसा कर बात करना ज़्यादा सहज होता, मैंने सोचा | मानवीय आवाज़ तो वैसे भी ऐसे प्राक्रतिक माहौल में बेतुकी ही लगती है पर इस समय तो ये एकदम नागवार ही महसूस हो रही थी | ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे हम किसी चर्च में ज़ोर-ज़ोर से बात कर रहे हों या फिर किसी ऐसी जगह पर शोर कर रहे हों जहाँ पर आवाज़ करना संभवतः अनुचित या फिर खतरनाक भी हो सकता था |
इस सुनसान द्वीप का ख़ौफ़, इसका हज़ारों विलोज़ से भरा होना, अंधड़ से ग्रस्त और बहते गहरे पानी से घिरा होना हमारे अंतर्मन को छू गया था | मानव आवास और प्रभाव से दूर यह जगह चमकते चन्द्रमा के नीचे जैसे एक अनजान दुनिया की सीमा पर बसी थी | एक ऐसी दुनिया जिस पर विलोज़ का ही कब्ज़ा था और विलोज़ की ही आत्माओं का निवास था | और हमने अपने उतावलेपन में इस जगह में घुसपैठ करने का और यहाँ तक कि इसका उपयोग करने का भी दुस्साहस किया था ! रेत पर लेटे हुए, पाँव आग की ओर किए, पत्तों में छिपे तारों को देखते हुए मैंने पाया कि इस जगह के रहस्य के एहसास से भी बढ़कर कुछ और मेरे अंदर एक हलचल पैदा कर रहा था | फिर एक आखिरी बार लकड़ियों की खोज के लिए मैं उठा |
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Thanks Ji