टेल्स ऑफ़ हॉरर / Tales of Horror: A collection of classic horror stories PDF Download Free Hindi Books by Prabhdeep Singh

पुस्तक का विवरण (Description of Book of टेल्स ऑफ़ हॉरर / Tales of Horror PDF Download) :-

नाम 📖टेल्स ऑफ़ हॉरर / Tales of Horror PDF Download
लेखक 🖊️   प्रभदीप सिंह / Prabhdeep Singh  
आकार 2.5 MB
कुल पृष्ठ204
भाषाHindi
श्रेणी, ,
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इस किताब में हॉरर लिटरेचर के 4 सुप्रसिद्ध लघु-उपन्यास सम्मिलित किए गए हैं

1. The Willows by Algernon Blackwood - यह कहानी है दो दोस्तों की जो अपनी नौका से डेन्यूब नदी की सैर पर निकलते हैं और फिर अपने आप को एक ऐसे सुनसान इलाके में पाते हैं जहाँ एक के बाद एक अजीब घटनाओं से उनका सामना होता है पर क्या इन घटनाओं के पीछे प्रकृति की हिंसकता है या फिर किसी अलौकिक शक्ति का प्रभाव, या फिर यह महज एक इंसानी कल्पना का नतीजा हैं ? यह रहस्यमयी कहानी पाठक को दहला देने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर देगी

2. The Great God Pan by Arthur Machen - एक अहंकारी वैज्ञानिक का अलौकिक, लेकिन असफल, प्रयोग फिर एक गाँव में अजीब घटनाओं का क्रम, और फिर लंडन शहर में खौफनाक वारदातें यह कहानी कई रहस्यमयी विषयों जैसे - तंत्र-मंत्र, पौराणिक धारणाएं, शैतानी धर्म, गुप्त ताकतों से ओतप्रोत है और शायद इसलिए ही इस कहानी को स्टीफन किंग जैसे दिग्गज लेखकों द्वारा हॉरर साहित्य की बेहतरीन कहानियों में से एक का दर्जा दिया गया है

3. The Call of Cthulhu by H. P. Lovecraft - इस कहानी की शुरुआत होती है एक प्रोफेसर की आकस्मिक मौत और फिर उनके वारिस द्वारा उनके अनुसंधान के कागज़ातों का मुआयना करने से, जो उसको एक विलुप्त हो चुके पौराणिक समुदाय की खोज में भेज देती है एक अनूठे रूप में लिखी गई यह कहानी एक आदमी द्वारा इकठ्ठा की गई रहस्यमयी घटनाओं की जानकारी को एक क्रम में पेश करती है जिनके आधार में किसी मनहूस रहस्य के उजागर होने की संभावना छिपी हुई है

4. The Sandman by E. T. A. Hoffmann - अपने बचपन में हुई एक खौफनाक घटना के सदमे से उबर कर जब नेथेनियल एक युवक के रूप में पढ़ाई करने के लिए दूसरे शहर में जाता है तो उसकी मुलाकात फिर से उसके बचपन के डर से हो जाती है पर क्या सच में उसके डर की कोई वास्तविक बुनियाद है या यह महज उसकी कल्पना है ? इस दुविधा में फंसे नेथेनियल की कहानी में यथार्थ और कल्पना का ऐसा मेल है जो पाठक को कहानी के अंत तक रोमांच और भय से बांधे रखेगा

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पुस्तक का कुछ अंश

प्राक्कथन

ख़ौफ़...
इंसान द्वारा महसूस किए जाने वाले सभी एहसासों में से सबसे ताकतवर एहसास होता है ख़ौफ़ | ख़ौफ़ चाहे अनजानी चीज़ों का हो या फिर मौत का, यह हमारी उस मूलभूत इच्छा को हमारे अंदर जगा देता है जो प्राचीन समय से मानव सभ्यता के साथ जुड़ी रही है - 'खुद के अस्तित्व को बनाए रखने की इच्छा' | और यही कारण है कि हमारी पौराणिक किवदंतियों से लेकर नए ज़माने के साहित्य तक, इन सब में हमें ऐसी खौफनाक कहानियां पढ़ने-सुनने को मिलती रही हैं जो हमारे अंदर ख़ौफ़ को जगाने के साथ-साथ हमें हमारे अस्तित्व के बारे सोचने पर भी मजबूर कर देती हैं |
आपने भी बचपन में कोई-न-कोई ऐसी ख़ौफ़नाक कहानी तो ज़रूर सुनी होगी जो आप अब तक भुला नहीं पाए होंगे | फिर वो कहानी चाहे अँधेरी रात में एक घने जंगल से गुज़रते राहगीर की हो या फिर एक सुनसान हवेली में रात गुज़ारने को लेकर लगी शर्त की कहानी, ऐसी कहानियां हमें शुरू से ही रोमांचित करती रही हैं | हॉरर साहित्य का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि जो बच्चों से लेकर बड़ों तक सबको अपने ख़ौफ़नाक लेकिन रोमांच-भरे जाल में बाँध लेता है | पर हॉरर साहित्य का यह संसार सिर्फ सतही मनोरंजन और पल भर के रोमांच तक ही सीमित नहीं है | सच कहा जाए तो यह एकमात्र ऐसा साहित्य है जिसमें मानव प्रवृति के नीचतम पहलुओं और जीवन मृत्यु के गूढ़ प्रश्नों को उतनी ही स्वतंत्रता से सम्बोधित किया जाता है जितना कि प्रेम की भावना और जीवन के आनंद को | हॉरर साहित्य हमारे अन्तर्मन की उन गहराईयों को टटोलने में सक्षम हैं जिन गहराईयों को किसी दूसरे किस्म का साहित्य छूने की कोशिश भी नहीं करता | यह अलौकिक और भूतिया कहानियां अक्सर हमें अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के मसलों को भूलाकर जीवन के बड़े मुद्दों पर सोचने पर मजबूर कर देती हैं | इन कहानियों में मानव अस्तित्व की ऐसी संभावनाओं को उजागर किया जाता है जिसके सामने बाकी सब प्रश्न बेमाने लगने लगते हैं | शायद इसलिए ही उनका प्रभाव हमारे दिमाग पर लम्बे समय तक बना रहता है |
हालाँकि हॉरर का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि किसी भी और साहित्य का, लेकिन अट्ठारवीं सदी के अंत के दौरान एक ख़ास किस्म के हॉरर का जन्म हुआ जिसको "गोथिक हॉरर" का नाम दिया गया | इस किस्म के हॉरर में अलौकिक घटनाओं को सहज रूप से दर्शाया जाता था लेकिन मानवीय भावनाओं पर उनके असर को काफी गहनता से प्रदर्शित किया जाता था | उन्नीसवीं सदी में भी इस किस्म का साहित्य प्रचलन में रहा और उस समय में हॉरर के सबसे मशहूर उपन्यास जैसे "फ्रैंकेनस्टाइन", "ड्रैकुला", "द लीजेंड ऑफ़ स्लीपी होलो", इत्यादि लिखे गए जो आज तक पढ़े जाते हैं | फिर बीसवीं सदी के शुरुआत में गोथिक हॉरर से प्रेरित होकर एक नए किस्म के हॉरर का जन्म हुआ जिसके तहत कहानियों में डरावने पात्रों की भूमिका में भूत प्रेत के बजाय दूसरे गृह से आए जीवों या फिर अमानवीय शक्तियों को दर्शाया गया | इस तरह के हॉरर को बाद में "वीयर्ड हॉरर" का नाम दिया गया |[adinserter block="1"]
इस किताब में जो कहानियां सम्मिलित की गई हैं वो हॉरर की इसी परम्परा से नाता रखती हैं | हालाँकि सब कहानियां एक दूसरे से बिल्कुल जुदा हैं लेकिन इन सबमें एक बात जो समान है वो यह है कि इन सब कहानियों को सतही तौर पर रोमांच और ख़ौफ़ से भरी मनोरंजक कहानियों के रूप में भी पढ़ा जा सकता है, या फिर एक पैनी समझ वाले पाठक द्वारा इनको इंसान और समाज के दिल में गहरे दबे डर के ऊपर किए गए निरिक्षण के रूप में भी पढ़ा जा सकता है | और यही बात इन कहानियों को ख़ास बनाती है | इन कहानियों के चारों लेखक - ब्लैकवुड, मैकन, लवक्राफ्ट, हॉफमैन, हॉरर साहित्य के सबसे बड़े और जाने-माने लेखक थे | लेकिन जैसा कि हमेशा से होता आया है - इतिहास की धुंधली पड़ती याद में और समय और साधनों के अभाव में - इन लेखकों की कहानियों का कभी हिंदी में अनुवाद नहीं हो पाया और हिंदी के पाठकों को इन महान कृतियों को पढ़ने का मौका कभी नहीं मिला | मेरा उद्देश्य इस किताब के माध्यम से यही है कि हॉरर के इन प्रतिभापूर्ण लेखकों को और उनकी अप्रतिम कहानियों को हिंदी जगत के सामने रख सकूँ | आशा करता हूँ कि यह कहानियां आपको पसंद आएं और हॉरर साहित्य के प्रति आपके दिल में लगाव और नज़रों में सम्मान, दोनों में वृद्धि हो सके |
धन्यवाद और Happy reading.
- प्रभदीप सिंह

लेखकों और उनकी कहानियों के बारे

1. एल्जरनोन ब्लैकवुड (1869 – 1951)
Algernon Blackwood
एल्जरनोन हेनरी ब्लैकवुड एक इंग्लिश रेडिओ प्रसारक, पत्रकार, उपन्यासकार और लघुकथा लेखक थे | उनका जन्म इंग्लैंड में हुआ और उन्होंने वेलिंगटन कॉलेज में अपनी पढ़ाई की | उन्होंने अपने जीवन में होटल प्रबंधक, डेयरी कर्मचारी, सेक्रेटरी, बिज़नेसमैन, वायलिन टीचर के रूप में कई व्यवसायों में अपना हाथ आज़माया | वे एक घुमक्कड़ किस्म की प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और उनकी कहानियों में प्रकृति के प्रति उनका लगाव साफतौर पर दिखता है | 1899 में इंग्लैंड लौटकर उन्होंने कहानियां लिखना शुरू किया और फिर सात साल बाद पूरी तरह से एक व्यावसायिक लेखक बन गए | ब्लैकवुड को अपने आखरी कुछ वर्षों में रेडियो और टेलीविज़न पर डरावनी कहानियां सुनाने वाले प्रसारक के रूप में लोगों द्वारा काफी पसंद किया गया | उनके देहांत के बाद उनकी अस्थियों को उनके भतीजे द्वारा स्विस ऐल्प्स के पहाड़ों में बिखेर दिया गया क्योंकि उन पहाड़ों से ब्लैकवुड को काफी लगाव था और उन्होंने चालीस साल तक वहां भ्रमण किया था |
ब्लैकवुड का कहना था कि उनकी रुचि मानव चेतना के अंदर सोई हुई ताकतों में थी | उनका मानना था कि इंसान की बोध-शक्ति का विस्तार मुमकिन है और उसके ज़रिये से ही इंसान अलौकिक दुनिया को देखने के काबिल बन सकता है | अतः उन्होंने अपनी रहस्यमयी कहानियों के माध्यम से मानव चेतना के विस्तार की संभावना को उजागर किया था और उसकी सीमा के परे के अनुभवों को ज़ाहिर करने की कोशिश भी की थी |
The Willows (द विलोज़) - ब्लैकवुड द्वारा लिखा गया एक लघु उपन्यास है जो पहली बार 1907 में उनकी कहानियों के संकलन में प्रकाशित किया गया था | यह ब्लैकवुड की सबसे प्रख्यात कहानी है जो उनके बाद आए लेखकों द्वारा भी काफी सराही गई | यह कहानी है दो दोस्तों की जो अपनी नौका से डेन्यूब नदी की सैर पर निकलते हैं और फिर अपने आप को एक ऐसे सुनसान इलाके में पाते हैं जहाँ एक के बाद एक अजीब घटनाओं से उनका सामना होता है | इस कहानी में प्रकृति की आक्रामकता और इंसान की अति-कल्पनाशीलता के मेल से पैदा होने वाले डरावने अनुभवों को बताकर लेखक ने प्रकृति और मानव दोनों के इन अनजाने पहलुओं को उजागर करने की कोशिश की है |[adinserter block="1"]
2. आर्थर मैकन (1863 – 1947)
Arthur Machen
आर्थर लूएलिन जोंस (उपनाम : आर्थर मैकन) वेल्श वंश के उपन्यासकार और निबंधकार थे | अपने जन्मस्थान के पौराणिक इतिहास से प्रभावित होकर और अपने अभिभावकों द्वारा दी गई किताबों को पढ़ते-पढ़ते बचपन से ही उनका झुकाव तंत्र-मंत्र और अल्केमी के साहित्य की तरफ हो गया था | हालाँकि उनका साहित्यिक सफर उतार चढ़ाव भरा रहा, लेकिन जीवन के दूसरे पड़ाव में उनको सफलता हासिल हुई और उनको एक प्रतिभावान लेखक के रूप में स्वीकार कर लिया गया | 1890 से लेकर बीसवीं सदी के शुरुआती समय तक वे मुख्य तौर पर अपनी अलौकिक, फंतासी और डरावनी कहानियों के लिए प्रसिद्द रहे | उनकी कहानियों का प्रभाव अमेरिका के कई बड़े लेखको, जैसे एच. पी. लवक्राफ्ट, सी. ए. स्मिथ, रॉबर्ट हॉवर्ड, इत्यादि पर साफतौर पर झलकता है | अपने समय में उन्होंने पत्रकारिता और अभिनय के क्षेत्र में भी काम किया था |
जीवन को लेकर मैकन का नज़रिया शुरुआत से ही रहस्यवाद से प्रभावित रहा था | उनका मानना था कि इस साधारण सी दिखने वाली रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के भीतर कहीं एक गुप्त और विलक्षण संसार मौजूद है | उनकी कहानियों में अक्सर इस तरह के संसार के होने के बारे कहा गया है जिससे सामना होने पर कहानियों के किरदार अक्सर उन्माद, कामवासना या मौत के शिकार बन जाते थे | पर साथ ही साथ मैकन उस साहित्य के प्रति भी खासा उत्साह रखते थे जिसमें अनजानी दुनिया के आनंद, सुंदरता और उसके प्रति कौतुहल को प्रदर्शित किया जाता था |
The Great God Pan (द ग्रेट गॉड पैन) - मैकन द्वारा लिखा गया यह लघु-उपन्यास सबसे पहले 1890 में प्रकाशित किया गया था | इस कहानी की शुरुआत होती है एक वैज्ञानिक के प्रयोग से जिसमें मैरी नामक एक लड़की को एक अलौकिक दुनिया को देखने लायक बनाने की कोशिश की जाती है | इसके बाद कहानी में कई अलग-अलग अजीब और डरावनी घटनाएं घटित होती हैं जिनके पीछे हमेशा किसी अदृश्य शक्ति के होने का एहसास बना रहता है | यह कहानी तंत्र-मंत्र, पौराणिक धारणाओं, शैतानी धर्म, इंसान के अहंकार जैसे कई विषयों से ओतप्रोत है | इस कहानी में परोक्ष रूप से दर्शाई गई अधार्मिकता और कामुकता के कारण मैकन को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा था लेकिन कुछ सालों बाद कई बड़े लेखकों ने इस कहानी को हॉरर साहित्य के एक उत्कृष्ट नमूने के रूप में स्वीकार किया |[adinserter block="1"]
3. एच. पी. लवक्राफ्ट (1890 – 1937)
H. P. Lovecraft
हावर्ड फिलिप्स लवक्राफ्ट का जन्म 1890 में प्रोविडेंस, रॉड आइलैंड में हुआ था | इनका जीवन काफी मुश्किलों भरा रहा | बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था, जिसके बाद उनकी पुश्तैनी संपत्ति भी व्यावसायिक नुक्सान की भरपाई में खर्च हो गई | अपनी अस्वस्थता के कारण उनको पढ़ाई में भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ा | अपने जीवन के दौरान एक लेखक के रूप में उनको उतनी कामयाबी नहीं मिल पाई जिसके वे काबिल थे और अंततः 1937 में उनकी मौत भी गरीबी में ही हुई | लेकिन इन सब कठिनाइयों के बावजूद, वर्तमान समय में, लवक्राफ्ट को बीसवीं सदी का सबसे प्रतिभापूर्ण हॉरर साहित्य का लेखक माना जाता है | इस समय के कई बड़े लेखक जैसे स्टीफन किंग और नील गेमन उनको अपना आदर्श मानते हैं | उनकी कहानियों पर कई फ़िल्में, नाटक और वीडियो गेम्स का निर्माण हो चुका है | हालाँकि वे एक एकांतप्रिय व्यक्ति थे लेकिन उनकी दोस्ती उनके जमाने के कई नए लेखकों संग थी जिनको वो अक्सर पत्र लिखा करते थे | उनके इन पत्रों की गिनती एक लाख के करीब है |
लवक्राफ्ट ने एक ख़ास किस्म के साहित्य को जन्म दिया जिसको "कॉस्मिक हॉरर" के नाम से जाना जाता है | उनकी कहानियां किसी भूत प्रेत पर आधारित न होकर ऐसे अलौकिक और ताकतवर जीवों पर आधारित होती हैं जिनके सामने मानवजाति बेबस और लाचार दिखाई पड़ती है | उनके खुद के शब्दों में कहें तो उनकी कहानियों का मुख्य आधार होता है - "इस असीम ब्रह्माण्ड के सामने मानवीय नियमों और भावनाओं की निरर्थकता |"
The Call of Cthulhu (द कॉल ऑफ़ कथूलू) - लवक्राफ्ट की यह सबसे प्रसिद्द कहानी उनके द्वारा 1926 में लिखी गई थी जो पहली बार 1928 में "वीयर्ड टेल्स" मैगज़ीन में प्रकाशित की गई थी | इस कहानी की शुरुआत होती है एक प्रोफेसर की आकस्मिक मौत और फिर उनके वारिस द्वारा उनके अनुसंधान के कागज़ातों का मुआयना करने से, जो उसको एक विलुप्त हो चुके पौराणिक समुदाय की खोज में भेज देती है | एक अनूठे रूप में लिखी गई यह कहानी एक आदमी द्वारा इकठ्ठा की गई रहस्यमयी घटनाओं की जानकारी को एक क्रम में पेश करती है जिनके आधार में किसी मनहूस रहस्य के उजागर होने की संभावना छिपी हुई है |[adinserter block="1"]
4. इ. टी. ए. हॉफमैन (1776 – 1822)
E. T. A. Hoffmann
अर्नेस्ट थियडोर अमेडियस हॉफमैन का जन्म 1776 में जर्मनी में हुआ | उनके जन्म के कुछ समय बाद ही उनके माता पिता अलग हो गए थे | हॉफमैन की शिक्षा क़ानून के क्षेत्र में हुई और उन्होंने लॉ अफसर के रूप में छः साल तक नौकरी भी की | कला के  क्षेत्र में वो 'जर्मन रोमैंटिक' दौर के लेखक थे और साथ ही साथ एक संगीतकार, समीक्षक और चित्रकार भी थे | उनकी कुछ कहानियों को ओपेरा में भी जगह मिली | हॉफमैन को फंतासी साहित्य का जनक माना जाता है | उनकी कहानियां यथार्थवादी होने के संग-संग जादूभरी, डरावनी और मौत के विषय से संबंधित होती हैं | उनकी इस ख़ास तरह की लेखन शैली का प्रभाव उनके बाद में आए लेखकों जैसे पो, गोगोल, डिकेन्स, काफ्का इत्यादि की कहानियों में भी दिखता है | 1816 में उन्होंने बर्लिन में एक पार्षद के रूप में भी काम किया था |
हॉफमैन अपनी ज़िन्दगी में एक तरफ कला की आदर्श दुनिया और दूसरी तरफ आम नौकरशाही की दुनिया की परस्पर तकरार को लेकर काफी संवेदनशील थे और उनकी कहानियों में मुख्य किरदार भी ऐसे ही संघर्ष से पीड़ित दिखते हैं | हॉफमैन, बड़ी कुशलता से, अपनी कहानियों में बेहद काल्पनिक घटनाओं को बयाँ करते हुए भी मानवीय स्वभाव का निरिक्षण कर सकने में माहिर थे | भूत-प्रेतों, परियों और सनकी इंसानों से भरी उनकी कहानियों के फंतासी भरे वातावरण में भी उनकी लेखन शैली यथार्थवादी और स्वाभाविक लगती है |
The Sandman (द सैंड-मैन) - यह कहानी हॉफमैन द्वारा जर्मन भाषा में लिखी गई थी जिसको उनकी दूसरी कहानियों के संग 1817 में प्रकाशित किया गया था | यह कहानी दरअसल यूरोपियन पारम्परिक परीकथाओं के एक पात्र - "सैंडमैन" से प्रेरित है | हालाँकि उन परीकथाओं में सैंडमैन को एक नेकदिल और भले जीव के रूप में दिखाया गया था लेकिन हॉफमैन ने उसको अपनी कहानी में एक मनहूस रूप में प्रदर्शित किया है | इस कहानी को अलग-अलग ढंग से पढ़ा जा सकता है | सीधे तौर पर यह एक खौफनाक कहानी है पर मनोविज्ञान के तल पर यह एक दिमागी रूप से बीमार व्यक्ति के सनकीपन का ब्यौरा भी हो सकती है | हॉफमैन ने इरादतन इस कहानी को इस तरह लिखा है कि पाठक इसको अपनी समझ के अनुसार अपने तरीके से परिभाषित कर सकता है |[adinserter block="1"]

द विलोज़

I

विएना से पलायन करने के बाद और बुडापेस्ट में प्रवेश करने से पहले डेन्यूब नदी एक वीराने और उजाड़ क्षेत्र से होकर बहती है जहाँ इसका पानी अपनी मुख्य धारा से विभाजित होकर कई जगहों में बहने लगता है जिसकी वजह से यह इलाका मीलों दूर तक एक दलदल का रूप ले लेता है | और इस इलाके को ढंके हुए रखते हैं यहाँ उगने वाले अनगिनत विलो के झाड़ीनुमा वृक्ष | बड़े नक्शों पर यह इलाका हल्के नीले रंग से दर्शाया गया है और जैसे जैसे तट से इसकी दूरी बढ़ती जाती है, इसका रंग और भी फीका होता जाता है और नक़्शे पर इसके ऊपर बड़े और बेतरतीब अक्षरों में लिखा देखा जा सकता है - 'सेम्फ' जिसका अर्थ होता है दलदल |
यह रेतीला तटीय इलाका, जो विलो के बने छोटे-छोटे द्वीपों सा लगता है, बाढ़ के मौसम में लगभग जलमग्न रहता है पर सामान्य मौसमों में यही विलो की झाड़ियां जब धूप में चमकती, खुली हवाओं में मुड़ती और सरसराती हैं तो एक हिलते-डुलते मैदान के भ्रामक से सौंदर्य का एहसास दिलातीं हैं | यह विलोज़ 'पेड़' कहलाने लायक तक नहीं बढ़ पाते जिसका कारण हैं उनके तनों का सख्त न होना | वे गोलाकार सिरों और नम्र रूपरेखा वाली सामान्य झाड़ियों से ही प्रतीत होते हैं | हल्की हवा के झोंकों में भी वे अपने पतले तनों पर घास की तरह बहते दिखतें हैं और उनके लगातार होने वाले बहाव को देखकर लगता है जैसे पूरा मैदान ही जीवित हो और घूम रहा हो | हवा का बहाव पूरे मैदान में लहरों को जन्म देता है, पानी के बजाय पत्तियों की लहरें | लहरें जो उभरती हुईं हरे रंग की प्रतीत होती हैं और फिर टहनियों के पलट जाने पर उनका रंग सूरज की किरणों में सुनहरा हो जाता है |[adinserter block="1"]
अपने अडिग तटों के निर्धारित बहाव से छूटकर डेन्यूब नदी इस इलाके में अपनी इच्छा के अनुरूप अलग अलग प्रवाहों में बहती है | इन प्रवाहों का पानी द्वीपों को चीरते हुए अपने अपने मार्ग में जैसे चीखते हुए बहता है; अपने उतार में भंवर और बवंडरों को जन्म देता हुआ; रेतीले किनारों को ढहाता हुआ; अपने अंदर मिट्टी और विलो के टुकड़ों को दबाए अनगिनत नये द्वीपों का निर्माण करता है | इन द्वीपों का आकार हर दिन बदलता रहता है और उनका अस्तित्व भी अस्थाई ही होता है क्योंकि बाढ़ के समय में उनका नामोनिशान भी नहीं बचता |
सच कहा जाए तो इस नदी का सबसे आकर्षक हिस्सा प्रेस्बर्ग छोड़ने के बाद शुरू होता है, जहाँ हम पहुंचे मध्य जुलाई में अपनी कैनेडियन कैनो (नांव) पर सवार हुए, एक तम्बू और फ्राइंग पैन साथ में लिए | हमारा आगमन एक उठती हुई बाढ़ के दौरान हुआ | उसी दिन की सुबह में, सूर्योदय होने से पहले ही हमने विएना से पलायन कर लिया था और करीब दो घंटे के सफर के बाद वो शहर विनरवॉल्ड के नीले पहाड़ों के क्षितिज के पीछे कहीं धुएं सा खो गया | हमने फिशरआमंड पहुँच कर बर्च के कोलाहल मचाते पेड़ों तले सुबह का नाश्ता किया | फिर नदी के प्रचंड बहाव पर नौका चलाते हुए हमने और्थ, हेनबर्ग और पेट्रोनेल (मार्कस औरेलिएस का रोमन किला) को पार किया | और ऐसे ही फिर हमने थैलसन और कारपेथीयन्स के नजदीक से बहते हुए मार्च के क्षेत्र से ऑस्ट्रिया की सीमा को लांघ कर हंगरी में प्रवेश किया |
बारह किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से बढ़ते हुए हम एक घंटे के भीतर हंगरी के अंदरूनी क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे और यहाँ कीचड़युक्त पानी -- जो की बाढ़ का निश्चित संकेत होता है -- की वजह से हम कई बार तटों के बजरीले हिस्सों पर अटके और पानी के भंवरों में कई बार घूमते हुए अंततः प्रेसबर्ग (हंगेरियन : परोज़नी) पहुंचे जहाँ की मीनारें आकाश के समक्ष हम देख पा रहे थे | और फिर हमारी कैनो एक उत्साही घोड़े सी छलांग लगाती हुई आगे बढ़ी | मटमैली दीवारों के नीचे तीव्र गति से बहते हुए, फलीगेंड ब्रूक बेड़े की डूबी हुई ज़ंजीरों से बचते हुए कैनो ने एकाएक बायां मोड़ लिया | फिर पीले झाग से पानी को पार कर हम पहुंचे इन टापुओं, टीलों और दलदलों के जंगल के इलाके में - इन विलोज़ के इलाके में |
यह अचानक आया बदलाव ऐसा था मानो जैसे किसी बॉयोस्कोप में चलती हुई शहर की तस्वीरों की श्रृंखला में एकाएक नदी और जंगल की तस्वीर प्रकट हो जाए | हमने ये निर्जन क्षेत्र को तीव्र गति से जैसे पंखों पर उड़ते हुए होकर प्रवेश किया था, और अगले आधे घंटे तक यहाँ हमें ना तो कोई दूसरी नांव और ना ही कोई मछुआरों की झोपड़ियां दिखाई दी | चारों और नज़र के दायरे में कोई मानव निवास या सभ्यता के निशान दिखाई नहीं पड़ रहे थे | इस स्थान का मानव जाती से अलगाव, इसकी पूर्ण निर्जनता और इस क्षेत्र का सिर्फ विलोज़, हवा और पानी से घिरा होना हम पर जादू कर रहा था | हमने मज़ाक में हँसते हुए कहा की ऐसे क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति के लिए तो हमारे पास एक ख़ास अधिकारों वाला पासपोर्ट होना चाहिए | और हमें ऐसा लगा जैसे बिना किसी से पूछे अपने दुस्साहस से ही हम इस आश्चर्य और जादू के इलाके में घुस आए थे - एक ऐसा इलाका जो उसके असली हकदारों के लिए ही संरक्षित था और जहाँ अतिक्रमियों के लिए कुछ था तो सिर्फ अलिखित चेतावनियां |[adinserter block="1"]
हालांकि अभी दोपहर की शुरुआत ही हुई थी पर निरंतर चलती हवाओं के थपेड़ों से हम इतने थक चुके थे कि तुरंत हमने रात को कैंप डालने के लिए जगह ढूँढना शुरू कर दिया | पर उन द्वीपों की भ्रमित करनेवाली बनावट ने हमारा किनारे पर उतरना मुश्किल कर दिया; बाढ़ के घुमाव ने हमें किनारे पर पहुँचाया पर अगले ही पल वापिस नदी में धकेल दिया; विलो की शाखाओं को पकड़कर कैनो को रोकने की कोशिश में हमारे हाथ छलनी हो गए, हमारे इन प्रयासों से और कैनो और किनारे के टकराव से कई गज़ रेत को पानी में धकेलने के बाद अंततः हवा के एक विशाल झोंके की मार से हम ठहरे पानी के क्षेत्र में आ पहुंचे और इस तरह हम पानी की फुहारों में कैनो को किनारे लगाने में सफल हुए | इस संघर्ष के बाद हम हाँफते और हँसते हुए गर्म पीली रेत पर पस्त हो कर पड़े रहे, हवा के बचाव से, चिलचिलाती धूप में, बादल रहित नीले आकाश के तले | विलोज़ की विशाल सेना हमारे इर्द-गिर्द झूमते, चिल्लाते, चमकते हुए, अपने हज़ारों छोटे हाथों से तालियां बजाकर जैसे हमारी सफलता की वाहवाही करने लगी |
"क्या नदी है!" मैंने अपने साथी से कहा | मैं सोच रहा था कि किस प्रकार हमने अपने सफर की शुरुआत ब्लैक फारेस्ट में नदी के स्त्रोत से की थी और किस प्रकार जून के शुरूआती दिनों में मेरे साथी को कई बार उथले पानी में उतरकर कैनो को धकेलना पड़ा था |
"यह नदी अब और दुस्साहस बर्दाश्त नहीं करेगी, क्या कहते हो?" उसने कहा | उसने कैनो को सुरक्षित करने के लिए उसे थोड़ी दूर रेत में और धकेला और फिर शांत होकर वो झपकी लेने लगा |
मैं भी उसके पास ही की ज़मीन पर आकर लेट गया | मैं खुश और शांत महसूस कर रहा था हवा, पानी, रेत और सूरज की आग से घिरे हुए और मैं सोचने लगा हमारी अब तक की लम्बी यात्रा के बारे में और आगामी ब्लैक सी तक जाने वाले विशाल रास्ते के बारे में | मुझे महसूस हुआ कि मैं खुशकिस्मत हूँ कि मुझे अपनी यात्रा के लिए ऐसा रमणीक और हंसमुख सहयात्री मिला - मेरा दोस्त जो की एक स्वीड (स्वीडन देश का निवासी) था |
हमने इस तरीके की कई यात्राएं साथ में की थीं, लेकिन डेन्यूब, किसी भी अन्य नदी से अधिक, जिन्हें मैं जानता था, ने अपनी शुरुआत से ही अपनी जीवंतता से हमें बहुत प्रभावित किया था। इस नदी की छोटी बुलबुलाती शुरुआत डोनाऐशीगेन के देवदार के उध्यानों से हुई थी, लेकिन अब यह अपना रूप बदल कर एक विशाल नदी बन कर वीरान दलदलों में से असंयमित होकर बह रही थी | इसके इस कायाकल्प को देखकर ऐसा लगा जैसे हमने किसी जीवित प्राणी को विकसित होते देखा हो | अपने शुरूआती समय में नींद में डूबी यह नदी बाद में जैसे ही अपनी गहरी आत्मा के प्रति सजग हुई तो इसके अंदर हिंसक इच्छाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया | यह उन सभी देशों से, जहाँ से हम गुज़रे थे, से एक विशाल तरल जीव की तरह बहती हुई निकली, हमारी छोटी नांव को अपने बड़े कन्धों पर टिकाए हुए, कभी-कभी बेरुखी से हमसे खेलते हुए पर हमेशा मैत्रीपूर्ण सलीका रखते हुए | अंततः बिना शक के हमें मानना पड़ा कि यह नदी अपना एक ख़ास व्यक्तित्व लिए पैदा हुई है |
और इसके अलावा हो भी क्या सकता था ? आखिर इस नदी ने अपने गुप्त प्रवाहों वाले जीवन से हमें परिचित जो करवाया था | रातों को हमने, अपने टैंट में लेटे हुए, इसको गुनगुनाते हुए सुना था | किनारों से इसकी लहरों के टकराने से और तट की रेत को काटने से उठने वाले इसके अजीब सिसकते हुए सुरों को हमने सुना था | हम चित-परिचित हो चुके थे इसके भंवरों की गड़गड़ाहट से, जो अचानक ही पैदा हो जाती थी पानी की शांत सतह में; इसके उथले और तेज़ उतार की दहाड़ से; इसकी सतही आवाज़ों के नीचे निरंतर उठती रहती गर्जन से; और इसके ठन्डे पानी की तट से लगातार चलने वाली तकरार से | जब बारिश इसके चेहरे पर सपाट गिरती तो इसका खड़े होकर उस पर चिल्लाना ! और जब हवा का इसके तेज़ बहाव को रोकने की कोशिश करना तो कैसे इसकी हंसी का गरज़ना ! हम जानते थे इसकी सब ध्वनियों और आवाज़ों को, इसके उतार और चढ़ाव को; पुलों से इसकी अनावश्यक भिड़ंत से उठने वाली फुहारों को; इसकी पहाड़ों को देखकर उठने वाली बुदबुदाहट को; छोटे शहरों से गुज़रने पर इसकी गरिमापूर्ण बोली को, जिसके पीछे एक हंसी छिपी हुई होती थी; और वो सब मंद मीठी फुसफुसाहटों को, जो उठती थी इसके पानी के भाप बनने पर, जब भी सूरज की गर्मी इस पर बरसती थी |[adinserter block="1"]
इस नदी की पूरी तरह से खोज होने से पहले दुनिया इसकी चालाकियों से अनजान थी | अपनी नियति के फैसले से छुपते हुए, यह नदी स्वाबियन के जंगलों में गड्ढों में बहकर गायब हो जाती और फिर दूसरी ओर चूना पत्थर की बनी पहाड़ियों में से फूटकर एक नई नदी के नाम से बहने लगती | और यहाँ इसके तल में पानी इतना कम हो जाता था कि जिसके कारण हमें भी, अपने सफर के दौरान, अपनी कैनो से निकलकर उसको मीलों तक हाथों से धकेलकर ले जाना पड़ा था |
अपनी जवानी के शुरूआती लापरवाह दिनों में इस नदी का प्रमुख मनोरंजन का साधन होता था इसका लोमड़ी की तरह छुपकर ऐल्प्स के पहाड़ों से बहकर आती उपनदियों का इंतज़ार करना | और फिर इन नवागंतुकों के आगमन को नकार कर इसका उनसे मिलाप ना करके उनसे सामानांतर दूरी बनाए रखकर अलग राह में मीलों बहते रहना | पर पसैओ शहर में आने पर यह चाल उसको छोड़नी पड़ती क्योंकि यहाँ 'इन्न' उपनदी गरजते हुए और पूरी ताकत से आकर डेन्यूब से आ मिलती थी और फिर एक घुमावदार घाटी में से दोनों को गुज़रना पड़ता था और डेन्यूब को समय रहते अपने निकास के लिए, चट्टानों से भिड़ते हुए और बड़ी लहरों संग मशक्कत करते हुए, दौड़ना पड़ता था | और इस घमासान के दौरान हमारी कैनो डेन्यूब के कंधो से फिसलकर उसके सीने में आ अटकी थी और इन लहरों के संघर्ष का लुत्फ़ उठाती रही | पर 'इन्न' उपनदी से भिड़ने के बाद डेन्यूब ने अपना पाठ सीख लिया था और फिर पसैओ से निकलने के बाद उसने किसी नई नदी को नज़रअंदाज़ नहीं किया |
हाँ यह सब बहुत दिनों पहले की बातें हैं और अब तक के हमारे सफर में हम इस विशाल जीव के और भी कई पहलू जान चुके थे | स्ट्रॉबिंग के गेहूं के मैदानों में से यह नदी इतनी धीरे-धीरे भटकती हुई चल रही थी कि ऐसे लगा कि जैसे इसकी ऊपरी कुछ इंच की सतह ही पानी की हो और इसके नीचे जैसे प्रेतों की एक पूरी सेना, रेशमी लबादों से ढंकी, चुपचाप गुज़र रही हो |
अक्सर हम भी उसके तटों पर मंडराने वाले पक्षियों और जानवरों से उसकी दोस्ती देखकर उसकी उद्दंडता भूल जाते थे | कोर्मोरंस (जलकाग) उसके तटों पर लकड़ी के बाड़ों की तरह दिखने वाली पंक्तियों में खड़े रहते; स्लेटी रंग के कव्वे इसके कंकड़ों वाले किनारों पर भीड़ बनाए रखते; सारस इसके द्वीपों के बीच उथले पानी में खड़े होकर मछली पकड़ते; और बाज़, हंस और कई प्रकार के दलदल के पक्षी वातावरण को अपने चमकीले परों और तीखी आवाज़ों से भर देते थे | इस नदी के सनकीपन से हमें होने वाली परेशानी तब दूर हो जाती जब हम किसी हिरण को पानी में छलांग लगाकर हमारी नौका के समीप से तैरते हुए देखते; और तब जब कई बार हमें झाड़ियों के बीच हिरण के बच्चे हमारी ओर झांकते दिखते; या फिर जब हम किसी तीव्र मोड़ से नदी के एक भाग से दूसरे भाग में प्रवेश करते और अचानक किसी बारहसिंघा की भूरी आँखों को हमारी नज़रों में झांकते पाते | लोमड़ियाँ भी तटों पर मंडराती रहती थीं और उनका किनारों पर जमा लकड़ियों पर लड़खड़ाना और फिर यकायक आँखों से औझल हो जाने का हुनर हमें कभी समझ नहीं आया |
लेकिन अब, प्रेसबर्ग छोड़ने के बाद, सब कुछ थोड़ा बदल गया, और डेन्यूब अधिक गंभीर हो गई | उसकी अस्थिरता अब बंद हो चुकी थी | यह ब्लैक सी तक जाने वाले रस्ते का मध्य पड़ाव था और यहाँ के इलाकों में इसकी चालों और तुनकमिजाजी को कोई अनुमति नहीं थी | यह नदी अचानक से जैसे प्रौढ़ हो गई और इसके इस बदलाव को देखकर हम अचम्भे और इसके प्रति आदर से भर गए | यहाँ पर यह तीन भुजाओं में विभाजित हो गई | और मुश्किल की बात सिर्फ यही नहीं थी कि ये तीनों रस्ते कई सौ किलोमीटर के बाद एक दूसरे से मिलते थे बल्कि यह भी थी कि एक नांव के लिए कौनसा रस्ता चुना जाए इसके भी कोई दिशानिर्देश वहां मौजूद नहीं थे |[adinserter block="1"]
"अगर तुमने नदी की मुख्य धारा छोड़ कोई सहायक धारा में प्रवेश किया," एक हंगेरियन अधिकारी ने हमें प्रैसबर्ग की एक दूकान में, हमारे राशन खरीदने के दौरान बताया था, " तो तुम लोग खुद को, बाढ़ कम होने के बाद, चालीस मील दूर ऐसी जगह में पाओगे जहाँ तुम आसानी से भूख और गर्मी के शिकार हो सकते हो | वहां पर न कोई लोग होंगे, न कोई खेत और न ही कोई मछुआरे | मैं आपको सलाह दूंगा कि आगे का सफर जारी ना रखें | नदी अभी भी उफान पर है और हवा भी तेज़ होने वाली है |"
नदी के उफान से हमें कोई डर नहीं था पर अचानक से पानी के कम हो जाने से किसी ऊँची और सूखी जगह पर अटक जाना खतरनाक हो सकता था | तो परिमाणस्वरूप हमने थोड़ा अधिक राशन खरीद लिया था | पर उस अधिकारी की बाकी की भविष्यवाणी सही साबित हुई | हवा, जो शुरुआत में साफ़ आसमान में बह रही थी, धीरे-धीरे उसने एक आंधी का रूप ले लिया था |
सूरज के क्षितिज में छुपने से एक दो घंटे पहले ही हमने टैंट बांधकर कैंप लगा लिया था | और फिर मैं अपने दोस्त को रेत पर सोता छोड़कर अपने इस नए प्रवास स्थान का मुआयना करने चल दिया | मैंने पाया कि जिस द्वीप पर हम रुके थे वो एक एकड़ से भी कम क्षेत्रफल का एक रेतीला तट था जिसकी ऊंचाई नदी के स्तर से दो या तीन फ़ीट की थी | इस द्वीप का अंतिम छोर, सूर्यास्त की ओर मुख किए, हवा के तेज़ बहाव से बिखरे लहरों के फव्वारों में ढंका हुआ था | इसका छोर का आकार एक त्रिकोन की तरह था जिसका शीर्ष हिस्सा नदी की धारा के विरुद्ध खड़ा था |
मैं कुछ समय वहां खड़ा उसको देखता रहा | वो प्रचंड लाल रंग का पानी तेज़ गर्जना करता हुआ बह रहा था | किनारे से भिड़कर उसको बहा ले जाने की कोशिश करता हुआ, पर टकराने के बाद उसके इर्द-गिर्द दो धाराओं में विभाजित हो रहा था | इस बहाव के झटकों में थरथराती ज़मीन और हवा में झूमते विलोज़ को देख ऐसा लग रहा था जैसे ये द्वीप खुद ही हिलडुल रहा हो | करीब एक या दो मील दूर एक ऊंचाई से बहते हुए इस नदी को मैं अपनी ओर आते देख पा रहा था | उसको देखना ऐसा लगा जैसे एक पहाड़ को नीचे से खड़े देखना | एक ऐसा पहाड़ जो झाग से बना, सरकता हुआ, खुद को सूरज के समक्ष रखना चाह रहा था |
द्वीप के बाकी के हिस्से में विलोज़ की सघनता के कारण चलना दूभर हो गया था पर फिर भी मैंने अपना मुआयना जारी रखा | यहाँ द्वीप के निचले छोर पर असामान्य रौशनी के कारण नदी अंधकारमय और क्रोधित लग रही थी | हवा के बड़े थपेड़े लहरों की पीठ पर प्रहार करते हुए उन्हें दबाए हुए थे और उनसे झाग उठ रही थी | यहाँ से करीब एक मील की दूरी तक इस नदी को मैं देख पा रहा था, जो इन द्वीपों में कहीं छिपती तो फिर कहीं उभरती हुई दौड़ रही थी, और यहाँ एक बड़ा घुमाव लेकर विलोज़ में जैसे गुम हो रही थी | विलोज़ का झुण्ड जैसे प्राचीन दैत्यों के समूह की तरह इसके पानी को निगलने के लिए इकठ्ठा हुआ लग रहा था | उनको देखकर मुझे लगा कि वो जैसे एक दैत्याकार स्पंज-नुमा उपज की तरह नदी के पानी को चूस रहे हों | उनकी इतनी अधिक संख्या में जुटे हुए के कारण नदी आँखों से औझल हो गई थी |
कुल मिलाकर यह एक प्रभावशाली दृश्य था, इसके अकेलेपन, इसके अजीब सम्मोहन के साथ; और उसको लम्बे समय तक कौतुहलता से देखते रहने पर मेरे भीतर एक अजीब सी भावना उठने लगी | इस जंगली सुंदरता को देखने के दौरान एक बिन-बुलाए अजनबी डर और बेचैनी के भाव ने मेरे अंदर प्रवेश किया |[adinserter block="1"]
एक उफनती नदी शायद हमेशा ही एक अपशकुन होती है; यहाँ दिखने वाले कितने ही छोटे द्वीप सुबह तक बह जाने वाले थे | इसके निर्बाध, गरजते बाढ़ के पानी ने मुझे अचंभित कर दिया था | पर मैं जानता था कि मेरे इस आश्चर्य और उत्सुकता के भीतर कहीं एक बेचैनी छिपी हुई थी | पर इस बेचैनी का कारण यह बाढ़ का पानी नहीं था | ना ही इसका कारण ये तेज़ हवा की उद्दंडता था - यह चीखता तूफान जिसमें इतना बल था कि वो विलोज़ के एक एकड़ को भी उखाड़कर भूसे के ढेर में तब्दील कर सकता था | हवा तो बस अपने आनंद में मग्न थी क्योंकि इस सपाट क्षेत्र में उसको कोई रोकने वाला नहीं था और मैं भी उसके इस खेल को देखकर उत्साह से भर गया था | पर यह भाव इस हवा को महसूस कर नहीं उठ रहे थे | वास्तव में मेरी व्यथा का कारण इतना अस्पष्ट था कि उसके स्त्रोत का पता लगाकर उसका हल निकालना मुमकिन ही नहीं था | हालाँकि मुझे आभास था कि इसकी वजह थी मेरा इन असीम ताकतों के सामने बिलकुल तुच्छ महसूस करना | इस नदी को भी देखकर ऐसा मह्सूस हो रहा था कि जैसे हमने यहाँ आकर इन प्राचीन ताकतों का अनादर किया हो | ऐसी ताकतें जिनके बल के सामने हम बिलकुल असहाय थे | निस्संदेह यहाँ पर इन शक्तियों का एक महान खेल चल रहा था जिसको देखकर विस्मय की भावना उठना लाज़मी था |
पर मेरा यह मनोभाव, जहाँ तक मैं समझ पा रहा था, इन विलोज़ की झाड़ियों को देखकर पैदा हो रहा था | कई एकड़ों में फैले, घने और विशाल विलोज़ भीड़ बनाए खड़े थे | आसमान के नीचे मीलों मील तक एक सघन विस्तार के रूप में नदी के ऊपर दबाव बनाए हुए, देखते, सुनते और किसी का इंतज़ार करते खड़े थे | इस उग्र मौसम के प्रभाव के अलावा, विलोज़ की उपस्थिति भी मेरी बेचैनी बढ़ा रही थी | उनकी बड़ी संख्या, कुछ द्वेष की भावना से, मुझे एहसास दिला रही थी एक ऐसी शक्ति की मौजूदगी का जो हमारे हित में नहीं थी |
निश्चित ही, प्रकृति के ऐसे राज़ उजागर होने पर ताज्जुब तो उठता ही है | और मैं भी ऐसे प्रभावों से अनभिज्ञ नहीं था | पहाड़ हमें अचम्भे में डालते हैं और सागर हमें डराते हैं पर जंगलों के रहस्य हमें अपने वश में करने की ताकत रखते हैं | लेकिन ये सभी भाव कहीं न कहीं मानव जीवन और मानव अनुभव के साथ अंतरंग रूप से जुड़े हुए हैं। वे हमारे भीतर अचंभित कर देने वाली, पर फिर भी परिचित भावनाओं, को जन्म देते हैं | पर कुल मिलाकर ये हमारी सीमित सोच को विस्तार देते हैं |[adinserter block="1"]
पर इन विलोज़ के समूह को देखकर मुझे कुछ अलग महसूस हुआ | वो कुछ ऐसा तत्त्व अपने में समाए थे जो मेरे मन को जकड़ रहा था | एक अचम्भे की भावना तो मुझमें जग रही थी पर उस अचम्भे के भीतर कहीं एक डर भी छुपा हुआ था | उनकी कंधे से कंधा मिलाए खड़े सैनिकों की जैसी छवि, अँधेरा बढ़ने पर, मेरे चारों ओर गहराती जा रही थी और मेरे अंदर एक आशंका जग रही थी कि हम एक अजनबी स्थान में घुसपैठियों की तरह बिना आमंत्रण के घुस आए थे और हमारे लिए ये स्थान जोखिम से भरा सिद्ध हो सकता था !
वो अनुभूति, हालाँकि जिसका विश्लेषण करके कोई अर्थ निकालने में मैं असमर्थ था, उसकी वजह से मैं ज़्यादा परेशान नहीं हुआ | पर फिर भी ना ही मैं उसको भूल पा रहा था | इस आंधी में टैंट (तम्बू) लगाने और खाना बनाने के लिए आग की व्यवस्था करने दौरान भी मैं उस भाव से ही घिरा हुआ था | इस परेशानी और उलझन की वजह से मेरे लिए इस कैंपिंग के स्थान का आकर्षण भी कम हो गया था | मैंने अपने साथी को इस बारे कुछ नहीं बताया क्योंकि वो ऐसी कल्पनाओं से दूर रहने वाला शख्स था | पहली बात तो यह थी कि मैं उसको समझा ही नहीं पाता जो मुझे महसूस हो रहा था और दूसरी बात वो मुझ पर पागलों की तरह हँसता |
द्वीप के मध्य में, जहाँ ज़मीन थोड़ी धंसी हुई थी, वहां हमने अपने टैंट को लगाया | आसपास के विलोज़ के कारण हवा का वेग भी कुछ कम हो चुका था |
"बहुत साधारण कैंप है यह," स्वीड ने स्थिर शब्दों में टैंट को देख कर कहा, "कोई पत्थर नहीं और कोई जलाऊ लकड़ी भी नहीं | मैं तो सुबह जल्दी निकलने के पक्ष में हूँ | यह रेत भी अपनी मजबूती नहीं बनाए रखने वाली |"
लेकिन आधी रात को ढहते हुए तम्बू के एक अनुभव ने हमें कई तरीके सिखा दिए थे, और हमने अपने आरामदायक घर को यथासंभव तरीके से सुरक्षित बना लिया, और फिर सोने के समय तक जलाने के लिए लकड़ियों का एक ढेर इकट्ठा करना शुरू किया | विलोज़ से टहनियां ना गिरने की वजह से हमारा लकड़ी का एकमात्र स्त्रोत किनारे पर बहाव में आई लकड़ियां ही थीं | हमने किनारों पर अच्छे से खोज की | हर जगह, बौछारों और कोलाहल के बीच, बढ़ती हुई बाढ़ की मार से तटों से बड़े हिस्से ढह कर अलग हो रहे थे |
"यह द्वीप हमारे यहाँ आने के बाद और भी सिकुड़ गया है," स्वीड ने सटीक अनुमान लगाते हुए कहा | "ऐसी दर से यह ज़्यादा देर टिकने वाला नहीं | हमें अपनी कैनो को तम्बू के थोड़ा और नज़दीक ले आना चाहिए और किसी भी वक़्त निकलने के लिए तैयार रहना चाहिए | मैं तो अपने पूरे कपड़ों में ही सोऊंगा |"
वो मुझसे थोड़ी दूरी पर, किनारे पर चढ़ाई करते चल रहा था और उसकी बात के साथ-साथ मुझे उसकी खुशमिज़ाज़ हंसी भी सुनाई पड़ रही थी |[adinserter block="1"]
"हे भगवान !" कुछ क्षणों बाद उसकी यह पुकार मुझे सुनी और मैं उसकी ओर मुड़ा | पर वो विलोज़ के पीछे कहीं था और कुछ पलों तक मेरी नज़रों से ओझल रहा |
"यह क्या बला है ?" मैंने फिर उसकी पुकार सुनी जो इस समय गंभीर हो गई थी |
मैं उसकी ओर भागा और किनारे पर उसे खड़ा पाया | वो नदी की ओर देख रहा था और पानी में किसी चीज़ की ओर इशारा कर रहा था |
"ये तो एक मानव शव है !" उसने उत्तेजित होते हुए कहा | "देखो !"
एक काले रंग की आकृति, लहरों में घूमती पलटती, हमारे सामने से तेजी से बहकर निकली | वो कभी डूबती तो कभी सतह पर आती दिख रही थी | वो तट से करीब बीस फ़ीट की दूरी पर ठीक हमारे विपरीत थी और तभी उसने मुड़कर हमारी तरफ देखा | उसकी आँखें सूर्यास्त की रौशनी में पीले रंग से चमक रही थीं | फिर उसने तेजी से पानी में डूबकी लगाई ओर हमारी आँखों से औझल हो गई |
"ओह, ऊदबिलाव !" हम दोनों ने एक साथ हँसते हुए कहा |
वो एक ऊदबिलाव था, ज़िंदा, और शिकार की तलाश में; पर वो हमें ऐसा दिखा जैसे किसी डूबे आदमी का शव पानी पर तैर रहा हो | कुछ दूरी पर वो फिर सतह पर आया और उसकी काली त्वचा, भीगी हुई और सूरज की रौशनी में चमकती दिखाई दी |
फिर कुछ समय बाद जब हम लकड़ियां इकठ्ठा कर वापस जा रहे थे तो एक और घटना ने हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया | इस बार सच में हमें एक आदमी दिखा | और वो भी एक नांव पर | डेन्यूब पर किसी भी समय एक छोटी नांव का दिखना पहले से ही एक असाधारण बात थी और ऊपर से ऐसे निर्जन क्षेत्र में बाढ़ के समय में उसको देखकर हमें उसकी वास्तविकता पर यकीन नहीं हो रहा था | हम खड़े रहकर उसको घूरते रहे |
उस समय सूरज की तिरछी किरणों से या फिर पानी से परिवर्तित होते प्रकाश के कारण मेरा उस उड़ते साये जैसे जीव पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो रहा था | हालांकि उसको देख कर ऐसा प्रतीत हुआ कि वो आदमी एक सपाट तले वाली नांव पर एक बड़े चप्पू से उसको चलाते हुए हमसे विपरीत दिशा की और तेज़ी से आगे बढ़ रहा था | वो निश्चित ही हमारी तरफ देख रहा था पर उसकी हमसे दूरी और प्रकाश की कमी के कारण हम उसका अंदाज़ा नहीं लगा पा रहे थे | मुझे ऐसा लगा कि जैसे वो हमारी ओर कुछ इशारे कर रहा था | उसके चिल्लाने की तीख़ी आवाज़ तो हम तक पहुंची पर तेज़ हवा के कारण उसके कहे शब्दों को हम सुन नहीं पा रहे थे | इस पूरे दृश्य में कुछ तो अजीब था - एक आदमी, नांव, उसके संकेत, आवाज़ - जिसने मेरे ऊपर एक गहरा प्रभाव किया |[adinserter block="1"]
"वो अपनी बाजुओं को तिरछा कर रहा है !" मैंने कहा | "देखो वो अपनी बाजुओं से एक क्रॉस का संकेत दे रहा है !"
"हाँ सही कह रहे हो," स्वीड ने अपनी आँखों पर हाथों की छाया करते हुए और उस आदमी की तरफ देखते हुए कहा | वो आदमी अगले ही पल आँखों से ओझल हो गया | दूर नदी में एक मोड़ मुड़ते ही वो जैसे विलोज़ की चमकती लाल दिवार में विलीन हो गया | कोहरा भी बढ़ने लगा था जिसके कारण हवा में धुंधलापन बढ़ गया था |
"पर वो शाम के समय इस बाढ़ से त्रस्त नदी में कर क्या रहा था ?" मैंने बुदबुदाते हुए पूछा | "वो इस समय कहाँ जा रहा था और उसके संकेतों और चिल्लाने का मतलब क्या था ? क्या तुम्हें  लगता है वो हमें किसी चीज़ के बारे चेतावनी दे रहा था ?"
"उसने हमारी जलाई आग का धुआँ देखा होगा और सोचा होगा कि हम कोई भूत हैं," मेरे साथी ने हँसते हुए कहा | "ये हंगेरियन लोग बहुत सी बकवास बातों में विश्वास रखते हैं; तुम्हें याद हैं वो प्रेस्बर्ग की दूकान की मालकिन जिसने हमें चेताया था कि कोई इस जगह नहीं रुकता क्योंकि यहाँ कोई बाहरी दुनिया के जीवों का वास है ! मुझे लगता है वो लोग तो जादुई और अलौकिक शक्तियों में और यहाँ तक की शैतानों में भी विश्वास रखते होंगे |" कुछ देर बाद वो फिर बोला "उस नाविक ने पहली बार इन द्वीपों पर किसी को देखा होगा और इससे वो डर गया होगा, बस यही बात है |"
स्वीड की आवाज़ में मुझे कुछ विश्वास की कमी लगी और उसके हाव-भाव भी सामान्य से कुछ बदले हुए लग रहे थे | उसका यह बदलाव तुरंत मेरे समझ में आ गया पर इसको शब्दों में बयां करना मेरे लिए मुमकिन नहीं था |
"अगर उन लोगों में कल्पनाएं गढ़ने के गुण कुछ अधिक होते," मैंने हँसते हुए कहा - और मैं ज़्यादा से ज़्यादा आवाज़ करने की कोशिश कर रहा था - "तो अब तक उन्होंने इस जगह को पुरातन काल के देवताओं का घर घोषित कर दिया होता | कम से कम रोमन लोगों ने तो ज़रूर यहाँ आकर अपने तीर्थ और पवित्र स्थानों का निर्माण कर प्रकृति के देवताओं का आह्वान किया होगा |"
फिर इस विषय को भूलकर हम अपने स्टू-पॉट (खाना पकाने की हांडी) के रख-रखाव में लग गए क्योंकि मेरे दोस्त को इन काल्पनिक बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी | और वैसे भी मैं इस बात में राहत महसूस कर रहा था कि वो कल्पनाशील नहीं था; उसका शांत और व्यावहारिक स्वभाव मुझे सुकून देने के लिए काफी था | उसका स्वभाव सराहनीय था, मैंने सोचा; वो किसी रेड इंडियन की तरह लहरों की सवारी कर सकता था; उसका कश्ती पर भयानक भंवरों और सेतुओं को पार करने का कौशल अतुलनीय था | वो ऐसी साहसी यात्राओं के लिए उपयुक्त साथी था, एक ताकतवर खम्बे की तरह वो कठिन परिस्थितियों से भीड़ सकता था | मैंने उसके कठोर चेहरे और घुंघराले बालों को देखा | वो लड़खड़ाता हुआ मुझसे दुगुनी लकड़ियों का ढेर उठाए चल रहा था और उसे देखकर मेरी चिंता कम हो गई | सच में, मुझे इस बात से राहत मिली कि मेरा स्वीड दोस्त ज़रूरत से ज़्यादा न बोलने वाला व्यक्ति था |[adinserter block="1"]
"पर ये नदी का स्तर अभी भी बढ़ रहा है," उसने कुछ सोचते हुए कहा और लकड़ियों का गट्ठर जमीन पर रख दिया | "अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये द्वीप दो दिनों के अंदर पानी में डूब जाएगा |"
"मैं त यही चाहता हूँ कि बस ये हवा थम जाए," मैंने कहा | "मुझे नदी की कोई परवाह नहीं |"
वास्तव में बाढ़ से हमें कोई खतरा नहीं था; हम किसी भी वक़्त सिर्फ दस मिनट के अंदर इस जगह से निकल सकते थे और जितना ज़्यादा पानी होता उतना ही हमारे लिए अच्छा होता | ज़्यादा पानी की वजह से हम तेजी से बहाव पार सकते थे और पथरीले तलों के पानी के नीचे समां जाने से हमारी कैनो को चोट पहुँचने का खतरा भी कम होता |
पर हमारी उम्मीदों के खिलाफ, सूरज के ढलने के साथ हवा का बहाव धीरे नहीं हुआ | ऐसा लगा कि अँधेरा बढ़ने पर हवा और तेज़ बहने लगी | वो चिल्लाते हुए और विलोज़ को तिनकों समान झकझोरते हुए बह रही थी | कभी कभी कुछ अजीब ध्वनियाँ हमें सुनाई पड़ती जैसे कहीं कोई बड़ी तोपें दागी जा रही हों और जो पानी और ज़मीन पर बरस कर भारी थपेड़ों की तरह मार कर रही हों  | इसको सुनकर मैं उन आवाज़ों के बारे सोचने लगा जो एक गृह से, अंतरिक्ष में चलने के दौरान, उठती होंगी |
पर आकाश में बादलों का कोई निशान नहीं दिख रहा था और हमारा रात का खाना खाने तक पूर्णिमा का चाँद पूर्व दिशा में उठ चुका था | उसकी रौशनी में नदी और विलोज़ का मैदान दिन के समय जैसे प्रकाशित हो रहा था |
हम मैदान के एक रेतीले हिस्से पर, धूम्रपान करते हुए, रात की आवाज़ों को सुनते हुए लेटे हुए थे और हम अपने अब तक के सफर की और आने वाले सफर की बात कर रहे थे | नक्शा हमारे टैंट के प्रवेश-द्वार पर रखा था पर हवा के कारण उसको पढ़ने में परेशानी हो रही थी | फिर हमने टैंट के पर्दों को बंद किया और लालटेन को भी बुझा दिया | हम, मैदान में बैठे हुए, वहां जलती आग की रौशनी से एक दूसरे के चेहरे को देख पा रहे थे | उससे उठती चिंगारियां हवा में उड़कर आतिशबाजियों सी लग रहीं थी | कुछ गज की दूरी पर नदी गड़गड़ाते और फुफकारते हुए बह रही थी और समय-समय पर एक बड़ी बौछार की आवाज़ के साथ तट का कुछ भाग पानी में गिरकर बह जा रहा था |
मैंने पाया कि हमारी बातें सुदूर दृश्यों और ब्लैक फॉरेस्ट के हमारे पुराने कैम्पों के बारे में थी या फिर ऐसे दूर के विषयों के बारे में जिसका वर्तमान परिस्थितियों से कुछ लेना-देना नहीं था | हम दोनों में से कोई भी मौजूदा हालात की बात नहीं कर रहा था मानो जैसे कैंप और इसकी घटनाओं का ज़िक्र ना करने का हम दोनों ने मौन रूप से फैसला कर लिया था | हमने एक बार भी उस ऊदबिलाव और उस नाविक का ज़िक्र नहीं किया हालाँकि ऐसी घटनाएं शाम की बातों का मुख्य हिस्सा बन सकती थीं क्योंकि उन घटनाओं का ऐसी जगह में होना काफी अनोखी बात थी |
लकड़ियों की कमी ने आग को बनाए रखना एक चुनौती बना दिया था | ऊपर से आग के बुझने पर उठते धुएं से बचने के लिए हमें न चाहते हुए भी लकड़ियों की तलाश में बार बार उठना पड़ रहा था | हमने तय किया कि हम अपनी-अपनी बारी से लकड़ियों की खोज में अँधेरे में जाएंगे पर मुझे लगा कि स्वीड जिस मात्रा में लकड़ियां ला रहा था उसके लिए वो अत्यधिक समय लगा रहा था | हालांकि मुझे अपने-आप को अकेला छोड़े जाने की चिंता नहीं थी पर मुझे लग रहा था कि हर बार मुझको ही झाड़ियों में और चिकने किनारों पर जाकर लकड़ी ढूंढने की मशक्कत करनी पड़ रही थी | पूरे दिन ऐसी हवा और पानी से भिड़ते रहने के बाद हम पूरी तरह से थक चुके थे और जल्दी सो जाना ही हमारे लिए उपयुक्त था | पर फिर भी हम में से कोई भी सोने के लिए टैंट की और नहीं बढ़ा | हम वहीँ, आग का रखरखाव करते, बेमतलब बातें करते, विलोज़ की सघन झाड़ियों को देखते और हवा और पानी की गड़गड़ाहट सुनते हुए लेटे रहे | इस जगह का एकाकीपन जैसे हमारी हड्डियों तक सीप चुका था और खामोश रहना ही स्वाभाविक लग रहा था क्योंकि कुछ समय बाद हमारी बातों की आवाज़ भी अवास्तविक और मजबूर लगने लगी | फुसफुसा कर बात करना ज़्यादा सहज होता, मैंने सोचा | मानवीय आवाज़ तो वैसे भी ऐसे प्राक्रतिक माहौल में बेतुकी ही लगती है पर इस समय तो ये एकदम नागवार ही महसूस हो रही थी | ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे हम किसी चर्च में ज़ोर-ज़ोर से बात कर रहे हों या फिर किसी ऐसी जगह पर शोर कर रहे हों जहाँ पर आवाज़ करना संभवतः अनुचित या फिर खतरनाक भी हो सकता था |
इस सुनसान द्वीप का ख़ौफ़, इसका हज़ारों विलोज़ से भरा होना, अंधड़ से ग्रस्त और बहते गहरे पानी से घिरा होना हमारे अंतर्मन को छू गया था | मानव आवास और प्रभाव से दूर यह जगह चमकते चन्द्रमा के नीचे जैसे एक अनजान दुनिया की सीमा पर बसी थी | एक ऐसी दुनिया जिस पर विलोज़ का ही कब्ज़ा था और विलोज़ की ही आत्माओं का निवास था | और हमने अपने उतावलेपन में इस जगह में घुसपैठ करने का और यहाँ तक कि इसका उपयोग करने का भी दुस्साहस किया था ! रेत पर लेटे हुए, पाँव आग की ओर किए, पत्तों में छिपे तारों को देखते हुए मैंने पाया कि इस जगह के रहस्य के एहसास से भी बढ़कर कुछ और मेरे अंदर एक हलचल पैदा कर रहा था | फिर एक आखिरी बार लकड़ियों की खोज के लिए मैं उठा |
हमने टेल्स ऑफ़ हॉरर / Tales of Horror PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 2.5 MB है और कुल पेजों की संख्या 204 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक   प्रभदीप सिंह / Prabhdeep Singh   हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ टेल्स ऑफ़ हॉरर / Tales of Horror को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।
Q. टेल्स ऑफ़ हॉरर / Tales of Horror किताब के लेखक कौन है?
Answer.   प्रभदीप सिंह / Prabhdeep Singh  
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3 thoughts on “टेल्स ऑफ़ हॉरर / Tales of Horror: A collection of classic horror stories PDF Download Free Hindi Books by Prabhdeep Singh”

  1. This is a great collection of horror stories. I love reading horror stories and this collection has some of the best I’ve ever read.

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