पुस्तक का विवरण (Description of Book of शेयर मार्केट में मुनाफे का मंत्र / Share Market Mein Munafe Ke Mantra PDF Download) :-
नाम 📖 | शेयर मार्केट में मुनाफे का मंत्र / Share Market Mein Munafe Ke Mantra PDF Download |
लेखक 🖊️ | सुधा श्रीमाली / Sudha Shrimali |
आकार | 4.2 MB |
कुल पृष्ठ | 129 |
भाषा | Hindi |
श्रेणी | पैसा और निवेश, शेयर मार्केट |
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पुस्तक का कुछ अंश
अनुक्रमणिका
1. शेयर बाजार की कहानी
2. क्या है शेयर बाजार?
3. नए निवेशक : समस्याएँ और समाधान
4. शेयर बाजार में उथल-पुथल की कहानी
5. पोर्टफोलियो मैनेजमेंट क्या है?
6. निवेश के विकल्प
7. सुरक्षित हो सकता है शेयरों में निवेश
8. कंपनी के रिपोर्ट कार्ड से जानें शेयर का हाल
9. बी.एस.ई. पर शेयरों के कितने समूह हैं?
10. राइट्स इश्यू, शेयर विभाजन और ओपन ऑफर?
11. बायबैक का फंडा
12. सर्किट व वैल्यू एवरेजिंग क्या है?
13. किस तरह होता है टेक्निकल एनालिसिस?
14. निवेश के बुनियादी सूत्र क्या हैं?
15. निवेश करते वक्त इन सबका हमेशा ध्यान रखें
16. थोड़ा-थोड़ा निवेश करके बनाएँ बड़ी रकम
17. इक्विटी में निवेश का आसान जरिया है म्यूचुअल फंड
18. म्यूचुअल फंड में जोखिम घटाने का तरीके
19. डेट में निवेश के विकल्प
20. जोखिम तो है, फिर भी एफ.एम.पी. फायदे का सौदा
21. निवेशकों के लिए तिमाही नतीजें के मायने
22. म्यूचुअल फंड आँकने का पैमाना?
23. कैसे चुनें बेहतरीन म्यूचुअल फंड?
24. क्यो सुरक्षित है म्यूचुअल फंड
25. म्यूचुअल फंड : सावधानी बरतें
26. निवेशकों के आकर्षक का केंद्र
27. फंड प्रश्नोत्तरी
28. शेयर शब्दावली
उपयोगी पत्र-पत्रिकाएँ एवं वेबसाइट्स
शेयर बाजार की कहानी
1875 में एसोसिएशन के रूप में स्थापना
मुंबई शेयर बाजार का जन्म एक एसोसिएशन के रूप में सन् 1875 में हुआ था, जिसका नाम था ‘नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर एसोसिएशन’। इसके पूर्व शेयरों का सौदा शुरू हो चुका था। 1840 में शेयर दलाल एक वृक्ष के नीचे खड़े होकर शेयरों की खरीद-बिक्री करते थे। वहीं से एसोसिएशन बनाने की रूपरेखा आकार में आई और इसी विचार से एक ऐतिहासिक घटना साकार हुई। भारत उस दौरान ब्रिटिश शासन के अधीन था। 18 जनवरी, 1899 के दिन ब्रिटिश उच्चाधिकारी जे.एस. मेक्लिन द्वारा मुंबई के नेटिव शेयर दलालों के लिए उच्चारित किए गए शब्दों को आज भी गौरव के साथ याद किया जाता है। मेक्लिन के सिद्धांत का तात्पर्य यह था कि मुंबई के नेटिव शेयर दलाल समाज के अभिन्न अंग हैं, जिनको उचित सम्मान नहीं मिलता, परंतु उनके दोषों का ही आकलन किया जाता है। किसी अपवाद के अलावा ये शेयर दलाल प्रामाणिक रहे हैं। उनको भले ही कितना भी नुकसान झेलना पड़ा हो, लेकिन उन्होंने अपने ग्राहकों की पाई-पाई चुकाई है। भारत में पूँजी का यह सबसे बड़ा बाजार है। मुंबई पोस्ट ट्रस्ट एवं मुंबई म्यूनिसिपल्टी जैसी संस्थाओं को नीचे से ऊपर उठाने में सहायक रहा है। वर्तमान में मुंबई के सृजन में इस नेटिव शेयर दलालों की उल्लेखनीय भूमिका है। यह सिद्धांत 21वीं सदी में भी मुंबई के शेयर दलालों के लिए यथार्थ रहा है। अलबत्ता अपवाद तो हमेशा किसी-न-किसी स्वरूप अथवा मात्रा में प्रकट होते रहते हैं।
विश्व का पहला स्टॉक एक्सचेंज
विश्व के पहले शेयर बाजार का जन्म बेल्जियम में हुआ था, ऐसी मान्यता है। बेल्जियम के एंटवर्प शहर में सन् 1531 में बाजार के मुख्य विस्तार के लिए कई व्यापारी इकट्ठा हुए थे। वे शेयर तथा कमोडिटीज में सट्टा करते थे। विश्व का पहला संगठित स्टॉक एक्सचेंज 1602वें वर्ष में एम्सटर्डम में स्थापित हुआ। 18वीं सदी के अंत में न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज अस्तित्व में आया, जो आज विश्व के शक्तिशाली एक्सचेंजों में गिना जाता है। भारत में इस समय के दौरान हुंडी तथा बिल ऑफ एक्सचेंजों की खरीद-बिक्री व्यापारी वर्ग की सामान्य प्रवृत्ति मानी जाती थी।
प्रथम शेयर मेनिया
सन् 1850 में भारत सरकार ने कंपनीज एक्ट-1850 पारित किया और शेयर ट्रेडिंग का एक नया मार्ग खुला। नया इसलिए, क्योंकि उसके पहले भी शेयरों का सौदा तो होता था, लेकिन नाममात्र के लिए। ट्रेडिंग के लिए बड़ी संख्या में शेयर उपलब्ध हुए बिना इस प्रवृत्ति को गति मिलना संभव नहीं था। उन दिनों में कॉमर्शियल बैंक, चार्टर्ड बैंक, दि ओरिएंटल बैंक एवं बैंक ऑफ बॉम्बे जैसे मुख्य बैंक स्टॉक जैसे कुछ शेयर ही उपलब्ध होते थे। लोगों में भी शेयर में निवेश करने के लिए लगाव नहीं था। शेयर ट्रेडिंग प्रवृत्ति का प्रमाण भी कम रहता था और यह सिर्फ 6 शेयर दलालों द्वारा चलाया जा रहा था। उस समय न तो ट्रेडिंग हॉल था और न ही शेयर बाजार का मकान। इसके लिए आवश्यक पूँजी भी नहीं थी। इसके बावजूद वर्ष 1860 तक शेयर दलालों की संख्या 60 तक पहुँच गई थी। 1860 में एक ऐसे व्यक्ति प्रकाश में आए, जिन्होंने ‘शेयर मेनिया’ को जन्म दिया। उनका नाम था प्रेमचंद रॉयचंद। वे पहले भारतीय शेयर दलाल थे, जो अंग्रेजी लिख-पढ़ सकते थे।
प्रेमचंद रॉयचंद ने कई लैंड रीक्लेमेशन सहित अनेक कंपनियों को खड़ा करने में सहायता की थी। शेयरों के सौदों की प्रवृत्ति बढ़ती गई और वैसे-वैसे शेयर दलालों की संख्या भी बढ़कर 200 से 250 तक पहुँच गई। इसके बाद सन् 1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध का अंत होने के परिणामस्वरूप इसके विकास के लिए भारत में आनेवाली पूँजी के प्रवाह में कमी आ गई और ‘शेयर मेनिया’ का भी अंत हो गया। रातोरात शेयरों के भाव नाटकीय ढंग से नीचे गिर गए। परिणामस्वरूप शेयर दलालों के कामकाज ठप हो गए, जिसकी वजह से शेयर दलालों की एसोसिएशन का विचार उनके मन में आया और शेयर दलालों ने एकजुट होकर 1868 व 1873 के बीच एक गैर-औपचारिक एसोसिएशन का गठन किया। 1874 में इन दलालों ने नियमित सौदा करने के लिए एक स्थल की खोज की, जो आज ‘दलाल स्ट्रीट’ के नाम से प्रसिद्ध है।
3 दिसंबर, 1887 को शेयर दलालों ने इस एसोसिएशन को औपचारिक स्वरूप प्रदान किया और ‘दि नेटिव एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन’ का जन्म हुआ। इस तरह जुलाई 1875 में मात्र 318 व्यक्तियों ने 1 रुपए के प्रवेश-शुल्क के साथ शेयर बाजार, मुंबई की संस्था गठित की। इन्होंने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकरों के हित, दर्जा एवं स्वरूप की रक्षा के लिए एसोसिएशन के सदस्यों के उपयोग के लिए एक हॉल अथवा मकान का निर्माण करना निश्चित हुआ। 1887 तक इस निर्णय पर अमल नहीं किया जा सका, परंतु एक ट्रस्ट डीड जरूर बनी और 1887 में इस ट्रस्ट डीड में लिखे गए शब्द वर्तमान मुंबई शेयर बाजार की नींव के पत्थर बन गए। इस तरह आज के बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बी. एस.ई.) के रूप में प्रसिद्ध विराट् संस्था की स्थापना इन लोगों के सार्थक प्रयासों से संभव हुई। इस प्रकार एक वृक्ष के नीचे शुरू हुई यह यात्रा आज आधुनिक कॉरपोरेट स्वरूप में वैश्विक मंच पर महत्त्वपूर्ण स्थान बनाकर विकास की दिशा में आगे बढ़ रही है। इस संगठित स्टॉक ट्रेडिंग की शुरुआत 18वीं सदी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा उसकी विविध प्रवृत्तियों और पूँजी उगाही के लिए जारी हुए टर्म पेपर्स की ट्रेडिंग द्वारा की गई, जिसके साथ ही कॉमर्शियल बैंक, मर्केंटाइल बैंक ऑफ बॉम्बे जैसे बैंकों के शेयरों में भी ट्रेडिंग की शुरुआत हुई।
क्या है शेयर बाजार?
‘शेयर बाजार में 1000 अंकों की ऐतिहासिक उछाल’, ‘निवेशकों की संपत्ति में 2 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि’, तो कभी ‘शेयर बाजार में 1000 अंकों की भारी गिरावट’, ‘भारी मात्रा में निवेशकों की पूँजी का सफाया’—इस प्रकार के समाचारों को पढ़कर लाखों लोगों के मन में विभिन्न प्रकार के प्रश्न उठते हैं कि शेयर बाजार में अचानक इस प्रकार का उतार-चढ़ाव क्यों होता है? किसी खास दिन ऐसा क्या हो जाता है, जिससे इस बाजार में अचानक खरबों रुपए की उथल-पुथल हो जाती है? प्रबुद्ध पाठकों को समझ लेना चाहिए कि शेयर बाजार में ऐसा सबकुछ होता है, इसलिए तो यह शेयर बाजार है और इसके इंडेक्स को सेंसेटिव इंडेक्स ‘सेंसेक्स’ कहा जाता है। इसकी संवेदनशीलता के कारण ही समाज, देश-विदेश में घटने वाली घटनाओं के समाचार से इसमें उतार-चढ़ाव होता है। सेंसेक्स को तो घटने या बढ़ने के लिए बस सिर्फ बहाने चाहिए और जब कोई ऐसा कारण नहीं होता तो बाजार स्थिर बना रहता है। परंतु ऐसे स्थिर बाजार में भला किसकी रुचि होगी!
शेयर बाजार चंचल तो है, परंतु इसकी चंचलता के कारण इसे मात्र सट्टा बाजार नहीं समझना चाहिए। यहाँ सट्टा जरूर है, लेकिन इस बाजार में इसके प्रत्येक खिलाड़ी के लिए अलग-अलग स्टेडियम है। डे-ट्रेडरों के लिए (जो दिन भर निरंतर खरीद-ब्रिकी करते रहते हैं, वे डे-ट्रेडर कहलाते हैं) यह केसिनोङ्त जुआ है, जबकि जो मात्र निवेश करके बाजार में बना रहता है, उनके लिए यह विशुद्ध निवेश बाजार है। इस बाजार में निवेशक के रूप में रहना ज्यादा सुरक्षित है। उसका निवेश सुरक्षित रहने के साथ-साथ अधिक संपत्ति का सृजन भी कर सकता है।
एक-दो सच्चे किस्सों के आधार पर बात समझाने की कोशिश की जा सकती है। यदि किसी व्यक्ति ने वर्ष 1980 में विप्रो नामक कंपनी में 10 हजार रुपए का निवेश किया होता और उस निवेश को उसने वर्ष 2006 तक सुरक्षित रखा होता तो उसका मूल्य 200 करोड़ रुपए हो गया होता। धीरूभाई अंबानी जब अपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज का पहला पब्लिक इश्यू लाए थे, उस समय यदि किसी व्यक्ति ने उनकी कंपनी में 10 हजार रुपए का निवेश किया होता तो वह अब तक 2 करोड़ रुपए हो गया होता। सारांश में, शेयर बाजार में अच्छी कंपनियों का चयन करके जो निवेशक लंबे समय तक उसमें अपना निवेश रखता है, उसे भरपूर फायदा होता है। लंबे समय के लिए शेयरों को खरीदने के लिए इनकी खरीदारी कभी भी की जा सकती है। कारण यह है कि बाजार का मूलभूत स्वभाव ही ऐसा है कि जो धीरज रखता है, उसे भरपूर लाभ मिलता है।
आई.पी.ओ. क्या है ?
कोई भी कंपनी जब पहली बार पूँजी जुटाने के लिए सार्वजनिक निर्गम जारी करती है तो इसे ‘इनीशियल पब्लिक ऑफर’ (आई.पी.ओ.) कहते हैं। सार्वजनिक निर्गम में जिन आवेदकों को शेयरों का आवंटन होता है, शेयरों की सूचीबद्धता के बाद शेयर बाजार के जरिए उन्हें खरीदा-बेचा जा सकता है। सूचीबद्धता के बाद होने वाले सौदों को ‘सेकंडरी मार्केट’ कहा जाता है। कंपनी जब अपने विद्यमान शेयरधारकों को ही शेयर प्रस्तावित करती है तो ऐसे निर्गम को राइट निर्गम कहा जाता है, जिसमें शेयरधारकों को अपने शेयरों के अनुपात के आधार पर कंपनी के नए शेयरों में आवेदन करने का अधिकार मिलता है। परंतु इन नए शेयरों के लिए आवेदन करना उसका दायित्व नहीं बनता। कंपनी जब निरंतर लाभ अर्जित करनेवाली होती है तो वर्ष-दर-वर्ष लाभ में से कुछ हिस्सा शेयरधारकों को बतौर लाभांश वितरित करती रहती है। बचे हुए लाभ का हिस्सा जब संचित होता है और उस संचित राशि का पूँजीकरण करके उस राशि से अपने विद्यमान शेयरधारकों को निर्धारित किए गए अनुपात में शेयर निःशुल्क आवंटित किए जाते हैं तो इसे ‘बोनस शेयर’ कहा जाता है।
आई.पी.ओ. में आवेदन करते समय ध्यान रखें
किसी भी कंपनी के आई.पी.ओ. में आवेदन करते समय निवेशक को यह जान लेना चाहिए कि कंपनी के प्रमोटर कौन हैं? इन प्रमोटरों का पिछला रिकॉर्ड कैसा है? यदि इन प्रमोटरों की कोई अन्य कंपनी हो तो उस कंपनी का वित्तीय कार्य परिणाम कैसा है? कंपनी किस उद्योग क्षेत्र की है? उस उद्योग की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में क्या संभावनाएँ हैं? कंपनी की भावी योजनाएँ क्या हैं? उसका संभावित कार्य परिणाम कैसा होगा? ऐसे अनेक प्रश्नों का उत्तर कंपनी के ऑफर डॉक्यूमेंट (प्रॉस्पेक्ट्स) में मिल जाता है। इसमें कंपनी के जोखिम पहलुओं की भी जानकारी दी जाती है। अब कंपनियों को अपने आई.पी.ओ. के लिए ग्रेडिंग करवानी पड़ती है। यह ग्रेडिंग क्रिसिल सहित विभिन्न ग्रेडिंग एजेंसियाँ देती हैं। यह ग्रेडिंग कंपनी के फंडामेंटल के आधार पर एक से पाँच के क्रम में दी जाती है। इसमें पहले क्रम की कंपनी फंडामेंटल की दृष्टि से कमजोर समझी जाती है। ऐसी कंपनियों के इश्यू में आवेदन न करना ही अच्छा होता है, जबकि ग्रेड-2 साधारण, ग्रेड-3 अच्छी कंपनी होने का परिचायक है। ग्रेड-4 एवं ग्रेड-5 की कंपनियों का फंडामेंटल मजबूत और उल्लेखनीय स्तर का परिचायक है।
शेयर बाजार में ‘पैन’ का मतलब
एक बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि शेयर बाजार में निवेश करने का सौदा करने या आई.पी.ओ. में आवेदन करने के लिए भी अब इन्कम टैक्स परमानेंट एकाउंट नंबर (क्क्नहृ) आवश्यक है। इसी प्रकार शेयर बाजार में कारोबार करने के लिए डीमेट एकाउंट होना भी जरूरी है। पैन कार्ड के बिना डीमेट खाता नहीं खुलवाया जा सकता। इस प्रकार अब शेयरों का सौदा पैन नंबर के बिना संभव नहीं है। इन्कम टैक्स के पैन नंबर का नाम सुनकर घबराने की आवश्यकता नहीं है। कंप्यूटर के इस युग में इन्कम टैक्स संबंधी पारदर्शिता बढ़ गई है, इसलिए शेयरों का सौदा करनेवाले निवेशकों को इन्कम टैक्स की बहुत चिंता नहीं करनी चाहिए। शेयरों पर मिलनेवाले लाभांश को सरकार ने कर-मुक्त रखा है, अर्थात् कंपनी अपने लाभ में से शेयरधारकों को प्रतिवर्ष लाभांश के रूप में जो राशि देती है, उस पर कोई टैक्स नहीं लगता।
इसके अतिरिक्त शेयर बाजार में निवेश करनेवाले निवेशकों को सरकार ने अन्य कई कर लाभ भी दिए हैं। शेयरधारक किसी शेयर को जब इसके खरीदने के बारह महीने के अंदर बेचकर लाभ कमाता है तो इस लाभ पर शॉर्ट टर्म कैपिटल लाभ कमाया जा सकता है। इसे ‘लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन’ कहा जाता है और इस लाभ पर कोई कर नहीं लगता। इसका अर्थ यह हुआ कि जो निवेशक खरीदे गए शेयरों को बारह महीने के बाद बेचकर उस पर लाभ कमाते हैं तो ऐसे लाभ पर कोई कर नहीं लगता।
शेयर बाजार की जानकारी
निवेशकों के बड़े वर्ग में यह प्रश्न भी उठता है कि बी.एस.ई. और एन.एस.ई. के बीच क्या अंतर है? इतना ही नहीं, विभिन्न राज्यों में विद्यमान शेयर बाजार किनके लिए हैं तथा ये इनसे किस प्रकार भिन्न हैं? बी.एस.ई. (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) और एन.एस.ई. (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) ये दोनों संपूर्ण कंप्यूटराइज्ड-ऑनलाइन स्टॉक एक्सचेंज हैं।
बी.एस.ई. देश का ही नहीं, एशिया का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है, जिस पर सबसे अधिक सूचीबद्ध कंपनियाँ हैं, जबकि एन.एस.ई. को स्थापित हुए लगभग 17 वर्ष हुए हैं। ये दोनों स्टॉक एक्सचेंज आज वैश्विक स्तर के बन गए हैं तथा इसके सदस्य देश के किसी भी कोने से इन एक्सचेंजों से सौदे कर सकते हैं। इसके विपरीत, विभिन्न राज्यों के शेयर बाजार अब वॉल्यूम-विहीन हो गए हैं और अब उन पर होनेवाले सौदों की संख्या नगण्य है। इतना ही नहीं, ये शेयर बाजार बंद के बराबर हैं, परंतु ये बी.एस.ई. और एन.एस.ई. के सदस्य बनकर उस पर सौदा करते हैं।
सेंसेक्स और अन्य इंडेक्स क्या है?
जब भी शेयर बाजार की बात होती है तो ‘सेंसेक्स’ शब्द सबसे पहले सुनने या पढ़ने को मिलता है। ‘सेंसेक्स ने 20 हजार के स्तर को पार कर लिया’ या ‘सेंसेक्स टूटा’ जैसे शीर्षक अखबारों में पढ़ने या टी.वी. पर सुनने को मिलते हैं। सेंसेक्स बी.एस.ई. या बेंचमार्क सूचकांक है, जिसमें 12 महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों की 30 ब्लूचिप कंपनियों का समावेश है, जिसके कारण इसे बाजार में उतार-चढ़ाव का बैरोमीटर समझा जाता है। सेंसेक्स की घट-बढ़ बाजार की मंदी या तेजी दरशाती है।
निवेशक जब सेंसेक्स में शामिल कंपनियों में निवेश करता है तो इस बात का विश्वास रहता है कि उसने जिन कंपनियों में निवेश किया है, वे फंडामेंटली और विकास की दृष्टि से अत्यंत समर्थ कंपनियाँ हैं। इस प्रकार सेंसेक्स को स्क्रिपों के बाद सेंसेक्स में भी खरीद-बिक्री की जा सकती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि यदि आपको लगे कि सेंसेक्स बढ़ने वाला है तो आप इसके खरीद का वायदा कर सकते हैं और यदि आपकी धारणा है कि सेंसेक्स घटेगा तो आप इसके बेचने का सौदा कर सकते हैं। इस प्रकार के सौदे ‘सेंसेक्स फ्यूचर्स के सौदे’ कहलाते हैं। बी.एस.ई. के निवेशक कम पूँजी के निवेश में सेंसेक्स में सौदे कर सकें, इसके लिए ‘मिनी फ्यूचर्स कांट्रेक्ट’ भी शुरू किया गया है।
ब्रोकर की पसंदगी
शेयर बाजार में सौदे सिर्फ पंजीकृत शेयर दलालों के माध्यम से किए जा सकते हैं। निवेशकों को ब्रोकर का चुनाव ध्यानपूर्वक करना चाहिए और इसका चुनाव करते समय उनके ट्रेक रिकॉर्ड, सेवा की गुणवत्ता, ग्राहकों के लिए परामर्श सेवा, शोध इत्यादि के उपरांत उनका आपके साथ व्यवहार कैसा है, इस बात का ध्यान रखना चाहिए। यदि कोई शेयर ब्रोकर सस्ती सुविधा उपलब्ध करता है, दलाली कम लेता है, लुभावनी और आकर्षक खबरें देता है तो केवल इन गुणों के आधार पर ब्रोकर का चयन करना उचित नहीं है।
इसी प्रकार आपको डीमेट एकाउंट खुलवाते समय डिपॉजिटरी पार्टीसिपेंट (डी.पी.) की आवश्यकता होती है। ब्रोकरी से लेकर बैंकों तक कोई भी आपका डी.पी. हो सकता है। यदि आपको अपने ब्रोकर पर भरोसा हो तो आप उसके पास ही अपना डीमेट खाता निकट के किसी बैंक में खुलवा सकते हैं। वर्तमान में अनेक बैंक डीमेट की सुविधा के साथ ट्रेडिंग एकाउंट की भी सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं। ट्रेेडिंग एकाउंट खुलवाते समय डीमेट एकाउंट, पैन कार्ड नंबर, अपना फोटो, पते का प्रमाण, बैंक आदि की जानकारी देनी पड़ती है। अब इस तरह के व्यवहार में पारदर्शिता निरंतर बढ़ रही है।
ये ‘टिप्स’ क्या चीज है?
शेयर बाजार में बार-बार आपको ‘टिप्स’ शब्द सुनने को मिलता है। लोग एक-दूसरे को कहते रहते हैं कि कौन सा शेयर तीन महीने में डबल हो जाएगा, आदि-आदि। बाजार की भाषा में ऐसी सलाह को ‘टिप्स’ कहा जाता है। ऑपरेटर और सटोरिए भारी मात्रा में टिप्स-कल्चर को फैलाते हैं, जिसमें सच्ची-झूठी अथवा अफवाहों पर आधारित जानकारी बाजार में फैलती रहती है। निवेशकों को बाजार में फैली हुई टिप्स से हमेशा सावधान रहना चाहिए। तेजी के समय बाजार में टिप्स कल्चर और ज्यादा विकसित हो जाता है। टिप्स का कोई ठोस आधार नहीं होता, जिसके कारण इसके आधार पर किए गए सौदों में जोखिम की मात्रा काफी होती है। प्रायः देखा गया है कि नए निवेशक बाजार की इन टिप्स के प्रलोभन में आकर अपने पसीने की गाढ़ी कमाई लगा बैठते हैं और बाद में नुकसान उठाने पर पछताते हैं।
बी.एस.ई. की हिंदी वेबसाइट पर जानकारी का खाजाना
बी.एस.ई. ने हिंदी भाषी निवेशकों के लिए खास सुविधा उपलब्ध कराई है। ‘हिंदी डॉट बी.एस.ई. इंडिया डॉट कॉम’ पर आपको सवेरे से देर रात तक विभिन्न कंपनियों तथा एक्सचेंज द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ हिंदी में उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं, इस साइट पर निवेशकों के मार्गदर्शन के लिए महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध रहती हैं। बी.एस.ई. की इस साइट पर रोज शाम को शेयर बाजार के रुझान का विवरण भी उपलब्ध है, जिसके विषय में सामान्यतया आपको अगले दिन अखबार से जानकारी मिलती है या रात को टी.वी. पर समाचारों से। इतना ही नहीं, इस वेबसाइट पर शेयर बाजार से संबंधित अनेक ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ और आँकड़े उपलब्ध हैं, जिनके आधार पर निवेशक को निवेश का निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
नए निवेशक : समस्याएँ और समाधान
शेयर ब्रोकर का चुनाव कैसे करें?
बी.एस.ई. और एन.एस.ई. की वेबसाइट पर ब्रोकरों की सूची उपलब्ध है। इसके अलावा ब्रोकर भी अपनी जानकारियाँ अनेक माध्यमों से प्रकाशित करवाते रहते हैं। परंतु शेयर ब्रोकर का चुनाव करते समय उसका ट्रेक रिकॉर्ड जरूर लेना चाहिए और यदि वह आपके घर व ऑफिस के निकट हो तो उसका चयन सुविधाजनक होगा। अब तो अनेक बैंक भी ब्रोकिंग का कारोबार करते हैं। उनमें से भी किसी को चुना जा सकता है।
डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (डी.पी.) के रूप में किसका चुनाव करें?
जहाँ तक हो सके, यदि आपका ब्रोकर ऐसी सेवा उपलब्ध कराता है तो उसी से यह सेवा लें अथवा अपने घर या ऑफिस के निकट इस प्रकार की सेवा उपलब्ध करानेवाले को अपना डी.पी. चुनें। अधिकांश बैंक डी.पी. हैं। उसमें से अपनी पसंद के बैंक के पास डीमेट खाता खुलवाएँ। आप अपने डीमेट एकाउंट का रिकॉर्ड ठीक-ठाक रखें, उसको दी जानेवाली सूचना ठीक से रखें। अपनी इंस्ट्रक्शन स्लिप को सँभालकर रखें।
कंपनियों, ब्रोकरों या डी.पी. के विरुद्ध शिकायत हो तो क्या करें?
कंपनियों के विरुद्ध शिकायत होने पर शेयर बाजार के इन्वेस्टर सर्विस विभाग के अतिरिक्त सेबी से संपर्क किया जा सकता है। ब्रोकर के विरुद्ध शिकायत होने पर शेयर बाजार में शिकायत की जा सकती है और यदि शेयर बाजार संतोषजनक समाधान न करे तो इसकी शिकायत सेबी से भी की जा सकती है। डी.पी. के विरुद्ध शिकायत होने पर यह शिकायत डिपॉजिटरी के पास की जा सकती है। इस मामले में भी अंतिम पड़ाव सेबी ही है।
कंपनियों के बारे में जानकारी लेने का क्या रास्ता है?
बिजनेस चैनलों, अखबारों और आर्थिक समीक्षा करनेवाली कंपनियाँ इससे संबंधित समाचार देती रहती हैं। इसके अतिरिक्त शेयर बाजार की वेबसाइट पर भी कंपनियों के परिणाम से लेकर अन्य डेवलपमेंट के समाचार आते रहते हैं। कंपनियों की स्वयं की वेबसाइट पर भी जानकारियाँ उपलब्ध हैं। स्वतंत्र रिसर्च एजेंसियाँ और ब्रोकरों की रिसर्च रिपोर्टों की जानकारियाँ भी समय-समय पर प्रकाशित होती रहती हैं। टी.वी. न्यूज चैनलों पर भी कंपनियों के नवीनतम समाचार आते रहते हैं।
शेयर ब्रोकर या डी.पी. के पास खाता खुलवाने के लिए क्या करना पड़ता है?
शेयर ब्रोकर को एक ग्राहक के रूप में आपको तमाम जानकारी देनी होती है और एक करार पर हस्ताक्षर करने होते हैं। तदुपरांत ब्रोकर आपको एक ‘यूनिक आइडेंटीफिकेशन’ नंबर देता है। इस प्रकार डी.पी. को भी अपनी जानकारी देनी होती है। विशेष बात यह है कि खाते खुलवाने के लिए आपको अपना इन्कम टैक्स पैन (परमानेंट एकाउंट) नंबर देना जरूरी है। इसके बिना ब्रोकर या डी.पी. के पास खाता नहीं खुलवाया जा सकता है। शेयर बाजार में सौदा करने या शेयर रखने के लिए पैन अब आवश्यक हो गया है।
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हमने शेयर मार्केट में मुनाफे का मंत्र / Share Market Mein Munafe Ke Mantra PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 4.2 MB है और कुल पेजों की संख्या 129 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक सुधा श्रीमाली / Sudha Shrimali हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ शेयर मार्केट में मुनाफे का मंत्र / Share Market Mein Munafe Ke Mantra को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।Answer. सुधा श्रीमाली / Sudha Shrimali
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