आज से 20 साल पहले
बीटल्स ने 1 जून 1967 को सर्जेन्ट पेपर्स लोनली हार्ट्स क्लब बैंड एलबम रिलीज़ किया। यह तुरंत सफल हो गया… वाणिज्यिक और आलोचनात्मक सफलता के शिखर पर पहुँच गया। यह एलबम इंग्लैंड में एलबम चार्ट के शिखर पर 27 सप्ताह रहा और अमेरिका में 15 सप्ताह तक नंबर वन रहा। टाइम मैग्ज़ीन ने सर्जेन्ट पेपर्स को ‘संगीत की प्रगति में एक ऐतिहासिक मोड़’ कहा था। इसने 1968 में चार ग्रैमी अवार्ड्स जीते, साथ ही एलबम ऑफ़ द इयर भी जीता - यह सम्मान पाने वाला यह पहला रॉक एलबम था।
रिच डैड पुअर डैड मेरे 50वें जन्मदिन पर 8 अप्रैल 1997 को रिलीज़ हुई थी। द बीटल्स कहानी के विपरीत यह पुस्तक तुरंत सफल नहीं हुई। ना तो वाणिज्यिक दृष्टि से, ना ही आलोचनात्मक दृष्टि से। वास्तव में, पुस्तक के प्रकाशन और इसके बाद उठे आलोचना के तूफ़ान इसके एकदम विपरीत थे।
रिच डैड पुअर डैड को मूलतः स्वयं प्रकाशित किया गया था, क्योंकि हम जिस भी पुस्तक प्रकाशक के पास गए, हर एक ने मेरी पुस्तक को ठुकरा दिया। अस्वीकृति के कुछ पत्रों में इस तरह की टिप्पणियाँ थीं, “आप यह नहीं जानते कि आप किस बारे में बात कर रहे हैं।” मैंने सीखा कि ज़्यादातर प्रकाशक मेरे अमीर डैडी के बजाय मेरे उच्च-शिक्षित ग़रीब डैडी की तरह अधिक थे। ज़्यादातर प्रकाशक पैसे के बारे में मेरे अमीर डैडी के सबक़ों से सहमत नहीं थे… मेरे ग़रीब डैडी की तरह।
बीस साल बाद
1997 में रिच डैड पुअर डैड एक चेतावनी थी, भविष्य के बारे में सबक़ों की पुस्तक।
बीस साल बाद संसार के करोड़ों लोग मेरे अमीर डैडी की भविष्य के बारे में चेतावनियों और सबक़ों के बारे में ज़्यादा जागरूक हो चुके हैं। 20/20 दूरदर्शिता के साथ कई लोगों ने कहा है कि उनके सबक़ भविष्यदर्शी थे… भविष्यवाणियाँ सच हो गईं। इनमें से कुछ सबक़ ये हैं :
अमीर डैडी का सबक़ # 1 : “अमीर लोग पैसे के लिए काम नहीं करते।”
बीस साल पहले कई प्रकाशकों ने मेरी पुस्तक को अस्वीकार कर दिया था, क्योंकि वे अमीर डैडी के पहले सबक़ से सहमत नहीं थे।
आज लोग अमीरों और बाक़ी हर व्यक्ति के बीच की बढ़ती खाई के बारे में ज़्यादा जागरूक हैं। 1993 और 2010 के बीच अमेरिका की राष्ट्रीय आमदनी में 50 प्रतिशत से ज़्यादा वृद्धि सबसे दौलतमंद एक प्रतिशत लोगों के पास गई। तब से स्थितियाँ बदतर ही हुई हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के अर्थशास्त्रियों ने पाया है कि 2009 और 2012 के बीच 95 प्रतिशत आय उन्हीं सबसे दौलतमंद एक प्रतिशत व्यक्तियों के पास गई।
सबक़ : आय में वृद्धियाँ कर्मचारियों के नहीं, उद्यमियों और निवेशकों के पास जा रही हैं - उन लोगों के पास नहीं, जो पैसे के लिए काम करते हैं।
अमीर डैडी का सबक़ : “बचत करने वाले पराजित होते हैं।”
बीस साल पहले ज़्यादातर प्रकाशक अमीर डैडी के इस सबक़ से पुरज़ोर तरीक़े से असहमत थे। ग़रीब और मध्य वर्ग के लिए ‘पैसे बचाना’ एक धर्म है, ग़रीबी से आर्थिक मुक्ति है और क्रूर संसार से सुरक्षा है। कई लोगों को तो ऐसा लगा, जैसे बचत करने वालों को ‘पराजित’ कहना ईशनिंदा है।
सबक़ : एक चित्र 1,000 शब्दों जितना मूल्यवान होता है। डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज़ के 120 सालों के चार्ट पर नजर डालें और आपको दिख जाएगा कि बचत करने वाले क्यों और कैसे पराजित होते हैं।
चार्ट दिखाता है कि इस नई सदी के शुरुआती 10 वर्षों में शेयर बाजार में तीन भारी क्रैश हुए हैं। अगले पेज पर दिया चार्ट इन क्रैशों को चित्रित करता है।
पहला क्रैश सन 2000 के आस-पास का डॉट कॉम क्रैश था। दूसरा क्रैश 2007 का रियल एस्टेट क्रैश था और तीसरा 2008 का बैंकिंग क्रैश था।
डाउ के 120 साल
1929 का भीमकाय क्रैश
जब आप 1929 के भीमकाय क्रैश की तुलना 21वीं सदी के पहले तीन क्रैशों से करते हैं, तो आपको यह समझ आता है कि इस सदी के पहले तीन क्रैश सचमुच कितने ‘भीमकाय’ थे।
नोट छापना
नीचे दिया चार्ट दिखाता है कि हर क्रैश के बाद अमेरिकी सरकार और फ़ेडरल रिज़र्व बैंक ने ‘नोट छापना’ शुरू कर दिया।
अमीर को बचाना
2000 से 2016 के बीच अर्थव्यवस्था को बचाने के नाम पर पूरे संसार के बैंक ब्याज दरों में कटौती करते रहे और नोट छापते रहे, हालाँकि हमारे लीडर हमें यह विश्वास दिलाना चाहते थे कि वे संसार को बचा रहे थे, लेकिन सच्चाई तो यह थी कि अमीर लोग ख़ुद को बचा रहे थे और ग़रीब तथा मध्यवर्गीय लोगों को बस के नीचे फेंक रहे थे।
आज कई देशों में ब्याज दर शून्य से भी कम है, इसीलिए बचत करने वाले पराजित होते हैं। आज सबसे ज़्यादा पराजित लोग ग़रीब और मध्यवर्गीय हैं, जो पैसे के लिए काम करते हैं और पैसे बचाते हैं।
अमीर डैडी का सबक़ : “आपका मकान संपत्ति नहीं है।”
बीस साल पहले 1997 में मुझे अस्वीकृति की पर्ची भेजने वाले हर प्रकाशक ने अमीर डैडी के इस सबक़ की आलोचना की कि “आपका मकान संपत्ति नहीं है।”
दस साल बाद 2007 में जब सबप्राइम क़र्जदारों ने अपने सबप्राइम मॉर्गेज की क़िस्त चुकाना बंद कर दी, तो संसार का रियल एस्टेट बुलबुला फूट गया और करोड़ों मकान मालिकों को इस सबक़ की सच्चाई कठोर तरीक़े से पता चली। उनका मकान सचमुच ‘संपत्ति’ नहीं था।
असली समस्या
ज़्यादातर लोग यह नहीं जानते कि रियल एस्टेट क्रैश वास्तव में रियल एस्टेट क्रैश नहीं था।
रियल एस्टेट क्रैश ग़रीब लोगों की वजह से नहीं हुआ था। यह तो अमीरों की वजह से हुआ था। अमीरों ने वित्तीय जुगाड़ करके डेरिवेटिव्ज़ नामक प्रॉडक्ट बनाए - जिन्हें वॉरेन बफ़े ने “सामूहिक वित्तीय विनाश के हथियार” कहा है। जब सामूहिक विनाश के इन वित्तीय हथियारों में विस्फोट हुआ, तो रियल एस्टेट मार्केट क्रैश हो गया… और दोष ग़रीब, सबप्राइम क़र्ज़ लेने वालों पर मढ़ा गया।
2007 में वित्तीय डेरिवेटिव्ज़ में लगभग 700 ट्रिलियन डॉलर थे।
आज यह अनुमान लगाया जाता है कि वित्तीय डेरिवेटिव्ज़ में 1.2 क्वाड्रिलियन डॉलर हैं। दूसरे शब्दों में, असली समस्या कम नहीं हुई है, बल्कि ज़्यादा बढ़ गई है।
अमीर डैडी का सबक़ : “अमीर लोग कम टैक्स क्यों देते हैं।”
बीस साल पहले कई प्रकाशकों ने यह उजागर करने के लिए रिच डैड पुअर डैड की आलोचना की थी कि अमीर लोग टैक्स में कम कैसे और क्यों देते हैं। एक ने कहा कि यह सबक़ ग़ैर-क़ानूनी है।
दस साल बाद 2007 में राष्ट्रपति बराक ओबामा पूर्व गवर्नर मिट रॉमनी के ख़िलाफ़ पुनर्चुनाव के लिए खड़े हुए। जब यह उजागर किया गया कि राष्ट्रपति ओबामा ने अपनी आमदनी का लगभग 30 प्रतिशत टैक्स में दिया और गवर्नर रॉमनी ने 13 प्रतिशत से कम दिया, तो मिट रॉमनी की वह नीचे गिरने वाली ढलान शुरू हुई, जिसके बाद वे चुनाव हार गए। एक बार फिर टैक्स 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में केंद्र बिंदु बन गया।
मिट रॉमनी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प क़ानूनी रूप से कम टैक्स क्यों देते हैं, यह पता लगाने के बजाय ग़रीब और मध्यवर्गीय लोग नाराज़ हो जाते हैं।
हालाँकि राष्ट्रपति ट्रम्प ग़रीबों और मध्य वर्ग के लिए टैक्स कम करने का वादा करते हैं, लेकिन सच तो यह है कि अमीर लोग टैक्स में हमेशा कम चुकाएँगे। अमीर लोग कम टैक्स देते हैं, इसका कारण अमीर डैडी के सबक़ क्रमांक एक में मिलता है : “अमीर लोग पैसे के लिए काम नहीं करते।” जब तक कोई व्यक्ति पैसे के लिए काम करता है, वह टैक्स चुकाएगा।
जब राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन अमीरों पर टैक्स बढ़ाने का वादा कर रही थीं, तो वे असली अमीरों पर नहीं, बल्कि ऊँची आमदनी वाले लोगों जैसे डॉक्टरों, अभिनेताओं और वकीलों पर टैक्स बढ़ाने का वादा कर रही थीं।
बीस साल पहले
हालाँकि रिच डैड पुअर डैड तुरंत सफल नहीं हुई, जैसे कि द बीटल्स सर्जेन्ट पेपर्स एलबम हुआ था, लेकिन रिच डैड पुअर डैड वर्ष 2000 तक द न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्टसेलर सूची में पहुँच गई और लगभग सात साल तक उस सूची में बनी रही। इसके अलावा वर्ष 2000 में ओपरा विनफ़्रे का फ़ोन आया। मैं पूरे एक घंटे तक ओपरा! कार्यक्रम में रहा और जैसा लोग कहते हैं, “बाक़ी इतिहास है।”
रिच डैड पुअर डैड इतिहास की नंबर वन व्यक्तिगत वित्त पुस्तक बन चुकी है और पूरे संसार में रिच डैड सीरीज़ की लगभग 4 करोड़ पुस्तकें बिक चुकी हैं।
क्या सचमुच कोई अमीर डैडी थे?
करोड़ों लोगों ने पूछा है, “क्या सचमुच कोई अमीर डैडी थे?” इस प्रश्न का जवाब देने के लिए आप अमीर डैडी के बेटे माइक की बातें सुन सकते हैं… जब वे रिच डैड रेडियो शो पर अतिथि के रूप में आए थे। आप Richdadradio.com पर जाकर वह प्रोग्राम सुन सकते हैं।
रिच डैड ग्रैजुएट स्कूल
रिच डैड पुअर डैड यथासंभव सरल लिखी गई थी, ताकि हर व्यक्ति मेरे अमीर डैडी के सबक़ों को समझ सके।
जो लोग ज़्यादा जानना चाहते हैं, 20 वर्ष के समारोह के हिस्से के रूप में, उनके लिए मैंने लिखी व्हाई द रिच आर गेटिंग रिचर - व्हाट इज़ फ़ाइनैंशियल एज्युकेशन… रियली?
व्हाई द रिच आर गेटिंग रिचर ज़्यादा विस्तार और स्पष्टता से बताती है कि अमीर डैडी ने अपने बेटे और मुझे पैसे और निवेश के बारे में क्या सिखाया।
व्हाई द रिच आर गेटिंग रिचर ग्रैजुएट विद्यार्थियों की रिच डैड पुअर डैड है… यह रिच डैड विद्यार्थियों के लिए ग्रेजुएट स्कूल है।
एक चेतावनी… और एक आमंत्रण
हालाँकि मैंने व्हाई द रिच आर गेटिंग रिचर को यथासंभव सरल रखने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन अमीर लोग सचमुच जो करते हैं वह आसान नहीं है। ना ही उसे समझाना आसान है। अमीर लोग सचमुच जो करते हैं, उसके लिए असली वित्तीय शिक्षा की ज़रूरत होती है, जो हमारे स्कूलों में नहीं सिखाई जाती।
मैं सुझाव देता हूँ कि पहले आप रिच डैड पुअर डैड पढ़ें। इसके बाद अगर आप और ज़्यादा जानना चाहते हैं, तो शायद व्हाई द रिच आर गेटिंग रिचर आप ही के लिए है।
20 बेहतरीन वर्षों के लिए… आपको धन्यवाद
अतीत, वर्तमान और भविष्य के मेरे सभी पाठकों को …
द रिच डैड कंपनी के हम सभी लोग लोगों की ओर से,
“20 बेहतरीन वर्षों के लिए… आपको धन्यवाद।”
मानवता के वित्तीय कल्याण को ऊपर उठाना हमारा मिशन है…
और यह एक समय में एक जीवन और एक व्यक्ति से शुरू होता है।
प्रस्तावना
रिच डैड पुअर डैड
मेरे दो डैडी थे, इसलिए मेरे पास दो विरोधी दृष्टिकोणों का विकल्प था - एक अमीर आदमी का और एक ग़रीब आदमी का।
मेरे दो डैडी थे, एक अमीर और एक ग़रीब। एक उच्च शिक्षित और बुद्धिमान थे। वे पीएच.डी. थे और उन्होंने चार साल का पूर्वस्नातक पाठ्यक्रम दो साल में ही पूरा कर लिया था। इसके बाद पढ़ाई करने के लिए वे स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी, शिकागो यूनिवर्सिटी और नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी गए - ज़ाहिर है, पूरी स्कॉलरशिप्स पर। दूसरे डैडी कभी आठवीं भी पास नहीं कर पाए।
दोनों ही डैडी अपने करियर में सफल थे। दोनों ने ही ज़िंदगीभर कड़ी मेहनत की। दोनों ने ही काफ़ी पैसे कमाए, लेकिन एक हमेशा आर्थिक परेशानियों से जूझते रहे। दूसरे आगे चलकर हवाई के सबसे अमीर लोगों में से एक बने। एक अपनी मृत्यु के समय अपने परिवार, परोपकारी संस्थाओं और चर्च के लिए करोड़ों डॉलर छोड़कर गए। दूसरे ने अधूरे बिल छोड़े, जिनका भुगतान बाक़ी था।
दोनों ही डैडी शक्तिशाली, करिश्माई और प्रभावशाली थे। दोनों ने ही मुझे सलाह दी, लेकिन उन्होंने एक जैसी चीज़ें करने की सलाह नहीं दी। दोनों ही शिक्षा पर बहुत ज़ोर देते थे, लेकिन उन्होंने अध्ययन के लिए एक जैसे पाठ्यक्रम की सलाह नहीं दी।
अगर मेरे सिर्फ़ एक ही डैडी होते, तो मैं या तो उनकी सलाह मान लेता या फिर उसे ठुकरा देता। दो डैडी होने से मुझे विरोधी दृष्टिकोण का विकल्प मिला : एक अमीर आदमी का और दूसरा ग़रीब आदमी का।
उनमें से किसी एक दृष्टिकोण को स्वीकार या अस्वीकार करने के बजाय मैं उनकी कही बातों पर काफ़ी सोच-विचार करता था, उनकी तुलना करता था और फिर अपने लिए विकल्प चुनता था। समस्या यह थी कि अमीर डैडी उस वक़्त अमीर नहीं थे और ग़रीब डैडी उस वक़्त ग़रीब नहीं थे। दोनों ही अपना करियर शुरू कर रहे थे और दोनों ही आर्थिक व पारिवारिक क्षेत्रों में संघर्ष कर रहे थे, परंतु पैसे के बारे में उनके दृष्टिकोण बहुत भिन्न थे।
मिसाल के तौर पर, एक डैडी कहते थे, “पैसे का प्रेम ही सारी बुराई की जड़ है।” दूसरे डैडी कहते थे, “पैसे की कमी ही सारी बुराई की जड़ है।”
दो शक्तिशाली डैडियों की अलग-अलग सलाह से बचपन में मुझे बड़ी उलझन होती थी। मैं एक अच्छे बेटे की तरह उनकी बातें सुनना चाहता था और उन पर अमल करना चाहता था। दिक्क़त यह थी कि दोनों डैडी एक सी बातें नहीं कहते थे। उनके दृष्टिकोण में ज़मीन-आसमान का अंतर था, ख़ासतौर पर पैसे के संबंध में। इससे मैं बहुत चकराता था, लेकिन मेरी जिज्ञासा जाग गई। मैं काफ़ी समय तक सोचता रहता था कि उनमें से किसने क्या कहा और क्यों कहा।
अपने ख़ाली समय में अधिकतर मैं इसी बारे में विचार करते हुए ख़ुद से यह सवाल पूछता था, “ उन्होंने ऐसा क्यों कहा?” फिर मैं दूसरे डैडी की कही बातों के बारे में भी यही सवाल पूछता था। इसके बजाय तो यह कहना ज़्यादा सरल होता, “हाँ, उनकी बात बिलकुल सही है। मैं इससे सहमत हूँ।” या यह कहकर उनके उस दृष्टिकोण को नकार देना भी आसान होता, “ उन बुजुर्ग इंसान को पता ही नहीं है कि वे क्या बोल रहे हैं।” मैं दोनों डैडियों से प्रेम करता था, इसलिए मैं सोचने के लिए विवश हुआ और अंततः मुझे अपने लिए सोचने का तरीक़ा चुनने की ख़ातिर मजबूर होना पड़ा। इस प्रक्रिया में अपने लिए विकल्प चुनना आगे चलकर काफ़ी मूल्यवान साबित हुआ, जो किसी दृष्टिकोण को सिर्फ़ स्वीकार या अस्वीकार करने से संभव नहीं था।
अमीर लोग ज़्यादा अमीर बनते हैं और ग़रीब ज़्यादा ग़रीब, तथा मध्यवर्ग क़र्ज़ में डूबा रहता है, इसका एक कारण यह है कि पैसे का विषय स्कूल में नहीं, घर पर पढ़ाया जाता है। हममें से ज़्यादातर लोग पैसे के बारे में अपने माता-पिता से सीखते हैं। ग़रीब माता-पिता अपने बच्चों को पैसे के बारे में क्या सिखा सकते हैं? वे बस कह देते हैं, “स्कूल जाओ और मेहनत से पढ़ो।” हो सकता है कि बच्चा बेहतरीन ग्रेड के साथ पढ़ाई पूरी कर ले, लेकिन इसके बाद भी उसकी आर्थिक प्रोग्रामिंग और मानसिकता तो ग़रीब व्यक्ति की ही रहेगी।
दुर्भाग्य से, पैसे का विषय स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता। स्कूल में वित्तीय योग्यताओं के बजाय अकादमिक और पेशेवर योग्यताओं पर ज़ोर दिया जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जिन चतुर बैंकरों, डॉक्टरों और लेखापालों ने स्कूल-कॉलेज में बेहतरीन ग्रेड पाए थे, वे जीवनभर पैसे के लिए क्यों जूझते रहते हैं। अमेरिका पर जो भारी राष्ट्रीय क़र्ज़ है, वह काफ़ी हद तक इसी कारण है, क्योंकि जो उच्च शिक्षित राजनेता और सरकारी अधिकारी वित्तीय निर्णय ले रहे हैं, उनके पास पैसे के विषय पर बहुत कम प्रशिक्षण है या ज़रा भी नहीं है।
20 साल पहले आज…
कर्ज़ की घड़ी
20 साल आगे जाएँ… और अमेरिका का राष्ट्रीय क़र्ज़ चौंकाने वाले स्तर से भी आगे पहुँच चुका है। इस पुस्तक के प्रेस में छपने जाते समय यह 20 ट्रिलियन डॉलर के आस-पास है। यह बहुत भारी रक़म है।
आज मैं अक्सर सोचता हूँ कि तब क्या होगा, जब जल्द ही हमारे बीच लाखों-करोड़ों लोग होंगे, जिन्हें आर्थिक और चिकित्सकीय सहायता की ज़रूरत होगी। आर्थिक सहायता के लिए वे अपने परिवार या सरकार पर निर्भर रहेंगे। जब मेडिकेयर और सामाजिक सुरक्षा का पैसा ख़त्म हो जाएगा, तब क्या होगा? देश कैसे बचेगा, अगर पैसे के बारे में बच्चों को सिखाने का काम माता-पिताओं के भरोसे छोड़ दिया जाएगा - जिनमें से अधिकतर या तो पहले से ही ग़रीब हैं या फिर ग़रीब होने वाले हैं?
चूँकि मेरे पास दो प्रभावशाली डैडी थे, इसलिए मैंने दोनों से ही सीखा। मुझे हर डैडी की सलाह के बारे में सोचना पड़ता था और ऐसा करके मैंने इस बारे में बहुत मूल्यवान ज्ञान हासिल किया कि किसी इंसान के विचार उसके जीवन पर कितना ज़्यादा असर डाल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, एक डैडी में यह कहने की आदत थी, “मैं इसे नहीं ख़रीद सकता।” दूसरे डैडी ने इन शब्दों को प्रतिबंधित कर दिया था। वे ज़ोर देते थे कि मैं इसी बात को इस तरह पूछूँ, “मैं इसे कैसे ख़रीद सकता हूँ?” एक वाक्य कथन है और दूसरा प्रश्न है। एक में बात ख़त्म हो जाती है और दूसरे में आप सोचने के लिए मजबूर होते हैं। मेरे जल्द-ही-अमीर-बनने-वाले डैडी समझाते थे कि “मैं इसे नहीं ख़रीद सकता,” कहने से आपका दिमाग़ किस तरह काम करना छोड़ देता है। दूसरी ओर, “मैं इसे कैसे ख़रीद सकता हूँ?” यह सवाल पूछने से आपका दिमाग़ सक्रिय हो जाता है। उनका यह मतलब नहीं था कि आपका जिस भी चीज़ पर दिल आ जाए, आप उसे ख़रीद लें। उन्हें अपने दिमाग़ की कसरत कराने का जुनून था, जिसे वे संसार का सबसे शक्तिशाली कंप्यूटर मानते थे। वे कहते थे, “मेरे दिमाग़ की शक्ति हर दिन बढ़ती है, क्योंकि मैं इसका व्यायाम कराता हूँ। यह जितना ज़्यादा शक्तिशाली बनता है, मैं उतने ही ज़्यादा पैसे बनाता हूँ।” वे मानते थे कि स्वचलित ढंग से “मैं इसे नहीं ख़रीद सकता” कहना मानसिक आलस्य की निशानी है।
हालाँकि दोनों ही डैडी कड़ी मेहनत करते थे, लेकिन मैंने ग़ौर किया कि आर्थिक मसलों पर एक में अपने दिमाग़ को सुलाए रखने की आदत थी और दूसरे में अपने दिमाग़ का व्यायाम कराने की आदत थी। इसका दीर्घकालीन नतीजा यह निकला कि एक डैडी आर्थिक दृष्टि से ज़्यादा शक्तिशाली बनते चले गए और दूसरे ज़्यादा कमज़ोर होते गए। इसे इस तरह समझें। एक आदमी नियमित रूप से जिम में व्यायाम करने जाता है और दूसरा सोफ़े पर बैठकर टीवी देखता रहता है। इसका क्या परिणाम होगा? जिस तरह सही शारीरिक व्यायाम स्वास्थ्य के आपके अवसरों को बढ़ा देता है, उसी तरह सही मानसिक व्यायाम दौलत के आपके अवसरों को बढ़ा देता है।
मेरे दोनों डैडियों के विरोधी नज़रिये थे और इससे उनके सोचने के तरीक़े पर असर पड़ता था। एक डैडी सोचते थे कि अमीरों को ज़्यादा टैक्स देना चाहिए, ताकि ग़रीबों को फ़ायदा मिल सके। दूसरे डैडी कहते थे, “टैक्स उत्पादन करने वाले लोगों को सज़ा देता है और उत्पादन ना करने वालों को पुरस्कार देता है।”
एक डैडी सलाह देते थे, “मेहनत से पढ़ो, ताकि तुम्हें किसी अच्छी कंपनी में नौकरी मिल जाए।” दूसरे डैडी यह नसीहत देते थे, “मेहनत से पढ़ो, ताकि तुम्हें ख़रीदने के लिए कोई अच्छी कंपनी मिल जाए।”
एक डैडी कहते थे, “मैं इसलिए अमीर नहीं हूँ, क्योंकि मुझे तुम बाल-बच्चों को पालना पड़ता है।” दूसरे का कहना था, “मुझे इसलिए अमीर बनना है, क्योंकि मुझे बाल-बच्चों को पालना है।”
एक डैडी डिनर टेबल पर पैसे और कारोबार संबंधी बातें करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते थे, जबकि दूसरे डैडी ने भोजन करते समय पैसे संबंधी बातचीत पर प्रतिबंध लगा रखा था।
एक कहते थे, “जहाँ पैसे का मामला हो, वहाँ सुरक्षित खेलो। जोख़िम मत लो।” दूसरे कहते थे, “जोख़िम को सँभालना सीखो।”
एक डैडी को यक़ीन था, “हमारा मकान हमारा सबसे बड़ा निवेश और हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है।” दूसरे डैडी का मानना था, “मेरा मकान एक दायित्व है और अगर आपका मकान आपका सबसे बड़ा निवेश है, तो आप संकट में हैं।”
दोनों ही डैडी अपने बिल समय पर चुकाते थे, लेकिन एक अपने बिल सबसे पहले चुकाते थे, जबकि दूसरे अपने बिल सबसे अंत में चुकाते थे।
एक डैडी का यह मानना था कि कंपनी या सरकार को आपकी और आपकी आवश्यकताओं की परवाह करनी चाहिए। वे हमेशा वेतनवृद्धि, रिटायरमेंट योजनाओं, चिकित्सकीय लाभ, बीमारी की छुट्टियों, छुट्टी के दिनों की संख्या और दूसरी सुविधाओं के बारे में चिंतित रहते थे। वे अपने दो चाचाओं से प्रभावित थे, जो सेना में चले गए थे और बीस साल की सक्रिय सेवा के बाद उन्होंने जीवन भर के लिए सेवानिवृत्ति-एवं-अधिकार पैकेज हासिल कर लिया था। वे सेना द्वारा सेवानिवृत्त कर्मचारियों को दिए जाने वाले चिकित्सकीय लाभ और अन्य सुविधाओं की भी तारीफ़ करते थे। वे विश्वविद्यालय में उपलब्ध लंबी कार्यकाल अवधि से भी प्रेम करते थे। कई बार आजीवन नौकरी की सुरक्षा और लाभ का विचार नौकरी से भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण दिखता है। वे प्रायः कहते थे, “मैंने सरकार के लिए बहुत मेहनत से काम किया है, इसलिए मैं इस तरह के लाभ का हक़दार हूँ।”
20 साल पहले आज…
आपका घर संपत्ति नहीं है
2008 में हाउसिंग मार्केट के लुढ़कने से यह स्पष्ट संदेश मिला कि आपका व्यक्तिगत निवास संपत्ति नहीं है। ना सिर्फ़ यह आपकी जेब में पैसा नहीं डालता है, बल्कि हम इस तथ्य पर भी भरोसा नहीं कर सकते कि इसका मूल्य बढ़ेगा। कई मकानों का मूल्य 2017 में भी उससे कम है, जितना कि यह 2007 में था।
दूसरे डैडी पूरी तरह से आर्थिक स्वावलंबन में यक़ीन करते थे। वे ‘सुविधाभोगी’ या अधिकार की मानसिकता के विरोधी थे और कहते थे कि यह मानसिकता लोगों को कमज़ोर तथा आर्थिक रूप से ज़रूरतमंद बनाती है। वे आर्थिक रूप से सक्षम होने पर बहुत ज़ोर देते थे।
एक डैडी कुछ डॉलर बचाने के लिए जूझे। दूसरे ने निवेश उत्पन्न किए। एक डैडी ने मुझे सिखाया कि अच्छी नौकरी खोजने के लिए प्रभावशाली बायोडेटा कैसे लिखा जाए। दूसरे ने मुझे सिखाया कि शक्तिशाली व्यावसायिक और वित्तीय योजनाएँ कैसे लिखी जाएँ, ताकि मैं दूसरों को नौकरियाँ दे सकूँ।
दो शक्तिशाली डैडियों के साथ रहने की वजह से मुझे यह विश्लेषण करने का अवसर मिला कि अलग-अलग विचारों का जीवन पर कितना अलग-अलग असर होता है। मैंने गौर किया कि लोग दरअसल अपने विचारों से ही अपने जीवन को आकार देते हैं।
मिसाल के तौर पर, मेरे ग़रीब डैडी हमेशा कहा करते थे, “मैं कभी अमीर नहीं बन पाऊँगा।” और आगे चलकर उनकी यह भविष्यवाणी सही साबित हुई। दूसरी ओर, मेरे अमीर डैडी हमेशा ख़ुद को अमीर मानते थे। वे इस तरह की बातें कहते थे, “मैं अमीर हूँ और अमीर लोग ऐसा नहीं करते।” जब एक बड़े वित्तीय झटके के बाद वे दिवालिया होने की कगार पर थे, तब भी वे ख़ुद को अमीर आदमी ही कहते रहे। वे अपने समर्थन में यह कहते थे, “ग़रीब होने और कड़के होने में फ़र्क़ होता है। कड़का होना अस्थायी है। ग़रीब होना स्थायी है।”
मेरे ग़रीब डैडी कहते थे, “पैसे में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है,” या “पैसा महत्त्वपूर्ण नहीं है।” मेरे अमीर डैडी हमेशा कहते थे, “पैसा ही शक्ति है।”
हमारे विचारों की शक्ति को कभी नापा नहीं जा सकता, ना ही उनके प्रभाव को कभी पूरी तरह समझा जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद बचपन में ही मैं यह समझ गया था कि मुझे अपने विचारों पर ध्यान देना चाहिए और अपनी अभिव्यक्ति पर भी। मैंने ग़ौर किया कि मेरे ग़रीब डैडी के ग़रीब होने का कारण यह नहीं था कि वे कम पैसे कमाते थे (उनकी तनख़्वाह काफ़ी अच्छी थी)। वे तो अपने विचारों और कार्यों के कारण ग़रीब थे। दो डैडी होने के कारण मैं बचपन में ही बहुत सजग और जागरूक हो गया था कि मैं किन विचारों को अपनाऊँ। मैं किसकी बात मानूँ - अपने अमीर डैडी की या ग़रीब डैडी की?
हालाँकि वे दोनों ही शिक्षा और सीखने को बहुत महत्त्वपूर्ण मानते थे, लेकिन क्या सीखा जाए, इस बारे में दोनों की राय अलग-अलग थी। एक चाहते थे कि मैं मेहनत से पढ़ूँ, डिग्री हासिल करूँ और पैसे कमाने के लिए कोई अच्छी नौकरी हासिल कर लूँ। वे चाहते थे कि मैं किसी पेशे में जाने या वकील या अकाउंटेंट बनने के लिए अध्ययन करूँ और किसी बिज़नेस स्कूल से एमबीए करूँ। दूसरे डैडी मुझे प्रोत्साहित करते थे कि मैं अमीर बनने के लिए अध्ययन करूँ, ताकि मैं यह समझ लूँ कि पैसा कैसे काम करता है और यह सीख लूँ कि इससे अपने लिए कैसे काम कराया जाए। “मैं पैसे के लिए काम नहीं करता!” ये शब्द वे बार-बार दोहराते थे। “पैसा मेरे लिए काम करता है!”
ग़रीब होने और कड़के होने में फ़र्क़ होता है। कड़का होना अस्थायी है। ग़रीब होना स्थायी है।
नौ साल की उम्र में मैंने यह फ़ैसला किया कि मैं पैसे के बारे में अपने अमीर डैडी की बात मानूँगा और उन्हीं से सीखूँगा। इसका मतलब यह निर्णय लेना भी था कि मैं अपने ग़रीब डैडी की बातें अनसुनी कर दूँगा, हालाँकि उनके पास कॉलेज की ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ थीं।
अध्याय 1
सबक़ 1 : अमीर लोग पैसे के लिए काम नहीं करते
ग़रीब और मध्यवर्गीय लोग पैसे के लिए काम करते हैं। अमीर लोग पैसे से अपने लिए काम कराते हैं।
“डैडी, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि अमीर कैसे बना जाता है?”
मेरे डैडी ने शाम का अख़बार नीचे रख दिया। “बेटे, तुम अमीर क्यों बनना चाहते हो?”
“क्योंकि आज जिमी की मम्मी उनकी नई कैडिलैक में आई थीं और वे वीकएंड पर मौज-मस्ती करने के लिए उनके समुद्र तट वाले घर जा रहे थे। वह अपने तीन दोस्तों को साथ ले गया, लेकिन माइक और मुझे नहीं ले गया। उन्होंने हमसे कहा कि हमें इसलिए आमंत्रित नहीं किया गया, क्योंकि हम ग़रीब हैं।”
“उन्होंने ऐसा कहा?” मेरे डैडी ने अविश्वास में पूछा।
“हाँ, ऐसा ही कहा,” मैंने आहत अंदाज़ में जवाब दिया।
मेरे डैडी ने ख़ामोशी में अपना सिर हिलाया, अपना चश्मा नाक के पुल तक चढ़ाया और दोबारा अख़बार पढ़ने लगे। मैं जवाब के इंतज़ार में खड़ा रहा।
यह 1956 की बात थी। तब मैं नौ साल का था। संयोग से मैं उसी पब्लिक स्कूल में पढ़ता था, जहाँ अमीर लोगों के बच्चे पढ़ते थे। हमारा निवास हवाई में मूलतः शुगर प्लांटेशन, यानी गन्नों के बागान वाले कस्बे में था। बागान के मैनेजर और कस्बे के बाक़ी अमीर लोग, जैसे डॉक्टर, व्यवसाय के मालिक और बैंकर अपने बच्चों को इसी प्रारंभिक स्कूल में भेजते थे। छठे ग्रेड के बाद उनके बच्चों को आमतौर पर प्राइवेट स्कूलों में भेज दिया जाता था। चूँकि मेरा परिवार सड़क के इस तरफ़ रहता था, इसलिए मैं इस स्कूल में गया। अगर मैं सड़क के दूसरी तरफ़ रहता, तो मैं एक अलग स्कूल में जाता, जहाँ मेरे जैसे परिवारों के बच्चे पढ़ते थे। छठी ग्रेड के बाद मुझे इन्हीं बच्चों के साथ सरकारी इंटरमीडिएट और हाई स्कूल जाना था। उनके या मेरे लिए कोई प्राइवेट स्कूल नहीं था।
मेरे डैडी ने आख़िरकार अख़बार नीचे रख दिया। मैं जानता था कि वे सोच-विचार कर रहे थे।
“देखो, बेटे…” उन्होंने धीरे-धीरे शुरू किया। “अगर तुम अमीर बनना चाहते हो, तो तुम्हें पैसे बनाना सीखना होगा।”
मैंने पूछा, “मैं पैसे कैसे बनाऊँ?”
उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “देखो बेटा, अपने दिमाग़ का इस्तेमाल करो।” तब भी मैं उनका असली मतलब समझ गया था, “मैं तुम्हें इतना ही बताने वाला हूँ,” या “मुझे जवाब नहीं मालूम, इसलिए ख़ामख़्वाह शर्मिंदा मत करो।”
एक साझेदारी बन जाती है
अगली सुबह मैंने अपने सबसे अच्छे मित्र माइक को बताया कि मेरे डैडी ने क्या कहा था। जहाँ तक मैं जानता था, सिर्फ माइक और मैं ही उस स्कूल में पढ़ने वाले ग़रीब बच्चे थे। माइक भी संयोग से ही इस स्कूल में पढ़ रहा था। किसी ने कस्बे में स्कूलों की एक विभाजक रेखा खींच दी थी और इसी वजह से हम अमीर बच्चों वाले स्कूल में आ गए थे। वैसे हम वाक़ई ग़रीब नहीं थे, लेकिन हमें ग़रीबी का अहसास होता था, क्योंकि बाक़ी सभी लड़कों के पास बेसबॉल के नए दस्ताने, नई साइकलें, हर नई चीज़ होती थी।
मम्मी-डैडी हमें रोटी, कपड़ा और मकान जैसी सभी बुनियादी चीज़ें मुहैया कराते थे, लेकिन बस इतना ही। मेरे डैडी कहा करते थे, “अगर तुम कोई चीज़ चाहते हो, तो उसके लिए काम करो।” हम चीज़ें तो बहुत सारी चाहते थे, लेकिन नौ साल के लड़कों के लिए ज़्यादा काम उपलब्ध नहीं था।
माइक ने पूछा, “तो पैसे बनाने के लिए हम क्या करें?”
“मैं नहीं जानता,” मैंने कहा। “लेकिन क्या तुम मेरे साझेदार बनोगे?”
वह मान गया और शनिवार की उस सुबह माइक मेरा पहला कारोबारी साझेदार बन गया। हम सुबह से लेकर दोपहर तक सोचते रहे कि पैसा कैसे बनाया जाए। कभी-कभार हम उन ‘अमीर बच्चों’ के बारे में बातें करने लगते थे, जो जिमी के समुद्र तट वाले घर पर मज़े कर रहे होंगे। इससे दिल थोड़ा दुखता था, लेकिन वह दर्द अच्छा था, क्योंकि इसने हमें पैसे बनाने का तरीक़ा सोचते रहने के लिए प्रेरित किया। आख़िरकार, दोपहर को अचानक हमारे दिमाग़ में बिजली कौंधी। यह एक ऐसा विचार था, जो माइक को विज्ञान की एक पुस्तक में मिला था, जिसे उसने पढ़ा था। रोमांचित होकर हमने हाथ मिलाए और अब हमारी साझेदारी के पास एक कारोबार आ गया था।
अगले कई सप्ताह माइक और मैं आस-पास के इलाक़े में इधर-उधर दौड़ते रहे, दरवाज़े खटखटाते रहे और पड़ोसियों से पूछते रहे कि क्या वे अपने इस्तेमाल किए हुए टूथपेस्ट ट्यूब हमारे लिए रख सकते हैं। हैरानी के भाव के साथ ज़्यादातर वयस्कों ने मुस्कराते हुए हाँ कर दी। कुछ ने हमसे पूछा कि हम उनका क्या करेंगे। इसके जवाब में हमने कहा, “हम आपको नहीं बता सकते। यह एक कारोबारी रहस्य है।”
जैसे-जैसे सप्ताह गुज़र रहे थे, मेरी मम्मी का कष्ट बढ़ता जा रहा था। अपने कच्चे माल को इकट्ठा करने के लिए हमने जो जगह चुनी थी, वह उनकी वॉशिंग मशीन के पास थी। यह एक भूरा कार्डबोर्ड बॉक्स था, जिसमें कभी केचप की बोतलें रखी जाती थीं। अब उसमें टूथपेस्ट ट्यूब्स का हमारा छोटा सा ढेर बढ़ने लगा।
आख़िरकार मेरी मम्मी के सब्र का बाँध टूट गया। पड़ोसियों की गंदी, मुड़ी-तुड़ी, इस्तेमाल हो चुकी टूथपेस्ट ट्यूब्स को देख-देखकर उनका दिमाग़ ख़राब हो गया था। उन्होंने पूछा, “तुम लोग क्या कर रहे हो? और मैं यह दोबारा नहीं सुनना चाहती कि यह एक कारोबारी रहस्य है। इस कचरे को साफ़ करो, वरना मैं इसे बाहर फेंक दूँगी।”
माइक और मैंने हाथ-पैर जोड़कर उनसे मोहलत माँगी। हमने उन्हें बताया कि हमारे पास जल्द ही पर्याप्त ट्यूब्स हो जाएँगी और फिर हम उत्पादन शुरू कर देंगे। हमने उन्हें जानकारी दी कि हम दो-तीन पड़ोसियों का इंतज़ार कर रहे हैं, जिनकी टूथपेस्ट ट्यूब्स ख़त्म होने वाली थीं और हमें मिलने वाली थीं। मम्मी ने हमें एक सप्ताह की मोहलत दे दी।
उत्पादन शुरू करने की तारीख़ योजना से ज़्यादा जल्दी आ गई थी और दबाव बढ़ गया था। मेरी पहली साझेदारी पर ख़तरा मँडरा रहा था, क्योंकि मेरी ख़ुद की मम्मी ने जगह ख़ाली करने का नोटिस थमा दिया था! यह माइक का काम था कि वह पड़ोसियों से टूथपेस्ट जल्दी ख़त्म करने को कहे। साथ में वह उनसे यह भी कहता था कि उनके दाँतों के डॉक्टर का भी यही कहना था कि उन्हें दिन में ज़्यादा बार ब्रश करना चाहिए। मैं उत्पादन की प्रक्रिया को ठीक-ठाक करने में जुट गया।
एक दिन मेरे डैडी एक दोस्त के साथ घर आए। उन्होंने देखा कि नौ साल के दो लड़के पोर्च में पूरी गति से उत्पादन करने में जुटे हैं। हर कहीं बारीक सफ़ेद चूरा फैला हुआ था। एक लंबी टेबल पर स्कूल के दूध के छोटे कार्टन थे और हमारे परिवार का हिबाची ग्रिल लाल सुर्ख कोयलों के साथ अधिकतम गर्मी पर दहक रहा था।
डैडी सावधानी से चलकर आए। उन्हें पोर्च के शुरू में ही कार खड़ी करना पड़ी, क्योंकि उत्पादन की प्रक्रिया कार की जगह तक पहुँचने में बाधा डाल रही थी। जब वे और उनके दोस्त क़रीब आए, तो उन्होंने देखा कि स्टील का एक बर्तन कोयलों के ऊपर रखा था, जिसमें टूथपेस्ट ट्यूब्स पिघल रही थीं। उस ज़माने में टूथपेस्ट प्लास्टिक की ट्यूब्स में नहीं आते थे। ट्यूब्स सीसे से बनती थीं। इसलिए पेंट के जल जाने पर हम ट्यूब्स को स्टील के छोटे बर्तन में डाल देते थे। वे पिघलने लगती थीं और द्रव बन जाती थीं। इस पिघले हुए सीसे को हम दूध के कार्टन में बने एक छोटे छेद से अंदर डाल रहे थे।
दूध के कार्टन्स में प्लास्टर ऑफ़ पैरिस भरा था। हर तरफ़ फैला सफ़ेद चूरा और कुछ नहीं, प्लास्टर ऑफ़ पैरिस ही था। जल्दबाज़ी में उसके बैग में मेरी लात पड़ गई थी, जिससे पूरा इलाक़ा ऐसा लग रहा था, जैसे वहाँ अभी-अभी बर्फ़ का तूफ़ान आया हो। दूध के कार्टन के भीतर प्लास्टर ऑफ़ पैरिस के साँचे थे।
मेरे डैडी और उनके दोस्त ने देखा, जब हम पिघले हुए सीसे को सावधानी से प्लास्टर ऑफ़ पैरिस के क्यूब के ऊपर छोटे छेद में डालते रहे।
“सँभलकर,” डैडी ने कहा।
मैंने ऊपर देखे बिना सिर हिला दिया।
आख़िर जब सीसा डालने का काम ख़त्म हो गया, तो मैंने स्टील का बर्तन नीचे रखा और अपने डैडी की तरफ़ देखकर मुस्कराया।
“तुम लोग क्या कर रहे हो?” उन्होंने मुस्कराते हुए सावधानी से पूछा।
“हम वही कर रहे हैं, जो आपने मुझसे करने को कहा था। हम अमीर बनने जा रहे हैं,” मैंने कहा।
“हाँ,” माइक ने मुस्कराते हुए कहा और अपना सिर हिलाया। “हम दोनों साझेदार हैं।”
मेरे डैडी ने पूछा, “और प्लास्टर के इन साँचों में क्या है?”
“देखिए,” मैंने कहा। “इसमें एक बहुत अच्छी चीज़ है।”
छोटी हथौड़ी से मैंने उस सील को ठोका, जिसने क्यूब को बीच से खोल दिया। मैंने प्लास्टर के साँचे का ऊपरी आधा हिस्सा बाहर निकाला और सीसे का पाँच सेंट का सिक्का बाहर टपक गया।
“हे भगवान!” मेरे डैडी ने कहा। “तुम लोग सीसे के सिक्के ढाल रहे हो।”
“बिलकुल सही,” माइक ने कहा। “हम वही कर रहे हैं, जो आपने हमसे करने को कहा था। हम पैसे बना रहे हैं।”
मेरे डैडी के दोस्त मुड़े और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। मेरे डैडी ने भी मुस्कराकर सिर हिलाया। आग और टूथपेस्ट ट्यूब्स के ख़ाली बॉक्स के साथ ही उनके सामने दो छोटे लड़के थे, जो सफ़ेद धूल से ढँके होकर ख़ूब मुस्कराए जा रहे थे।
उन्होंने हमसे कहा कि हम सब कुछ छोड़कर उनके साथ चलें और घर की सामने वाली सीढ़ियों पर बैठें। मुस्कराते हुए उन्होंने नरमी से समझाया कि ‘जालसाज़ी’ शब्द का क्या मतलब होता है।
हमारे सपने चूर-चूर हो गए। “आपका मतलब है, यह ग़ैर-क़ानूनी है?” माइक ने काँपती आवाज़ में पूछा।
“छोड़ो भी,” मेरे डैडी के दोस्त ने कहा। “हो सकता है, वे अपनी जन्मजात प्रतिभा का विकास कर रहे हों।”
डैडी ने उन्हें आँखें घूर कर देखा।
“हाँ, यह ग़ैर-क़ानूनी है,” मेरे डैडी ने नरमी से कहा। “लेकिन तुम लड़कों ने यह दिखा दिया है कि तुममें बहुत रचनात्मकता और मौलिक विचार हैं। इसी तरह आगे बढ़ते रहो। मुझे तुम पर सचमुच गर्व है!”
निराश होकर माइक और मैं लगभग बीस मिनट तक ख़ामोशी से बैठे रहे। इसके बाद अपने फैलाए कचरे को साफ़ करने लगे। पहले ही दिन हमारा कारोबार चौपट हो गया था। चूरे को झाड़ू से साफ़ करते हुए मैंने माइक की ओर देखा और कहा, “मुझे लगता है कि जिमी और उसके दोस्त सही कहते हैं। हम वाक़ई ग़रीब हैं।”
जब मैंने यह बात कही, तो मेरे डैडी जा ही रहे थे। उन्होंने कहा, “लड़कों, तुम तभी ग़रीब कहलाओगे, जब तुम हार मान लोगे। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तुमने कुछ किया। ज़्यादातर लोग अमीर बनने की सिर्फ़ बातें करते हैं और सपने देखते हैं। तुमने कुछ किया है। मुझे तुम दोनों पर बहुत नाज़ है। मैं दोबारा कहूँगा कि इसी तरह आगे बढ़ते रहो। हौसला मत छोड़ो।”
माइक और मैं ख़ामोशी में वहाँ खड़े रहे। ये शब्द सुनने में तो अच्छे लगते थे, लेकिन इनसे हमें यह पता नहीं चलता था कि हम क्या करें।
“डैडी, ऐसा क्यों है कि आप अमीर नहीं हैं?” मैंने पूछा।
“क्योंकि मैंने एक स्कूल टीचर बनने का विकल्प चुना था। स्कूल के टीचर दरअसल अमीर बनने के बारे में नहीं सोचते। हमें बस पढ़ाना और सिखाना पसंद होता है। काश! मैं तुम्हारी मदद कर सकता, लेकिन मैं सचमुच नहीं जानता कि पैसे कैसे बनाना है।”
माइक और मैं मुड़कर दोबारा सफ़ाई करने लगे।
“मैं समझता हूँ,” मेरे डैडी बोले। “अगर तुम लोग यह सीखना चाहते हो कि अमीर कैसे बनना है, तो मुझसे मत पूछो। माइक, यह सवाल अपने डैडी से पूछो।”
“मेरे डैडी?” माइक ने हैरानी के भाव के साथ कहा।
“हाँ, तुम्हारे डैडी,” मेरे डैडी ने मुस्कराते हुए दोहराया। “तुम्हारे डैडी और मेरा बैंकर एक ही है और वह तुम्हारे डैडी के गुण गाता है। उसने मुझे कई बार बताया है कि जब पैसे बनाने की बात आती है, तो तुम्हारे डैडी कमाल के हैं।”
“मेरे डैडी?” माइक ने अविश्वास में दोबारा पूछा। “तो फिर ऐसा कैसे है कि स्कूल के अमीर बच्चों की तरह हमारे पास एक शानदार कार और आलीशान मकान नहीं है?”
“शानदार कार और आलीशान मकान का यह मतलब नहीं है कि तुम अमीर हो या तुम पैसे बनाने की कला जानते हो,” मेरे डैडी ने जवाब दिया। “जिमी के डैडी गन्ने के बागान में काम करते हैं। वह मुझसे ज़्यादा अलग नहीं है। वह एक कंपनी में काम करता है और मैं सरकारी ऑफ़िस में। कंपनी ने उसे कार दे रखी है। शकर की कंपनी आर्थिक परेशानी में है और जल्द ही हो सकता है कि जिमी के डैडी के पास कुछ ना रहे। तुम्हारे डैडी अलग हैं, माइक। ऐसा लगता है कि वे एक साम्राज्य बना रहे हैं और मेरा अनुमान है कि कुछ ही सालों में वे बहुत अमीर आदमी बन जाएँगे।”
यह सुनकर माइक और मैं दोबारा रोमांचित हो गए। नए उत्साह के साथ हम अपने डूबे हुए व्यवसाय के मलबे को साफ़ करने लगे। सफ़ाई करते-करते हमने योजना बनाई कि माइक के डैडी से कब और कैसे बात की जाए। समस्या यह थी कि माइक के डैडी बहुत ज़्यादा काम करते थे और अक्सर देर रात तक घर नहीं लौटते थे। उसके डैडी वेयरहाउज़ेस, एक निर्माण कंपनी, स्टोरों की श्रंखला और तीन रेस्तराँओं के मालिक थे। रेस्तराँओं की वजह से ही उन्हें घर लौटने में देर हो जाती थी।
सफ़ाई पूरी होने के बाद माइक बस पकड़कर घर चला गया। उसने बताया था कि उस रात जब उसके डैडी घर लौटेंगे, तो वह उनसे बात करके पूछेगा कि क्या वे हमें अमीर बनने का तरीक़ा सिखा सकते हैं। माइक ने वादा किया कि जैसे ही उसकी डैडी से बात हो जाएगी, वह मुझे फ़ोन करेगा, चाहे कितनी ही देर क्यों ना हो जाए।
फ़ोन की घंटी रात को 8.30 बजे बजी।
“ठीक है,” मैंने कहा। “अगले शनिवार” मैंने फ़ोन नीचे रख दिया। माइक के डैडी हमसे मिलने को तैयार हो गए थे।
शनिवार सुबह मैंने 7.30 बजे वाली बस पकड़ी, ताकि कस्बे के ग़रीब हिस्से तक जा सकूँ।
सबक़ शुरू होते हैं
माइक और मैं सुबह आठ बजे उसके डैडी से मिले। वे पहले से ही व्यस्त थे और एक घंटे से अधिक समय से काम में लगे थे। जब मैं उनके साधारण, छोटे और साफ़-सुथरे घर की ओर बढ़ा, तो मैंने देखा कि उनका कंस्ट्रक्शन सुपरवाइज़र अपने पिकअप ट्रक में बैठकर वहाँ से जा रहा था। माइक मुझे दरवाज़े पर ही मिल गया।
उसने दरवाज़ा खोलते हुए कहा, “डैडी फ़ोन पर हैं और उन्होंने पीछे के पोर्च में इंतज़ार करने को कहा है।”
जब मैंने उस पुराने मकान की चौखट लाँघी, तो लकड़ी का पुराना फ़र्श आवाज़ें करने लगा। दरवाज़े के भीतर सस्ता सा गलीचा था। गलीचा वहाँ इसलिए बिछाया गया था, ताकि फ़र्श पर पड़े अनगिनत क़दमों के निशानों को छिपाया जा सके, हालाँकि गलीचा साफ़ था, लेकिन इसे बदलने की ज़रूरत थी।
जब मैं सँकरे लिविंग रूम में दाख़िल हुआ, तो मेरा दम घुटने लगा। यह पुरानी बदबू वाले फ़र्नीचर से भरा था, जिसे निश्चित रूप से संग्रहालय में रखा जाना चाहिए था। सोफ़े पर दो महिलाएँ बैठी थीं, जिनकी उम्र मेरी माँ से थोड़ी ज़्यादा होगी। महिलाओं के सामने एक आदमी कामकाजी पोशाक में बैठा था। वह खाकी स्लैक्स और खाकी शर्ट पहने था। इन पर अच्छी प्रेस तो थी, लेकिन स्टार्च नहीं था। वह चमचमाते कामकाजी जूते भी पहने था। उसकी उम्र मेरे डैडी से लगभग 10 साल ज़्यादा होगी। जब माइक और मैं उसके पास से निकलकर पिछले पोर्च की ओर गए, तो वह मुस्कराया। मैं भी संकोची अंदाज़ में मुस्करा दिया।
“ये लोग कौन हैं?” मैंने पूछा।
“ओह, वे मेरे डैडी के कर्मचारी हैं। यह आदमी उनके वेयरहाउज़ेस सँभालता है और महिलाएँ रेस्तराँओं की मैनेजर हैं। आते समय तुमने उस निर्माण सुपरवाइज़र को तो देख ही लिया होगा, जो यहाँ से 50 मील दूर एक सड़क परियोजना पर काम कर रहा है। उनका दूसरा सुपरवाइज़र भी है, जो बहुत से मकान बना रहा है, लेकिन वह तुम्हारे यहाँ आने से पहले ही जा चुका था।”
“क्या ऐसा हमेशा ही होता है?” मैंने पूछा।
“हमेशा तो नहीं, लेकिन अक्सर होता है,” माइक ने मुस्कराते हुए कहा, जब उसने मेरे बगल में बैठने के लिए एक कुर्सी खींची।
माइक बोला, “मैंने डैडी से पूछा था कि क्या वे हमें पैसा बनाना सिखाएँगे।”
“ओह, और उन्होंने क्या जवाब दिया?” मैंने सधा हुआ सवाल किया।
“देखो, पहले तो उनके चेहरे पर हँसी का भाव आया, पर फिर कुछ सोचकर वे बोले कि वे हमारे सामने एक प्रस्ताव रखेंगे।”
“ओह,” मैंने कहा और दीवार से अपनी कुर्सी टिकाते हुए अगले पाये उठा लिए। मैं कुर्सी के पिछले दो पायों के सहारे बैठ गया।
माइक ने भी ऐसा ही किया।
मैंने पूछा, “क्या तुम जानते हो कि वे क्या प्रस्ताव रखने वाले हैं?”
“नहीं, लेकिन हमें जल्दी ही पता चल जाएगा।”
अचानक माइक के डैडी जर्जर पुराने दरवाज़े से होकर पोर्च में दाख़िल हुए। माइक और मैं उछलकर खड़े हो गए, सम्मान के कारण नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि हम चौंक गए थे।
“तैयार हो, लड़कां?” उन्होंने पूछा, जब उन्होंने हमारे साथ बैठने के लिए एक कुर्सी खींची।
हमने अपना सिर हिलाया, फिर हमने अपनी कुर्सियाँ दीवार से दूर खींचीं और उन्हें उनके सामने बैठने के लिए सरका लिया।
वे लंबे-चौड़े थे, लगभग छह फ़ुट लंबे और 200 पौंड के। मेरे डैडी ज़्यादा लंबे थे, लगभग इतने ही वज़न के और माइक के डैडी से पाँच साल ज़्यादा बड़े, हालाँकि उनकी प्रजाति एक नहीं थी, लेकिन वे लगभग एक से ही दिखते थे। शायद उनमें एक जैसी ऊर्जा थी।
“माइक कहता है कि तुम पैसे बनाना सीखना चाहते हो? क्या यह सही है, रॉबर्ट?”
मैंने अपना सिर जल्दी से हिलाया, लेकिन थोड़े डर के साथ। उनके शब्दों और मुस्कान में बहुत शक्ति थी।
“ठीक है, तो यह रहा मेरा प्रस्ताव। मैं तुम लोगों को सिखाऊँगा, लेकिन मैं यह काम तुम्हारे क्लासरूम जैसी शैली में नहीं करूँगा। तुम मेरे लिए काम करोगे, तो बदले में मैं तुम्हें सिखाऊँगा। तुम मेरे लिए काम नहीं करोगे, तो मैं तुम्हें नहीं सिखाऊँगा। तुम्हारे काम करते समय मैं तुम्हें ज़्यादा तेज़ी से सिखा सकता हूँ, लेकिन अगर तुम बस बैठकर सुनते रहो, जैसा तुम स्कूल में करते हो, तो मेरा समय बर्बाद होगा। यह मेरा प्रस्ताव है। या तो मान लो, वरना छोड़ दो।”
मैंने पूछा, “ओह, क्या मैं फ़ैसला करने से पहले एक सवाल पूछ सकता हूँ?”
“नहीं। इसे स्वीकार कर लो या छोड़ दो। मेरे पास इतना ज़्यादा काम है कि मैं अपना वक़्त बर्बाद नहीं कर सकता। अगर तुममें तुरंत निर्णय लेने की क्षमता नहीं है, तो तुम वैसे भी कभी पैसे कमाना नहीं सीख पाओगे। अवसर आते हैं और चले जाते हैं। इसलिए तुरंत निर्णय लेने की क्षमता एक महत्त्वपूर्ण योग्यता है। तुमने जैसा चाहा था, वैसा अवसर तुम्हारे सामने मौजूद है। अगले दस सेकंड में या तो तुम्हारी शिक्षा शुरू हो जाएगी या फिर यह हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी।” माइक के डैडी ने चिढ़ाने वाली मुस्कान के साथ कहा।
“मंजूर,” मैंने कहा।
“मंजूर,” माइक भी बोला।
20 साल पहले आज…
निर्णय लेने की क्षमता
संसार ज़्यादा तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। शेयर बाज़ार के सौदे मिलीसेकंडों में किए जाते हैं। सौदे मिनटों में इंटरनेट पर आते और चले जाते हैं। ज़्यादा से ज़्यादा लोग अच्छे सौदों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इसलिए आप जितनी तेज़ी से निर्णय ले सकते हैं, आपके अवसरों को जकड़ने की संभावना उतनी ही ज़्यादा संभावना है होती है - किसी दूसरे के ऐसा करने से पहले।
“बहुत बढ़िया,” माइक के डैडी ने कहा। “10 मिनट में मिसिज़ मार्टिन आ जाएँगी। जब मेरी उनसे बातचीत हो जाए, तो तुम उनके साथ मेरे छोटे सुपरमार्केट में चले जाना और वहाँ काम शुरू कर देना। मैं तुम्हें 10 सेंट प्रति घंटे की दर से तनख़्वाह दूँगा और तुम हर शनिवार को तीन घंटे काम करोगे।”
“लेकिन आज तो मेरा सॉफ्टबॉल मैच है,” मैंने कहा।
माइक के डैडी ने आवाज़ धीमी करके कड़क लहज़े में कहा, “या तो मान लो, वरना छोड़ दो।”
“मैं इसे मानता हूँ,” मैंने जवाब दिया और खेलने के बजाय काम करने तथा सीखने का विकल्प चुना।
तीस सेंट मिलने के बाद
उस दिन सुबह 9 बजे माइक और मैं मिसिज़ मार्टिन के लिए काम कर रहे थे। वे भली और धैर्यवान महिला थीं। वे हमेशा कहती थीं कि माइक और मुझे देखकर उन्हें अपने दोनों बच्चों की याद आ जाती थी, जो अब बड़े होकर दूर चले गए हैं, हालाँकि वे भली थीं, लेकिन वे कड़ी मेहनत में यक़ीन करती थीं और हमें काम में लगाए रखती थीं। हम तीन घंटे तक डिब्बाबंद सामानों को शैल्फ़ से उतारते थे, फ़ेदर डस्टर से हर डिब्बे की धूल साफ़ करते थे और फिर उन्हें दोबारा क़रीने से जमा देते थे। यह बहुत ही नीरस और थकाऊ काम था।
माइक के डैडी को मैं अपना अमीर डैडी कहता हूँ और उनके पास इस तरह के नौ छोटे सुपरमार्केट थे, जिनमें से हर एक में बड़ी कार पार्किंग थी। वे 7-इलेवन कन्वीनिएंस स्टोर्स के शुरुआती संस्करण थे, छोटे किराना स्टोर, जहाँ लोग दूध, ब्रेड, बटर और सिगरेट जैसे सामान ख़रीदते थे। समस्या यह थी कि तब हवाई में एयर-कंडीशनिंग का ज़्यादा चलन नहीं था और गर्मी के कारण स्टोर्स के दरवाज़े बंद नहीं रहते थे। सड़क और पार्किंग की तरफ़ वाले स्टोर के दरवाज़े खुले रहते थे। जब भी कोई कार पास से गुज़रती थी या पार्किंग में आकर खड़ी होती थी, तो हर बार धूल का गुबार उठता था और स्टोर में घुसकर डिब्बों पर बैठ जाता था। हम जानते थे कि जब तक एयर-कंडीशनिंग नहीं आएगा, तब तक हमारे पास नौकरी रहेगी।
तीन सप्ताह तक माइक और मैं मिसिज़ मार्टिन के पास जाते रहे तथा तीन घंटे तक काम करते रहे। दोपहर तक हमारा काम ख़त्म हो जाता था और वे हमारे हाथ में तीन छोटे सिक्के थमा देती थीं। देखिए, 1950 के दशक के बीच, नौ साल की उम्र में भी 30 सेंट कमाने में कोई ख़ास ख़ुशी नहीं होती थी। तब कॉमिक बुक्स 10 सेंट में आती थीं, इसलिए मैं अपना पैसा आमतौर पर कॉमिक बुक्स पर ख़र्च करता था और फिर घर चला जाता था।
चौथे सप्ताह के बुधवार तक मैं यह काम छोड़ने का मन बना चुका था। मैं काम करने के लिए सिर्फ़ इसलिए तैयार हुआ था, क्योंकि मैं माइक के डैडी से पैसे बनाना सीखना चाहता था और अब मैं एक घंटे में 10 सेंट की ग़ुलामी कर रहा था। उससे भी बढ़कर, उस पहले शनिवार के बाद मैंने माइक के डैडी को देखा तक नहीं था।
“मैं काम छोड़ रहा हूँ,” मैंने लंच के समय माइक को बताया। स्कूल नीरस था और अब मेरे पास शनिवार भी नहीं थे, जिनकी मैं राह देख सकूँ, लेकिन यह 30 सेंट थे, जिनकी वजह से मेरा दिमाग़ ख़राब हो गया था।
“तुम किस बात पर हँस रहे हो?” मैंने ग़ुस्से और कुंठा में पूछा।
“डैडी ने कहा था कि ऐसा ही होगा। उन्होंने कहा था कि जब तुम छोड़ने का फ़ैसला कर लो, तब वे तुमसे मिलना चाहेंगे।”
“क्या?” मैंने आवेश में कहा। “वे इंतज़ार कर रहे थे कि मैं इससे उकता जाऊँ?”
“कुछ-कुछ,” माइक बोला। “डैडी अलग तरह के हैं। वे तुम्हारे डैडी की तरह नहीं सिखाते हैं। तुम्हारे मम्मी-डैडी बहुत बोलते हैं। मेरे डैडी शांत हैं और कम बोलते हैं। इसलिए तुम इस शनिवार तक इंतज़ार कर लो। मैं उन्हें बता दूँगा कि तुम काम छोड़ने का फ़ैसला कर चुके हो।”
“तुम्हारा मतलब है, मेरे साथ नाटक खेला गया है?”
“नहीं, दरअसल नहीं, लेकिन शायद हो भी सकता है। डैडी शनिवार को बता देंगे।”
शनिवार को क़तार में इंतज़ार करना
मैं माइक के डैडी का सामना करने को तैयार था। मेरे असल डैडी भी उन पर नाराज़ थे। मेरे असल डैडी, जिन्हें मैं ग़रीब डैडी कहता हूँ, सोचते थे कि अमीर डैडी बाल श्रम क़ानूनों का उल्लंघन कर रहे थे और उनकी जाँच होनी चाहिए।
मेरे शिक्षित, ग़रीब डैडी ने मुझसे वह माँगने को कहा, जिसका मैं हक़दार था - कम से कम 25 सेंट प्रति घंटा। ग़रीब डैडी ने मुझसे कहा कि अगर मेरी तनख़्वाह नहीं बढ़ती है, तो मुझे तुरंत नौकरी छोड़ देनी चाहिए।
“वैसे भी तुम्हें उस घटिया नौकरी की ज़रूरत नहीं है,” मेरे ग़रीब डैडी ने तैश में कहा।
शनिवार की सुबह आठ बजे मैं माइक के घर पहुँचा और दरवाज़ा माइक के डैडी ने खोला।
“बैठ जाओ और क़तार में इंतज़ार करो,” उन्होंने मेरे दाख़िल होते समय कहा, फिर वे मुड़े और बेडरूम के पास बने अपने छोटे ऑफ़िस में ग़ायब हो गए।
मैंने कमरे में चारों ओर देखा, मगर मुझे माइक कहीं नहीं दिखा। अजीब सा महसूस करते हुए मैं सावधानी से उन दोनों महिलाओं के पास बैठ गया, जो मुझे चार सप्ताह पहले वहीं दिखी थीं। वे मुस्कराईं और सोफ़े पर थोड़ा खिसककर मेरे लिए जगह बना दी।
पैंतालीस मिनट गुज़र गए और मैं आगबबूला होने लगा। तक़रीबन 30 मिनट पहले दोनों महिलाएँ उनसे मिलकर वहाँ से जा चुकी थीं। एक अधिक उम्र का आदमी वहाँ 20 मिनट तक बैठा था और अब वह भी निकलकर जा चुका था।
मकान ख़ाली था और यहाँ मैं हवाई के उस सुहाने दिन एक सीलन भरे, अँधेरे लिविंग रूम में बैठा था, और एक लालची आदमी से बात करने का इंतज़ार कर रहा था, जो बच्चों का शोषण करता था। मुझे ऑफ़िस में इधर-उधर क़ागज़ सरकने की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। वे फ़ोन पर बात कर रहे थे और मुझे नज़रअंदाज़ कर रहे थे। मैं उनसे मिले बिना ही बाहर जाने के लिए तैयार था, लेकिन किसी कारण मैं रुक गया।
आख़िर 15 मिनट बाद ठीक नौ बजे, अमीर डैडी अपने ऑफ़िस के बाहर निकले। बिना कुछ कहे उन्होंने मुझे हाथ से ऑफ़िस में आने का इशारा किया।
अमीर डैडी ने अपने ऑफ़िस की कुर्सी को घुमाते हुए कहा, “मुझे लगता है कि तुम वेतन बढ़वाना चाहते हो, या तुम नौकरी छोड़ने वाले हो।”
रुआँसी आवाज़ में मेरे मुँह से निकला, “देखिए, आप समझौते की अपनी शर्त पूरी नहीं कर रहे हैं।” 9 साल की उम्र में किसी वयस्क से मुठभेड़ करना सचमुच डरावना था।
“आपने कहा था कि अगर मैं आपके लिए काम करूँगा, तो आप मुझे सिखाएँगे। देखिए, मैंने आपके लिए काम किया है। मैंने मेहनत से काम किया है। आपकी ख़ातिर काम करने के लिए मैंने अपने बेसबॉल मैचों की कुर्बानी दी है, लेकिन आपने अपना वादा नहीं निभाया और मुझे कुछ भी नहीं सिखाया। आप धोखेबाज़ हैं, जैसा कि शहर का हर व्यक्ति आपके बारे में कहता है। आप लालची हैं। आप सिर्फ़ पैसे कमाना चाहते हैं और अपने कर्मचारियों की ज़रा भी परवाह नहीं करते हैं। आपने मुझसे ख़ामख़्वाह इंतज़ार कराया और मेरे प्रति कोई सम्मान नहीं दिखाया। में छोटा हूँ, लेकिन इससे बेहतर व्यवहार का हकदार हूँ।”
अमीर डैडी अपनी घूमने वाली कुर्सी में आगे-पीछे झूलने लगे। अपनी ठुड्डी पर हाथ रखकर उन्होंने मुझे एकटक देखा।
“बुरा नहीं है,” उन्होंने कहा। “एक महीना भी नहीं हुआ है और तुम वही भाषा बोल रहे हो, जो मेरे ज़्यादातर कर्मचारी बोलते हैं।”
“क्या?” मैंने पूछा। मैं समझ नहीं पाया कि वे क्या कह रहे थे, इसलिए मैंने अपना दुखड़ा जारी रखा। “मैंने सोचा था कि आप अपना वादा निभाएँगे और मुझे सिखाएँगे। इसके बजाय आप मुझ पर अत्याचार कर रहे हैं? यह ज़ुल्म है। सरासर ज़ुल्म है।”
“मैं तुम्हें सिखा रहा हूँ,” अमीर डैडी ने धीमे स्वर में कहा।
“आपने मुझे क्या सिखाया है? कुछ भी नहीं!” मैंने ग़ुस्से से कहा। “जब मैं चंद सिक्कों के बदले काम करने के लिए तैयार हो गया, उसके बाद से आपने मुझसे बात तक नहीं की है। एक घंटे के बदले दस सेंट! हाह! मुझे तो सरकार से आपकी शिकायत करनी चाहिए। आप जानते हैं, हमारे देश में बाल श्रम क़ानून हैं। आप तो जानते ही हैं, मेरे डैडी सरकार के लिए काम करते हैं।”
“शाबाश!” अमीर डैडी ने कहा। “अब तुम उन अधिकतर कर्मचारियों की भाषा बोल रहे हो, जो मेरे लिए काम करते थे - ऐसे कर्मचारी जिन्हें मैंने नौकरी से निकाल दिया या जिन्होंने ख़ुद नौकरी छोड़ दी।”
20 साल पहले आज…
सीखने का उल्टा पिरामिड
एडगर डेल को हमें यह सिखाने का श्रेय जाता है कि हम सबसे अच्छी तरह कार्य करके - असली चीज़ करके या सिमुलेशन के ज़रिये - सीखते हैं। कई बार इसे अनुभवजन्य सीखना कहा जाता है। डेल और उनका सीखने का शंकु हमें बताता है कि पढ़ना और व्याख्यान सुनना सीखने के सबसे कम असरदार तरीक़े हैं। और हम सभी जानते हैं कि ज़्यादातर स्कूल हमें किस तरह सिखाते हैं : पढ़ाकर और व्याख्यान सुनाकर।
“तो इस बारे में आपको क्या कहना है?” मैंने पूछा और मुझे अहसास था कि कम उम्र के बावजूद मैं काफ़ी बहादुरी दिखा रहा था। “आपने मुझसे झूठ बोला। मैंने आपकी ख़ातिर काम किया और आपने अपना वादा पूरा नहीं किया। आपने मुझे कुछ नहीं सिखाया।”
“कौन कहता है कि मैंने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया?” अमीर डैडी ने शांति से पूछा।
“देखिए, इस दौरान आपने कभी मुझसे बात नहीं की। मैंने तीन सप्ताह तक काम किया और आपने मुझे कुछ नहीं सिखाया,” मैंने मुँह बनाकर कहा।
“क्या सिखाने का मतलब बोलना या व्याख्यान देना ही है?” अमीर डैडी ने पूछा।
“और क्या,” मैंने जवाब दिया।
“इस तरह वे तुम्हें स्कूल में सिखाते हैं,” उन्होंने मुस्कराते हुए कहा। “लेकिन जीवन तुम्हें इस तरह से नहीं सिखाता है और मेरा मानना है कि जीवन सबसे अच्छा शिक्षक होता है। अधिकतर समय जीवन आपसे बात नहीं करता है। यह आपको एक तरह से धक्का देता है। हर धक्के के साथ मानो जीवन कहता है, ‘जाग जाओ। कोई चीज़ है, जो मैं तुम्हें सिखाना चाहता हूँ।’ “
“यह आदमी कैसी बेसिरपैर की बातें कर रहा है?” मैंने मन ही मन सोचा। “जीवन मुझे धक्का दे रहा है, यानी वह मुझसे बात कर रहा है?” अब मैं जान गया था कि मुझे अपनी नौकरी हर हाल में छोड़ देनी चाहिए। मैं एक ऐसे आदमी से बात कर रहा था, जिसे हवालात में बंद करने की ज़रूरत थी।
“अगर तुम जीवन के सबक़ सीखते हो, तो इससे तुम्हें बहुत फ़ायदा होगा। अगर नहीं सीखोगे, तो जीवन तुम्हें बस चारों तरफ़ धक्के देता रहेगा। लोग दो चीज़ें करते हैं। कुछ लोग जीवन के धक्के खाते रहते हैं। दूसरे नाराज़ होते हैं और पलटकर धक्का देते हैं, लेकिन वे अपने बॉस या अपनी नौकरी या अपने पति या पत्नी के खिलाफ़ अपना ग़ुस्सा निकालते हैं। वे नहीं जानते हैं कि यह जीवन है, जो उन्हें धक्के दे रहा है।”
मुझे पता नहीं था कि वे किस बारे में बोल रहे थे।
“जीवन हम सभी को धक्के मारता है। कुछ लोग हार मान लेते हैं और बाक़ी जूझते हैं। कुछ लोग सबक़ सीख लेते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। वे जीवन के धक्कों का स्वागत करते हैं। इन गिने-चुने लोगों के लिए इसका मतलब यह होता है कि उन्हें कुछ सीखने की ज़रूरत है और उन्हें कुछ सीख लेना चाहिए। वे सीख लेते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। ज़्यादातर लोग छोड़ देते हैं और कुछ लोग तुम्हारी तरह लड़ते भी हैं।”
अमीर डैडी खड़े हो गए और उन्होंने लकड़ी की पुरानी, जर्जर खिड़की को बंद किया, जिसे मरम्मत की ज़रूरत थी। “अगर तुम यह सबक़ सीख लेते हो, तो तुम बड़े होकर बुद्धिमान, दौलतमंद और सुखी युवक बनोगे। अगर तुम नहीं सीखते हो, तो तुम ज़िंदगीभर अपनी समस्याओं के लिए अपनी नौकरी, कम तनख़्वाह या बॉस को दोष देते रहोगे। तुम जीवनभर उस बड़े मौक़े की उम्मीद करते रहोगे, जो आकर तुम्हारी तमाम आर्थिक समस्याओं को हल कर दे।”
अमीर डैडी ने यह देखने के लिए मेरी तरफ़ देखा कि क्या मैं उनकी बात सुन रहा था। उनकी आँखें मेरी नज़रों से मिलीं। हम एक दूसरे को एकटक देखते रहे और अपनी आँखों से संवाद करते रहे। आख़िर, जब मैं उनके संदेश का मतलब समझ गया, तो मैंने अपनी नज़रें फेर लीं। मैं जान गया कि उनकी बात सही थी। मैं उन्हें दोष दे रहा था, जबकि सीखने का आग्रह मैंने ख़ुद किया था। मैं जूझ रहा था।
अमीर डैडी ने आगे कहा, “अगर तुम इस तरह के इंसान हो, जिसमें ज़रा भी हिम्मत नहीं है, तो जीवन के हर थपेड़े, हर धक्के के सामने तुम हार मान लोगे। अगर तुम इस तरह के इंसान हो, तो तुम ज़िंदगीभर सुरक्षित तरीक़े से खेलते रहोगे, सही चीज़ें करोगे और किसी ऐसे वक़्त का इंतज़ार करोगे, जो कभी आएगा ही नहीं, फिर तुम एक नीरस बूढ़े आदमी की तरह मर जाओगे। तुम्हारे बहुत से दोस्त तुम्हें सचमुच पसंद करते होंगे, क्योंकि तुम बहुत अच्छे मेहनती इंसान थे, लेकिन सच तो यह है कि तुमने जीवन के धक्कों के आगे घुटने टेक दिए थे। दिल की गहराई में तुम जोख़िम लेने से थर्राते थे। तुम दरअसल जीतना चाहते थे, लेकिन हारने का डर जीतने के रोमांच से ज़्यादा ताक़तवर साबित हुआ। दिल की गहराई में तुम्हें, और सिर्फ़ तुम्हें, ही यह बात पता रहेगी कि तुमने कभी जीतने की कोशिश ही नहीं की। तुमने सुरक्षित तरीक़े से खेलने का विकल्प चुना।”
हमारी नज़रें एक बार फिर मिलीं।
मैंने पूछा, “तो आप मुझे धक्का दे रहे थे?”
“कुछ लोग ऐसा कह सकते हैं,” अमीर डैडी मुस्कराए। “मैं तो कहूँगा कि मैंने तुम्हें जीवन का स्वाद चखाया है।”
20 साल पहले आज…
शिक्षक के रूप में जीवन
आज की सहस्त्रब्दि के लोग जीवन के कठोर तथ्य सीख रहे हैं। नौकरियाँ मिलना ज़्यादा मुश्किल हो रहा है। रोबोट लाखों की तादाद में कर्मचारियों की जगह ले रहे हैं। कोशिश और ग़लती करके सीखना आज बहुत ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। पुस्तक से सीखना असल संसार में कम मूल्यवान साबित हो रहा है। अब कॉलेज की शिक्षा किसी नौकरी की कोई गारंटी नहीं देती है।
“जीवन का कैसा स्वाद?” मैंने पूछा, हालाँकि मैं अब भी नाराज़ था, लेकिन अब मैं जिज्ञासु और सीखने के लिए तैयार भी था।
“तुम दोनों लड़के पहले इंसान हो, जिन्होंने मुझसे पैसा बनाने की कला सीखने का आग्रह किया है। मेरे 150 से ज़्यादा कर्मचारी हैं, परंतु उनमें से एक ने भी मुझसे धन संबंधी ज्ञान नहीं माँगा। वे मुझसे नौकरी और तनख़्वाह माँगते हैं, लेकिन पैसे बनाने की कला सिखाने को कभी नहीं कहते। इसलिए ज़्यादातर लोग अपनी ज़िंदगी के सबसे बेहतरीन साल पैसे की ख़ातिर काम करने में गुज़ार देंगे और अंत तक कभी समझ ही नहीं पाएँगे कि दरअसल वे किस चीज़ के लिए काम कर रहे हैं।”
मैं बैठा-बैठा ग़ौर से सुनता रहा।
“तो जब माइक ने मुझे बताया कि तुम यह सीखना चाहते हो कि पैसा कैसे बनाया जाता है, तो मैंने ऐसा पाठ्यक्रम बनाने का निर्णय लिया, जो असल जीवन का प्रतिबिंब हो। मैं बोलते-बोलते थक जाता, लेकिन तुम मेरी बात का मतलब कभी नहीं समझ पाते। इसलिए मैंने यह निर्णय लिया कि तुम्हें जीवन के थपेड़ों का स्वाद चखाऊँ, ताकि तुम मेरी बात सुन और समझ सको। इसीलिए मैंने तुम्हें एक घंटे के लिए सिर्फ़ 10 सेंट दिए।”
“तो एक घंटे में सिर्फ़ 10 सेंट की ख़ातिर काम करके मैंने कौन सा सबक़ सीखा?” मैंने पूछा। “यही कि आप लालची हैं और अपने कर्मचारियों का शोषण करते हैं?”