प्रेम कबूतर | Prem Kabootar PDF Download Book by Manav Kaul

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पुस्तक का विवरण (Description of Book प्रेम कबूतर | Prem Kabootar PDF Download) :-

नाम : प्रेम कबूतर | Prem Kabootar Book PDF Download
लेखक :
आकार : 0.7 MB
कुल पृष्ठ : 120
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
भाषा : हिंदी | Hindi
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मैं नास्तिक हूँ। कठिन वक़्त में यह मेरी कहानियाँ ही थी जिन्होंने मुझे सहारा दिया है। मैं बचा रह गया अपने लिखने के कारण। मैं हर बार तेज़ धूप में भागकर इस बरगद की छाँव में अपना आसरा पा लेता। इसे भगोड़ापन भी कह सकते हैं, पर यह एक अजीब दुनिया है जो मुझे बेहद आकर्षित करती रही है। इस दुनिया में मुझे अधिकतर हारे हुए पात्र बहुत आकर्षित करते रहे हैं। हारे हुए पात्रों के भीतर एक नाटकीय संसार छिपा हुआ होता जबकि जीत की कहानियाँ मुझे हमेशा बहुत उबा देने वाली लगती हैं। जब भी मैंने अपना कोई लिखा पूरा किया है उसकी मस्ती मेरी चाल में बहुत समय तक बनी रही है।

अगर हम प्रेम पर बात करें तो मैंने उसे पाया अपने जीवन में है पर उसे समझा अपने लिखे में है।

-मानव कौल

I am an atheist. In difficult times it was my stories that supported me. I survived because of my writing. Every time I would run away from the hot sun and find my shelter in the shade of this banyan tree. It can also be called fugitive, but it is a strange world that has always fascinated me. Most of the loser characters in this world have attracted me a lot. The loser characters would have a dramatic world hidden inside while the victory stories have always been very boring to me. Whenever I have completed any of my writings, the fun of it has remained in my gait for a long time.

If we talk about love, I found it in my life but understood it in my writing.

-Manav Kaul

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पुस्तक का कुछ अंश (प्रेम कबूतर | Prem Kabootar PDF Download)

मैं हमेशा से सलीम को देखकर रश्क करता था। सुबह-सुबह वह रोज़ मैदान में हमें बुला लेता। मैं राजू को अपने साथ घसीट लेता। राजू की चाय की दुकान थी जिसपर मेरी दोपहरें बीतती थीं। सलीम कपड़े सिलता था पर हमेशा लगता था कि वह कुछ और करेगा। उसमें कुछ बात थी। जब तक सलीम आ नहीं जाता हम मैदान की सीढ़ियों पर बैठे बतियाते रहते। मुझे अब आश्चर्य होता है कि कितनी बातें थी हमारे पास, और सारी बातों में देर तक की हँसी छिपी होती थी! मैं और राजू घंटों बतिया सकते थे। फिर सलीम फ़ुटबाल लेकर आता और हम दोनों को घंटों नचाता रहता। राजू बहुत बोलने पर भी चप्पल पहनकर मैदान में आता था। मेरे पास गोल्ड स्टार के डेढ़ सौ रुपये वाले जूते थे जिन्हें बहुत मनौवल के बाद मेरे बाप ने दिलाए थे। उन जूतों पर एक भी खरोच मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता था इसलिए शायद मैं कभी बहुत फ़ुटबाल नहीं खेल पाया। सलीम के पास फ़ुटबाल के जूते थे। नुकीले वाले। उसका क़द छोटा था। घुँघराले बाल थे, जिन्हें वह हर कुछ महीने में अलग-अलग अंदाज़ में कटवाता था। मैं चाहता था कि मेरे बाल भी घुँघराले हो जाएँ, पर मेरे बाल झाड़ू की तरह थे। Prem Kabootar PDF Download[adinserter block=”1″]

सारे-के-सारे मेरी आँखों में घुसना चाहते थे। मेरा क़द भी मुझे ज़्यादा लगता था। सलीम अपने सारे हुनर दिखाने के बाद हमें चाय पिलाता था। राजू की चाय-दुकान बाज़ार में थी। हम मैदान के पास मदन की चाय पीते थे। वह सलीम से पैसे नहीं लेता था या शायद सलीम का खाता चलता था। या वह सलीम को उतना ही पसंद करता था जितना मैं। मैंने कभी सलीम को पैसे देते हुए नहीं देखा। चाय के वक़्त सलीम बोलता था। मैं और राजू चुपचाप आँखें फाड़-फाड़कर उसे देखते रहते थे। चाय के बाद वह मज़ार की तरफ़ हमें घुमाने ले जाता। वहाँ साइकिल पर कुछ लड़कियाँ निकला करती थीं, जिनमें से एक को सलीम पसंद करता था। यह एक तरह का ख़ुफ़िया काम था जिसमें मुझे बहुत मज़ा आता था। सलीम हमें मज़ार की दीवार के पीछे रुका देता। फिर साइकिल से दो लड़कियाँ स्कूल जाती हुई निकलतीं।Prem Kabootar PDF Download

सलीम रोड पर कुछ इस तरह चलने लगता मानो वह किसी काम से वहाँ से गुज़र रहा हो। पहली लड़की तेज़ पैडल मारती हुई आगे निकलकर पुलिया के पास खड़ी हो जाती और दूसरी लड़की सलीम से कुछ आगे जाकर किनारे पर साइकिल खड़ी कर देती। दोनों कुछ देर मुँह-ही-मुँह में बुदबुदाते। कुछ देर चुप्पी। ख़ुफ़िया तरीक़े से इधर-उधर देखना कि कहीं कोई आ तो नहीं रहा। उसके बाद वह होता। प्रेम की पराकाष्ठा। प्रेमपत्र का आदान-प्रदान। वह पूरा होते ही सलीम हमारी तरफ़ चला आता। दोनों लड़कियाँ साइकिल पर बरगद और पीपल के पेड़ों में खो जातीं।
सलीम जिस लड़की को पसंद करता था मैं भी उसी लड़की को पसंद करने लगा। नहीं, महज़ पसंद नहीं करने लगा वह मेरे सपनो में आने लगी थी। मैं उससे अपने सपनों में घंटों बातें करता था पर मैं उसे इतना ज़्यादा पसंद क्यों करता था, इसका कारण मुझे नहीं पता। शायद इसलिए कि वह सलीम की थी और मैं सलीम को बहुत पसंद करता था। पता नहीं। दूसरी लड़की मुझे देखती थी पर राजू को लगता था कि वह उसे देखती है। अभी तक हम दोनों तय नहीं कर पाए थे कि वह देखती किसे है। फिर हमारा काम होता उस प्रेमपत्र को पढ़ना। पुलिया पर सलीम खड़ा हो जाता। हम नीचे खड़े रहते और सलीम ज़ोर-ज़ोर से उस लैटर को पढ़ता।Prem Kabootar PDF Download[adinserter block=”1″]
“सलीम, (फिर एक दिल का निशान)
तुम ठीक होगे। मैं भी ठीक हूँ।
अच्छा सुनो, तुम घर के सामने मत रुका करो। भाई को शक है। वह दो बार तुम्हारे बारे में पूछ चुका है। वह नारंगी वाली शर्ट मत पहना करो लफंगे लगते हो। वह लाल शर्ट क्यों नहीं पहनते, अच्छी तो लगती है वह? कल मुझे गट्टू ने रोक लिया था। कहता था फ़्रेडशिप कर लो। मैंने कहा, “पहले मुँह धोकर आ।” वह बहुत पीछे रहता है। अगली बार मिलो तो लाल शर्ट पहनकर आना।

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हमने प्रेम कबूतर | Prem Kabootar PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए Google Drive की link नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 0.7 MB है और कुल पेजों की संख्या 120 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक मानव कौल / Manav Kaul हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ प्रेम कबूतर | Prem Kabootar की PDF को जरूर शेयर करेंगे।

Q. प्रेम कबूतर | Prem Kabootar किताब के लेखक कौन है?
 

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