पोस्टबॉक्स नं. 203 नाला सोपारा । Postbox No.203 Nala Sopara PDF Download Free by Chitra Mudgal

पुस्तक का विवरण (Description of Book of पोस्टबॉक्स नं. 203 नाला सोपारा PDF । Postbox No.203 Nala Sopara PDF Download) :-

नाम 📖पोस्टबॉक्स नं. 203 नाला सोपारा PDF । Postbox No.203 Nala Sopara PDF Download
लेखक 🖊️   चित्रा मुद्गल / Chitra Mudgal  
आकार 5.2 MB
कुल पृष्ठ209
भाषाHindi
श्रेणी,
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वर्ष 2018 के लिए भारत के सर्वोच्च सम्मान प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार के विजेता पोस्टबॉक्स नं. 203 नालासोपारा विख्यात लेखिका चित्रा मुद्गल की एक दिल दहला देने वाली कहानी है जो हमारे दिलों के अंधेरे में झांकती है; कष्टदायक और भयानक पीड़ा का एक भौतिक और सामाजिक स्थान; अनकही पीड़ाओं और अत्याचारों का स्रोत।

यह एक ट्रांसजेंडर लड़के विनोद की कहानी है और एक ऐसे समाज में सम्मान का जीवन जीने के उसके संघर्ष की कहानी है जो ट्रांसजेंडरों के साथ अवमानना ​​​​के साथ व्यवहार करने के लिए पूर्व शर्त है। लेकिन विनोद हर हाशिए पर रहने वाला इंसान है जो अपने लिए जगह बनाना चाहता है, उसका संघर्ष हर आदमी का संघर्ष है, हर महिला का संघर्ष है, हर बच्चा जो उसके होने से वंचित है, संक्षेप में वह हम में से हर एक है जो अमानवीय स्थिति के खिलाफ संघर्ष कर रहा है। कि शुरू से ही आपको एक समान के रूप में खारिज कर देता है।

राजनेता जो आपका शोषण करना चाहते हैं, सामाजिक कार्यकर्ता और गैर सरकारी संगठन जो आपको अपने नापाक अंत के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं, उपन्यास इन सब को काट देता है और आपको अंधेरे के दिल में ले जाता है।

2016 में पहली बार प्रकाशित होने पर इस उपन्यास ने एक तूफान खड़ा कर दिया।

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पुस्तक का कुछ अंश

 

एक

23.07.2011
3/4, मोहन बाबा नगर, बदरपुर, दिल्ली
मेरी बा!
इस संकरी गली के संकरे छोर पर पलस्तर उधड़ी दीवारों वाले घर की सींखचों वाली इकलौती खिड़की के पार, दिल्ली के मेघ बरस रहे हैं।
खिड़की से सटे सघन छतनार के पेड़ को तेज हवा में ऊभ-चूभ होती बारिश की तरंगें उसकी टहनियों को पकड़-पकड़ कर नहलाने की कोशिश कर रही हैं। टहनियां हैं कि उन बौछारों की पकड़ से छूट भागने को बेचैन हो रही हैं, जैसे मैं तुम्हारे हाथों से छूट भागने को व्याकुल तुम्हारी पकड़ में कसमसाता पानी की उलीच में ऊभ-चूभ होता रहता था।
'खुद से रोज नहाता है तो इतना मैल कैसे छूट जाता है?'
'धप्पऽऽ...' खीझ भरा धौल मेरे पखोरे हिला देता।
तुझसे कभी नहीं बता पाया, बा! नहाने से मुझे डर लगता था। बाथरूम में तेरे जबरदस्ती धकेलने पर नल खोल, बाल्टी से फर्श पर पानी उलीच मैं नहाने का सिर्फ स्वांगभर रचता था। बस, तौलिए का कोना भिगोकर मुंह-हाथ भर पोंछ लिया करता था ताकि तू छूए तो महसूस करे कि मैं सचमुच बाथरूम से नहाकर निकला हूं। तू तो समझती थी कि नहाने के मामले में मैं नम्बरी आलसी हूं। तेरा भ्रम तोड़ता तो कैसे?
खिड़की से सटा खड़ा अब मैं अपने कागज-कलम के पास लौट आया हूं लेकिन समझ नहीं पा रहा बा! सींखचों से दाखिल हो दिल्ली के मेघ मेरी आंखों में क्यों आ समाए हैं।
जब बाहर और भीतर एक साथ मेघ बरस रहे हों तो तुझे लिखी जाने वाली चिट्ठी शुरू कैसे हो सकती है?
मैं कागज पर तेरे पांवों की आकृति उकेरने लगता हूं।[adinserter block="1"]
तू विस्मय कर सकती है कि ये पांव तेरे कैसे हो सकते हैं। मेरे पास इसका जवाब है, बा! ये पांव हू-ब-हू तेरे पांव इसीलिए हैं कि मैंने इन्हें यही सोचकर उकेरा है कि तेरे पांव हैं।
डबल रोटी से फूले हुए तेरे धके पांवों को जब भी मैं देखता था, मुझे चिन्ता होने लगती थी। तेरे पांव सूजे हुए हैं। साड़ी की फॉल से ढके हुए उनकी सूजन किसी को नजर नहीं आती है। मालूम नहीं कैसे वह मुझे दिखाई दे जाती है। मैं तुझे टोकता। दिनभर घर में डोलती, बाजार से साग-सब्जी ढोकर लाती, देवी के दर्शनों को पास में ही है, कहकर मुम्बादेवी के मंदिर जाती, लगभग चार-पांच किलोमीटर का चक्कर तेरा रोज ही लग जाता है। मदद की खातिर तू कोई नौकर क्यों नहीं रख लेती? घर पर तो हँसकर मेरी तू बात टालते हुए कहती - तू जो पैरों को चांपकर उनकी उंगलियां खींचकर चटखाता है न! चलूंगी नहीं तो तेरे नन्हे हाथों का वह सुख कैसे पाऊंगी?
तेरे पांव अब भी सूजते होंगे न बा। मैं उनकी उंगलियों को कैसे चटखाऊं। कैसे दूर करूं उनकी थकान। थककर डबल रोटी से सूज जानेवाले तेरे उन पांवों को मैं चूमना चाहता हूं। उनकी टीसें हर लेना चाहता हूं। उन्हें छाती से लगाकर सोना चाहता हूं। हफ्ताभर! नहीं, दररोज! नहीं, महीनों। नहीं, पूरे वर्ष। संचित कर लेना चाहता हूं ताउम्र की नींद। जितनी भी मिल जाए। फिर चाहे जितनी रातें पलक झपकाए बिना गुजरें। बैठे-बैठे करें। करवटें भरते बीतें या पूरी रात टहलते हुए। बस सह लूंगा, कष्ट झेल लूंगा। शिकायत नहीं करूंगा किसी से कि मैं इसलिए अनमना हूं कि रातभर सो नहीं पाया।
तूने फोन पर कहा था न! सुन,[adinserter block="1"]
जब भी तू अनमना महसूस करे, दीकरा। किसी भी समय ध्यान मुद्रा में बैठकर कृष्ण को याद करना। गहरे, अपनी अंतरआत्मा में उतरने का प्रयास करना। दो-चार रोज हो सकता है तेरा प्रयत्न निरर्थक साबित हो मगर कुछ रोज स्वयं को साधने के बाद तुझे कुछ अनोखा सा अनुभव होगा। कृष्ण की छवि शून्य हो जाएगी और तेरी अंतरआत्मा में तुझे कहीं से बांसुरी की मध्यम सुरीली धुन सुनाई देगी, जो तेरे उस शून्य को सैकड़ों अगरबत्ती की सुगन्ध से सुवासित कर देगी। जब तक तू दीकरा, बांसुरी की महक में डूबा हुआ स्वयं को भूला रहेगा, तू गहरी नींद सोता रहेगा।
सुन दीकरा, तेरी बा की लोरी में भी वह सम्मोहन शक्ति नहीं है जो अपने बच्चों को उस गहरी नींद का सुख दे सके।
बा, मैंने वह कोशिश शुरू कर दी है। रोज नहाने के बाद मैं ध्यानमुद्रा में बैठ जाता हूं पर विचित्र है बा, ध्यान में तू आ जाती है तेरे कृष्ण नहीं।
तेरे कृष्ण को कहीं इस जगह से तो परहेज नहीं या आधे-अधूरे मुझसे?
रोज नहाने की आदत पर मेरे संगी-साथी उपहास उड़ाते हैं। ताली बजाकर तल्ख टिप्पणियां करते हैं। किन्नर दूसरों की पूजा-अर्चना नहीं करते। अपनी बिरादरी के कायदे-कानून भूलकर मरी तू संत-महात्माओं जैसा व्यवहार क्यूं कर रही है?
'क्यों कर रहा है।' मैं उन्हें सुधारने की हर बार की तरह नाकाम कोशिश जैसी, एक और कोशिश करता हूं।
उनके लात, घूंसे, थप्पड़ और कानों में गर्म तेल सी टपकती किसी भी सम्बन्ध को न बख्शने वाली अश्लील गालियों के बावजूद न मैं मटक-मटक कर ताली पीटने को राजी हुआ, न सलमे-सितारे वाली साड़ियां लपेट लिपिस्टिक लगा कानों में बुंदे लटकाने को।[adinserter block="1"]
बहुत कुछ अविश्वसनीय वह हरकतें भी, जिसने मुझे बहुत तोड़ने की कोशिश की और जिनका जिक्र मैं बा, तुझसे कैसे कर सकता हूं।
उनसे खूब बहस की है। आठवीं कक्षा तक भी मैं वही था जो आज हूं।
उस वक्त स्कूल के वार्षिकोत्सव में जब मुख्य अतिथि भाषण देते थे तो सभी अन्य विद्यार्थियों के भांति मैं भी ताली पीटता था। बात-बात पर ताली पीटना, मेरी स्वाभाविक प्रकृति नहीं है। स्त्रैण लक्षण मुझमें कभी नहीं रहे। अब भी नहीं हैं और जो लक्षण मुझमें नहीं हैं, उन्हें सिर्फ इसलिए स्वीकारूं कि मेरी बिरादरी के शेष सभी, उन हाव-भावों को अपना चुके हैं?
बैठ जाऊं उन्हीं के संग और रेजर से बांहों और छाती के जंगल को साफ करने लगूं कि उनका प्रतिरूप बने बिना मेरे सामने जीवन जीने के विकल्प शेष नहीं हैं?
बीते पांच वर्षों से मैं उस विकल्प का सिरा तलाश रहा हूं। कुछ सांसें, अधूरी-पूरी। जैसी भी हिस्से में आएं, मैं उनसे अलग जीवन काट लूंगा, मगर बा, वे आती क्यों नहीं मेरी मुट्ठियों में।
तुमने स्कूल के लिए निकलते समय, चुपके से मेरी जेब में सरकाए जाने वाले नोट की भांति, 'खा, लेना जो तेरे मन में आए, बिन्नी!' ढेर-सी दिलासा सरकाई थीं मेरे जहन में। भयमुक्त किया था मुझे कि तू तिनका नहीं है। दीकरा तू फिजूल की चिन्ता क्यूं करता है कि मैं वैसा क्यों नहीं हूं बा, जैसे मेरे अन्य दोस्त हैं? स्कूल की चारदीवारी से सटकर पैंट के बटन खोलकर खड़े हो जाने वाले?[adinserter block="1"]
'बावला', तूने यह भी समझाया था और छोकरों से तू अलग है। यह मान लेने में ही तेरी भलाई है, न किसी से बराबरी कर, न अपनी इस कमी की उनसे कोई चर्चा। समाज को ऐसे लोगों की आदत नहीं है और वे आदत डालना भी नहीं चाहते पर मुझे विश्वास है, हमेशा ऐसी स्थिति नहीं रहने वाली। वक्त बदलेगा। वक्त के साथ नजरिया बदलेगा।
'तुझे कैसे समझाऊं! अब देख बिन्नी! आंखों से अन्धा हमारे समय में पाठशाला नहीं जा सकता था। तू बताता है न कि तेरे बड़े स्कूल में आंखों से अन्धे दो बच्चे पढ़ते हैं! बल्कि उनके लिए उनकी जरूरत के मुताबिक अलग से स्कूल हैं। उंगलियों से पढ़ी जाने वाली भाषा है। बिना टांग वाले भी तो नकली टांग पर चलते हैं। हो सकता है, भविष्य में इस अधूरेपन का भी कोई इलाज निकल आए। तेरे पप्पा ने तुझे ले जाकर बड़े स्पेस्लिस्ट को दिखाया था न!'
तेरी दिलासा झूठी कैसे हो सकती थी? मैं मानकर चलता रहा। नकली टांग सी, मैं भी उस जरूरी अंग की कमी से एक दिन मुक्त हो जाऊंगा।
मगर, बहुत जल्द मेरा भ्रम टूट गया।
तूने, मेरी बा, तूने और पप्पा ने मिलकर मुझे कंसाइयों के हाथ मासूम बकरी सा सौंप दिया।
मेरी सुरक्षा के लिए कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की? मनसुख भाई जैसे पुलिस अधीक्षक, पप्पा के गहरे दोस्त के रहते हुए? वो अपने आप मुझे बचाने के लिए तो आ नहीं सकते थे। मेरे आंगिक दोष की बात पप्पा ने उनसे बांटी जो नहीं होगी। वरना वह मुझे बचाने जरूर आ जाते।
बाऽऽ... बाऽऽ... बाऽऽ…
क्यों वह अनर्थ हो जाने दिया तूने जिसके लिए मैं दोषी नहीं था! पढ़ने में अपनी कक्षा में सदैव अव्वल आने वाला। डरते थे लड़के मुझसे। कहते थे, जिस खेल की प्रतियोगिता में खड़ा हो जाता है तू विनोद, पुरस्कार लेकर ही दम लेता है। कुछ पुरस्कार हमारे लिए छोड़ दे न![adinserter block="1"]
और अगर मान लो बा, मैं अव्वल नहीं आता, तब भी क्या सामान्य लोगों की तरह जीवन जीने का अधिकार न होता मेरा?
जिस नरक में तूने और पप्पा ने धकेला है मुझे, वह एक अन्धा कुआं है जिसमें सिर्फ सांप-बिच्छू रहते हैं। सांप-बिच्छू बनकर वह पैदा नहीं हुए होंगे। बस, इस कुएं ने उन्हें आदमी नहीं रहने दिया।
जानता हूं बा! तेरे नासूर पर नाखून गड़ा रहा हूं मगर...
घर में सब लोग कैसे हैं? अच्छा बता पप्पा की तबीयत कैसी रहती है, 'ब्लड प्रेशर की दवा पप्पा को नियमित दी जा रही है न! घर पर मैं था तो उन्हें मैं देता था सुबह-शाम। अब मंजुल देता होगा। मंजुल मुझसे छोटा जरूर है उम्र में मगर समझदार है। वैसे बा, जिम्मेदारी पड़ने पर लापरवाह बच्चे भी समझदार हो जाते हैं। मोटा भाई ने जब मुझे जिम्मेवारी सौंपी थी कि पप्पा को सुबह-शाम दवा अब तुझे खिलानी होगी तो मैं कितना खुश हुआ था। कुछ दिनों बाद मोटा भाई ने उनका ब्लडप्रेशर नापना भी सिखा दिया था लेकिन पप्पा मुझ पर विश्वास नहीं करते थे। मेरे ब्लडप्रेशर नापकर लिख लेने के बावजूद वे मोटा भाई को अक्सर गुहार लगा बैठते, 'जरा मेरा ब्लडप्रेशर तो आकर ले लो, सिद्धार्थ। देखो, बिन्नी ने ठीक लिया है कि नहीं। नीचे का कितना है?'
मेरे घर से जाते ही तुम लोगों ने कालबादेवी से नाला सोपारा घर बदल लिया था।
तुम पूछोगी, मुझे कैसे मालूम।
दिल से मजबूर होकर तेरी आवाज सुनने की खातिर डरते-डरते जब एक राज मैंने कालबादेवी फोन किया तो वहां फोन किसी और ने उठाया। पूछने पर बताया कि पांच वर्ष से यह घर अब उनका है। पुराने मकान मालिक कहां रहते हैं, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है। मोटा भाई का नाम लेकर उन्होंने इतनी सूचना भर दी कि उनके पास किंग्सवे कैम्प का उनके दफ्तर का फोन नम्बर है। उन्होंने कहा कि भूले-भटके पुराने पते पर यदि कोई चिट्ठी आदि आती है तो वह उन्हें सूचितभर कर दें। वे स्वयं आकर या किसी और को भेजकर अपनी डाक मंगवा लेंगे।
मैंने मोटा भाई के दफ्तर का फोन नम्बर उनसे मांग लिया था। मोटा भाई के दफ्तर से नाला सोपारा वाले घर का। इतनी दूर जाकर घर क्यों लिया बा? मेरी वजह से!
पहली बार जब चंपाबाई आई थी अपने घर तो पड़ोसियों ने तुझसे पूछा था, 'वंदना बेन, ये हिजड़े क्यों आए तेरे घर पर?'
'गलत खबर थी उनको, सेजल पेट से है...'[adinserter block="1"]
... घर की बंद खिड़कियों के भीतर उन्होंने मुझे लेकर कितना घमासान मचाया था। उनके पास पक्की खबर है। वे मुझे देखना चाहते हैं, साथ ले जाना चाहते हैं। साथ ले जाने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता। दुनिया की कोई ताकत नहीं। खबर पक्की नहीं है तो बच्चे को सामने करो। हम खुद देख लेंगे। माफी मांग निकल लेंगे घर से।
कांपते स्वर में तूने पप्पा से कहा था, 'मंजुल को आगे कर देते हैं।'
रसोई से बाहर आ तूने मुझे बाथरूम में बंद कर दिया था। मंजुल को टांगों से चिपकाए हुए तू बैठक में आ गयी थी।
मंजुल की चड्ढी उतरवा चंपाबाई ने साफ कह दिया था। खेल खेल रहे हैं वे लोग उनके साथ। बच्चा इससे बड़ा है।
गनीमत इसी में है, खामोशी से घरवाले असली बच्चे को उनके हवाले कर दें। कोई हंगामा नहीं मचाएंगे वे। जबरदस्ती पक्की खबर को कच्ची साबित करने पर क्यों तुले हुए हैं बे लोग। उनकी इज्जत का उन्हें भी खयाल है। वे खुद भी अपनी इज्जत का खयाल करें?
वे दोबारा आएंगे। संगी-साथियों के साथ आएंगे। उनकी पूरी बिल्डिंग को घर के नीचे इकट्ठा कर लेंगे।
बाथरूम से बाहर आते ही मंजुल ने सारी बातें बयान की थीं मुझसे। उस रात, सेजल भाभी को छोड़कर घर पर किसी ने खाना नहीं खाया था। मोटा भाई ने बैठक के बेंतवाले सोफे पर करवटें भरते पूरी रात काट दी थी।
रात भर बा, तू मुझे अपनी छाती से सटाए सिसकियां भरती रही थी।
तेरी छाती में सिर दुबकाए हुए मुझे मंजुल के जन्म के समय तेरी कही हुई बात स्मरण हो आई थी।
मंजुल को गोद में सम्भालते हुए मैंने तुझसे प्रश्न किया था, 'मेरे नुन्नू क्यों नहीं है, बा?'
तो तूने मुझे बहलाया था। 'बच्चे के जन्मते ही आटे का नुन्नू बनाकर लगाना पड़ता है। नर्स भूल गयी तुझे लगाना। लगवा देंगे तुझे भी।'[adinserter block="1"]
सुबह तूने सोकर तनिक देरी से उठे पप्पा को चाय का कप थमाते हुए दृढ़ स्वर में ऐलान किया था - बिन्नी को जल्दी से जल्दी दूर किसी होस्टल में भेजने का प्रबन्ध किया जाए। खर्च सिर पर पड़ेगा तो तू अपने गहने बेच देगी।
बाथरूम से नहाकर निकले मोटा भाई अपने कमरे में घुसते हुए तेरी ओर पलटे थे-चौदह बरस बाद अचानक जिन्न से हिजड़े यहां प्रकट हो सकते हैं तो होस्टल में नहीं प्रकट हो सकते। कोई गारंटी है इसकी?
'बात फैल गयी तो पूरे खानदान पर दाग लग जाएगा।'
‘अपने दीकरे के बिना मैं प्राण दे दूंगी।' मोटा भाई बिफरे, 'अपनी कोख से एक ही औलाद पैदा की है बा तूने? हमें कहीं से पड़ा उठाकर लाई है जो तू...'
उस रोज ही नहीं तूने, हफ्तेभर तक मुझे स्कूल बस से स्कूल नहीं जाने दिया था। इस भय से कि कहीं चंपाबाई स्कूल न पहुंच जाएं।
हफ्तेभर बाद सत्रह रोज तक तू मुझे नियमित स्कूल छोड़ने गयी थी। मेरी कक्षाएं चलने तक तू वहीं बैठी रहती थी और खत्म होने पर अपने साथ लेकर घर लौटती थी।
अठारहवें दिन मुझे फिर से छुट्टी करनी पड़ी थी।
तू बाईं टांग में उठ रही साइटिका की असह्य पीड़ा से बेचैन हो रही थी। तूने सेजल भाभी से आग्रह किया था कि कुछ रोज के लिए वह अपने दफ्तर से छुट्टी ले लें और मेरी हिफाजत का जिम्मा उठा लें। हौम्योपैथी से तुझे एकाध दिन में आराम आ जाएगा। जवाब सेजल भाभी ने न देकर मोटा न भाई ने दिया था। जवाब की बजाय सवाल उठा।
‘ऐसे कब तक चलेगा, बा?'
'जब तलक चल सकेगा।
कम बोलने वाले पप्पा का सुझाव था, 'फिलहाल पंद्रह दिन का मेडिकल और भिजवा देते हैं स्कूल में ... आगे देखते हैं।'
'देखते हैं, समाधान तो नहीं है पप्पा!'[adinserter block="1"]
'सेजल छुट्टी ले नहीं सकती। परसों ही उसके नये बॉस ने कार्यभार संभाला है और मैं छुट्टी लेकर घर बैठ नहीं सकता।'
पप्पा क्षणांश विचारमग्न हुए। 'बात खरी है तेरी सिद्धार्थ, पर कोई रास्ता तो सूझे।'
'ऐसा न करें, जूनागढ़ तेरे भानू मामा से चुपचाप बात करके देखें? वहीं कहीं किसी होटस्ल वाले स्कूल में बिन्नी का दाखिला करवा दें।'
‘फिर वही ढाक के तीन पात।' मोटा भाई खीझे, 'हिजड़ों की बिरादरी का नेटवर्क बहुत तगड़ा है।'
'बीजी बात... भानू मामा को बिन्नी की असलियत बताए बिना जूनागढ़ नहीं छोड़ा जा सकता। असलियत बताते ही वह पूछेंगे नहीं, इतनी बड़ी बात हमने अब तक उनसे छिपाई क्यों?'
'तब ?' पप्पा का स्वर डूबा हुआ-सा हो आया।
'बिन्नी होशियार है पढ़ाई में। तमाम पिंगेज क्लासेस चलती हैं कालबादेवी में। प्राइवेट फार्म भरवा देंगे।' बा, रह-रहकर उठने वाली पीड़ा की लहर के बावजूद तू शान्तचित्त थी।
अपना स्कूल बैग पीठ पर लादे, उस दिन का टाइम टेबल लगाए बैठक के कोने में खड़ा छटपटाता मैं सोच रहा था। मेरी स्कूल बस छूट गयी।
भीतर बैठी अनहोनी की मंडराती काली परछाइयों को परे धकेल मैं शक्तिभर चीखा था।
‘पप्पा, मैं घर में बैठकर नहीं पढूंगा। सबके साथ पढूंगा। अपनी ही कक्षा में बैठकर। मुझे स्कूल जाना है। मैं अपना ध्यान रखूंगा। अपनी हिफाजत खुद करूंगा। कब तक मैं अपने सहपाठियों से टेलीफोन पर होमवर्क नोट करता रहूंगा, पापा?'
'मुझे छुट्टी नहीं करनी। मेरी पढ़ाई बर्बाद हो रही है। पिछड़ जाऊंगा मैं अपनी कक्षा में। पिछड़ना नहीं चाहता मैं। मैं बोर्ड टॉप करना चाहता हूं। मैं टॉप कर सकता हूं पप्पा! मैं टॉप करके दिखाऊंगा। मुझे स्कूल जाने दो... प्लीज पापा प्लीज।'
‘मारे स्कूल जऊ छे' कहता हुआ मैं अपने कमरे में घुसकर बिस्तर पर ढेर हो गया था।
मंजुल कमरे में नहीं था। उसकी स्कूल बस जा चुकी थी।[adinserter block="1"]
भूलते क्यों नहीं कीलों से चुभते प्रसंग। क्यों घुमड़ आते हैं तेरी स्मृतियों के कन्धों पर दुबके। तेरी समृतियां जो मेरी सांसों में घुली हुई हैं, बा! उन्हें अपने से अलग करूं तो कैसे अलग करूं।'
याद रखना चाहता हूं तो बस, बरसों बरस बाद सुनी गयी तेरी टट्कार भरी आवाज को, जो मेरी आवाज के 'बा' उच्चारते ही गोद में तब्दील हो गयी।
'दीकरा.... मेरा बिन्नी।'
'तू, तू कहां से बोल रहा है...'
यह पत्र अब पूरा नहीं कर पाऊंगा।
सींखचों के बाहर मेघों का बरसना कम नहीं हो रहा।
भीतर उसे मैं कैसे रोकूं!
कमरे की छत जाने कौन उड़ा ले गया है।
लिफाफे पर पता लिख दिया है जिसे तूने फोन पर नोट करवाया है।
पता पोस्ट ऑफिस का है, मेरे घर का नहीं।
मेरे घर का पता क्या कहीं कोई है बा?
कैसी विभ्रम की स्थिति में जीता हूं मैं…
बा, पगे लागूं
तेरा बिन्नी उर्फ विनोद उर्फ बिमली
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दो

30.07.2011
3/4, मोहन बाबा नगर, बदरपुर, दिल्ली
मेरी बा,
कल तुझे पत्र लिखने की सोची थी।
अच्छा नहीं लगता है जब तेरे लिए जतन से बटोरा हुआ समय कहीं और खर्च हो जाए।
वैसे तो सुबह नौ-साढ़े नौ बजे के करीब खाली हो जाता हूं। लौटकर दो-ढाई घंटे सुस्ता लेता हूं। तड़के उठना भारी लगता है मगर पांच बजे निकल देना पड़ता है फरीदाबाद के लिए। वहां की 'उमंग सोसाइटी' में गाड़ियां धोने का काम मिल गया है, बंधा हुआ। ठिकाने पर उस वक्त सभी लोग गहरी नींद सो रहे होते हैं। मना करने के बावजूद पूनम उठ जाती है मेरे निकलने से पहले और चाय का प्याला मुझे पकड़ा कर वापस जाकर सो जाती है।
पूनम हमारे किन्नर दल की नटखट कुशल नचनियां है। बाईल्या (स्त्रैण) हाव-भाव और अटक-मटक से भरी हुई।
कल जिद्द ठान ली। एक नहीं सुनेगी। मुझे भी साथ चलना होगा। पूनम की छिछोरी अटक-मटक से मुझे चिढ़ है मगर उसका अतिरिक्त खयाल रखना अक्सर मुझसे उसकी जिद्द मनवा लेता है।
बदरपुर मेट्रो स्टेशन से, हम सब ढोलक और घुंघरुओं के साथ सरिता विहार, बैंक मैनेजर खन्ना साहब के घर, बधावा के अनुष्ठान के लिए निकले।
हमेशा की भांति मैंने पैन्ट और टी-शर्ट पहन रखी थी। मेरे मर्दों वाले पहनावे की अब उनको आदत हो गई है।
मैंने मजाक किया था उन्हें छेड़ने की खातिर।
'हम औरतों के डिब्बे में चढ़ें या मर्दों के?'
मंजू बाई ने आंख दबाकर मुंह मटकाया था, 'हम तो भई किसी भी डिब्बे में चढ़ सकते हैं, पर चढ़ेंगे मरदुओं के। हाथ पसारो तो मरदुए बेझिझक अपनी अंटी खोल देते हैं। साआली औरतें नकचढ़ी होती हैं। मां... भूल जाती है। पैदा हमें उन्हीं सालियों ने किया है।'
हमेशा की तरह बा, मैं उनसे दूर जाकर खड़ा हो गया था। तभी कन्धे पर धौल जमा, पूनम ने ठिठोली की थी, चल, 'चलकर फेरे ले लेते हैं दोनों। भूखा नहीं रखूंगी कभी तुझे मेरे शाहरुख खान!
’ अगल-बगल की सवारियां, मुझे अपने में शामिल मान अश्लील चुटकियां लेती, हो हो कर हँस पड़ी।
हाथ पसारते ही पूनम के लिए सवारियों ने अंटी खोल दी।
मैं कटकर रह गया।
औरतों का बाना बनाकर ये... औरतों की मां-बहन क्यूं करती है, बा![adinserter block="1"]
'बा, तू निश्चय ही रुआंसी हो रही होगी, मैं किनकी बातें ले बैठा। तुझे मेरी शपथ, तू आंखें न गीली करना, उदास न होना। तेरी उदासीं बरदाश्त नहीं होती। फिर मैं जो नहीं हूं तेरी बगल में गुदगुदी की झड़ी लगाकर हँसा-हँसा बेहाल करने के लिए।
तुझे याद होगा बा और मुझे यकीन है कि तू भूल भी नहीं सकती।
स्कूल से लौटकर घर आते ही मेरे कन्धों से भारी-भरकम स्कूल बैग उतारते न उतारते बेसब्र सी तू, सवाल पर सवाल करने लगती। बता न बिन्नी, 'क्या-क्या किया तूने स्कूल में पी.टी. के घंटे में कौन-सा खेल खेला। तेरे खाने के डिब्बे में मैंने पातरा (घुंयां के पत्तों से बने बड़े) बनाकर रखा था। तू खा पाया कि तेरे शैतान दोस्त चट कर गये? गृहकार्य में गुड मिला या वैरी गुड!
तो तू ही बता, तुझे पत्र लिखते हुए उस आदत से कैसे उबरूं? लिखते हुए तू सामने आकर बैठ जाती है। मुझे लगने लगता है कि मैं तुझसे वह सब कुछ जान लूं, जिसे जानने के अधिकार से मैं अपदस्थ कर दिया गया हूं और तुझे, उस सबसे अगवत करा दूं जिसे तुझे जनवाए बगैर मैं रह नहीं सकता।
ठहर बा, तुझसे थोड़ा झूठ बोल रहा हूं।
देख बा, अब मैं बच्चा और किशोर नहीं रहा, दूध का गिलास तुझे मंजुल को पहले पकड़ाता देख मुंह फुला लेने वाला। कैसे जी रहा हूं मैं, पहले की भांति झेला हुआ वह सब कुछ तुझसे उसी तरह नहीं बांट सकता।
बा, तूने नये घर के पते पर चिट्ठी डालने से मना किया था।
तूने कहा था, पॉस्ट ऑफिस घर के नजदीक है। राम मंदिर से सटा हुआ। मंदिर जाना तेरी दिनचर्या में शामिल है। पोस्ट ऑफिस से तू अपना निजी पोस्ट बाक्स नम्बर ले लेगी। तू मुझे उसी पते पर चिट्ठी डाल सकता है। जवाब दूंगी मैं। आज के बाद तू घर पर फोन मत करना। तेरा मोटा भाई बहुत शक्की है। सेजल पेट से है। बहुत जल्दी तू चाचा बनने वाला है। तेरे पप्पा की तबीयत ठीक नहीं रहती। तीन महीने पहले उन्हें पेसमेकर लगवाना पड़ा है। पल्स पैंतीस पर चली गयी थी। घर बेचने के साथ यहीं नाला सोपारा में दुकान के तीन गाला खरीद लिए थे। कालबा देवी वाली मौके की दुकान बेच; विरार में जमीन! अपने किराने की दुकान पर बैठते जरूर हैं तेरे पप्पा मगर चित्त उखड़ा - उखड़ा सा रहता है उनका।
मंजुल का पढ़ाई में मन नहीं लगता। उसके गणित के टीचर उसे हर रोज पढ़ाने आते हैं घर पर। सारे विषय पढ़ाने के पांच हजार लेते हैं।[adinserter block="1"]
'रखूं?'
‘रुक-रुक, बा! फोन नहीं करूंगा तो तू मुझे पोस्ट बाक्स नम्बर कैसे दे सकेगी?'
तभी पीछे से मोटा भाई की गुहार सुनाई दी थी। किसका फोन है बा? तूने झूठ बोला था, 'जनागढ़ से भानू मामू का।'
'तेरे मोटा भाई अभी काम को नहीं निकले हैं।' बा तेरी आवाज में अनायास चौकन्नापन घुल आया, 'तीन रोज बाद फोन कर लेना। कल पोस्ट ऑफिस चली जाऊंगी।'
‘अब रखूं न!’
‘रख दे।’
तीन रोज बाद तूने पोस्ट बॉक्स नम्बर दे दिया था। तेरी फुर्ती देख मैं दंग रह गया था।
उसी रोज मैंने तेरे लिए एक खूबसूरत-सा ग्रीटिंग कार्ड खरीदा था। घंटों तेरे लिए कुछ अनोखे खूबसूरत वाक्यों की तलाश करता रहा था, दुनिया की सबसे खूबसूरत मां के लिए।
एक बात पूछूं बा? पूछे बिना रह नहीं पा रहा।
20 जून को मेरा जन्मदिन था, बा।
घर में सबका जन्मदिन तू धूम-धाम से मनाया करती है। मेरा जन्मदिन मनाया था तूने, बा? केसर की खीर बनाई थी, साथ में खंडवी!
तू हँस रही है न! हूं न अब भी मैं नादान! जबकि इतना बड़ा हो गया हूं। इस नरक में रहकर असली उम्र से दोगुना।
और अंत में कैसे लिखूं कि पप्पा को कहना मैं उन्हें खूब-खूब याद करता हूं। उनके पास होता तो पढ़ाई से लौटकर उनकी किराने की दुकान पर
बैठ उनका हाथ बंटाता, जिस काम से मोटा भाई को घृणा है।
लेकिन मैं यह भी जानता हूं, हमारे बीच होने वाले पत्राचार की तू किसी को भनक नहीं लगने देना चाहती। पप्पा को भी नहीं।
तो बस तू भर जान ले।
सेजल भाभी को कौन-सा महीना चल रहा है?
बा, पगे लागूं
तेरी दीकरा बिन्नी उर्फ विनोद उर्फ बिमली
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तीन

28.8.2011
3/4, मोहन बाबा नगर, बदरपुर, दिल्ली
मेरी बा,
तेरी चिट्ठी मिली।
पढ़े बिना मैंने सैकड़ों बार उसे चूमा था। पेशाब के बहाने पाखाने में घुसकर, ताकि किसी को मेरी हरकत विचित्र न लगे।
कलम की स्याही में बसी हुई है तेरे हाथों से पकने वाली स्वादिष्ट सब्जियों की कल्हार की सीजी गंध। दुखते माथे पर पीड़ा सोखती तेरी उंगलियों की रेशमी सहलाहट। एक भी सलवट छोड़े बिना स्कूल ड्रेस पर की गयी तेरी इस्त्री की छुअन।
चिट्ठी खोलकर तकलीफ हुई। इतने बड़े लिफाफे में इतनी छोटी-सी चिट्ठी।
तेरे बाजू में दर्द था क्या बा! मोटा भाई और सेजल भाभी के घर लौटने का समय हो गया था?
मानता हूं। चिट्ठी लिखने के लिए एकांत की जरूरत होती है। उस पर भी तू अकेली होती है तो तेरे कन्धों पर मनों काम लदे हुए तुझे खाली नहीं रहने देते।
तू, मेथी तोड़े कि चिट्ठी लिखे। ठेपला बनाने की सामग्री तैयार करके रख दे कि चिट्ठी लिखे। इस्त्री कर कपड़ों का गट्ठर निपटाए कि चिट्ठी लिखे। घरभर में बिखरी मंजुल की लापरवाहियां बीने कि चिट्ठी लिखे। रूठे भगवान जी को मनाने मंदिर जाए कि चिट्ठी लिखे। ऊपर अब डाकघर जाए और पोस्ट बॉक्स खोलकर देखे कि चिट्ठी लिखे? हां! मगर मैं सब्र कैसे करूं? लम्बी प्रतीक्षा के बाद जब तेरी छोटी सी चिट्ठी मिलती है तो किस कदर बेसहारा कर देती है, कैसे बताऊं तुझको। दस-बीस बार तेरी चिट्ठी को फिर-फिर पढ़ भी लूंगा, तब भी भीतर कचोटती उदासी को छटक नहीं पाऊंगा। तेरी मसरूफियत को कितना भी वाजिब ठहराता रहूं, तब भी यही घुमड़ेगा मन में तू मेरे लिए अलसा गयी, बा!
अगली चिट्ठी पांच-छह पन्ने से कम न लिखना।
ताकि उस दिन तो उसे पढूं ही, जिस दिन वह मुझे मिले, उसके अगले दिन भी और उससे अगले दिन भी। इतनी बड़ी कि कोई काम आ जाए और वह अधूरी छूट जाए तो मन अधीर हो कुलबुलाता रहे चिट्ठी को पूरा पढ़ने के लिए।
तू कार्ड पाकर कितनी खुश हुई न! इतनी खुश होगी मैंने कभी सोचा नहीं था।[adinserter block="1"]
तूने लिखा है - तेरा भेजा हुआ कार्ड मेरी जिन्दगी का पहला ग्रीटिंगकार्ड है। पलंग के गद्दे के खोल में उसे मैंने छिपाकर रखा हुआ है, दीकरा। तेरे हाथ से उस पर लिखी इबारतों को अब तक मैं पूरा नहीं पढ़ पाई हूं। आंसुओं की झड़ी शुरुआत करते ही धुंध पैदा कर देती है, लगता है आंखों में मोतियाबिन्द उतर आया है।
क्या मैं सचमुच दुनिया की सबसे खूबसूरत मां हूं।
कैसे हो सकती हूं बिन्नी, मेरे बच्चे! तूझे दुःख है न कि मैंने और तेरे पप्पा ने तूझे उस नरक में क्यों ढकेल दिया, इसके बावजूद?
जबकि, मेरी मुट्ठी में पूरी ताकत से जकड़ी हुई तेरी बिलखती हुई मुट्ठी को, जो मुझसे अलग न होने के लिए हाथ-पांव पटकती गिड़गिड़ा रही थी, मैंने ही तो उसे धोखा दिया था। अपनी मुट्ठी को शिथिल कर...।
मेरी पकड़ तेरी मुट्ठी पर ढीली होते ही तेरे मोटाभाई ने तुझे अपने बाजुओं में दबोच फौरन तुझे चंपाबाई के हवाले कर दिया था।
तब भी... तब भी तू मुझे अपनी कमजोर बा को दुनिया की सबसे खूबसूरत मां कह रहा है।
सच तो यह है दीकरा, बच्चों जैसा निष्कलुष मन कहां होता है मां नाम की स्त्री के पास? दुनियादारी में बंटी हुई स्त्री! टुकड़ा-टुकड़ा।'
आगे पत्र में दूसरे दिन की तारीख पड़ी हुई है।
इन पंक्तियों को पूरा कर तू पत्र पूरा नहीं कर पाई थी।
अगले रोज तूने पत्र पूरा किया था।
बा, मैं भी तेरे पत्र को अगले रोज ही पूरा पढ़ पाया।
नाला सोपारा के समंदर से तूने सांठ-गांठ कर रखी है क्या!
मेरे आंसुओं में पहले इतना खारापन नहीं था बा!
……[adinserter block="1"]
रुक बा, जरा मैं अपना रूमाल ढूंढ़ लाऊं। जब भी पूनम बन ठनकर ठिकाने से निकलती है, मेरे रूमाल कभी मुझे अपनी जगह पर नहीं मिलते।
……
तूने लिखा है-तेरी सेजल भाभी को पांचवां महीना चल रहा है मगर तेरा मोटा भाई बच्चे के विषय में सदैव उद्द्विग्न और आशंकित रहता है।
उसके दिमाग में जाने कैसी ऊटपटांग शंकाएं मंडराती रहती हैं।
परसों सेजल का तपास (जांच) था बोरीवली के लीलावती मेटरनिटी होम में। सोनोग्राफी भी होनी थी। मोटा भाई के साथ मैं भी जिद्द कर उसके संग गयी थी। जानने को उत्सुक थी। जच्चा-बच्चा दोनों ठीक-ठाक तो हैं।
सोनोग्राफिस्ट ने बच्चे को घुमा घुमाकर अनेक कोणों से दिखाया था।
अपने पोते को देखकर मैं आनन्द -विभोर हो उठी थी। बच्चे के वजन को लेकर सोनोग्राफिस्ट ने हल्की सी चिन्ता जताई थी। सुनकर तेरा मोटा भाई एकदम से चिन्तित हो उठा। उससे अजीबो-गरीब सवाल करने लगा। लड़का हो या लड़की; उसे दोनों स्वीकार हैं मगर वह जरा गौर से देखकर बताए, उसका जनांग ठीक से विकसित हो रहा है न! कोई नुक्स तो नहीं। नुक्स हो तो उन्हें स्पष्ट बता दिया जाए। बच्चा गिरवा देंगे वह । अभी समय है। बच्चे के विषय में उन्हें निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।
बड़ी डॉक्टर मोहिनी अभ्यंकर मोटा भाई की बात सुनकर चौंक गयी थीं।
सब कुछ ठीक-ठाक है। विकास सामान्य ढंग से हो रहा है, फिर आपने कह दिया है, लड़का हो या लड़की, दोनों आपको स्वीकार है।
'स्वीकार है लेकिन लड़का और लड़की न होकर वह कोई अन्य हो तो??
डॉक्टर मोहिनी हँस दी थी, 'ऐसा क्यूं सोच रहे हैं आप? निश्चिंत रहिए।'
दूसरे रोज सुबह तेरा मोटा भाई फोन पर किसी ज्योतिषी से समय ले रहा था। अपनी और सेजल की जन्मपत्री दिखाना चाह रहा था उसे।
मुझसे रात कहने लगा, बच्चे की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट को, वह किसी अन्य प्रसूति विशेषज्ञ को दिखाकर अपनी शंका का समाधान करना चाहता है। सेकंड थाट ले लेने में कोई हर्ज तो है नहीं?
उसने बेलज्ज होकर मुझसे पूछा, उसी क्षण।[adinserter block="1"]
'तुम्हारे या पप्पा के खानदान में पहले भी क्या कोई जनांग दोषी पैदा हुआ है??
आज सुबह उसने पप्पा से कडुवे शब्दों में साफ कह दिया, वह इस घर से अलग होना चाहता है। नहीं रहना चाहता इस घर में।
कालबा देवी वाले घर की काली परछाइयां उस घर को बेच देने के बावजूद इस नये घर से अलग नहीं हो पाई हैं। उस काली परछाई के दंश से वह अपनी औलाद को दूर रखना चाहता है। फिर वह मेरी ओर मुड़ा था तैश से उबलते हुए।
'बा, अपने कमरे में तुमने बिन्नी की तस्वीर क्यों टांग रखी है? सेजल की निगाह उस पर पड़ती नहीं होगी? कभी सोचा है तुमने उसके मन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा?
तुम भले कभी उस काली परछाई का नाम अपनी जुबान पर नहीं लाती तो क्या? बिना वजह तीज-त्योहार पर तुम्हारी भर-भर आती आंखें... उसे जबरन खींच लाती हैं इस घर में।'
मैं आपा खो बैठी थी।
'तू अनपढ़ों जैसी बातें क्या कर रहा है?'
मेरे पेट से जन्मे को तू काली परछाई कह रहा है, तू भी तो उसी कोख से जन्मा है। मंजुल भी तो उसी कोख से जन्मा है। क्या अनिष्ट किया है उसने हमारा। प्रकृति ने जो इसके साथ नाइन्साफी की, उसमें उस मासूम का क्या दोष?
खुदानाखास्ता दीकरा अगर वह तेरी औलाद होकर जन्मता और तू उसे घर से बाहर निकालने की विवशता झेलता, बोल, तुझे कैसा लगता?'
'दुनिया में आने से पहले ही मैं उसे रुख्सत कर देता।
' तेरे पप्पा का गुलाबी रंग झुलसकर राख हो आया था।
मेरे कमरे की दीवार उन्होंने सूनी कर दी थी। तेरी तस्वीर जो वह खुद ही बड़े चाव से बड़ी करवाकर लाए थे, उतारकर उन्होंने मेरी पुरानी ड्रेसिंग टेबल के ड्राअर में सरका दी थी।
तेरे पप्पा ने रात में मुझसे कहा था, तू ऐसे काम क्यों करती है वंदना जो उसे घर छोड़ने के लिए उकसाते हैं।
तुझे यह सब कतई नहीं लिखना चाहती थी। लिख गयी हूं तो शायद यही सोचकर जो मेरे नजदीक है, मन्नत से पाई पहलौठी की सन्तान, वह मुझसे कितनी दूर है। जो दूर है, वह सबसे करीब।
दो रातों से देख रही हूं। दफ्तर से लौटकर इंटरनेट से चिपक जाता है सिद्धार्थ।[adinserter block="1"]
पूछने पर सेजल ने बताया, 'मना करती हूं बा पर वह सुनते कहां हैं । दुनियाभर में किन्नरों पर उपलब्ध सामग्री खोजते रहते हैं।
' कैसे और किस मुंह से पूछूं: दीकरा तू कैसा है? फिर भी एक बात पूछना चाहती हूं।
तुझे तो घर से मुम्बई की चंपाबाई ले गयी थी। दिल्ली कैसे पहुंच गया तू?
चल छोड़! वह सब इतिहास जानकर करूंगी भी क्या? मन का सन्ताप बढ़ेगा ही। तेरी हूक को छाती में दफनाए रखने में ही गनीमत ठहरी। जाने क्यों उसे बार-बार उधेड़ती हूं...
सुन बा, मेरी बा, अब तू मेरी चिन्ता करना छोड़ दे।
सच बताऊं, अपनी मंडली के साथ मेरा स्वयं का व्यवहार हिंसक असन्तोष से भरा हुआ है।
जिस जिन्दगी का हिस्सा अचानक मुझे बना दिया गया था, वह इतना आकस्मिक और अविश्वसनीय था कि मेरा किशोरमन उसे किसी भी रूप में पचा पाने में असमर्थ था। मनुष्य के दो ही रूप अब तक देखे थे मैंने इस तीसरे रूप से मैं परिचित तो था लेकिन उसे मैं पहले रूप का ही एक अलग हिस्सा मानता था।
तूने मेरे जन्मते ही मनुष्य के इस तीसरे रूप को देख लिया था न बा! उसी समय खतम कर देना था न बा मुझे! तू किस मोह में पड़ गयी थी, बोल?
मोटा भाई गलत नहीं लग रहे मुझे। वह अपने बच्चे के साथ वह सब होता हुआ नहीं देखना चाहते हैं जो मेरे साथ घटा। वह विडम्बना का भागी नहीं बनना चाहते हैं।
बस्! एक बात उनकी नहीं जमी मेरे को। घर से अलग होने की।
मोटा भाई का नाम सिद्धार्थ किसने रखा था।
चलो छोड़ो बा! पहले से ही तू कम परेशान नहीं। कोई हक नहीं बनता मुझे, जो हुआ, उसके लिए तुझे कोसूं। कोसा नहीं तुझे, यह नहीं कह सकता।
ध्यान करने का तेरा सुझाव भी स्वयं को साधने में मेरी मदद कर रहा है।[adinserter block="1"]
गजब लगता है मुझे। उन्होंने स्वीकार कर लिया है। उनकी बिरादरी के इस सदस्य को पढ़ने-लिखने की बीमारी है। 'इंडिया टुड़े' अपने लिए खरीदता हूं तो इनके लिए हिन्दी स्टारडस्ट खरीद कर ले आता हूं। पूनम और चन्द्रा फिल्मी हीरो-हीरोइनों को घंटों पन्नों में ताकती रहती हैं। पूनम पढ़ना-लिखना सीखना चाहती है। उसने अपना नाम लिखना सीख लिया है। सबके खाते, डाकखाने में ले जाकर खुलवा दिए हैं। स्थानीय विधायक जी की पैरवी ने बड़ी मदद की। पूनम अड़ गयी थी। वह तब तक अपना खाता नहीं खुलवाएगी जब तक अपना नाम ठीक से लिखना नहीं सीख जाएगी। अंगूठा लगाना उसे मंजूर नहीं था। जो तय कर लेती है, उसे करके ही दम लेती है।
उनका अन्न खाता हूं तो उनके कुछ महत्त्वपूर्ण काम मैंने अपने जिम्मे ले लिए हैं। सरकारी, गैर सरकारी अस्पतालों के जचकी वार्डों के चक्कर लगा, नये जन्मे बच्चों के घर-घाट के अते पते नोट कर लाता हूं ताकि वह उनसे बधावा उगाहने की रस्म पूरी कर सकें। हारी - बीमारी में अस्पताल लेकर दौड़ पड़ता हूं। अंग्रेजी भाषा के जलवे देख वह भौच्चक हो उठते हैं।
समझ गए हैं। गाली-गलौज और धौंस-पट्टी से वह मुझसे मनचाहा काम नहीं करवा सकते। धोती उठाकर मैं उनकी भांति लम्बी गाड़ी वालों से भीख तो मांग सकता नहीं।
कोशिश में हूं बा। उनसे छिपाकर कोई बड़ा काम सीख सकूं ताकि किसी भी रूप में उन पर निर्भर न रहूं। अधूरी शिक्षा आड़े आ जाती है गाड़ियां मजबूरी में धोता हूं। कहीं और भाग सकता नहीं। एक बार भागा था, बा। पड़ोस के बेकरी वाले हामिद मियां के आश्वासन पर। सोचा था, दिल्ली से अलीगढ़ दूर है। नहीं ढूंढ पाएंगे, लेकिन गलतफहमी में था। एक सुबह पाया, बेकरी का शटर उठाया ही था कि दल के सरदार तुलसीबाई को प्रेत सा सामने खड़ा पाया।
देशी कट्टा सीने पर तना था। हामिद मियां ने गिड़गिड़ाते हुए हाथ उठा दिए थे।
उस रोज ठिकाने पर पहुंचते ही सरदार ने जिस बेरहमी से मुझे मारा था, बा। खोपड़ी में चार टांके आए थे। निचले जबड़े के दो दांत हिल गये थे। सफदरजंग के दांतों के विभाग में उन दांतों को तार से कसा गया था।
पूनम बहुत रोई थी, तू कहीं न जा। आंखों के सामने बना रहेगा तो नाशपीटा सरदार तेरी हरकतों को नजरअन्दाज करता रहेगा, करता ही है तेरी छूटें औरों को मिली हुई हैं क्या?
सुन बा, सबकी परवाह करते-करते तू अपनी तंदुरुस्ती के प्रति बेपरवाह न हो जाना।
सुन बा, बड़ी सी चिट्ठी लिखना अबकी और बड़ी सी। भले फुरसत के पल अगुआते चिट्ठी टुकड़े-टुकड़े में पूरी हो।
एक बात और...
पूछूं कि न पूछूं...
पिछली चिट्ठी में भी पूछना चाह रहा था मगर साहस नहीं जुटा पाया। वो ... कालबा देवी वाले घर के नीचे, तीसरे माले पर ज्योत्सना रहती थी न! माणिक भाई की बेटी। मेरी ही कक्षा में पढ़ती थी। दूसरे स्कूल में। मारवाड़ी विद्यालय ग्रांट रोड में।
कुछ खबर है उसकी बा?
बा, पगे लागूं
तेरा बिन्नी उर्फ विनोद उर्फ बिमली
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चार

22.09.2011
3/4, मोहन बाबा नगर, बदरपुर, दिल्ली
मेरी बा,
महीनाभर होने का आया तेरी चिट्ठी क्यों नहीं आई?
तूने कहा था कि घर के पास ही मंदिर है और मंदिर के पास पोस्ट आफिस! मंदिर तू बिना नागा जाती है। मेरी चिट्ठियां निश्चित ही मिल गयी होंगी तुझे।
तब तो देरी का कोई कारण नहीं होना चाहिए। मन को शंकाएं घेर रही हैं। कहीं मेरी कोई चिट्ठी मोटा भाई के हाथ तो नहीं लग गयी? हंगामा खड़ा कर दिया हो उन्होंने कहा नहीं जा सकता। मेरी चिट्ठी में उन्हें मेरा भूत नजर आने लगे। मैं हमेशा सोचता था बा - बड़े होकर मैं मोटा भाई की तरह ऊंची-खूबसूरत कद-काठी निकाल लूं और उनके जैसे आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक बनू। पप्पा सरीखा टिंगू न रह जाऊं। वह शंका तो निर्मूल सिद्ध हुई थी। आठवीं कक्षा में ही मैंने पप्पा के कद को पार कर लिया था मगर उनके व्यक्तित्व का शंकालू पक्ष मुझे कभी नहीं भाया। समझ नहीं पाता था। इतने संकीर्ण क्यों हैं मोटा भाई। मोटा भाई की प्रकृति का यह पक्ष मैं अपने व्यक्तित्व में कभी नहीं विकसित होने दूंगा।
तू भूली नहीं होगी, बा! सेजल भाभी और मोटा भाई में एक बार भयंकर झगड़ा हुआ था। बंद कमरे के दरवाजे कमरे का पर्दा बनाए रखने में असमर्थ हो उठे थे। सेजल भाभी दूसरी सुबह बलसाड़ चली गयी थीं। मायके। तीसरे रोज तूने मोटा भाई को उन्हें लिवाने, बलसाड़ जबरन भेजा था। सेजल भाभी तब समझदार थीं। घर लौट आईं। मैंने सेजल भाभी से पूछा था, आपका जीनियस सिद्धार्थ आपसे नाराज क्यों हो गया था? तो सेजल भाभी ने सजल होकर कहा था, 'मुझसे मेरे पूर्व प्रेमी की चिट्ठियां चाहिए उन्हें।'
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Q. पोस्टबॉक्स नं. 203 नाला सोपारा PDF । Postbox No.203 Nala Sopara किताब के लेखक कौन है?
Answer.   चित्रा मुद्गल / Chitra Mudgal  
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