नारायण क्षीरसागर पर सोते हैं। इस सागर का कोई तट नहीं है। यह दूध से बना है। इसमें लहरें नहीं उठतीं। जब नारायण जागेंगे तो क्षीर सागर से सभी चीजें निकलकर बाहर आ जाएँगी; ठीक उसी तरह जिस तरह दूध मथने से मक्खन निकल आता है। इस तरह क्षीरसागर संभावना का प्रतीक है। जब नारायण सोते हैं तो विश्व अस्तित्वहीन हो जाता है। उसका कोई रूप मौजूद नहीं होता। जिस नाग पर नारायण सो रहे हैं; उसे शेष कहते हैं। शेष का अर्थ है बाकी बचा हुआ। सबकुछ नष्ट होने पर भी जो बचा रहता है वह शेष कहलाता है।