मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF Download Book by Osho

मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , ओशो / Osho all Hindi PDF Books Download Free, मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu book Review & Summary

पुस्तक का विवरण (Description of Book मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF Download) :-

नाम : मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu Book PDF Download
लेखक :
आकार : 2.5 MB
कुल पृष्ठ : 295
श्रेणी : आध्यात्मिकता / Spritualityदार्शनिक / Philosophicalधार्मिक / Religious
भाषा : हिंदी | Hindi
Download Link Working

[adinserter block=”1″]

“समाधि में साधक मरता है स्वयं, और चूंकि वह स्वयं मृत्यु में प्रवेश करता है, वह जान लेता है इस सत्य को कि मैं हूं अलग, शरीर है अलग। और एक बार यह पता चल जाए कि मैं हूं अलग, मृत्यु समाप्त हो गई। और एक बार यह पता चल जाए कि मैं हूं अलग, और जीवन का अनुभव शुरू हो गया। मृत्यु की समाप्ति और जीवन का अनुभव एक ही सीमा पर होते हैं, एक ही साथ होते हैं। जीवन को जाना कि मृत्यु गई, मृत्यु को जाना कि जीवन हुआ। अगर ठीक से समझें तो ये एक ही चीज को कहने के दो ढंग हैं। ये एक ही दिशा में इंगित करने वाले दो इशारे हैं।”—ओशो

मृत्यु से अमृत की ओर ले चलने वाली इस पुस्तक के कुछ विषय बिंदु:
* मृत्यु और मृत्यु-पार के रहस्य
* सजग मृत्यु के प्रयोग
* निद्रा, स्वप्न, सम्मोहन व मूर्च्छा के पार — जागृति
* सूक्ष्म शरीर, ध्यान व तंत्र-साधना के गुप्त आयाम

अनुक्रम
#1: ध्याआयोजित मृत्यु अर्थात न और समाधि के प्रायोगिक रहस्य
#2: आध्यात्मिक विश्व आंदोलन—ताकि कुछ व्यक्ति प्रबुद्ध हो सकें
#3: जीवन के मंदिर में द्वार है मृत्यु का
#4: सजग मृत्यु और जाति-स्मरण के रहस्यों में प्रवेश
#5: स्व है द्वार—सर्व का
#6: निद्रा, स्वप्न, सम्मोहन और मूर्च्छा से जागृति की ओर
#7: मूर्च्छा में मृत्यु है और जागृति में जीवन
#8: विचार नहीं, वरन् मृत्यु के तथ्य का दर्शन
#9: मैं मृत्यु सिखाता हूं
#10: अंधकार से आलोक और मूर्च्छा से परम जागरण की ओर
#11: संकल्पवान—हो जाता है आत्मवान
#12: नाटकीय जीवन के प्रति साक्षी चेतना का जागरण
#13: सूक्ष्म शरीर, ध्यान-साधना एवं तंत्र-साधना के कुछ गुप्त आयाम
#14: धर्म की महायात्रा में स्वयं को दांव पर लगाने का साहस
#15: संकल्प से साक्षी और साक्षी से आगे तथाता की परम उपलब्धि

[adinserter block=”1″]

“In samadhi the meditator dies himself, and since he himself enters into death, he knows the truth that I am separate, the body is separate. And once it is known that I am separate, death is finished. And once it is known that I am separate, and the experience of life begins. The cessation of death and the experience of life are on the same border, together. Knowing life that death is gone, death is Knowing that life happened. If understood properly, these are two ways of saying the same thing. These are two gestures pointing in the same direction.”—

OSHO :
* Secrets of Death and Beyond Death *
Experiments with Conscious Death
* Beyond Sleep, Dream, Hypnosis and Unconsciousness – Awakening
* Secret Dimensions of the Subtle Body, Meditation and Tantra-Sadhana

[adinserter block=”1″]

Sequence
#1: Meditation on Death and the Experimental Secrets of Samadhi
#2: The Spiritual World Movement—So That Some May Become Enlightened
#3: Death Is the Door in the Temple of Life
#4: Conscious Death and Entry into the Mysteries of Caste-Remembering
# 5: The Self is the Door to All
#6: From Sleep, Dream, Hypnosis, and Unconsciousness to Awakening
#7: There is Death in Unconsciousness and Life in Awakening
#8: Not Thoughts, But the Reality of Death
#9: I am Death Teaches
#10: From Darkness to Light and Unconsciousness to Ultimate Awakening
#11: Willful – Becomes Soul
#12: Awakening of Witness Consciousness to Dramatic Life
#13: Some of the Subtle Body, Meditation and Tantra Secret Dimension
#14: The Courage to Stake Oneself in the Grand Tour of Dharma
#15: Witnessing through will and witnessing beyond witnessing, the ultimate attainment of Tathagata

मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF Download Free in this Post from Telegram Link and Google Drive Link , ओशो / Osho all Hindi PDF Books Download Free, मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF in Hindi, मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu Summary, मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu book Review

[adinserter block=”1″]

पुस्तक का कुछ अंश (मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF Download)

मेरे एक मित्र पागल थे। वह पागल थे और एक पागलखाने में बंद कर दिए गए। पागलपन में उन्होंने फिनाइल की एक बाल्टी, वहां पागलखाने में रखी थी, वह पी गए। उसके पी जाने से उनको कोई इतनी उल्टियां हुईं, इतने दस्त लगे कि पंद्रह दिन तक सारा शरीर रूपांतरित हो गया। उनकी सारी गर्मी जैसे शरीर से निकल गई और वह ठीक हो गए। लेकिन उन्हें छह महीने के लिए पागलघर में भेजा गया था। वह ठीक हो गए। उन्होंने मुझसे कहा कि जब मैं पागल था तब, और जब मैं ठीक हो गया उस पागलपन में और तीन महीने तक ठीक होकर पागलघर में रहा, तब जो मैंने पीड़ा अनुभव की, उसका हिसाब लगाना बहुत मुश्किल है। जब तक मैं पागल था, तब तक कोई कठिनाई न थी, क्योंकि और भी सब मेरे जैसे लोग थे। जब मैं ठीक हो गया, तब मुझे लगा कि मैं कहां हूं! क्योंकि मैं सो रहा हूं और दो आदमी मेरी छाती पर सवार हो गए हैं। मैं चल रहा हूं और कोई मुझे धक्के मार रहा है। इस सबका मुझे कुछ भी पता नहीं चला था, क्योंकि मैं भी पागल था। मुझे यह भी पता नहीं चला था कि ये लोग पागल हैं जब तक मैं पागल था। जब मैं पागल न रहा तो मुझे पता चला कि ये सारे लोग पागल हैं। और जैसे ही मैं पागल न रहा, मैं उन सारे पागलों का शिकार बन गया। और मेरी कठिनाई कि मुझे सब समझ में आ रहा था कि अब मैं बिलकुल ठीक हूं, और अब क्या होगा और क्या नहीं होगा, अब मैं कैसे बाहर निकलूं! और अगर मैं चिल्लाकर कहता था कि मैं पागल नहीं हूं, तो सभी पागल यही चिल्लाकर कहते हैं कि हम पागल नहीं हैं, कोई डाक्टर मानने को राजी नहीं था।
हमारे चारों तरफ सोए हुए लोगों की भीड़ है, और इसलिए हमें पता नहीं चलता कि हम सोए हुए आदमी हैं। और जागे हुए आदमी की हम जल्दी से हत्या कर देते हैं, क्योंकि वह आदमी हमें बहुत कष्टपूर्ण मालूम होने लगता है, बहुत डिस्टर्बिंग, बहुत विघ्नकारक मालूम होने लगता है।
एक अंग्रेज विद्वान कैनेथ वाकर ने एक किताब लिखी है और उस किताब को एक फकीर गुरजिएफ को समर्पित किया है। समर्पण में, डेडीकेशन में उसने जो शब्द लिखे हैं, वे बड़े अदभुत हैं। उसने डेडीकेशन में, समर्पण में लिखा है: ‘टु जार्ज गुरजिएफ, दि डिस्टर्बर आफ माई स्लीप।’ मेरी नींद तोड़ने वाले जार्ज गुरजिएफ को समर्पित।[adinserter block=”1″]

थोड़े-से लोग जमीन पर हुए हैं, जो नींद तोड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन अगर आप किसी की नींद तोड़ने की कोशिश करेंगे, तो निश्चित वह आपसे बदला लेगा। किसी सोते हुए आदमी को जगाने की कोशिश करिए, वह आपकी गरदन पकड़ लेगा। आज तक मनुष्य को आध्यात्मिक नींद से जिन्होंने जगाने की कोशिश की है, हमने उनकी भी गरदनें पकड़ ली हैं। हमारे बीच हमें पता नहीं चलता इसीलिए कि हम सब एक जैसे सोए हुए और नींद में लोग हैं।
एक गांव के संबंध में मैंने सुना है कि उसमें एक जादूगर आ गया था एक दिन और उसने उस कुएं में गांव के एक पुड़िया डाल दी थी और कहा था: इस कुएं का पानी जो भी पीएगा, पागल हो जाएगा। एक ही कुआं था उस गांव में। एक कुआं और था, लेकिन वह गांव का कुआं न था, वह राजा के महल में था। सांझ होते-होते तक गांव के हर आदमी को पानी पीना पड़ा। चाहे पागलपन की कीमत पर भी पीना पड़े, लेकिन मजबूरी थी। प्यास तो बुझानी पड़ेगी, चाहे पागल ही क्यों न हो जाना पड़े। गांव के लोग कब तक रोकते, उन्होंने पानी पीया। सांझ होते-होते पूरा गांव पागल हो गया।
सम्राट बहुत खुश था, उसकी रानियां बहुत खुश थीं, महल में गीत और संगीत का आयोजन हो रहा था। उसके वजीर खुश थे कि हम बच गए। लेकिन सांझ होते उन्हें पता चला कि गलती में हैं वे, क्योंकि सारा महल सांझ होते-होते गांव के पागलों ने घेर लिया। पूरा गांव हो गया था पागल। राजा के पहरेदार और सैनिक भी हो गए थे पागल। सारे गांव ने राजा के महल को घेरकर आवाज लगाई कि मालूम होता है इस राजा का दिमाग खराब हो गया है। हम ऐसे पागल राजा को सिंहासन पर बर्दाश्त नहीं कर सकते। महल के ऊपर खड़े होकर राजा ने देखा कि बचाव का अब कोई उपाय नहीं है। अपने वजीर से पूछने लगा, अब क्या होगा? हम तो सोचते थे भाग्यवान हैं हम कि हमारे पास अपना कुआं है। आज महंगा पड़ गया है।
सभी राजाओं को एक न एक दिन अलग कुआं महंगा पड़ता है। सारी दुनिया में पड़ रहा है। जो अभी भी राजा हैं, कल उनको भी पड़ेगा महंगा कुआं। अलग कुआं खतरनाक है।[adinserter block=”1″]

लेकिन तब तक खयाल नहीं था। वजीर से कहने लगा, क्या होगा अब? वजीर ने कहा, अब कुछ पूछने की जरूरत नहीं है। आप भागें पीछे के द्वार से, और उस कुएं का पानी पीकर जल्दी लौट आएं। अन्यथा यह महल खतरे में है। सम्राट ने कहा, उस कुएं का पानी! क्या तुम मुझे पागल बनाना चाहते हो? वजीर ने कहा, अब पागल बने बिना कोई बचने का उपाय नहीं है।
राजा भागा, उसकी रानियां भागीं। उन्होंने जाकर उस कुएं का पानी पी लिया। उस रात उस गांव में एक बड़ा जलसा मनाया गया। सारे गांव के लोगों ने खुशी मनाई, बाजे बजाए, गीत गाए और भगवान को धन्यवाद दिया कि हमारे राजा का दिमाग ठीक हो गया है। क्योंकि राजा भी भीड़ में नाच रहा था और गालियां बक रहा था। अब राजा का दिमाग ठीक हो गया था।
चूंकि हमारी नींद सार्वजनिक है, सार्वभौमिक है, चूंकि हम जन्म से ही सोए हुए हैं, इसलिए हमें पता नहीं चलता है। इस नींद में हम क्या समझ पाते हैं जीवन को? इतना ही कि यह शरीर जीवन है। इस शरीर के भीतर जरा भी प्रवेश नहीं हो पाता। यह समझ वैसी ही है, जैसे किसी राजमहल के बाहर दीवाल के आस-पास कोई घूमता हो और समझता हो कि यह राजमहल है। दीवाल पर, बाहर की दीवाल पर, चारदीवारी पर, परकोटे पर, परकोटे के बाहर कोई घूमता हो और सोचता हो कि राजमहल है। और परकोटे की दीवाल से टिककर सो जाता हो और सोचता हो कि महलों में विश्राम कर रहा हूं। शरीर के आस-पास जिनके जीवन का बोध है, वे उसी नासमझ आदमी की तरह हैं जो महल की दीवाल के बाहर खड़े होकर समझता है कि महल का मेहमान हो गया हूं।
शरीर के भीतर हमारा कोई प्रवेश नहीं है, शरीर के बाहर जीते हैं। बस शरीर की पर्त–बाहर की पर्त! भीतर की शरीर की पर्त तक का हमें पता नहीं चलता। दीवाल के बाहर का हिस्सा! दीवाल के भीतर का हिस्सा ही पता नहीं चलता, महल तो बहुत दूर है। दीवाल के बाहर के हिस्से को ही महल समझते हैं, दीवाल के भीतर के हिस्से तक से परिचय नहीं हो पाता।[adinserter block=”1″]

हम अपने शरीर को अपने से बाहर से जानते हैं, हमने कभी भीतर खड़े होकर भी शरीर को नहीं देखा है–भीतर से, फ्राम विदिन। जैसे मैं इस कमरे के भीतर बैठा हूं, आप इस कमरे के भीतर बैठे हैं। हम इस कमरे को भीतर से देख रहे हैं। एक आदमी बाहर घूम रहा है। वह इस मकान को बाहर से देख रहा है। आदमी अपने शरीर के घर में अपने को भीतर से भी देखने में समर्थ नहीं हो पाता है, बाहर से ही जानता है। और तब मौत पैदा हो जाती है। क्योंकि जिसे हम बाहर से जानते हैं, जिसे हम बाहर से जानते हैं वह केवल खोल है। वह केवल बाहरी वस्त्र है। वह केवल मकान के बाहर की दीवाल है, घर का मालिक नहीं। घर का मालिक भीतर है। उस भीतर के मालिक से तो पहचान ही हमारी नहीं हो पाती। भीतर की दीवाल तक से पहचान नहीं हो पाती तो भीतर के मालिक से कैसे पहचान होगी?
यह जो जीवन का अनुभव है फ्राम विदाउट, बाहर से, यह जीवन का अनुभव ही मृत्यु का अनुभव बनता है। यह जीवन का अनुभव जिस दिन हाथ से खिसक जाता है, क्योंकि जिस दिन इस घर को छोड़कर भीतर के प्राण सिकुड़ते हैं और बाहर की दीवाल से चेतना भीतर चली जाती है, उसी दिन बाहर के लोगों को पता चलता है कि मर गया यह आदमी। और उस आदमी को भी लगता है कि मरा, मरा, मरा। क्योंकि जिसे वह जीवन समझता था, वहां से चेतना भीतर सरकने लगती है। जिस तल पर उसे ज्ञात था कि यह जीवन है, उस तल से चेतना भीतर सरकने लगती है नई यात्रा की तैयारी में। और उसके प्राण चिल्लाने लगते हैं कि मरा! गया! सब डूबता है! क्योंकि जिसे वह समझता था कि मैं जीवन हूं, वह डूब रहा है, वह छूट रहा है। बाहर के लोग समझते हैं कि यह आदमी मर गया; और वह आदमी भी मरते क्षण में, इस मरने के क्षण में, इस बदलाहट के क्षण में समझता है कि मैं मरा, मैं मरा, मैं मरा, मैं गया।
यह जो देह है हमारी, यह जो शरीर है, यह शरीर हमारा वास्तविक होना नहीं है। यह हमारा आथेंटिक बीइंग नहीं है। गहराई में इससे बहुत भिन्न और बिलकुल दूसरे प्रकार का हमारा व्यक्तित्व है। इस शरीर से बिलकुल विपरीत और उलटा हमारा जीवन है।[adinserter block=”1″]

एक बीज को हम देखते हैं। बीज की ऊपर की खोल होती है बहुत सख्त, ताकि भीतर जो छिपा हुआ जीवन का अंकुर है कोमल, डेलीकेट, वह उसकी रक्षा कर सके। भीतर का अंकुर तो होता है बहुत कोमल, उसकी रक्षा के लिए एक बहुत कठोर दीवाल, एक घेरा, एक खोल बीज के ऊपर चढ़ी होती है। वह जो खोल है, वह बीज नहीं है। और जो उस खोल को बीज समझ लेगा, वह कभी भी उस जीवन के अंकुर से परिचित नहीं हो पाएगा जो भीतर छिपा है। वह खोल को ही लिए रह जाएगा और अंकुर कभी पैदा नहीं होगा।
नहीं, खोल बीज नहीं है। बल्कि सच तो यह है कि बीज जब पैदा होता है तो खोल को मिट जाना पड़ता है, टूट जाना पड़ता है, बिखर जाना पड़ता है, मिट्टी में गल जाना पड़ता है। जब खोल गल जाती है, तब बीज भीतर से प्रकट होता है।
यह शरीर एक बीज है। और जीवन, चेतना और आत्मा का एक अंकुर भीतर है। लेकिन हम इस खोल को ही बीज समझकर नष्ट हो जाते हैं और वह अंकुर पैदा भी नहीं हो पाता, वह अंकुर फूट भी नहीं पाता। जब वह अंकुर फूटता है, तो जीवन का अनुभव होता है। जब वह अंकुर फूटता है, तो मनुष्य का बीज होना समाप्त होता है और मनुष्य वृक्ष बनता है। जब तक मनुष्य बीज है, तब तक वह सिर्फ पोटेंशियलिटी है, एक संभावना। और जब उसके भीतर वृक्ष पैदा होता है जीवन का, तब वह वास्तविक बनता है। उस वास्तविकता को कोई आत्मा कहता है, उस वास्तविकता को कोई परमात्मा कहता है।

मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF Download Free in this Post from Telegram Link and Google Drive Link , ओशो / Osho all Hindi PDF Books Download Free, मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF in Hindi, मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu Book Summary, मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu book Review

[adinserter block=”1″]

हमने मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए Google Drive की link नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 2.5 MB है और कुल पेजों की संख्या 295 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक ओशो / Osho हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu की PDF को जरूर शेयर करेंगे।

Q. मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu किताब के लेखक कौन है?
 

Answer.
[adinserter block=”1″]

Download
[adinserter block=”1″]

Read Online
[adinserter block=”1″]

 


आप इस किताब को 5 Stars में कितने Star देंगे? कृपया नीचे Rating देकर अपनी पसंद/नापसंदगी ज़ाहिर करें। साथ ही कमेंट करके जरूर बताएँ कि आपको यह किताब कैसी लगी?

4.8/5 - (2191 votes)

2 thoughts on “मैं मृत्यु सिखाता हूँ | Main Mirtyu Sikhata hu PDF Download Book by Osho”

Leave a Comment