महासंग्राम अंतिम युद्ध | Ring of Atlantis Book 8 PDF Download

महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , शिवेन्द्र सूर्यवंशी / Shivendra Suryavanshi all Hindi PDF Books Download Free, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF in Hindi, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha Summary, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha book Review

पुस्तक का विवरण (Description of Book महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF Download) :-

नाम : महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha Book PDF Download
लेखक :
आकार : 6.3 MB
कुल पृष्ठ : 848
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novelपौराणिक / Mythologicalरोमांच / Suspense – thriller
भाषा : हिंदी | Hindi
Download Link Working

[adinserter block=”1″]
देवताओं और दैत्यों के युद्ध में, देवताओं को हानि से बचाने के लिये, महादेव ने ‘नागदंत कथा’ का सृजन किया। यही नागदंत कथा आगे जाकर ‘समुद्र-मंथन’ का पर्याय बनी और इसी समुद्र-मंथन के पश्चात्, उससे निकले ‘हलाहल’ से, एक दिव्य पुरुष ‘नीलाभ’ की उत्पत्ति हुई। महादेव ने इस नागदंत कथा की सुरक्षा का भार उठाने के लिये, सप्ततत्वों से बनी सप्तपुस्तकों का निर्माण किया। यह सभी सप्तपुस्तकें पृथ्वी के अलग-अलग दुर्गम भागों में छिपा दी गईं।

ब्रह्मांड अनंत है और इस अनंत ब्रह्मांड में करोड़ों-अरबों आकाशगंगाएं हैं। इन्हीं आकाशगंगाओं में कुछ ग्रह ऐसे भी हैं? जहां पर पृथ्वी की ही भांति जीवनधारा बहती है। ब्रह्मांड के सृजन का रहस्य मनुष्य ही नहीं, अपितु अनंत ब्रह्मांड में छिपे असंख्य जीव भी जानना चाहते हैं। इन्हीं जीवों में से कुछ अंतरिक्ष के जीव, ब्रह्मांड का सृजन करने वाली दिव्य शक्तियों को लेने के लिये पृथ्वी तक आ पहुंचे। परंतु इन दिव्य शक्तियों की सुरक्षा का भार ब्रह्मांड रक्षकों के हाथों में था।

कहते हैं कि महाविनाश के बाद नवसृजन की शुरुआत होती है और उस महाविनाश से पहले महासंग्राम की पटकथा लिखी जाती है। कुछ ऐसी ही पटकथा अंतरिक्ष के जीवों और ब्रह्मांड रक्षकों के मध्य लिखी गई, जिससे एक ऐसे महासंग्राम की उत्पत्ति हुई, जिसने पृथ्वी के महाविनाश की अंतिम गाथा लिख दी-[adinserter block=”1″]

1) कौन था नेत्रक? जिसका विष शेषनाग की त्वचा को भी झुलसाने की शक्ति रखता था।
2) चक्षुराज की उड़ने वाली आँख का क्या रहस्य था?
3) कौन थी ड्रैगन माँ? और वह ड्रैगन पर्वत पर क्यों रहती थी?
4) क्या था समुद्र के अंदर स्थित एक अद्भुत राज्य ‘भाग्यनगर’ का रहस्य? जिसमें अनेकों विशाल मूर्तिंयां बनी थीं।
5) वेनेजुएला में स्थित ‘मैराकाइबो’ झील का क्या रहस्य था? क्यों प्रतिदिन उस झील में सैकड़ों बार आकाशीय बिजली गिरती थी?
6) महादेव ने कणिका को कणों में बदलने की शक्ति क्यों दी थी?
7) क्या था उड़ने वाले पर्वत का रहस्य? जो नक्षत्रलोक से टकराकर उसे समाप्त करना चाहता था।
8) क्या थी पेन्टॉक्स की पंचतारा शक्ति? जिसने सुयश को कणों में तोड़कर अंतरिक्ष में बिखेर दिया।
9) क्या था कैलीफोर्निया की ‘रेस ट्रैक डेथ वैली’ का रहस्य? जहां जमीन पर गिरे विशाल पत्थर स्वयं से चलने लगते थे।
10) क्या सहारा रेगिस्तान पर बनी विशाल ‘नीली आँख’ में कोई रहस्यमय शक्ति छिपी थी?
11) क्या आसमान में उत्पन्न हुए ब्लैक होल ने हिमालय की पूरी बर्फ को पिघला दिया?
12) क्या हुआ जब पृथ्वी के एक भूभाग में 16.2 रिएक्टर स्केल का महाभूकंप आया?

तो दोस्तों इन सभी प्रश्नों के उत्तर को जानने के लिये आइये पढ़ते हैं, पृथ्वी के गुप्त स्थानों पर छिपी सप्तपुस्तकों की एक ऐसी महागाथा, जिसने नीलाभ के जन्म का सार ही बदल दिया। जिसका नाम है-

“महासंग्राम- अंतिम युद्ध”
महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF Download Free in this Post from Telegram Link and Google Drive Link , शिवेन्द्र सूर्यवंशी / Shivendra Suryavanshi all Hindi PDF Books Download Free, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF in Hindi, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha Summary, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha book Review

[adinserter block=”1″]

पुस्तक का कुछ अंश (महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF Download)

चैपटर-1

नेत्रक
20,053 वर्ष पहले ………
नागधरा राज्य, दंडकारण्य वन,

 विशाल दंडकारण्य वन के पूर्वी भाग में स्थित था। प्रातःकाल का समय था, इसलिये दंडकारण्य वन के अधिकांश बड़े जीव अपने-अपने घरों में सोने के लिये जा चुके थे, परंतु कुछ छोटे जीव जैसे खरगोश, गिलहरियां आदि उछल-कूद मचा रहे थे। पक्षियों का कलरव भी वातावरण में गूंज रहा था
ऐसे समय में नागकन्या नीलांगी अपने हाथ में तीर-धनुष लिये, दबे पाँव वन में एक ओर बढ़ रही थी। उसके साथ 4 और योद्धा नागकन्याएं भी थीं। योद्धा नागकन्याओं के पास भी तीर धनुष थे।
इस समय नीलांगी ने गाढ़े नीले रंग के, पौराणिक भारतीय वस्त्र धारण कर रखे थे, जिस पर सुनहरी बिन्दियां और रेखाएं थीं। माथे पर लंबी नीली बिन्दी, कानों में स्वर्ण कुण्डल एवं व्यवस्थित बंधे हुए बालों में लगा सुनहरा कर्णफूल, नीलांगी के व्यक्तित्व को किसी साम्राज्ञी सा प्रतीत करा रहे थे?
नीलांगी के साथ चल रही योद्धाओं ने नीले रंग के साधारण वस्त्र पहन रखे थे।[adinserter block=”1″]
इन सभी में नीलांगी सबसे आगे थी। इस समय सभी पूरी तरह से सावधान होकर आगे बढ़ रहीं थीं।
“नागरानी, हम इस प्रकार कब तक आगे बढ़ते रहेंगे?” दलपति नागिका ने फुसफुसाते हुए नीलांगी से पूछा- “हमें तो पता भी नहीं है कि वह अदृश्य जीव, जिसने हमारे सैनिकों पर हमला किया, वह गया किस ओर है? मुझे लगता है कि अब हमें वापस नागधरा लौट चलना चाहिये और उस अदृश्य जीव के अगले हमले की प्रतीक्षा करनी चाहिये। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगली बार हम अवश्य ही उस जीव को पकड़ने में सफल हो जायेंगे।”
नागिका को बोलते देख, नीलांगी ने अपने होंठों पर उंगली रखकर नागिका की ओर देखा और फिर उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।
तभी दल की एक योद्धा का पैर अंजाने में ही एक सूखे पत्ते पर पड़ गया। इसी के साथ वातावरण में पत्ते के चरचराने की जोर की आवाज सुनाई दी- “चर्रऽऽऽ चर्रऽऽऽऽ।”
पत्तों की चरचराहट की आवाज सुनते ही सभी अपने स्थान पर चुपचाप खड़ी हो गईं, परंतु इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता? कि तभी एक ओर से कोई नुकीली चीज तेजी से आई और सूखे पत्तों पर खड़ी उस योद्धा के गले में घुस गई, जिसके पैर कुछ क्षण पहले सूखे पत्ते पर पड़े थे।
एक पल में वह नागकन्या योद्धा लहराकर जमीन पर गिर पड़ी।
नीलांगी ने पलटकर उस जमीन पर गिरी योद्धा को देखा। उस योद्धा के गले में एक नीले रंग का नुकीला डंक घुसा हुआ था, जिसका आकार 3 इंच के आसपास था। वह योद्धा अब मृत्यु को प्राप्त हो गई थी।
“कोई भी अपनी जगह से हिलना नहीं?” नीलांगी ने फुसफुसाते हुए कहा- “वह अदृश्य जीव हमारे आसपास ही है।“
नीलांगी की बात सुनकर बाकी की 3 नागकन्या योद्धा, पूर्ण रुप से सतर्क नजर आने लगीं। अब सभी के हाथ अपने धनुष की प्रत्यंचा पर कस गये, जिस पर पहले से ही एक तीर चढ़ा था।
नीलांगी की नजरें तेजी से उस दिशा में घूमीं, जिस दिशा से वह डंक आया था, परंतु नीलांगी को उस दिशा में लहराते पेड़ों के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं दिया?[adinserter block=”1″]

नीलांगी ने अब बाकी के योद्धाओं को पेड़ों की ओट में जाने का इशारा किया, पर जैसे ही एक नागकन्या ने अपने कदमों को हिलाया, हवा में उड़ता हुआ एक और नुकीला डंक उस दिशा में आया। यह डंक उस नागकन्या के कंधे में आकर धँस गया।
परंतु इस बार नीलांगी ने उस डंक के आने की दिशा को देख लिया और बिना एक भी क्षण गंवाए, उस दिशा में एक के बाद एक 3 तीर छोड़ दिये।
नीलांगी के 2 तीर तो जाकर एक पेड़ के तने में धँस गये, परंतु एक तीर जाकर उस अदृश्य जीव की पीठ में धँस गया, जो कि अपने शरीर का रंग पेड़ के तने के समान बनाकर, पेड़ से चिपका हुआ था।
तीर के लगते ही उस जीव ने एक तेज आवाज निकाली- “किर्रऽऽऽऽ किर्रऽऽऽ।”
अब उस जीव ने फूल सरीखी अपनी पूंछ से, एक साथ 6-7 डंक सभी योद्धाओं की ओर उछाल दिये। आश्चर्य की बात यह थी कि उस जीव की पूंछ से एक डंक के हटते ही, वहाँ पर तुरंत दूसरा डंक नजर आने लग रहा था।
पर इस बार नीलांगी पूरी तरह से तैयार थी। उसने पास आ रहे डंकों को देख, बिजली की फूर्ति दिखाते हुए सभी डंकों पर तीरों की बौछार कर दी।
कमाल की धनुर्विद्या थी नीलांगी के पास। क्योंकि नीलांगी के द्वारा चलाये गये तीरों ने सभी डंकों को रास्ते में ही बींध दिया।
उधर वह अदृश्य जीव उछलकर पेड़ों के ऊपर छलांग लगाता, एक दिशा की ओर भागा।
हिलते हुए पेड़ों के पत्ते और उनसे होने वाली ध्वनि को सुनते हुए, नीलांगी ने उस जीव पर तीरों की बारिश सी कर दी। नीलांगी के कई तीर उस जीव को जाकर लगे, पर फिर भी वह जीव उछलता-कूदता, फिर से अदृश्य हो गया।
सभी कुछ पलों में घटित हो गया और इसके बाद फिर से वही रहस्यमय सन्नाटा वातावरण में छा गया।
नीलांगी की आँखें उस योद्धा के कंधे की ओर गईं, जिसके कंधे पर डंक चुभा हुआ था। उस योद्धा के कंधे के आसपास का क्षेत्र अब नीला पड़ने लगा था और उस योद्धा की आँखें बंद होती जा रहीं थीं।[adinserter block=”1″]

“इसके कंधे को देखकर लग रहा है कि वह जीव हम लोगों से भी ज्यादा विषाक्त है, इसलिये हमें इस जीव से और अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है।” नीलांगी ने अब नागिका की ओर मुड़ते हुए कहा- “नागिका, इस योद्धा को तुरंत उपचार की आवश्यकता है, इसलिये तुम दोनों इस योद्धा को लेकर, तुरंत नागधरा के वैद्य ‘नागवंत’ के पास जाओ। इधर मैं अकेले ही उस जीव से निपटती हूँ।”
नीलांगी के शब्द सुनकर नागिका आश्चर्य से भर उठी- “यह आप क्या कह रहीं हैं नागरानी? मैं आपको अकेले उस जीव से टकराने नहीं भेज सकती। आपने देखा नहीं कि वह जीव कितना खतरनाक है? अगर आप अकेले उस जीव को मारने के लिये गईं, तो आप ….. मृत्यु को भी प्राप्त हो सकती हैं? …. ऐसे में मैं महाराज को क्या बताऊंगी? नहीं-नहीं मैं आपको अकेले नहीं जाने दे सकती। मैं भी आपके साथ चलूंगी।”
“यह मेरा आदेश है नागिका, तुम्हें इन दोनों योद्धाओं को लेकर यहाँ से जाना ही होगा। …. और तुम्हें मेरी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है? मैं स्वयं को सुरक्षित रखना भली-भांति जानती हूँ। इसलिये विलंब करके मेरे कार्य में बाधा मत डालो, नहीं तो वह अदृश्य जीव दूर निकल जायेगा।”
इतना कहकर नीलांगी, किसी हिरनी के समान उछलती हुई, दंडकारण्य वन में ओझल हो गई। नीलांगी को जाते देख नागिका ने अपने सिर को हल्का सा झटका दिया और दूसरी योद्धा के साथ मिलकर घायल योद्धा को उठा लिया। इसके बाद नागिका, नागधरा की ओर चल पड़ी।
उधर नीलांगी दंडकारण्य वन में लगातार आगे बढ़ रही थी। इस समय वह पूरी तरह से सावधान थी और अपने चारो ओर देखती हुई, सतर्क भाव से आगे बढ़ रही थी।
तभी नीलांगी को जमीन पर गिरी नीले रंग की द्रव्य की कुछ बूंदे दिखाई दीं?[adinserter block=”1″]

नीलांगी ने सावधान मुद्रा में, झुक कर उस द्रव्य की बूंदों को ध्यान से देखा और फिर उसकी नजर आगे की ओर चली गई।
“यह तो नीले रंग का रक्त लग रहा है। लगता है कि उस जीव के रक्त का रंग नीला है? और वह मेरे चलाए बाणों से घायल भी हो गया है।” यह सोच नीलांगी थोड़ा और आगे बढ़ गई।
आगे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर वैसी ही कुछ बूंदे और गिरी हुई थीं? जो कि एक दिशा की ओर जा रही थीं।
“मुझे इन रक्त की बूंदों का पीछा करते हुए, उस अदृश्य जीव तक पहुंचना होगा।” नीलांगी मन ही मन बुदबुदाई और पुनः रक्त के निशान को देखती, दबे कदमों से आगे की ओर बढ़ने लगी।
कुछ आगे चलने के बाद नीलांगी को एक ‘कल-कल’ बहते झरने की आवाज सुनाई देने लगी, जो कि कुछ दूरी से आ रही थी?
“अरे! यह निशान तो ईव नदी के झरने की ओर जा रहे हैं, जहां पर महादेव का प्राचीन मंदिर भी है। कहते हैं कि वह स्थान नागधरा राज्य का सबसे रहस्यमई स्थान है और वहाँ जाने वाला कभी भी वापस नहीं आता? …. तो क्या मुझे रुक जाना चाहिये? … नहीं-नहीं उस जीव के इतना पास पहुंच कर अब रुकना ठीक नहीं है और वैसे भी यह दंतकथाएं तो अत्याधिक प्राचीन हैं। मुझे आगे बढ़ना ही होगा।”
ना जाने कौन सा रहस्य छिपा था, ईव नदी के उस झरने के पास? जिसे सोच अचानक से नीलांगी व्याकुल हो उठी थी?
महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF Download Free in this Post from Telegram Link and Google Drive Link , शिवेन्द्र सूर्यवंशी / Shivendra Suryavanshi all Hindi PDF Books Download Free, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF in Hindi, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha Book Summary, महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha book Review

[adinserter block=”1″]

हमने महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए Google Drive की link नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 6.3 MB है और कुल पेजों की संख्या 848 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक शिवेन्द्र सूर्यवंशी / Shivendra Suryavanshi हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha की PDF को जरूर शेयर करेंगे।

Q. महासंग्राम अंतिम युद्ध | Mahasangram antim yuddha किताब के लेखक कौन है?
 

Answer.
[adinserter block=”1″]

Download
[adinserter block=”1″]

Read Online
[adinserter block=”1″]

 


आप इस किताब को 5 Stars में कितने Star देंगे? कृपया नीचे Rating देकर अपनी पसंद/नापसंदगी ज़ाहिर करें। साथ ही कमेंट करके जरूर बताएँ कि आपको यह किताब कैसी लगी?

Other Books of Author:

Leave a Comment