लिखि कागद कोरे / Likhi Kagad Kore PDF Download Free Hindi Book by Agyey

पुस्तक का विवरण (Description of Book of लिखि कागद कोरे / Likhi Kagad Kore PDF Download) :-

नाम 📖लिखि कागद कोरे / Likhi Kagad Kore PDF Download
लेखक 🖊️   अज्ञेय / Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey  
आकार 7.2 MB
कुल पृष्ठ126
भाषाHindi
श्रेणी
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लिखि कागद कोरे ' अज्ञेय के ' निजी निबंधों ' का संग्रह है । इसका दूसरा संस्करण 1973 में प्रकाशित हुआ था।

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पुस्तक का कुछ अंश

सपने मैं ने भी देखे हैं

मेरी एक कविता है, 'सपने मैंने भी देखे हैं'। उस में कुछ उन स्वप्नों का चित्र खींचने की भी कोशिश की गयी है। पर अभी निरे रंगीन सपनों की बात क्या करनी ? पाठक के सपने ज़रूर मेरे सपनों से ज्यादा रंगीन होंगे- मेरे सपनों के रंग धुँधले भी तो पड़ गये हैं !

कहते हैं कि अच्छी नींद वह होती है जिसमें सपने नहीं आते। मैं तो अच्छी ही नींद सोता हूँ। कभी सपने आते भी हैं तो याद नहीं रहते, सबेरे कुछ ध्यान रहता है कि अच्छा सा सपना देखा था, पर क्या, यह याद नहीं पाता। बस अच्छाई की जो छाप रहती है, उसी को लिये दिन भर काट देता हूँ ।

बचपन के सपने भी कुछ ऐसे ही होते हैं: जब जागें तो सपने की मिठास बनी रहे, और कुछ याद रहे या न रहे-यही तो चाहिए ! अपनी कहूँ तो आप को एक रहस्य की बात बता दू - मुझ में वह मिठास तो बनी ही हुई है; उसी के कारण मैं ने यह सोच लिया है कि असल में मेरा सब से बढ़िया सपना वह हैं जो मैं अब देखूंगा। आज देखूंगा कि कल देखूंगा कि परसों, यह तो कोई सवाल नहीं है; देखूंगा, बस, यह * 'बचपन के सपने' : इस शीर्षक से बच्चों के कार्यक्रम में रेडियो से प्रसारित एक बात का किंचित् परिवर्तित (पठ्य) रूप ।
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विश्वास चाहिए और इसी के सहारे मैं जीवन में बराबर नयी स्फूर्ति और उमंग ले कर आगे बढ़ा चलता हूँ। यह भी सवाल नहीं है कि वह • सपना सो कर देखूंगा कि जागते-जागते देखूंगा। क्योकि असल में सच्ची शक्ति उन्हीं सपनों में होती है जो जागते-जागते देखे जाते हैं। नींद में देखे हुए सपने तो छाया से आ कर चले जाते हैं; जो सपने हम जागते जागते देखते हैं वे हमारे जीवन पर छा जाते हैं, उसे भागे चलाते हैं, उसे दिशा और गति देते हैं। आप ने सुना है, कोई-कोई बच्चे नींद में उठ कर चलने लगते हैं, और नींद में ऐसे-ऐसे काम कर लेते हैं जो जागते हुए उन से कभी न बन पड़ते ? --जैसे नसैनी चढ़ जाना, या किसी खतर नाक मुँडेर पर से हो गुजरना- यह सब कैसे होता है ? सपने की ताक़त से। उसी तरह जो सपने हम जागते-जागते देखते हैं, वे हमें ऐसे काम करने की शक्ति दे देते हैं जो हम से बिना उस शक्ति के कभी न हो सकते। ये जागते स्वप्न असल में आदर्श होते है जिन पर हम चलते हैं: ऐसे स्वप्न एक आदमी भी देखता है, समाज भी देखता है, समूचे देश और राष्ट्र भी देखते हैं। स्वाधीनता का स्वप्न जब सारे भारत वर्ष पर छा गया था, तभी तो उस में इतनी शक्ति प्रायी थी कि बिना रक्तपात के वह स्वाधीन हो जाय और एक विशाल लोकतन्त्र स्थापित कर ले संसार का सब से बड़ा लोकतन्त्र !

बरसों हुए, हमारे पड़ोस में एक बच्चा रहता था। बच्चों से प्रक सर लोग पूछा करते हैं, 'तुम बड़े होकर क्या बनोगे ?' वैसे ही इस से

हमने लिखि कागद कोरे / Likhi Kagad Kore PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 7.2 MB है और कुल पेजों की संख्या 126 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक   अज्ञेय / Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey   हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ लिखि कागद कोरे / Likhi Kagad Kore को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।
Q. लिखि कागद कोरे / Likhi Kagad Kore किताब के लेखक कौन है?
Answer.   अज्ञेय / Sachchidanand Heeranand Vatsyayan 'Agyey  
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