पुस्तक का विवरण (Description of Book of लाल किला / Lal Qila PDF Download) :-
नाम 📖 | लाल किला / Lal Qila PDF Download |
लेखक 🖊️ | आचार्य चतुरसेन शास्त्री /Acharya Chatursen |
आकार | 1.6 MB |
कुल पृष्ठ | 112 |
भाषा | Hindi |
श्रेणी | इतिहास, उपन्यास / Upnyas-Novel, ऐतिहासिक |
Download Link 📥 | Working |
लाल किला
मुगल बादशाहों की बेहद रोचक और मार्मिक दास्तान, जो महान साहित्यकार आचार्य चतुरसेन की एक कालजयी रचना है ।
लाल किला सदियों से भारत की आन-बान-शान का प्रतीक रहा है। लाल किला में रहकर सारे हिन्दुस्तान पर शासन चलाने वाले मुग़ल बादशाहों की रोचक और मार्मिक दास्तान को इस उपन्यास में बड़ी ही बारीकी और सजीवता से उकेरा गया है ।
पुस्तक का कुछ अंश :-
1
बाबर का आगमन भारत में मुगल साम्राज्य की नींव जमाने और मुगलों का आगमन भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना का कारण हुआ। उस समय चित्तौड़ की गद्दी पर प्रबल पराक्रमी राणा सांगा उपस्थित थे। उन्होंने अठारह बार दिल्ली के पठान बादशाहों को विजय किया था।
बाबर एक उद्यमी और साहसी योद्धा था। वह दयालु और उदार भी था। गद्दी पर बैठते ही उसने अपने पुत्र हुमायूं को आसपास के प्रान्त विजय करने को भेज दिया और शीघ्र ही बियाना, धौलपुर, ग्वालियर और जौनपुर उसके अधिकार में आ गए। उसकी इस सफलता में उसके हिन्दू वजीर रेमीदास को भारी श्रेय है, जो अत्यन्त बुद्धिमान, चतुर और दूरदर्शी था।
बाबर ने पानीपत के युद्ध में विजय प्राप्त करके दिल्ली प्राप्त की। हुमायूं ने भी अवध, जौनपुर और गाजीपुर जीतकर अपने पिता के राज्य का विस्तार किया। इन्हीं दिनों मेवाड़ के राणा सांगा का प्रताप तप रहा था। बाबर ने सांगा का पराक्रम सुना, राणा ने भी बाबर के दिल्ली अभियान को देखा। दोनों सतर्क होकर अपनी प्रभुता की ओर उन्मुख हुए। बाबर अपनी सेना लेकर दक्षिण की ओर चला। उसने बियाना, धौलपुर और ग्वालियर के किलेदारों को अपनी ओर मिलाकर ये किले ले लिए और बियाना में किले की रक्षा के लिए अपनी थोड़ी फौज छोड़ दी। राणा सांगा ने समाचार मिलते ही बियाना पर आक्रमण किया और बाबर की फौज को मार भगाया। बाबर यह सुनकर आगे बढ़ा और बियाना में ही बाबर और सांगा का प्रथम बार आमना- सामना हुआ। भयानक युद्ध हुआ, अन्त में मुगल सेना परास्त होकर भाग खड़ी हुई। बाबर पराजित होकर लौट गया। मुगल सेना सांगा के शौर्य से इतनी भयभीत हो गई कि उसने उनके साथ अन्य युद्ध करने से इनकार कर दिया। इस पर बाबर ने धर्म और दीन का जोश दिलाकर अपनी फौज की निराशा दूर की। बाबर ने सांगा से सन्धि- चर्चा भी चलाई और इसमें काफी समय लगा दिया। सन्धि- चर्चा चलने से राजपूती सेना में युद्ध का उत्साह ठंडा पड़ने लगा और वे आमोद- प्रमोद में लीन हो गए। अचानक बाबर ने युद्ध की घोषणा कर बियाना के मैदान में अपनी फौज खड़ी कर दी। बाबर की ओर से तोपें आग उगल रही थीं, राजपूती सेना तीर बरसा रही थी। भयानक युद्ध हुआ। इस बार राजपूती सेना परास्त हुई और सांगा अनेक घावों के कारण अपने स्थान पर मृत्यु को प्राप्त हुआ। सांगा के बाद रानियों में अपने- अपने पुत्रें को गद्दी पर बैठाने के लिए झगड़े खड़े हो गए। एक रानी ने तो बाबर की सहायता प्राप्त करने के लिए रणथम्भौर का किला भेंट कर दिया जिससे चित्तौड़ का गर्व खण्डित हो गया। राणा सांगा से युद्ध- विजय के उपलक्ष्य में उत्सव मनाया गया, जिसमें युद्ध- कैदियों को कत्ल करने से शाही तम्बू के सामने खून की नदी बह निकली थी।
सांगा से युद्ध जय करने के बाद बाबर ने चन्देरी, मालवा जय किए। उसे दिल्ली के तख्त पर बैठना नसीब न हुआ। अन्त में घाघरा युद्ध के बाद 1530 ई. में बाबर की आगरा में मृत्यु हुई। उसके शरीर को काबुल ले जाकर दफनाया गया।
बाबर की मृत्यु के बाद उसका बड़ा बेटा हुमायूं 1530 ई- में दिल्ली की गद्दी पर बैठा। उस समय उसकी आयु तेईस वर्ष की थी। हुमायूं वीर युवक था, परन्तु उसमें युद्धनीति का अभाव था और वह जीवन- भर युद्ध करता इधर- उधर भागता फिरा। इस बीच में एक बार पठान राजा शेरशाह और उसके एक हिन्दू सरदार हेमू ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। हुमायूं काबुल भाग गया।
हुमायूं दिल्ली से भागकर अमरकोट पहुंचा। वहां के शासक की शरण में अपनी आसन्नप्रसवा बेगम को छोड़कर आगे बढ़ गया। यहीं अमरकोट में हमीदा बेगम के गर्भ से 15 अक्टूबर, 1542 को अकबर का जन्म हुआ। हुमायूं उस समय वहां से बहुत दूर था। पुत्र जन्म का समाचार सुनकर उसे बहुत प्रसन्नता हुई और उसने एक नेफा काटकर कस्तूरी का एक- एक कण अपने साथियों को बांटकर ईश्वर को धन्यवाद दिया।
शेरशाह के मरने पर देश- भर में अशान्ति मच गई। उस समय दिल्ली में एक फकीर शाहदोस्त रहते थे। उन्होंने अपने एक चेले को हुमायूं के पास एक जूता और चाबुक लेकर भेजा। हुमायूं ने फकीर का मतलब समझ लिया और फिर भारत पर चढ़ाई की तैयारियां कीं। शाह फारस से उसने सहायता मांगी। हुमायूं ईरान, काबुल घूम- फिरकर पन्द्रह हजार सेना इकठ्टी करके फिर भारत में आया और दिल्ली तथा आगरा पर कब्जा कर लिया, परन्तु छः मास बाद ही मर गया।
2
उस समय उसका पुत्र अकबर सिर्फ तेरह वर्ष का था और राज्य की परिस्थिति अनिश्चित थी। दिल्ली और आगरा को छोड़कर उसके पास और कुछ न था। फिर सिकन्दर सूरी और हेमू उसके विरुद्ध तैयार हो रहे थे। हुमायूं ने अपने मित्र बैरमखां के हाथ में अकबर को सौंपा था। बैरमखां एक वीर सेनापति और उच्च वंश का तुर्क था। अकबर ने उसे प्रधानमंत्री और संरक्षक बनाया। बैरमखां ने पानीपत के मैदान में सिकन्दर सूरी और हेमू की संयुक्त सेना को पराजित किया।
हेमू को बन्दी बनाकर तेरह वर्ष के बालक अकबर के सामने खड़ा करके बैरमखां ने कहा, ‘‘तलवार से इसे कत्ल करो।’’
हेमू की आंख में तीर घुस गया था और उससे रक्त बह रहा था। उसके शरीर पर भी घाव थे। यह देख अकबर ने उत्तर दिया, ‘‘मैं घायल व्यक्ति पर हथियार नहीं चला सकता, चाहे वह दुश्मन ही हो।’’
बैरमखां अकबर के इस उत्तर से प्रभावित हुआ और अभिवादन करके हट गया, फिर उसने अपने हाथ से हेमू का कत्ल कर दिया। सिकन्दर सूरी को पंजाब में पराजित कर क्षमादान दे बंगाल जाने दिया। दो वर्ष बाद अकबर ने स्वाधीन होकर राज्य संभाला और बैरमखां को मक्का जाने की आज्ञा दी। उस समय बैरमखां गुजरात में एक मुहिम पर था। अकबर की इस आज्ञा पर रुष्ट होकर बैरमखां मक्का की यात्र पर चल पड़ा, परन्तु मार्ग में उसे अकबर से विद्रोह करने की सूझी। उसने सेना एकत्र करनी आरम्भ कर दी। अकबर ने सूचना पाते ही सेना भेज दी, जिसने उसे युद्ध में परास्त करके बंदी बना लिया। परन्तु अकबर ने बैरमखां को सम्मान सहित दरबार में लाने की आज्ञा दी।
बैरमखां नंगे सिर, नंगे पांव, गले में दुपट्टा लपेटकर अकबर के सम्मुख आकर जमीन पर लेट गया। अकबर ने तख्त से उठकर उसे उठाया और वजारत की कुर्सी पर बैठाकर कहा, ‘‘चन्देरी और कालपी के सूबे आपको दिए जाते हैं।’’
‘‘नहीं, मैं अब इस काबिल नहीं रहा।’’
‘‘वजारत की कुर्सी पसन्द हो तो यहीं दरबार में रहो।’’
बैरमखां ने रोकर मुंह ढक लिया, ‘‘नहीं- नहीं।’’
डाउनलोड लिंक (लाल किला / Lal Qila PDF Download) नीचे दिए गए हैं :-
हमने लाल किला / Lal Qila PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 1.6 MB है और कुल पेजों की संख्या 112 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री /Acharya Chatursen हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ लाल किला / Lal Qila को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।Answer. आचार्य चतुरसेन शास्त्री /Acharya Chatursen
_____________________________________________________________________________________________
आप इस किताब को 5 Stars में कितने Star देंगे? कृपया नीचे Rating देकर अपनी पसंद/नापसंदगी ज़ाहिर करें।साथ ही कमेंट करके जरूर बताएँ कि आपको यह किताब कैसी लगी?