पुस्तक का विवरण (Description of Book of जीवन के अर्थ की तलाश में मनुष्य / Jeevan Ke Arth Ki Talaash Me Manushya PDF Download) :-
नाम 📖 | जीवन के अर्थ की तलाश में मनुष्य / Jeevan Ke Arth Ki Talaash Me Manushya PDF Download |
लेखक 🖊️ | विक्टर ई फ्रैंकल / Viktor E. Frankl |
आकार | 2.8 MB |
कुल पृष्ठ | 171 |
भाषा | Hindi |
श्रेणी | उपन्यास / Upnyas-Novel, प्रेरणादायक / Motivational, व्यक्तित्व विकास /Personality Developement |
Download Link 📥 | Working |
निराशा की ओर से आशा के प्रति समर्पण'यदि आप इस वर्ष केवल एक ही पुस्तक पढ़ना चाहते हों, तो निश्चित तौर पर वह पुस्तक डॉक्टर फ्रैंकल की ही होनी चाहिए।' -लॉस एंजेलिस टाइम्स
मैंस सर्च फ़ॉर मीनिंग, होलोकास्ट से निकली एक अद्भुत व उल्लेखनीय क्लासिक पुस्तक है। यह विक्टर ई. फ्रैंकल के उस संघर्ष को दर्शाती है, जो उन्होंने ऑश्विज़ तथा अन्य नाज़ी शिविरों मे जीवित रहने के लिए किया। आज आशा को दी गई यह उल्लेखनीय श्रद्धांजलि हमें हमारे जीवन का महान अर्थ व उद्देष्य पाने के लिए एक मार्ग प्रदान करती है। विक्टर ई. फ्रैंकल बीसवीं सदी के नैतिक नायकों में से हैं। मानवीय सोच, गरिमा तथा अर्थ की तलाश से जुड़े उनके निरीक्षण गहन रूप से मानवता से परिपूर्ण हैं और उनमें जीवन को रूपांतिरत करने की अद्भुत क्षमता है।
-प्रमुख रब्बी, डॉक्टर जोनाथन सेक
[adinserter block="1"]
पुस्तक का कुछ अंश
विक्टर ई. फ्रैंकल की पुस्तक ‘मैन्स सर्च फॉर मीनिंग’ हमारे समय की महान पुस्तकों में से एक है। यदि किसी पुस्तक के अंदर किसी व्यक्ति के जीवन को बदलनेवाला सिर्फ एक विचार या एक पैराग्राफ भर हो, तब भी उसे बार-बार पढ़ा जाना चाहिए और उसे अपनी पुस्तकों की अलमारी में स्थान दिया जाना चाहिए। इस पुस्तक में ऐसे बहुत से अंश हैं, जो इंसानी जीवन को बदलने की क्षमता रखते हैं।
सबसे पहले तो मैं यह बताना चाहूँगा कि यह पुस्तक इंसान के जन्मसिद्ध अधिकार (सरवाइवल) के बारे में है। स्वयं को सुरक्षित समझनेवाले अनेक जर्मन व पूर्वी यूरोपियन यहूदियों के साथ फ्रैंकल को भी नाज़ी यातना शिविरों में यातनाएँ सहनी पड़ीं। उनका वहाँ से जीवित वापिस आना भी किसी करिश्मे से कम नहीं था, जो कि बाइबिल के एक कथन ‘ए ब्रांड प्लक्ड फ्रॉम फायर’ की पुष्टि करता है। लेकिन इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन का बहुत विस्तार से वर्णन करने के बजाय, अपने दु:खों व कष्टों का विवरण देने के बजाय, उन स्रोतों के बारे में बताया है, जिनके बल पर वे जीवित रहने में सफल हुए। पुस्तक में वे बार-बार नीत्शे के शब्दों को दोहराते हैं, ‘जिस व्यक्ति के पास अपने जीवन के लिए एक ‘क्यों’ है, वह किसी भी तरह के ‘कैसे’ को सहन कर सकता है।’ वे बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से उन कैदियों के विषय में बताते हैं, जो अपने भविष्य की सारी उम्मीद खो चुके थे। ऐसे ही कैदियों ने सबसे पहले प्राण त्यागे। उन्होंने भोजन या दवाओं के अभाव में प्राण नहीं त्यागे, आशा का अभाव, जीवन में एक उद्देश्य का अभाव ही उनकी मृत्यु का कारण बना। इसके विपरीत, फ्रैंकल ने स्वयं को जीवित रखा और इस सोच को बनाए रखा कि युद्ध समाप्त होने के बाद वे एक बार फिर अपनी पत्नी से भेंट करेंगे। उन्होंने यह स्वप्न देखना भी नहीं छोड़ा कि युद्ध समाप्त हो गया है और वे ऑश्विज़ के अनुभवों से मिले मनोवैज्ञानिक सबक एक व्याख्यान में लोगों को बता रहे हैं। स्पष्ट रूप से, ऐसे अनेक कैदी जो जीवित रहना चाहते थे, वे जीवित नहीं रह सके, कुछ को रोग ने नहीं छोड़ा तो कुछ को गैस चैंबरों के हवाले कर दिया गया। लेकिन इस पुस्तक में फ्रैंकल के लिए यह विचार करने का प्रश्न नहीं है कि अधिकतर व्यक्ति जीवित क्यों नहीं रहे? वे तो इस प्रश्न को उठाते हैं कि जो जीवित रहे, उनके जीवित रहने का कारण क्या था?
उनके ऑश्विज़ के भयंकर अनुभव, उनके ही प्रमुख विचारों पर बल देते हैं। जीवन आनंद की तलाश नहीं है, जैसा कि फ्रायड ने कहा था और न ही इसे सत्ता की तलाश माना जा सकता है, जैसा कि अल्फ्रैड एडलर ने कहा था। यह तो सही मायनों में अर्थ की तलाश से जुड़ा है। किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन में सबसे बड़ा कार्य यही है कि वह अपने जीवन के अर्थ की तलाश करे। फ्रैंकल अर्थ के लिए तीन संभावित स्रोतों की बात करते हैं : काम के दौरान, प्रेम के दौरान और कठिन समय में भी अपना साहस बनाए रखना।
[adinserter block="1"]
पीड़ा या कष्ट अपने-आप में अर्थहीन होते हैं; हम जिस तरह अपनी पीड़ा के साथ पेश आते हैं, उसे वैसे ही अर्थ या मायने दे देते हैं। एक स्थान पर वे लिखते हैं, ‘एक व्यक्ति चाहे तो वह वीर, मर्यादित व गरिमामयी बना रह सकता है या फिर स्वयं को महफूज रखने के प्रयास में वह अपनी मानवीय गरिमा को भुलाकर, किसी पशु से भी बदतर व्यवहार कर सकता है।’ वे मानते हैं कि नाजियों के कैदियों में से केवल कुछ ही ऐसा करने में सफल रहे, लेकिन यदि इस विषय में एक भी उदाहरण दिया जा सकता है, तो हम मान सकते हैं कि मनुष्य का आंतरिक बल उसे उसकी नियति से भी परे ले जा सकता है।
अंतत: मैं यहाँ फ्रैंकल के एक उल्लेखनीय निरीक्षण के बारे में बताना चाहूँगा, जिसे मैं अपने जीवन में तो हमेशा याद रखता ही हूँ, साथ ही दूसरों को सलाह देने के असंख्य मौकों पर भी मैंने उसका प्रयोग किया है। ‘जो बल आपके नियंत्रण से बाहर हैं, वह आपकी एक चीज़ को छोड़कर, आपसे बाकी सब कुछ छीन सकता है, लेकिन आपसे आपकी यह आज़ादी नहीं छीनी जा सकती कि आप उस नकारात्मक हालात के साथ किस तरह पेश आएँगे। आपके साथ जीवन में जो हुआ, उस पर आपका वश नहीं है, लेकिन आपने उस घटना के प्रति क्या अनुभव किया और उसके साथ कैसे पेश आए, यह तो हमेशा से ही आपके वश में रहा है।’
ऑर्थर मिलर के नाटक ‘इंसीडेट एट विची’ में एक द़ृश्य है, जिसमें एक उच्च-मध्यमवर्गीय व्यवसायी उन नाज़ी अधिकारियों के सामने आता है, जिन्होंने उसके शहर पर कब्जा कर लिया है। वह उन्हें अपने विश्वविद्यालय की डिग्रियाँ, प्रमुख नागरिकों से मिले सिफारिशी पत्र आदि दिखाता है। एक नाज़ी पूछता है, ‘क्या तुम्हारे पास यही सब है?’ जब वह व्यक्ति हामी भरता है तो नाज़ी वह सब कुछ कचरे के डिब्बे के हवाले करके पूछता है, ‘बहुत अच्छे, अब तुम्हारे पास कुछ नहीं बचा।’ जिस व्यक्ति का स्वाभिमान हमेशा दूसरों से मिले आदर व मान पर टिका होता है, उसे भावात्मक रूप से नष्ट होने में ज़रा भी देर नहीं लगती। यदि फ्रैंकल वहाँ होते तो उन्होंने यही तर्क दिया होता कि जीब तक हमारे पास अपनी प्रतिक्रिया को चुनने की पूरी आज़ादी है, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि हमारे पास कुछ नहीं बचा और यह आज़ादी हमेशा हमारे पास होती ही है।
[adinserter block="1"]
मेरे अपने सामुदायिक अनुभव भी मुझे यही बताते हैं कि फ्रैंकल के निरीक्षणों में कितनी सच्चाई छिपी है। मैं ऐसे अनेक सफल व्यवसायियों को जानता हूँ, जो सेवानिवृत्त होने के बाद जीवन के लिए सारा उत्साह त्याग देते हैं। उनके काम ने उनके जीवन को अर्थ दे रखा था। जब उनके पास कोई काम नहीं रहा, तो वे अपने दिन घर बैठे नीरसता के साथ बिताने लगे, उनके पास करने के लिए कुछ नहीं बचा था। मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूँ, जिन्होंने अपने जीवन से जुड़े भयंकर कष्टों व पीड़ाओं को भी यह समझकर सहन कर लिया कि उनकी पीड़ा में भी कोई अर्थ छिपा था। भले ही यह एक पारिवारिक माइलस्टोन रहा हो, जिसे बाँटने के लिए वे लंबे अरसे तक जीना चाहते थे या उनके पास एक संभावना थी कि डॉक्टर उनके असाध्य रोग का इलाज खोज रहे हैं, जब उनके पास जीने के लिए एक ‘क्यों’ आ गया तो उनके लिए ‘कैसे’ को सहन करना और भी सरल हो गया।
मेरे निजी अनुभव में भी फ्रैंकल के ही शब्दों की गूँज सुनाई देती है। मेरी पुस्तक, ‘व्हेन बैड थिंग्स हैपंस टू गुड पीपल’ के विचारों ने केवल इसलिए अपनी ताकत व विश्वसनीयता प्राप्त की क्योंकि वे मेरे उस संघर्ष के संदर्भ में थे, जो मैंने अपने पुत्र के रोग व उसकी मृत्यु को समझने के दौरान किया, उसी तरह फ्रैंकल के लोगोथैरेपी के सिद्धांत ने भी आत्मा के उपचार को जीवन के अर्थ से जोड़ते हुए विश्वसनीयता पाई क्योंकि उन्होंने उसे अपनी ऑश्विज़ की पीड़ा की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया था। अगर पुस्तक में पहला भाग न होता तो संभवत: दूसरा भाग इतना प्रभावशाली न बन पाता।
मेरे लिए यह बात भी बहुत अहम रही कि मैन्स सर्च फ़ॉर मीनिंग के 1962 संस्करण की प्रस्तावना एक प्रमुख मनोचिकित्सक डॉक्टर गोर्डोन ऑलपोर्ट ने लिखी थी और इस पुन: मुद्रित संस्करण की प्रस्तावना एक साधारण व्यक्ति द्वारा लिखी गई है। हम समझ चुके हैं कि यह गहन रूप से धार्मिक पुस्तक है, जो इस बात पर बल देती है कि जीवन अर्थवान है और हमें अपनी परिस्थितियों की परवाह न करते हुए, इसे इसके अर्थ के साथ ही देखने का प्रयत्न करना चाहिए। यह इस बात पर बल देती है कि जीवन का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है और इसके मूल संस्करण में, परिशिष्ट को शामिल करने से पहले, इसका अंत बीसवीं सदी में लिखे सबसे धार्मिक वाक्य के साथ किया गया था :
हमारी पीढ़ी बुद्धिवादी है क्योंकि हमने मनुष्य को उसके वास्तविक रूप में जान लिया है। जो भी हो, मनुष्य ही वह जीव है, जिसने ऑश्विज़ के गैस चैंबरों की रचना की; हालाँकि वह भी मनुष्य ही था, जो होठों पर ईश्वर का नाम या शेमा इज़राइल के शब्द लिए, उन गैस चैंबरों में दाखिल हो गया।
[adinserter block="1"]
बंदी शिविर के अनुभव
यह पुस्तक तथ्यों व घटनाओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने का दावा नहीं करती है। यह तो लाखों बंदियों के उन दु:खद निजी अनुभवों का ब्यौरा है, जो उन्हें यातना शिविरों में हुए। यातना शिविर से वापस लौटे बंदियों में से एक, वहाँ की सच्ची कहानी को इस पुस्तक के ज़रिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है। यह कहानी उस भयानक आतंक की कहानी नहीं है, जिसके बारे में पहले भी बहुत कुछ कहा और सुना जा चुका है (हालाँकि उस पर अधिक विश्वास नहीं किया जाता)। यह तो उन अनगिनत मानसिक व शारीरिक कष्टों की झलक दिखाती है, जो यातना शिविर के बंदियों को लगातार सहन करने पड़ते थे। दूसरे शब्दों में कहें तो यह कहानी इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करेगी कि यातना शिविर में एक औसत बंदी का रोज़मर्रा का जीवन कैसा था?
कैदियों का काफिला
अब हम एक ऐसे काफिले की बात करने जा रहे हैं, जिसके लिए औपचारिक रूप से यह ऐलान किया गया कि कैदियों को एक निश्चित संख्या में दूसरे शिविर में भेजा जाएगा; लेकिन यह घोषणा सुनकर कैदियों ने सहज ही यह अंदाज़ा लगा लिया कि इस काफिले की यात्रा किसी अन्य शिविर में नहीं बल्कि गैस चैंबर में जाकर खत्म होगी। बीमार, कमज़ोर और काम करने में अयोग्य बंदियों को चुन-चुनकर, बड़े केंद्रीय शिविरों में भेज दिया जाता था। वहाँ पर गैस चैंबर और शवदाह गृह (श्मशान घाट) बनाए गए थे ताकि उन्हें मौत की नींद सुलाई जा सके। इस काफिले में जानेवाले लोगों का चुनाव, वास्तव में सभी बंदियों और उनके साथी दलों के बीच खुलेआम जंग का ऐलान था। हर कैदी अपनी ओर से, गुप्त रूप से यही कोशिश करता कि उसे किसी तरह बंदियों के नामों की सूची का पता लग जाए ताकि वह अपना और अपने दोस्त का नाम उस सूची में से निकालने का कोई तरीका आज़मा सके। हालाँकि सारे बंदी यह भी जानते थे कि यदि किसी एक व्यक्ति को बचाया जाएगा तो अधिकारी उसके स्थान पर कोई दूसरा शिकार चुन लेंगे।
[adinserter block="1"]
काफिले की दास्तान
पिछले कई दिनों से करीब पंद्रह सौ बंदी चौबीसों घंटे सफर कर रहे थे : रेलगाड़ी के हर डिब्बे में अस्सी कैदी यात्रा कर रहे थे। सभी कैदियों को उनके सामान के ऊपर ही लेटना पड़ता था, जो कि उनकी बची-कुची निजी संपत्ति कही जा सकती थी। रेलगाड़ी के डिब्बे कैदियों से इस तरह ठुँसे हुए थे कि केवल खिड़कियों के ऊपरी हिस्से से ही दिन के प्रकाश की हलकी सी झलक मिलती थी। हर कैदी इसी उम्मीद में जी रहा था कि वह गाड़ी उसे किसी हथियार बनानेवाले कारखाने की ओर ले जा रही है, जहाँ उसे एक बँधुआ मज़ूदर की तरह काम करना होगा। हम यह भी नहीं जानते थे कि अभी तक हम सिलेसिया में ही हैं या पोलैंड पहुँच गए हैं। इंजन की सीटी का स्वर ऐसी करुण व तीखी पुकार जैसा लगता था, मानो गाड़ी यात्रियों के बोझ तले दबकर कराह रही हो। जबकि यह गाड़ी अपने यात्रियों को एक विनाश की ओर ले जा रही थी। इसके बाद गाड़ी किसी बड़े स्टेशन के पास शंटिंग करने लगी। उत्सुक सहयात्रियों में से कोई चिल्लाया, ‘यहाँ एक संकेत दिखाई दे रहा है, ऑश्विज़!’ उस एक क्षण में मानो सबके दिल की धड़कन थम सी गई। ऑश्विज़ - यह नाम तो सबके लिए गैस चैंबर, शवदाह गृह व बंदियों की सामूहिक हत्या का दूसरा नाम था। आखिरकार वह गाड़ी धीरे-धीरे, लगभग सकुचाते हुए आगे बढ़ी, मानो अपने सहयात्रियों को, जितना हो सके, ऑश्विज़ के भयानक नतीजों से बचाना चाह रही हो।
डाउनलोड लिंक (जीवन के अर्थ की तलाश में मनुष्य / Jeevan Ke Arth Ki Talaash Me Manushya PDF Download) नीचे दिए गए हैं :-
हमने जीवन के अर्थ की तलाश में मनुष्य / Jeevan Ke Arth Ki Talaash Me Manushya PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 2.8 MB है और कुल पेजों की संख्या 171 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक विक्टर ई फ्रैंकल / Viktor E. Frankl हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ जीवन के अर्थ की तलाश में मनुष्य / Jeevan Ke Arth Ki Talaash Me Manushya को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।Answer. विक्टर ई फ्रैंकल / Viktor E. Frankl
_____________________________________________________________________________________________
आप इस किताब को 5 Stars में कितने Star देंगे? कृपया नीचे Rating देकर अपनी पसंद/नापसंदगी ज़ाहिर करें।साथ ही कमेंट करके जरूर बताएँ कि आपको यह किताब कैसी लगी?