क्या डिप्रेशन ने आपके जीवन की तरक्की का रास्ता रोक लिया है? क्या उदासी और हताशा पूरी क्षमता से अपने काम को करने के रास्ते की बाधा बन गई है? क्या भावनात्मक पीड़ा और संवेदनशीलता ने आपके संबंधों को बिगाड़ दिया है?
इस दुनिया में सबसे आम भावनात्मक समस्या भावनात्मक पीड़ा है। उदासी, हताशा, विह्वल होना—इन सभी में वैसी ही मस्तिष्क ऊर्जा या केमिस्ट्री या आप जो कुछ कहिए, वह होती है। इन सभी को डिप्रेशन के अंतर्गत रखा जाता है।
आखिर डिप्रेशन होता क्या है? हद से ज्यादा उदासी ही डिप्रेशन है। अधिकांश लोगों को इसका एहसास होता है। कई लोग यह नहीं समझ पाते कि यह प्रेम और खुशी का अभाव भी है। हम सभी के जीवन में अकेला छोड़ दिए जाने, धोखा देने और ठुकरा दिए जाने की भावना पैदा होती है। हालाँकि, यदि आपकी उदासी लंबे समय तक रहती है तो आपके साथ एक ऐसी भावनात्मक समस्या पैदा होती है, जो शारीरिक संकट का रूप ले लेती है।
उदासी, हताशा, डिप्रेशन की भावनात्मक पीड़ा का कारण क्या होता है? कभी-कभी आपको लगता है कि आप किसी को हमेशा के लिए खो चुके हैं। कभी-कभी आपको लगता है कि आप व्यर्थ हैं। काम की जगह पर आपको लगता है कि आपको सम्मान नहीं मिल रहा, आपके साथ अन्याय हुआ है। आप चिड़चिड़े हो जाएँगे, यह सोचकर कि चीजें दूसरी तरह से होनी चाहिए। आपकी यह दिक्कत बढ़ जाएगी। यह रूखापन, अकेलापन और चिड़चिड़ापन उदासी के ही रूप हैं। और फिर, आपका शरीर इसे महसूस करता है। आपको भूख लगती है, आप थक जाते हैं, आपकी चाल धीमी हो जाती है। आप दरवाजों को पटकते हैं, दूसरों की आलोचना करते हैं और जब आप आईने में खुद को देखते हैं तो कहते हैं, ‘मैं खुद को नापसंद करता हूँ।’ आप समझ नहीं पाते कि आप दुःखी हैं या गुस्से में हैं। यह समझ पाना कठिन होता है कि उदासी खत्म कहाँ होती है, चिड़चिड़ापन शुरू कहाँ से होता है और कब क्रोध फूट पड़ता है।
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डिप्रेशन को देखने के तरीके
हमारी भावनाएँ हमारे स्वस्थ होने के अंतर्ज्ञान का हिस्सा हैं, जो बताती हैं कि कुछ जरूरतें पूरी नहीं हो रही हैं। हम जब दुःख या क्रोध को महसूस करते हैं तो यह हमें वश में कर सकता है, हमारी जान ले सकता है और हमारे संबंधों को युद्धक्षेत्र में बदल देता है। हम खाने, पीने, खराब संबंधों से अपने आप को तबाह कर सकते हैं। अकसर हमारा ‘मूड’ खराब रहता है। हमें लगता है, हम ‘अच्छे’ नहीं हैं; क्योंकि डिप्रेशन, क्रोध और चिड़चिड़ापन बस, खराब मूड की बात नहीं होती। उनका संबंध पर्याप्त खुशी और प्रेम न होने से है। हम लुइस हे की रचना से सीख सकते हैं कि स्वयं से प्रेम करने से अच्छे भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य की शुरुआत होती है।
डिप्रेशन और चिकित्सकीय अंतर्ज्ञान
चिकित्सकीय अंतर्ज्ञान में दुःख और क्रोध आपके भावनात्मक मार्गदर्शन प्रणाली का हिस्सा होते हैं, जो आपको बताते हैं कि कुछ है, जिसे बदलना होगा। भावनाएँ अपने आप में समस्या नहीं होतीं। दुःख और क्रोध को अकसर नकारात्मक माना जाता है। क्यों? क्योंकि वे अच्छा एहसास नहीं कराते। हालाँकि क्रोध और उदासी जैसी कठिन भावनाएँ फायर अलार्म की तरह होती हैं। फायर अलार्म कभी सुनने में अच्छा नहीं लगता। वह आपके कान फाड़ देता है और आप उसे गुजरते समय सुनना नहीं चाहते। आप जब डिप्रेस्ड रहते हैं या किसी डिप्रेस्ड के साथ रहते हैं, तब यह अंतर्ज्ञान के बजते सायरन की तरह होता है। डिप्रेशन या उदासी अंतर्ज्ञान के एक संकेत की तरह है, जो बताती है कि आपके आसपास कुछ है, जो बहुत बुरा करनेवाला है। आपको जब वश में कर लेनेवाले भय का एहसास होता है, तब आपके अंदर की उस अनाम बेचैनी में आपको लगता है कि आप कुछ खो देने वाले हैं।
इसलिए, अगली बार जब आपका मन बैठ जाता है, तब वहीं रुक जाइए, उसके विषय में सोचिए। यह पता लगाने की कोशिश कीजिए कि अंतर्ज्ञान का वह अलार्म क्यों बजा? क्या कोई संबंध तबाह होनेवाला है? क्या किसी की सेहत गिरने वाली है? जब कोई भावना डिप्रेशन या चिड़चिड़ेपन में जाने लगती है, तब अंतर्ज्ञान से ही हमें रुकना है और खुद से पूछना है कि हमारे जीवन में क्या गलत हो रहा है?
यदि आप अपने भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर करना चाहते हैं तो आपको अपने मनोभावों के पीछे छिपे अंतर्ज्ञान के संदेश को समझना होगा। पहले उस भावना को लिखें, फिर नाम दें और तब उस पर काररवाई करें। चलिए, डिप्रेशन को ही लेते हैं। पहले यह आपके दाएँ मस्तिष्क में प्रकट होता है। यह भावना तथा अंतर्ज्ञान का क्षेत्र है। हमें डिप्रेशन और चिड़चिड़ेपन की उस भावना को अपने दाएँ मस्तिष्क से, उसके सबसे शुद्ध और गहन रूप में लेना है और अपने बाएँ मस्तिष्क में भेजना है। अपने बाएँ मस्तिष्क से इसे बता सकते हैं, पता लगा सकते हैं कि उस भावना का कारण क्या है, और प्रभावी काररवाई तय कर सकते हैं। [adinserter block="1"]
उदाहरण के लिए, आप काम कर रहे हैं और अचानक आपको लगता है कि आप डिप्रेस्ड हो गए हैं। इससे पहले कि आप उस स्निकर बार तक पहुँचें या आपका सहकर्मी आपको फाइल दे और आप भड़क जाएँ, आप अपने आप को रोक लीजिए। उस मनोभाव के पीछे छिपे अंतर्ज्ञान के संदेश को समझें। यह डिप्रेशन को बढ़ने से और आपके मन व शरीर पर उसकी पकड़ बनाने से रोकेगा। आपके रुक जाने से, उसे क्या कहें, यह पता लगाने तथा उस पर प्रभावी काररवाई करने से, उस मनोभाव के जैव-रासायनिक विनाश से पहले ही आप उस उदासी और चिड़चिड़ेपन से अपने आप को मुक्त कर सकते हैं। डिप्रेशन में गोते लगाते रहने से ऐसा जैव-रासायनिक विनाश होता है, जो आपके शरीर के अनेक अंगों में लक्षणों के रूप में दिखेगा। हम यहाँ इसकी व्याख्या शुरू करेंगे और बाद में इसी अध्याय में आपको प्रत्येक जटिल भावना के विशेष रसायनों के बारे में सीखने का अवसर मिलेगा।
चलिए, उदाहरण के लिए, क्रोध पर नजर डालते हैं। क्रोध क्या है? आप घर पर किसी के जोर से दरवाजा बंद करते ही जब चीखने वाले होते हैं, या जब कोई हाइवे पर आपको आर-पार कर रोक देता है, तब जो भावना पैदा होती है, वह क्या होती है? यह क्रोध है। क्रोध इस तरह की महत्त्वपूर्ण भावना होती है। इसका मतलब है, किसी ने आपका अपमान किया या किसी ने आपको धमकी दी। अगली बार जब आप एयरपोर्ट पर या राशन की दुकान पर या कहीं भी कतार में हों तो अपने आप पर काबू रखिएगा। आप जब उतावला या चिड़चिड़ा महसूस करें, यहाँ तक कि चीखने की हद तक पहुँच जाएँ, तब ध्यान रखिएगा कि आप उस भावना को, क्रोध को रोक सकते हैं, इससे पहले कि क्रोध का जैव-रसायन मन व शरीर पर हावी होनेवाली स्वास्थ्य समस्या का रूप ले ले।
उस हताशा, चिड़चिड़ेपन, नाराजगी के बावजूद एक या दो सेकंड तक चुपचाप बैठे रहिए। मन-ही-मन सोचिए कि आप उसे अपने मस्तिष्क के दाएँ हिस्से से बाईं ओर भेज रहे हैं। उस भावना के पीछे अंतर्ज्ञान के संतोष का पता लगाएँ, किंतु उससे भी बेहतर यह पता लगाएँ कि किस विचार के कारण क्रोध का वह बटन आपके मस्तिष्क में अटक गया है। आम तौर पर इसके लिए सोच का तरीका—जैसे मैं सही हूँ, वे गलत हैं—जिम्मेदार होता है और इसी परिस्थिति को बदलना है। यह सही है कि उन्हें आपका रास्ता नहीं रोकना चाहिए, कतार में धक्का नहीं देना चाहिए। सच्चाई यही है कि ‘ऐसा, वैसा, यह नहीं, वह नहीं होना चाहिए’, जैसी सोच बस, आपके मन और शरीर में क्रोध को बढ़ाती है।
यह अध्याय आपको पागलपन के ऐसे पलों को बदलने में मदद करेगा, जो सामान्य जीवन के भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य का हिस्सा होते हैं।1 [adinserter block="1"]
मनोभाव चिकित्सकीय हो जाता है : दूरगामी भावनात्मक प्रभाव
उदासी या क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाएँ आपके शरीर में लक्षणों का रूप कैसे ले लेती हैं? रसायनों के दूरगामी प्रभाव से मनोभाव एक बीमारी बन जाते हैं।
पहला : किसी बात पर आपको गुस्सा आ जाता है, चाहे बिल में काफी देर लग रही हो या कोई आपसे आगे निकल जाए या किसी बात पर आप दुःखी हो जाते हैं। शायद कोई प्यारा पालतू जीव मर जाए या आपको पता चले कि कोई दोस्त देश छोड़कर जा रहा है। कुछ भी हो सकता है; लेकिन आप इससे उबर नहीं पाते। आपको लगता है कि दिन बीतने के साथ ही आपका ‘मूड’ बिगड़ा ही रहता है या फिर आप ‘गम’ में डूबे हैं। दिन बीतते जाते हैं और बिगड़ा हुआ वह मूड या गम एक ऐसी तकलीफ बन जाता है, जिसे बयाँ नहीं किया जा सकता; लेकिन आगे जाकर वह उग्र लक्षण का रूप ले लेता है। ऐसी भावनाएँ, क्रोध, उदासी आपके दाएँ मस्तिष्क से आती हैं। वहाँ से विशुद्ध भावनाएँ आपके हाइपोथेलेमस (हाइपोथेलेमस हमारे मस्तिष्क का एक छोटा सा हिस्सा होता है, जो पिट्यूटरी ग्रंथि के पास अवस्थित होता है। यह हार्मोन्स के स्राव तथा शरीर के तापमान को नियमित बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।) तक जाती हैं।
बिल्कुल ठीक। हाँ, हाइपोथेलेमस वही क्षेत्र है, जहाँ हार्मोन्स रहते हैं, जो भूख और नींद को नियंत्रित करते हैं। यही कारण है कि जब आपका मूड खराब होता है और खराब मूड लंबे समय तक बना रहता है, तब यह आपकी नींद, आपके भोजन और आपके हार्मोन्स में खलल डालता है। फिर यह उदासी और क्रोध पीयूष ग्रंथि में जाता है। हार्मोन्स, भोजन तथा सोने से संबंधित परिवर्तन बढ़ जाते हैं और फिर आखिर में, जैसे-जैसे दिन और महीने गुजरते हैं, उस प्रकार के रासायनिक लक्षण मस्तिष्क के स्टेम से आपकी अधिवृक्क ग्रंथि तक जाते हैं, जो आपके पूरे शरीर में भावनाओं का संचार करती है।
दूसरा : आप जब हताश या अवसाद को महसूस करते हैं, तब आपका ब्रेन स्टेम एपिनेफ्रीन रिलीज करता है, जो एक न्यूरोट्रांसमीटर है, जो आपको चोटिल और चिड़चिड़ा बना देता है। आपकी अधिवृक्क ग्रंथि भी ‘कॉर्टिसोल’ नाम का स्ट्रेस हार्मोन्स रिलीज करती है, जो आप में अधिक भूख पैदा करता है। यह अच्छी बात है।
तीसरा : वह स्ट्रेस हार्मोन्स कॉर्टिसोल प्रतिरक्षा प्रणाली की कुख्यात समस्याओं को शुरू कर देता है। पहले जो हताशा और उदासी थी, वह दूरगामी सड़ाँध या डिप्रेशन बन जाती है। ‘बॉडी’ डिप्रेशन की शुरुआत हो जाती है, जिसमें चिड़चिड़ापन, नींद लानेवाले और दर्द बढ़ानेवाले साइटोकिंस होते हैं। साइटोकिंस शरीर में हर तरफ सूजन पैदा कर देते हैं।
चौथा : ऐसे साइटोकिंस के कारण आपके सफेद रक्तकोष, आपके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाएँ, प्रोटीन रिलीज करती हैं, जो आपको कमजोर, थका और दर्द से चूर महसूस कराती हैं। आपको लगता है जैसे आपको फ्लू, फीवर या गठिया है। [adinserter block="1"]
पाँचवाँ : साइटोकिंस आपके मूड के न्यूरोट्रांसमीटर को ‘खा’ जाते हैं, जिससे आप और डिप्रेस्ड हो जाते हैं। नोरेपिनेफ्रीन और सेरोटोनिन, जो आपके मूड को बेहतर बनाते हैं, में गिरावट आती है, जिससे आप और भी डिप्रेस्ड, अधिक क्रोधी और अधिक चिड़चिड़ा महसूस करते हैं।
छठा : कई महीने बाद आपका डिप्रेशन और गुस्सा आपके शरीर तथा अंग प्रणाली, विशेष रूप से आपके हृदय, आपके ब्लड प्रेशर तथा आपके ब्लड शुगर में अधिक ठोस हो जाता है। अगर आप अपने डॉक्टर से मिलें तो वह इस पर गौर करेगा या करेगी कि आपके ब्लड होमोसिस्टीन का लेवल बढ़ने लगा है, जो आपको इस बात से आगाह करेगा कि आपको हृदय रोग का खतरा है। आपका डिप्रेशन अब एक टूटे दिल के तौर पर आपके चिकित्सकीय अंतर्ज्ञान को दर्ज कर रहा है।
सातवाँ : अब नोरेपिनेफ्रीन और सेरोटोनिन के न्यूरोट्रांसमीटरों में परिवर्तन से शरीर में दर्द और कहीं भी होनेवाला दर्द पैदा हो रहा है। पहले यह आपके सिर में, फिर आपकी पीठ में होगा। यह हर जगह महसूस होगा। आपको लगेगा कि आप अपने शरीर को ढो रहे हैं।
आठवाँ : दूरगामी उत्तेजना और डिप्रेशन आपको रात में भी परेशान करने लगेगा। आप सो नहीं पाते। दिन में आप जागे नहीं रह पाते।
नौवाँ : जब कई महीने बीत जाते हैं तो वे जैसे बुरे नहीं थे कि आपको लगने लगता है कि वजन बढ़ता जा रहा है या फिर आपका वजन कम होता है, जो आपके जीन पर निर्भर करता है। अगर आपका वजन बढ़ रहा है, तब आपको लगेगा कि आप ज्यादा कार्बोहाइड्रेट—पास्ता, चावल, मिठाई खा रहे हैं और इस कारण आपका वजन बढ़ता जा रहा है। आखिरकार आप सोने के लिए अधिक शराब पीने लगते हैं। ये दोनों ही अधिक खतरनाक स्वास्थ्य समस्याओं का एक कुचक्र शुरू कर देते हैं।
दसवाँ : जैसे-जैसे आपका वजन बढ़ता जाता है, आपका कोलेस्ट्रॉल बढ़ता जाता है, जिससे आपको हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
ग्यारहवाँ : आप अब भी मेरे साथ हैं? क्योंकि यह बेहद डिप्रेसिंग होता जा रहा है। अपना वजन बढ़ने के साथ ही आपको अधिक इंसुलिन और बढ़े ब्लड प्रेशर की समस्याएँ झेलनी पड़ती हैं। इनके साथ ही सूजन बढ़ जाती है और कोलेस्ट्रॉल आपकी रक्त वाहिकाओं में तैरने लगता है।
बारहवाँ : कोलेस्ट्रॉल के साथ ही डिप्रेशन फ्री रैडिकल कहे जानेवाले अणुओं को पैदा करता है, जो समय के साथ जंग की तरह आपकी याददाश्त के रास्तों को जाम कर देते हैं। आप गौर करते हैं कि मतलब समझने के लिए किसी पुस्तक के एक ही पन्ने को आपको बार-बार पढ़ना पड़ रहा है। आपको लगता है कि जो कुछ सेकंड पहले आपने कहा, वह आपको याद नहीं है। आपको लोगों के नाम याद नहीं रहते। क्या आप उसे याद कर रहे हैं, जो आपने अभी-अभी यहाँ पढ़ा है?
तेरहवाँ : ओमेगा-3 वसा-युक्त अम्ल कम होने लगते हैं और सूजन के साथ इसके मिल जाने से दशकों बाद आपके पागल होने की आशंका को भी बढ़ा देता है, जिसके बारे में सोचकर ही आप और अधिक डिप्रेस्ड हो जाते हैं। [adinserter block="1"]
इसलिए, आप जैसे-जैसे इस पुस्तक को पढ़ेंगे, आपको लगेगा कि जब आप किसी मूड के पीछे अंतर्ज्ञान के संदेश का पता लगाने में महारत हासिल कर लेते हैं, तब आपको सिर्फ असाध्य डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन (इस अध्याय में) तथा चिंता (अध्याय-2) से ही राहत नहीं मिलेगी, बल्कि लत से बचने की बेहतर क्षमता (अध्याय-3), सीखने की बेहतर क्षमता (अध्याय-4) और जिसे सीखा था, उसे याद रखने तथा उम्र के बावजूद न भूलने (अध्याय-5) की क्षमता बढ़ जाती है। आपके पास अपने जीवन की सबसे बड़ी इच्छा तथा इस संसार में आध्यात्मिक क्षमता (अध्याय-6) को पूर्ण करने के लिए अधिक भावनात्मक नियंत्रण भी प्राप्त हो जाता है।
दुःख और क्रोध का मन-शरीर नेटवर्क
टी.वी. ऑन कीजिए। आपको डिप्रेशन पर अगर कुछ सुनने को मिलेगा तो वह होगी—दवा, दवा, दवा। आप को प्रोजैक मिलेगा, लेक्साप्रो मिलेगा, इसी तरह की अलग-अलग दवाएँ सुनने को मिलेंगी। क्या यही डिप्रेशन का इलाज है? क्या यह प्रोजैक की कमी है? वास्तव में, बिल्कुल भी नहीं। डिप्रेशन आपके मस्तिष्क और शरीर में उदासी के नेटवर्क में आनेवाली खराबी है।
उदासी के लिए मस्तिष्क-शरीर नेटवर्क क्या है? चलिए, पहले मस्तिष्क पर नजर डालते हैं। मस्तिष्क का सीमांत क्षेत्र, विशेष रूप से टेंपोरल लोब, भावना और अंतर्ज्ञान के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह क्षेत्र हमारी भावनाओं तथा हमारे अंतर्ज्ञान को हमारे मस्तिष्क तथा शरीर की स्मृति के साथ जोड़ता है। [adinserter block="1"]
मूल रूप से हमारी पाँच भावनाएँ होती हैं—क्रोध, उदासी, भय, प्रेम और खुशी। वास्तव में, डिप्रेशन में बहुत अधिक उदासी और क्रोध होता है तथा प्रेम और खुशी बहुत कम होती है। मैं कहना चाहूँगी कि प्रोजैक, जोलोफ्ट और लेक्साप्रो जैसी दवाएँ डिप्रेशन को सिर्फ कम करती हैं; क्योंकि वे एंटीडिप्रेसेंट होती हैं। उनसे प्रेम और खुशी नहीं मिलती। अभिकथनों, संज्ञानात्मक व्यवहार संबंधी थेरैपी और जीवन को अच्छी तरह जीने की बातें सीखकर आप प्रेम और खुशी पा सकते हैं।
मस्तिष्क का एक अन्य हिस्सा होता है—फ्रंटल लोब। कुछ लोग अपने जीवन में सदमा झेल चुके होते हैं। जब फ्रंटल लोब उस सदमे की तसवीर बार-बार उनके सामने ले आता है, तब उन्हें डिप्रेशन का सामना करना पड़ता है। उन्हें लगता है, वे बेकार हैं। कोई कभी उनसे प्रेम नहीं करेगा। सबकुछ निरर्थक है, या मैं सही हूँ, वे गलत हैं। चीजों को अलग होना चाहिए था। फ्रंटल लोब का एक दूसरा हिस्सा होता है, जो हमें इससे बाहर निकलने में मदद करता है, जब हम खुशी को महसूस करते हैं या फिर असाध्य रूप से डिप्रेस्ड हो जाते हैं, जब जड़ स्थिति में फँस जाते हैं।
क्रोध क्या है? क्रोध परिवर्तनकारी हार्मोन्स का पहला लक्षण हो सकता है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और गाली-गलौज भरे संबंध या पुराने भयंकर उत्पीड़न की बात भी शामिल रहती है। वैज्ञानिक अब यह मानने लगे हैं कि क्रोध तथा डिप्रेशन की संरचना काफी हद तक समान और एक-दूसरे से मिलती-जुलती सी होती है।2
आपको जब क्रोध आता है, तब उसका मतलब क्या है? यह कि आप जो चाहते थे, वह आपको नहीं मिला। आपने जो उम्मीद लगाई थी, पूरी नहीं हुई। क्रोध निश्चित रूप से कनपटी के इलाके से संबंधित होता है; लेकिन इसका संबंध फ्रंटल लोब (ललाट पालि) से भी होता है, जो केंद्रीय अकंबंस, यानी इनाम का क्षेत्र होता है। यदि आप जो चाहते थे, वह नहीं मिला तो आप हताश हो जाते हैं और फिर यह क्रोध का रूप ले लेता है और यह लूप गोल-गोल घूमती चली जाती है। जैसा कि आप देख सकते हैं, मस्तिष्क में उदासी का नेटवर्क काफी हद तक क्रोध के नेटवर्क से मेल खाता है। यही कारण है कि इस अध्याय की शुरुआत में हमने कहा था कि हम कहते हैं, ‘मैं निराश हूँ’, ‘मैं हताश हूँ’, और ‘फिर मैं घबराया हुआ हूँ।’ जहाँ कहीं भी उदासी और क्रोध की शुरुआत होती है, वे दोनों घबराहट में तब्दील हो जाते हैं। [adinserter block="1"]
आपने सुना भी होगा कि डिप्रेशन ऐसा क्रोध है, जो अंदर की तरफ मुड़ जाता है। शायद आपने इसे किसी पॉप मनोविज्ञान की पुस्तक में देखा हो। वास्तव में, यह पॉप मनोविज्ञान नहीं है। इसकी चर्चा कैरेन हॉर्नी नाम के मनोविश्लेषक ने काफी पहले की थी। (वास्तव में, यह उनका अंतिम नाम है—मैंने जब पहली बार सुना था तो यकीन नहीं हुआ था।) कैरेन हॉर्नी डिप्रेशन को अंदर की तरफ मुड़नेवाला क्रोध, यानी अपने ऊपर क्रोध बताती हैं। इस तरह के डिप्रेशन के शिकार लोग ऐसे माहौल में पैदा होते हैं, जो अप्रत्याशित और भयावह होता है, जहाँ वे असहाय महसूस करते हैं। उस भयंकर माहौल में ढलने के लिए अपने आसपास के लोगों पर क्रोधित होने की बजाय वे अपने आप पर क्रोधित होते हैं। यह मानवता का एक विचित्र पहलू है कि हम ऐसा करते हैं; लेकिन ऐसा होता है, यह सोचने की बजाय कि ‘हे भगवान्! ये लोग पागल हैं। मैं इनके बीच क्यों हूँ? मैं इनसे कैसे प्रेम कर सकता हूँ?’ वे कहते हैं, ‘‘मुझे कोई प्यार नहीं करेगा। मैं बुरा व्यक्ति हूँ।’’ यातना से बचने के लिए, कष्ट से बचने के लिए वे शरमीले और दब्बू हो जाते हैं। यह पुरानी सोच कि ‘मैं ऐसा बन जाऊँगा कि तुम मुझे प्रेम करो और शायद कष्ट न पहुँचाओ’ अकसर कारगर नहीं होती है। अकसर यदि आप इस तरह के शोषण करनेवाले घरों में पैदा होते हैं, तब आप ‘प्यार किए जाने’ की कोशिश करते हैं। आप सभी के लिए कुछ-न-कुछ करते हैं और फिर जब वे आप से प्यार नहीं करते, आपको लगने लगता है कि आप किए जाने योग्य नहीं हैं, तो आप डिप्रेस्ड हो जाते हैं। इस प्रकार, एक तरीके से अंदर की तरफ मुड़े क्रोध से भी डिप्रेशन होता है। आखिर यह किसका क्रोध है? मैं फिर कहती हूँ, क्या यह क्रोध उन लोगों पर है, जिन्होंने आपका शोषण किया और आप इस कारण इसे व्यक्त नहीं करते, क्योंकि ऐसा करने से वे आपको चोट पहुँचा सकते थे या फिर उनके माहौल में रहने के कारण उनके गुस्से को अंदर-ही-अंदर पी जाते हैं? मैं कहूँगी कि ये दोनों ही बातें होती हैं; क्योंकि अब हम जानते हैं कि डिप्रेशन और क्रोध का संबंध सिर्फ आपकी भावनाओं से नहीं होता है, बल्कि उस माहौल के प्रति अंतर्ज्ञान से प्रतिक्रिया करने से भी होता है।
लक्षण का पता लगाने पर संक्षिप्त जानकारी
प्रशिक्षण के दौरान मेरा काफी समय एंटीडिप्रेसेंट के साथ-साथ साइकोथेरैपी से उदासी का इलाज करने में बीता। मैंने जब मनोरोग रेजिडेंसी की शुरुआत की, हमने लोगों की मनोदशा, चिंता तथा मन के अन्य रोगों का इलाज निम्नलिखित तरीके से किया—
1. हमने उनकी मनोदशा और स्वास्थ्य के बारे में उनकी समस्याएँ सुनीं।
2. हम देखते थे कि वे कैसे खाते, सोते और व्यवहार करते हैं। [adinserter block="1"]
3. मानो या न मानो, हमने लक्षणों को गिना और एक मैनुअल की नैदानिक श्रेणियों में दिए लक्षणों से मैच किया, जो मनोचिकित्सा की गाइड बुक है, जिसे डी.एस.एम.-IV कहते हैं।
कुछ लोगों को भारी डिप्रेशन था, कुछ को हलका डिप्रेशन था। कुछ लोगों को बाइपोलर I, बाइपोलर II था। यह सूची और भी लंबी थी। याद रहे, कोई स्कैन नहीं किया गया, न एक्स-रे या रक्त जाँच, जिससे बीमारी का पता लगाया जा सके, जैसा कि स्त्री रोग, कैंसर या अन्य इंटरनल मेडिसिन में किया जाता है। फिर यह सब इक्कीसवीं सदी में कैसे किया गया? हमने एक और पुस्तक निकाली, जिसमें नैदानिक लक्षणों के अलग नाम थे। यह पुस्तक है डी.एस.एम.-V.।
’80 के दशक में हो सकता है कि आपको बताया गया हो कि आपको ADD है—मतलब अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर। फिर ’90 के दशक में किसी ने एस्परगर्स के बारे में सोचा होगा। 2000 के दशक में वे कह सकते थे कि आपको बाइपोलर II है। वर्ष 2020 या 2030 तक, डायग्नोसिस किस तरह की होगी और किस तरह की दवा दी जाएगी? मस्तिष्क फिर भी वही है!
इस समय मानसिक रोगों की चिकित्सा इस पर आधारित है कि आप कितने निराश या कितने खुश या चिंतित हैं और भले ही हम यह देखते हैं कि मरीज कितना जल्दी क्रोध में आ जाते हैं, लेकिन अफसोस कि क्रोध की कोई डायग्नोसिस नहीं है; लेकिन मनोदशा में परिवर्तन को लेकर कई डायग्नोसिस हैं—बाइपोलर, बॉर्डरलाइन वगैरह-वगैरह। इतना कहना पर्याप्त होगा कि यह पुस्तक आज की तारीख में उपलब्ध हर विकल्प से आपको आपके मन को स्वस्थ करने में सहायता करती है। डायग्नोसिस जैसे लेबल पर जोर नहीं दिया जाने वाला, क्योंकि वे सदैव परिवर्तित होते रहते हैं। मस्तिष्क नहीं बदलता, लेबल और डायग्नोसिस भले बदल जाएँ।
डिप्रेशन, क्रोध और स्वयं से प्रेम करना
लुइस हे मनोदशा से जुड़ी समस्याओं के समाधान पर एक नजर डालती हैं। वे बताती हैं कि उदासी और डिप्रेशन तथा क्रोध को प्रेम एवं खुशी को शामिल कर कैसे दूर किया जा सकता है। इस पर विचार करने की बजाय कि हम-आप स्वयं से प्रेम क्यों नहीं करते, चाहे इस कारण; क्योंकि किसी ने आपको चोट पहुँचाई या आप ऐसे माहौल में थे, जो घृणा से भरा था, वह आप से इतना ही कहती हैं कि आप जैसे हैं, उसी में स्वयं से प्रेम कीजिए। वे कहती हैं कि आप जहाँ हैं, वहीं स्वयं से प्रेम कीजिए। लुइस जब स्वयं से प्रेम करने को कहती हैं तो वे आपकी कमर के साइज या आपके कूल्हे या आपके बालों के रंग से जुड़ी बात नहीं है। वह प्रेम नहीं, अभिमान की बात है और वे कहती हैं कि यह भय की बात है। लुइस कह रही हैं कि हम में से हर एक अद्भुत चमत्कार है और हम उसका ही सम्मान करें और उसे सँजोकर रखें। हम जब स्वयं से प्रेम करते हैं, तब हम देवत्व से प्रेम करते हैं, जो जीवन की शानदार अभिव्यक्तियाँ हैं। हम जब स्वयं से प्रेम करते हैं, तब हम जानते हैं कि संसार के साथ तालमेल बिठा रहे हैं और इस जीवन में बसा प्रेम उमड़ पड़ता है। लुइस ने देखा है कि क्रोध और उदासी अभिन्न हैं और ऐसे लोग, जो मनोविज्ञान को वस्तु संबंधों का नाम देते थे, वे भी उनसे सहमत हैं।3 यह आश्चर्यजनक है, क्योंकि लुइस ने कभी पी-एच.डी. या दूसरों की तरह साइक रेजिडेंसी नहीं की। [adinserter block="1"]
आखिर हमें स्वयं से प्रेम करने में कठिनाई क्या है? चलिए, पहले यह पूछते हैं कि हम अपने आप से प्रेम करना कैसे सीखते हैं? आप जब जन्म लेते हैं, तब आप देखते हैं कि आपको जन्म किसने दिया। आप उन्हें देखते हैं, फिर वे आपको देखते हैं और आप सोचते हैं, यही प्रेम है। आप उसी लिम्बिक, अपने मस्तिष्क के फ्रंटल लोब नेटवर्क में बसा लेते हैं। दुर्भाग्य से, यदि वह व्यक्ति सबसे प्रिय व्यक्ति नहीं है तो आप यह मान लेते हैं कि शायद आप सबसे प्रिय नहीं हैं और आपके मस्तिष्क में एक गड़बड़ी पैदा हो जाती है। दुर्भाग्य से, वह गड़बड़ी आपके फ्रंटल लोब में ऐसे विचारों की शैली का रूप ले लेती है, जो बढ़ती चली जाती है—मैं प्रिय नहीं हूँ, मैं इच्छित नहीं हूँ। कोई मुझसे प्रेम नहीं करेगा। इस प्रकार आपके मस्तिष्क में यह छोटी सी अपूर्णता घुस जाती है, जो आपके मस्तिष्क व शरीर से जुड़ जाती है और वही आपकी आत्म-छवि बन जाती है, जो आपके भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
क्या आपके साथ ऐसा ही हुआ है? क्या आपका पूरा जीवन उसी अंदर बन चुकी छवि से परिभाषित है? नहीं, ऐसा नहीं है। कुछ ‘सिद्धांत प्रतिपादक’ ऐसे हैं, जो कहते हैं कि आपकी आत्म-छवि स्थिर होती है। यह सही नहीं है। आप अपना प्रोफाइल बदलते हैं। कॉन्फिडेंस कोड जैसी पुस्तकें अपने सारे अलग-अलग पहलुओं में आपके आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को लेकर दिलचस्प जानकारी उपलब्ध कराती हैं।4 चाहे यह अभिकथनों, संज्ञानात्मक व्यवहार थेरैपी या अन्य रणनीतियों से हो, आप सदैव अपने मन व शरीर के स्मृति-कोष में अपनी मनोदशा को बदलकर उस भ्रष्ट हो चुकी फाइल को ठीक कर सकते हैं, जिसमें व्यायाम से अपनी ताकत की भावना को बढ़ा सकते हैं, आध्यात्मिकता का सहारा ले सकते हैं। आप जिसे मनोदशा कहते हैं, उस उच्च शक्ति से जुड़ सकते हैं। उसे आप चाहे कुछ भी कहें, लेकिन उसे बदल सकते हैं। आप स्वयं से प्रेम कर सकते हैं। यदि अपनी मनोदशा को चंगा करना चाहते हैं तो आप किसी थेरैपिस्ट की मदद लेकर अपने शुरुआती जीवन की क्षति और क्षोभ को दूर कर सकते हैं।
डिप्रेशन और क्रोध
काश, मेरे पास हर उस व्यक्ति को देने के लिए एक डॉलर होता, जो मेरे पास चिकित्सकीय अंतर्ज्ञान के अध्ययन के लिए आता और जिसे डिप्रेशन तथा क्रोध के मन-शरीर नेटवर्क की बीमारी होती, लेकिन कहता कि वह डिप्रेस्ड, क्रोध में या नाखुश नहीं है। इस तरह के लोगों में माइंड डिप्रेशन नहीं होता। उनमें बॉडी डिप्रेशन होता है। बॉडी डिप्रेशन क्या है? लोगों को उदासी और क्रोध का अनुभव होता है और वे उस भावना को लेकर बात कर सकते हैं, फिर भी ऐसा नहीं करते। वे थके होने के लिहाज से बात करते हैं। वे अपने सीने पर एक बोझ महसूस करते हैं, जिसके चलते साँस नहीं ले पाते। उनके पैर काँपते हैं। वे सो नहीं पाते। वे सोकर भी नहीं सो नहीं पाते। उनके शरीर की मांसपेशियाँ अकड़ जाती हैं। उनका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है। उन्हें अल्सर हो जाता है, वगैरह-वगैरह। यह कैसे हो सकता है? ये लोग उस तबाही के कारण होनेवाले न्यूरोकेमिकल प्रभावों के लक्षणों को बताते हैं। साइटोकिंस ने जब सूजन की स्थिति पैदा कर दी, तब संभव है कि उस व्यक्ति को डिप्रेशन और क्रोध के कारण उस तबाही से जुड़ी पूरी नहीं, सिर्फ आधी समस्या का अनुभव होता है। डिप्रेशन और क्रोध के न्यूरोट्रांसमीटरों ने लक्षणों की जमीन तैयार कर दी है, जो मस्तिष्क की तुलना में शरीर में अधिक प्रभावी होते हैं। याद रखिए, यदि हम उदासी या क्रोध जैसी भावना को व्यक्त नहीं करते, यदि हम उसे अपने दाएँ मस्तिष्क से बाएँ मस्तिष्क में ले जाते हैं और उस पर काररवाई नहीं करते तो यह हमारे शरीर में भी चला जाएगा।
चिकित्सा अंतर्ज्ञान असल में वह प्रणाली है, जो मन की समस्याओं के कारण सामने आनेवाली शरीर की समस्याओं को दूर करने में लोगों की मदद करती है। जब भी हमारे जीवन में ऐसी भावना पैदा होती है, जिससे हम निपट नहीं पाते, तब हमारा शरीर हमें किसी खास क्षेत्र में लक्षणों के जरिए उसे बता देता है। इसलिए, उदाहरण के तौर पर, हम उन सात में से किसी भी एक केंद्र में समस्याओं को देख सकते हैं, जिनकी चर्चा हमने पहले की है—
• यदि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली, खून, त्वचा, मांसपेशियों और जोड़ों या एनीमिया या मोनोन्यूकिलोयोसिस के पहले केंद्र में समस्या है, तब आप स्वयं से पूछिए, ‘‘मैंने परिवार में क्या या किसे खो दिया है?’’
• यदि दूसरे केंद्र श्रोणि क्षेत्र में लक्षण सामने आते हैं, जो आपके शरीर का संबंध से जुड़ा क्षेत्र है, जैसे पी.एम.एस., योनिशोथ आदि, तब आप स्वयं से पूछिए, ‘‘क्या संबंध या पैसे से जुड़ा मेरा कोई नुकसान, उदासी या क्रोध है?’’
• यदि आपके तीसरे केंद्र में लक्षण हैं, जो शरीर का मध्य भाग है—जैसे, मधुमेह या एलर्जी—तो खुद से पूछिए, ‘‘क्या आत्म-सम्मान या कार्य को लेकर मेरे अंदर उदासी है?’’
• आपको चौथे केंद्र हृदय, स्तन तथा फेफड़े में समस्या है तो उसका संबंध साथी या बच्चों से जुड़े शोक से हो सकता है।
• पाँचवें केंद्र में हाइपोथायरॉयडिज्म की समस्या दरकिनार किए जाने से उत्पन्न क्रोध के कारण हो सकती है।
• छठे केंद्र में मोतियाबिंद का कारण सामने की खुशी को देख न पाना हो सकता है।
• सातवें केंद्र में वह क्रोध या दुःख या लंबे समय से बना असंतोष आप में कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है।
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दवा से शरीर के डिप्रेशन और क्रोध का इलाज
पूरी दुनिया से लोग बतौर चिकित्सा अंतर्ज्ञान के तहत अपने मस्तिष्क और शरीर की समस्याओं को लेकर मेरे पास आते हैं। शारीरिक समस्याओं में मददगार अनेक पोषाहार, हर्ब तथा दवाइयाँ भावनात्मक समस्याओं में भी सहायक हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, मनःस्थिति को अच्छा बनानेवाली दवाएँ, जैसे—प्रोजैक, जोलॉफ्ट या 5-एच.टी.पी. या एस.ए.एम. प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ियों को दूर कर सकती हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि वे उन प्रतिरक्षा मध्यस्थों को प्रभावित करते हैं। हाँ, वही प्रतिरक्षा मध्यस्थ, जो उन तबाही के प्रभाव का हिस्सा है, जिनके बारे में हमने पहले जाना। वैज्ञानिकों को अब ऐसा लगता है कि न्यूरोमॉडुलेटर, साइटोकिंस अनेक प्रकार की बीमारियों में प्रभाव दिखाते हैं, चाहे वह लिम, लुपस, असाध्य थकान, फाइब्रोमायल्जिया या संधिशोथ हो। इसलिए चाहे आपके साथ डिप्रेशन हो, हताशा या उनके जैसी कोई भी बीमारी, सप्लिमेंट और दवाएँ भी वैसी ही हो सकती हैं। यदि मैं किसी को बताती हूँ कि वे गठिया के लिए रोडियोला ले सकते हैं, तो वे कहेंगे, ‘‘मैं जानता हूँ, रोडियोला किस के लिए है। यह डिप्रेशन के लिए होता है। आपको लगता है कि मैं डिप्रेस्ड और चिंतित हूँ।’’ और मैं कहती हूँ, ‘‘नहीं, मैं आपको बस, इतना कह रही हूँ कि रोडियोला सेरेटोनिन में मदद करता है, लेकिन यह कॉर्टिसोल में भी मददगार है और आपको कॉर्टिसोल की समस्या है।’’ और अकसर वह व्यक्ति कहता है, ‘‘ओके।’’5
ऑल इज वेल क्लीनिक
इस अध्याय का शेष हिस्सा ऑल इज वेल क्लीनिक के प्रति समर्पित है, जहाँ आपको अपने डिप्रेशन, क्रोध तथा मनोदशा की अस्थिरता का इलाज करने का वास्तविक अनुभव होता है।
I. मन-शरीर का डिप्रेशन और क्रोध
इस बात की संभावना है कि अपने जीवन के किसी-न-किसी मोड़ पर हम सभी ने इसका अनुभव किया है; लेकिन क्या इस समय हमारा मस्तिष्क और शरीर डिप्रेशन तथा क्रोध से भरे माहौल में झूल रहा है? नीचे की सूची को देखें और बताएँ कि इनमें से कितनी बातें आपके जीवन पर इस समय लागू होती हैं। आप जब ऐसा कर रहे होंगे, तब आप अपने ऊपर अंतर्ज्ञान अध्ययन कर रहे होंगे।
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मन के लक्षण
• आपको दुःख, दर्द, शोक, अकेलेपन, गुस्से, कड़वाहट, कुंठा या चिड़चिड़ापन महसूस हो रहा है।
• इस तरह की भावनाएँ किसी प्रिय के चले जाने से महसूस हो रही हैं।
• आप जिसकी परवाह करते थे, उसने आपका अपमान किया।
• इस तरह की चिंता का भाव तब पैदा होता है, जब आपने नौकरी या कॅरियर में जिसके लिए काम किया, वह आपको नहीं मिला।
• अंतर्ज्ञान से आप किसी और के डिप्रेशन या उदासी से जुड़ गए हैं।
• आपको लगता है कि जीवन निराशाजनक है।
• आप बेकार महसूस करते हैं।
• आप अपने आसपास हो रही गलत चीजों को जिम्मेदार ठहराते हैं।
• आपको लगता है कि आपके साथ सही व्यवहार नहीं हो रहा है।
• आपको लगता है कि जीवन अलग होना चाहिए।
• आप अपने जीवन को समाप्त करना चाहते हैं।
• आप चाहते हैं कि किसी और का जीवन समाप्त हो जाए।
शरीर के लक्षण
• आप थकान व दर्द महसूस करते हैं। आपको बार-बार इन्फेक्शन होता है।
• आप शरीर को बिस्तर से बाहर नहीं ला पाते। आप सोते ही चले जाते हैं।
• आपको न तो नींद आती है, न ही आप लगातार सो पाते हैं।
• आप जब चलते हैं, तब धीरे-धीरे चलते हैं और अपने कदम को बदलते रहते हैं।
• आपके पैर कमजोर लगते हैं और शरीर की मुद्रा डगमगाई-सी लगती है।
• आपके दाँत और हाथ कस जाते हैं।
• आपका चेहरा लाल और गरम हो जाता है।
• आप दरवाजे पटकने और चीजों को फेंकने लगते हैं।
• आपके हार्मोन में उतार-चढ़ाव आता रहता है। यदि आप स्त्री हैं तो आपके मासिक धर्म या रजोनिवृत्ति के दूसरे हिस्से के दौरान आपकी भावनाएँ बदतर हो जाती हैं।
• यदि आप 50 साल से अधिक के पुरुष हैं तो आप थकान और ऊर्जा की कमी महसूस करते हैं। आपको सेक्स की इच्छा नहीं होती।
• आप या तो सबकुछ खाना चाहते हैं या कुछ भी नहीं खाना चाहते। आपकी भूख मर जाती है।
• आपके पेट में खालीपन का एहसास होता है।
• आप बहुत ज्यादा शराब पीना चाहते हैं।
• आप ऐसी चीजों पर बहुत पैसा खर्च करना चाहते हैं, जो आम तौर पर नहीं करते।
• आपको अपने सीने में चुभने जैसा एहसास होता है।
• आपका ब्लड प्रेशर घटता-बढ़ता है।
• आपका दम घुटता है।
• आपको लगता है, जैसे गले में कुछ अटक गया है।
• आपको कुछ भी याद नहीं रहता है। आप ध्यान नहीं लगा पाते या किसी ऐसी चीज पर ध्यान लगाते हैं, जो आपको चिंताग्रस्त और बोझिल बना देता है।
अगर आपके साथ ऐसा है तो मेरे साथ ऑल इज वेल क्लीनिक में चलिए, जहाँ आपको अनेक प्रकार के समाधान मिलेंगे, जिनका इस्तेमाल आप अपनी हीलिंग टीम के साथ कर सकते हैं। इससे पहले कि हम आपकी समस्या पर आएँ, फेलीसिया की कहानी सुनिए।
फेलीसिया : धीमी गति से बढ़ता डिप्रेशन
फेलीसिया क्लीनिक पर आई, क्योंकि उसके मुताबिक उसे ‘बकवास’ जैसा अनुभव हो रहा था। दुर्भाग्य से, उसके नाम का मतलब है—‘खुशी’।
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अंतर्ज्ञान अध्ययन
मैंने फेलीसिया को देखा। उसका परिवार उससे प्रेम करता था। कोई तकलीफ नहीं, न ही त्रासदी। हालाँकि मुझे फेलीसिया के जीवन में कोई उत्साह या उद्देश्य नजर नहीं आया। ऐसा लगा, जैसे उसके घर की रोशनी कम हो गई थी। उसका मस्तिष्क ऐसा था, मानो वह ध्यान नहीं लगा पा रही हो। उसके अंदर ‘चलो कुछ कर दिखाते हैं’, वाली बात नहीं थी, इसलिए मुझे नहीं लग रहा था कि वह कॅरियर में दिलचस्पी ले रही है। उसे न कोई शौक था, न घर से बाहर निकलने या दोस्त बनाने की इच्छा थी। हालाँकि फेलीसिया के आसपास के लोग सक्रिय और नाटकीय थे और इस कारण ही वह हताश थी। उसे लगता था कि जीवन उसके साथ गलत कर रहा है, क्योंकि दूसरे लोगों को जो खुशी मिल रही थी, उसे वह हासिल नहीं कर पा रही थी।
शरीर
मैंने फेलीसिया के शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर अंतर्ज्ञान का अध्ययन किया। मैंने देखा कि उसके मस्तिष्क में ‘बैटरी तरल पदार्थ’ का अभाव है। क्या एंटीबॉडी उसके थायरॉइड के खिलाफ थी? वह उदास व निराश दिखती थी। क्या असाध्य प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्या उसके जोड़ों को नुकसान पहुँचा रही थी? ऐसा लगा जैसे उसके कंठ के पीछे एक असाध्य स्राव की समस्या थी। मैंने देखा कि उसके दाँत कसे हुए थे और उसके जबड़े व गरदन की मांसपेशियाँ कसी हुई हैं।
सच्चाई
फेलीसिया ने मुझे बताया कि जीवन भर उसे डिप्रेशन और निराशा की समस्या रही है। डॉक्टरों ने इसे मनस्ताप या लगातार रहनेवाला डिप्रेसिव डिसऑर्डर बताया। वह चाहे कुछ भी कर ले, वह इस फाँस से निकल नहीं पा रही थी। चाहे कोई भी भोजन या पोषाहार या दवा क्यों न ले, फेलीसिया ‘अनडिप्रेस्ड’ नहीं हो पाती थी, न ही अपनी खिन्नता से निकल पाती थी। चाहे वह किसी के साथ भी क्यों न हो या कुछ भी कर ले, उसे ऊर्जा की कमी का ही एहसास होता था। उसे लगा कि वह एक घिसटते लंगर के समान थी। वह अपने आसपास के दूसरे लोगों जितनी खुश क्यों नहीं हो पाती थी?
डॉक्टरों ने फेलीसिया को बताया कि उसे असाध्य थकान हो सकती है। इसलिए उसने सारे इलाज कराए। कोई फायदा नहीं हुआ। दूसरे डॉक्टरों ने कहा कि उसे एड्रिनल फटीग है। उसने कॉर्टिसोल, प्रतिरक्षा की गड़बड़ियों के लिए सारे पोषाहार लिये, फिर भी उसका डिप्रेशन नल से टपकती बूँद की तरह बना रहा। दुःख, दुःख, दुःख।
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समाधान
क्या आप उदासी और हताशा से जूझ रहे हैं? क्या खुशी आपको अपनी पहुँच से दूर लगती है? यदि आप लगातार उदासी और कम ऊर्जा से परेशान हैं तो इससे आपके सामने अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएँ खड़ी हो जाएँगी, जैसे प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ियाँ, दर्द तथा एड्रीनल और थायरॉइड के असंतुलन उनमें से कुछ एक हैं। यदि आप फेलीसिया की तरह ही सिर्फ शरीर का इलाज करेंगे, न कि मनोदशा का तो स्वस्थ नहीं हो सकेंगे। यदि आप सिर्फ मनोदशा, डिप्रेशन और चिड़चिड़ेपन का इलाज करेंगे, तब भी आप शरीर के लक्षणों से जूझते रहेंगे। ऐसा क्यों? इसलिए कि मस्तिष्क व शरीर के डिप्रेशन और क्रोध का इलाज करने के लिए आपको संपूर्ण इलाज की जरूरत है। उदासी और क्रोध मस्तिष्क व शरीर में एक साथ उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार की भावनाएँ छोटी सी समस्या के रूप में होती हैं, जो बनी रहीं तो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली में प्रदाह उत्पन्न कर देंगी। डिप्रेशन तथा क्रोध के मस्तिष्क-शरीर प्रदाह से ऊष्मा, दर्द एवं लालिमा पैदा होती है, जो आपके जोड़ों में दर्द का रूप ले सकती है। आपके साथ ध्यान, एकाग्रता और ब्रेन फॉग की समस्या भी हो सकती है।
आखिर हम यह पता कैसे लगाएँ कि मस्तिष्क-शरीर मनोदशा की समस्या है? डिप्रेशन अनेक प्रकार के प्रदाह संबंधी रोगों का कारण होता है। शरीर में प्रदाह के अनेक लक्षण डिप्रेशन में भी दिखते हैं। इसलिए हम सिर्फ आपके मस्तिष्क की देखभाल पर गौर नहीं करते, बल्कि आपके शरीर का भी खयाल रखते हैं। उदासी और हताशा तथा मस्तिष्क और शरीर में प्रदाह को दूर करने के लिए सप्लीमेंट्स, दवाओं एवं अभिकथनों का प्रयोग आपके अंदर जीवन की खुशियों का लुत्फ पूरी तरह से उठाने की क्षमता पैदा करता है। यही नहीं, आपकी मनोदशा का इलाज कर हम आपके शरीर में प्रदाह का इलाज भी करते हैं। वास्तव में, अनेक एंटीडिप्रेसेंट प्रदाह को कम करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए जाने जाते हैं।
थेरैपी कितनी कारगर है, इस स्थिति में थेरैपी का इस्तेमाल कहाँ किया जा सकता है? मनस्ताप या उस लंबे व धीमे डिप्रेशन, चिड़चिड़ेपन तथा क्रोध से पीड़ित व्यक्तियों के लिए संज्ञानात्मक व्यवहारवादी रोगोपचार सबसे सहायक सिद्ध होता है। संज्ञानात्मक व्यवहारवादी रोगोपचार क्या है? कुछ नहीं, बस, संज्ञानात्मक विचारों पर गौर करना और पता लगाना कि उनका व्यवहार पर कैसा असर होता है। संज्ञानात्मक व्यवहारवादी रोगोपचार के एक विश्वस्त काउंसलर के साथ हम विचारों की इन परिपाटियों को नाम देना सीखते हैं, जो ‘पीछे धकेलते’ हैं, जो मनोदशा को बिगाड़ते हैं और हम उन कार्यों की पहचान करते हैं, जो हमारे डिप्रेशन को समान रूप से बदतर बनाते हैं। क्या यह अभिकथनों जैसा लग रहा है? हाँ, आप सही हैं। लुइस हे की रचना में कई अभिकथन किसी नकारात्मक सोच के तरीके की पहचान करते हैं और उस अवसादग्रस्त विचार को अधिक सकारात्मक, प्रिय, प्रसन्नता देनेवाले, विश्वास दिलानेवाले विचार से बदल देते हैं।
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दवाइयाँ
इनके अलावा, कई लोग, जिनकी हम सहायता करते हैं, उनकी मनोदशा को पोषाहार, हर्ब या कुछ मामलों में जीवन-रक्षक दवाओं की भी जरूरत पड़ती है। अपने परामर्शदाता के साथ बैठकर सिर्फ आप तय कर सकते हैं कि आपके लिए सही क्या है। यह अकेले करनेवाली चीज नहीं है। जब आप पर किसी शिशु की जिम्मेदारी होती है, तब आप उसका पालन मिलकर करते हैं। आप जब अपने मन और शरीर को नया जन्म देना चाहते हैं, तब बेहतर होगा कि उसे साझेदारी में करें। इसलिए, किसी अच्छे पेशेवर के साथ यह देखें कि किस तरह के पोषाहार, हर्ब या ऐसे हार्मोन और दवाइयों की जरूरत है, जो आपके मन के ताने-बाने को फिर से ठीक करने का काम कर सकते हैं।
इस समय कोई भी नहीं जानता कि किस प्रकार की दवाइयाँ और सप्लीमेंट्स इस प्रकार के मनस्ताप या निरंतर अवसादग्रस्तता के रोग में फायदेमंद साबित हो सकते हैं। हालाँकि बतौर मरीज आपके और आपका इलाज करनेवाले के बीच एक गहन बातचीत होती है। इसलिए अकेले मत रहिए, मदद माँगिए। आपके और आपके इलाजकर्ता के बीच बातचीत से एक प्रकार की दवा पैदा होती है, जो आपकी मनोदशा को बेहतर बनाएगी। इलाज के इस अणु का ‘स्वस्थ करनेवाला प्रभाव’ सिर्फ आपके मस्तिष्क में नहीं होता; यह आपके शरीर में भी होता है। वह दवा, जो लोगों के बीच समानुभूति के ‘गोंद’ की तरह काम करती है, आपके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में प्रदाह को भी प्रभावित करती है। इसलिए उठ खड़े हो जाइए और फोन घुमा दीजिए। स्वस्थ होने के लिए पहला संपर्क कर लीजिए।
यदि आपका डिप्रेशन आपको लकवाग्रस्त कर रहा है, प्राणघातक बन गया है तो अपने मन से दवा को ‘न’ मत कहिए। हाँ, आपको लगेगा कि दवा सही चीज नहीं है। शायद आप प्राकृतिक तरीका अपनाना चाहते हों; लेकिन दवाओं को पूरी तरह से नकार देने से पहले ठहरिए, सोचिए। डायबिटीज में कई लोगों का अग्न्याशय इंसुलिन बनाना बंद कर देता है, जो एक महत्त्वपूर्ण हार्मोन है, या आप कहें तो न्यूरोट्रांसमीटर है, जो मन और शरीर के तालमेल के लिए जरूरी होता है। इसी प्रकार, हमारे ब्रेन स्टेम हमारी मनोदशा के लिए न्यूरोट्रांसमीटर्स बना लेते हैं और कुछ लोगों में उनके मस्तिष्क के स्टेम किसी भी कारण से ऐसे न्यूरोट्रांसमीटर बनाना बंद कर देते हैं। आप नहीं सोच पाएँगे कि किसी डायबिटिक के लिए इंसुलिन लेना गैर-आध्यात्मिक भी हो सकता है। सोच सकते हैं? यह समझना जरूरी है कि हम सभी को एक विकल्प चुनना पड़ता है, चाहे आज चुनें या आगे जाकर। [adinserter block="1"]
इसलिए जब दवा की बात आती है तो आपके विकल्प क्या हैं? उनमें प्रोजैक, जोलॉफ्ट, पेक्सिल, लेक्साप्रो तथा अन्य एंटीडिप्रेसेंट्स भी हैं, जिन्हें ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स कहते हैं। दूसरी तरफ, ढेर सारे नए एंटीडिप्रेसेंट्स भी हैं, जो उन ट्रांसमीटर्स पर चोट करते हैं, जिनके बारे में मैंने ब्रेन स्टेम में बात की है। सेरोटोनिन और नोरेपिनेफ्रिन पर इफेक्सर, सिंबाल्टा तथा अन्य प्रभाव डालते हैं। इनमें से कई दवाइयाँ शरीर के डिप्रेशन, शरीर के प्रदाह पर भी कार्य करती हैं। किसी को सिंबाल्टा असाध्य थकान से जूझ रहे लोगों के जोड़ों में सूजन पर कारगर होता है; दूसरी तरफ नई दवाइयाँ हैं, जिनके बारे में आप सुनने वाले हैं, जैसे—एबिल्फी वगैरह, जो डोपामाइन और सेरोटोनिन के क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। वे चिंता और डिप्रेशन के असामान्य मेल के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। आखिरकार, ऐसी विरले ही इस्तेमाल की जानेवाली दवाएँ हैं; लेकिन वे काफी कारगर हैं, जिन्हें एम.ए.ओ. अवरोधक (मोनोमाइन ऑक्सीडेंस अवरोधक, जैसे नारडिल या पारनेट) कहा जाता है। ये लंबे समय के डिप्रेशन का इलाज करने के लिए काफी बेहतर होते हैं, लेकिन उनके साथ स्पेशल डाइट लेनी पड़ती है।
पर शायद आप दवाओं के लिए तैयार नहीं। यह बात आपको अपने डॉक्टर या चिकित्सक या परामर्शदाता अथवा नर्स को बता देनी चाहिए। आपके पास कई विकल्प हैं—
• खाली पेट SAMe, 400 मिलीग्राम प्रतिदिन ले सकते हैं, या 5-HTP या रोडियोला 100 मिलीग्राम दिन में एक से तीन बार; लेकिन आपको यह पता कर लेना होगा कि कहीं आपको बाइपोलर रोग तो नहीं है। यह अपने डॉक्टर से पूछिए।
• मल्टीविटामिन्स : B6 और B12 सेरोटोनिन बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। L-मिथाइलफोलेट 60 दिनों तक 15 मिलीग्राम भी डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों को राहत देता है।6
• जेनेटिक टेस्टिंग : कुछ दिनों से जेनेटिक टेस्टिंग के प्रति एक अभियान चल रहा है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि आपके लिए कौन सी दवा या पोषाहार सर्वोत्तम हो सकता है। चाहे यह आपके एंजाइम प्रोफाइल का पता लगाता है, आपके MAO(A) सबटाइप का या कुछ और का; लेकिन लोग अपने जीन्स का टेस्ट कराने के लिए दौड़ पड़े हैं, खासकर जब शुरुआती इलाज से उनकी मनोदशा की समस्या दूर नहीं हुई। हाँ, हमारा स्वास्थ्य कुछ हद तक जीन से तय हो सकता है, लेकिन अनेक ‘एपिजेनेटिक’ प्रभाव, जीवन के अनुभव हो सकते हैं, जो यह तय कर सकते हैं कि हमारे जीन्स मायने रखते भी हैं या नहीं। चिकित्सा में हम लोगों का इलाज करना सीखते हैं, ‘नंबर’ नहीं सीखते। इसलिए यह मानकर मत बैठ जाइए कि लंबा-चौड़ा ब्लड टेस्ट कराने से आपकी समस्या दूर हो जाएगी। आँकड़ों के लिहाज से, वे जितने टेस्ट करेंगे, उतनी ही आशंका होगी कि उनसे एक गलत नतीजा सामने आए, जो किसी दिक्कत को बताएगा, चाहे वह प्रासंगिक हो या नहीं। [adinserter block="1"]
आपका ब्रेन फॉग है, एकाग्रता की कमी है? मनोदशा के लिए कारगर अनेक सप्लीमेंट्स इसमें भी फायदा पहुँचाते हैं—
• जिंकगो बिलोबा 240 मिलीग्राम हमें ध्यान और एकाग्रता बढ़ाने में मदद देता है। सावधान! अपने डॉक्टर से पता करें कि खून पतला करने के प्रभाव के कारण क्या यह सुरक्षित है या नहीं।
• साइबेरियाई जिनसेंग : कॉर्टिसोल, एड्रीनल तथा थकान के साथ ही ध्यान और एकाग्रता की समस्याओं के लिए।
• चॉकलेट में फिनाइलेथिलालानिन (पी.ई.ए.) होता है। यह प्रेरणा और ऊर्जा को बढ़ाता है, क्योंकि यह डोपामाइन में इजाफा करता है।
डिप्रेशन के अन्य इलाज
मनोदशा को प्रभावित करनेवाले न्यूरोट्रांसमीटर्स में दूरगामी परिवर्तन शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित कर सकते हैं। शरीर के उस प्रदाह में एक्यूपंक्चर तथा चीनी हर्ब से भी फायदा मिल सकता है। इसलिए, यदि फेलीसिया की तरह आपको भी शरीर के डिप्रेशन की समस्या है—चाहे असाध्य थकान, दर्द या अन्य लक्षण—तो किसी एक्यूपंक्चरिस्ट या चीनी हर्बलिस्ट के पास जाएँ तथा अपने प्लीहा, पेट और किडनी मेरीडियन का इलाज कराएँ। आप अपने एक्यूपंक्चर विशेषज्ञ से ओएस ड्रेकोनिस जैसा हर्ब देने के लिए भी कह सकते हैं, जिससे डिप्रेशन से राहत के साथ ही शरीर के दर्द और अनिद्रा से राहत मिलती है।