एक आग़ाज़ | Ek Aaghaaz Book PDF Download Free : Hindi Novels by Nitish Ojha 

पुस्तक का विवरण (Description of Book of एक आग़ाज़ PDF। Ek Aaghaaz PDF Download) :-

नाम 📖एक आग़ाज़ PDF। Ek Aaghaaz PDF Download
लेखक 🖊️   नितीश ओझा / Nitish Ojha  
आकार 24 MB
कुल पृष्ठ190
भाषाHindi
श्रेणी
Download Link 📥Working
शायद सबसे अच्छी तस्वीरें वो होती हैं, जिन्हें हम फेसबुक पे नहीं लगा सकते. उस पुराने एल्बम को देखते हुए लगा, हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला, मतलब डर तो पापा से आज भी लगता है, पर वो अब डाँटते नहीं हैं, मम्मी को
मेरी फिक्र आज भी है, पर अब वो उतने सवाल नहीं करतीं और हाँ रही बात दोस्तों की, तो वो साले आज भी नहीं बदले, कल भी मेरी इज़्ज़त नहीं करते थे, आज भी नहीं करते हैं.कभी कभी इस उलझी हुई ज़ि न्दगी में वो दिन याद आतें हैं तो लगता है काश,
पर ‘काश’ से अच्छा लफ्ज़ ‘उम्मी द’ है और ‘एक आग़ाज़’ इसी उम्मी द की कहानी
है. बस इतना समझ लीजिये, यहाँ वक़्त के बदले वक़्त मिलेगा......

[adinserter block="1"]

 

पुस्तक का कुछ अंश

थैंक यू
ज़िन्दगी में कुछ लोग सुबह की पहली चाय की तरह होते हैं, मतलब मिलते ही उम्मीद दे देते हैं. आज बस इन्हीं लोगों को THANK YOU बोलना है. सबसे पहले तो मेरे नानाजी श्री कृष्णा मिश्रा, पापा श्री ओम प्रकाश ओझा, मम्मी श्रीमती संध्या ओझा और मेरी फैमिली के सभी लोग, शायद बड़े होने के बाद आप लोगों से कभी कह नहीं पाया, पर थैंक यू. मैं आप से ही हूँ और हमेशा आप का ही रहूँगा.
इसके बाद और सबसे पहले, Shashank, मेरे दोस्त, मेरे भाई, वैसे थैंक यू बहुत ही छोटा लफ्ज़ है, पर फिर भी, थैंक यू भाई. देखना, एक दिन मैं तुम्हारी भी कहानी लिखूंगा. इसके बाद, Anuja, तुम्हारे बिना ये हो ही नहीं पाता, बहुत दिमाग खराब किया है मैंने तुम्हारा फ़ोन पर किताब को लेके, अगली चाय मेरी तरफ से, मतलब कॉफ़ी. आखिरी में, Dheeraj, शायद ऑफिस में भी दोस्त बनते हैं, तुमने ये बता दिया, बार बार पढ़ने के लिए शुक्रिया.
ये तो हुई किताब पढ़ने वालों की बात, अब मेरे वो दोस्त, जिनके बिना ये सब पॉसिबल ही नहीं था, मतलब वो लोग, जो मेरे हर फेसबुक स्टेटस को लाइक कर देतें हैं. Ratan, Nitin, Apoorv, Ankit, Sambhav, Sanjiv, Naveen, Sarim, Mudit, Yatin, Sahil, Sunny, Kshitij, Pallavi, Ananya और Ritika, थैंक यू, ये तुम्हारे लिए. अगर किसी का नाम भूल गया हूँ तो माफ़ कर दीजियेगा. किताब का कवर डिज़ाइन करने के लिए, अंकित, अन्वेषा और हमारी भाभी सोनिया तिवारी जी का शुक्रिया.
जाते जाते आग़ाज़ के सभी दोस्तों को थैंक यू, आपने इस उम्मीद को उड़ान दे दी और आखिर में, ललित, मेरे दोस्त, मेरे भाई, तुम्हारी रेलवे स्टेशन वाली बात मुझे हमेशा याद रहेगी, ये तुम्हारे लिए……
किस्से
01. सफ़र
02. भाभी का बर्थडे
03. लोग क्या कहेंगे
04. राज़
05. माँ
06. आईना
07. इश्क़
08. नब्बे का दशक
09. सबसे बड़ी गलती
10. पहचान
11. काश
12. कोचिंग वाला इश्क़
13. जो लौट के घर न आये
14. थैंक यू पापा
15. वहम
16. राहुल द्रविड़ और मैं
17. प्यार दोस्ती है
18. वक़्त
19. वो लिफ़ाफ़ा
20. ख़ुशी
21. तस्वीर
22. जुनून
23. तो क्या करना है आपको
[adinserter block="1"]
सफ़र……
01
बात थोड़ी पुरानी है, मैं कॉलेज में था और किसी काम से दिल्ली जाना था. शायद जनवरी का महीना होगा तो मम्मी के कहने पे पापा ने AC में टिकट करवा दिया. अब क्योंकि AC में अमीर लोग बैठते थे तो हम भी पहुंच गए स्टेशन सबसे अच्छी जैकेट पहन के. मेरे लाख मना करने के बाद भी पापा कड़ाके की ठंड में मुझे स्टेशन छोड़ने आये थे. वो रिजर्वेशन चार्ट में मेरा नाम ढूँढ रहे थे और मैं अपनी उम्र की लड़कियों का, पर साला हमेशा की तरह एक अंकल थे सामने वाली सीट पे. खैर ट्रेन की सीटी बजी और एक ऐसा किस्सा शुरू हुआ जिसे शायद मैं कभी न भूल पाऊँ.
मेरे सामने जो अंकल बैठे थे वो उम्रदराज तो थे पर बूढ़े नहीं थे, उनकी दाढ़ी के कुछ बाल सफ़ेद, कुछ काले थे. वो मुस्कुराते हुए अपने डिजिटल कैमरे से स्टेशन की तस्वीरें ले रहे थे और मैं ये सोच रहा था कि इस धुंध में वो फोटो ले रहें हैं, क्या ही फोटो आएगी. खैर स्टेशन ख़त्म होते ही सब काला हो गया, वो तस्वीरें देखने लगे और मैं अपने मोबाइल में आतिफ असलम के गाने. मैंने जैसे ही earphones निकाले, अंकल जी की आवाज़ आयी……
अंकल: बेटा आप कहाँ तक जाएंगे?
मैं: अंकल दिल्ली तक, आप?
अंकल (हँसते हुए): मैं तो फैमिली टूर पे निकला हूँ.
मैं (थोड़ी मासूमियत से): पर यहाँ तो कोई भी नहीं है, वो लोग आगे चढ़ेंगे क्या?
अंकल (मुस्कुराते हुए): बेटा, मेरी फैमिली में बस मैं ही हूँ.
थोड़ा अटपटा लगा मुझे, लेकिन अगला सवाल पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, शायद उन्हें बुरा लगता. मैं वापस लग गया अपने मोबाइल में और कॉलेज की कुछ पुरानी तस्वीरें देखने लगा, कुछ बहुत ही मज़ेदार थीं, मतलब शायद सबसे अच्छी तस्वीरें वो होती हैं, जिन्हें आप फेसबुक पे नहीं लगा सकते. मैं उन्हें देख कर हँस ही रहा था कि अंकल बोले……
अंकल: बेटा आपको ये कैमरा चलाने आता है, इसमें कुछ फोटो डिलीट करनी हैं.
मैं: अंकल आप चाहते हैं तो मैं देख लेता हूँ.
उनके कैमरे में खींची गईं अधिकतर तस्वीरें खराब थीं, कुछ धुँधली थीं, कुछ हिली हुई. शायद शौकिया ले लिए होंगे. उन्हें फोटो डिलीट करना सिखाते सिखाते उनके बारे में एक बात पता चली, उनके हाथ थोड़े काँपते थे. खैर धीरे धीरे लाइट बंद होती गईं और लोग सोने लगे. मुझे ट्रेन में नींद नहीं आती थी, तो मैं चद्दर ओढ़ के गाने और करवटें बदलने लगा. जब फिर भी नींद नहीं आयी तो सोचा कि किताब पढ़ लेते हैं. घड़ी में रात के एक बज रहे होंगे और मैं उठ गया अपने बैग से किताब निकालने. उठा तो देखा अंकल जी भी जगे हुए थे, खिड़की से बाहर देख रहे थे. मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उनसे पूछ लिया……
मैं (धीरे से): अंकल सोये नहीं आप?
अंकल: बस नींद नहीं आ रही थी, तो सोचा खुद से बातें कर लूँ.
मैं (हँसते हुए): खुद से बातें कौन करता है?
अंकल: अरे क्यों नहीं, तुम नहीं करते? वैसे तुम करते क्या हो?
मैं: मैं engineering कर रहा हूँ, 3rd ईयर.
अंकल: बहुत अच्छा, तो आगे जा के क्या सोचा है?
मैं: अंकल मेरा US जाने का मन है, MS करूँगा फिर देखा जाएगा.
अंकल: माँ बाप से दूर रह लोगे?
मैं: मतलब? कुछ टाइम के लिए ही तो जाऊँगा, फिर आ जाऊँगा वापस.
अंकल: बेटा अक्सर लोग वापस नहीं आते. मेरा बेटा तीन साल से नहीं आया.
मैं: आपका बेटा? आप तो कह रहे थे……[adinserter block="1"]
अंकल: मेरा इकलौता बेटा US में है, अपने बच्चों के साथ वो वहां settle हो गया है. मेरी wife नहीं है अब. वो बुलाता है मुझे वहां, पर मैं जाना नहीं चाहता ये सब छोड़ के.
मैं: अंकल बुरा मत मानियेगा पर ऐसे अकेले आप बोर नहीं हो जाते?
अंकल: कोशिश करता हूँ busy रखूं अपने आपको. हाँ बस कभी कभी नींद नहीं आती तो अजीब लगता है.
मुझे लगा, अंकल को शायद बुरा लगा मेरी US वाली बात का तो, उनका मन रखने के लिए मैंने कहा……
मैं: अंकल आप फोटो अच्छी खींचते हैं, आप को फ़ोटोग्राफ़ी का शौक है क्या?
अंकल (मुस्कुराते हुए): मुझे बुरा नहीं लगा तुम्हारी किसी भी बात का.
मुझे समझ नहीं आया कि कैसे रियेक्ट करूँ, मतलब शायद मेरे बड़प्पन का जवाब उनके तजुर्बे ने दिया. मैं मुस्कुराया पर कुछ नहीं कहा, अपने बैग से वो किताब निकाली और पढ़ने लगा. थोड़ी देर बाद अंकल धीरे से बोले……
अंकल: आपको किताबें पढ़ना अच्छा लगता है?
मैं: अंकल पढ़ना भी और लिखना भी. वैसे लिखना थोड़ा छूट गया है इधर बीच.
अंकल: अरे वाह! क्या लिखते हैं आप?
मैं: Poems, शायरी और ऐसी कहानियां जिसमे लोग अपने आप को ढूँढ सकें.
अंकल: छोड़ क्यों दिया, लिखा करिए.
मैं: अंकल टाइम नहीं मिल पाता है, कॉलेज में कॉलेज का काम, घर में घर के काम. बाद में जब टाइम मिलेगा तो फिर से शुरू कर दूँगा.
अंकल: बेटा वो टाइम सबके लिए वापस नहीं आता.
मैं: मतलब?
अंकल: तुम्हें अपने बारे में कुछ बताता हूँ. मुझे घूमने और फ़ोटोग्राफ़ी का बहुत शौक था. एक ख़ुशी होती थी किसी स्टेशन पे पहली बार उतरने में, वहां की तस्वीरें लेने में. मेरी कुछ तस्वीरें एक्सहिबिशन में भी लगती थीं, पर जिम्मेदारियों के नाम पे बहुत सारे स्टेशन छूट गए. वक़्त निकलता गया पर मिला नहीं.
मैं: पर अब तो आप वो सारे स्टेशन घूम सकते हैं न?[adinserter block="1"]
अंकल: मेरे हाथ काँपतें हैं अब, तस्वीरें तो तुमने देखीं ही हैं. (हँसते हुए) खैर छोड़ो, ज़्यादा बोलूंगा तो सोचोगे अंकल कितना बोलते हैं. घर कहाँ है तुम्हारा?
मैं: अरे नहीं अंकल, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं लखनऊ से हूँ. वैसे अंकल आपसे एक बात पूछूं, आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहते या आप अकेले हैं तो वो क्यों नहीं आ जाते आपके पास?
अंकल: यहाँ मेरा मकान है, एक आद रिश्तेदार हैं, मैं इसे छोड़ना नहीं चाहता और वो इंडिया आना नहीं चाहता. इत्तेफ़ाक़ देखो, उसी के लिए बनवाया था ये सब और आज वही नहीं है यहां.
मैं: आपको अकेला नहीं लगता?
अंकल: बेटा, अपने माँ बाप को कभी मत छोड़ना.
पूरी रात मैं सो नहीं पाया, बीच बीच में चद्दर से झाँक के अंकल को देख रहा था. वो सो तो गए थे थोड़ी देर के बाद, पर वो ट्रेन का सफर उनके लिए कुछ घंटों से बहुत लंबा था, शायद ज़िंदगी भर का सफर. किसी तरह रात बीती और ठिठुरती ठंड में दिल्ली आ गया. अंकल जी को आगे तक जाना था. मैंने अपनी किताब बैग में डाली और अंकल जी को नमस्ते कह कर निकल गया. मैं नीचे उतरा ही था कि ज़ोर से आवाज़ आयी, बेटा. मैंने पलट के देखा तो अंकल थे, उनके हाथ में उनका कैमरा था. वो बोले smile please और स्टेशन की उस भीड़ में एक तस्वीर ले गए मेरी.
अजीब बात पता है क्या थी इन सबके आखिर में, न उन्होंने मेरा नाम पूछा, न मुझे उनका नाम याद रहा. काश याद रहता, तो उनसे वो तस्वीर मांग लेता, तो उन्हें अपनी पहली किताब भेज देता. वैसे काश से अच्छा लफ्ज़ उम्मीद है, उम्मीद करता हूँ फिर से मिलेंगे कभी, किसी नए स्टेशन की भीड़ में, किसी धुँधली सी तस्वीर में……
[adinserter block="1"]
भाभी का बर्थडे……
02
आज भाभी का बर्थडे है, पार्टी कहाँ दे रहा. कौन सी भाभी बे, कैसी पार्टी. तक़रीबन सात साल पुरानी बात है ये. कॉलेज में लगभग सबका एक बेस्ट फ़्रेंड होता है, मेरा भी था. उसे बेस्ट शायद इसलिए कहता था क्योंकि उसके साथ की गईं बातें अगर कोई सुन लेता तो यक़ीनन हमे पागल समझता.
बेमतलब की बातें किया करते थे, लेकिन मज़ा भी उसी में आता था. कभी गलती से कोई काम की बात कर ले, तो थोड़ी देर की शांति और फिर वही ज़ोर ज़ोर से हँसने की आवाज़ें. खैर ये किस्सा उस लड़की का है जिसे मेरा दोस्त पसंद करता था. उसका एक नाम भी था, लेकिन हम उसे भाभी बुलाते थे, कभी धीरे से, कभी ज़ोर से. उसका एक नया नया ब्वॉयफ़्रेंड भी था, लेकिन अब इश्क़ तो इश्क़ है, हो गया मेरे दोस्त को.
जब भी वो सामने से गुज़रती थी, हम दोनों हँसते थे. फर्क बस इतना था, वो उसे देख कर हँसता था और मैं उसे देख कर. उस लड़की को भी पता था मेरे दोस्त के बारे में, वैसे पता चल ही जाता है. वो क्लास में जब भी घुसता, खाली जगह देखने के बहाने पहले उसे खोजता था. हाँ अगर वो हमारे बाद आती थी, तो कम से कम एक कोहनी तो मैं अपने दोस्त को मारता ही था. अलग ही मज़ा आता था उसे चिढ़ाने में.
वैसे मेरा दोस्त भी बहुत हरामी था, सबके सामने गुलशन ग्रोवर पर उसके सामने आते ही गोविंदा बन जाता था. हमे हमेशा से पता था कि ये इश्क़ खोखला है, पर फिर भी बहुत सारे इश्क़ में पहला था. जब भी भाभी का बर्थडे आता, हम पार्टी लेने पहुंच जाते थे. चार समोसे, दो चाय और थोड़ा सा धुंआ, बस यही होता था पार्टी के नाम पे, पर यकीन मानिये बात पैसे की कम, उस माहौल की ज़्यादा थी.
कॉलेज के साल बीतते गए पर उसकी बातें कभी आँखों से आगे बढ़ीं ही नहीं. एक दो मुलाक़ातें भी हुईं पर मेरे हँसने की वजह से थोड़ी जल्दी खत्म हो गईं. तीन वैलेंटाइन-डे भी आये बीच में, पर वो इश्क़ कॉपी के आखिरी पन्ने तक ही रह गया. उसका ज़िक्र कभी एक सवाल तो कभी एक मज़ाक बन गया. देखते ही देखते कॉलेज ख़त्म होने को आया, तब तक भाभी का ब्रेकअप भी हो चुका था.
मैंने अपने दोस्त से पूछा अब तो कुछ गलत भी नहीं है, उससे बोल क्यों नहीं देते. वो बोला, बोल तो मैंने उसे तीन साल पहले ही दिया था, पर तब तक थोड़ी देर हो गयी थी. मैंने पूछा तो तुम्हें बुरा नहीं लगता था जब मैं तुम्हें चिढ़ाता था और हर साल वो पार्टी देना. वो बोला, अगर मैं बता देता तो तुम मुझे समझाने लगते, लेकिन देखो मज़ाक मज़ाक में चार साल बीत गए. वो बेस्ट शायद इसलिए भी था क्योंकि वो न सिर्फ मेरे हर मज़ाक को समझता था, मेरी ग़लतियों को भी.
कॉलेज ख़त्म हो गया और हमारे शहर बदल गए. बेमतलब की बातें थोड़ी कम हो गईं. कल जहाँ हर चाय उसके साथ होती थी, आज एक चाय को मोहताज हो गयी. आज भी जब कभी उससे बात होती है तो सारी समझदारी को डिब्बे में डाल, खुल के बात कर लेता हूँ. एक ही बात, बार बार, पर आज भी उतनी ही हँसी आती है. इन्ही बीच एक दिन फेसबुक पे देखा कि भाभी का बर्थडे है तो तुरंत फ़ोन मिलाकर उससे बोला, आज भाभी का बर्थडे है, पार्टी कहाँ दे रहा. वो बोला कौन सी भाभी बे, कैसे पार्टी, और फिर वही ज़ोर ज़ोर से हँसने की आवाज़ें……[adinserter block="1"]
लोग क्या कहेंगे……
03
कभी ऐसा हुआ है आपके साथ कि सौ पचास पढ़े लिखे लोगों के बीच में किसी ने कुछ ऐसा कह दिया हो जिसे कहने की हिम्मत शायद आप कभी नहीं कर पाते. टीवी के सामने तो मैंने कई बार बच्चन साहब और सचिन के लिए तालियां बजायी होंगी, पर ये किस्सा है उस शख्स का जिसके लिए ज़िंदगी में पहली बार खड़े होकर ताली बजाने का मन किया था. सबसे अजीब बात पता है क्या है, उस दिन सबके लिए तालियां बजीं, सिवाए उसके.
बात कुछ साल पुरानी है, मेरी नौकरी का पहला दिन था तो काफी excited था मैं, मतलब, यार अब इसी दिन के लिए तो हम सब पैदा होते हैं. हमे क्या पता होता है कि कुछ दिनों के बाद हमारी ये खोखली excitement बस ऑफ़िस से घर जाने तक की ही रह जाएगी. खैर उस बड़े से हॉल में लगभग तीस लोग बैठे थे और हम सबको एक टास्क मिला. हम सबको अपना इंट्रो देना था और फिर अपनी ज़िंदगी के किसी ऐसे तज़ुर्बे के बारे में बताना था, जिससे हमारी ज़िंदगी में कोई पॉजिटिव चेंज आया हो.
ये सुनते ही मेरे बगल वाले दोस्त ने धीरे से कहा, भाई क्या नौटंकी है ये. मैंने पूछा क्या हो गया, तो वो बोला, अबे यहाँ किसको इस बात में दिलचस्पी है कि किसकी ज़िंदगी में क्या हुआ है, एक तो साला बोलना पड़ेगा अब, और वो भी इंग्लिश में. मैंने कहा, हिंदी में बोल लो न, किसी को क्या फरक पड़ता है. वो मेरी तरफ घूरते हुए बोला, हाँ बे, हिंदी में बोलें और करवा लें अपनी बेइज़्ज़ती. बहरहाल ये प्रॉब्लम उसकी थी, वो जाने, मैं अपनी प्रॉब्लम के बारे मैं सोचने लगा कि ऐसा कौन सा अच्छा किस्सा सुनाये जिसने मेरी ज़िंदगी को बदल दिया, कॉलेज वाली उस लड़की का सुनाएँ जो छोड़ के चली गयी या कोचिंग वाली उस लड़की का, जो कभी मिली ही नहीं.
बहरहाल बातों बातों में लोग शुरू भी हो गए और सच बताएँ, बहुत boring हो रहा था ये सब. मतलब ज़बरदस्ती की बातें, ज़बरदस्ती की तालियां. मैं और मेरा दोस्त, हम दोनों बाकी सब को judge कर ही रहे थे कि उस शख्स की बारी आयी. उसने अपना नाम बताया और फिर अपना चश्मा उतार कर नीचे देखने लगा. लगभग तीस सेकंड हो गए, उसने कुछ बोला ही नहीं तो मेरे दोस्त ने मेरे कान में कहा, अबे लगता है इस साले का भी इंग्लिश का प्रॉब्लम है. खैर जब हमे लगने लगा कि वो कुछ नहीं बोलेगा, तभी उसने बड़ी धीमी आवाज़ में कहा, मैं जब कॉलेज में एडमिशन लेने गया था, तो कंप्यूटर पे एक फॉर्म भरना था, उस फॉर्म में father’s name compulsory था. उसे न भरने पर फॉर्म आगे नहीं बढ़ रहा था तो मैंने एक टीचर को हेल्प के लिए बुलाया. उनसे पूछा, क्या भरूँ इसमें, तो उन्होंने चिल्लाते हुए कहा, अरे साफ़ साफ़ तो लिखा है, अपने father का नाम भरिये. मैंने कहा, मुझे नहीं पता.[adinserter block="1"]
हकबका के मेरा दोस्त मुझे देखने लगा और मैं ज़मीन को. मुझे लगा ही था कि कुछ होने वाला है कि उसने फिर से कहा……
उस टीचर ने जब मुझसे फिर से पूछा, क्या मतलब है तुम्हारा, तो मैंने कहा, I don’t know my father’s name, I don’t know who my father is. फिर उन्होंने मेरी 10th की मार्कशीट मांगी, कुछ देखा और मुझसे कहा, एक काम करो, अपने father के नाम की जगह डॉट (.) लगा दो, नहीं तो आगे नहीं बढ़ पाओगे. मैंने डॉट लगा दिया और तभी से मेरे नाम के आगे एक “डॉट” लग गया.
वो बैठ गया अपनी जगह पे और हम सब बस यही सोच रहे थे कि आखिरकार ये हुआ क्या. सब इतने shock में थे कि किसी ने वो फॉर्मेलिटी वाली ताली भी नहीं बजायी. मैं तिरछी नज़रों से उसको देख रहा था और इस बार वो अपना चश्मा लगाए बड़े इत्मीनान से सामने देख रहा था.
हमने एक आग़ाज़ PDF। Ek Aaghaaz PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 24 MB है और कुल पेजों की संख्या 190 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक   नितीश ओझा / Nitish Ojha   हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ एक आग़ाज़ PDF। Ek Aaghaaz को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।
Q. एक आग़ाज़ PDF। Ek Aaghaaz किताब के लेखक कौन है?
Answer.   नितीश ओझा / Nitish Ojha  
Download

_____________________________________________________________________________________________
आप इस किताब को 5 Stars में कितने Star देंगे? कृपया नीचे Rating देकर अपनी पसंद/नापसंदगी ज़ाहिर करें।साथ ही कमेंट करके जरूर बताएँ कि आपको यह किताब कैसी लगी?
Buy Book from Amazon

Other Books of Author:

Leave a Comment