बात थोड़ी पुरानी है, मैं कॉलेज में था और किसी काम से दिल्ली जाना था. शायद जनवरी का महीना होगा तो मम्मी के कहने पे पापा ने AC में टिकट करवा दिया. अब क्योंकि AC में अमीर लोग बैठते थे तो हम भी पहुंच गए स्टेशन सबसे अच्छी जैकेट पहन के. मेरे लाख मना करने के बाद भी पापा कड़ाके की ठंड में मुझे स्टेशन छोड़ने आये थे. वो रिजर्वेशन चार्ट में मेरा नाम ढूँढ रहे थे और मैं अपनी उम्र की लड़कियों का, पर साला हमेशा की तरह एक अंकल थे सामने वाली सीट पे. खैर ट्रेन की सीटी बजी और एक ऐसा किस्सा शुरू हुआ जिसे शायद मैं कभी न भूल पाऊँ.
मेरे सामने जो अंकल बैठे थे वो उम्रदराज तो थे पर बूढ़े नहीं थे, उनकी दाढ़ी के कुछ बाल सफ़ेद, कुछ काले थे. वो मुस्कुराते हुए अपने डिजिटल कैमरे से स्टेशन की तस्वीरें ले रहे थे और मैं ये सोच रहा था कि इस धुंध में वो फोटो ले रहें हैं, क्या ही फोटो आएगी. खैर स्टेशन ख़त्म होते ही सब काला हो गया, वो तस्वीरें देखने लगे और मैं अपने मोबाइल में आतिफ असलम के गाने. मैंने जैसे ही earphones निकाले, अंकल जी की आवाज़ आयी……
अंकल: बेटा आप कहाँ तक जाएंगे?
मैं: अंकल दिल्ली तक, आप?
अंकल (हँसते हुए): मैं तो फैमिली टूर पे निकला हूँ.
मैं (थोड़ी मासूमियत से): पर यहाँ तो कोई भी नहीं है, वो लोग आगे चढ़ेंगे क्या?
अंकल (मुस्कुराते हुए): बेटा, मेरी फैमिली में बस मैं ही हूँ.
थोड़ा अटपटा लगा मुझे, लेकिन अगला सवाल पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, शायद उन्हें बुरा लगता. मैं वापस लग गया अपने मोबाइल में और कॉलेज की कुछ पुरानी तस्वीरें देखने लगा, कुछ बहुत ही मज़ेदार थीं, मतलब शायद सबसे अच्छी तस्वीरें वो होती हैं, जिन्हें आप फेसबुक पे नहीं लगा सकते. मैं उन्हें देख कर हँस ही रहा था कि अंकल बोले……
अंकल: बेटा आपको ये कैमरा चलाने आता है, इसमें कुछ फोटो डिलीट करनी हैं.
मैं: अंकल आप चाहते हैं तो मैं देख लेता हूँ.
उनके कैमरे में खींची गईं अधिकतर तस्वीरें खराब थीं, कुछ धुँधली थीं, कुछ हिली हुई. शायद शौकिया ले लिए होंगे. उन्हें फोटो डिलीट करना सिखाते सिखाते उनके बारे में एक बात पता चली, उनके हाथ थोड़े काँपते थे. खैर धीरे धीरे लाइट बंद होती गईं और लोग सोने लगे. मुझे ट्रेन में नींद नहीं आती थी, तो मैं चद्दर ओढ़ के गाने और करवटें बदलने लगा. जब फिर भी नींद नहीं आयी तो सोचा कि किताब पढ़ लेते हैं. घड़ी में रात के एक बज रहे होंगे और मैं उठ गया अपने बैग से किताब निकालने. उठा तो देखा अंकल जी भी जगे हुए थे, खिड़की से बाहर देख रहे थे. मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उनसे पूछ लिया……
मैं (धीरे से): अंकल सोये नहीं आप?
अंकल: बस नींद नहीं आ रही थी, तो सोचा खुद से बातें कर लूँ.
मैं (हँसते हुए): खुद से बातें कौन करता है?
अंकल: अरे क्यों नहीं, तुम नहीं करते? वैसे तुम करते क्या हो?
मैं: मैं engineering कर रहा हूँ, 3rd ईयर.
अंकल: बहुत अच्छा, तो आगे जा के क्या सोचा है?
मैं: अंकल मेरा US जाने का मन है, MS करूँगा फिर देखा जाएगा.
अंकल: माँ बाप से दूर रह लोगे?
मैं: मतलब? कुछ टाइम के लिए ही तो जाऊँगा, फिर आ जाऊँगा वापस.
अंकल: बेटा अक्सर लोग वापस नहीं आते. मेरा बेटा तीन साल से नहीं आया.
मैं: आपका बेटा? आप तो कह रहे थे……
अंकल: मेरा इकलौता बेटा US में है, अपने बच्चों के साथ वो वहां settle हो गया है. मेरी wife नहीं है अब. वो बुलाता है मुझे वहां, पर मैं जाना नहीं चाहता ये सब छोड़ के.
मैं: अंकल बुरा मत मानियेगा पर ऐसे अकेले आप बोर नहीं हो जाते?
अंकल: कोशिश करता हूँ busy रखूं अपने आपको. हाँ बस कभी कभी नींद नहीं आती तो अजीब लगता है.
मुझे लगा, अंकल को शायद बुरा लगा मेरी US वाली बात का तो, उनका मन रखने के लिए मैंने कहा……
मैं: अंकल आप फोटो अच्छी खींचते हैं, आप को फ़ोटोग्राफ़ी का शौक है क्या?
अंकल (मुस्कुराते हुए): मुझे बुरा नहीं लगा तुम्हारी किसी भी बात का.
मुझे समझ नहीं आया कि कैसे रियेक्ट करूँ, मतलब शायद मेरे बड़प्पन का जवाब उनके तजुर्बे ने दिया. मैं मुस्कुराया पर कुछ नहीं कहा, अपने बैग से वो किताब निकाली और पढ़ने लगा. थोड़ी देर बाद अंकल धीरे से बोले……
अंकल: आपको किताबें पढ़ना अच्छा लगता है?
मैं: अंकल पढ़ना भी और लिखना भी. वैसे लिखना थोड़ा छूट गया है इधर बीच.
अंकल: अरे वाह! क्या लिखते हैं आप?
मैं: Poems, शायरी और ऐसी कहानियां जिसमे लोग अपने आप को ढूँढ सकें.
अंकल: छोड़ क्यों दिया, लिखा करिए.
मैं: अंकल टाइम नहीं मिल पाता है, कॉलेज में कॉलेज का काम, घर में घर के काम. बाद में जब टाइम मिलेगा तो फिर से शुरू कर दूँगा.
अंकल: बेटा वो टाइम सबके लिए वापस नहीं आता.
मैं: मतलब?
अंकल: तुम्हें अपने बारे में कुछ बताता हूँ. मुझे घूमने और फ़ोटोग्राफ़ी का बहुत शौक था. एक ख़ुशी होती थी किसी स्टेशन पे पहली बार उतरने में, वहां की तस्वीरें लेने में. मेरी कुछ तस्वीरें एक्सहिबिशन में भी लगती थीं, पर जिम्मेदारियों के नाम पे बहुत सारे स्टेशन छूट गए. वक़्त निकलता गया पर मिला नहीं.
मैं: पर अब तो आप वो सारे स्टेशन घूम सकते हैं न?
अंकल: मेरे हाथ काँपतें हैं अब, तस्वीरें तो तुमने देखीं ही हैं. (हँसते हुए) खैर छोड़ो, ज़्यादा बोलूंगा तो सोचोगे अंकल कितना बोलते हैं. घर कहाँ है तुम्हारा?
मैं: अरे नहीं अंकल, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं लखनऊ से हूँ. वैसे अंकल आपसे एक बात पूछूं, आप अपने बेटे के साथ क्यों नहीं रहते या आप अकेले हैं तो वो क्यों नहीं आ जाते आपके पास?
अंकल: यहाँ मेरा मकान है, एक आद रिश्तेदार हैं, मैं इसे छोड़ना नहीं चाहता और वो इंडिया आना नहीं चाहता. इत्तेफ़ाक़ देखो, उसी के लिए बनवाया था ये सब और आज वही नहीं है यहां.
मैं: आपको अकेला नहीं लगता?
अंकल: बेटा, अपने माँ बाप को कभी मत छोड़ना.
पूरी रात मैं सो नहीं पाया, बीच बीच में चद्दर से झाँक के अंकल को देख रहा था. वो सो तो गए थे थोड़ी देर के बाद, पर वो ट्रेन का सफर उनके लिए कुछ घंटों से बहुत लंबा था, शायद ज़िंदगी भर का सफर. किसी तरह रात बीती और ठिठुरती ठंड में दिल्ली आ गया. अंकल जी को आगे तक जाना था. मैंने अपनी किताब बैग में डाली और अंकल जी को नमस्ते कह कर निकल गया. मैं नीचे उतरा ही था कि ज़ोर से आवाज़ आयी, बेटा. मैंने पलट के देखा तो अंकल थे, उनके हाथ में उनका कैमरा था. वो बोले smile please और स्टेशन की उस भीड़ में एक तस्वीर ले गए मेरी.
अजीब बात पता है क्या थी इन सबके आखिर में, न उन्होंने मेरा नाम पूछा, न मुझे उनका नाम याद रहा. काश याद रहता, तो उनसे वो तस्वीर मांग लेता, तो उन्हें अपनी पहली किताब भेज देता. वैसे काश से अच्छा लफ्ज़ उम्मीद है, उम्मीद करता हूँ फिर से मिलेंगे कभी, किसी नए स्टेशन की भीड़ में, किसी धुँधली सी तस्वीर में……