डायनामिक मेमोरी मेथड्स / Dynamic Memory Methods PDF Download Free Book by Dr. Biswaroop Roy Chowdhury

पुस्तक का विवरण (Description of Book of डायनामिक मेमोरी मेथड्स / Dynamic Memory Methods PDF Download) :-

नाम 📖डायनामिक मेमोरी मेथड्स / Dynamic Memory Methods PDF Download
लेखक 🖊️   डॉ बिश्वरूप राय चौधरी / Dr. Biswaroop Roy Chowdhury  
आकार 1.4 MB
कुल पृष्ठ191
भाषाHindi
श्रेणी, ,
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यह पुस्तक नियंत्रित संघ के mnemonics और कानूनों के सिद्धांतों पर आधारित है, और यदि आप उस सिद्धांत को लागू करते हैं, तो आप स्मृति की दुनिया और ज्ञान की दुनिया दोनों को एक साथ श्रेष्ठ बनाने में सक्षम होंगे, अपने आप को अधिक आत्मविश्वास प्रदान करते हुए, एक बढ़ती हुई महारत कल्पना, रचनात्मकता में सुधार, और व्यापक रूप से बेहतर अवधारणात्मक कौशल। वास्तव में, शिक्षा प्रणाली ने छात्रों पर दबाव बनाया है जिसमें बिस्वरूप रॉय चौधरी द्वारा स्मृति, तकनीक, कुछ बचाव प्रदान कर सकती है।

 

पुस्तक का कुछ अंश

स्मृति-एक परिचय

जरा सोचिये क्या होगा यदि हम अचानक अपनी स्मृति खो बैठें? जरा ठहरिये और दो मिनट के लिए इसके बारे में सोचिये। द्वितीय विश्वयुद्ध में कई सिपाही बमों के धमाकों से अपनी स्मृति खो बैठे थे। जो लोग डूबने ही वाले थे और बचा लिये गये थे, उन्होंने बताया था कि एक सेकण्ड में उनका सम्पूर्ण जीवन पूर्ण विस्तार के साथ उनके मस्तिष्क में उमड़ पड़ा था। यह बतलाता है कि कैसे स्मृति अनुभवों को भली-भांति संग्रहित करती है।
हमारा मस्तिष्क एक ऐसा विशाल पुस्तकालय जैसा है, जिसमें लाखों पुस्तकें तो हों परंतु कोई पुस्तक सूची न हो, पुस्तकों का कोई सुव्यवस्थित क्रम न हो। यदि एक ऐसे पुस्तकालय से आपको अपनी पसन्द की एक पुस्तक को ढूंढ़ना हो, तो क्या तरीका सम्भव होगा? हां, पुस्तक सूची रहित पुस्तकालय से एक पुस्तक को ढूंढ़ने का एक तरीका यह है कि एक एक करके सभी पुस्तकों को देखा जाये। यह जानने के लिए कि अमुक पुस्तक वहां विद्यमान है या नहीं। ऐसे तरीके से आप उस पुस्तक को शायद ढूंढ़ निकालें या फिर न निकाल पाएं। यदि आप उसे ढूंढ़ निकालने में असफल हो जाते हैं तो आप यही कहेंगे कि वह पुस्तक पुस्तकालय में विद्यमान नहीं हैं लेकिन सच्चाई यह है कि आप उस पुस्तक को ढूंढ़ निकालने में असफल रहे हैं।
ऐसी ही बात हमारे मस्तिष्क के मामले में हैं। वह प्रत्येक वस्तु जिसे हमने देखा, सुना या अनुभव किया है हमारे मस्तिष्क के किसी-न-किसी भाग में स्थायी रूप से सुरक्षित रहती है। लेकिन कभी-कभी हम उस सामग्री या विचार को ढूंढ निकालने में असमर्थ रहते हैं या वे कहां स्थित है यह नहीं बता पाते और तब हम यह कहते हैं कि हम भूल गए हैं। उदाहरणार्थ, आज आपका परिचय किसी गौरव से कराया गया। कुछ समय बाद आप उससे पुनः किसी बाजार या पार्क में मिलते हैं। यह सम्भव है कि आप उसके नाम को याद न कर पायें या आप कहें, मुझे खेद है कि मैं आपको जानता हूं पर आपका नाम भूल गया हूं। उस समय यदि वह व्यक्ति आपको चार विकल्प देता है कि उसका नाम रवि, मोहन, गौरव या कृष्ण में से कोई एक है तो आप तुरंत उसका नाम याद कर लेंगे और कहेंगे “हां, हां, तुम्हारा नाम गौरव है।”
इससे प्रतीत होता है कि आप उसका नाम भूले नहीं हैं लेकिन केवल समस्या यह थी कि आप अपनी स्मृति में उसका नाम ढूंढ नहीं पाये थे। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि आप कोई मानसिक सूची नहीं रखते।
जब कभी हमें कोई चीज याद करनी होती है तो हम अपने मस्तिष्क रूपी पुस्तकालय में इधर-उधर ढूंढ़ना आरंभ कर देते हैं, और जिस क्षण हम उसे ढूंढ़ निकालने में असफल हो जाते हैं, तभी यह मान बैठते हैं कि हम उस विशेष चीज को भूल गये हैं।
मित्रों, इसका अर्थ यह हुआ कि तुरंत संदर्भ के लिए हमें एक मानसिक सूची की आवश्यकता है जिससे हमारा स्मरण कर पाना और याद रखना कुशल और प्रभावी बन सके।

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इस पुस्तक को कैसे उपयोग में लायें?

यह पुस्तक सीखने में सहायक है। यह आपको स्मृति के ऐसे सरल तरीके से परिचय करायेगी, जो कि वस्तुओं को अधिक तेजी से याद करने और अधिक लम्बे समय तक याद रखने में उपयोग में लाया जा सकता है।
यह पुस्तक वैज्ञानिक ढंग से बनायी गई है। इसमें स्मृति की आधुनिक विधियां शामिल हैं। इनसे आपको अपने पाठ्यक्रम को सीखने में मदद मिलेगी। इस पुस्तक का अधिकाधिक लाभ उठाने के लिए कृपया निम्नांकित नियमों का पालन कीजिये।
किसी भी अध्याय को बिना पढ़े न छोड़िये।
आपको सभी अध्यायों को पढ़ना है। एक दिन का अंतर देकर फिर प्रत्येक अध्याय को पढ़ना है। अंतर के दिन आपको पिछले अध्याय का दोहराव करना है।
किन्हीं दो अध्यायों के बीच दो दिनों से अधिक का अंतर नहीं देना चाहिए।
किसी भी अध्याय को न छोड़ें।
इस व्यवस्था में विश्वास रखिये।

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आयु

जैसे-जैसे हम आयु में बढ़ते जाते हैं, क्या हमें अपनी कुशलता में कमी हो जाने को स्वीकार करना चाहिए? यह प्रश्न अक्सर वे लोग पूछते हैं जो 50वीं वर्षगांठ मना चुके होते हैं। युवा व्यक्ति अपने मस्तिष्क के कोषों के विकास के बारे में अधिक चिंतित नहीं होते और वे इस तथ्य को महसूस नहीं कर सकते कि उनकी स्वयं की स्मृति सदैव आज जैसी नहीं रहेगी।
याद कर पाना आंशिक रूप से शारीरिक और आंशिक रूप से मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, और यह दोहरी व्यवस्था उन असंख्य विविधताओं के लिए उत्तरदायी होती है जिनमें हमारी स्मृति कार्य करती है।
मनोवैज्ञानिक अर्थ में स्मृति उन मार्गों पर निर्भर करती है जो हमारे मस्तिष्क के कोषों को जोड़ते हैं। इन मार्गों की संख्या और सशक्तता इनकी क्रियाशीलता को निर्धारित करती हैं। जैसे हम बड़े होते जाते हैं, मस्तिष्क के ये कोष कमजोर होते जाते हैं, और एक ऐसा समय आता है जब सीखने की प्रक्रिया को तुलना में भूलने की प्रक्रिया अधिक तेजी से कार्य करने लगती है।
जीवनकाल के अंत में जबकि ऐसा एक अनचाहा परिवर्तन अवश्यमेव आता है तब भी हम इसके घटित होने में देरी ला सकते हैं। यह कोई संयोग मात्र नहीं है कि कई व्यक्ति जो अन्य व्यक्तियों की तुलना में अपने मस्तिष्क को अधिक काम में लाते हैं, वे वृद्धावस्था तक भी अपनी स्मृति और उत्पादन शक्ति को कायम रख सकते हैं।
बर्नार्ड शॉ, गोथे, टॉमस एडीसन के बारे में सोचिये। यह सोचना असंगत होगा कि अपने मस्तिष्क के कोषों की उचित देखभाल करने के लिए हमें उन्हें कभी कभी आराम देना चाहिए। आप अपने मस्तिष्क को उसी प्रकार प्रशिक्षित कर सकते हैं जैसे कि आप अपनी मांसपेशियों को प्रशिक्षित कर सकते हैं और आप साधारण परीक्षाओं में इसे अपने संतोष के लिए सिद्ध कर सकते हैं। जब आप इस पुस्तक में दिये गए अभ्यासों को करेंगे। आप यह देखेंगे कि वे प्रयोग जो पहली बार प्रयास द्वारा किये जाते हैं, आसान बन जाते हैं। जब उनकी पुनरावृत्ति की जाती है और कुछ समय बाद तो आप यह समझ भी नहीं पाते कि इनको करने में प्रयास की आवश्यकता पड़ी ही क्यों थी।
यदि हम यह अनुभव कर लें कि एक मांसपेशी की भांति स्मृति विकसित की जा सकती है तो हमें इस तथ्य को भी स्वीकार करना होगा कि मांसपेशी की भांति ही इसकी कुशलता भी कम हो सकती है यदि इसे भली-भांति काम में न लाया जाये।
हम सभी इस बात को जानते हैं कि एक बीमारी जिसके कारण हमें बिस्तर पर कई सप्ताह पड़े रहना पड़ता है, हमारा चलना बहुत कठिन कर देती है। पैरों की मांस-पेशियां चलना भूल जाती हैं, और हमको चलनर दोबारा सीखना पड़ता है - बहुत कुछ उसी भांति जैसे कि एक नन्हा बालक पहली बार चलने की कुशलता को सीखता है।
हमें क्यों आश्चर्य होना चाहिए जबकि ऐसी ही बात हमारी स्मृति के साथ हो जाती है वह भी अपनी विश्वसनीयता उस अवस्था में खो देती हैं जब हम इसका प्रयोग नहीं करते? एक औसत प्रौढ़ व्यक्ति सदैव अपनी स्मृति पर विश्वास करने में डरता है। कई प्रकार की पुस्तिकाएं, कलेंडर, मुलाकात की डायरियां, टेलीफोन सूची, यादाश्त के पर्चे, डेस्क नोट्स आदि होते हैं - ये सभी हमारी स्मृति के बोझ को कम करने के लिए होते हैं और इसलिए ये सब गलत दिशा में कार्य करते हैं।
थोर्नडाइक नामक सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ने स्मृति और आयु से संबंधित परीक्षाओं पर अपना बहुत सारा समय लगाया था। उसने यह पाया कि हमारे जीवन के अंतिम भाग को छोड़कर, हमारी बढ़ती हुई आयु में कमी या पतन होने का कोई प्राकृतिक कारण नहीं होता। यदि उस समय से पहले हमारी स्मृति कम हो जाती है, तो हमें स्वयं को ही उसका दोषी मानना चाहिए। हमें यह स्वीकारना चाहिए कि पाठशाला छोड़ने के बाद हम प्रायः किसी भी चीज को सीखने की चिंता नहीं करते। वास्तविक अर्थ में सीखना केवल पढ़ना नहीं है जो केवल मात्र निष्क्रिय और स्वीकार करने जैसा होता है।
व्यावहारिक प्रौढ़ जीवन में, अभिनय और उस जैसे व्यवसायों को छोड़कर, सीखने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं होता। इससे उत्तम स्मृति की तकनीकों का ह्रास होता है जो निरंतर व्यवहार से संबंधित होती हैं। जैसा कि मैंने ऊपर बताया है हम अपनी स्मृति को बोझिल बनाने से डरते हैं और हममें से कई यह सोचते है कि नामों, पतों, टेलीफोन नम्बरों और मुलाकातों को याद रखना समय को नष्ट करना है, उन्हें तो बहुत सुगमता पूर्वक नोट बुकों या डायरियों में लिखा जा सकता है।
रोज लोग पैदल घूमते हैं जबकि उनके लिए कार या बस का उपयोग करना बहुत आसान हो सकता है। वे ऐसा इसलिये करते हैं क्योंकि घूमना स्वास्थ्यवर्धक है और वे अपनी मांसपेशियों की शक्ति को बढ़ाना या कम से कम उतना तो बनाये रखना ही चाहते हैं लेकिन दूसरी ओर छोटी-छोटी चीज को लिखकर वे अपनी स्मृति की शक्ति को कमजोर बनाते हैं। यदि वे लम्बे समय के बाद किसी चीज को याद करने का प्रयास करते हैं, तो वे उसे भूल सकते हैं। परिणामस्वरूप वे अपनी स्मृति में और अधिक अविश्वास करने लगते हैं। अंत में वे अपनी स्मृति को पूर्णतया असफल पाकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। वे यह महसूस नहीं करते कि वे स्वयं ही तो इसके लिए उत्तरदायी रहे हैं। मनोवैज्ञानिक कारणों के अतिरिक्त, यह सब इस तथ्य से पता चलता है कि लोग पिछले माह या पिछले सप्ताह घटित महत्त्वपूर्ण घटनाओं को भूल जाते हैं जबकि वे पिछले 30 या 40 वर्षों पूर्व घटित घटनाओं को - यहां तक कि अमहत्त्वपूर्ण घटनाओं को भी, पूर्णतया याद कर सकते हैं।

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याद करने की प्रक्रिया

वस्तुओं में रुचि का हमारी स्मृति के लिए बहुत अधिक महत्व होता है लेकिन प्राप्त करने के साधन भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। हमें आंख का मस्तिष्क रखने वालों, कान का मस्तिष्क रखने वालों तथा मांसपेशी की धड़कन का मस्तिष्क रखने वालों के बीच अंतर करना होगा।
हम आंख के मस्तिष्क वाला व्यक्ति उसे कहेंगे यदि वह आंखों से देखी गई चीजों को सबसे अच्छी तरह से याद रखता हैं
हम कान के मस्तिष्क वाला व्यक्ति उसे कहेंगे यदि वह कानों के माध्यम से सुनकर चीजों को सबसे अच्छी तरह से याद रखता है।
हम मांसपेशी की हरकत का मस्तिष्क रखने वाला उसे कहेंगे जो एक विशेष कार्य को स्वयं करके सबसे अच्छी तरह से सीखता है जैसे लिखकर, कोई वाद्ययंत्र बजाकर या शरीर पर कोई गति करके जैसे पिन चुभाकर या किसी कीटाणु के डंक से स्वयं को कटवा कर।
यह स्पष्ट ही है कि आंख के मस्तिष्क वाला व्यक्ति सबसे अधिक लाभ प्राप्त करता है क्योंकि यह पुस्तकों में छपे शब्दों को पढ़ सकता है और उसकी स्मृति छपे हुए शब्दों, वाक्यों और पैराग्राफों को धारण किये रखती है।
यदि वह एक सिनेमा जाता है तो वह पर्दे पर होने वाले कार्यों और घटनाओं को देखकर उन्हें याद रख सकता है, जबकि बोला हुआ शब्द धूमिल हो जाता है या हल्का होकर समाप्त हो जाता है।
उसकी तुलना में कान के मस्तिष्क वाला व्यक्ति पुस्तकों की अपेक्षा व्याख्यान से अधिक लाभ उठाता है, चूंकि उसकी स्मृति कानों द्वारा पकड़ी गई प्रत्येक ध्वनि को धारण करती है। वह एक वार्तालाप को वैसे ही मौखिक रूप से दोहरा सकता है लेकिन उसे वार्तालाप करने वाले व्यक्ति की आकृति का वर्णन करने में कठिनाई हो सकती है। यदि वह सिनेमा (फिल्म) देखता है तो शब्दों और संगीत की ध्वनि उसके साथ ठहरेगी लेकिन क्रियाओं को वह शीघ्र ही भूल जायेगा।
मांसपेशी के मस्तिष्क होने से तात्पर्य है शेष इंद्रियों जैसे स्पर्श, सूंघना और चखने के द्वारा स्मृति बनाये रखना। वे लोग हममें से अधिकांश की तुलना में देखने और भाषण सुनने में बहुत पीछे रहते हैं यद्यपि इसके कई अपवाद भी होते हैं। एक दृष्टिहीन व्यक्ति, दृष्टि से वंचित होने पर प्रायः अन्य सभी इंद्रियों को एक उल्लेखनीय सीमा तक विकसित कर लेता है। यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह जटिल परीक्षणों के बिना ही बतला देता है कि प्रत्येक इंद्री का विकास किया जा सकता है और उसे सिद्ध किया जा सकता है।
यह समझना आवश्यक है कि कोई भी मानव शत प्रतिशत न तो आंख के मस्तिष्क वाला या कान के मस्तिष्क वाला या मांसपेशी के मस्तिष्क वाला होता है। प्रायः हम इन सभी गुणों को रखते हैं, और प्रश्न तो केवल मात्र यही होता है कि एक व्यक्ति में इनमें से किस की प्रधानता है। हम जानते हैं कि लगभग 60 से 80 प्रतिशत व्यक्ति आंख के मस्तिष्क वाले होते हैं, जबकि शेष व्यक्ति अन्य दो श्रेणियों में होते हैं।
उन लोगों में से जो प्रमुखतया कान वाले मस्तिष्क के होते हैं, संगीतज्ञ सब से ज्यादा होते हैं, विशेषकर वे लोग जो एक रचना को जिसे उन्होंने सुना है, दोहरा सकते हैं।
यह रोचक जानकारी है कि पशुओं में भी ये तीन श्रेणियां पाई जाती है। उदाहरणार्थ, चील का मस्तिष्क पूर्णतया उसकी शानदार दृष्टि पर निर्भर होता है, जो कि बहुत ऊंचाई से भी अपने शिकार को देख लेती है। हिरण का मस्तिष्क प्रमुखतया उसके कानों पर आधारित होता है जो किसी भी चीज की तनिक सी आहट को पकड़ लेता है।, जबकि कुत्ते की सूंघने की इंद्री बहुत विकसित होती है जो उसकी देखने और सुनने की शक्तियों से भी बढ़कर होती है।
यद्यपि किसी सामग्री को सीखने और याद करने का हमारा तरीका बहुत सीमा तक हमारी श्रेणी पर निर्भर करता है, तथापि यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वे किस श्रेणी के हैं। यह तो पूर्णतया प्राकृतिक ही है कि एक व्यक्ति जो प्रमुखतया आंख के मस्तिष्क वाला है, वह शक्लों को देखकर अधिकाधिक सीखने का प्रयास करता है और एक विद्यार्थी जो प्रमुखतया कान के मस्तिष्क वाला है। वह अपने समय का अधिक उत्तम उपाय तब करता है जब वह अधिक से अधिक संभव हो सकने वाले व्याख्यानों को सुनता है और अपने अध्यापक की आवाज को सुनता है। जैसा कि मैं ऊपर बतला चुका हूं कि कोई भी व्यक्ति 100 प्रतिशत आंख या कान के मस्तिष्क वाला नहीं होता, अतः जो विद्यार्थी पुस्तकों से लिखता है और जोर से पढ़ता है उसको अधिकाधिक लाभ मिलता है यदि वह ऐसा करता है तो उसका कान उसकी आंख की सहायता के लिए आता है और वह अपने मस्तिष्क तक पहुंचने की एक के बजाय दो मार्ग खोल देता है।
मांसपेशी वाला व्यक्ति तभी सर्वोत्तम बनता है जबकि वह यथासंभव अधिक से अधिक लिख लेता है। यदि वह आंख और मांसपेशी वाले मस्तिष्क का व्यक्ति है तो वह अपनी पुस्तकों से नकल कर सकता है। यदि वह कान और मांसपेशी वाले मस्तिष्क वाला व्यक्ति है तो उसे भाषण सुनते समय नोट्स लेने चाहिए। जो भी हो एक व्यक्ति के लिए यह जानना लाभप्रद रहता है कि वह किस श्रेणी का है और उसे उसके अनुसार अपने सीखने और याद करने को संचालित करना चाहिए।
जैसा कि मैं ऊपर बतला चुका हूं, जहां तक ग्रहण का संबंध है, ऐसे अधिक लोग नहीं है जो अपनी श्रेणियों को जानते हों। एक संगीतज्ञ से यह पूछिये कि वह कैसे एक रचना को याद करता है, अधिकतर मामलों में वह कहेगा कि, ‘मुझे मालूम नहीं है।’ लेकिन यदि आप जोर दें कि वह बतलाये कि उसके मस्तिष्क में क्या चल रहा है जबकि वह वाद्ययंत्र को बजा रहा है, तो आपको विभिन्न प्रकार के उत्तर सुनने को मिल सकते हैं।
एक पियानोवादक यह कहेगा कि पियानो बजाते समय वह अपनी मानसिक आंख पर स्कोर को देख रहा है या उनकी कल्पना कर रहा है। वह आंख के मस्तिष्क वाला व्यक्ति है और वह बिना कठिनाई के आपको बता सकेगा कि कब पृष्ठ पलटा जाये। इसकी तुलना में कान के मस्तिष्क वाला संगीतज्ञ अपने कान के अनुसार चलता है और यह संभव है कि उसने कभी स्कोर को देखा न हो या वह उसे पढ़ न पाये यदि वह उसके पास है, क्योंकि वह संगीत की मात्राएँ नहीं रखता। मांसपेशी के मस्तिष्क वाला व्यक्ति उस रचना को बजा सकेगा यद्यपि पियानो चुप हो। वह न तो स्कोर और न धुन पर निर्भर करता है। जो कुछ वह सबसे उत्तम ढंग से याद रखता है वह है उसके हाथों का चलना। पियानोवादक का यंत्रवत भाग कार्य है।
मुझसे यह प्रायः पूछा गया है कि हम कैसे अपनी किस्म या वर्ग को जान सकते हैं? यदि हम इसे नहीं जानते। इसके दो तरीके हैं जिन्हें मैं आपको सुना सकता हूं, उनमें से एक उत्तम तरह से कार्य करता है यदि आप स्वयं परीक्षण करना चाहते हैं। दूसरा तब अच्छी तरह से कार्य करता है जब आप किसी अन्य का जैसे अपने मित्र का परीक्षण करना चाहते हैं
यदि आप स्वयं की परीक्षा करना चाहते हैं तो समान लम्बाई के दो अनुच्छेद चुनें - प्रत्येक आधे पृष्ठ का हो। पहले अनुच्छेद को चुपचाप पढ़ें। कितना समय उसे पढ़ने में लगता है उसे चैक करें । उसके बाद एक कागज पर वह लिखें जो कुछ आपको याद रह गया है।
ऐसा कर चुकने के बाद किसी अन्य व्यक्ति को कहें कि यह आपको दूसरा पैराग्राफ सुनाये। उसको पढ़ने में उतना ही समय लगना चाहिए जितना समय आपको पहला अनुच्छेद पढ़ने में लगा था। जब आपका मित्र उसको पढ़ चुके तो एक कागज पर लिखें जो कुछ आपको याद रह गया है। उसके बाद उन दोनों कागजों की तुलना करें और यह देखें कि क्या आप स्वयं द्वारा पढ़े गए या सुने गए अनुच्छेद का अधिक भाग याद कर पायें।
इस प्रयोग को कम-से-कम तीन बार दोहराना चाहिए। प्रत्येक नये प्रयोग में सामग्री की लम्बाई में परिवर्तन होना चाहिए। यदि आपने पहली बार आधा पृष्ठ लिया था तो दूसरी बार एक पूरा पृष्ठ लें और तीसरी बार दो पृष्ठ लें। प्रत्येक बार पढ़ने और सुनने की सामग्री समान लम्बाई की होनी चाहिए।
इसका परिणाम आपके लिये आसान होगा। यदि आप अपने द्वारा पढ़े गए अनुच्छेदों का अधिक भाग याद रख पाते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप प्रमुखतया आंख के मस्तिष्क वाले हैं। यदि आप सुने गए अनुच्छेदों का अधिक भाग याद रख पाते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप कान के मस्तिष्क वाले हैं।
यदि आप यह परीक्षा करना चाहते है कि क्या आप मांसपेशी के मस्तिष्क वाले हैं तो एक अतिरिक्त परीक्षण के लिए अनुच्छेदों की नकल करें।
किसी व्यक्ति का परीक्षण करना तुलनात्मक अधिक आसान होता है विशेषकर जबकि वह नहीं जानता हो कि परीक्षण का क्या अर्थ है। मैं आपको दस शब्दों की सूची दे रहा हूं जिन्हें आप उसे पढ़कर सुना सकते हैं। उसे कहें कि वह एक कागज पर पहले उस शब्द (यदि वह संज्ञा या क्रिया हैं तो अच्छा होगा), को लिखे जो उसके मस्तिष्क में आता हो जब वह आपके बोलने पर एक शब्द को सुनता हो। यहां दस शब्द हैं -
Wall, cake, book, noise, file, river, letter, bind, flag सिंह और hat
इन शब्दों को देखिये जिन्हें आपके प्रतियोगी ने लिखा है। सामान्यतया दो संभावनाएं हैं -
(a) उसने इस प्रकार के शब्द लिखे होंगे-
Picture, paper, ceiling
Flour, sugar, icing
Page, illustration, test
Propelfer, music, serene
Paper, drawer, box
Water, boat, fishing
Envelope, stamp, typewriter
Feater, wings, egg
Cloth, mast, signal
Ribbon, straw, felt.
(b) उसने शब्दों को इस प्रकार लिखा होगा-
Hall, ball, value, valt
Make, bake
Look, book, bag
Pose, choice, moist
Pile, mile, fine, fire
Liver, ginger
Letter, ladder, ledger, lecture
Flirt, Hurt, Birth
Bag, drag
Bat, chat, flat
ये सभी शब्द केवल उदाहरण हैं और आपके प्रतियोगी द्वारा लिखे गए शब्दों की विविधता असीमित हो सकती है।
लेकिन उसका जैसा भी प्रत्युत्तर रहा हो, उसके उत्तर के सर्वेक्षण से यह पता चलेगा कि क्या अधिकतर शब्द पहले समूह के हैं या वे दूसरे समूह के हैं।
आप देखेंगे कि प्रथम समूह में मेरे द्वारा दिये गये शब्द ऐसे हैं जो कल्पना रखने वाला व्यक्ति देख सकता है जैसे- wall, cake, book, आदि। द्वितीय समूह में दिए गए शब्द ऐसे हैं जो इन शब्दों की ध्वनि के समान हैं जिन्हें आपने उसे बोला था। अतः यदि आप अपने प्रतियोगी के कागज को चैक करें तो आपको उसके द्वारा लिखे गए और उसे दिए गए शब्दों की तुलना करनी चाहिए। यदि आप प्रतियोगी के कागजों को चैक करें तो आपको उसके द्वारा लिखे गए और आप द्वारा उसे बोले गए शब्दों की तुलना करनी चाहिए। यदि आप पायें कि अधिकतर शब्द पहले समूह के हैं तो आपका प्रतियोगी प्रमुखतया आंख के मस्तिष्क वाला है। यदि आप पायें कि अधिकतर शब्द दूसरे वर्ग के हैं तो आपका प्रतियोगी प्रमुखतया कान के मस्तिष्क वाला है। इन दोनों समूहों के शब्दों को चैक करके आप उसके आंख के मस्तिष्क और कान के मस्तिष्क का अनुमानित प्रतिशत भी जान सकते हैं।
आप यह भी देख सकते हैं कि आपके प्रतियोगी के लिए परीक्षण के प्रयोजन को पहले से न जानना क्यों लाभप्रद रहा है। यदि वह उसे पहले से जानता होता तो वह उन शब्दों के समूह संबंध के बारे में जागरूक हो गया होता। वह यह देखने का ध्यान रखता है कि क्या वह देखने वाले शब्द समूहों को दे रहा है या सुनने वाले शब्द समूहों, और ऐसा ध्यान रखना परीक्षण के उद्देश्य के लिए हानिकर है।

5
उत्तम स्मृति के लिए दस सिद्धांत

भलीभांति याद रखने के लिये एवं प्रभावपूर्ण ढंग से स्मरण करने के लिए हमें निम्नांकित दस सिद्धांतों का ध्यानपूर्वक पालन करना चाहिए।
1. साहचर्य
हम यह जानते हैं कि एक पंक्ति क्या होती है। यदि हम चार समान पंक्तियों को एक से एक कोने को मिलायें तो हम वर्ग बना लेते हैं। यदि छः वर्गों को साथ में मिलायें तो एक क्यूब (Cube) बन जाता है। यह कितना सरल है। लेकिन बिना यह जाने कि एक पंक्ति क्या है और एक वर्ग क्या है कोई भी यह नहीं जान सकता कि एक क्यूब क्या है।
जो बात ज्यामिति (Geometry) में सही है वही जीवन के प्रत्येक पक्ष में सही है। हम प्रत्येक नयी चीज को सीखते और याद रखते हैं केवल उसके पहले से जानी हुई चीज के साथ जोड़कर ज्ञानार्जन की कोई अन्य विधि नहीं है।
यदि आप संस्कृत शब्दों के सीखने के बारे में सोचें तो आप तुरंत इस कथन की सत्यता को देख पायेंगे। यह सीखने के लिए पानी संस्कृत में ‘जल’ होता है, तो हमें पानी और जल के मध्य एक संबंध बनाना होगा और यदि यह संबंध मजबूत होगा तभी आवश्यकता पड़ने पर हम उस संस्कृत शब्द को बतला पायेंगे। एक बार हमारे मस्तिष्क में पानी और जल के बीच का मार्ग दृढ़तापूर्वक स्थापित हो जाए, तो इनमें से किसी भी शब्द को याद कर सकते हैं।
मैं भली-भांति जानता हूं कि अब तक आपने ऐसा संबंध (साहचर्य) नहीं बनाया है। कई बार हम ऐसे साहचर्य बनाने के बारे में जागृत नहीं होते। हम ऐसा अज्ञात रूप से करते हैं। जैसे एक छोटा बालक daddy शब्द को अपने पिता से जोड़ लेता है। इस संबंध या साहचर्य को जाने बिना। अगले अध्याय में हम देखेंगे कि जाग्रत रूप से ऐसे साहचर्य बनाना हितकर रहता है जो हमारी व्यक्तिगत स्मृति के प्रकार और उसकी आवश्यकता के अनुकूल हों।
2. स्मृति में विश्वास
आपको अपनी स्मृति में विश्वास रखना चाहिए। कुछ करने से पूर्व आपको अपनी स्मृति में विश्वास रखना चाहिए। आपकी स्मृति में निम्नांकित शब्द दृढ़तापूर्वक स्थापित हो जाना चाहिए।
“मेरा मस्तिष्क इस संसार के सर्वोत्तम कम्प्यूटर से भी अधिक अच्छा है।”
यदि आप यह सोचते हैं कि आप किसी चीज को भलीभांति याद नहीं रख पायेंगे तो आप उसे भली-भांति याद नहीं रख पायेंगे। आपने 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को यह कहते हुए सुना होगा। क्षमा कीजिये, मेरी स्मरण शक्ति कमजोर है। या किसी को यह कहते हुए सुना होगा कि मुझे आपका नाम याद नहीं आ रहा है। या मेरी स्मृति खराब है।
सुबह उठने से पूर्व और उसके बाद हमें स्वयं से कहना चाहिए। “मैं अपनी स्मृति का विश्वास करता हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि यह एक कम्प्यूटर की भांति ही कार्य कर सकती है।”
अपनी स्मृति में अपने विश्वास को सुधारने के उत्तम तरीकों में से एक है “स्वयं सुझाव” या स्वयं बार-बार दोहराना कि “मैं अधिक अच्छी तरह से याद रख सकता हूं।”
यह सोचिये कि यदि आप प्रत्येक से यह कहते हैं कि “मेरी स्मृति खराब है” तो फिर आप यह कैसे आशा कर सकते हैं कि आपकी स्मृति आपको उत्तम सेवा दे सकती है। अपनी स्मृति में आत्मविश्वास रखना इतना महत्त्वपूर्ण है कि मैं चाहता हूं कि आप इस वाक्य को निम्न रिक्त स्थान में लिखें -
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3. ध्यान केंद्रित करना
ध्यान के केन्द्रीकरण का अर्थ है एक समय में एक ही वस्तु पर दृढ़ता से विचार करना। जो कुछ आप देख या सुन रहे हैं उसके अतिरिक्त अन्य प्रत्येक चीज को अपने मस्तिष्क से मिटा या हटा दीजिये। अपने विचारों को भटकने न दीजिये। अन्त में यह देखिये कि आपकी स्मृति आपका मानसिक बैंक हैं अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो आप ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जिस प्रकार हम जितना अधिक एक गधे को खींचते हैं उतना ही अधिक वह अवरोध करता है। ऐसा ही ध्यान केंद्रीकरण के बारे में है, अर्थात् जितना अधिक आप बिखरे विचारों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं उतना ही आपके विचार इधर-उधर भागते हैं। एक गधे को आगे चलाने की युक्ति यह है कि उसके आगे एक सब्जी लटकाएं और वह आपके पीछे चलेगा जहां कहीं भी आप उसे ले जाना चाहेंगे। अतः एक विशेष विषय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए हमें उस विषय में रुचि का निर्माण करना चाहिए।
4. इंद्रियों की शक्तियां
जो कुछ आप अपनी स्मृति में जमा करना और बाद में निकालना चाहते हैं उसे आपको स्पष्टतया देखना और सुनना चाहिए। याद की जाने वाली वस्तु पर अपना ध्यान केंद्रित कीजिये और उसे अपनी कल्पना में देखिये, सुनिये और संभवतः उसका स्वाद लीजिये या उसे अनुभव कीजिये। जब आप अपनी इंद्रियों को इसमें शामिल करते हैं तो उनके प्रभाव सदैव पैने होते हैं और सुगमता पूर्वक भुलाये नहीं जाते। किसी चीज को याद करते या सीखते समय निम्नांकित सभी छः इंद्रियों को उसमें शामिल करने का प्रयास कीजिये-
सुनने की इंद्रिय (Sense of hearing)
देखने की इंद्रिय (Sense of vision)
सूंघने की इंद्रिय (Sense of smell)
चखने की इंद्रिय (Sense of taste)
स्पर्श की इंद्रिय (Sense of touch)
गति संवदन की इंद्रिय (Sense of Kinesthesia)
अर्थात् शारीरिक स्थिति और गति के प्रति जागरूक होना।
5. रंग
हम सब स्वप्न देखते हैं और कभी-कभी दिन में स्वप्न देखते हैं। कभी-कभी हम अपने स्वप्नों की मित्रों के साथ चर्चा करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि क्या आपका स्वप्न रंगीन था या काला-सफेद।
यह विश्लेषण करने का प्रयास कीजिए कि क्या आपका स्वप्न रंगीन था या काला और सफेद। पुनः यह ध्यानपूर्वक देखने का प्रयास कीजिये कि आपका स्वप्न किन रंगों का था, तत्पश्चात् यह विश्लेषण करने का प्रयास कीजिये कि क्या वह स्वप्न बहुत स्पष्ट था या धुंधला था। यदि वह धुंधला था तो पुनः अपनी कल्पना के पर्दे पर उसे जितना संभव हो स्पष्टता से देखने का प्रयास कीजिये। जहां तक संभव हो, अपने चित्र और चिंतन को अधिक स्मरणीय बनाने के लिए रंगों की विविधता का प्रयोग कीजिये।
6. बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना
हमारे मस्तिष्क की यह विशेषता है कि वह बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातों को अधिक शीघ्रता से याद रख लेता है और उन्हें हमारे जाग्रत मस्तिष्क में अधिक लम्बे समय तक स्थिर रखता है।
तो फिर क्यों न इस विशेषता को सकारात्मक भाव (Positive Sense) में काम में लें। क्यों न मस्तिष्क की इस सुंदरता को हम चीजों को अधिक लम्बे समय तक याद रखने के लिए काम में लें?
अतः जहां तक संभव हो मानसिक चित्र को गहरे रूप में देखने का प्रयास कीजिये।
यह कल्पना कीजिए कि एक मोटे आदमी को हम कैसे भूल पायेंगे यदि हम उसके पेट की एक बड़े बर्तन और चेहरे की फुटबॉल के रूप में मस्तिष्क में छवि बनायें।
7. चित्र
जो कुछ आप याद रखना चाहते हैं उसकी एक मानसिक छवि (Mental Picture) बनाने का प्रयास कीजिये। विचार, तारीख, सिद्धांत या किसी भी चीज की एक मानसिक छवि बनाइये क्योंकि मानसिक छवि बनाने से याद करने की प्रक्रिया तेज होती है।

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Q. डायनामिक मेमोरी मेथड्स / Dynamic Memory Methods किताब के लेखक कौन है?
Answer.   डॉ बिश्वरूप राय चौधरी / Dr. Biswaroop Roy Chowdhury  
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