देवयुद्ध: महासंग्राम गाथा  / Devayuddha : Mahasangram Gatha PDF Download Free (Ring of Atlantis Book 7) Hindi Books by Shivendra Suryavanshi

पुस्तक का विवरण (Description of Book of देवयुद्ध: महासंग्राम गाथा / Devayuddha : Mahasangram Gatha PDF Download) :-

नाम 📖देवयुद्ध: महासंग्राम गाथा / Devayuddha : Mahasangram Gatha PDF Download
लेखक 🖊️   शिवेन्द्र सूर्यवंशी / Shivendra Suryavanshi  
आकार 9 MB
कुल पृष्ठ354
भाषाHindi
श्रेणी,
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जब ब्रह्मदेव ने महादेव से पृथ्वी का भविष्य जानने की इच्छा व्यक्त की, तो महादेव ने उन्हें क्षीरसागर में स्थित रुद्रासन के पास भेज दिया। ब्रह्मदेव जब रुद्रासन को ढूंढते हुए क्षीरसागर में पहुंचे, तो वहां उन्हें सप्तकणों से निर्मित सप्तपुस्तकें दिखाई दीं। उन सप्तपुस्तकों में अलग-अलग प्रकार से भविष्य को देखने की शक्तियां थीं। ब्रह्मदेव ने उन सप्तशक्तियों की सहायता से, पृथ्वी का भविष्य देखने की कामना व्यक्त की। परंतु पृथ्वी का भविष्य देखकर ब्रह्मदेव अत्यंत चिन्तित हो गये, क्योंकि पृथ्वी के भविष्य में एक देवयुद्ध छिपा था, जिसमें पृथ्वी का महाविनाश संलिप्त था।

ब्रह्मदेव ने पृथ्वी को महाविनाश से बचाने के लिये, उन सभी सप्तपुस्तकों को पृथ्वी के 7 सबसे सुरक्षित स्थानों पर छिपा दिया। ब्रह्मदेव को विश्वास था कि जब भविष्य में ब्रह्मांड रक्षक इन पुस्तकों को प्राप्त कर लेंगे, तो देवयुद्ध से होने वाले महाविनाश को टाला जा सकेगा।

इसके बाद शुरु हुई एक समयचक्र की एक ऐसी कथा श्रृंखला जिसमें देवता तो क्या ब्रह्मांड के कई ग्रह भी उलझ गये -
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1) कौन थी भार्गवी, जिसका जन्म गुलाब की पंखुड़ी से हुआ था?
2) क्या हुआ जब चंद्रवीर ने युद्ध की विभीषिका देखकर देवी आदिशक्ति के प्रलयंकारी त्रिशूल को फेंक दिया?
3) क्या हुआ जब देवराज इंद्र और सूर्य का टकराव वृत्रासुर नामक असुर से हुआ?
4) कैसा था वह त्रिकालदर्शी मंदिर, जिसका निर्माण ‘समय’ को रोक कर किया गया था?
5) कौन थी वह सतरंगी तितली, जो वीनस को अपने मायाजाल में उलझा गई थी?
6) क्या हुआ जब कैस्पर की परछाई ने अंडरवर्ल्ड में कैस्पर पर ही हमला कर दिया?
7) सूर्यदेव ने महाशक्तिशाली पंचशूल का निर्माण किस प्रकार किया?
8) नागदंत कथा का क्या रहस्य था?
9) पीपल के 8 पत्तों से बनी शुभाकृति क्या थी, जो नीलाभ का मागदर्शन कर रही थी?
10) क्या सुयश व शैफाली ब्रह्मांड के सबसे विशाल जीवों को समाप्त कर पाये?
11) कौन था वह मायावी सुनहरा मेढक, जो हर जीव का आकार छोटा करके उन्हें कांच के पात्र में बंद कर देता था?
12) क्या था महादेव के रुद्रासन का रहस्य? जिससे ब्रह्मदेव भी परिचित नहीं थे?
13) 7 सिर वाला योद्धा मार्कश कौन था? जिसके प्रत्येक सिर में एक विचित्र शक्ति समाई थी?

तो दोस्तों इन सभी प्रश्नों के उत्तर को जानने के लिये आइये पढ़ते हैं, देवी भार्गवी के जन्म से शुरु हुई एक ऐसी महागाथा, जिसने ब्रह्मांड के समयचक्र को भी पूर्णरुप से उलझा दिया था। जिसका नाम है-

“देवयुद्ध-महासंग्राम गाथा”

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पुस्तक का कुछ अंश

लेखक की कलम से

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं। मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरं।।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा।।

अर्थात् जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं। जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है। जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं। जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है। ऐसे दिव्य स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
तो दोस्तों इन्हीं कथनों के साथ, मैं शिवेन्द्र सूर्यवंशी अपनी नई पुस्तक ‘देवयुद्ध’ के प्रथम पृष्ठ पर आपका स्वागत करता हूं। दोस्तों ‘देवयुद्ध’ नामक यह पुस्तक मेरे द्वारा लिखी हुई, ‘रिंग ऑफ अटलांटिस’ सीरीज की सातवीं पुस्तक है। जब मैंने इस पुस्तक को लिखना शुरु किया था, तो मुझे भी नहीं पता था कि यह पुस्तक इतनी विशाल श्रृंखला का रुप लेकर आप सभी पाठकों के समक्ष जायेगी, परंतु आप सभी की शुभकामनाओं और प्यार से इतना कठिन लक्ष्य भी प्राप्त हो गया। दोस्तों मेरे लिये इस पुस्तक के एक-एक पात्र व दृश्य की रचना करना आसान नहीं था। मुझे पता था कि हिंदी पुस्तकों के असीम ब्रह्मांड में अनेकानेक सुप्रसिद्ध लेखक, सितारों के समान चमक रहे हैं और इन प्रकाशित सितारों के बीच अपनी रोशनी का अहसास दिलाना सच में एक दुष्कर कार्य था। मैं हमेशा से इस अनंत ब्रह्मांड में इन सितारों की रोशनी से कुछ अलग दिखना चाहता था और आपके लिखे ‘प्रशंसनीय शब्द’, अब मुझे इस बात का अहसास भी दिलाने लगे हैं कि मैं अपने इस कार्य में पूरी तरह से सफल हुआ हूं।
दोस्तों मेरे बताये पूर्वकथन के अनुसार, यह पुस्तक इस श्रृंखला की आखिरी पुस्तक होनी थी, परंतु जब मैंने इस पुस्तक के, सागर समान सभी पात्रों और दृश्यों को, एक ही गागर में समेटने की कोशिश की, तो उस गागर से जल की कुछ बूंदें निकलकर अन्यत्र फैलने लगीं। अर्थात् जिस पुस्तक को मुझे 1 लाख से लेकर 1.10 लाख शब्दों में लिखना था, वह शब्दों की सभी सीमाएं लांघकर, 2 लाख शब्दों को भी पार करती हुई दिखाई दी। अब मेरे लिये इस श्रृंखला को, इस पुस्तक तक समेटना अत्यंत ही कठिन प्रतीत होने लगा। मैं आखिरी पुस्तक को किसी सारांश की तरह नहीं लिख सकता था और ना ही इस पुस्तक के दृश्यों को काटकर पाठकों के साथ अन्याय कर सकता था। आखिरकार मैंने इस श्रृंखला का समापन करने के लिये एक और पुस्तक का चुनाव किया। तो दोस्तों अब ‘रिंग ऑफ अटलांटिस’ नामक यह श्रृंखला इस पुस्तक ‘देवयुद्ध’ में ना खत्म होकर इसके अगले भाग में समाप्त होगी, जिसकी जानकारी इस पुस्तक के अंत में आपको मिल जायेगी। परंतु यकीन मानिये इस पुस्तक को पढ़ने के बाद यह घोषणा आपको बुरी प्रतीत नहीं होगी।[adinserter block="1"]

दोस्तों अब मैं आपके सामने यहां कुछ आवश्यक जानकारियां देना चाहता हूं। मेरे बहुत से पाठक यह जानना चाहते हैं, कि इस श्रृंखला के समाप्त होने के बाद, मेरी अगली श्रृंखला कौन सी होगी? और मेरे भविष्य के क्या प्लान हैं? तो दोस्तों जब रिंग ऑफ अटलांटिस श्रृंखला समाप्त होगी, तो इसके बाद ‘ब्रह्म-कथा’ नाम से मेरी 3 पुस्तकों की एक नई श्रृंखला आयेगी। ‘ब्रह्म-कथा’ श्रृंखला की पहली पुस्तक का नाम ‘ब्रह्मकलश’ होगा। यह पुस्तक महायोद्धा आर्यन के ब्रह्मलोक जाकर अमृत प्राप्त करने की अनोखी गाथा होगी। ‘ब्रह्म-कथा’ के बाद अगली श्रृंखला ‘हिम-कथा’ होगी। हिम-कथा श्रृंखला में आप अपने कुछ प्यारे पात्रों को वेदालय नामक एक अनोखे विद्यालय में पढ़ते हुए पायेंगे। वेदालय की कुछ घटनाओं का वर्णन, सारांश के रुप में आपको इस श्रृंखला में ही मिल गया होगा, परंतु वेदालय की अनोखी प्रतियोगिताओं को वृहद रुप में जानने के लिये आपको ‘हिम-कथा’ श्रृंखला पढ़नी होगी।
इतनी बातें सुनकर आप यह तो जान ही गये होंगे, कि इस श्रृंखला के कुछ चहेते पात्र आपको इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाले। इसमें से अधिकांश पात्र भविष्य की श्रृंखलाओं में भी आपका मनोरंजन करते रहेंगे। तो दोस्तों भविष्य से निकलकर एक बार फिर अपनी कुर्सी की पेटी बांध लीजिये क्योंकि हम अब आपको लेकर चल रहे हैं वर्तमान की ओर, जहां पर इस कथा श्रृंखला की पुस्तक के पात्र बेचैनी से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
दोस्तों मेरी नई पुस्तकों की प्रकाशन तिथि के लिये आप मेरे फेसबुक पेज को लाइक या फॉलो कर सकते हैं, जिसकी डीटेल्स आपको नीचे मिल जायेगी।
फेसबुक पेजः @shivendrasuryavanshitheauthor
तो फिर तुरंत इस पुस्तक को पढ़ना शुरु करिये और इसे पढ़ने के बाद मुझे रिव्यू या कमेंट के माध्यम से इसके बारे में अवश्य सूचित करें।
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में .......
आपका दोस्त
शिवेन्द्र सूर्यवंशी
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प्राक्कथन
जब ब्रह्मदेव ने महादेव से पृथ्वी का भविष्य जानने की इच्छा व्यक्त की, तो महादेव ने उन्हें क्षीरसागर में स्थित रुद्रासन के पास भेज दिया। ब्रह्मदेव जब रुद्रासन को ढूंढते हुए क्षीरसागर में पहुंचे, तो वहां उन्हें सप्तकणों से निर्मित सप्तपुस्तकें दिखाई दीं। उन सप्तपुस्तकों में अलग-अलग प्रकार से भविष्य को देखने की शक्तियां थीं। ब्रह्मदेव ने उन सप्तशक्तियों की सहायता से पृथ्वी का भविष्य देखने की कामना व्यक्त की। परंतु पृथ्वी का भविष्य देखकर ब्रह्मदेव अत्यंत चिन्तित हो गये, क्योंकि पृथ्वी के भविष्य में एक देवयुद्ध छिपा था, जिसमें पृथ्वी का महाविनाश संलिप्त था।
ब्रह्मदेव ने पृथ्वी को महाविनाश से बचाने के लिये उन सभी सप्तपुस्तकों को पृथ्वी के 7 सबसे सुरक्षित स्थानों पर छिपा दिया। ब्रह्मदेव को विश्वास था कि जब भविष्य में ब्रह्मांड रक्षक इन पुस्तकों को प्राप्त कर लेंगे, तो देवयुद्ध से होने वाले महाविनाश को टाला जा सकेगा।
इसके बाद शुरु हुई एक समयचक्र की एक ऐसी कथा श्रृंखला जिसमें देवता तो क्या ब्रह्मांड के कई ग्रह भी उलझ गये -
1) कौन थी भार्गवी, जिसका जन्म गुलाब की पंखुड़ी से हुआ था?
2) क्या हुआ जब चंद्रवीर ने युद्ध की विभीषिका देखकर देवी आदिशक्ति के प्रलयंकारी त्रिशूल को फेंक दिया?
3) क्या हुआ जब देवराज इंद्र और सूर्य का टकराव वृत्रासुर नामक असुर से हुआ?
4) कैसा था वह त्रिकालदर्शी मंदिर, जिसका निर्माण ‘समय’ को रोक कर किया गया था?
5) कौन थी वह सतरंगी तितली, जो वीनस को अपने मायाजाल में उलझा गई थी?
6) क्या हुआ जब कैस्पर की परछाई ने अंडरवर्ल्ड में कैस्पर पर ही हमला कर दिया?
7) सूर्यदेव ने महाशक्तिशाली पंचशूल का निर्माण किस प्रकार किया?
8) नागदंत कथा का क्या रहस्य था?
9) पीपल के 8 पत्तों से बनी शुभाकृति क्या थी, जो नीलाभ का मागदर्शन कर रही थी?
10) क्या सुयश व शैफाली ब्रह्मांड के सबसे विशाल जीवों को समाप्त कर पाये?
11) कौन था वह मायावी सुनहरा मेढक, जो हर जीव का आकार छोटा करके उन्हें कांच के पात्र में बंद कर देता था?
12) क्या था महादेव के रुद्रासन का रहस्य? जिससे ब्रह्मदेव भी परिचित नहीं थे?
13) 7 सिर वाला योद्धा मार्कश कौन था? जिसके प्रत्येक सिर में एक विचित्र शक्ति समाई थी?
तो दोस्तों इन सभी प्रश्नों के उत्तर को जानने के लिये आइये पढ़ते हैं, देवी भार्गवी के जन्म से शुरु हुई एक ऐसी महागाथा, जिसने ब्रह्मांड के समयचक्र को भी पूर्णरुप से उलझा दिया था। जिसका नाम है-
“देवयुद्ध-महासंग्राम गाथा”
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चैपटर-1
क्षीरसागर रहस्य

20,050 वर्ष पहले .........
क्षीर सागर, हिमालय
हिमालय पर चारो ओर श्वेत हिमखंड बिखरे हुए थे। कहीं-कहीं पर उन श्वेत हिमखंडों के मध्य कुछ हरे वृक्ष, बर्फ से ढके होने के बाद भी अपनी उपस्थिति का प्रमाण दे रहे थे।
ऊपर नीले आसमान पर कुछ श्वेत बादलों की टुकड़ियां, पृथ्वी का अवलोकन कर रहीं थीं।
ठंडी हवाओं के झोंके अपने अंदर असीम शांति को समाहित करे वातावरण में विचर रहे थे।
ऐसे में ब्रह्मदेव श्वेत बर्फ पर खड़े क्षीरसागर के दुग्ध के समान श्वेत जल को निहार रहे थे।
सागर की लहरें बार-बार तेजी से चलती हुई ब्रह्मदेव के पास आतीं और उनके पैर को पखार कर वापस जा रहीं थीं। इस समय लहरों की हलचल और उसकी तेज ध्वनि के सिवा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था?
परंतु इस समय ब्रह्मदेव का मस्तिष्क विचलित सा प्रतीत हो रहा था और वह अपने ही विचारों में खोए हुए दिखाई दे रहे थे।
“कल रात अचानक से मुझे कुछ घबराहट सी हुई। मुझे लगा कि अवश्य ही पृथ्वी पर कुछ अनिष्ट होने वाला है। इसलिये मैं प्रातःकाल ही महादेव के सम्मुख पहुंच गया। परंतु जब मैंने महादेव से पृथ्वी के भविष्य के बारे में पूछा, तो उन्होंने मुझे क्षीरसागर की तली में उपस्थित अपने रुद्रासन के पास जाने को कहा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि महादेव ने ऐसा क्यों किया? क्या रुद्रासन में कुछ ऐसा रहस्य छिपा है, जिसे महादेव मुझे दिखाना चाहते हैं? और महादेव ने रुद्रासन को भला क्षीरसागर में क्यों छिपा कर रखा है? .... लगता है कि मुझे मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर रुद्रासन के पास ही मिलेगा? इसलिये शीघ्र से शीघ्र मुझे रुद्रासन के पास पहुंचना चाहिये।”
यह सोचकर ब्रह्मदेव ने एक बार फिर से क्षीरसागर के श्वेत जल को देखा और फिर धीरे-धीरे सागर की लहरों में उतरकर क्षीरसागर की तली की ओर चल दिये।
ब्रह्मदेव को यह भी नहीं पता था कि रुद्रासन है किस दिशा में? इसलिये वह अनुमान लगाते हुए एक दिशा की ओर चल दिये।
क्षीरसागर का जल काफी स्वच्छ और पारदर्शी दिखाई दे रहा था।
क्षीरसागर के जल में एक भी मछली दिखाई नहीं दे रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे शेषनाग के वास करने के कारण पूरे क्षीरसागर का जल विषाक्त हो गया हो?
कुछ ही देर के बाद ब्रह्मदेव क्षीरसागर की तली में पहुंच गये, परंतु उन्हें वहां दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं दिया?
“यहां तो सिर्फ जमीन से उठते हुए कुछ बुलबुले ही दिख रहे हैं, ऐसे में इतने बड़े क्षीरसागर में रुद्रासन ढूंढना सरल प्रतीत नहीं होता। लगता है कि मुझे रुद्रासन ढूंढने के लिये अपनी दिव्य शक्तियों का आहवान करना पड़ेगा।”[adinserter block="1"]

यह सोचकर ब्रह्मदेव ने अपनी आँखें बंद कर लीं और मन ही मन परम ब्रह्म का स्मरण करने लगे।
कुछ देर के बाद जब ब्रह्मदेव ने अपनी आँखें खोलीं, तो उन्हें अपने सामने एक गुलाबी रंग का छोटा सा कमल का फूल, जल में तैरता हुआ दिखाई दिया।
उस कमल के फूल को देख ब्रह्मदेव मुस्कुराए और उन्होंने अपना दाहिना हाथ कमल के फूल की ओर बढ़ा दिया। पर जैसे ही ब्रह्मदेव का हाथ कमल के फूल की ओर बढ़ा, वह कमल का फूल स्वतः ही गतिमान होकर एक दिशा की ओर बढ़ गया।
यह देख ब्रह्मदेव भी कमल के फूल के पीछे-पीछे चल दिये।
कमल के फूल की गति पानी में होने के बाद भी काफी तेज थी।
कुछ ही देर में वह कमल का फूल एक विशाल से चबूतरे के पास जाकर रुक गया। कमल के फूल को रुकते देख ब्रह्मदेव ध्यान से उस चबूतरे को देखने लगे।
उस चबूतरे की ऊंचाई सागर की तली से लगभग 20 फुट ऊंची लग रही थी।
वह चबूतरा एक सप्तकोण की आकृति में बना था, जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ियां भी बनीं थीं। परंतु ब्रह्मदेव ने सीढ़ियों का प्रयोग नहीं किया।
ब्रह्मदेव पानी में तैरते हुए उस चबूतरे पर जा चढ़े। वह चबूतरा लगभग 20 फुट चौड़ा दिखाई दे रहा था।
उस चबूतरे के बीचोबीच में एक विशाल अंतहीन गड्ढा दिखाई दे रहा था, जो कि किसी कुंए के समान प्रतीत हो रहा था।
उस गड्ढे के बीच में एक विशाल फन वाले काले नाग की प्रतिमा लगी थी, जिसका मुंह खुला हुआ था और वह ऊपर की ओर देख रहा था। उस नाग की आँखों के स्थान पर 2 लाल मणियां लगीं थीं, जिनकी चमक चारो ओर फैल रही थी। नाग के दाँत सफेद पत्थरों से निर्मित थे और चमकदार थे।
उस नाग के मुंह के ऊपर पानी में, एक काँच का बड़ा सा कलश, अपने अक्ष के परितः धीमी गति से घूम रहा था। उस कलश में 2 श्वेत रंग की कोई चमकदार नुकीली वस्तु भी घूमती हुई दिखाई दे रही थी।
कलश के ऊपर का ढक्कन भी काँच से ही निर्मित था और पूरी तरह से बंद था।
कलश के पारदर्शी होने के कारण, उसमें घूम रही नुकीली वस्तु बिल्कुल साफ नजर आ रही थी।[adinserter block="1"]

उस पूरे दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था, कि जैसे कोई विशाल नाग अपना मुंह खोलकर उस काँच के कलश को निगलने की कोशिश कर रहा हो?
“यहां तो रुदासन जैसी कोई भी वस्तु नहीं दिखाई दे रही है?” ब्रह्मदेव ने मन ही मन बुदबुदाते हुए कहा- “पर इस स्थान का पूरा दृश्य एक विचित्र सी अनुभूति करा रहा है। जैसे कि इस विशाल नाग की मूर्ति का, इस प्रकार काँच के कलश को निगलने की कोशिश करना। अवश्य ही इस नाग की मूर्ति में कोई रहस्य छिपा है? ..... उधर इस कलश में दिखने वाली वह चमकीली वस्तुएं भी बहुत रहस्यमई प्रतीत हो रही हैं? उन्हें इस कलश में यहां पर क्यों रखा गया है? ..... इन सभी दृश्यों को देखकर मुझे तो यह प्रतीत हो रहा है कि अवश्य ही यह महादेव के द्वारा रची हुई कोई रहस्यकथा है? जिसका भान मुझे स्वयं भी नहीं है? ....... यह भी हो सकता है कि इसी रहस्य को जानने के लिये महादेव ने मुझे यहां भेजा हो? और इसी कारण मेरा दिव्य कमल मुझे यहां पर लाया है। ..... परंतु अगर मैं इस स्थान पर आया हूं, तो मैं यह भी नहीं कह सकता कि रुद्रासन यहां पर नहीं है? इसका तात्पर्य यह है कि या तो रुद्रासन यहां पर अदृश्य रुप में कहीं पर स्थित है? या फिर मुझे उसके पास पहुंचने के लिये किसी प्रकार की युक्ति की आवश्कता है? .... इसलिये अब मुझे यहां पर स्थित सभी रहस्यमई वस्तुओं को छूकर देखना होगा और इसकी शुरुआत मुझे उस काँच के कलश के पास जाकर करनी होगी।”
यह सोचकर ब्रह्मदेव पानी में तैरते हुए उस विचित्र काँच के कलश के पास पहुंच गये।
अब ब्रह्मदेव उस काँच के कलश के अंदर स्थित उन दोनों नुकीली चीजों को ध्यान से देखने लगे।
“यह क्या? यह दोनों वस्तुएं तो किसी नाग के दंत के समान प्रतीत हो रही हैं और इनसे किसी प्रकार का नीले रंग का द्रव भी निकलकर, इस कलश में फैल रहा है?” ब्रह्मदेव के शब्द अब स्वयं को ही समझा रहे थे- “इस काँच के कलश के नीचे भी एक नाग के मुख वाली मूर्ति बनी है, जो कि किसी गुप्त द्वार के समान ही प्रतीत हो रही है। कहीं इस मूर्ति के अंदर शेषनाग का महल तो नहीं? क्योंकि क्षीरसागर में शेषनाग के रहते कोई दूसरा नाग कैसे प्रविष्ठ हो सकता है? ... लगता है कि मुझे इस स्थान का रहस्य जानने के लिये इस नागमुख में प्रवेश करके देखना होगा। हो सकता है कि रुद्रासन इसी नागमुखी गुफा में हो?”
पर इससे पहले कि ब्रह्मदेव उस विशाल नागमुखी गुफा में प्रवेश कर पाते कि तभी एक अंजान आवाज ने उन्हें चौंका दिया।
“घड़ ..घड़ ..घड़ .... घड़।”
ब्रह्मदेव ने चौंक कर आवाज की दिशा में देखा।
वह आवाज उस सप्तकोण जैसे चबूतरे के अंदर से हो रही थी। ब्रह्मदेव आश्चर्य से उस चबूतरे को देखने लगे, क्योंकि उन्हें उस विचित्र ध्वनि का उद्गम स्थल नहीं दिख रहा था।
तभी चबूतरा चारो ओर से तेजी से कांपने लगा और देखते ही देखते, सप्तकोण वाले चबूतरे के सभी कोनों से, जमीन के अंदर से 7 स्तंभ निकलकर बाहर की ओर आने लगे।
सभी स्तंभ प्राचीन काले पत्थरों से निर्मित प्रतीत हो रहे थे, जिन पर कई स्थानों पर 2 काले नाग के जोड़े की लिपटी हुई आकृतियां बनीं थीं।
वह विचित्र स्तंभ इस प्रकार से जमीन से निकल रहे थे, मानों कोई नई नवेली वृक्ष की बेल, धरा के अंदर से अपनी कोपलें फोड़कर बाहर निकल रही हो?
उन स्तंभों का निरंतर बढ़ना जारी था।[adinserter block="1"]

जब वह सभी स्तंभ लगभग 50 फुट के हो गये, तो उन स्तंभों का बढ़ना रुक गया।
अब उन सभी स्तंभों के ऊपरी सिरे से सैकड़ों की संख्या में काले सर्प निकलना शुरु हो गये।
उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो वह स्तंभ अंदर से पूर्णरुप से खोखले हों और उनका निचला सिरा नागलोक से जुड़ा हुआ हो?
वह सभी सर्प स्तंभ से निकलकर पानी में तैरते हुए, चबूतरे के सामने एक स्थान पर एकत्र होने लगे।
ब्रह्मदेव के देखते ही देखते चबूतरे के सामने हजारों सर्पों का अंबार सा दिखाई देने लगा।
वह सभी सर्प अब एक दूसरे के ऊपर चढ़कर किसी आकृति का निर्माण करने लगे?
“यह सभी सर्प अपने शरीरों का प्रयोग कर किसी प्रकार का निर्माण कर रहे हैं? मुझे इन्हें ध्यान से देखना चाहिये। हो सकता है कि सर्पों की इस क्रिया में भी कोई रहस्य छिपा हो?”
यह सोच अब ब्रह्मदेव ध्यान से उस आकृति को देखने लगे।
लगभग 10 मिनट के बाद उन सभी सर्पों ने, उस चबूतरे के सामने महादेव की एक अष्टभुजाधारी विशाल प्रतिमा का निर्माण कर दिया।
प्रतिमा का निर्माण कार्य पूर्ण होते ही, आश्चर्यजनक तरीके से वह सभी सर्प उस विशाल प्रतिमा में ही समा गये। परंतु अब ब्रह्मदेव के सामने महादेव की काले पत्थरों से निर्मित एक विशाल प्रतिमा खड़ी थी।
सिर पर चंद्रमा, जटाओं से निकलती गंगा, भुजाओं में रुद्राक्ष, गले में वासुकी धारण किये महादेव की वह अष्टभुजाधारी प्रतिमा अद्वितीय प्रतीत हो रही थी।
महादेव की 6 भुजाओं में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र थे, परंतु उन्होंने अपनी 2 भुजाओं में एक स्वर्ण के समान चमचमाता हुआ सिंहासन पकड़ रखा था।
सिंहासन की चमक के कारण महादेव की वह प्रतिमा अत्यंत अद्भुत लग रही थी।
यह देख ब्रह्मदेव के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान बिखर गई। वह समझ गये कि यही वह रुद्रासन है, जिसकी खोज में वह क्षीरसागर में आये हैं।
ब्रह्मदेव ने महादेव की प्रतिमा के समक्ष अपने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और पानी में तैरते हुए उस रुद्रासन की ओर बढ़ने लगे।
कुछ ही देर में ब्रह्मदेव रुद्रासन के निकट पहुंच गये।[adinserter block="1"]

अब ब्रह्मदेव ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उस रुद्रासन को छू लिया। परंतु जैसे ही ब्रह्मदेव का हाथ उस रुद्रासन से स्पर्श हुआ, रुद्रासन से निकलकर एक चमकीली नीली ऊर्जा उस चबूतरे की ओर लपकी।
वह नीली ऊर्जा, जल में समाई किसी आकाशीय विद्युत की भांति प्रतीत हो रही थी? ब्रह्मदेव ने यह देखकर अपना हाथ वापस खींच लिया और चौंककर उस नीली ऊर्जा को देखने लगे।
उस नीली ऊर्जा ने एक-एक कर, चबूतरे पर स्थित सभी स्तंभों को अपने घेरे में ले लिया।
“हे महादेव यह आपकी कैसी लीला है? मैं इसे समझने के प्रयास में और उलझता जा रहा हूं।” ब्रह्मदेव मन ही मन बुदबुदाते हुए, पूरी घटना को समझने की कोशिश कर रहे थे।
उधर जैसे ही सभी स्तंभ नीली ऊर्जा की रोशनी में आये, सभी स्तंभ अपने अक्ष के परितः तीव्र गति से घूर्णन करने लगे। नीली ऊर्जा अभी भी उन स्तंभों के चारो ओर नाच रही थी।
कुछ ही देर में उन स्तंभों के घूमने की गति अत्यंत तीव्र हो गई।
आश्चर्य की बात यह थी कि स्तंभों के इतनी तेज घूमने के बाद भी, उस स्थान का पानी अपनी जगह पर स्थिर दिख रहा था।
एक निश्चित गति तक पहुंचने के बाद उन स्तंभों ने धीरे-धीरे रुकना शुरु कर दिया। अब नीली ऊर्जा वापस रुद्रासन में समा गई।
पर जैसे ही वह स्तंभ पूर्ण रुप से रुके, ब्रह्मदेव अवाक रह गये। क्योंकि अब उनके सामने उन 7 स्तंभों के स्थान पर, 7 खूबसूरत अप्सराएं खड़ी हुई दिखाई दे रहीं थीं।
उन सभी अप्सराओं ने 7 अलग-अलग रंग की, देवियों के समान वेशभूषा धारण कर रखी थी।
दूर से ही वह सभी अप्सराएं किसी देवकन्या की भांति प्रतीत हो रहीं थीं।
उन सभी अप्सराओं ने दूर से ही ब्रह्मदेव को देखा और फिर पानी में तैरती हुई, वह सभी ब्रह्मदेव के पास आ पहुंचीं।
सभी अप्सराओं ने ब्रह्मदेव को झुककर इस प्रकार प्रणाम किया, मानों वह उन्हें भली-भांति जानती हों।
“ब्रह्मदेव को हम सभी सातों बहनों का प्रणाम।” एक अप्सरा ने थोड़ा आगे बढ़ते हुए कहा।
“कल्याण हो।” ब्रह्मदेव ने उन सभी की ओर देखते हुए, अपना हाथ वरमुद्रा में करते हुए कहा- “आप सब कौन हो देवियों? और आप यहां इस स्थान पर स्तंभ बनकर क्यों खड़ी थीं?”
“हम सभी सात बहनें हैं। हमारे नाम भूमिका, सागरिका, निहारिका, वेगिका, अग्निका, प्रकाशिका व ध्वनिका है। हम सभी बहनें सप्ततत्व की परिचायक हैं। महादेव ने हमारा निर्माण इस नागदंत की सुरक्षा के लिये, सप्ततत्वों से किया था।” सागरिका ने कहा।
“ये नागदंत किसके हैं? और इन नागदंतों में ऐसा क्या रहस्य छिपा है? कि महादेव को उसकी सुरक्षा के लिये सप्ततत्वों की शक्ति का प्रयोग करना पड़ा।” ब्रह्मदेव ने सागरिका को देखते हुए पूछा।[adinserter block="1"]

“यह एक ऐसी रहस्य कथा है ब्रह्मदेव, जिसका वर्णन हम महादेव के कथनों के अनुसार अपने मुख से नहीं कर सकते।” इस बार अग्निका बोल उठी।
“परंतु मुझे तो भविष्य जानने के लिये स्वयं महादेव ने ही इस स्थान पर भेजा है।” ब्रह्मदेव ने सोचते हुए कहा- “क्या इस स्थान पर कोई और भी शक्ति विद्यमान है? जो मुझे इस नागदंत कथा का रहस्य बता सके?”
ब्रह्मदेव की बात सुन सभी ने एक बार रुद्रासन की ओर देखा।
ब्रह्मदेव उन अप्सराओं को रुद्रासन की ओर देखते पाकर स्वयं भी रुद्रासन को देखने लगे।
तभी वेगिका ना जाने क्या सोचकर ब्रह्मदेव की ओर पलटते हुए बोली- “वैसे तो हम इस नागदंत कथा का रहस्य किसी को भी नहीं बता सकते? परंतु चूंकि आपको महादेव ने ही हमारे पास भेजा है, अतः हम आपको इस कथा का भविष्य अवश्य दिखा सकते हैं।”
“भविष्य!!!” वेगिका की बात सुन ब्रह्मदेव आश्चर्य से वेगिका की ओर देखने लगे- “क्या आप लोगों के पास भविष्य को जानने की शक्ति है?”
“हाँ, देवी भार्गवी की कृपा से हमारे पास भविष्य को जानने की शक्ति है।” प्रकाशिका ने कहा।
“यह देवी भार्गवी कौन हैं? मैंने इनके बारे में कभी नहीं सुना?” ब्रह्मदेव ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा।
“देवी भार्गवी, माता पार्वती की मानसपुत्री हैं, उनकी जन्मकथा तो हम आपको नहीं सुना सकते, परंतु इस नागदंत कथा का भविष्य अवश्य दिखा सकते हैं।” सागरिका ने कहा।
“ठीक है, आप हमें इस नागदंत कथा का ही भविष्य दिखा दीजिये, शेष बातें हम स्वयं महादेव से ही पूछ लेंगे।” ब्रह्मदेव ने अपने हथियार डालते हुए कहा।
ब्रह्मदेव के इतना कहते ही सभी अप्सराओं ने ब्रह्मदेव को चारो ओर से घेर लिया।
ब्रह्मदेव समझ नहीं पाये कि वह अप्सराएं ऐसा क्यों कर रहीं हैं? परंतु उन्होंने कुछ कहा नहीं?
तभी सभी अप्सराओं ने अपने आँख बंद करके कोई मंत्र पढ़ना शुरु कर दिया? कुछ ही देर में रुद्रासन से एक बार फिर वही नीली ऊर्जा निकली और गोल-गोल घूमती हुई उन सभी अप्सराओं के चारो ओर नाचने लगी।
अब ब्रह्मदेव के देखते ही देखते वह सभी अप्सराएं 7 अलग-अलग पुस्तकों में परिवर्तित हो गईं। सभी पुस्तकें आकार में 6 फुट की थीं और सप्ततत्वों के एक-एक तत्व का प्रतिनिधित्व करती हुई दिखाई दे रहीं थीं।[adinserter block="1"]

‘सागरिका’ नीले रंग में रंगी एक दिव्य पुस्तक नजर आ रही थी। सागरिका के कवर पेज पर सुनहरी धातु से निर्मित एक उभरा हुआ समुद्री घोड़ा बना हुआ था, जो कि छोटे-छोटे बुलबुलों के मध्य धीरे-धीरे घूम रहा था। उस पुस्तक पर जल की बूंदों से ‘सागरिका’ लिखा हुआ था।
‘ध्वनिका’ का कवर पेज नारंगी रंग से रंगा हुआ था और उसके ऊपर एक दिव्य तलवार चिपकी हुई थी। चाँदी के रंग जैसी चमचमाती तलवार की मूठ, शुद्ध सोने की बनी प्रतीत हो रही थी, जिसके चारो ओर असंख्य श्वेत अक्षरों से ‘ऊँ’ लिखे हुए थे। यह सभी ‘ऊँ’ तलवार के चारो ओर घूम रहे थे। उस पुस्तक पर काले रंग की तरंगों से ‘ध्वनिका’ लिखा हुआ था।
‘अग्निका’ का कवर पेज बैंगनी रंग का था। उसके ऊपर एक बहुत ही खूबसूरत सा मोरपंख बना था। मोरपंख के चारो ओर अग्नि की कुछ लपटें धधक रहीं थीं? यह लपटें सजीव सी प्रतीत हो रहीं थीं, जिसकी ज्वाला से मोरपंख ऊर्जा से भरा हुआ प्रतीत हो रहा था। उस पुस्तक पर अग्नि की ज्वाला से ‘अग्निका’ लिखा हुआ था।
‘भूमिका’ का कवर पेज हरे रंग का था, जिस पर एक नारंगी रंग से बना रेत का चक्र नाच रहा था। उस चक्र के नाचने पर रेत के कण बिखरकर हरे वातावरण में मिल रहे थे। उस चक्र के आसपास एक सुनहरे रंग का छोटा सा जुगनू घूम रहा था, जो कभी-कभी पुस्तक के हरे भाग में जाकर सुनहरे फूलों को खिला रहा था। परंतु उस जुगनू के हटते ही वह फूल भी गायब हो जा रहे थे। उस पुस्तक पर रेत के कणों से ‘भूमिका’ लिखा हुआ था।
‘निहारिका’ का कवर पेज काले रंग से बना था, जिस पर लाल व पीले रंग से एक फीनीक्स पक्षी बना था। वह पक्षी बीच-बीच में अपने पंख को फैलाकर उड़ने की कोशिश कर रहा था। पुस्तक के काले भाग में एक टूटता हुआ तारा घूम रहा था, जो कि बीच-बीच में आकर उस फीनीक्स पक्षी को छू भी लेता था। सितारा जैसे ही फीनीक्स को छूता, फीनीक्स अपने मुंह से ‘क्री’ की एक तीव्र ध्वनि उत्पन्न कर रहा था। उस पुस्तक पर सूर्य की रोशनी से ‘निहारिका’ लिखा हुआ था।
‘वेगिका’ का कवर पेज गाढ़े नीले रंग का था, जिस पर सुनहरे रंग का एक तीर-धनुष बना था। देखने से ही वह तीर-धनुष दिव्य प्रतीत हो रहा था। पुस्तक के ऊपरी नीले भाग पर, कुछ श्वेत बादलों की टुकड़ी घूमती दिख रही थी। धनुष पर चढ़ा तीर बार-बार बादलों की ओर जाकर हवा में फट जा रहा था। तीर के हवा में फटते ही तीव्र वायु बादलों को उड़ा ले जा रही थी। उधर कुछ पलों के बाद धनुष पर एक नया तीर दिखाई देने लगता और बादलों की टुकड़ी आसमान में फिर आ जा रही थी। उस पुस्तक पर हवाओं के वेग से ‘वेगिका’ लिखा हुआ था।
‘प्रकाशिका’ का कवर पेज सुर्ख लाल रंग का था, जिस पर एक श्वेत रंग का हाथी बना था। हाथी ने अपनी सूंड में एक पीले रंग का पुष्प पकड़ रखा था। उस पुष्प से तीव्र रोशनी निकलकर, पुस्तक के कवर पेज को प्रकाशमान बना रही थी। उस पीले पुष्प के पास एक नन्हा सा लाल व काले रंग का कीड़ा भी उड़ रहा था, जो कि देखने में किसी ‘लेडी-बग’ के समान नजर आ रहा था। उस पुस्तक पर आसमानी बिजली से ‘प्रकाशिका’ लिखा हुआ था।[adinserter block="1"]

ब्रह्मदेव यह देखकर आश्चर्य से भर उठे। शायद उन्हें उन अप्सराओं से ऐसी कोई आशाा नहीं थी?
“यह सभी अप्सराएं तो दिव्य पुस्तकों में परिवर्तित हो गईं। अब यह मुझे भविष्य किस प्रकार दिखा पायेंगी?” ब्रह्मदेव अब काफी उत्सुक से दिखाई दे रहे थे, शायद महादेव की इस लीला ने उन पर कुछ ज्यादा ही प्रभाव डाल दिया था?
अब ब्रह्मदेव उन पुस्तकों को ध्यान से देखने लगे, जो कि एक निश्चित दूरी बनाकर ब्रह्मदेव के चारो ओर अभी भी घूम रहीं थीं।
तभी उन सभी पुस्तकों से एक साथ अलग-अलग रंग की प्रकाश की किरणें निकलीं और उन किरणों ने ब्रह्मदेव के शरीर को अपने घेरे में ले लिया।
अब ब्रह्मदेव का शरीर 7 रंगों में रंगा दिखाई देने लगा। तभी उन्हें अपने मस्तिष्क में एक साथ अनगिनत दृश्य नजर आने लगे-
“समुद्र मंथन से विष का निकलना, महादेव का विष को धारण करना, विष की बूंद से नीलाभ की उत्पत्ति, माया का नीलाभ से विवाह, हनुका की शैतानियां, देवताओं का माया को देवशक्तियां देना, माया का 15 लोकों का निर्माण करना, वेदालय की रचना, माया का गणेश को प्रसन्न करना, माया का नीलाभ को छोड़कर चले जाना, मैग्ना व कैस्पर की तिलिस्मी रचनाएं, वेदालय के छात्रों द्वारा अनेको दिव्य शक्तियों को प्राप्त करना, दूसरे ग्रह के जीवों का पृथ्वी पर आक्रमण करना, देवयुद्ध, ब्रह्माण्ड की अनोखी शक्तियों का टकराव, लावण्या का विनाशकारी रुप, व पृथ्वी का महाविनाश। पृथ्वी पर जीवन पूर्णरुप से नष्ट हो गया था। हरी-भरी पृथ्वी पूरी काली हो चुकी थी। चारो ओर बस राख ही राख दिखाई दे रही थी।”
इतने दृश्य दिखाकर सभी पुस्तकों की ऊर्जा वापस उन पुस्तकों में समा गई और इसी के साथ सभी पुस्तकें वापस स्तंभों का रुप लेकर उस चबूतरे में समा गईं।
अब वह चबूतरा पहले की भांति सामान्य रुप में आ गया।[adinserter block="1"]

परंतु इन सभी दृश्यों को देखकर ब्रह्मदेव पूर्णरुप से विचलित दिखाई देने लगे।
शायद जिस पृथ्वी के जीवों को ब्रह्मदेव ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था, उनका इस प्रकार अंत देखकर वह घबरा गये थे?
“हे परम ब्रह्म, हे महादेव, हे नारायण हमें मार्ग दिखाइये। हम अपनी इस हरी-भरी पृथ्वी का ऐसा अंत नहीं देख सकते। इस देवयुद्ध को, इस महाविनाश को किस प्रकार से रोका जा सकता है? कृपा करके हमें बताएं। हम पृथ्वी के बचाव के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं?”
ब्रह्मदेव अब महादेव की प्रतिमा के सामने अपने हाथ जोड़े बैठे थे और लगातार परम शक्तियों का आहवान कर रहे थे।
आखिरकार ब्रह्मदेव की साधना पूर्ण हुई। ब्रह्मदेव के समक्ष महादेव और नारायण प्रकट हो गये।
दोनों ही इस समय विशाल दिव्य शक्तियों के पुंज के समान प्रतीत हो रहे थे। दोनों देवताओं के तेज से चारो ओर प्रकाश बिखर गया।
“क्या हुआ ब्रह्मदेव, क्या आपको भविष्य के दर्शन हो गए?” महादेव की आवाज पूरे वातावरण में गूंजी।
“हो गये महादेव।” ब्रह्मदेव ने महादेव के समक्ष हाथ जोड़ते हुए कहा- “परंतु मुझे इस प्रकार के भविष्य की कोई आशा नहीं थी? ... हे महादेव भविष्य जानकर तो मुझे अत्यंत पीड़ा का अनुभव हो रहा है। इससे तो अच्छा होता कि मुझे भविष्य का पता ही ना चलता।”
“भविष्य को देखना सदैव ही दुखदाई होता है ब्रह्मदेव।” नारायण ने ब्रह्मदेव को देखते हुए कहा- “परंतु आज आप पूर्णरुप से हमारे समान बन गये हैं, इसीलिये आपकी पीड़ा अवश्यंभावी है ब्रह्मदेव।”[adinserter block="1"]

“हे नारायण, मुझे तो बस आप इस भविष्य को बदलने को कोई मार्ग दिखायें, अन्यथा इस दृश्य को देखने के पहले ही मेरे जीवन का अंत कर दें। मैं इन सभी जीवों के पिता समान हूं। अब कौन पिता इस प्रकार से अपने पुत्रों का अंत देख सकता है?” ब्रह्मदेव के शब्दों में निराशा ही निराशा झलक रही थी।
“हे ब्रह्मदेव, इतना निराश होने की आवश्यकता नहीं है, आदि व अंत तो इस सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है। अगर आप इतनी छोटी सी समस्याओं से घबरा जायेंगे, तो इस सृष्टि को बचाने का उपाय कैसे कर पायेंगे?” महादेव के शब्दों में आशा की एक किरण भी थी, जिसे ब्रह्मदेव ने स्पष्ट अनुभव किया।
अब ब्रह्मदेव के निस्तेज चेहरे पर ऊर्जा की एक छाया स्पष्ट नजर आने लगी।
“तो फिर शीघ्रता कीजिये महादेव। मैं उस उपाय को जानने के लिये आतुर हूं।” ब्रह्मदेव ने व्यग्रता से कहा।
“हे ब्रह्मदेव, यह सातों पुस्तकें देवी भार्गवी की समयशक्ति के प्रभाव से भविष्य को दिखाने लगी हैं।” महादेव ने कहा- “अगर आप इन सभी पुस्तकों को पृथ्वी के अलग-अलग भूभाग में छिपा दें, तो भविष्य में इन पुस्तकों के माध्यम से सभी देवयोद्धाओं को भविष्य के बारे में पता चल जायेगा और भविष्य के बारे में पता चलने के बाद मुझे पूर्ण विश्वास है कि वह देवयोद्धा इस समयशक्ति के माध्यम से भविष्य को बदलने में सक्षम हो जायेंगे।”
महादेव के शब्दों को ब्रह्मदेव एक पल में ही समझ गये, पर तभी उन्हें कुछ याद आया और वह वापस महादेव की ओर मुड़कर बोल उठे- “हे महादेव, ये देवी भार्गवी कौन हैं और इन्हें समयशक्ति कहां से प्राप्त हुई है? मैं इनके बारे में कुछ भी नहीं जानता? क्या आप मुझे इनके बारे में बताने का कष्ट करेंगे।”
ब्रह्मदेव की बात सुनकर महादेव ने भी उन अप्सराओं की भांति रुद्रासन की ओर देखा और धीमे से मुस्कुरा दिये।
“देवी भार्गवी की जन्मकथा अत्यंत ही अद्भुत है ब्रह्मदेव, मैं आपको इनके बारे में अवश्य ही बताऊंगा।” महादेव ने यह कहा और नारायण व ब्रह्मदेव को लेकर रुद्रासन की ओर चल दिये।
ब्रह्मदेव समझ गये कि अब इस रुद्रासन का रहस्य खुलने ही वाला है? अतः वह धड़कते हृदय से महादेव के पीछे-पीछे रुद्रासन की ओर चल दिये।
समय का यह पल अपने अंदर, अपनी ही समयशक्ति को छिपाये ब्रह्माण्ड में कहीं सिमट रहा था?
◆◆◆
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भार्गवी का जन्म
20,055 वर्ष पहले ................
कैलाश पर्वत, हिमालय
दुग्ध के समान श्वेत हिमखण्ड चारो ओर बिखरे हुए थे। इस समय वायु में भी कुछ श्वेत हिम के कण, पूर्णरुप से वातावरण में मिलकर किसी मयूर की भांति नृत्य कर रहे थे।
ऐसे में हिमालय पर स्थित कैलाश पर्वत की अद्भुत छटा देखने लायक थी।
कुछ ऐसे ही बर्फीले वातावरण में एक गुफा के सामने बाबा बर्फानी, एक सिंहछाल पर विराजमान थे। महादेव की आँखें इस समय ध्यान की मुद्रा में थीं।
शरीर पर बाघम्बर व भभूत, हाथ में अपराजेय त्रिशूल और त्रिशूल पर टंगा हुआ डमरु, महादेव की काया को उत्कृष्ट बना रहे थे।
इतने ठंडे वातावरण में भी महादेव के शरीर का ऊपरी भाग, मात्र भभूत और राख से ढका हुआ दिख रहा था, परंतु इस समय भी उनके तेजस्वी मुख पर एक सौम्यता विराजमान थी।
महादेव की जटाओं से निकल रहीं देवी गंगा की धारा, उस स्थान को और भी पवित्र बना रही थी।
तभी पायल की ‘छन-छन’ की आवाज के साथ वहां पर देवी पार्वती ने कदम रखा।
देवी पार्वती के कदमों की आहट सुनकर, महादेव ने अपने नेत्रों को खोल दिया और मुस्कुराते हुए देवी पार्वती की ओर देखने लगे।
देवी पार्वती चलती हुईं, महादेव के समक्ष आ खड़ी हुईं और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से महादेव को निहारने लगीं।
उन्हें इस प्रकार निहारता हुआ देखकर महादेव से रहा नहीं गया और वह बोल उठे- “लगता है कि देवी को आज फिर किसी रहस्य को जानने की इच्छा हुई है? तभी वह इस प्रकार हमारे पास पधारी हैं।”[adinserter block="1"]

“नहीं स्वामी, ऐसा आवश्यक नहीं है कि हम प्रत्येक समय आपके पास किसी कार्य हेतु ही आएं।” देवी पार्वती के गले से निकले शब्द किसी मंदिर की घंटियों के समान प्रतीत हो रहे थे- “हम तो आज आपके साथ विचरण पर जाना चाहते हैं। हमें तो स्मरण भी नहीं है कि आज के पहले हम आपके साथ कब विचरण पर गये थे?”
देवी पार्वती के शब्दों में छिपे पर्याय को महादेव एक क्षण में ही समझ गये। वो जान गये कि आज देवी पार्वती उनसे फिर कुछ घुमाकर पूछना चाहती हैं? परंतु देवी पार्वती की इच्छा महादेव के लिये सर्वोपरि थी, इसलिये वह अपने स्थान से उठकर खड़े हो गये।
महादेव को अपने स्थान से खड़े होते देख, देवी पार्वती के चेहरे पर हर्ष के भाव उत्पन्न हो गये। अब वह महादेव के और समीप जाकर खड़ी हो गईं।
महादेव ने देवी पार्वती को अपने समीप खड़ा देख, अपने त्रिशूल को उठा लिया। महादेव ने त्रिशूल को अपने चारो ओर हवा में गोल घुमाया।
महादेव के ऐसा करते ही उनके सामने एक पारदर्शक विशाल गोला उत्पन्न हो गया। वह गोला किसी बड़े पारदर्शक गुब्बारे के समान प्रतीत हो रहा था।
अब महादेव ने देवी पार्वती का हाथ पकड़ा और उस दिव्य गोले में प्रवेश कर गये।
महादेव और देवी पार्वती के उस दिव्य गोले में प्रवेश करते ही, वह दिव्य गोला, दोनों लोगों को लेकर हवा में उड़ गया।
बड़ा ही अद्भुत दृश्य था। देवी पार्वती भी इस समय महादेव का सानिध्य पाकर प्रसन्न प्रतीत हो रहीं थीं।
वह दिव्य बुलबुला इस समय आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ रहा था। उसके पारदर्शी होने के कारण देवी पार्वती को इस समय पृथ्वी का प्रत्येक दृश्य बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था।
“क्या अब भी आप इस विचरण का उद्देश्य हमें नहीं बताना चाहतीं देवी?” महादेव ने अर्थभरे शब्दों में देवी पार्वती की ओर देखते हुए पूछा।
“वैसे तो मुझे कुछ भी नहीं पूछना था? पर जब आप इतना जोर दे ही रहे हैं, तो मुझे यह बताइये प्रभु, कि ब्रह्माण्ड में ऐसी कौन सी शक्ति है, जो पूरे ब्रह्माण्ड को आपस में बांधे रखती है? और उसे इतना संतुलित बनाये रखती है।”[adinserter block="1"]

देवी पार्वती के कथनों को सुनकर महादेव मुस्कुराए और बोले- “देवी, इस पूरे ब्रह्माण्ड को समयशक्ति ने बांध रखा है और उसी समयशक्ति के कारण यह पूरा ब्रह्माण्ड इतना संतुलित है।”
“समयशक्ति!!!” पार्वती के चेहरे पर उलझन के भाव आ गये- “पर भला समय किसी को कैसे बांध सकता है? उसका तो कोई प्रवाह भी नहीं है। ना तो वह दिखाई देती है और ना ही ऐसी किसी शक्ति को, कोई भी जीव स्पर्श कर सकता है? फिर भला वह पूरे ब्रह्माण्ड को कैसे बांध सकती है?”
“देवी, मनुष्य की भावनाएं भी तो उनके शरीर के अंदर होती हैं। वह भी तो दिखाई नहीं देतीं, परंतु हम उन्हें महसूस तो कर ही सकते हैं। ठीक उसी प्रकार से समय भी हमारे चारो ओर बिखरा हुआ है, जिसे हम देख नहीं सकते, परंतु उसे महसूस अवश्य कर सकते हैं।” इतना कहकर महादेव एक क्षण के लिये रुके और उन्होंने पार्वती की ओर देखा, परंतु इस समय पार्वती के चेहरे पर असमंजस के भाव थे। जिसे देखकर ये साफ महसूस हो रहा था कि पार्वती को कुछ समझ में नहीं आ रहा है? यह देख महादेव ने फिर बोलना शुरु कर दिया- “इस विषय को हम आपको और सरल भाषा में समझाते हैं। .... पहले आप यह बताइये कि समय क्या है? और हम इसकी गणना किस प्रकार से करते हैं?”
“हमारी पृथ्वी अपने अक्ष के परितः जितने समयकाल में एक चक्र को पूर्ण करती है, उसे 1 दिन कहा जाता है और हमारी पृथ्वी जितने समयकाल में अपने सितारे (सूर्य) का 1 चक्र पूर्ण करती है, उसे एक वर्ष कहा जाता है। यही समय की परिभाषा है।” देवी पार्वती ने कहा।
“आपने बिल्कुल सही कहा देवी।” महादेव ने पार्वती की बात का समर्थन करते हुए कहा- “परंतु प्रत्येक नक्षत्र (ग्रह) का आकार एक बराबर नहीं है और ना ही प्रत्येक नक्षत्र की दूरी, उसके सितारे से एक बराबर है। अब जो नक्षत्र जितना बड़ा होगा, उसका 1 दिन उतना ही बड़ा होगा और जिस नक्षत्र की दूरी उसके सितारे से जितनी ज्यादा होगी, उसका 1 वर्ष भी उतना ही बड़ा होगा। यानि कि अगर हम ब्रह्माण्ड की बात करें, तो समयशक्ति ने ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को आपस में बांध रखा है। अगर ब्रह्माण्ड अनन्त है, तो समय नियति है और यही नियति प्रत्येक जीव को कुछ ना कुछ करने पर विवश करती रहती है? यही कारण है कि कोई भी जीव भले ही किसी से भी जीत जाये परंतु समय के समक्ष हार जाता है। यही रहस्य जब कुछ जीव जान जाते हैं, तो वह समय को ही अपना दास बनाना चाहते हैं या फिर वह समयशक्ति के माध्यम से भविष्य में झांककर हर युद्ध को जीतना चाहते हैं।”
“तो क्या आज तक कोई जीव समयशक्ति को प्राप्त कर पाया है स्वामी?” पार्वती ने उत्सुकतावश पूछ लिया।
“ब्रह्माण्ड के जन्म को लाखों वर्ष हो चुके हैं देवी और इन लाखों वर्षों में ब्रह्माण्ड के बहुत से जीवों ने समयशक्ति को प्राप्त करने की कोशिश की है। परंतु अभी तक उसे कोई प्राप्त नहीं कर पाया है? लेकिन भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता?” महादेव ने कहा।[adinserter block="1"]

“इसका मतलब कि आप समयशक्ति के माध्यम से ही भविष्य की घटनाओं के बारे में पहले से ही जान जाते हैं।” पार्वती ने बुलबुले से नीचे की ओर देखते हुए कहा।
पार्वती की बात सुनकर महादेव ने हुंकारी भरकर अपनी सहमति जताई।
“तो फिर क्या आप समयशक्ति के माध्यम से यह बता सकते हैं स्वामी, कि नीचे घूम रहे उस मूसक के साथ आने वाले समय में क्या होने वाला है?” पार्वती ने नीचे जमीन पर घूम रहे एक चूहे की ओर इशारा करते हुए महादेव से पूछा।
पार्वती की उंगली का इशारा देख महादेव ने उस चूहे की ओर देखा, जो कि धरा पर तेज गति से दौड़ रहा था।
“इस मूसक की मृत्यु एक प्रहर (3 घंटे) के पश्चात्, इस स्थान से 50 योजन (400 किलोमीटर) दूर होने वाली है।” महादेव ने कहा।
“यह कैसे संभव है स्वामी?” पार्वती ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा- “यह मूसक मात्र एक प्रहर में इतनी दूरी कैसे तय कर सकता है?”
पर इससे पहले कि महादेव, देवी पार्वती से कुछ कह पाते कि तभी उनके बुलबुले के पास से एक सुनहरा बाज तीव्र गति से नीचे की ओर जाता हुआ दिखाई दिया।
उस सुनहरे बाज की गति बहुत तेज थी।
देखते ही देखते उस बाज ने जमीन पर घूम रहे उस चूहे को पकड़ा और उसे अपने पंजों में पकड़कर आसमान की ओर उड़ गया।
यह देख महादेव ने देवी पार्वती की ओर देखते हुए कहा- “मुझे नहीं लगता देवी, कि अब आपके मस्तिष्क में समयशक्ति को लेकर किसी भी प्रकार का कोई संशय बचा है?”
महादेव की बात सुनकर पार्वती ने धीरे से अपने सिर को हिला दिया, परंतु अब वह तेजी से कुछ सोचने लगीं थीं।
कुछ देर सोचने के बाद पार्वती फिर से बोल उठीं- “मैं उस समयशक्ति का अनुभव स्वयं से करना चाहती हूं स्वामी। मैं जानना चाहती हूं कि वह समयशक्ति किस प्रकार से भविष्य में घटने वाली घटना को दिखाती है?”
पार्वती की बात सुन महादेव सोच में पड़ गये।
उन्हें सोच में पड़ा देख पार्वती एक बार फिर बोल उठीं- “आप व्यर्थ ही चिंता कर रहे हैं स्वामी। मैं उस समयशक्ति का सिर्फ एक बार उपयोग करके देखना चाहती हूं। उसके बाद मैं कभी भी उसका उपयोग नहीं करुंगी।”[adinserter block="1"]

“ठीक है देवी।” महादेव ने पार्वती के सामने अपने हथियार डालते हुए कहा- “परंतु इसके लिये हमें कहीं धरातल पर उतरना होगा? नहीं तो आपको समयशक्ति देते समय, उस समयशक्ति की ऊर्जा से यह बुलबुला नष्ट भी हो सकता है।”
“नीचे देखिये स्वामी, इस समय हम एक सुरम्य घाटी से होकर गुजर रहे हैं। इस घाटी में हजारों गुलाब के पुष्प भी लगे हैं और इस घाटी में कोई भी मनुष्य दिखाई नहीं दे रहा। ऐसे में समयशक्ति के प्रयोग के लिये इससे उचित स्थान नहीं मिलेगा।”
पार्वती के कथनों को सुन महादेव ने अपनी दृष्टि उस रंगों से भरी घाटी पर मारी और दिव्य बुलबुले को नीचे उतारना शुरु कर दिया।
कुछ ही देर के अंदर महादेव और देवी पार्वती उस घाटी के मध्य खड़े थे।
वह घाटी चारो ओर से पर्वतों से घिरी हुई थी और वहां पर हजारों सुर्ख गुलाब के फूल लगे दिखाई दे रहे थे।
पर्वतों से घिरे होने के कारण उस स्थान पर हवा का प्रवाह कुछ ज्यादा ही था? जिसके कारण सभी फूलों के पेड़ तेजी से हवा में डोल रहे थे।
महादेव ने पार्वती की ओर देखा और बोल उठे- “अब आपको कुछ समय के लिये अपनी आँखें बंद करनी होंगी देवी। मैं आपकी बंद आँखों में कुछ समय के लिये समयशक्ति को भर दूंगा, जिसके माध्यम से आप भविष्य की घटनाओं को अपनी बंद आँखों से देख सकेंगी। परंतु यह ध्यान रहे कि जब तक मैं ना कहूं, आपको अपनी आँखों को खोलना नहीं है, अन्यथा वह बहुमूल्य समयशक्ति वातावरण में बिखरकर व्यर्थ हो जायेगी।”
“जी स्वामी।” यह कहकर देवी पार्वती ने अपने कमल के समान नयनों को बंद कर लिया और किसी अद्भुत घटना के घटने की प्रतीक्षा करने लगीं?
देवी पार्वती को अपनी आँखें बंद करते देख, महादेव ने भी अपनी दोनों आँखों को बंद कर लिया और समयशक्ति का आहवान करने लगे।
अब महादेव के ललाट पर एक विचित्र नीली रोशनी दिखाई देने लगी। कुछ देर के बाद महादेव के तीसरे नेत्र से एक नीले रंग की ऊर्जा निकली और देवी पार्वती की दोनों बंद आँखों में प्रवेश कर गई।
देवी पार्वती के शरीर को एक हल्का सा झटका लगा, परंतु अब उन्हें भविष्य में घटने वाली घटनाएं साफ-साफ दिखाई देने लगीं।
देवी पार्वती को दिखाई देने वाली घटनाएं गणेश और कार्तिकेय पर आधारित थीं।[adinserter block="1"]

देवी पार्वती इस अद्भुत दृश्य को अनवरत् अपनी आँखों में समाहित कर रहीं थीं कि तभी एक तेज हवा का झोंका आया और उस हवा के झोंके में एक गुलाब की पंखुड़ी अपनी कली से टूटकर हवा में उड़ चली।
चूंकि महादेव और देवी पार्वती दोनों की ही आँखें इस समय बंद थीं, इसलिये दोनों में से किसी ने भी इस अद्भुत घटना को नहीं देखा?
वह पंखुड़ी हवा में उड़ती हुई देवी पार्वती की ओर उड़ चली।
देवी पार्वती अपने परिवार के सुंदर भविष्य को अपनी बंद आँखों से निहार रहीं थीं कि तभी हवा में उड़ती वह पंखुड़ी, देवी पार्वती की दाहिनी आँख पर आकर चिपक गई।
वैसे तो वह पंखुड़ी बहुत ही कोमल थी, पर इस विचित्र अनुभूति को महसूस कर एक पल के लिये देवी पार्वती, महादेव के वचनों को भूल गईं और उन्होंने घबराकर अपनी दोनों आँखें खोल दीं।
देवी पार्वती के आँखों के खोलते ही, वह पंखुड़ी वापस हवा में उड़कर देवी पार्वती के चेहरे के सामने एक क्षण के लिये आ गई और यही वह समय था, जब पार्वती की आँखों से निकली समयशक्ति की नीली ऊर्जा एक साथ उस पंखुड़ी पर जा गिरी।
नीली ऊर्जा के गिरते ही वह पंखुड़ी हवा में उसी स्थान पर बिल्कुल जम सी गई। कुछ ही देर में पूरी नीली ऊर्जा उस पंखुड़ी में समाहित हो गई और देवी पार्वती हतप्रभ सी खड़ी उस विचित्र दृश्य को निहारती ही रह गईं।
तभी महादेव ने भी अपनी आँखें खोल दीं और पार्वती के सामने हवा में ठहरी उस गुलाब की पंखुड़ी को देखने लगे।
अब उस पंखुड़ी के सुर्ख रंगों के मध्य कभी-कभी नीली ऊर्जा चमकती हुई दिखाई दे रही थी। यह देख देवी पार्वती दौड़कर महादेव के पास आ गईं और उनके समक्ष हाथ जोड़कर बैठ गईं।
“मुझे क्षमा कर दीजिये स्वामी, मेरी एक छोटी सी गलती के कारण आपकी समयशक्ति नष्ट हो गई। अब आप इस ब्रह्माण्ड का नियंत्रण कैसे करेंगे?”
परंतु आशा के विपरीत महादेव मुस्कुराए और उन्होंने पार्वती को उठाते हुए कहा- “आप अकारण ही चिंता व्यक्त कर रहीं है देवी। शायद यही सब नियति में लिखा था और वैसे भी समयशक्ति अभी नष्ट नहीं हुई है, उसने बस अपने रहने का स्थान परिवर्तित कर लिया है।”
महादेव के शब्द सुन देवी पार्वती ने उस दिशा की ओर देखा, जहां पर अभी भी वह पंखुड़ी हवा में ठहरी हुई थी।
“यह पंखुड़ी हवा में किस प्रकार ठहरी है स्वामी? क्या समयशक्ति अभी भी इस पंखुड़ी में सुरक्षित है?” पार्वती के चेहरे पर आश्चर्य के भाव दिख रहे थे।
“इसके बारे में तो हमें भी कुछ नहीं पता देवी? हम भी आपकी ही भांति भविष्य से बिल्कुल अपरिचित हैं।” महादेव के चेहरे की मुस्कान लगातार उनके होठों पर बनी थी।
तभी हवा में ठहरी उस पंखुड़ी के अंदर से अनेकों पंखुड़ियों ने निकलना शुरु कर दिया।
महादेव और देवी पार्वती इस अद्भुत दृश्य को निहार रहे थे। ये बात अलग थी कि दोनों के चेहरे के भाव अलग-अलग थे। जहां एक ओर देवी पार्वती के चेहरे पर आश्चर्य विद्यमान था, वहीं दूसरी ओर महादेव अभी भी अपने स्थान पर शांति से खड़े थे।
उधर पंखुड़ियों का निकलना निरंतर चल रहा था।[adinserter block="1"]

देखते ही देखते उन सभी पंखुड़ियों ने एक लड़की की आकृति धारण कर ली। तभी उस पहली पंखुड़ी से वही नीली ऊर्जा निकली और उन सभी पंखुड़ियों के चारो ओर चक्कर लगाने लगी।
नीली ऊर्जा के ऐसा करते ही वह सभी पंखुड़ियां पूर्णरुप से एक खूबसूरत सी लड़की में परिवर्तित हो गईं।
उस अद्भुत लड़की का रंग किसी नवनिर्मित गुलाब की कली के समान प्रतीत हो रहा था। यहां तक कि उसके वस्त्र भी गुलाब के रंग के समान ही थे। उसके सिर के बालों में भी बीच-बीच में पंखुड़ियां चिपकी हुई थीं। उसकी आँखें नीली और बाल बिल्कुल काले थे।
उस अद्भुत कन्या ने दूर खड़े महादेव और देवी पार्वती की ओर देखा और फिर उनकी ओर चल दी। पास पहुंचकर उसने दोनों को ही झुककर प्रणाम किया।
“सृष्टिकर्ता महादेव और आदिशक्ति देवी पार्वती को प्रणाम। .... हे देवी पार्वती मैं आप दोनों की ही सम्मिलित शक्तियों से उत्पन्न हुई हूं, इसलिये कृपा करके मेरा नामकरण करें।”
उस अद्भुत कन्या के वचनों को सुन, अब देवी पार्वती थोड़ा संयत दिखाई देने लगीं थीं।
“तुम एक अद्भुत घटना के कारण उत्पन्न हुई हो, इसलिये मैं आज से तुम्हारा नाम भार्गवी रखती हूं। यह नाम मेरे ही नाम का द्योतक है, इसलिये यह नाम सदैव तुम्हें मेरा स्मरण कराता रहेगा।” पार्वती ने भार्गवी के सिर पर अपना हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हुए कहा।
अब भार्गवी, महादेव से आशीर्वाद लेने के लिये उनकी ओर घूमी।
“ठहरो भार्गवी!” महादेव ने भार्गवी को देखते हुए कहा- “तुम्हारा जन्म समयशक्ति के कारण हुआ है, जिसकी वजह से समयशक्ति तुम्हारे अंदर प्रवेश कर चुकी है। ऐसी स्थिति में मैं तुम्हें आशीर्वाद तो दे सकता हूं, परंतु तुम्हें अपनी इच्छा से कहीं जाने की आज्ञा नहीं दे सकता? क्योंकि तुम्हारे पास एक ऐसी शक्ति है, जो सदैव शक्तिधारकों को तुम्हारी ओर आकर्षित करेगी और वह तुम्हारे माध्यम से सृष्टि के संतुलन को अव्यस्थित कर सकते हैं। इसलिये मैं चाहूंगा कि तुम सदैव हमारे सानिध्य में रहो।”
“यह आप क्या कह रहे हैं महादेव, मैं तो अपनी शक्तियों के माध्यम से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को देखने की इच्छा रखती हूं। मैं स्वछंद बनना चाहती हूं, जिस पर किसी भी प्रकार की कोई बाध्यता ना रहे? मैं विवाह की इच्छा रखती हूं, जिससे मैं अपनी शक्तियों का स्रोत अपने बच्चों के साथ भी बांट सकूं। ऐसे में मैं आपकी बात भला क्यों सुनूं? आप मेरे जन्मदाता अवश्य हैं, परंतु आप मुझे मेरे जीवन के लिये बाध्य नहीं कर सकते।” महादेव के शब्द सुन, भार्गवी ने विचलित होते हुए कहा।
“मैं मानता हूं कि पवन के प्रवाह के कारण तुममें थोड़ी चंचलता है, समयशक्ति के प्रभाव के कारण तुममें थोड़ी धृष्टता है और गुलाब की पंखुड़ियों के कारण तुममें थोड़ी कोमलता है। यही तीन शक्तियां तुम्हें किसी दूसरे के नियंत्रण में नहीं होने देना चाहतीं हैं? पर अभी तुममें समझ नहीं है, इसलिये यदि तुम स्वयं के मार्ग पर चलोगी, तो तुम निश्चित ही गलत मार्ग का चयन कर सकती हो। इसलिये मैं तुम्हें मात्र 3 वर्ष तक अपना जीवन जीने की आज्ञा देता हूं, परंतु उसके पश्चात् तुम्हें त्रिदेवों के बताये मार्ग पर ही चलना होगा। यही नियति है और यही शास्वत् सत्य है।”
इतना कहकर महादेव ने आश्चर्यचकित खड़ी देवी पार्वती का हाथ पकड़ा और वहां से अंतर्ध्यान हो गये।
भार्गवी हतप्रभ सी उस स्थान पर खड़ी रही, परंतु उसके कानों में अभी भी महादेव के कहे शब्द गूंज रहे थे।
भार्गवी जानती थी कि महादेव के शब्द अटल हैं, अतः वह व्यर्थ का समय ना नष्ट करते हुए, उसी स्थान पर बैठ गई और समयशक्ति के प्रभाव से अपने ही भविष्य को देखने लगी।
न जाने अब भविष्य में क्या होने वाला था? पर जो भी था भार्गवी के चेहरे की मुस्कान उसे हर पल बयां कर रही थी। शायद भार्गवी के भविष्य में कुछ ऐसा था? जो उसे कुछ पलों के लिये ही सही परंतु आनन्दित कर रहा था?
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पिछली पुस्तक का सारांश
हैलो दोस्तों,
यह पुस्तक ‘रिंग ऑफ अटलांटिस’ सीरीज की सातवीं और आखिरी पुस्तक है। क्या आपने इस पुस्तक को पढ़ने के पहले इसके पिछले 6 भागों को पढ़ा है? अगर नहीं .... तो इस पुस्तक का पूर्ण आनन्द उठाने के लिये कृपया इसके पिछले सभी निम्न भागों को अवश्य पढ़ लें-
1) सन राइजिंग - एक रहस्यमय जहाज
2) अटलांटिस - एक रहस्यमय द्वीप
3) मायावन - एक रहस्यमय जंगल
4) तिलिस्मा - अविश्वसनीय मायाजाल
5) देवशक्ति - अद्भुत दिव्यास्त्र
6) काला मोती - ब्रह्मकण शक्ति
अगर आप किसी कारणवश पिछली पुस्तकों को नहीं पढ़ना चाहते तो आइये इन सभी पुस्तकों के सारांश को पढ़कर उन पुस्तकों की यादों को ताजा कर लें-
शैफाली एक 13 वर्षीय अंधी लड़की है, जो अपने माता-पिता के साथ सन राइजिंग नामक पानी के जहाज पर यात्रा करती है। अंधी होने के बावजूद भी शैफाली को अजीब-अजीब से सपने आते हैं। सन राइजिंग पर और भी बहुत से लोग सफर कर रहे होते हैं।
क्रिस्टी का ऐलेक्स को इग्नोर करना, जेनिथ का तौफीक से अपने प्यार का इजहार करना और जैक व जॉनी का आपस में शर्त लगाना, कुछ ऐसी ही घटनाओं के साथ सन राइजिंग पर न्यू इयर की रात लॉरेन नामक एक डान्सर का कत्ल हो जाता है। अभी लॉरेन के कत्ल की गुत्थी सुलझ भी नहीं पाई थी कि तभी सन राइजिंग के चालक दल की गलती की वजह से सन राइजिंग अपना रास्ता भटककर बारामूडा त्रिकोण के क्षेत्र में फंस जाता है। सन राइजिंग का सम्पर्क अब बाहरी दुनिया से पूर्णतया कट चुका था।
उड़नतश्तरी और विशाल भंवर से बचने के बाद जहाज के असिस्टेंट कैप्टेन रोजर का हेलीकॉप्टर भी एक अंजाने द्वीप को देखते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। उधर सुयश के कपड़े पर एक ब्लू व्हेल, पानी उछालकर भिगो देती है, जिससे ब्रैंडन को सुयश की पीठ पर बना एक सुनहरे रंग का सूर्य का टैटू दिख जाता है।
उसी रात शैफाली के सोते समय, कोई उसके सिर के पास प्राचीन लुप्त शहर अटलांटिस का, सोने का सिक्का रख जाता है। बाद में हरे रंग के विचित्र कीड़े को देखते हुए जहाज पर कुछ अजीब सी घटनाएं भी घटती हैं, जिसके बाद सन राइजिंग के स्टोर रुम में रखी लॉरेन की लाश कहीं गायब हो जाती है? उधर न्यूयार्क बंदरगाह पर राबर्ट और स्मिथ के पास एक व्यक्ति आकर स्वयं को सन राइजिंग का सेकेण्ड असिस्टेंट कैप्टेन असलम बताता है। वह कहता है कि कोई उसे बेहोश कर उसकी जगह लेकर सन राइजिंग पर चला गया है? जिसके बाद इस केस को हल करने के लिये जेरार्ड, सी.आई.ए के काबिल एजेंट व्योम को इस मिशन पर भेज देता है।
उधर सुयश को बार-बार वही रहस्यमयी द्वीप दिखाई देता है और जब उस द्वीप का रहस्य जानने के लिये लारा उस द्वीप की ओर जाता है, तो वह भी रहस्यमय परिस्थितियों में अपनी जान गंवा बैठता है। दूसरी ओर व्योम सन राइजिंग को ढूंढते हुए, उसी रहस्यमय द्वीप के पास पहुंच जाता है, पर उस द्वीप का रहस्य जानने में व्योम भी दुर्घटना का शिकार हो जाता है।
उधर रात में लोथार को सन राइजिंग पर मरी हुई लॉरेन दिखाई देती है, जिसे देखकर लोथार अजीब सी हरकतें करते हुए समुद्र में कूद जाता है। सभी की लाख कोशिशों के बाद भी लोथार भी मारा जाता है। तभी सभी को पानी पर दौड़ता हुआ एक सुनहरा मानव दिखाई देता है, जो कि एक दिशा की ओर इशारा करके गायब हो जाता है। अगले दिन ऐमू नामक एक रहस्यमय तोता फिर से जहाज को भटका देता है। उधर अंजान कातिल, लॉरेन की हत्या का रहस्य जान चुके लैब असिस्टेंट थॉमस को भी मार देता है।
अगले दिन सन राइजिंग एक भयानक तूफान के बीच फंस जाता है और सभी की लाख कोशिशों के बाद भी वह समुद्र में डूब जाता है। किसी प्रकार 12 लोग बचकर उस रहस्यमय द्वीप पर पहुंच जाते हैं।[adinserter block="1"]

उस रहस्यमय द्वीप पर एक भयानक जंगल होता है, जो अलग-अलग प्रकार के खतरे उत्पन्न करता रहता है। शैफाली को विचित्र पेड़ का फल देना, जेनिथ के ऊपर मगरमच्छ मानव का हमला करना, भविष्य के पत्थरों का मिलना और फिर ड्रेजलर का अजगर के द्वारा मारा जाना, यह सभी उस जंगल को रहस्यमई और खतरनाक दोनों ही बना रहे थे।
वहीं दूसरी ओर वेगा पर एक रहस्यमय बाज हमला कर देता है, जिससे डर कर वेगा का भाई युगाका वेगा को एक जोडियाक वॉच देता है, जिसमें 12 राशियों की शक्तियां थीं, जो वेगा को मुसीबत के समय छिप कर उसे बचातीं।
दूसरी ओर अंटार्कटिका की धरती पर जेम्स और विल्मर को बर्फ की खुदाई के दौरान एक विचित्र दुनिया दिखाई देती है। कुछ अजीब से तिलिस्मी रास्तों को पार करने के बाद, जेम्स और विल्मर वहां मौजूद देवी शलाका और उनके 7 भाईयों को जगा देते हैं, जो कि 5000 वर्ष से वहां शीतनिद्रा में सो रहे थे।
उधर जंगल में नयनतारा पेड़ के द्वारा जन्म से अंधी शैफाली की आँखें आ जाती हैं। जंगल में आगे बढ़ने पर सभी को शलाका मंदिर दिखाई देता है, जहां पर सुयश एक छोटे से तिलिस्म को पार कर, देवी शलाका की मूर्ति को छू लेता है। तभी सुयश के शरीर पर बने टैटू से सतरंगी किरणें आकर टकराती हैं और सुयश के टैटू में एक अंजानी शक्ति प्रवेश कर जाती है।
उधर जब रोजर का हेलीकॉप्टर धुंध में फंसकर अराका द्वीप पर गिरता है तो रोजर को पायलेट की लाश, एक शेर ले जाता दिखाई देता है, शेर का पीछा करने पर रोजर एक लड़की आकृति से मिलता है। आकृति का चेहरा देवी शलाका से मिलता है। आकृति रोजर को अराका के कई रहस्यों के बारे में बताती है?
उधर सुयश को एक आदमखोर पेड़ पकड़ लेता है, पर सुयश अपने टैटू में समाई विचित्र शक्ति से इस मुसीबत से बच जाता है। दूसरी ओर कुछ दिन पहले आकृति रोजर को सुनहरा मानव बनाकर सन राइजिंग को भटकाने के लिये भेजती है। रास्ते में रोजर पानी में बेहोश हुए व्योम को बचाकर अराका द्वीप के किनारे रख देता है।
बाद में सुयश एक अंजान खंडहर में मिले सिंहासन की वजह से समय के चक्र को तोड़ 5020 वर्ष पहले के काल में हिमालय पर पहुच जाता है। हिमालय पर उसे अपनी ही शक्ल का एक इंसान आर्यन दिखाई देता है जो शलाका और अन्य 11 लोगों के साथ एक रहस्यमयी विद्यालय ‘वेदालय’ में पढ़ रहा होता है। वहां सुयश को 15 अद्भुत लोक के बारे में पता चलता है।
वहीं दूसरी ओर लुफासा, मकोटा के आदेशानुसार अपनी इच्छाधारी शक्ति का प्रयोग कर, हर रोज सन राइजिंग से एक लाश लाकर पिरामिड में रखता है, परंतु एक दिन जब वह पिरामिड में जाकर देखता है तो उसे पिरामिड के अंदर अंधेरे का देवता जैगन बेहोश पड़ा दिखाई देता है।
उधर ब्रूनो के गायब होने के बाद सुयश की टीम का सामना एक जंगली सुअर से होता है, जिसकी वजह से असलम एक दलदल में गिर कर मारा जाता है, परंतु मरने से पहले अपना काला बैग सुयश को दे जाता है। असलम के काले बैग में एक लॉकेट होता है, जो स्वतः ही जेनिथ के गले में बंध जाता है।
उधर अगले दिन वेगा पर टुंड्रा हंस और बुल शार्क हमला करती है। लेकिन वेगा के हाथ में बंधी जोडियाक वॉच वेगा की रक्षा करती है। दूसरी ओर व्योम एक व्हेल का पीछा करता हुआ, उस द्वीप के एक ऐसे अंजान हिस्से में पहुंच जाता है जहां एक कम्प्यूटर प्रोग्राम कैस्पर द्वारा एक तिलिस्म का निर्माण हो रहा होता है। व्योम उस कमरे में रखी एक ट्रांसमिट मशीन से ट्रंासमिट होकर सामरा द्वीप के अंदर पहुंच जाता है।[adinserter block="1"]

उधर जंगल में युगाका ऐलेक्स को बेहोश करके ऐलेक्स बनकर, सुयश की टीम में शामिल हो जाता है। पर शैफाली युगाका को पहचान जाती है और वह युगाका से, कुछ क्षणों के लिये उसकी वृक्ष शक्ति छीन लेती है। दूसरी ओर देवी शलाका के कमरे में बंद जेम्स को दीवार में एक रहस्यमयी द्वार दिखाई देता है। जेम्स उस द्वार के माध्यम से हिमालय पहुंच जाता है, जहां हनुका व्योम को पकड़कर हिमलोक के कारागार में डाल देता है। उधर व्योम ट्रांसमिट होकर सामरा द्वीप में उपस्थित महावृक्ष के पास पहुंच जाता है। दूसरी ओर कलाट, युगाका को लेकर समुद्र के अंदर मौजूद अटलांटिस की धरती पर जाता है। जहां पर सागरिका एक पहेली के माध्यम से कलाट को एक संदेश देती है।
उधर जॉनी एक जलपरी की मूर्ति से निकलती शराब को पीकर बंदर में परिवर्तित हो जाता है और उछलकर जंगलों में भाग जाता है। रात में वहां सोते समय मेडूसा की मूर्ति सजीव होकर शैफाली को एक महाशक्ति मैग्ना के सपने दिखाती है, जिसमें मैग्ना एक ड्रैंगो पर सवार होकर, समुद्र की तली में मौजूद, एक स्वर्ण महल से, तिलिस्म तोड़कर एक शक्तिशाली पंचशूल प्राप्त करती है। उसी रात जेनिथ को नक्षत्रा के द्वारा तौफीक की सच्चाई के बारे में पता चलता है।
इधर शलाका जेम्स को ढूंढने के लिये हिमालय पर पहुंचती है, पर रुद्राक्ष और शिवन्या, शलाका को एक दिन के लिये वहीं रोक लेते हैं। दूसरी ओर जंगल में एक भौंरा विशालकाय चक्रवात का रुप लेकर ब्रैंडन को अपने में लपेटकर हवा में गायब हो जाता है। उधर लुफासा मकोटा के आदेशानुसार हिमालय पर मौजूद एक शिव मंदिर से ‘गुरुत्व शक्ति’ लाने के लिये जाता है। लुफासा गरुण का रुप धरकर हिमालय से गुरुत्व शक्ति ले जाने में सफल हो जाता है।
रुद्राक्ष और शिवन्या के परेशान होने पर गुरु नीमा महाशक्तिशाली हनुका को लुफासा से गुरुत्व शक्ति छीनकर लाने को कहते हैं। महाबली हनुका व लुफासा के मध्य युद्ध होता है, परंतु उस युद्ध के फलस्वरुप गुरुत्व शक्ति की डिबिया अराका द्वीप में गिर जाती है।
दूसरी ओर अलबर्ट की सूझबूझ से सभी घास के मैदान में लगी आग को पार करते हैं, पर आखिर में क्रिस्टी, जैक को उस आग में धक्का देकर मार देती है। आगे बढ़ने पर सुयश की टीम पर एक स्पाइनासोरस आक्रमण कर देता है। यहां जेनिथ नक्षत्रा की शक्तियों का प्रयोग कर उस स्पाइनासोरस को मार देती है।
उधर व्योम को रिंजो-शिंजो के माध्यम से एक झील के अंदर रखा हुआ पंचशूल दिखाई देता है, जिसे छूने के बाद व्योम का पूरा शरीर जल जाता है। व्योम मरणासन्न हालत में झील के बाहर गिरता है। तभी आसमान से गुरुत्व शक्ति की आखिरी बूंद व्योम के मुंह में आकर गिर जाती है, गुरुत्व शक्ति के माध्यम से व्योम ठीक होकर उस पंचशूल को भी प्राप्त कर लेता है। पंचशूल को उठाने के बाद व्योम की कलाई पर एक सुनहरे रंग का सूर्य का टैटू बन जाता है।[adinserter block="1"]

उधर वेगा पर बारी-बारी से एक ईल मछली, काला नाग व खतरनाक सांड हमला करते हैं, परंतु इस हमले में धरा बेहोश हो जाती है। वेगा, मयूर और धरा को अपने घर ले जाता है।
दूसरी ओर अलबर्ट को एक उड़ने वाला टेरोसोर लेकर उड़ जाता है। उधर ऐलेक्स एक पेड़ के कोटर से होते हुए, 20 फुट गहरे कमरे में गिर जाता है। जहां पर उसे एक 3 सिर वाला सर्प विषाका, बेवकूफ बनाकर अपनी मणि और सुनहरी बोतल लेकर भाग जाता है। दूसरी ओर क्रिस्टी अपनी फूर्ति और तेज दिमाग से रेत मानव को खत्म कर देती है। उधर व्योम विचित्र परिस्थितयों में त्रिकाली को बचाते हुए मकोटा के सेवक गोंजालो को बुरी तरह से घायल कर देता है। जिससे त्रिकाली व्योम की शक्तियां पर मोहित हो उससे रक्षासूत्र बंधवा कर शादी कर लेती है।
दूसरी ओर सुयश की टीम मैग्नार्क द्वार को पार करके रेड आंट के क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं, जहां पर खून की बारिश होती है, पर जेनिथ की वजह से यह मुसीबत भी पार हो जाती है।
उधर रुपकुण्ड झील के रास्ते कलिका, यक्ष युवान के प्रश्नों का उत्तर देते हुए प्रकाश शक्ति को प्राप्त कर लेती है। दूसरी ओर त्रिशाल भी मानसरोवर झील के अंदर से होकर शक्तिलोक पहुंच जाता है, जहां एक-एक कर वह भगवान विष्णु के 5 अस्त्रों की सहायता से एक मायाजाल को पार करके ध्वनि शक्ति प्राप्त कर लेता है।
दूसरी ओर कैस्पर, मैग्ना को याद करते हुए कैस्पर क्लाउड में बने श्वेत महल आ जाता है। जहां पर उसकी मुलाकात विक्रम और वारुणी से होती है। कैस्पर, श्वेत महल का नियंत्रण वारुणि के हाथ में दे देता है।
उधर सुयश सहित सभी बर्फ की घाटी में पहुंच जाते हैं, जहां एक छोटे से पेंग्विन की मदद से शैफाली को एक सीप के अंदर मैग्ना की ड्रेस मिलती है। दूसरी ओर सुयश की टीम पर एक बर्फ का ड्रैगन हमला कर देता है। जेनिथ एक बार फिर से नक्षत्रा की शक्ति का उपयोग करके उस बर्फ के ड्रैगन को हरा देती है।
वहीं दूसरी ओर वेगा, वीनस से अपने प्यार का इजहार करता है कि तभी उल्का पिंड गिरने की वजह से, भूकंप का एक जोरदार झटका आता है। धरा और मयूर, वेगा और वीनस से विदा ले उल्का पिंड के पीछे चले जाते हैं।[adinserter block="1"]

उधर तौफीक को रात में पेड़ की कोटर में मौजूद ‘वेदान्त रहस्यम’ नामक एक पुस्तक मिलती है। जिसमें सुयश को, अष्टकोण में बंद एक नन्हा बालक दिखाई देता है। बाद में शलाका बताती है कि वेदान्त रहस्यम आर्यन ने ही लिखी थी। आगे बढ़ने पर सभी एक ज्वालामुखी के जाल में फंस जाते हैं। जहां शैफाली को एक ड्रैगन का सोने का सिर मिलता है। शैफाली के आँसुओं से वह ड्रैगन का सिर पिघलकर, ज्वालामुखी के लावे में मिल जाता है।
उधर आकृति लैडन नदी के किनारे जाकर एक सुनहरी हिरनी का अपहरण कर लेती है, जो कि देवी आर्टेमिस को सबसे प्रिय थी। वहां उसे लैडन नदी में सोया हुआ मैग्ना का ड्रैंगो भी दिखाई देता है। उधर त्रिशाल और कलिका दोनों मिलकर, राक्षस कालबाहु को पकड़ने राक्षसलोक जाते हैं, पर वहां उन्हें विद्युम्ना अपने मायाजाल भ्रमन्तिका में फंसा देती है, परंतु भ्रमन्तिका में फंसने के पहले त्रिशाल और कलिका वहां रावण की मूर्ति में मौजूद एक स्त्री के कंकाल को अपनी शक्तियों से मुक्ति दे देते हैं।
दूसरी ओर ऐलेक्स को स्थेनो बताती है कि शैफाली ही पिछले जन्म में मैग्ना थी। वह कहती है कि विषाका जो बोतल लेकर भागा था, वह मैग्ना की स्मृतियां थीं। स्थेनो, ऐलेक्स को माया का दिया हुआ वशीन्द्रिय शक्ति का घोल पिलाकर नागलोक में स्थित त्रिआयाम में भेज देती है। जहां ऐलेक्स नागफनी और राक्षस प्रमाली को त्रिआयाम से मैग्ना की स्मृतियां लाने में सफल हो जाता है।
उधर सुयश और उसकी टीम एक खोखले पहाड़ में फंस जाते हैं। उस खोखले पहाड़ में हेफेस्टस और हरमीस की मूर्तियां लगी होती हैं। यहां भी एक प्रकार का तिलिस्म होता है, जिसे सभी मिलकर अपने दिमाग से पार कर लेते हैं। आगे बढ़ने पर सुयश को एक नन्हे खरगोश के माध्यम से एक अंगूठी मिलती है, जो कि शैफाली के हाथ में बिल्कुल फिट हो जाती है।
उधर व्योम के सामने उसकी और त्रिकाली की शादी का राज खुल जाता है। वहां कलाट व्योम और त्रिकाली को त्रिशाल व कलिका को छुड़ाने के लिये भ्रमन्तिका में जाने को कहता है। वहीं दूसरी ओर ऐलेक्स, सुयश की टीम के पास वापस पहुंचने में कामयाब हो जाता है। वह मैग्ना की स्मृतियां बोतल से निकाल शैफाली को दे देता है, जिससे शैफाली को पूर्वजन्म की सारी बातें याद आ जाती हैं। दूसरी ओर वारुणी कैस्पर को एक विचित्र जीव को दिखाती है। कैस्पर बताता है कि पृथ्वी पर कोई बड़ा संकट आने वाला है?[adinserter block="1"]

दूसरी ओर सुयश की टीम को एक नहर मिलती है, जिसे पार करना अत्यंत ही मुश्किल था, पर सभी के सम्मिलित प्रयास से वह नहर के जलकवच को पार कर लेते हैं। उधर शलाका, विल्मर को सुनहरी ढाल दे देती है, परंतु बदले में वह विल्मर की उस स्थान की स्मृति छीन लेती है। वहीं दूसरी ओर आकृति की कैद में बंद, रोजर को सनूरा छुड़ा देती है। रोजर भागते समय, मेलाइट व सुर्वया को भी छुड़ा ले जाता है। उधर सुयश अपनी टीम के साथ उड़ने वाली झोपड़ी के तिलिस्म को तोड़ सभी को ले तिलिस्मा में प्रवेश कर जाता है। जहां कैश्वर सभी को एक नीलकमल की पहली पंखुड़ी तोड़ने के लिये कहता है। सभी के सम्मिलित प्रयास से वह तिलिस्मा के पहले द्वार को पार कर जाते हैं।
दूसरी ओर फेरोना ग्रह कमांडर प्रीटेक्स, राजा एलान्का को बताता है कि उसने युवराज ओरस को पृथ्वी पर देख लिया है और उसे प्राप्त करने के लिये, उसने एण्ड्रोवर्स पावर को भेज दिया है।

हमने देवयुद्ध: महासंग्राम गाथा / Devayuddha : Mahasangram Gatha PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 9 MB है और कुल पेजों की संख्या 354 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक   शिवेन्द्र सूर्यवंशी / Shivendra Suryavanshi   हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ देवयुद्ध: महासंग्राम गाथा / Devayuddha : Mahasangram Gatha को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।
Q. देवयुद्ध: महासंग्राम गाथा / Devayuddha : Mahasangram Gatha किताब के लेखक कौन है?
Answer.   शिवेन्द्र सूर्यवंशी / Shivendra Suryavanshi  
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