भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , डॉ० भीमराव अम्बेडकर / Dr. Br Ambedkar, all Hindi PDF Books Download Free, भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani Summary, भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani book Review
पुस्तक का विवरण (Description of Book भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani PDF Download) :-
नाम : | भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani Book PDF Download |
लेखक : | डॉ० भीमराव अम्बेडकर / Dr. Br Ambedkar , क्रिस्तोंफ़ जाफ़लो / Christophe Jaffrelot |
आकार : | 2.5 MB |
कुल पृष्ठ : | 223 |
श्रेणी : | दलित साहित्य / Dalit Sahitya, जीवनी / Biography |
भाषा : | हिंदी | Hindi |
Download Link | Working |
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भीमराव आंबेडकर हिन्दुओँ में पहले दलित या निम्न जाति नेता थे जिन्होंने पश्चिम जाकर पीएच-डी. जैसे सर्वोच्च स्तर तक की औपचारिक शिक्षा हासिल की थी । अपनी इस अभूतपूर्व उपलब्धि के बाबजूद वह अपनी जड़ो से जुड़े रहे और तमाम उम्र दलित अधिकारों के लिए लड़ते रहे । भारत के सबसे प्रखर और अग्रणी दलित नेता के रूप में आंबेडकर का स्थान निर्विवाद है । निम्न जातियों को एक अलग औपचारिक और कानूनी पहचान दिलाने के लिए आंबेडकर सालों तक भारत के स्वर्ण हिन्दू वर्चस्त्र वाले समूचे राजनीति प्रतिष्ठान से अकेल लोहा लेते रहे । स्वतंत्र भारत की पहली केन्द्र सरकार में आंबेडकर को कानून मंत्री और संविधान का प्रारूप तैयार करनेवाली समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया । इन पदों पर रहते हुए उन्हें भारतीय राजनय पर गांधीवादी प्रभावों पर अंकुश लगाने में उल्लेखनीय सफलता मिली । क्रिस्तोफ़ जाफ़लो ने उनके जीवन को समझने के लिए तीन सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला है : एक समाज वैज्ञानिक के रूप में आंबेडकर; एक राजनेता और राजनीतिज्ञ के रूप में आंबेडकर; तथा स्वर्ण हिन्दुत्व के विरोधी एवं बौद्धधर्म के एक अनुयायी व प्रचारक के रूप मे आंबेडकर
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पुस्तक का कुछ अंश ( भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani PDF Download)
आंबेडकर जिस महार जाति में पैदा हुए वह माँग (रस्सी बनाने वालों) और चम्भर (चमड़े का काम करने वालों) के बीच पड़ने वाली एक अछूत जाति थी। इस जाति को जो काम करने को दिए जाते थे उनके कारण उन्हें छिटपुट व्यावसायिक कामों की छूट भी मिल जाती थी। ख़ैर, इन सब बातों का फ़ायदा उठाते हुए महार अस्पृश्यों का नेतृत्व धीरे-धीरे अपने हाथों में लेते गए। इसके पीछे आंशिक रूप से उनकी संख्या का भी हाथ था। 1931 में बॉम्बे प्रेज़िडेंसी में अस्पृश्यों की कुल आबादी में से 68.9 प्रतिशत महार ही थे जबकि चम्भरों की आबादी 16.2 प्रतिशत और माँगों की आबादी 14.9 प्रतिशत थी। पूरी आबादी में उनकी संख्या मराठों (20.2 प्रतिशत) से कम मगर ब्राह्मणों (4.4 प्रतिशत) से बहुत ज़्यादा थी। बलूतेदारी व्यवस्था में प्रचलित श्रम विभाजन के तहत उनकी भूमिका ख़ालिस घाटे की भी नहीं थी : महार ऐसे काम भी करते थे जिनकी वजह से उन्हें ऊँची जातियों के सम्पर्क में आने और इस तरह कुछ अलग तरह की ज़िम्मेदारियाँ निभाने का मौक़ा मिल जाता था। इससे भी अहम बात ये रही कि पेशवा की सेना में अपनी पुरानी मौजूदगी का फ़ायदा उठाते हुए महार ब्रिटिश सेना में भी बड़ी संख्या में भर्ती हुए। फलस्वरूप, बहुत सारे महारों के लिए छावनियों में रहना भी सामाजिक गतिशीलता का एक बढ़िया साधन साबित हुआ। किसी ख़ास पेशे में दक्षता या विशेषज्ञता न होने के चलते महार गाँव छोड़ने वालों में भी सबसे आगे रहे। फलस्वरूप, शहरों में और आधुनिकता के सम्पर्क में भी सबसे पहले वही आए।
महार भक्ति आन्दोलन के ऐतिहासिक महत्त्व से भी बहुत गहरे तौर पर प्रभावित थे। महाराष्ट्र में यह आन्दोलन महान कवि तुकाराम के नेतृत्व में सत्रहवीं शताब्दी में अपने शिखर पर पहुँच गया था। भक्ति परम्परा ने न केवल ब्राह्मणों द्वारा तय किए गए अनुष्ठानों बल्कि स्वयं ब्राह्मणों से भी दूर रहते हुए केवल ईश्वर भक्ति के माध्यम से मोक्ष का सन्देश दिया। भक्ति परम्परा के अनुयायी ईश्वर के समक्ष मनुष्यों की समानता का सन्देश देते रहे हैं। वे जातिगत ऊँच-नीच को चुनौती देते हैं, भक्ति सम्प्रदायों और फलस्वरूप, समतापरक मूल्यों को अपनाने वाले पन्थों व सम्प्रदायों के विकास को बढ़ावा देते हैं।
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महाराष्ट्र में बहुत सारे महार तेरहवीं शताब्दी में शुरू हुए महानुभव पन्थ से भी जुड़े रहे हैं। हिन्दू धर्म के कर्ताधर्ताओं ने इस पन्थ का बहिष्कार कर दिया था क्योंकि यह पन्थ जातिगत भेदों को नहीं मानता था। इस पन्थ से जुड़ाव की बदौलत कुछ महार अपने अलग अनुष्ठान और विश्वास क़ायम करने में कामयाब हुए। 2 मगर, भक्ति आन्दोलन महारों को जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़ बग़ावत के लिए प्रेरित करने की बजाय उन्हें अस्तित्व की सामाजिक परिस्थितियों को समाप्त करके जाति व्यवस्था को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता था : ब्राह्मण उत्पीड़न की इतनी हाय-तौबा ही क्यों जबकि अस्तित्व का मुख्य उद्देश्य ही है इस जगत के परे मिलने वाले जीवन में मोक्ष प्राप्त करना। महार जाति में जन्मे कवि चोखामेला भी तेरहवीं शताब्दी के एक मुख्य व्यक्ति थे जिन्होंने अपने शानदार दोहों में इस तर्क के बेहतरीन उदाहरण दिए हैं। 3 आंबेडकर को न केवल यह समृद्ध विरासत मिली थी बल्कि वह अपना मुक्तिकामी सन्देश रचने में भी कामयाब रहे।
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डाउनलोड लिंक (भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani PDF Download) नीचे दिए गए हैं
हमने भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए Google Drive की link नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 2.5 MB है और कुल पेजों की संख्या 223 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक डॉ० भीमराव अम्बेडकर / Dr. Br Ambedkar, हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ भीमराव आंबेडकर एक जीवनी | Bhimrao Ambedkar Ek Jeevani की PDF को जरूर शेयर करेंगे।
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