जिस प्रकार धनुष से निकला हुआ बाण वापस नहीं आता, उसी प्रकार मुँह से निकली बात भी वापस नहीं आती, इसलिए हमें कुछ भी बोलने से पहले सोच-समझकर बोलना चाहिए।
भाषण देना, व्याख्यान देना अपनी बात को कलात्मक और प्रभावशाली ढंग से कहने का तरीका है। इसमें अपने भावों को आत्मविश्वास के साथ नपे-तुले शब्दों में कहने की दक्षता प्राप्त कर व्यक्ति ओजस्वी वक्ता हो सकता है। हाथों को नचाकर, मुखमुद्रा बनाकर ऊँचे स्वर में अपनी बात कहना मात्र भाषण-कला नहीं है। भाषण ऐसा हो, जो श्रोता को सम्मोहित कर ले और वह पूरा भाषण सुने बिना सभा के बीच से उठे नहीं।
यह पुस्तक सिखाती है कि वहीं तक बोलना जारी रखें, जहाँ तक सत्य का संचित कोष आपके पास है। धीर-गंभीर और मृदु वाक्य बोलना एक कला है, जो संस्कार और अभ्यास से स्वतः ही आती है
प्रस्तुत पुस्तक में वाक्-चातुर्य की परंपरा की छटा को नयनाभिराम बनाते हुए कुछ विलक्षण घटनाओं का भी समावेश किया गया है, जो कहने और सुनने के बीच एक मजबूत सेतु का काम करती हैं। विद्यार्थी, परीक्षार्थी, साक्षात्कार की तैयारी करनेवाले तथा श्रेष्ठ वाक्-कौशल प्राप्त करने के लिए एक पठनीय पुस्तक।
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अनुक्रम
अपनी बात
1. अच्छे वक्ता के गुण
2. भाषण के महत्त्वपूर्ण घटक
3. अच्छा वक्ता : अच्छा श्रोता
4. भाषण की विषय-वस्तु
5. भाषा पर अधिकार
6. अच्छे वक्ता तनाव से बचें
7. बॉडी लैंग्वेज
8. श्रोताओं की जिज्ञासा की कद्र करें
9. भाषण में रोचकता का समावेश
10. भाषण-कला का नियमित अभ्यास
11. वाणी-दोष से बचें
12. अच्छा वक्ता : अच्छा समीक्षक
13. वक्ता बनाम भाष्यकार
14. दिमाग से सक्रियता, दिल से संतुलन
15. भाव-भंगिमा और तन्मयता
16. अध्ययन, मनन और चिंतन
17. सार्थक संवाद-संप्रेषण
18. भाषण और जन-संपर्क
19. शब्दों की अमोघ शक्ति को पहचानें
20. कमजोर पड़ती भाषण कला
21. अमेरिका की बहनो और भाइयो! —स्वामी विवेकानंद (1863-1902)
22. स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है —बाल गंगाधर तिलक (1856-1920)
23. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा — सुभाषचंद्र बोस (1897-1945)
24. नियति से मुलाकात – जवाहरलाल नेहरू (1889-1964)
25. लाहौर में – अटल बिहारी वाजपेयी
26. जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए — अब्राहम लिंकन
27. क्षमा-याचना – गैलीलियो गैलिली
28. मेरा आदर्श – नेल्सन मंडेला
29. मेरा सपना —मार्टिन लूथर किंग जूनियर
30. मैं लोकतंत्र के आदर्शों का पैरोकार हूँ —अल्बर्ट आइंस्टीन