पुस्तक का विवरण (Description of Book of भारत में असोक - राज | Bhaarat Mein Asok - Raaj PDF Download) :-
नाम 📖 | भारत में असोक - राज | Bhaarat Mein Asok - Raaj PDF Download |
लेखक 🖊️ | राजेन्द्र प्रसाद सिंह / Rajendra Prasad Singh |
आकार | 1.4 MB |
कुल पृष्ठ | 53 |
भाषा | Hindi |
श्रेणी | इतिहास, भारत |
Download Link 📥 | Working |
भूमिका
भारत में असोक - राज नामक यह पुस्तक विश्व के महान सम्राट असोक के जीवन तथा उपलब्धियों को केंद्र बनाकर लिखी गई है। पुस्तक में असोक तथा असोक - राज के बारे में जानकारी देने के लिए मुख्यतः उनके ही अभिलेखों को आधार बनाया गया है। कारण कि असोक पर लिखे साहित्य में बड़े पैमाने पर मिलावट है।
असोक - राज वस्तुतः भारत का स्वर्णकाल था। इसी काल में प्राचीन भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य स्थापित हुआ। एक भाषा और लिपि से जबरदस्त राष्ट्रीय एकता कायम हुई। इसी काल में धम्म की धमक पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण - पूर्व यूरोप से लेकर दक्षिण के राज्यों तक सरसरा कर पहुँच गई थी। राज्य भी अहिंसक हो सकता है, इसकी मिसाल विश्व इतिहास में असोक - राज ने साबित कर दिया।
बुध और असोक भारत की शांति - संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक हैं। असोक - राज में दोनों प्रतीकों का ऐसा मणिकांचन संयोग हुआ कि भारत का गौरव बाईस सौ साल बाद भी धूमिल नहीं हो सका।
राजेंद्र प्रसाद सिंह
असोक जयंती, 2021
गाँधी नगर, सासाराम
[adinserter block="1"]
पुस्तक का कुछ अंश
असोक और उनका परिवार
विश्व इतिहास में सिकंदर, सीजर, नेपोलियन जैसे विजेता हुए, मगर किसी को भी इतिहास में वह स्थान प्राप्त नहीं है जो सम्राट असोक को प्राप्त है। एक ऐसा सम्राट, जिन्होंने तलवार का त्याग विजित होने पर नहीं बल्कि विजेता होने पर किया। एच. जी. वेल्स ने लिखा कि इतिहास में वर्णित हजारों राजाओं और महाराजाओं के बीच देवानंपिय असोक का नाम एक चमकदार नक्षत्र की भाँति अकेला चमक रहा है। वोल्गा से लेकर जापान तक आज भी उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है। चीन, तिब्बत तथा भारत भी उनके बड़प्पन का बखान करते हैं।
असोक के जमाने में वर्ण - व्यवस्था नहीं थी। तब गण - व्यवस्था थी। मगर इतिहासकार असोक को कभी क्षत्रिय तो कभी शूद्र बताए जाने की खोज में लगे रहते हैं और निरर्थक इतिहास के पन्ने खर्च करते हैं। जो वर्ण - व्यवस्था सम्राट असोक के समय में नहीं थी, उसे खोजने की कोशिश जातिवादी मानसिकता का द्योतक है। तब गण - व्यवस्था थी और असोक मोरिय गण से आते थे। मगर इतिहासकार पुराणों को आधार बनाकर उन्हें शूद्र बनाने पर तुले हुए हैं।
मोरिय राजवंश की उत्पत्ति में इतिहासकार विष्णु पुराण और विष्णु पुराण की टीका का भरपूर इस्तेमाल करते हैं तथा उनके साक्ष्य से साबित करते हैं कि असोक का राजवंश शूद्र था। वे यह मानकर चलते हैं कि विष्णु पुराण काफी प्राचीन है, इसीलिए इसका सबूत भी मजबूत है। मगर विष्णु पुराण की टीका की बात छोड़िए, खुद विष्णु पुराण में कैंकिल राजाओं ( 4.54.55 ) का वर्णन है और इन कैंकिल राजाओं ने आंध्र देश पर 500 ई. से 900 ई. तक राज्य किए थे। जाहिर है कि विष्णु पुराण असोक के सैकड़ों साल बाद में लिखी गई किताब है, फिर तो विष्णु पुराण की टीका की बात ही मत चलाइए।
सम्राट असोक की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके जीवन की दास्तान संस्कृत, पालि, तिब्बती, चीनी, बर्मी, सिंहल, थाई, लाओ और खोतानी जैसे अनेक भाषा - ग्रंथ अपने - अपने ढंग से सुनाते हैं। कोई उनकी माँ का नाम सुभद्रांगी तो कोई धम्मा बताता है। उसी प्रकार असोक की पत्नी का नाम अलग - अलग ग्रंथों में अलग - अलग मिलता है। कहीं देवी तो कहीं पद्मावती तो और कहीं तिष्यरक्षिता मिलता है। मगर असोक की रानी के अभिलेख में उनकी पत्नी का नाम कालुवाकि मिलता है जो तीवल की माँ थी। हमारे यहाँ तिष्यरक्षिता को लेकर अनेक साहित्य रचे गए, लेकिन कालुवाकि को लेकर साहित्य में कोई हलचल नहीं है, जबकि कालुवाकि का ही पुरातात्विक सबूत हमारे पास है। चूँकि कालुवाकि नाम आर्यमूलक नहीं है। इसकी सजा कालुवाकि को साहित्य - बाहर कर दी गई ।
दुर्भाग्यवश असोक के अभिलेख उनके जीवन की प्रारंभिक घटनाओं के विषय में मौन हैं। अतः असोक के जीवन की प्रारंभिक घटनाओं को जानने के लिए हमें साहित्यिक स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। मगर ये साहित्यिक स्रोत असोक के बारे में एक - दूसरे से भिन्न जानकारियाँ उपलब्ध कराते हैं, जिससे सही तथ्य का पता लगाना कठिन हो जाता है।
असोकेतर अभिलेखों से असोक के परिवार के कुछेक सदस्यों का पता चलता है। श्री लंका के एक मामूली स्तूप के एक मामूली पत्थर पर, जो अम्पारा जिले के RAJAGALA में स्थित है, इसका प्रमाण मिला है कि महिंद थेर श्री लंका गए थे। धम्म लिपि और सिंहली भाषा में लिखा है कि यह स्तूप इदिका ( इथ्थिया ) थेर और महिंद थेर का है, जो इस भूमि के उज्ज्वल भविष्य के लिए यहाँ आए थे। ( चित्र 1)[adinserter block="1"]
लेकिन थेर महिंद श्री लंका जाने के पहले पटना में कहाँ रहते थे, इसकी जाँच लाॅरेंस वाडेल ने 19 वीं सदी के आखिरी दशक में की है। उन्होंने अपनी पुस्तक " डिस्कवरी आॅफ दी इग्जैक्ट साइट आॅफ असोकाज क्लासिक कैपिटल आॅफ पाटलिपुत्र " ( 1892 ) में बताया है कि पटना में जो भिखना पहाड़ी नामक मुहल्ला है, वहीं एक कृत्रिम पहाड़ी पर महिंद थेर रहते थे। भिखना पहाड़ी मुहल्ला का नाम भिखना कुँवर के नाम पर पड़ा है और भिखना कुँवर वास्तव में भिक्खु कुमार महिंद थे। जब लाॅरेंस वाडेल पटना में जाँच के लिए पहुँचे थे, तब भिखना पहाड़ी पर भिखना कुँवर की पूजा होती थी। पटना का जो महेंद्रू घाट है, वह भी महिंद थेर की स्मृति कराता है।
मध्य प्रदेश के सिहोर जिले में पानगुरारिया बौद्ध विहार है। पानगुरारिया में दो शिलालेख और एक यष्टि लेख मौजूद हैं। इनकी भाषा प्राकृत और लिपि ब्राह्मी ( धम्म लिपि) है। यष्टि लेख पर असोक की बेटी संघमित्ता द्वारा दान दिए जाने का विवरण अंकित है, जिससे संघमित्ता की पुरातात्विक ऐतिहासिकता पुष्ट होती है। ( चित्र 2 )
यहाँ मौजूद असोक के शिलालेख पर जो प्रमुख बात लिखी है, वह यह कि राजा, जो पियदसि नाम से जाने जाते थे, एक बार उपुनीथ विहार में तब यात्रा की, जब राजकुमार सम्व को मानेम देश की प्रशासनिक जिम्मेवारी थी। शिलालेख में लिखा है कि " पियदसिनामराजा कुमार सम्व मानेम देसे उपुनीथ विहार याताया "। कुमार सम्व संभवतः असोक के परिवार के जान पड़ते हैं और मानेम देश सिहोर का इलाका रहा होगा। असोक के शिलालेखों से पता चलता है कि राज परिवार के लोग जगह - जगह पर पदस्थापित थे।
सम्राट असोक की एक बेटी चारुवती थी। वह नेपाल के राजकुमार देवपाल खत्तिय से ब्याही गई थी। पति - पत्नी दोनों बुधमार्गी थे। काठमांडू से सटे चाबहिल में चारुवती का स्तूप है। इसे आम तौर पर " धन्दो चैत्य " कहा जाता है। लेकिन यह स्तूप चारुवती का ही है, इसका सटीक प्रमाण उपलब्ध नहीं था। साल 2003 में इस स्तूप का मरम्मत- कार्य हो रहा था। तब 8.6 किलोग्राम की एक ईंट मिली। ईंट पर लिखा था - " चारुवती थूप " अर्थात यह चारुवती का स्तूप है। लिखावट के ऊपर धम्म - चक्क बना है। चारुवती के जीवन के आखिरी दिन यहीं बीते थे। फिलहाल यह ईंट नेशनल म्यूजियम, छाउनी ( नेपाल ) में रखी है। ( चित्र 3 )
हमें असोक विषयक साहित्यिक दास्तानों के प्रति सजग रहने की जरूरत है, क्योंकि अनेक बौद्ध लेखकों ने असोक का जो जीवनचरित लिखा है, वह कल्पनाओं से खाली नहीं है। मिसाल के तौर पर, दीपवंश तथा महावंश में जिक्र आता है कि असोक ने 99 भाइयों की हत्या की, जबकि अनेक साहित्यिक और पुरातात्विक सबूत इसके खिलाफ हैं। राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है कि असोक ने एक लेख में ( शिलालेख 5 ) अपने और अपने भाइयों के रनिवासों ( ओरोधन ) का, और अपनी बहनों के निवास कक्षों का उल्लेख किया है जो पाटलिपुत्र में भी थे ( हिद पाटलिपुते च ) और बाहर के नगरों में भी थे ( बहिरेसु च नगरेसु )। असोक ने इन रनिवासों की देखभाल के लिए धर्म महामात्र नामक विशेष पदाधिकारी नियुक्त किए थे।
फाहियान ने भी अपने यात्रा - वृत्तान्त में लिखा है कि राजा असोक का एक छोटा भाई था। अर्हत पद प्राप्त कर वह गृध्रकूट पर्वत पर रहता था। एकांत और शांत स्थान में मग्न रहता था। राजा दिल की गहराइयों से उसका सम्मान करता था। इस प्रकार सिंहली अनुश्रुतियों पर आधारित असोक द्वारा 99 भाइयों की हत्या की बात को पुरातात्विक और साहित्यिक सबूत खारिज करते हैं। शायद इसीलिए इतिहासकारों ने संभावना व्यक्त की है कि बौद्ध लेखकों ने अपने धर्म की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए असोक के आरंभिक जीवन के विषय में ऐसी अनर्गल बातें गढ़ी हों, ताकि बौद्ध धम्म की महिमा को और भी महिमामंडित किया जा सके।
कोई शक नहीं कि असोक के और भी भाई थे। उत्तराधिकार की लड़ाई भी असंभव नहीं है। मगर 99 भाइयों की हत्या की बात कहावती लगती है। यह गद्दी के लिए हुए कठिन संघर्ष का द्योतक हो सकती है।[adinserter block="1"]
असोक का मूल नाम उनके शिलालेखों में " असोक " मिलता है। असोक का संस्कृत रूप अशोक है। पहली बार रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में असोक का नाम अशोक मौर्य मिलता है। जूनागढ़ अभिलेख दूसरी सदी का है। जूनागढ़ अभिलेख में लिखा है कि सुदर्शन तालाब मौर्य नरेश चंद्रगुप्त के राज्यपाल पुष्यगुप्त ने बनवाया था। अशोक मौर्य के लिए यवनराज तुषास्प ने उसे बड़ी - बड़ी नालियों से युक्त किया था। पुराणों में असोक का नाम अशोकवर्द्धन मिलता है, जो बाद में लिखे गए हैं। असोक के खुद के शिलालेखों ( मास्की, गुजर्रा, नेत्तुर और उडेगोलम ) में उनका नाम " असोक " लिखा मिलता है। इसलिए बात एकदम शीशे की तरह साफ है कि उनका असली नाम असोक था। ( चित्र 4 )
भारत के पुराने इतिहास में आखिरी बार असोक का नाम कुमारदेवी के सारनाथ अभिलेख में मिलता है। यह अभिलेख 12 वीं सदी का है। इसे गहड़वाल वंश की रानी ने लिखवाया है। इस पर असोक का नाम धर्माशोक लिखा है। असोक चूँकि धम्ममार्गी थे। सो उन्हें धर्माशोक कहा गया है।
राजगद्दी पर बैठने के बाद असोक ने सिर्फ एक युद्ध किए, जो कलिंग युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। कलिंग युद्ध को लेकर भारतीय साहित्य में अनेक काव्य और नाटक रचे गए हैं। इस युद्ध में 100000 लोग मारे गए, कई लाख बरबाद हुए और 150000 लोग बंदी बनाए गए। ये आँकड़े खुद असोक के शिलालेख से लिए गए हैं। रामशरण शर्मा ने लिखा है कि ये आँकड़े अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। कारण कि असोक के अभिलेखों में सतसहस्र शब्द का प्रयोग कहावती तौर पर किया गया है। जो भी हो, इससे प्रतीत होता है कि इस युद्ध में हुए भारी नरसंहार से असोक का हृदय दहल गया। युद्ध की इस भीषणता का असोक पर गंभीर प्रभाव हुआ और उन्होंने युद्ध की नीति को त्याग दिए तथा रण - विजय की जगह पर धम्म - विजय को अपनाए।
असोक के दादा चंद्रगुप्त मोरिय और पिता बिंदुसार थे। असोक के दादा चंद्रगुप्त मोरिय ने आज से कोई ढाई हजार साल पहले पश्चिमोत्तर भारत की उस वैज्ञानिक सीमा को प्राप्त कर लिए थे, जिसको छूने के लिए आधुनिक काल में अंग्रेज व्यर्थ की आहें भरते रहे। बिंदुसार ने इस महान साम्राज्य को बचाए रखा। असोक ने उसे और विस्तार दिए। असोक ने 14 वें शिलालेख में स्वयं कहा है कि मेरा साम्राज्य सुविस्तृत ( महालके हि विजितं ) है। असोक के साम्राज्य की सीमाएँ कहाँ से कहाँ तक विस्तृत थीं, इसका पता हमें विभिन्न स्थानों से प्राप्त उनके ही अभिलेखों से चलता है। दूसरे किसी सबूत की जरूरत नहीं है। असोक का साम्राज्य उत्तर - पश्चिम में हिंदूकुश से पूरब में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत था। कलिंग और सौराष्ट्र पर भी उनका अधिकार था। प्राचीन भारत का कोई सम्राट इतने विस्तृत भू - खंड का स्वामी नहीं था।
डाउनलोड लिंक (भारत में असोक - राज | Bhaarat Mein Asok - Raaj PDF Download) नीचे दिए गए हैं :-
हमने भारत में असोक - राज | Bhaarat Mein Asok - Raaj PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 1.4 MB है और कुल पेजों की संख्या 53 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक राजेन्द्र प्रसाद सिंह / Rajendra Prasad Singh हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ भारत में असोक - राज | Bhaarat Mein Asok - Raaj को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।Answer. राजेन्द्र प्रसाद सिंह / Rajendra Prasad Singh
_____________________________________________________________________________________________
आप इस किताब को 5 Stars में कितने Star देंगे? कृपया नीचे Rating देकर अपनी पसंद/नापसंदगी ज़ाहिर करें।साथ ही कमेंट करके जरूर बताएँ कि आपको यह किताब कैसी लगी?