बैरिकेड / Barricade PDF Download Free Hindi Book by Abhishek Singh

पुस्तक का विवरण (Description of Book of बैरिकेड / Barricade PDF Download) :-

नाम 📖बैरिकेड / Barricade PDF Download
लेखक 🖊️   अभिषेक सिंह / Abhishek Singh  
आकार 2.6 MB
कुल पृष्ठ101
भाषाHindi
श्रेणी,
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‘बैरिकेड’ इन दिनों सबसे ज़्यादा चर्चित उपन्यास है, जिसने हिन्दी साहित्य में प्री-बुकिंग के सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। बैरिकेड कहानी है भारत के मिडिल क्लास के सपनों की। अभिषेक सिंह ने बैरिकेड की कहानी कुछ ऐसी गढ़ी है, जिससे कि कथानक कई शहरों से होकर गुज़रता है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, इलाहाबाद, सिवान, जौनपुर, बनारस, लखनऊ, दिल्ली और रायपुर सारे शहर एक-एक कर ज़िन्दा हो उठते हैं। “बी. एच. यू., बिरला और बवाल” से गुज़रते हुए पाठक रोमाँच के एक ऐसे सफ़र पर निकल चुका होता है, जहाँ से उसे वापस लौटने का मन ही नहीं करता। कहानी पानी की तरह बहती है और एक ऐसे सफ़र पर निकलती है, जिसमें प्यार, निराशा, भटकाव, दोस्ती, बेफ़िक्री, डर, साहस, रोमाँच, हँसी-ठिठोली, मस्ती, संघर्ष और सफ़तला के सारे रंग हैं। बैरिकेड कहानी है एक ऐसे नायक की, जिसने स्याह दिनों में ज़िन्दगी की हर बाधा, हर बैरिकेड को तोड़ने की तैयारी की, और उजले दिनों की पटकथा लिख डाली।
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पुस्तक का कुछ अंश

समर्पण
ये कृति मेरे पिता जी को समर्पित है । समर्पित है मेरी प्यारी माँ को, मेरी नीरजा को, जो हर समय मेरे साथ खड़ी रही । समर्पित है मेरे छोटे भाईयों ‘चिक्की’ और राहुल को । समर्पित है लाडो को, जो मेरी ज़िन्दगी की जीवन रेखा है । समर्पित है मेरे बच्चे आंजनेय को जो इस थकावट और तनाव भरी नौकरी में मेरा स्ट्रेस-बस्टर है ।
समर्पित है मेरे उन सभी मित्रों को जिन्होंने मेरी ज़िन्दगी में इतना मसाला भरा कि उस मसाले से इस किताब ने जन्म ले लिया । समर्पित है मेरे भोले महादेव को, जिनके आशीर्वाद से मैं कभी रुका नहीं और ज़िन्दगी के हर ‘बैरिकेड’ को छलाँग मार कर पार करता आया हूँ ।
फ़्लैशबैक
माहौल गरम था । फोन पर उधर से आती SP सर की आवाज़ से इतना तो अंदेशा हो ही चला था ।
“जी सर, अभी जा रहा हूँ” अक्षय ने कहा और फ़ोन रख दिया ।
वर्दी, गॉगल्स और चमचमाते जूते पहने, अक्षय अभी थाने की पेट्रोलिंग गाड़ी का इंतज़ार कर ही रहा था, कि तभी साईरन बजाती नीली बत्ती वाली थाने की सूमो उसके घर के सामने आकर खड़ी हो गई । अक्षय समय बिलकुल भी बर्बाद नहीं करना चाहता था । वह तेजी से बाहर निकला, बरामदे से नीचे उतरा और सीधा गाड़ी की तरफ़ बढ़ चला । बाकी पुलिस वालों ने उसे देखते ही सैल्यूट किया । उसने बिना रुके गाड़ी में चढ़ते हुए ही उनको सैल्यूट किया और चलने का इशारा किया । अक्षय का इशारा पाते ही ड्राईवर ने गाड़ी बढ़ा दी ।
अक्षय आज अपनी पहली ड्यूटी पर रवाना हो रहा था । उसे पुलिस अकैडमी से निकले अभी 3-4 दिन ही हुए थे । ये उसकी पहली पोस्टिंग थी, जशपुर जिले में ।
“कैसे ड्यूटी है दुबे जी? सर का फोन आया तो उन्होंने बोला कि आपसे पूछ लूँ” अक्षय ने पीछे पलट कर हवलदार दुबे से पूछा ।[adinserter block="1"]
“साहब ज्यादा कुछ नहीं है । नये नवेले लौंडे हैं । राजनीति चमकाना चाह रहे हैं । हम लोगों को बस उन्हें रोकना है । आप टेंशन मत लीजिये ।” दुबे जी ने पान थूकते हुए कहा ।
दुबे जी रीवां के थे । 30 साल से विभाग में थे, बहुत से DSP, SP देखे थे । उन्होंने हवलदार के बाद कभी प्रोमोशन नहीं लिया । उनका मानना था कि जितने बड़े पद पर जाओ, उतनी अधिक ज़िम्मेदारी । इसलिए प्रोमोशन को तिलांजलि देकर हवालदारी के मज़े ले रहे थे ।
अक्षय उनकी इस बात से सहमत नहीं था । उसे तो “सिंघम” बनना था । ऐसे कैसे कोई उसके रहते ऐसी हिमाकत कर सकता था? थोड़ी देर में वो लोग घोड़ा चौक पहुँचे, जहाँ पहले से ही पुलिस बल मौजूद था ।
सामने रोड के बीचो-बीच बैरिकेड लगा दिया गया था । इस पार पुलिस बल और उस पार 100-150 के आस-पास विद्यार्थी परिषद के लड़के झंडे, बैनर, पोस्टर लिए हुए खड़े किसी बात की माँग कर रहे थे । वो कलेक्टर ऑफिस को घेरने की बात कर रहे थे । अक्षय उन लोगों को बहुत ध्यान से देख रहा था । थोड़ी देर में लड़कों ने नारे लगाने शुरू कर दिए ।
“छात्र एकता ज़िंदाबाद! अब तक जिसका खून ना खौला…खून नहीं वो पानी है! जो देश के काम ना आये…वो बेकार जवानी है!”
अक्षय ने देखा, 5-7 लड़के थे, जो इन सभी को लीड कर रहे थे। उनमें भी एकदो लड़के सबके अगुआ थे । बाक़ी लडके इन्हीं को फ़ॉलो कर रहे थे । इन्हें देखकर ये साफ़ समझ में आ रहा था कि ये सब किसी पार्टी से नहीं थे । कॉलेजों में पढ़ने वाले मिडिल क्लास घरों के सिंपल लड़के थे । उसने देखा कि उनमें से एक थोड़ी देर के लिए बगल की दुकान पर कुछ लेने गया । उसके पीछे एकदो लड़के और भी गए । वो लड़का कुछ लेना चाहता था, शायद बिस्किट या भूख मिटाने के लिए ऐसा ही कुछ । पर बाकी लड़कों के सामने उसने बात बदल दी और बस एक च्यूइंग गम ले के वापस आ गया । अक्षय उसकी मजबूरी समझ गया । उसे बहुत गहरे भीतर कुछ पसीजता सा महसूस हुआ । उसके आगे दुनिया घूमती सी मालूम हुई । वक़्त जैसे अचानक से करवट लेने लगा । उनके नारे, अगल-बगल का शोर, सारा कोलाहल कहीं दूर जाने लगे । बहुत सी पुरानी स्मृतियाँ आँखों के सामने नाचने लगीं । अक्षय ने देखा कि बैरिकेड के उस पार वो उसी लडके की जगह है और लड़कों को लीड कर रहा है । घड़ी की सुईयाँ उलटी दिशा में चलने लगीं । वो समय में और पीछे गिरता जा रहा था । उसने देखा कि वो हॉस्टल से कैसे निकला, कैसे सब इकट्ठे हुए, कैसे यहाँ तक आए...वो और पीछे गया । घंटों पीछे, दिन महीने, सालों पीछे...वो क्लासेज़ बंक कर रहा है, दूसरों की प्रॉक्सी लगा रहा है, खिलखिलाती सी कई छवियाँ आयीं और चली गयीं । अब वो दिल्ली में है...जंतर-मंतर की छवियाँ...रामलीला मैदान...अब लखनऊ में...उसके कानों में कुछ शब्द गूँजे...जाहिल! गंवार!...अब वो बनारस में है...रेलवे ट्रैक पर...वो और पीछे गया । उसने देखा रात का बनारस...लंका पर चाय पीते ख़ुद को...बहुत से दूसरे लड़कों के बीच...बी. एच. यू. में...दिन की कैंटीन की स्मृतियाँ...रात में हॉस्टल के कमरे में...वो और पीछे गया...असलहे ताने कुछ लोग दिखे...और पीछे...जौनपुर और इलाहाबाद की स्मृतियाँ... बंटी... उसके भी पीछे... सिवान...पापा...घर...चित्रांगना...चित्रांगना !!![adinserter block="1"]
अब, वो बैरिकेड के इस पार भी है, और उस पार भी...उसकी पूरी ज़िंदगी उसकी आँखों के सामने चलने लगी, किसी रील की तरह...!
सिवान...पापा...घर...और...!
अक्षय जौनपुर का रहने वाला था और इलाहाबाद के सचदेवा न्यू पी. टी. कॉलेज से अपने बचपन के दोस्त कुंदन और बंटी के साथ मेडिकल की तैयारी कर रहा था । कुंदन ने कुछ दिनों पहले बी.एच.यू. के आर्ट्स फैकल्टी में एडमिशन ले लिया था । पूर्वांचल में ये चलन है कि IIT, मेडिकल की तैयारी करते वक़्त बी. ए., बी. एस. सी. में एडमिशन ले लेते थे, जिससे कि अगर सेलेक्शन नहीं होता तो सिविल्स की तैयारी करेंगे । ख़ुद अक्षय ने भी जौनपुर के टी. डी. कॉलेज में एडमिशन ले लिया था । अटेंडेंस का कोई टेंशन नहीं था, क्योंकि उसके चाचा का लड़का राहुल वहाँ का बड़ा छात्र नेता था । उसकी बहुत चलती थी । बड़े-बड़े प्रोफ़ेसर्स के बीच भी उसकी बड़ी धाक थी, और कॉलेज में प्रोफ़ेसर्स छात्र नेताओं से ज़रा बच के ही रहते थे ।
अक्षय इलाहाबाद से कुछ दिनों के लिए पापा-मम्मी के पास सिवान बिहार में आया था । उसके पिताजी वहीं सी. जे. एम. थे । वो लोग ज्यूडीशियल ऑफ़िसर्स कॉलोनी में रहते थे । सारे ऑफ़िसर्स उसी कॉलोनी में रहते थे । अंग्रेज़ों के ज़माने के बंगला था । बहुत ऊँची-ऊँची छत, उन छतों से लंबे-लंबे लोहे की रॉड से लटकते हुए पँखे, बड़े-बड़े दरवाज़े और उतनी ही बड़ी खिड़कियाँ । खिड़कियों में बड़ी-बड़ी सलाखें रहती थीं । दरवाज़े बंद करने की कुंडियाँ बहुत ही मज़बूत और लम्बी होती थीं । कुंडियों को लगाते वक़्त ऐसा लगता था कि जैसे थ्री नॉट थ्री राइफल को कॉक कर रहे हों ।[adinserter block="1"]
वो सोमवार का दिन था, जब अक्षय बंगले के बरामदे में बैठ कर सुबह-सुबह चाय पीते हुए पेपर पढ़ रहा था । तभी बगल के बंगले से एक बेहद ख़ूबसूरत लड़की बाहर निकली । वो सफ़ेद सलवार और केसरिया कुर्ती पहने, भीगे बालों में, हाथों में पीतल का लोटा लिए, बगल के शिव मंदिर में जल चढ़ाने जा रही थी । उसे देखते ही अक्षय को जैसे सम्मोहन सा हुआ । उसने लड़कियों को आज तक कभी इत्मिनान से नहीं देखा था । पर आज की बात कुछ और थी । ये लड़की बाकी लड़कियों जैसी नहीं थी। ये आँखें झुकाए शिव मंदिर की ओर चली जा रही थी । ऐसा लगता था मानो स्वर्ग से निर्वासित कोई देवी हो । सुबह की रौशनी चेहरे पर गुलाब बन कर फ़ैल गई थी । उसके गुज़र जाने तक अक्षय उसे देखता रहा । ये चित्रांगना थी । पड़ोस में रहने वाले राजेंद्र अंकल की बेटी चित्रांगना!
अक्षय का मन अब पेपर में तनिक भी नहीं लग रहा था । वो तो बस शिव मंदिर की ओर नज़रें गड़ाए बैठा था । काफी देर तक वो चित्रांगना का वहीं इंतज़ार करता रहा । क़रीब बीस मिनट बाद जब चित्रांगना उधर से लौटी, दोनों की नजरें टकरायीं। बस पाँच सेकंड के लिए । चित्रांगना की आँखें बहुत ख़ूबसूरत थीं । अक्षय से नज़रें मिलते ही चित्रांगना ने आँखें नीचे कर लीं ।
अक्षय बेचैन हो उठा । ज़िंदगी में पहली बार उसे ऐसा फ़ील हो रहा था । वो चित्रांगना को जानने के लिए व्याकुल था । चित्रांगना का बंगला उसके बंगले के बगल वाला ही तो था ।
रात को खाते हुए उसने पापा से पूछ ही लिया "ये बगल वाला बंगला किसका है पापा?"
"राजेन्द्र जी हैं। वो भी मजिस्ट्रेट हैं । गाज़ीपुर के रहने वाले हैं ।" पापा ने खाते-खाते बताया ।
"कितने बच्चे हैं उनके?" अक्षय ने अनजाने में पूछा ।
"तीन हैं । दो लड़कियाँ और एक लड़का । लड़का बुढ़ौती में किये हैं राजेन्द्र जी ।" मम्मी ने हँसते हुए कहा । "बड़ी बेटी 11th में पढ़ती है । चित्रांगना नाम है । पढ़ने में बहुत अच्छी है । वैसे पढ़ने में तो तीनों ही बच्चे अच्छे हैं उनके ।" मम्मी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा ।[adinserter block="1"]
उसी समय उसे नाम सुनाई दिया था, पहली बार । रात भर उसे शिव मंदिर जाने वाली चित्रांगना का चेहरा दिखाई देता रहा ।
अगले दिन उसने फिर से बरामदे में अपनी दुकान लगाई और इंतज़ार करने लगा । लेकिन इससे पहले कि कोई शिव मंदिर आता, उधर से एक ऑटो आई, जो उसके घर के सामने खड़ी हुई । उसमें स्कूल के बच्चे बैठे हुए थे । चित्रांगना भी उसी में बैठ गई । वापस जाते वक्त उन दोनों की नज़रें फिर से मिलीं । अक्षय का पूरा दिन उसी ख़ुमारी में बीता ।
वो दिन भर बाहर ही बैठा रहा । वैसे भी ठंडी का मौसम था और इस बार धूप की नर्म गर्माहट उसे भीतर से भी सुकून पहुँचा रही थी । क़रीब 3 बजे ऑटो फिर से आई और चित्रांगना को उसके बंगले पर उतार दिया । दोनों की नज़रें फिर से मिलीं । इस बार चित्रांगना के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट तैर गई । अक्षय को पहली बार ऐसी अच्छी अच्छी वाली फीलिंग आ रही थी ।
ये सिलसिला अगले दो दिनों तक चला । अक्षय का चित्रांगना को ऑटो में जाते हुए देखना और फिर बाहर लॉन में बैठकर उसके लौटने का इंतज़ार करना। अक्षय को यूँ निहारते हुए देख कर चित्रांगना कभी-कभी मुस्कुरा देती थी । वो रोज़ शाम को अपनी मम्मी के साथ टहलती थी और उसके बाद पढ़ने चली जाती थी । उसकी मम्मी भी जौनपुर की ही थीं, इसलिए अक्षय की मम्मी से उसकी बनती थी । चित्रांगना के जाने के बाद अक्षय की मम्मी और चित्रांगना की मम्मी साथ में टहलती थीं ।
एक रोज़ जब अक्षय एच सी वर्मा के सवालों से जूझ रहा था तभी एक ख़ूबसूरत आवाज़ अक्षय के घर में गूंजी "आंटी जी आपको, अंकल को और पूरी फैमिली को आना है"। उसे अंदेशा हुआ कि शायद ये चित्रांगना की आवाज़ है । वो कौतूहल में बाहर निकला ।
बाहर निकलते ही उसने देखा, चित्रांगना उसके घर से निकल रही थी ।[adinserter block="1"]
"ये कौन लड़की है मम्मी?" उसने अनजान होकर पूछा ।
"अरे चित्रांगना! राजेन्द्र जी की लड़की!" मम्मी ने बोला ।
"मैंने कभी ध्यान नहीं दिया । क्या करने आई थी?"
"आज उसका बर्थडे है । इनवाइट करने आई थी।"
"आप लोग चले जाइयेगा । मेरा खाना यहीं बना दीजिएगा ।"
"कैसी बात कर रहे हो? सिर्फ हमारे परिवार को बुलाई है । जान-बूझकर नहीं जाना सही नहीं होगा ।"
"अच्छा ठीक है, चला जाऊँगा । लेकिन खा कर निकल जाऊँगा आप लोगों से पहले ।"
"जैसा तुम ठीक समझो । वैसे भी कल तुम्हें इलाहाबाद वापस जाना है ।"
शाम को सभी तैयार होकर बगल वाले बंगले में राजेंद्र जी के घर पहुँचे । अक्षय आज अच्छे से तैयार हुआ था । बालवाल अच्छे से झाड़ कर, डियो-शियो छिड़क कर । उनके घर की बेल बजाते ही चित्रांगना ने दरवाज़ा खोला, जैसे वो पहले से ही तैयार बैठ कर इंतजार कर रही हो ।
आज उसने जीन्स-टॉप पहना था । ब्लैक जीन्स और ऊपर वाइट कलर का कढ़ाईदार टॉप था । बाल खुले-खुले और माथे पर टीका लगा हुआ था ।
“हैप्पी बर्थडे बेटा” अक्षय की मम्मी ने उससे बोला ।
“सेम टू यू आंटी” उसने बड़े जोश में तुरन्त जवाब दिया ।
“सेम टू यू! कौन ऐसे जवाब देता है अपने बर्थडे पर? कोई न्यू ईयर विश थोड़ी न किया जा रहा है” अक्षय ने सोचा ।
"सॉरी-सॉरी आंटी, ज्यादा एक्साइटमेंन्ट में बोल गयी" उसने झेंपते हुए कहा ।[adinserter block="1"]
सभी ठहाका मार कर हँस पड़े । दोनों की फिर नज़रें मिलीं । अब तक अक्षय के पापा-मम्मी दरवाज़े से अन्दर जा चुके थे । अब सिर्फ़ वो दोनों ही दरवाज़े पर खड़े थे ।
“हैप्पी बर्थडे चित्रांगना” अक्षय हाथ बढ़ा कर बोला ।
“थैंक यू सो मच” चित्रांगना मुस्कुराते हुए हाथ मिला कर बोली ।
अक्षय को जिस चीज़ का डर था, वो नहीं हुआ । उसे डर था कि कहीं चित्रांगना उसे भैया ना बोल दे । क्योंकि दोनों बगल में रहते थे । संबंध अच्छे थे दोनों परिवारों में । अक्षय उम्र में उससे 3 साल बड़ा भी था और पूर्वांचल की परंपरा भी थी, हर किसी को भैया चेंपने की, चाहे वो रिक्शेवाला ही क्यों न हो ।
“वैसे इतना बड़ा नाम लेने की ज़रूरत नहीं है आपको । मेरे घर का नाम मीठी है ।" चित्रांगना ने प्यारी सी स्माइल देते हुए कहा ।
"हाँ, हो भी तो मीठी सी ।” अक्षय ने धीरे से बोला और अन्दर चला गया । जाते-जाते उसे चित्रांगना के चेहरे पर वो लाज देखने को मिली जिसकी उम्मीद उसने की थी । उसके गाल सुर्ख लाल हो गए थे, वो सुन कर ।
केक काटने के बाद सभी अपने ग्रुप्स में बिज़ी हो गए । बड़े एक तरफ़ और बच्चे एक तरफ़ । अक्षय दोनों में ही फिट नहीं बैठ रहा था, मगर वो बच्चों के ही साथ बैठा रहा । चित्रांगना की छोटी बहन थी वर्तिका । नौंवी में थी । बड़ी क्यूट और चंचल सी । उसने अक्षय को बच्चों वाले रूम में बुला लिया । अक्षय उन सभी से बातें करने लगा । वैसे भी चित्रांगना सबको केक और पानी परोस रही थी । एक दो मज़ेदार चुटकुलों के बाद अक्षय तुरन्त उसका भैया बन गया और दोनों खूब ठहाके मारने लगे । थोड़ी देर बाद चित्रांगना केक लेकर आई और बैठ कर दोनों की बातें सुनने लगीं ।
“पूरी पीरियाडिक टेबल याद है तुम्हें मीठी?” अक्षय ने अचानक से चित्रांगना की ओर मुड़ते हुए पूछा ।
“हाँ एक दो एलिमेंट भूल जाती हूँ, मगर एक बार रिवीज़न कर लूँ तो याद रहता है ।" चित्रांगना ने कहा ।
“मैं एक ट्रिक सिखाता हूँ । उससे तुम कभी भूलोगी नहीं जिंदगी में ।" अक्षय ने बोला और कविता की तरह कोचिंग में सिखाया हुआ तरीका उसे बता दिया ।
“अरे गज़ब! इससे तो कभी भूलूँगी ही नहीं। कहाँ से सीखा?”[adinserter block="1"]
“मैंने खुद बनाया है । तुम्हें कभी कोई डाउट हो तो मुझसे पूछ लिया करना ।”
"आप तो कल जा रहे हैं । अंकल-आंटी बात कर रहे थे, तो मैंने सुना ।” दुखी से चेहरा बना कर चित्रांगना ने कहा ।
“तुम बोलो तो तुम्हारे लिए रुक जाऊँ ।” अक्षय ने मुस्कुराते हुए कहा ।
इस तरह की बातें उससे किसी ने नहीं की थीं आज तक । उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था । चित्रांगना को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था । वो बस मुस्कुरा रही थी ।
अब खाना खाने की बारी थी । अक्षय ने खाना भी चित्रांगना और वर्तिका के साथ खाया । वह चित्रांगना को बीचबीच में कभी फिजिक्स, कभी केमिस्ट्री, कभी बायो के ज्ञान से तो कभी अपने सेंस ऑफ ह्यूमर से इम्प्रेस करते जा रहा था ।
"अब चलना है मिस्टर । कल शाम को ट्रेन भी है आपकी ।" मम्मी ने हँसते हुए अक्षय से कहा ।
"मम्मी आप लोग चलिए । मैं बस दस मिनट में आया ।"
अब चित्रांगना के रूम में चित्रांगना, वर्तिका के साथ चित्रांगना कि मम्मी भी थीं । वो बहुत ध्यान से देख सुन रही थीं अक्षय को । थोड़ी देर बाद अक्षय जाने को हुआ तो चित्रांगना उसे दरवाज़े तक छोड़ने आयी ।
"विश यू ए वेरी हैप्पी बर्थडे वन्स अगेन ।" अक्षय ने हाथ मिलाते हुए कहा ।
"मत जाइए इलाहाबाद ।" चित्रांगना ने हाथ मिलाते हुए कहा ।
अक्षय की तो सांस वहीं की वहीं रुक गयी । धड़कन थम गई । आँख और मुँह खुले के खुले रह गए । उसे अपने सुने पर यकीन ही नहीं हो रहा था ।
चित्रांगना भी बोलने के बाद शर्मा गयी । उसके गुलाबी गाल और भी अधिक गुलाबी हो उठे । अब दोनों ने एक दूसरे को बस इशारे में बाय किया और फ़िर चित्रांगना ने दरवाज़ा बंद कर लिया ।
वो रात तो बस ख्यालों में ही कटी उसकी । वो पूरी रात शाम को हुई हर चीज़ को, एक-एक पल को याद करता रहा और मुस्कुराता रहा । सुबह फिर से उसी बरामदे में उसका अड्डा जमा । फिर से ऑटो आयी और चित्रांगना को लेकर उसके सामने से जाने लगी । इस बार भी नज़रें मिलीं, मगर इस बार उसने मुस्कुरा कर बाय भी किया ।
शाम को जब चित्रांगना का ऑटो आया तो अक्षय बरामदे में नहीं था । चित्रांगना ने अक्षय को उस बरामदे में न पाकर वर्तिका को भेज कर बहाने से पता किया, तो उसे पता चला कि अक्षय तो इलाहाबाद जा चुका था । चित्रांगना दुखी हो गई । उसने अक्षय को मना किया था, मगर अक्षय फिर भी नहीं रुका ।
फिर से इलाहाबाद[adinserter block="1"]
अक्षय वापस इलाहाबाद पहुँच चुका था । स्टेशन पर बंटी उसकी बाइक के साथ खड़ा था । बाइक तो अक्षय की थी, लेकिन उसकी हर चीज़ पर पहला हक बंटी का था । मोहल्ले में तो कोई जानता भी नहीं था कि बाइक अक्षय की है । अक्षय के कपड़े भी वही पहले वही पहनता था, और लोग सोचते थे, कि अक्षय बंटी के कपड़े पहनता था । दोनों के बीच कोई हाथ मिलाने और गले मिलने की फॉर्मेलिटी नहीं थी ।
“बैठोगे भोसड़ी के?” बंटी ने बाइक पर बैठते ही कहा ।
“स्टार्ट कर लो बुजरो वाले पहले।”अक्षय ने ताना मारा ।
दोनों पहले अल्लापुर में अपने पान वाले अड्डे पर पहुँचे, जहाँ उनके बिना बोले पान वाले ने उनकी ओर दो नेवी कट बढ़ा दी ।
“इस बार बहुत दिन रुक गए बिहार । तुम्हारा तो मन नहीं लगता था वहाँ मेंरे सिवा?” बंटी ने सिगरेट जलाते हुए कहा ।
“फिर जा रहा हूँ । इस बार फ़ाइनली ।” अक्षय बिना बंटी से आँख मिलाए बोला ।
"क्या हो गया? अंकल-आंटी नाराज़ हैं क्या पढ़ाई को लेकर? या फिर तेरी सिगरेट पकड़ी गयी?” बंटी ने आश्चर्यचकित होकर कहा ।
"तेरे भाई को प्यार हो प्यार हो गया है बे!" अक्षय ने शर्माते हुए कहा ।
"अरे वाह मेरी जान! खा लो मीठा पान । कौन है? कैसी हैं भौजी? क्या नाम है? फोटो-शोटो दिखाओ ।" बंटी की खुशी छिप ही नहीं रही थी।
"घर चल सब बताऊँगा डिटेल में"अक्षय ने उसे शांत करते हुए कहा ।
दोनों एक साथ बाइक पर बैठे तभी बंटी ने पीछे मुड़ कर कहा “चल तेरे प्यार होने से एक डाउट तो क्लियर हो गया”।
“कैसा डाउट?”
“यही कि तू गे नहीं है साले” ठहाका लगाए हुए बंटी ने कहा ।
“भोसड़ी के” पीछे से उसके बाल नोचते हुए अक्षय भी हँस कर बोला ।
बंटी गाड़ी लहराते हुए जा रहा था कि क्रासिंग के पास पुलिस वाले खड़े थे और गाड़ी चेकिंग कर रहे थे ।
“अबे मामू लोग हैं सामने । लगा चूना आज ।” अक्षय ने बंटी से बोला ।[adinserter block="1"]
“तू बस चुपचाप बैठे रहना और बैग को गोदी की जगह पीछे टांग ले ।” बंटी ने ढांढ़स बंधाया ।
बंटी ने स्पीड कम कर दी और पुलिस वालों के पास पहुँचते ही अचानक से गाड़ी लहरा कर स्पीड में निकाल ली । एक पुलिसवाले ने जोर का लट्ठ चलाया जो अक्षय की पीठ पर लटके बैग पर पड़ा ।
“भोसड़ी के बंटी को पकड़ेंगे । ऐसे ऐसों को रोज़ छकाते हैं हम ।" बंटी ने शेखी बघारते हुए कहा ।
“साले बैग था, इसलिए बच गया । वरना आज हल्दी-प्याज़ तू ही रगड़ रहा होता ।" अक्षय ने छनछना कर कहा ।
“बच गए ना बुजरो वाले! अब डायलाग कम पेलो!” बंटी ने बोला और बाइक सीधा बंटी के घर पर पहुँच कर रुकी ।
बंटी के दो घर थे । एक पुश्तैनी जो इलाहाबाद में था और एक पापा ने बनवाया था, जो ज्ञानपुर में था । सभी लोग ज्ञानपुर वाले मकान में रहते थे । इलाहाबाद वाले में बस बंटी, कुंदन और अक्षय रहते थे । यहीं रह कर तीनों ने महर्षि पतंजलि विद्या मंदिर से 12वीं पास की थी । तीनो साथ में पिछली बेंच पर बैठते थे और पूरी क्लास को डिस्टर्ब करते थे । फिर भी उनके नम्बर अच्छे आते थे । उसके बाद तीनों मेडीकल की तैयारी करने लगे थे । कुंदन अपने पापा की बात मान कर बी.एच.यू. चला गया । उसने आर्ट्स में एडमिशन ले लिया और वहीं से मेडिकल की तैयारी करने लगा था ।
“अब सुना पूरी कहानी डिटेल में । कोई पॉइंट मिस नहीं होना चाहिये!" बंटी ने लगभग धमकी देते हुए कहा ।
अक्षय ने भी एक-एक चीज़ उसे याद कर कर के बताई । इतना दिमाग उसने अपनी तैयारी में लगाया होता तो आज डॉक्टर होता ।
"चल तेरा सामान पैक करते हैं । तू फटाफट निकल ।" बंटी ने बहुत उत्साहित होकर बोला ।
"रुक जाओ ससुर । ज्यादा फैंटम ना बनो । टिकट नहीं हुआ है अभी ।" अक्षय ने बोला ।
"अभी सीनुवा से करवाता हूँ बे! बस 10 मिनट, मोका नहीं मना कर पाई ।" बंटी ने बोला और निकल पड़ा।
अक्षय ने भी पैकिंग शुरू कर दी थी । तभी बंटी हाथ में टिकट लहराते हुए आया ।
"लो बे परसों का टिकट फाइनल हो गया है" बंटी ने कॉलर उठा कर कहा ।
"मुझे तो लग रहा तुझे बहुत जल्दी है मुझे भेजने की" अक्षय ने बंटी को ताना मारते हुए कहा ।
"कर दी ना छोटी बात । चल 660 रुपए निकाल सीनुवा को देने हैं ।" बंटी ने बिना साँस लिए हुए कहा ।
दो दिन तक दोनों बस घूमते रहे । कभी मम्फोर्डगंज, कभी तेलियरगंज, कभी सिविल लाइंस जाकर गुलौरी खाई, कभी वहीं अलचिको में फ्रूट बियर पी क्योंकि दोनों उस वक़्त तक असली बियर पीते नहीं थे ।[adinserter block="1"]
ऑटो करके अक्षय स्टेशन पहुँचा और बंटी ने उसकी बाइक लेकर ट्रेन में सिवान के लिए बुक करा दी । बिछड़ने से पहले एक बार दोनों गले मिले । वे जिंदगी में पहली बार गंभीर दिख रहे थे । ऐसा लग रहा था कि ज़िन्दगी उन्हें दो अलग दिशाओं में ले जा रही है । अक्सर हम ऐसे समय के लिए तैयार नहीं होते, जबकि हम हमेशा से जानते हैं कि ये समय कभी न कभी तो ज़रूर आने वाला है ।
"तू टेंशन मत ले । मैं आऊँगा कुछ महीनों बाद, भाभी को देखने । तब तक प्रोपोज़ मार देना ।" बंटी ने माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश की ।
"तू बुरी संगत में मत पड़ना । मुझे पता है तू बहुत जल्दी दूसरों की खराब संगत पकड़ता है ।" अक्षय ने कहा ।
"हाँ तुमको क्यों नहीं पता रहेगा? तुम्हीं तो हो वो गलत संगत भोसड़ी के!" बंटी ने हंसते हुए कहा और दोनों गले लग गए ।
"अपना ख्याल रखना बे ।"अक्षय ने कहा।[adinserter block="1"]
“जाओ मेंरी जान । खा लो मीठा पान ।” बंटी ने एकदम सीरियस से चेहरा बना कर कहा ।
ट्रेन खुलने लगी थी । बंटी पीछे मुड़ा और चला गया । दोनों जानते थे कि दोनों की आँखों में नमी थी । मगर दोनों ने एक दूसरे को पलटकर नहीं देखा । ट्रेन चल पड़ी ।

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मीठे दिन
बाइक चलाते हुए अक्षय कॉलोनी में घुसा । पापा ने गाड़ी भेज दी थी सामान लेने के लिए । अक्षय का भी लक बहुत अच्छा था । घुसते ही उसे चित्रांगना अपनी मम्मी के साथ टहलती हुई मिल गयी । दोनों की आँखें मिलीं । अक्षय ने बाइक रोक दी । चित्रांगना सहम गई।
"प्रणाम आंटी" अक्षय उसकी मम्मी से बोला ।
"खुश रहिए । वापस आ गए इतनी जल्दी आप?" चित्रांगना की मम्मी ने पूछा ।
"जी आंटी । कोचिंग खत्म हो गई थी, तो सोचा यहीं से तैयारी करूँ । यहाँ का मौसम भी अच्छा है ।"
ये बात सुन कर चित्रांगना के गाल खुशी और शर्म से लाल हो गए थे ।

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Q. बैरिकेड / Barricade किताब के लेखक कौन है?
Answer.   अभिषेक सिंह / Abhishek Singh  
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