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पुस्तक का विवरण (Description of Book बहुत दूर कितना दूर होता है | Bahut Door Kitna Door Hota Hai PDF Download) :-
नाम : | बहुत दूर कितना दूर होता है | Bahut Door Kitna Door Hota Hai Book PDF Download |
लेखक : | मानव कौल / Manav Kaul |
आकार : | 1 MB |
कुल पृष्ठ : | 112 |
श्रेणी : | यात्रा वृतांत / Yatravaratanat |
भाषा : | हिंदी | Hindi |
Download Link | Working |
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एक संवाद लगातार बना रहता है अकेली यात्राओं में। मैंने हमेशा उन संवादों के पहले का या बाद का लिखा था… आज तक। ठीक उन संवादों को दर्ज करना हमेशा रह जाता था। इस बार जब यूरोप की लंबी यात्रा पर था तो सोचा, वो सारा कुछ दर्ज करूँगा जो असल में एक यात्री अपनी यात्रा में जीता है। जानकारी जैसा कुछ भी नहीं… कुछ अनुभव जैसा.. पर ठीक अनुभव भी नहीं। अपनी यात्रा पर बने रहने की एक काल्पनिक दुनिया। मानो आप पानी पर बने अपने प्रतिबिंब को देखकर ख़ुद के बारे में लिख रहे हों। वो ठीक मैं नहीं हूँ… उस प्रतिबिंब में पानी का बदलना, उसका खारा-मीठा होना, रंग, हवा, सघन, तरल, ख़ालीपन सब कुछ शामिल हैं। इस यात्रा-वृत्तांत को लिखने के बाद पता चला कि असल में मैं इस पूरी यात्रा में एक पहेली की तलाश में था… जिसका जवाब यह किताब है। —मानव कौल
A dialogue remains constant in lonely journeys. I always wrote before or after those dialogues… until today. It was always left to record exactly those dialogues. This time when I was on a long trip to Europe, I thought I would record everything that a traveler actually experiences in his journey. Nothing like information… something like experience.. but not a good experience either. A fantasy world to live in on your journey. It is as if you are writing about yourself looking at your reflection in water. That’s not me right… That reflection includes the change of water, its salty-sweet, color, air, solid, liquid, emptiness. After writing this travelogue, I came to know that in fact I was looking for a puzzle in this whole journey… the answer to which is this book. —Manav Kaul
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पुस्तक का कुछ अंश (बहुत दूर कितना दूर होता है | Bahut Door Kitna Door Hota Hai PDF Download)
बहुत दूर का सपना…
यह बहुत पुरानी बात है, जब बंटी कुएँ की मुँडेर पर बैठे हुए अपनी दोपहरें काटा करता था। उन्हीं दोपहरों में अपनी चाय की दुकान छोड़कर, उसका पक्का दोस्त सलीम भी उसकी बग़ल में आकर बैठ जाता था। दोनों की उम्र लगभग सात या आठ साल होगी। हर दोपहर गाँव के ऊपर से एकमात्र हवाई जहाज़, तेज़ आवाज़ करता हुआ उनके आसमान से गुज़र जाया करता था। सलीम की आदत थी कि वो कुएँ की मुँडेर पर खड़ा होकर हवाई जहाज़ को टाटा किया करता था और बंटी की आदत थी कि वो उस हवाई जहाज़ का अक्स अपने कुएँ के पानी में देखा करता था।
पर आज के दिन इंतज़ार कुछ लंबा था।
“यार बंटी, अबे बहुत ही ज्यादा टेम हो गया। आज तो आसमान भी चकाचक चमक रिया है।” सलीम ने अपनी मैली क़मीज़ से पसीना पोंछते हुए कहा।
“अबे थोड़ा घूमकर आ रिया होगा।”[adinserter block=”1″]
“अभी तक तो आवाज भी नई आरी उसकी… आवाज तो आ जानी चईये अब तक।”
इस बात का बंटी ने कोई जवाब नहीं दिया। वो पहली बार हवाई जहाज़ का इंतज़ार नहीं कर रहा था। उसके दिमाग़ में कुछ वक़्त से एक सवाल चल रहा था।
“सलीम, ये जहाज आता कहाँ से है? और ये रोज जाता कहाँ है?”
“पीछे से आता है, बहुत दूर से… और फिर आगे तो बहुत ही दूर चला जाता है।”
“किधर?”
“अबे बहुत दूर!”
“बहुत दूर, कितना दूर होता है?”
दोनों इस सवाल पर चुप हो गए। सलीम, कुएँ की मुँडेर पर खड़ा हो गया और कुछ देर कान लगाकर सुनने लगा। उसे लगा कि हवाई जहाज़ की आवाज़ है पर वो पीछे जोशी जी के ट्रैक्टर की आवाज़ थी। वह वापिस बंटी की बग़ल में बैठ गया।
“आज तो भटक गया लगता है।” सलीम ने साँस छोड़ते हुए कहा।
“अगर हम रफीक मियाँ की दुकान से साइकिल किराये पर लें और हाईजाज के पीछे भगा दें तो हम भी क्या बहुत दूर चले जाएँगे?”
“तुझे साइकिल चलाना कां आता है!”
“अबे बस पूछ रिया हूँ।”
सलीम और इंतज़ार नहीं कर पाया। उसकी चाय की दुकान पर ग्राहकों की भीड़ जमा हो गई होगी। अपनी चाय की दुकान की तरफ़ जाते हुए उसकी निगाह पूरे वक़्त आसमान पर ही थी। कुछ देर में बंटी ने भी इंतज़ार छोड़ दिया। हवाई जहाज़ से ज़्यादा उसे उसका सवाल कचोट रहा था। वह वहाँ से दौड़ता हुआ, बाज़ार के पीछे की तरफ़ से होता हुआ, जीवन की पतंग की दुकान पर चला गया।
दोपहर को जीवन की दुकान पर कम ही बच्चे आते थे। वह दोपहर को इत्मीनान से नमाज़ पढ़ता था और फिर अपनी दुकान पर लगे गणपती के सामने अगरबत्ती जलाता था। बंटी जीवन की कई दोपहरों का हिस्सा था सो उसे इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होता था। ऐसा कहते हैं कि जब जीवन के अब्बा को जीवन एक मज़ार पर पड़ा मिला था तब उसके गले में गणपती का लॉकेट लटक रहा था।
“आज तो वो आया नहीं…” बंटी ने गुप्त स्वर में बोला।
“कौन?” जीवन मांझा गिर्री में लपेट रहा था।
“हाईजाज।”[adinserter block=”1″]
“हाँ… आज सुनाई नहीं दिया।”
बंटी को हमेशा लगता था कि जीवन उसे बच्चा समझता है। और ये बात अभी तक सिर्फ़ उसके पक्के दोस्त सलीम को पता थी कि वो अब बच्चा नहीं रहा था। पिछली बार बंटी ने जीवन से कहा था कि एक बार वो नीली पतंग उड़ा रहा था, उस पतंग को आसमानी हवा लग गई थी और वो ऊपर की तरफ़ जाए जा रही थी… तभी जहाज़ निकला और उसने जैसे-तैसे अपनी पतंग को जहाज़ से बचाया था.. वरना वो जहाज़ में फँसकर उस दिन उड़ जाता।
जिस सवाल को लेकर बंटी जीवन के पास आया था उसने उस सवाल को झिड़क दिया।
“मैं बहुत दूर जाना चाहता हूँ।”
जीवन की गिर्री अचानक रुक गई। जीवन को लगा कि उसने कुछ ग़लत सुना है… बंटी ने फिर कहा।
“मैं बहुत दूर जाना चाहता हूँ।”
“कितनी दूर?”
“बहुत दूर।”………
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डाउनलोड लिंक (बहुत दूर कितना दूर होता है | Bahut Door Kitna Door Hota Hai PDF Download) नीचे दिए गए हैं
हमने बहुत दूर कितना दूर होता है | Bahut Door Kitna Door Hota Hai PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए Google Drive की link नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 1 MB है और कुल पेजों की संख्या 112 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक मानव कौल / Manav Kaul हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ बहुत दूर कितना दूर होता है | Bahut Door Kitna Door Hota Hai की PDF को जरूर शेयर करेंगे।
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