अध्याय 1
वह जिंदा है
पहाड़ों की गोद में बसे उस खूबसूरत रेलवे स्टेशन पर यूं तो ज्यादा भीड़ नहीं हुआ करती थी, किंतु अभी-अभी एक पैसेंजर ट्रेन के रुकने के कारण लोगों की गर्दिश में थोड़ा इजाफा जरूर हो गया था। उतरने वाले यात्रियों में वह युवक भी था, जिसके पास सामान के नाम पर मात्र एक लैपटॉप बैग था, जिसका उभार ये स्पष्ट बता रहा था कि उसने बैग में सिर्फ लैपटॉप ही नहीं बल्कि अपने कपड़े भी बड़ी बेरहमी से ठूंस रखे थे। युवक सामान्य कद काठी का था। चेहरा सांवला जरूर था, किंतु तीखे नैन नक्श और भरे हुए गालों के कारण आकर्षक लग रहा था। उसने अपने फॉर्मल शर्ट की आस्तीन को मोड़कर हाफ स्लीव कर लिया था, जिसके कारण उसकी बलिष्ठ भुजाओं की नसों का उभार दूर से भी नुमाया हो रहा था। बादलों के घिर आने के बाद घाटी का मौसम खूबसूरत रूप अख्तियार कर चुका था। युवक ने एक नजर रिस्टवॉच पर डाली और हवाओं की गुस्ताखी के कारण बिखर गये बालों को हाथ से संवारते हुए ‘एक्जिट’ की तरफ बढ़ा।
बाहर आने के बाद उसने उन सड़कों पर नजरें दौड़ायीं, जो पहाड़ों की तलहटी में बसे कस्बों तक जाती थीं। ‘हकीमगढ़’ को जाने वाली राह पर कोई वाहन न पाकर युवक के चेहरे पर शिकन के भाव नजर आए। काले बादलों पर दृष्टिपात करते हुए उसने दोबारा अपनी रिस्टवॉच देखी। ट्रेन पूरे दो घण्टे लेट थी। ‘उसे रिसीव करने के लिए कोई स्टेशन पर आयेगा या नहीं’ इस बाबत मेजबान से उसकी कोई बात नहीं हुई थी, इसलिए उसने ये फिजूल की उम्मीद नहीं पाली कि कोई स्टेशन पर उसकी राह देख रहा होगा। एक गहरी सांस लेते हुए उसने खुद को कुदरत के हवाले किया और हकीमगढ़ के लिए किसी वाहन का इंतजार करने लगा।
करीब दस मिनट ही गुजरे होंगे कि उसे पीछे से हल्का धक्का लगा और वह आगे की ओर झुक गया। अगर धक्का थोड़ा ज्यादा तेज होता तो वह मुंह के बल जमीन से टकरा कर हंसी का पात्र भी बन सकता था। खीझते हुए वह पीछे पलटा, और जो कुछ देखा उसे देख उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। धक्का किसी इंसान ने नहीं बल्कि एक इण्डिगो ने मारा था, जिसका बंद इंजन बता रहा था कि बतौर शरारत उसे जानबूझकर ‘हिट’ किया गया था।
“य...ये क्या बद्तमीजी है।”
युवक ने ड्राइविंग सीट पर मौजूद लड़की को कस कर डांट लगाई। डांट खाते ही लड़की ने फूर्ती से ड्राइविंग डोर खोला और तेजी से बाहर आई। कमर पर हाथ रखकर उसने युवक को उपर से नीचे तक घूरा और दबंग लहजे में बोली – “तो ये है एहसान का बदला चुकाने का तुम्हारा तरीका।”
लड़की का कद देखकर युवक ने अंदाजा लगाया कि साढ़े छ: फीट की ऊंचाई तक पहुँचने के लिए वह एड़ी चोटी का जोर लगाती होगी। उसकी रंगत उजली, आँखें बड़ी-बड़ी, नाक पतली और लम्बी थी। होंठ गुलाबी नजर आ रहे थे, किंतु कहा नहीं जा सकता था कि ये ‘गुलाबी’ प्राकृतिक थी या फिर लिपस्टिक का रहमोकरम था। भौंहों की नक्काशी और बालों की कटिंग से अन्दाजा लग रहा था कि उसके और पॉर्लर के बीच एक आदर्श रिश्ता कायम होगा। मासूमियत से लबरेज उसके शरारती किंतु खूबसूरत चेहरे पर इस वक्त बनावटी क्रोध नजर आ रहा था।
“एहसान...? कैसा एहसान?” युवक उस लड़की के बेबाक अंदाज पर भौचक्क होता हुआ बोला।
“क्या ये उस इंसान पर मेरा एहसान नहीं कहा जाएगा, जिसके बारे कुछ न जानते हुए भी मैं उसके लिए दो घंटे से इस स्टेशन पर धक्के खा रही हूँ, ताकि वह ऐसे खराब मौसम में स्टेशन पर न अटक जाए?”
“ओह!” आदमी के सामने तस्वीर साफ़ हो गयी। मेजबान की ओर से उसे रिसीव करने के लिए उस ‘नमूनी’ को ही भेजा गया था।
“लेकिन आपने मुझे पहचाना कैसे?”[adinserter block="1"]
“तुम जिस एजेंसी में काम करते हो, उस एजेंसी की वेबसाइट पर मौजूद तुम्हारी प्रोफाइल में तुम्हारी एक फोटो भी लगी है, जिसमें तुम चार बच्चों के बाप और एक अत्याचारी बीवी के पति लग रहे हो।”
सुनकर आदमी मन ही मन भन्ना गया। वह सिंगल था और दिखने में भी सिंगल ही लगता था। वह ‘नमूनी’ पहली लड़की थी, जिसने उसे एक अत्याचारी बीवी का पति भी कह डाला था और चार बच्चों का बाप भी।
“गौरव चौहान फ्रॉम लखनऊ। क्वालिफिकेशन- एमएससी इन क्राइम केमिस्ट्री। पेशा- प्राइवेट डिटेक्टिव। तुम उसी ट्रेन से उतरे हो, जो अभी-अभी प्लेटफॉर्म पर लगी है। राइट?”
“अ....आपको कैसे पता...?”
लड़की ने एक बार फिर युवक को घूरा। इस बार उसका क्रोध बनावटी नहीं था।
“मुझे फॉर्मैलिटिज पसंद नहीं हैं। मेरी उम्र का कोई लड़का जब मुझे ‘आप’ कहता है तो मेरे अंदर ‘आण्टी’ जैसी फीलिंग आनी शुरू हो जाती है। तुम लोग क्या जानो कि हम लड़कियों के लिए ये ‘आण्टी’ वाली फीलिंग कितनी जानलेवा होती है। खास तौर पर अपने फिगर को लेकर सेन्सिटिव रहने वाली मेरी जैसी लड़की के लिए ‘आण्टी’ शब्द ही जानलेवा है।”
गौरव ने राहत की सांस ली। प्रोफाइल फोटो के जरिये उसका आंकलन गृहस्थ पुरुष के रूप में करने के बाद अंतत: प्रत्यक्ष में उसने उसे अपना हमउम्र करार दे दिया था।
“अच्छी सोच है। आप....आई मीन तुम भले ही अपने हमउम्र लड़के को चार बच्चों का बाप और अत्याचारी बीवी का पति कह डालो, लेकिन तुम्हें कोई हमउम्र लड़का ‘आप’ तक न कह सके।”
“ओ....।” लड़की ने अपने होठों को ‘ओ’ का आकार देते हुए कहा- “तो इसका मतलब तुम्हें बुरा लगा। दैट्स ग्रेट!” उसने जोर से किलकारी भरी, फिर अचानक गंभीर हो गयी- “मुझे लोगों को टीज करने में थोड़ा मजा आता है। मैं जानती हूँ कि ये अच्छी आदत नहीं है पर मैं चाह कर भी इसे छोड़ नहीं पा रही हूँ। तुम्हें बुरा लगा हो तो सॉरी।”
गौरव की हंसी छूटते-छूटते बची।
‘ये घमंडी नहीं है और गलती का एहसास हो जाने पर सॉरी कहने से परहेज नहीं करती।’
“इट्स ओ.के.!” प्रत्यक्ष में गौरव ने कहा।
“बाई द वे, मैं हकीमगढ़ के सरपंच की बेटी हूं। मेरे एकेडेमिक रिकार्ड्स में मेरा नाम अवंतिका है, लेकिन मुझे अवि नाम ज्यादा अच्छा लगता है। मेरे सारे फ्रैण्ड्स मुझे इसी नाम से बुलाते हैं।” कहने के बाद उसने गौरव को घूरा –“तुम समझ गये न कि मैं क्या कहना चाहती हूं?”
“ह...हां। मैं भी तुम्हें इसी नाम से बुलाऊंगा।”[adinserter block="1"]
“चलो चलते हैं। बारिश शुरू होने वाली है।” हवाओं का रुख बदला हुआ पाकर अवंतिका ने अपनी जुल्फों को कानों के पीछे ले जाते हुए कहा और ड्राइविंग सीट पर सवार हो गयी। गौरव ने पीछे वाली पैसेंजर सीट का डोर खोलना चाहा।
“मेरे बगल की पैसेंजर सीट पर बैठो। मैं तुम्हारी ड्राइवर नहीं हूं।”
डोर खोलने के लिए आगे बढ़ा गौरव का हाथ रुक गया और वह बिना समय गंवाए आदेशित सीट पर सवार हो गया। वह इस बात पर ध्यान न दे सका कि ड्राइविंग सीट पर सवार होने के बाद अवंतिका ने दूर खड़े एक युवक की ओर तिरछी नजर से देखा था, और युवक ने ‘थम्ब्ज़ अप’ का संकेत देकर ये दर्शाया था कि सब-कुछ ठीक चल रहा है।
“मेरे खुले अंदाज पर तुम भी बाकी लड़कों की तरह हवा में महल मत बनाने लगना।” अवंतिका ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा।
“मतलब?”
“मेरे बेबाक अंदाज पर कुछ बेवकूफ लड़के मुझे दिलफेंक समझने की भूल कर बैठते हैं।” अवंतिका खिलखिलाकर हंसी।
एक दक्ष चालक की भांति उसने बगैर किसी कठिनाई के कई मुश्किल टर्न लेकर गाड़ी को पार्किंग एरिया से निकाला और उस रास्ते पर डाल दिया, जो पहाड़ों की आगोश से होता हुआ हकीमगढ़ चला गया था। रास्ता सुनसान था और मौसम खुशनुमा भी, ऐसे में गाड़ी की स्पीड नॉर्मल रखने की अपेक्षा अवंतिका जैसी चंचल हसीना से नहीं की जा सकती थी। उसने गति की सुरक्षा सीमा को पार किया और गाड़ी कमान से निकले तीर की मानिंद गंतव्य की ओर दौड़ पड़ी।
“तुम्हें क्या लगता है, लाइफ में फॉर्मेलिटीज इम्पोर्टेण्ट होती हैं या फिर हमारा वास्तविक रवैया?”
“मेरी समझ के अनुसार वास्तविक रवैया ज्यादा अहम होता है। किंतु ‘अनुशासन’ और ‘सम्मान’ जैसे शब्दों की गरिमा बनाए रखने के लिए फॉर्मेलिटिज की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
“हो सकता है तुम्हारी बातें सही हों।” गौरव के विचार सुन अवंतिका ने मुंह बिचकाया- “लेकिन मेरे जीवन में आज तक कभी कोई ऐसा क्षण नहीं आया कि मुझे खुद को शिष्ट दिखाने के लिए इन ‘दिखावों’ का सहारा लेना पड़ा हो।”
“तुम करती क्या हो?”
“एमएससी इन जियोग्रॉफी पूरी कर चुकी हूं और अब रिसर्च के लिए यूनिवर्सिटीज के एंट्रैंस की तैयारी कर रही हूं।” कहने के बाद अवंतिका ने गौरव की ओर देखा – “तुम इतनी कम उम्र से ही जासूसी के चक्कर में क्यों पड़ गये?”
“मैं बचपन से ही अगाथा क्रिस्टी का फैन हूं। मिस्ट्रीज सॉल्व करना मेरा पैशन है, इसीलिए क्राइम केमिस्ट्री में एमएससी करने के बाद डिटेक्टिव एजेंसी ज्वाइन कर लिया।”[adinserter block="1"]
“अजीब बात है।” अवंतिका हंस पड़ी– “किसी फॉरेंसिक लैब की एयरकंडीशन्ड ऑफिस में बैठकर डीएनये फिंगरप्रिंटिंग, ब्लड सैम्पल्स वगैरह की जांच करने की बजाय तुमने फील्ड जॉब क्यों चुना?”
“मैं अपनी एजेंसी के फॉरेंसिक डिपार्टमेण्ट का वॉइस प्रेसिडेण्ट हूं। फील्ड वर्क
करने वाले सारे डिटेक्टिव्ज कहीं न कहीं उलझे हुए हैं, इसलिए चीफ ने इस केस की फाइल मुझे सौंप दी।”
“ओ...।” अवंतिका के होठों से निकला।
दोनों के मध्य थोड़ी देर के लिए खामोशी छा गयी। गौरव ने पलटकर पीछे देखा। स्टेशन काफी पीछे छूट चुका था। गाड़ी जिस रास्ते से गुजर रही थी, उसके एक तरफ गगनचुम्बी पर्वत थे तो दूसरी तरफ गहरी खाईयां। बरसात होने के कारण तलहटी में बिखरी नयनाभिराम कुदरती हरियाली ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया।
“तुम्हारा गांव काफी ख़ूबसूरत है।”
“शुक्रिया।” अवंतिका मुस्कुरायी- “पहाड़ों की तलहटी में बसा होने के कारण प्रकृति ने हकीमगढ़ पर अपना सौन्दर्य खुले हाथों से लुटाया है। मैं गाँव की ख़ूबसूरती के बीच ही पली-बढ़ी हूँ। हफ्ते भर पहले ही तीन दिन लगातार हुई भीषण बारिश के कारण गांव में लगभग बाढ़ ही आ गयी है, कई लोग बेघर हो गये हैं और पापा व्दारा खोल दिए गये पंचायत भवन में डेरा डाले हुए हैं।”
“सुनकर अफसोस हुआ।”
बूंदाबांदी शुरू हो चुकी थी और बादलों के तेवर चीख-चीखकर कह रहे थे कि बात सिर्फ बूंदाबांदी तक ही सीमित रहने वाली नहीं थी, बल्कि हफ्ते भर बाद उन बूंदों की टीप-टीप के रूप में एक बार फिर भीषण बारिश के कदमों की आहट सुनाई देने लगी थी। अवंतिका ने वाइपर ऑन कर दिया।
“तुम जानते हो गौरव, तुम्हारे हकीमगढ़ आने को लेकर मैं कितना ज्यादा रोमांचित थी?”
“भला मैं कैसे जान सकता हूं? यहां आने से पहले तो मैंने तुम्हारा नाम तक नहीं सुना था।”
“ओह..।” अवंतिका ने अपनी जीभ दांतों तले दबा ली- “मैं भी आजकल कितनी बेवकूफी भरी बातें करने लगी हूं। भला तुम कैसे जान सकते हो कि मैं हकीमगढ़ में खुद को कितनी अकेली महसूस करती हूं। मैं भले ही इतनी बड़ी हो गयी हूं, किंतु मेरे पापा मुझे हमेशा यूं नसीहतें देते फिरते हैं, मानो मैं एक छोटी सी बच्ची हूँ। यहां आने के बाद मैं हवेली की बाउंड्री वाल में उसी तरह कैद हो जाती हूं, जैसे किसी बुलबुल को सोने के पिंजरे में कैद कर दिया जाए। तुम अंदाजा लगा सकते हो कि गाँव में मेरी छुट्टियां कितनी मुश्किल से कटती हैं। बोर हो जाती हूं यार।”[adinserter block="1"]
गौरव ने उस लड़की की ओर कनखियों से देखा, जिसकी तुलना उसकी दबंग हरकतों के कारण एक ‘बुलबुल’ से कभी नहीं की जा सकती थी।
“मैं समझ सकता हूं।” गौरव ने मुस्कुराते हुए कहा- “लेकिन तुम्हें ये सोचकर
खुश होना चाहिए कि तुम्हारे पिता तुम्हारी फिक्र करते हैं।”
“ऑफकोर्स।” अवंतिका खुल कर हंसी- “गॉड हैज गिफ्टेड मी अ केयरिंग डैड।”
हंसने में गौरव ने भी उसका साथ दिया।
“तुम्हें पता है गौरव, आज का दिन मेरे लिए बेहद लकी था। मुझे हकीमगढ़ आए हुए पूरे पन्द्रह दिन हो गए हैं, लेकिन इन पन्द्रह दिनों में मैं एक घंटे के लिए भी लांग ड्राइव पर नहीं गयी थी। आज सुबह ही पापा ने मुझे इनफार्मेशन दी कि तुम्हें रिसीव करने के लिए स्टेशन जाना है। मेरे मन में तो लड्डू ही फूट पड़े। मैं बारह बजे ही घर से निकल पड़ी और एक बजे तक स्टेशन भी पहुंच गयी। जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि आज का दिन मेरे लिए लकी था, स्टेशन पर आते ही मुझे पता चला कि तुम्हारी ट्रेन दो घंटे लेट है। मैं तो खुशी के मारे दो मिनट तक उछलती ही रह गयी। सबसे पहले मैंने एक रेस्टोरेंट में जाकर जी भर के जंक फूड खाया, उसके बाद हकीमगढ़ के पहाड़ों की जमकर सैर की।”
अवंतिका की बालसुलभ बातें सुनना अब गौरव को अच्छा लगने लगा था। उसकी छठी इन्द्रिय उसे संकेत देने लगी थी कि हकीमगढ़ में एक गुमशुदा व्यक्ति की तलाश का ये केस शायद उसकी ज़िंदगी का पहला हसीन केस साबित होने वाला था। हकीमगढ़ की हसीन वादियों में कोई ख़ूबसूरत प्रेमकथा पनपने वाली थी। दरअसल गौरव की व्यक्तिगत पसंद का फ्रेम ही कुछ ऐसा था कि उसमें अवंतिका जैसी खुले स्वभाव वाली हंसमुख लड़की बड़े आराम से फिट हो सकती थी। गौरव के उपरोक्त विचारों के दरम्यान गाड़ी ने एक खतरनाक मोड़ को पार किया।
“तुम्हारे गांव जाने का रास्ता तो काफी जोखिम भरा है।”
“डरो मत। मैं पहाड़ी रास्तों पर ड्राइव करने में एक्सपर्ट हूं। तुम्हें दिक्कत तब होगी जब हमारी गाड़ी उस रास्ते से गुजरेगी, जहाँ ड्राइविंग पर से हल्का सा ध्यान हटने का मतलब है, गहरी खाईयों में गर्त हो जाना। लेकिन तुम घबराओ मत, मैं तुम्हें उस रास्ते की बजाय एक ऐसे रास्ते से ले कर जाऊंगी, जो हमारे गांव की सबसे अजीबोगरीब जगह से होकर गुजरता है।”
“अजीबोगरीब जगह?” गौरव के माथे पर बल पड़ गए जबकि अवंतिका खिलखिलाकर हंस पड़ी।
“क्या हुआ? अजीबोगरीब नाम सुनकर डर गए क्या?”
“नहीं, डरा नहीं बल्कि मेरी उत्सुकता जाग उठी।”[adinserter block="1"]
“अरे वाह। तुम भी बिल्कुल मेरे जैसे ही हो। उत्सुक किस्म के और शायद खोजी प्रवृत्ति के भी।”
“अगर मैं खोजी प्रवृत्ति का नहीं होता तो आज डिटेक्टिव कैसे होता। खैर तुम मुझे उस अजीबोगरीब जगह के बारे में बताओ।”
“वह अजीबोगरीब जगह एक पुराना किला है। कहते हैं वह किला पांच हजार साल पुराना है।”
“अच्छा? इतना पुराना? अगर ऐसा है तो वह किला इस संसार की सबसे पुरानी धरोहरों में से एक होगा।”
“हां। वो तो है ही। हालांकि वह अपने अस्तित्व को लगभग खो चुका है, किंतु फिर भी उसके कुछ हिस्से ठीक-ठाक हैं। अब मुझसे ये मत पूछना कि उन हिस्सों ने समय की मार कैसे झेली, क्योंकि इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता।”
“क्या सिर्फ पांच हजार साल पुराना होने के कारण तुम उस किले को अजीबोगरीब कह रही हो?”
“नहीं। ऐसी बात नहीं है। वह किला अजीबोगरीब है, इसके पीछे कारण ये नहीं है कि वह पांच हजार साल पुराना है बल्कि कारण ही बहुत अजीब है।”
“क्या है वह कारण?” गौरव का उत्सुक लहजा।
“कहते हैं उस किले में कोई आज भी भटक रहा है! शायद आत्मा के रूप में।”
“व्हाट नॉनसेन्स!” गौरव ने बुरा से मुंह बनाया- “आत्मा भटकती है? तुम यकीन करती हो इन सब अंधविश्वासों पर?”
अवंतिका ने ड्राइविंग स्क्रीन से ध्यान हटाकर गौरव की ओर देखा, जहाँ मौजूद भाव ये बताने के लिए पर्याप्त थे कि वह आत्माओं अथवा रूहों के अस्तित्व पर विश्वास न करने वालों में से था। कुछ देर तक उसे घूरने के बाद अवंतिका की निगाहें वापस विंडस्क्रीन पर जम गयीं।
“तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया।”
“मैं ऐसे टॉपिक पर बात नहीं करती, जिस पर सामने वाला यकीन करने या न करने का सवाल खड़ा कर दे।”
गौरव भांप गया कि उसने अनजाने में ही अवंतिका को कुपित कर दिया है। हालाँकि उसके द्वारा किले के बारे में सुनाई गयी अजीब और रहस्यमयी कहानी पर वह सहजता से यकीन नहीं करना चाहता था, किंतु फिर भी उस प्रकरण को लेकर उसके मन में पनप चुकी उत्सुकता ये माँग कर रही थी कि अवंतिका उस प्रकरण पर और अधिक मुंह खोले।
“चलो ठीक है। बिना किसी बहस के मैं मान लेता हूं कि उस किले में सचमुच कोई आत्मा भटकती होगी। तो अब मेरा ये सवाल पूछना तो वाजिब है न कि किले में भटकने वाली आत्मा किसकी है? क्यों भटक रही है? और कब से भटक
रही है?”[adinserter block="1"]
“तुमने अश्वत्थामा का नाम तो सुना होगा न?” अवंतिका ने बगैर गौरव की ओर देखे हुए कहा।
“हालांकि धर्मग्रंथों में मेरी रुचि नहीं है, लेकिन ये नाम मुझे कहीं सुना हुआ लग रहा है। अश्वत्थामा शायद महाभारत का एक पात्र था, है न?”
“तुमने ठीक कहा। अश्वत्थामा महाभारत के प्रमुख पात्र तथा कौरव-पांडव के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था, जो भगवान शिव के आशीर्वाद से उत्पन्न हुआ था। उसके मस्तक में एक दैवीय मणि स्थापित थी, जो उसे यक्ष, गंधर्व, किन्नर और साँपों के साथ-साथ अनगिनत प्रजातियों से भयमुक्त करती थी। तुम्हें शायद पता होगा कि द्रोणाचार्य ने कौरवों की ओर से युद्ध किया था, जिनके जीवित रहते कौरवों का पलड़ा भारी था। युद्ध का परिणाम पांडवों के पक्ष में हो इसके लिए द्रोणाचार्य का वध करना अनिवार्य था। और इस अनिवार्य कार्य को श्रीकृष्ण की कूटनीति से पांडवों ने बड़ी आसानी से पूर्ण कर दिया। पिता के वध का समाचार सुनते ही अश्वत्थामा अपना आपा खो बैठा। युद्ध की नीतियों को भुलाकर उसने कायरता का परिचय दिया और पांडवों के धोखे में उसने उनके पांच पुत्रों की शय्या पर ही उस वक्त हत्या कर दी, जब वे सो रहे थे। उसके इस कायरतापूर्ण कृत्य पर क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उसके मस्तक से मणि निकाल कर उसे तेज रहित कर दिया और अनंत काल तक भूलोक पर सशरीर भटकने का शाप दे दिया।”
“तुम्हारी कहानी के अनुसार श्रीकृष्ण के शाप के कारण वही अश्वत्थामा आज तक भूलोक पर भटक रहा है। क्योंकि वह सशरीर है, इसलिए किले में उसकी आत्मा नहीं, बल्कि वह खुद भटकता होगा।” गौरव ने इस कदर सांस लेते हुए कहा, मानो अवंतिका के अजीबोगरीब किस्से के पीछे निहित मान्यता को सुनने के बाद उसकी छाती पर रखा कोई भारी बोझ उतर गया हो।
“तुम्हें कैसे पता कि अश्वत्थामा उस किले में भटकता है। मैंने तो अपने मुंह से अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं कहा।”
“तुम्हारी बातों से समझ गया। अश्वत्थामा की कहानी सुनाकर तुम यही तो कहना चाहती हो।”
अवंतिका ने कुछ नहीं कहा। वह समझ चुकी थी कि सामने वाला उसकी बातों को अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं समझ रहा था।
“तुम्हें मेरी बातें बकवास लग रही है न?” थोड़ी देर की खामोशी के बाद उसने कहा।
“मैंने कब ऐसा कहा। दरअसल तुम्हारे जैसी पढ़ी-लिखी लड़की जब इस तरह
की बातें कर रही है तो न चाहते हुए भी थोड़ा गंभीर तो होना ही होगा, लेकिन मैं इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि तुम्हारी बातों में सच्चाई कम और लोककथाओं या किंवदंतियों का प्रभाव ज्यादा नजर आ रहा है।”[adinserter block="1"]
“बचपन से लेकर आज तक उस किले के बारे में जो बातें सुनती आ रही हूं, उन्हें लोककथा या किंवदंती का नाम देकर खारिज नहीं किया जा सकता। हकीमगढ़ की फिजाओं में उस किले के बारे में गूंजने वाली बातें प्रत्यक्षदर्शियों के अनुभव पर आधारित हैं। क्या तुम हनुमान पर यकीन करते हो?”
“ऑफकोर्स करता हूं। मैं उन्हें अपना इष्टदेव मानता हूं।”
“तब तो तुम्हें ये भी पता होगा कि उन्हें चिरंजीवी कहा जाता है।”
“कहा जाता होगा। फिलहाल इस बात को छेड़कर तुम क्या कहना चाहती हो?”
“अश्वत्थामा को भी चिरंजीवी कहा जाता है। हमारे धर्मग्रंथों में वर्णित आठ चिरंजीवियों में से अश्वत्थामा भी एक है। जब तुम हनुमान पर यकीन कर सकते हो तो अश्वत्थामा पर क्यों नहीं कर सकते? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके एकमात्र पाप के कारण उसे खलनायक कहकर उपेक्षित कर दिया गया है?”
बारिश तेज हो चुकी थी। वाइपर अपना काम बखूबी कर रहा था। गाड़ी अब पहाड़ी इलाके को पार करके जंगल के दामन से गुजर रही थी।
“क्या तुम मुझे प्रत्यक्षदर्शियों के उस अनुभव के बारे में बता सकती हो, जिसके आधार पर तुम्हारा यह विश्वास काफी मजबूत हो चुका है कि उस किले में अश्वत्थामा भटकता है।”
“हां, क्यों नहीं। ऐसे कई अनुभव मैं बचपन से ही सुनती आ रही हूं।” अवंतिका ने गौरव के चेहरे का जायजा लिया और अश्वत्थामा की चर्चा को लेकर उसके अंदाज में गंभीरता को पनपता देखकर आगे कहा – “अश्वत्थामा शिव की कृपा से उत्पन्न हुआ था, इस कारण उसका महान शिव भक्त होना स्वाभाविक था। मैं जिस किले की बात कर रही हूं, उस किले में एक प्राचीन शिव मंदिर है। कई इतिहासकार उसे महाभारत काल का बताते हैं। अश्वत्थामा आज भी हर रात उस शिव-मंदिर में पूजा करने आता है। प्रत्येक सुबह उस मंदिर के शिवलिंग पर ताजे फूल अर्पित किये हुए मिलते हैं।”
“अजीब बात है। सिर्फ इस छोटे से तर्क के आधार पर इतनी अजीबोगरीब मान्यता को बढ़ावा दे देना तो बेवकूफी ही है। हो सकता है कि कोई.....।”
“नहीं।” अवंतिका उसकी बात काटकर बोली- “जो बातें तुम्हारे दिमाग में चल रही हैं, वही बातें कई बुद्धिजीवियों के दिमाग में बहुत पहले भी आ चुकी हैं, और ये साबित भी हो चुका है कि शिवलिंग पर नित्य नजर आने वाले फूल किसी मानवीय क्रियाकलाप या षड़यंत्र का हिस्सा नहीं है। मंदिर में हर रात कोई रहस्यमय शख्स शिव-साधना के लिए सचमुच आता है। यही वजह है कि गांव का हर शिक्षित-अशिक्षित व्यक्ति इस मान्यता से इनकार नहीं करता कि किले में अश्वत्थामा आज भी भटकता है।”
“क्या उसे किसी ने देखा भी है?”
“बहुत पहले एक आदमी ने देखा था और पागल हो गया। तब से गांव के लोग ये मानने लगे कि अश्वत्थामा को देखने वाला पागल हो जाता है। अब भला कोई अपने दिमाग से हाथ धोने जैसी कीमत पर उसे देखने की कोशिश क्यों करेगा।”
“कांसेप्ट काफी अच्छा है। इस पर एक शानदार मायथालॉजिकल थ्रिलर लिखा जा सकता है।”
अवंतिका ने बगैर कुछ कहे खामोशी अख्तियार कर ली। बारिश के कारण सड़क की बढ़ चुकी फिसलन ने एसीलरेटर पर मौजूद उसके पाँव को थाम लिया था। अश्वत्थामा के विषय में सोशल मीडिया और यूट्यूब पर फ़ैली असंख्य भ्रांतियों के सच होने को लेकर अवंतिका जैसी एक शिक्षित और मॉडर्न लड़की ने जो दावा प्रस्तुत किया था, उस दावे में निहित उसके आत्मविश्वास को खारिज कर पाने की स्थिति में न होने के कारण गौरव का जेहन इस खामोशी के दरम्यान भी किले के विषय में ही सोच रहा था। लगभग पन्द्रह मिनट बाद अवंतिका ने गाड़ी को किनारे लगाते हुए खामोशी तोड़ी- “यही है वह किला।”
चूंकि बाहर तेज बारिश थी, इसलिए उसने कार से बाहर निकलने की राय नहीं रखी और न ही कार का इंजन बंद किया, जो संकेत था कि वह उक्त स्थान पर अधिक समय तक रुकने की इच्छुक नहीं थी। गौरव ने अपनी तरफ के ड्राइविंग डोर के शीशे को नीचे किया और अवंतिका द्वारा लक्ष्य की हुई दिशा में देखा। सड़क से पांच सौ मीटर की दूरी पर किसी प्राचीर की झलक नजर आ रही थी। जंगल घना था, अतः प्राचीर स्पष्ट नहीं नजर रहा था।
“मुझे तो प्राचीर के अलावा कुछ और नजर नहीं आ रहा है।”
“नजर आएगा भी नहीं। दरअसल जिसे तुम प्राचीर समझ रहे हो, वह महाभारत काल के एक पुराने शहर की सुरक्षा दीवार है, जो जंगल में कहाँ तक फ़ैली हुई है, ये कोई नहीं जानता।”
“यानी कि यहां हकीमगढ़ के अलावा महाभारत काल का एक वीरान शहर भी है?”
“हां।”
“तब तो ये जगह ‘ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया’ की निगहबानी में
होगी।”
“बेशक। इस जगह को यूनेस्को द्वारा ऐतिहासिक विरासत का दर्जा भी हासिल है।”
“विश्वास नहीं होता। ये जगह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं की निगाह में है, इसके बावजूद यहाँ अंधविश्वास बेखौफ अपने पांव पसार रहा है।”
“यहाँ के विषय में फ़ैली धारणाएं अंधविश्वास नहीं हैं। खुद एएसआई ने इस प्राचीन शहर के मेन एंट्रेंस पर एक नोटिस बोर्ड लगा रखा है, जिसमें साफ़-साफ़ लिखा है कि इस जगह पर रात में प्रवेश निषेध है।”
“हर ऐतिहासिक स्थल के परिसर में दिन ढलने के बाद प्रवेश निषेध कर दिया जाता है। तुमने जिस हिदायत का हवाला दिया है, उस हिदायत की बिनाह पर किसी ऐतिहासिक स्थल से जुड़ी पैरानॉर्मल चीजों को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता है।”
गौरव के तर्क पर अवंतिका एक बार फिर खामोश रह गयी।
“बाई द वे, मेन एंट्रेंस है किस तरफ?”
“उसके लिए दूसरा रास्ता अख्तियार करना होगा। फिलहाल हमारे पास वहां जाने के लिए वक्त नहीं है।”
अवंतिका ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
☐
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अध्याय 2
एक भयानक अनुभव
बारिश बंद हो चुकी थी। अवंतिका ने एक विशाल आयरन गेट के सामने गाड़ी रोक दी लेकिन इंजन बंद नहीं किया।
“आ गयी हमारी हवेली। तुम अंदर जाओ। मैं थोड़ी दूर पर बने गैराज में गाड़ी पार्क करके आ रही हूं।”
‘गाड़ी से उतरने के बाद गौरव ने गेट का रुख कर लिया, जबकि अवंतिका ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। कम्पाउण्ड में चहल-पहल थी। सरपंच की हवेली होने के कारण उस चहल-पहल को स्वाभाविक समझ कर गौरव ने उस पर ध्यान नहीं दिया और आहिस्ता से गेट खोलकर अंदर दाखिल हो गया।
उसकी आंखों के सामने जो मंजर था, वह उसकी अपेक्षाओं के विपरीत था।
लॉबी से लेकर कम्पाउण्ड तक लगभग पचास लोगों की भीड़ जमा थी। वातावरण में उनकी गुफ्तगू के अलावा महिलाओं के रोने का स्वर भी गूंज रहा था। लॉबी के साथ-साथ बाहर कम्पाउण्ड में खड़े पुरुषों के चेहरे भी गमगीन थे। असमंजस जैसी स्थिति में फंसा गौरव लगभग सौ कदम के फासले को तय करके भीड़ तक पहुंचा।
“एक्सक्यूज मी।” उसने जब शालीनता से पुकारा तो कईयों की निगाहें उसकी ओर उठीं।
“ये सरपंच की ही हवेली है न?”
गौरव का कथन समाप्त भी नहीं हुआ था कि लोगों ने इधर-उधर खिसक कर इतना फासला तैयार कर दिया कि वहां भीड़ जमा होने की वजह उसे खुद-ब-खुद नजर आ गयी। एक मुर्दा जिस्म सफेद कपड़े से ढका हुआ था, जिसके सिरहाने पर धूपबत्ती जल रही थी। महिलाओं का रुदन बदस्तूर जारी था। उसने थोड़ी दूर पर लॉबी के पिलर के सहारे हाथ बांध कर खड़े उस इंसान को भी देखा जो रो तो नहीं रहा था, किंतु बेहरकत खुली आंखों से सफेद कपड़े से ढकी लाश को देख रहा था।
“क...क्या यहां किसी की मौत हुई है?”
“सरंपच की लाडली बिटिया अवंतिका एक्सीडेंट में अपनी जान गंवा बैठी।”
गौरव के हाथ से बैग छूट गया। रोमांच के कारण उसके रोंगटे खड़े हो गये।
पांवों की कंपकपी को तो उसने जैसे-तैसे संभाल लिया लेकिन उसके चेहरे पर नृत्य कर उठे दहशत ने कई लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
“क्या हुआ साहब? आप चौंक क्यों रहे हैं?”
बदहवास गौरव के होठों से बोल न फूट सके। वह भागकर लाश के पास पहुंचा। और उसके चेहरे से कपड़ा हटा दिया। लाश अवंतिका की ही थी, लेकिन फिलहाल लोगों को साधारण लगने वाली ये बात भी गौरव के यकीन के दायरे से बाहर थी। चंद लम्हों पहले जो उसके साथ थी, वही अब एक बेजान मुर्दे के रूप में उसकी आंखों के सामने पड़ी हुई थी, इस पर वह सहजता से यकीन कर भी कैसे सकता था?
हालांकि गौरव की हरकत पर हर शख्स चौंका, किंतु वह इससे बेपरवाह होकर आयरन गेट की ओर लपका। वाइट इंडिगो का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था। जब वह वापस आया तो लोगों की खुसुर-फुसुर, यहाँ तक कि महिलाओं का रोना भी थम चुका था और क्षण भर पहले वातावरण में व्याप्त मातम का स्थान अब कौतूहलता ने ले लिया था। पिलर की टेक लिये हुए खड़े अधेड़ की तंद्रा भी भंग हो चुकी थी। इससे पहले कि कोई कुछ कहता गौरव भीड़ को लक्ष्य करके पूछा – “गैराज कहाँ है?”[adinserter block="1"]
“यहां कोई गैराज नहीं है। गाड़ी कम्पाउण्ड में ही पार्क होती है हमारी।” अधेड़ ने धीमे स्वर में कहा।
“अ.....आप तो अवंतिका के पिता....।”
अधेड़ ने कुछ नहीं कहा। जल भर आई आँखों से दूसरी तरफ देखने लगा।
“प्लीज बताइए मुझे, ये कब और कैसे हुआ?” गौरव ने अधीर लहजे में पूछा।
अपने रवैये के कारण गौरव शोकाकुल महिलाओं की निगाहों का भी केंद्रबिंदु बना हुआ था।
“आप मेरी बहन का नाम कैसे जानते हैं?” पास ही खड़े एक युवक ने पूछा।
पूछे गये सवाल को नजरअंदाज करते हुए गौरव ने अधेड़ से पूर्ववत् लहजे में पूछा- “आप बताते क्यों नहीं? कब और कैसे..?”
“आपको रिसीव करने के लिए स्टेशन जा रही थी।” अधेड़ की ओर से प्रतिक्रिया आने से पहले ही युवक बोल पड़ा – “रास्ते में गाड़ी असंतुलित होकर गहरी खाईं में गिर पड़ी।”
“कितने बजे हुआ ये सब?”
“सही समय का पता नहीं, लेकिन लोगों ने एक बजे हादसे की जानकारी दी थी।”
गौरव को महसूस हुआ कि उसके आस पास मौजूद हर एक चीज नाच रही
है। कहीं गश खाकर गिर न पड़े, इस डर से उसने एक खम्भे को पकड़ लिया।
“अ..अ..आपको क्या हुआ?”
“मुझे अभी-अभी अवंतिका ने ही इण्डिको से यहां तक छोड़ा। ‘मैं थोड़ी दूर पर बने गैराज में गाड़ी पार्क करके आ रही हूं।’ ऐसा कहकर उसने मुझे गाड़ी से उतारा था।”
अब हलकान होने की बारी वहां मौजूद लोगों की थी। उन्होंने गौरव को उसी अंदाज में घूरा जैसे किसी अजूबे को घूरा जाता है।
“म..मै सच कह...रहा...हूं। विश्वास कीजिए मुझ पर।”
“कोई वजह नहीं है विश्वास करने की। हमारे पास ऐसे कई तर्क हैं, जो ये साबित कर देंगे कि आपका दावा वाहियात है।” युवक ने कहा।
“और मेरे पास भी ऐसे कई तर्क हैं, जो ये साबित कर देंगे कि मेरा दावा हैरतअंगेज जरूर है, लेकिन वाहियात नहीं।” गौरव ने आत्मविश्वासपूर्ण लहजे में कहा।[adinserter block="1"]
“आपके सारे तर्क हमारे केवल इस एक तर्क के आगे धराशायी हो जायेंगे कि अवंतिका आपको रिसीव करने के लिए इंडिगो नहीं ले गयी थी।”
गौरव तुरंत कुछ नहीं बोला सका। ये जानकारी न केवल उसके लिए नई थी बल्कि उसके दावे के विरोध में एक अकाट्य तर्क भी था।
“ये तथ्य ही साबित करता है कि आपका दावा निराधार है।” गौरव को खामोश देखकर युवक ने कहा।
“उसी ने मुझे अपना नाम बताया।” वह अवंतिका के भाई से मुखातिब होते हुए बोला- “वह खुले विचारों की और सबके साथ आसानी से घुल-मिल जाने वाली लड़की थी। दिखावे के तौर पर निभाए जाने वाली औपचारिकताओं से उसे सख्त ऐतराज था। सुरक्षा के ध्येय से आप लोगों ने बाहर आने-जाने को लेकर उस पर जो पाबन्दियां लगाई थीं, उनसे वह चिढ़ती थी। जियोग्राफी में एमएससी करने के बाद भोपाल में रहकर रिसर्च एंट्रैंस की तैयारी कर रही थी।” लोगों के बीच छायी पैनी खामोशी के बीच गौरव व्दारा कही जा रही बातें अक्षरशः सत्य थीं। निस्तब्धता को भंग करते हुए उसने आगे कहा – “मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूं। शशिकांत जी ने भूषण नाम के उस आदमी की गुमशुदगी की जांच के लिए मुझे हायर किया है, जो पंद्रह दिन पहले मूसलाधार बारिश वाली रात अपनी झोपड़ी में एक अधूरी मूर्ति छोड़कर लापता हो गया। अवंतिका से मिलना तो दूर मैं यहां आया ही पहली बार हूं। किंतु फिर भी मैंने आपको उसके बारे में सबकुछ बता दिया। क्या इससे साबित नहीं होता कि अवंतिका मुझसे मिली।”
हर कोई दुविधाग्रस्त नजर आने लगा।
“आप अन्वेषक हैं गौरव बाबू।” सरपंच जी गौरव के करीब आये– “आप ऐसी असंभव घटना को अपने तार्किक मस्तिष्क से झुठलाने की बजाय उसके पक्ष में तर्क दे रहे हैं?”
“आखिर जो कुछ मैंने अपनी आँखों से देखा, उसे झुठलाने के लिए खुद से ही तर्क-वितर्क कैसे कर सकता हूँ? अवंतिका मुझे रिसीव करने के लिए इंडिगो की बजाय किसी और गाड़ी से गयी थी, इस एकमात्र तर्क से प्रभावित होकर मैं इतनी जल्दी ये तो नहीं मान सकता न कि मुझे जो अवंतिका मिली, वह इस अवंतिका की ऑल्टर ईगो थी? अगर ये मान भी लूं, तो क्या बात इतने पर ही ख़त्म हो जायेगी? उसे ‘ऑल्टर ईगो’ मान लेने पर मेरे साथ घटी घटना विश्वसनीयता के खांचे में फीट तो हो जायेगी, लेकिन उस दशा में भी पैदा होने सवाल क्या कम हैरतअंगेज होंगे? क्या किसी का ऑल्टर ईगो इस तरह किसी से रास्ते में टकराता है कि खुद को उस व्यक्ति का वास्तविक व्यक्तित्व बताकर उसके विषय में अहम जानकारियाँ तक दे दे? ऐसा केवल तभी हो सकता है, जब ऐसी घटनाओं की जड़ें किसी गहरे षड़यंत्र से जुड़ी हुई हों।”[adinserter block="1"]
इस बार गौरव की सोच से हर कोई इत्तेफाक रखता हुआ नजर आया। एक ओर अवंतिका का रोड एक्सीडेंट हुआ, दूसरी ओर उसकी हमशक्ल लड़की गौरव से मिली। न केवल मिली बल्कि खुद को ‘असली’ अवंतिका बताकर गजब के आत्मविश्वास के साथ उसके साथ पेश आयी, ये महज एक संयोग नहीं हो सकता था।
मेन गेट से दो आदमी अर्थी बनाने के लिए कटा हुआ बांस लेकर अंदर आये। उनके साथ और भी लोग थे, जिनके हाथों में या तो कफ़न थे या फिर शव-यात्रा से पूर्व शव को सजाये जाने के कार्य में प्रयुक्त होने वाले सामानों के थैले थे।
“हमें अब देर न करते हुए अंत्येष्टि की तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए।” अवंतिका के भाई ने घोषणा करते हुए कहा।
गौरव के आगमन से वातावरण का जो मातम, रोमांच में तब्दील हो गया था, वह पुन: काबिज हो गया और महिलाओं की सिसकारियां फिर से तेज होने लगीं।
☐☐☐
गौरव ने कमरे में अँधेरा कर रखा था। यहाँ तक कि नाईट बल्ब की रोशनी भी नदारद थी। उसकी खुली हुई आँखों के सामने काजल से स्याह अंधकार के सिवाय और कुछ नहीं था। जेहन पर बिजली बनकर गिरी अवंतिका की मौत की खबर उसके तर्क-कौशल का कड़ा इम्तिहान ले रही थी। उस वज्रपात का ही ये असर था, जो इस वक्त नींद उसकी पलकों से कोसों दूर थी।
घटनाओं ने इस कदर रुख बदला था कि एजेंसी ने उसे एक गुमशुदा व्यक्ति
की तलाश के जिस केस के तहत हकीमगढ़ भेजा था, उस केस के किसी भी पहलू पर वह अब तक विचार नहीं कर पाया था। न तो उसकी मानसिक स्थिति इस काबिल थी और न ही सरपंच की परिवारिक स्थिति, जो वह अपने वास्तविक उद्देश्य को लेकर कोई परिचर्चा छेड़ पाता और किसी नतीजे पर पहुंच पाता। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा रहा होगा कि जो लड़की स्टेशन से हकीमगढ़ तक के सफ़र में उसकी साथी रही है, चंद घंटों बाद उसे उसी की शव-यात्रा में शामिल होना होगा। माहौल सामान्य नहीं था, इसलिए किसी ने भी उसकी खबर लेने की कोशिश नहीं की, सिवाय एक नौकर के, जिसने शव-यात्रा से लौटने के बाद उसे उस कमरे तक पहुंचा दिया था, जो हवेली में अस्थायी तौर पर रहने आये लोगों के लिए उसके पिछले हिस्से में बनाया गया था।
झंझावातों से घिरा हुआ गौरव अपने साथ हुए अजीबोगरीब वाकये को ‘जस्टिफाई’ करने के लिए घूम-फिर कर केवल इसी नतीजे पर पहुंच पा रहा था कि उसकी मुलाक़ात अवंतिका की हमशक्ल से हुई थी और फिलहाल वह मुलाक़ात किसी भी नजरिये से इत्तेफाक मात्र नहीं है। उसने आँखें बंद करके मस्तिष्क में चल रही विचारों की आंधी को थमने दिया और फिर बतौर निष्कर्ष इस फैसले पर पहुंचा कि वह आरपीऍफ़ के किसी सिपाही की मदद से स्टेशन के पार्किंग में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज बरामद करेगा और उस इंडिगो का नंबर पहचानने की कोशिश करेगा, जिसे लेकर फर्जी अवंतिका उसे रिसीव करने पहुँची थी। मन ही मन उपरोक्त निर्णय लेने के बाद उसने थके हुए मस्तिष्क को और थकाना उचित नहीं समझा। इस बार जब उसने आँखें बंद की तो उसका एकमात्र उद्देश्य नींद को साधना था।
☐☐☐
“आ....ह।”
ये हृदयविदारक चीख उस वक्त गूंजी, जब गौरव को आँखें बंद किये हुए केवल थोड़ा ही समय गुजरा था। उसने चौंक कर आँखें खोल दी। नींद उसकी चौखट से ही लौट गयी थी। चीख इतनी स्पष्ट थी कि उसका उद्गम नजदीक ही मालूम होता था। वह बिस्तर से उतरा, खिड़की तक पहुंचा और परदा हटाकर बाहर देखा।
हवेली गांव के बाहरी छोर पर थी, इसलिए वहां से कुछ सौ मीटर के अंतराल पर उसी जंगल का सिलसिला शुरू होता था, जिसमें एक अनोखे किले वाला उजड़ा हुआ वीरान और पुरातन शहर बसा हुआ था। और जो ‘फर्जी’ अवंतिका के मुताबिक अश्वत्थामा से जुड़ी अफवाहों का प्रमुख केन्द्र था। जंगल की सैर करके आती हवाओं ने गौरव को हल्की सर्दी के एहसास से रू-ब-रू कराया। उसकी आंखों के सामने अँधेरे का अंतहीन साम्राज्य कायम था, जिसकी निस्तब्धता को पत्तों की सरसराहट भंग कर रही थी।
“आ....ह।”[adinserter block="1"]
चीख की दिशा का अनुमान लगा रहा गौरव दोबारा चीख सुनते ही चौंकन्ना हो गया। इस बार आई चीख से पुष्टि हो गयी कि चीखने वाली कोई महिला थी। उसने एक नजर रिस्टवॉच पर डाली। बारह बजाकर छियालीस मिनट हो रहे थे। सेलफोन की फ़्लैशलाइट ऑन करके वह टेबल तक पहुंचा, उस पर पड़ा टॉर्च उठाया, पैरों में स्लीपर डाला और खिड़की के रास्ते बाहर आ गया। कूदने से उभरी ‘धप्प’ की क्षणिक ध्वनि के बाद सब-कुछ फिर से सन्नाटे में डूब गया। टॉर्च की रोशनी का गोल दायरा आस पास घुमाने पर उसने खुद को घुटनों तक लम्बी घासों के बीच खड़े पाया। वह जल्दी से घासों के जंगल से बाहर आया और सधे हुए कदमों के साथ चीख की दिशा में बढ़ चला। थोड़ा दूर आ जाने के बाद वह पीछे पलटा। हवेली की जलती हुई लाइट्स ने इंगित किया कि उस मातमी रात ने हवेली के किसी सदस्य को सोने नहीं दिया था।
हल्की-फुल्की सर्दी से पंजे लड़ाता हुआ वह तब तक आगे बढ़ता रहा, जब तक कि लगभग आधे घंटे बाद उसे रात के अँधेरे में एक विशालकाय दीवार स्याह परछाईं के रूप में नजर न आ गयी। यहाँ तक पहुंचने के दौरान उसे महिला की तीसरी चीख नहीं सुनाई दी थी। दीवार की ऊंचाई देख कर उसने अनुमान लगाया कि वह शायद अवंतिका के बताए हुए शहर की सीमा पर पहुंच चुका है। दीवार के उस पार एक उजड़ा हुआ शहर बसा हुआ था और शायद अभिशप्त भी। वह अनकहे रहस्यों को खुद में समेटे हुए एक अनोखे शहर के बेहद करीब था, इस एहसास से उसका रोम-रोम रोमांचित हो उठा। उसने टॉर्च की रोशनी का दायरा इधर-उधर घुमाया और पाया कि ग्रामीणों की स्वार्थलोलुपता के कारण दीवार में कई जगह से पत्थरों के निकाले जाने से सुराख हो गये थे, जिसके कारण किसी जमाने में अभेद्य रही उस दीवार को पार कर हजारों साल पुरानी सल्तनत में दाखिल होना मुश्किल नहीं था। गौरव अनगिनत सुराखों में से एक सुराख को पार करके अंदर दाखिल हो गया।
उस बंजर भूमि पर अधिकार जमाये हुए अनगिनत गड्ढों में भरा बरसात का पानी, चंद्रमा की दुधिया रोशनी में चमक रहा था। जगह-जगह पर ऊंचे-नीचे टीले नजर आ रहे थे। टॉर्च और चांदनी की मिली-जुली रोशनी में गौरव परिवेश का मुआयना कर ही रहा था कि अचानक वातावरण में एक लम्बे अंतराल के बाद महिला की चीख तीसरी बार गूंजी। इस बार महिला के चीखने का अंदाज ऐसा था, मानो उसे किसी शिकंजे में जकड़ा जा रहा हो। चीख का स्वर पहले की अपेक्षाकृत ऊंचा था, यानी पीड़िता कहीं निकट ही थी। चीख जिस दिशा से आयी थी, उस दिशा में सामान्य चाल से लगभग दस मिनट में तय किये जाने जा सकने वाली दूरी पर अथाह जलराशि चमक रही थी। जैसे वहां कोई विशाल जलाशय हो।
गौरव पहले की अपेक्षा अधिक तेजी के साथ उस दिशा में अग्रसर हुआ और दस मिनट के अनुमानित समय से पहले ही उस जलराशि की तट पर पहुँच गया। वह एक विशाल तालाब ही था। गौरव उसे लम्बे समय तक उत्खनन के फलस्वरूप निर्मित हुआ हुआ कोई गड्ढा जरूर समझ लेता, अगर उसकी निगाह तालाब के चारों ओर बनीं सीढ़ियों पर न पड़ी होती। वक्त की मार उन पक्की सीढ़ियों पर भी पड़ी थी और वे जर्जर होकर अस्तित्व खोने के कगार पर पहुंच चुकी थीं। गौरव ने तालाब की अथाह गहराई का अंदाजा इस बात से लगाया कि बाढ़ जैसी स्थिति को आमंत्रित करने वाली भीषण बारिश के बावजूद भी तालाब की कुछ सीढ़ियां पानी में डूबने से रह गयी थीं।
तालाब के जल स्तर का मुआयना करते-करते अचानक गौरव चौंका। तालाब के बीच में कोई हलचल पैदा हो रही थी। अपनी जगह पर स्थिर होकर वह कारण के सामने आने की प्रतीक्षा करने लगा। हलचल पल-प्रतिपल तेज होती जा रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे कोई विशालकाय जलचर क्रोधित होकर सतह पर आ रहा हो। और फिर अचानक मानो गौरव के आँखों के सामने कोई बिजली कौंध पड़ी। उसे यकीन नहीं हुआ कि उस साधारण से तालाब में ऐसा विशालकाय प्राणी भी हो सकता है।
उसने अपनी आँखें मींची, कई दफे पलकें झपकायीं, किंतु दृश्य नहीं बदला। वह दस फण वाला एक विशालकाय सांप था, जो तालाब की अथाह जलराशि से भीषण गर्जना उत्पन्न करते हुए बाहर निकला था।दसों फण की गोल आँखों में दहकते अंगारों सी सुर्खी विद्यमान थी।तेज फुंफकार के दौरान बाहर आतीं लगभग आधे मीटर लम्बी जिह्वाओं की भयावहता सख्तजान के भी रोंगटे खड़े कर देने के लिए पर्याप्त थी। गौरव के देखते ही देखते ‘महासर्प’ की विशालकाय कुंडली बाहर आ गयी।
यही वह क्षण था जब वह बुरी तरह चौंका। ‘महासर्प’ की कुण्डली में अवंतिका का खून से लथपथ जिस्म जकड़ा हुआ था। उसकी जीभ बाहर निकल चुकी थी और जिस्म पर मौजूद लिबास नग्नता की सीमा तक तार-तार हो चुका था। उसकी खुली हुई आँखें गौरव पर ठहरी हुई थीं, जिनमें मौजूद दयनीय भाव मदद की गुहार लगा रहे थे। रात्रि की नीरवता में कई दफे गूंजने वाली वह चीख शायद अवंतिका ही थी, जो अब शारीरिक पीड़ा की अधिकता के कारण होठों से
एक लफ्ज तक नहीं निकाल पा रही थी।
गौरव ने एक दृष्टि फैले हुए विशाल फणों पर डाली, जो डरावनी फुंफकार के साथ तेजी से लहरा रहे थे। ‘महासर्प’ की सुर्ख आंखों में नजर आता क्रोध बयां कर रहा था कि वह अवंतिका पर अपने कुंडली की जकड़ को और अधिक सख्त करके उसके जिस्म में मौजूद प्राण के आखिरी अंश तक को निचोड़ लेने का तमन्नाई था। गौरव को अवंतिका के रक्तरंजित चेहरे पर मदद की आखिरी पुकार नजर आयी। न जाने वह कौन सा कारण था, जो उसकी भावनाएं इतनी ताकतवर हो गयीं कि उनके आगे उसका डर भी हार गया। एक भी क्षण गवाएं बगैर वह तालाब में कूद पड़ा।
गौरव का जिस्म पसीने से इस कदर नहाया हुआ था, मानो वह सपने में नहीं बल्कि वास्तविकता में तालाब में डुबकी लगाकर आया हो। लोहार की धौंकनी की मानिंद चलती सांसों को नियंत्रित करने के बाद उसने सिरहाने पर रखे गिलास का दो घूंट पानी हलक में उतारा।
‘डरावना सपना.....!’
उस अजीब से सपने के वजह के तौर उसने निष्कर्ष निकाला कि वह अवंतिका के विषय में देर रात तक किये गये चिन्तन का प्रभाव था। वह सपनों को गंभीरता से लेने का आदी था भी नहीं। कमरे में रोशनी करने के बाद उसने वॉलक्लाक पर नजर डाली। सुबह होने में थोड़ा ही समय बाकी था।
☐☐☐
यद्यपि गौरव को ठीक से नींद नहीं आई थी, किंतु फिर भी सुबह होते ही वह शीघ्र ही दैनिक कार्यों से निवृत्त हो गया। एक नई सुबह का स्वागत करते हुए वह जल्द से जल्द भूषण की गुमशुदगी के केस पर काम शुरू कर देना चाहता था। अटैच्ड बाथरूम से नहा कर बाहर निकले हुए उसे थोड़ा ही समय गुजरा था, जब हवेली का नौकर रामदीन चाय लेकर उसके कमरे में आया।
“ये क्या बाबूजी? इतनी जल्दी नहा लिए? मैंने तो सुना है कि शहर के लोग दस बजे तक सोते हैं।”
“मुफ्त में शहर वालों को बदनाम मत करो।” रामदीन की बनावटी हैरानी पर गौरव मुस्कुराया– “शहर में भी सुबह-सुबह नहा लेने वालों की कमी नहीं है।”
प्रत्युत्तर में रामदीन भी हंसा। चाय का ट्रे सेंटर टेबल पर रखने के बाद पलटा, किंतु दरवाजे पर पहुंचकर फिर से गौरव की ओर मुड़ गया।
“एक बात पूछूं बाबू जी?”
“हां, पूछो।”
सहमति पाकर उसने टॉवल से बाल सुखा रहे गौरव को थोड़ी देर तक घूरा और फिर कहा– “जाने दीजिए। फिर कभी पूछ लूंगा।” कहने के बाद गौरव की प्रतिकिया जाने बगैर वह कमरे से बाहर निकल गया।
और फिर, गौरव ने आनन-फानन में अपना चाय खत्म किया। पिछले दिन की घटना से इतर भूषण की गुमशुदगी से जुड़ी बातें जानने के इरादे से वह ड्राइंग हॉल में पहुंचा। सरपंच शशिकांत उसे वहीं पर मिल गए। उन्होंने भी आज रात नींद को गले नहीं लगाया था। उनकी दशा बता रही थी कि अंत्येष्टि के कार्यों को निपटा कर आने के बाद उन्होंने सारी रात ड्राइंग हॉल के सोफे पर ही बैठ कर गुजारी थी।
“मुझे केस के सिलसिले में आपसे कुछ बात करनी है।” गौरव ने शशिकांत के सामने वाले सोफे पर तशरीफ रखते हुए कहा।
“हां। मैं समझता हूं।” शशिकांत अपनी तंद्रा से बाहर आये और उन्होंने रामदीन को आवाज लगाई। थोड़ी ही देर में वह उनके सामने था[adinserter block="1"]
“आज से तुम गौरव बाबू के साथ रहोगे। ये अपने तहकीकात के सिलसिले में गांव में जहां कहीं भी जाना चाहें, इन्हें ले जाना है। समय-समय पर इन्हें जिन जानकारियों की जरूरत होगी, उन्हें मुहैया कराने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी ही होगी।”
“जी मालिक।”
कहने के बाद रामदीन ने तिरछी निगाहों से गौरव को देखा। गौरव ने उसके चेहरे को पढ़ने के बाद पाया कि वह उसके बारे में सशंकित था। शंका के ये बादल उसने उसके चेहरे पर उस वक्त भी देखे थे, जब कुछ पूछने की इजाजत माँगने के बावजूद वह कुछ पूछे बगैर कमरे से बाहर निकल गया था।
“पहले मैं भूषण के संदर्भ में आपसे कुछ पूछना चाहता हूं।” शशिकांत के मौन को स्वीकृति का सूचक समझकर उसने पूछा – “भूषण के बारे में आप क्या जानते हैं?”
“सामान्य बातें ही। वह हमारे गांव का एकलौता मूर्तिकार था। गांव के बाहर से होकर बहने वाली सुलक्षणा नदी के किनारे बहुतायत में पाये जाने वाले चट्टानों को तराशकर काफी अच्छी मूर्तियां बनाता था। त्यौहारों के समय उसे शहर से मूर्तियां बनाने का अच्छा कॉन्ट्रैक्ट मिल जाता था। ये गुण उसे विरासत में मिला था। उसके पिता भी एक अच्छे मूर्तिकार थे, जो उसके बचपन में ही गुजर गये थे। वह अपनी बूढ़ी माँ के साथ गांव के बीच बने अपने छोटे से मकान में रहता था। मूर्ति बनाने जैसे उसके पेशे में कोई विघ्न न पड़े, इसके लिए उसने हकीमगढ़ के किले के पास छोटी सी झोपड़ी बना रखी थी। वह दिन के चौदह से सोलह घण्टे उसी झोपड़ी में मूर्तियां बनाते हुए गुजारता था।”
हकीमगढ़ के किले का जिक्र सुनते ही गौरव की छठी इन्द्री सचेत हो गयी। प्रत्यक्ष में उसने पूछा- “भूषण ने अपनी झोपड़ी बनाने के लिए हकीमगढ़ के किले के पास की जमीन को ही क्यों चुना?”
“इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि उस जगह से सुलक्षणा नदी बिल्कुल पास में ही है। नदी से चट्टानों को उठाकर गांव तक ले आने के कठिन परिश्रम से बचने के लिए ही उसने उस एकांत जगह को चुना था।”
“वह किन परिस्थितियों में गायब हुआ?”
“किसी ने उसे अश्वत्थामा की मूर्ति बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया था। कॉन्ट्रैक्ट देने वाले को चौबीस घंटे के अंदर मूर्ति चाहिए थी, इसीलिए भयानक बारिश वाली उस रात वह घर नहीं लौटा था और अपनी झोपड़ी में ही मूर्ति को पूरा करने में लगा हुआ था। सुबह होने पर उसे झोपड़ी से नदारद पाया गया।”
“यानी कि भूषण अपनी उसी झोपड़ी से रहस्यमय परिस्थितियों में गायब हुआ, जिसमें वह अपने पेशेवर काम को अंजाम दिया करता था।”[adinserter block="1"]
“हां। किसी को नहीं पता कि वह अचानक कहाँ लापता हो गया।”
भूषण की गुमशुदगी और अश्वत्थामा के रहस्य के ‘लिंक्ड’ होने की जो संभावना थोड़ी देर पहले गौरव के जेहन में अंकुरित हुई थी, उसकी जड़ों को भरपूर पोषण मिलने लगा।
“उसे अश्वत्थामा की मूर्ति बनाने का कॉन्ट्रैक्ट देने वाला कौन था?”
“इस बारे में किसी को कुछ नहीं पता। हमें उसकी माँ से सिर्फ इतना ही पता चला कि मूर्ति बनाने का कॉन्ट्रैक्ट उसे चौबीस घंटे के अंदर पूरा करना था।”
“क्या भूषण की गुमशुदगी के बाद कॉन्ट्रैक्ट देने वाला अश्वत्थामा की मूर्ति ले जाने के लिए आया?”
“नहीं। मैं और पुलिस भी उस शख्स के आने का इंतजार कर रही थी, क्योंकि सभी को यह उम्मीद बंधी थी कि वह भूषण की गुमशुदगी से जुड़ा कोई राज अवश्य खोलेगा, लेकिन वह इंसान आया ही नहीं।”
“क्या अश्वत्थामा की मूर्ति का काम पूरा हो चुका था।”
“नहीं। मूर्ति का धड़ तो पूरी तरह तैयार हो चुका था, किंतु धड़ के ऊपरी हिस्से में थोड़ी बहुत नक्काशी बाकी रह गयी थी। शायद भूषण उसी हिस्से का काम पूरा कर रहा था।”
“हूं.....।” गौरव ने एक गहरी सांस ली– “वह अधूरी मूर्ति तो भूषण की झोपड़ी में ही होगी न?”
“हाँ!”
“पुलिस को इस केस में कितनी बढ़त मिली थी?”
“कुछ विशेष नहीं। और उनके घिसे-पिटे रवैये को देखते हुए आगे भी इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।”
“उसकी किसी से दुश्मनी तो नहीं थी? मेरे कहने का मतलब है कि कोई रंजिश, गांव के ही किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह से?”
“ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। भूषण सरल स्वभाव का मृदुभाषी इंसान था, जो अपने पैतृक हुनर के कारण पूरे गांव का चहेता था।”
“ठीक है।” गौरव उठ खड़ा हुआ और रामदीन की ओर पलटा – “क्या तुम मुझे भूषण की झोपड़ी दिखा सकते हो?”