अर्थला / Arthla Sangram Sindhu Gatha – Part 1 PDF Download Free Hindi Book by Vivek Kumar

पुस्तक का विवरण (Description of Book of अर्थला / Arthla Sangram Sindhu Gatha - Part 1 PDF Download) :-

नाम 📖अर्थला / Arthla Sangram Sindhu Gatha - Part 1 PDF Download
लेखक 🖊️   विवेक कुमार / Vivek Kumar  
आकार 31.2 MB
कुल पृष्ठ407
भाषाHindi
श्रेणी,
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मिट्टी से घड़े बनाने वाले मनुष्य ने हजारों वर्षों में अपना भौतिक ज्ञान बढ़ाकर उसी मिट्टी से यूरेनियम छानना भले ही सीख लिया हो, परंतु उसके मानसिक विकास की अवस्था आज भी आदिकालीन है।

काल कोई भी रहा हो– त्रेता, द्वापर या कलियुग, मनुष्य के सगुण और दुर्गुण युगों से उसके व्यवहार को संचालित करते रहे हैं।

यह गाथा किसी एक विशिष्ट नायक की नहीं, अपितु सभ्यता, संस्कृति, समाज, देश-काल, निर्माण तथा प्रलय को समेटे हुए एक संपूर्ण युग की है। वह युग, जिसमें देव, दानव, असुर एवं दैत्य जातियाँ अपने वर्चस्व पर थीं। यह वह युग था, जब देवास्त्रों और ब्रह्मास्त्रों की धमक से धरती कंपित हुआ करती थी।
शक्ति प्रदर्शन, भोग के उपकरणों को बढ़ाने, नए संसाधनों पर अधिकार तथा सर्वोच्च बनने की होड़ ने देवों, असुरों तथा अन्य जातियों के मध्य ऐसे आर्थिक संघर्ष को जन्म दिया, जिसने संपूर्ण जंबूद्वीप को कई बार देवासुर-संग्राम की ओर ढकेला। परंतु इस बार संग्राम-सिंधु की बारी थी। वह अति विनाशकारी महासंग्राम जो दस देवासुर-संग्रामों से भी अधिक विध्वंसक था।
संग्राम-सिंधु गाथा का यह खंड देव, दानव, असुर तथा अन्य जातियों के इतिहास के साथ देवों की अलौकिक देवशक्ति के मूल आधार को उदघाटित करेगा।

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पुस्तक का कुछ अंश

6,300 वर्ष पहले भी सूर्य उसी प्रकार उगा करता था, जैसे कि आज उगते सूर्य के प्रकाश में विधान ने अपने शरीर को देखा। पिछले छह वर्षों के कठिन शस्त्राभ्यास ने उसके शरीर को बलिष्ठ बना दिया था। उसका वक्ष चौड़ा, भुजाएँ स्नायुबद्ध, पिंडलियाँ मजबूत तथा जँघाएँ ठोस हो गई थीं। इतने वर्षों में उसने लगभग हर प्रकार के शस्त्र चलाना सीख लिया, विशेषकर तलवार और भाला।

चढ़ते सूर्य का नरम ताप उसके शरीर को गुनगुना आराम पहुँचा रहा था। वह आँगन में खड़ा होकर माँ की पूजा समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा। माँ आँगन के मध्य स्थापित तुलसी पर जल चढ़ा रही थीं, उनकी पूजा समाप्त होने में अभी समय था। उसने सोचा, जब तक माँ की पूजा समाप्त होगी, तब तक नए घड़ों को बाहर निकाल दूं। वह रसोई की बगल वाली कोठरी से मिट्टी के नए घड़ों को निकालकर आँगन में रखने लगा। पूरे गाँव में विधान के पिता ही एकमात्र कुंभकार थे, उनकी मृत्यु के पश्चात उसकी माँ ही घड़े बनाती थी। माँ ने भरसक प्रयास किया कि वह भी उस कार्य में लग जाए, परंतु उसमें योद्धा बनने की उत्तेजना समाई हुई थी। योद्धा बनकर ही वह अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य पूरा कर सकता था।[adinserter block="1"]

उसने अंतिम घड़ा भी बाहर निकालकर रख दिया और पालथी मारकर वहीं बैठ गया। माँ की पूजा समाप्त हो चुकी थी। तुलसी के सामने प्रार्थना करने के पश्चात उन्होंने सूर्य को अर्घ्य दिया, मंत्रपाठ किया, तुलसी की कुछ पत्तियों को तोड़ा और लाकर विधान के मुंह में डाल दिया। माँ

पुनः मंत्र बुदबुदाते हुए रसोई में चली गईं। माँ के रसोई में जाते ही आंगन के बाहर एक बैलगाड़ी आकर रुकी। उसमें से एक मोटा ताजा जंतु प्रकट हुआ। दो पैरों तथा विशाल उदर वाले उस जन ने अपने सिर पर पतले सरकंड़ों से बनी एक छोटी दलिया को उल्टा करके पहन रखा था। उसके एक हाथ में लकड़ी का लड़ और

हमने अर्थला / Arthla Sangram Sindhu Gatha - Part 1 PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 31.2 MB है और कुल पेजों की संख्या 407 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक   विवेक कुमार / Vivek Kumar   हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ अर्थला / Arthla Sangram Sindhu Gatha - Part 1 को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।
Q. अर्थला / Arthla Sangram Sindhu Gatha - Part 1 किताब के लेखक कौन है?
Answer.   विवेक कुमार / Vivek Kumar  
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