इलाहाबाद ब्लूज / Allahabad Blues PDF Download Free Hindi Books by Anjani Kumar Pandey

पुस्तक का विवरण (Description of Book of इलाहाबाद ब्लूज / Allahabad Blues PDF Download) :-

नाम 📖इलाहाबाद ब्लूज / Allahabad Blues PDF Download
लेखक 🖊️   अंजनी कुमार पांडेय / Anjani Kumar Pandey  
आकार 3.3 MB
कुल पृष्ठ118
भाषाHindi
श्रेणी,
Download Link 📥Working

‘इलाहाबाद ब्लूज’ दास्ताँ है साँस लेते उन संस्मरणों की जहाँ इतिहास, संस्कृति और साहित्य की गोद से ज़िंदगी निकल भी रही है और पल-बढ़ भी रही है। इस पुस्तक से गुज़रते हुए पाठकों को यह लगेगा कि वो अपने ही जीवन से कहीं गुज़र रहे हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ की गँवई ज़मीन से शुरू हुई यह यात्रा इलाहाबाद होते हुए यूपीएससी, धौलपुर हाउस और दिल्ली तक का सफ़र तय करती है।

‘इलाहाबाद ब्लूज’ एक मध्यमवर्गीय जीवन की उड़ान है। इसलिए इसमे जहाँ गाँव की मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू है, वहीं इलाहाबाद की बकैती, छात्र जीवन की मसखरी और फक्कड़पन भी इस पुस्तक की ख़ासियत है। मिडिल क्लास ज़िंदगी के विभिन्न रंगों से सजे हुए संस्मरण बहुत ही रोचक एवं मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। इसमें एक बोलती-बतियाती, जीती-जागती ज़िंदगी है, संघर्ष है, प्रेम है, पीड़ा है, अथक जिजीविषा है और अंत में कभी भी हार ना मानने का दृढ़-संकल्प है। पहले से आख़ि‍री पृष्ठ तक आप कब स्वयं 'अंजनी' होते हुए इस पुस्तक से निकलेंगे, यह आपको एहसास ही नहीं होगा।

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पुस्तक का कुछ अंश

यह यात्रा है एक मिडिल क्लास लड़के की। ऐसे लड़के आपको कहीं भी मिल सकते हैं। इलाहाबाद में, पटना में, जयपुर में, भोपाल में या फिर गोरखपुर में। छोटे-छोटे शहरों के हर एक घर में ऐसा एक लड़का जन्म लेता है, जो एक बेहतरीन जीवन की तलाश में अपना घर छोड़कर बड़े शहरों की ओर निकल पड़ता है। कभी पढ़ाई के लिए तो कभी नौकरी के लिए। यह सफर अमूमन एक तरफ का ही होता है। यह जब एक बार घर से बाहर निकल जाता है तो लौटकर कभी घर वापस नहीं आता। घर का आँगन, घर, शहर सब पीछे छूट जाते हैं। महानगर के चमकदार जीवन की तलाश में छोटे शहर का संतुष्ट जीवन हमेशा के लिए खो जाता है। आज के इस मिडिल क्लास लड़के को घर छोड़ने के बाद भी न ज्ञान मिलता है और न ही मोक्ष। इस किताब के मुख्य किरदार को भी घर छोड़े हुए बीस साल होने को हैं और वह आज भी बस भाग ही रहा है। ख्वाहिशें हैं कि खत्म ही नहीं होती हैं और उम्र है कि भागी जा रही है। बीत चुके जीवन की खुशियों और वर्तमान जीवन की उपलब्धियों के बीच हो रही प्रतिस्पर्धा के बीच यह किरदार कैसे सामंजस्य बनाता है, यह पुस्तक उसी का दस्तावेज है। मिडिल क्लास के हर लड़के को कहीं न कहीं इस किताब में खुद की कहानी छुपी हुई मिलेगी। जब तक पूँजीवाद की लड़ाई में मध्यम वर्ग का संघर्ष है, तब तक ऐसे लोग जन्म लेते रहेंगे और जूझते भी रहेंगे।
अपने मूल्यों को बचाने के साथ-साथ उच्चवर्गीय जीवन जीने की लालसा के बीच इनके भीतर एक भीषण मानसिक द्वंद्व हमेशा चलता रहता है। इसी मानसिक द्वंद्व के बीच में कैसे वह वर्तमान के संघर्ष और बीते हुए पलों में जीवन के नए मायने ढूँढ़ता है, यह पुस्तक उसी की एक यात्रा है। साहित्यिक रूप में हम कह सकते हैं कि यह पुस्तक वृक्ष की जड़ों का एक टूटे हुए पत्ते से संवाद है। वृक्ष का हिस्सा होने का निःस्वार्थ भाव जीवित तो है पर भौतिकता की आवारा हवाओं ने भाव के प्रकटीकरण को नियंत्रित कर दिया है। शब्द यहाँ मौन हैं और संवेदनाएँ, भावनाएँ एवं स्मृतियाँ मुखर हैं।
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भूमिका
पता ही नहीं चला कि कब मेरी संघर्ष-यात्रा ने अनुभव का रूप ले लिया और कब इन अनुभवों ने एक किताब का रूप ले लिया। मैं नहीं जानता साहित्य की गूढ़ता को, मैं नहीं जानता लेखन की विधाओं को, और मैं यह भी नहीं जानता हूँ कि अच्छे साहित्य के मापदंडों को किस हद तक यह किताब छू पाएगी। मैं बस इतना जानता हूँ कि यह किताब मेरे बचपन और विद्यार्थी जीवन से उपजी हुई हल्की-फुल्की यादें है। कुछ खुशनुमा यादें और कुछ खुरदरी यादें। यह मात्र संयोग ही होगा अगर मेरे जीवन का यह यात्रा-वृत्तांत लेखन साहित्य की किसी विधा को छूकर गुजर गया हो।
हर इंसान एक बैकग्राउंड के साथ पैदा होता है और हर इंसान जीवन में एक अच्छे भविष्य का सपना देखता है। उन सपनों के साकार होने में खुद की मेहनत के साथ-साथ बहुत कुछ शामिल होता है। इंसान का खुद का इतिहास, पिता का त्याग, माँ की दुआएँ, भाई-बहनों का साथ और मित्रों का निःस्वार्थ उत्साहवर्धन। मैंने भी अपने मिडिल क्लास बैकग्राउंड को संभालते और जूझते हुए एक अच्छे जीवन की परिकल्पना की थी। या कहिए कि जो दिख रहा था, उसके स्वरूप को पूर्णतया परिवर्तित करने की चेष्टा की थी। वर्तमान से लड़ते और भविष्य में जीवन ढूँढ़ते हुए यह किताब मुझ जैसे उन तमाम हमउम्र लोगों का दस्तावेज है, जिन्होंने जीवन में पराकाष्ठा तक संघर्ष किया है। मुझे लगता है कि मेरा जीवन अमूमन उन सभी लोगों के जीवन का दर्पण है, जो मेरे हमउम्र हैं, जिन्होंने मेरे साथ ही या मेरे आसपास के वर्षों में जीवन का शुभारंभ किया है। इसीलिए यह लेखन आप लोगों को ही समर्पित है। आप लोग शायद मुझसे या इस किताब से कनेक्ट कर पाएँगे और आप लोग ही इसको बेहतर ढंग से एप्रिशिएट कर पाएँगे।
बचपन से लेकर आज तक जो भी कुछ यादगार चित्र जीवन में उकेरे गए हैं, यह उन्हीं का संग्रह है। यह मेरे बचपन और वर्तमान की उन तस्वीरों का संकलन है जो कभी खींची ही नहीं गई हैं। कोई भी चित्र सिलसिलेवार नहीं है और कोई भी चित्र सिर्फ मेरा नहीं है। जिसने अपने जीवन को जैसे जिया है, वह चित्रों को अपने हिसाब से फिट कर सकता है। स्थान, पात्र, घटनाओं में अंतर हो सकता है पर ये झलकियाँ मेरे हमउम्र सभी मित्रों के जीवन पटल पर अवश्य अंकित होंगी। सच्चाई को छूकर गुजरती हुई यह कल्पना समर्पित है उन तमाम लोगों को जिन्होंने जीवन में संघर्ष किया और कुछ हासिल किया। यह उन लोगों को ज्यादा समर्पित है जिनके सपने अधूरे रह गए हैं, क्योंकि उनके पास है वह अनुभव, जो भावी पीढ़ियों को सार्थक संघर्ष हेतु स्व-उदाहरण से प्रेरित कर सकेगा।
इसके सृजन के समय जीवन की यादों को कलमबद्ध करने की प्रकिया में मुझे बार-बार बीते पलों को फिर से बेहिसाब जीने का मौका मिला। यह कहानी भी है और कल्पना भी है। जीवन में आए लोगों का और उनसे जुड़ी यादों का दस्तावेज भी है। कहीं न कहीं आप अपने आसपास ऐसे किरदार पाते रहेंगे।
इसका कोई आरंभ नहीं
इसका कोई अंत नहीं
कुछ किस्से आज
और
शेष फिर कभी...
क्रम
भूमिका
बचपन इलाहाबाद का
नैनी और स्कूल
पुराना यमुना पुल
सिविल लाइंस
यूनिवर्सिटी रोड
कुंभ के दिन
मनकामेश्वर के शंकर
यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज (ईसीसी)
कॉलेज का वह दिन
निगाहों की बातें
डी.बी.सी.
रसूलाबाद
इलाहाबाद और सिनेमा
ठाकुर की चाय
इलाहाबाद और सिविल सर्विस
शहर दिल्ली
दो लड़ाइयाँ
लास्ट चांस
जेएनयू के दिन
मेरा गाँव, मेरे पूर्वज
कचहरी रोड का मकान
गाँव की बारिश
पीपल का पेड़
माई
पहली यात्रा
लंबी उड़ान
स्कूल उन दिनों
मुंडन
रस्मों का बोझ
ट्रेनिंग के दिन
विदिशा
नोटबंदी और चवन्नी
बुद्ध की राह
मैं इलाहाबाद हूँ
प्रयागराज सैफ्रंस
शून्य का एहसास
आत्ममंथन
चलते-चलते
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बचपन इलाहाबाद का
इलाहाबाद एक शहर नहीं है बल्कि एक रोमाँटिक कविता है, एक जीवन शैली है, एक दर्शन है। धर्मवीर भारती ने कुछ भी गलत नहीं कहा था कि इलाहाबाद का ग्राम देवता एक रोमाँटिक कलाकार रहा होगा। एक बार आप शहर में प्रवेश कर जाएँ तो स्वयं ही उस रोमांच को महसूस कर सकते हैं। शहर की पूरी बनावट, रहन-सहन, खानपान, जीवनधारा अपने आप में अनूठी है। पत्थर गिरिजा चर्च से लेकर लेटे हुए बड़े हनुमान जी का मंदिर तक, अकबर के किले से लेकर शहजादे खुसरो के बाग तक, अरैल घाट से लेकर बड़ी अटाला मस्जिद तक, पुराने यमुना के पुल से लेकर नए केबिल वाले यमुना पुल तक, कहीं भी जाइए, हर जगह आपको रोमांच से भर देगी। हर एक सड़क, हर एक गली, हर एक कोना गंगा-जमुनी तहजीब से सराबोर है। हर प्रकार के भेद को मिटाता हुआ ये शहर अपने अंदर दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना का मिलाप करवाता है। यह मेल करवाता है भारत में यूरोपीय नामों वाली सड़कों और मोहल्लों का। यह शहर मेल करवाता है सभ्यताओं, संवेदनाओं और भावनाओं का। ऐसा शहर ही महादेवी वर्मा और बच्चन को जन्म दे सकता है। ऐसा ही निराला शहर, महाकवि निराला का घर बन सकता है। ऐसे ही शहर में गंगा की सैर कर कोई पंत सुकुमार बन सकता है और ऐसे ही शहर में बिखर सकती है अकबर इलाहाबादी की शायरी और नज्में। सच में, ऐसा शहर ही कोई रोमांटिक कविता या नॉवेल हो सकता है, जिसको आप पढ़ते जाइए और डूबते जाइए। इसी शहर में बीता है मेरा बचपन... मेरा इलाहाबाद... मेरे बचपन का शहर... मेरी यादों का शहर।
बचपन के कुछ चित्र आज भी बार-बार उभर आते हैं। वैसे ही जीवंत और वैसे ही रंग भरे चित्र। याद है उन दिनों सिविल लाइंस जाना हर परिवार के लिए एक गर्व की बात होती थी और वहाँ जाकर अगर शामियाने का इडली-डोसा नहीं खाया तो जाना ही बेकार होता था। इडली-डोसे का वह स्वाद मुझे जीवन में दोबारा कहीं नहीं मिला। और हाँ, हाथी पार्क गए बिना किसी भी बच्चे की सिविल लाइंस की यात्रा पूरी नहीं हो सकती थी। हाथी की पूँछ से घुसकर उसकी सूँड़ से निकलना आज भी मुझमें उतना ही रोमांच पैदा करता है, जितना कि बचपन में करता था। तब दिन इसी सोच में डूब जाते थे कि कैसे घुसें पूँछ से और निकलें सूँड़ से। शायद यही था बचपन और यही था बचपन का भोलापन।
अल्फ्रेड पार्क और चंद्रशेखर आजाद की कहानियाँ जो बचपन में सुनी थीं, वो आज भी वैसे ही दिल-दिमाग में तरोताजा हैं जैसे कि पहली बार सुनने पर लगा था। कभी किसी किताब में इलाहाबाद का नाम भर आ जाए तो लगता है कि इलाहाबाद ही पूरी दुनिया है। पूरा मन हर्षोल्लास से भर जाता है कि आज किताब में अपने शहर का नाम पढ़ा और गर्व होता है अपने शहर पर। ऐसा ही था मेरा बचपन। मेरे समय के हर बच्चे का बचपन।
सबका बचपन ऐसी ही यादों से भरा होता है। खाने की किसी पुरानी दुकान का स्वाद आज भी आपको याद होगा। खेलने की कोई जगह, जहाँ अब आप नहीं जा पाते हैं। हर शहर के बचपन में होंगी कुछ गलियाँ जहाँ आप माता-पिता का हाथ पकड़कर खूब घूमते थे। बस आप वहाँ इलाहाबाद की जगह अपने शहर का नाम लिख दीजिए। यादों की क्यारी हर जगह बन जाएगी। शायद बचपन ही जीवन का सबसे हसीन लम्हा होता है। सुनहरा होता है बचपन और उतनी ही सुनहरी होती हैं उसकी यादें। मेरे बचपन का इलाहाबाद मुझे बहुत याद आता है। शायद आप लोगों को भी आपका शहर उतना ही याद आता होगा। काश फिर से जी पाते वो दिन...
कोशिश रहेगी कि अपने बच्चों के बचपन में भी अपने शहर इलाहाबाद के कुछ रंग भर सकूँ। पिछले साल बेटी को हाथी पार्क की सैर पर ले गया था और उसी के बहाने मैं भी हाथी की पूँछ से घुसकर सूँड़ से कई बार निकला। फिसलते वक्त को कुछ देर मुट्ठी में रोकने की कोशिश की थी मैंने।
इलाहाबाद तुम्हें रोज पढ़ता हूँ एक रोमांटिक कविता की तरह और रोज एक विरह में डूबे प्रेमी की तरह ही तुमसे मिलना चाहता हूँ।
शुक्रिया इलाहाबाद! उस बचपन के लिए।
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नैनी और स्कूल
इलाहाबाद से सटा हुआ एक छोटा सा कस्बा है नैनी या यूँ कहें कि शहर का बाहरी हिस्सा है। कहते हैं भारत में पहली बार हवाई जहाज ने इलाहाबाद से नैनी की ही उड़ान भरी थी। आजादी की लड़ाई के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू यहीं की सेंट्रल जेल में कैद थे। गंगा-यमुना के संगम के करीब होने के चलते यह जगह तमाम धार्मिक आश्रमों से भरी हुई है। इसी जगह सन 1988 में पिताजी और माताजी के साथ हम तीन भाई नैनी के अपने घर में शिफ्ट हुए थे। यहाँ आने के पहले हम किराए के घर में रहते थे और हर साल घर बदलना पड़ता था। मेरी उम्र भी बहुत छोटी थी इसीलिए नैनी के अपने घर में शिफ्ट होने के पहले की यादें बहुत धूमिल हैं। सही मायने में यहाँ आने के बाद ही मेरा बचपन शुरू हुआ। यही जगह मेरे बचपन का पहला दस्तावेज है। यहाँ की हर एक गली में मेरे बचपन के दिन बीते हैं। इसलिए नैनी के बारे में कहाँ से लिखना शुरू किया जाए, समझ में नहीं आता। शायद नैनी के बारे में मैं जीवनभर लिख सकता हूँ।
आँखें खुलीं तब अपने आपको इन्हीं गलियों में पाया। सुबह-दोपहर-शाम-रात। नैनी में शायद ऐसी कोई जगह नहीं, जहाँ मैं न गया हूँ। शायद ऐसी कोई गली नहीं जिसमें अपनी साइकिल न दौड़ाई हो। ऐसा कोई बाजार नहीं जहाँ चाट-पकौड़े न खाए हों। ऐसा कोई चौराहा नहीं जहाँ पर समय न गुजरा हो। सरगम सिनेमा से अरैल घाट, एडीए कालोनी से संगम, छिवकी रोड से जेल रोड, बेथनी कॉन्वेंट स्कूल से सेंट जॉन्स स्कूल, सब जगह बचपन की यादें भरी पड़ी हैं। शायद इसीलिए नैनी से लगाव है, इसीलिए नैनी से प्यार है और आज जबकि नैनी से दूर हूँ तो सिर्फ इसीलिए नैनी की दरकार है। नैनी के लिए जो मैं सोचता हूँ, वही आप लोग भी सोचते होंगे अपनी गलियों के लिए, बचपन के दिनों के लिए। हर एक मोहल्ला जहाँ आपने अपना बचपन जिया हो, वह हमेशा सबसे करीब होता है। आपके जीवन में भी ऐसी एक जगह जरूर होगी। नाम शायद कुछ और हो उस जगह का। बचपन हमेशा एक स्थान विशेष से जुड़ा होता है और साथ में जुड़ी होती हैं तमाम वो यादें जो आपने वहाँ बनाई होती हैं। नैनी भी मेरे जीवन का वही हिस्सा है।
नैनी के बचपन में मेरे दो तरह के दोस्त थे। एक कॉलोनी के दोस्त और दूसरे सेंट्रल स्कूल के दोस्त। मुझे दोनों ही दोस्त प्यारे थे। लेकिन स्कूल के दोस्तों के साथ किस्से और यादें ज्यादा हैं। कॉलोनी के दोस्तों का एक ही काम था, साथ में क्रिकेट खेलना। स्कूल के दोस्त साये की तरह थे, हमेशा साथ। सब कुछ-न-कुछ सिखाकर गए। जगदीश जोशी ने मुझे लड़ाई करना सिखाया। सरोज बिष्ट ने मुझे साथ रहना सिखाया। पम्मू ने राजनीति करना। हरपाल ने स्कूल में पिटना सिखाया तो बाला सुब्रमण्यम ने घर के बने इडली डोसे का टेस्ट कराया। रोज कुछ नया करते थे और रोज थोड़ा-थोड़ा बड़े होते थे। 1988 से 1996 का समय मेरे स्कूल के नाम रहा। सेंट्रल स्कूल में ही यह समय बीता। कभी स्कूल में या फिर स्कूल के काम में। दिन भर कितना खेलते थे और कितना थकते थे हम। कितनी बार स्कूल की बाउंड्री फाँदकर भागते थे और कितनी बार पकड़े भी गए थे। सब बराबर पीटे जाते थे और यही सब की इच्छा भी रहती थी कि कोई भी पिटाई से बच न पाए। स्कूल में एक पांडे सर हुआ करते थे जिनकी निगाह से कभी कोई बच नहीं पाता था और न ही उनके बेहिसाब थप्पड़ों से। शायद उन्हीं की मार ने हमें इंसान बनाया। पांडे सर की तरह ही वहाँ कुछ और बेहतरीन टीचर्स थे जिन्होंने खुद जलकर हमें निखारा। मुझे हर एक वह लम्हा याद है जो मैंने उस स्कूल में गुजारा है। हर स्कूल ऐसा ही होता है। कुछ बदमाश बच्चे, कुछ बेहतरीन टीचर्स और एक अनोखा-सा बंधन। आज भी अगर किसी स्कूल टीचर से मुलाकात हो जाती है तो आदर के साथ सिर झुक जाता है।[adinserter block="1"]

कभी अगर अचानक किसी स्कूलमेट से मुलाकात हो जाती है तो बहुत ही ज्यादा खुशी मिलती है। कुछ दिन पहले स्कूल मित्र अमित सिंह बिहारी से सालों के बाद मुलाकात हुई। समय बीत चुका है पर बदला हुआ समय अमित में कोई मिलावट नहीं कर पाया। सरगम सिनेमा में वह तमाम पिक्चर्स जो हम दोनों ने घर से छुपकर साथ में देखी थीं, वह आज भी मुझे नाम के साथ याद है। वही मिठास उसके स्वभाव में और वही अपनापन। स्कूलमेट कभी नहीं बदलते, अमित भी उन्हीं चंद लोगों में से एक है। वैसे कोई स्कूलमेट कभी बदल ही नहीं सकता क्योंकि यादों से छेड़छाड़ हो ही नहीं सकती है। स्कूल की यादों में सब यार कैद रहते हैं।
समय गतिशील है, बस भागता रहता है बेहिसाब... पर आज भी हम स्कूल के दोस्त जब भी मिलते हैं तो इस समय को भी मानो रोक लेते हैं और गवाह बनती हैं पुरानी यादें। रुका हुआ पल, खुशमिजाज दोस्त और मुस्कुराता समय। ऐसे ही कभी-कभी हम सारे दोस्त मिल लेते हैं। तारीखें याद नहीं रहतीं क्योंकि वह पल किसी भी समय की पकड़ से बहुत दूर होता है।
सालों बीत चुके हैं। स्कूल से घर और घर से स्कूल को जिए हुए। आज कुछ अगर साथ है तो बस उस सफर की तमाम धुँधली-सी तस्वीरें जो हम दोस्तों ने साथ में तय किए थे। ठिठोली, शैतानियाँ, उसकी खुशबू और ढेर सारी यादें...
शुक्रिया सेंट्रल स्कूल! उस शिक्षा के लिए और मेरे बचपन को खुशियों से भरने के लिए। आज जब भी बेटियों को स्कूल छोड़ने जाता हूँ तो बरबस अपना स्कूल याद आ जाता है। मैं भी आँखें बंद करके रोज अपने उस सफर पर जाने की नाकाम कोशिश करता हूँ और रोज भीग जाता हूँ यादों की बारिश में।
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पुराना यमुना पुल
कल सुबह नैनी से इलाहाबाद को जोड़ने वाले नए यमुना पुल से गुजर रहा था। कहते हैं कि यह पुल आजाद भारत में बना पहला केबल ब्रिज है और इसीलिए आकर्षण का केंद्र भी है। लोग गाड़ियाँ खड़ी करके नीचे बहती हुई यमुना नदी को देख रहे थे। कुछ लोग सेल्फी भी ले रहे थे। बहुत अच्छा लगा कि अपना इलाहाबाद भी बदल रहा है। अगर विकास के पैमाने में वैज्ञानिक प्रोन्नति एक मापदंड है तो निस्संदेह नया यमुना पुल विकास के नए आयामों को छूता है। फिर भी न जाने क्यों मैं अपने आप को नए पुल से उतना कनेक्ट नहीं कर पाया! कुछ था जो शायद मिस हो रहा था! कुछ था जो शायद अब यादों में ही रह गया है! सामने ही था मेरा अपना पुराना यमुना पुल, जहाँ अब कोई नहीं जाता है। वह पुल मेरी तमाम यादों को समेटे हुए मानो मुझे ही देख रहा था। मानो बोल रहा था कि अब क्यों नहीं गुजरते हो इधर से।
एक पल के लिए मैंने अपनी आँखें बंद कीं और मुझे वो सारे सफर याद आ गए जो मैंने पुराने यमुना पुल से कभी किए थे। वही यमुना पुल जो सामने होकर भी अब शायद नहीं था। मेजा, मांडा, करछना और दूर-दराज के गाँवों को इलाहाबाद से जोड़ने वाला पुल। नीचे सड़क और ऊपर रेलमार्ग को सहेजता पुल। सैकड़ों साल के इतिहास को समेटता पुल। मेरी यादों का पुल। मेरे बचपन का पुल। बेमानी हुए अस्तित्त्व के बावजूद मेरे जेहन में बिलकुल तरोताजा पुराना यमुना पुल...
इलाहाबाद का पुराना यमुना पुल अपने भीतर अनेक कहानियाँ समेटे हुए है। जैसे कि यमुना नदी सबसे ज्यादा गहरी यहीं पर है, इतनी गहरी कि अगर ग्यारह हाथियों को एक के ऊपर एक खड़ा कर दिया जाए तब भी सभी हाथी डूब जाएँगे। एक कहानी और थी कि जब यह पुल अंग्रेज बना रहे थे तो यह बन नहीं पा रहा था। उस समय चीफ आर्किटेक्ट की बीवी को एक सपना आया था कि अगर पुल का एक पिलर उनकी सैंडल की तरह दिखे तो यह पुल बन सकता है। इसीलिए पुराने यमुना पुल का एक पिलर लेडीज सैंडल के आकार का है। ऐसी और बहुत-सी कहानियाँ अक्सर सुनाई पड़ती रहती हैं जो इसके इतिहास में एक रोमाँच पैदा कर देती हैं।[adinserter block="1"]

जब मैं नैनी से इलाहाबाद पढ़ने जाता था तो पुराने पुल पर रोज एक घंटा ट्रैफिक जाम लगता था। फिर भी वह सफर मजेदार होता था। हम नीचे ऑटो में बैठे रहते और ऊपर से गुजरती ट्रेन की आवाज एक अजीब-सा रोमाँच पैदा करती थी। सामने की सीट पर बैठी कॉलेज की लड़कियाँ और फुल वॉल्यूम में बजते हिंदी फिल्मों के रोमाँटिक गाने। बरबस ही नजरें मिल जाती थीं हमारी। कितनी ही प्रेम कहानियाँ जन्मी होंगी उस सफर में। उस सफर में एक अजीब-सी मस्ती थी। गुनाहों का देवता हर स्टूडेंट्स में यहीं से जन्म लेता रहा होगा। यह पुल केवल नदी के दो किनारों को ही नहीं, न जाने कितने एहसासों, अनकहे वादों, अटूट इरादों और अपरिभाषित संबंधों को जोड़ता था। उस सफर में जीवन था। वह पुल एक लैंडमार्क था जहाँ कितनी ही जिंदगियाँ मिलीं, बिछड़ीं और फिर मिलीं भी कभी न बिछड़ने के लिए। हर इलाहाबादी को एक लगाव था उस पुल से और आज सबने उसे भुला दिया है। इंसान चीजों को इस्तेमाल करने के बाद अमूमन भूल ही जाता है।
पुराने यमुना पुल पर अब जाम नहीं लगता है। अब नहीं फँसते लोग उस ट्रैफिक जाम में। जिंदगी आज भाग रही है नए पुल पर, लेकिन पुराने यमुना पुल पर मेरा बहुत कुछ छूट चुका है। चंद मिनटों में मैं नया पुल पार कर चुका था...

हमने इलाहाबाद ब्लूज / Allahabad Blues PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए लिंक नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 3.3 MB है और कुल पेजों की संख्या 118 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक   अंजनी कुमार पांडेय / Anjani Kumar Pandey   हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ इलाहाबाद ब्लूज / Allahabad Blues को जरूर शेयर करेंगे। धन्यवाद।।
Q. इलाहाबाद ब्लूज / Allahabad Blues किताब के लेखक कौन है?
Answer.   अंजनी कुमार पांडेय / Anjani Kumar Pandey  
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