अनुक्रम
आमुख
आभार
1. हम सब दु:खी हैं
2. अपने आप को जानें, अपने व्यक्तित्व को स्वीकारें
3. क्रोध पर नियंत्रण
4. असंतोष एक बीमारी है
5. अपना विश्लेषण करें
6. तुलना दु:ख का कारण है
7. विचारों पर नियंत्रण
8. परिवर्तन का नियम
9. अधूरे रिश्ते
10. खुशी की तलाश
11. अनासक्त रहें
12. पुनर्विचार करें और सीखें
13. वर्तमान में जीएँ और अतीत को विस्मृत करें
14. मनन अपने आप को समझने में मदद करता है
15. प्रेरणा महत्वपूर्ण है
16. अहं को नष्ट करें
17. खुद पर भी हँसना सीखें
18. भीतरी शक्ति को उन्मुक्त करें
19. अपनी कद्र करें
20. जीवन को नया रूप दें
21. कहानियों में मौजूद ज्ञान
22. परिचित उदासियों से निपटना
23. कड़वाहट को मिटाती है क्षमा
24. क्या प्रेम और अनासक्ति एक साथ हो सकते हैं?
25. नए युग के गुरुओं से पुराना ज्ञान
26. अतिरिक्त बोझ को हटाएँ
27. मित्र जीवन को बेहतर बनाते हैं
28. डर का सामना करें और उससे लड़ें
29. वर्जनाओं से अपने आप को सीमित न होने दें
30. परिवर्तन से न डरें
31. बच्चों को दादा-दादी की जरूरत होती है
32. आशा का दामन न छोड़ें
33. एक अच्छी कहानी हमारा जीवन बदल सकती है
34. एक मुसकराहट तनाव को दूर कर सकती है
35. खुशियों के आड़े आतीं छोटी-छोटी बातें
36. अपनी असली ताकत पहचानें
37. परिवर्तन को स्वीकार करें, परंतु बुद्धिमजा और गरिमा के साथ
38. भय हमारी इंद्रियों को सुन्न कर देता है
39. भय को जाने दें
40. प्रसन्नता प्रेरणादायी है
41. अपने आप को खोजें
42. अपने रिश्तों का महत्व पहचानें
43. अलग-अलग लोक-संगीत के लिए अलग-अलग थाप
44. मोह-बंधन से मुक्त हों
45. विफलता में सफलता निहित है
46. मित्रता को समय और स्पेस दें
47. परिवर्तन को अपनाना
48. जो आप आज कर सकते हैं, उसे कल पर न टालें
49. जीवन के शुरुआती सबक स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं
50. जीवन और मृत्यु से जूझते हुए
पुनश्च
आमुख
एक अभिनेता के रूप में, जिसके खाते में 450 से अधिक फिल्में हैं, मुझे दुनिया की सैर करने और विविध प्रकार के कामों में लगे सैकड़ों व्यक्तियों से मिलने का अवसर मिला, जिनमें राष्ट्रपति से लेकर आम आदमी; खरबपति से लेकर दरिद्र तक शामिल थे। मेरे लिए यह बहुत मायने रखता है, क्योंकि मुझे लोगों से मिलनाजुलना पसंद है। उनका विश्लेषण करना भी मुझे बहुत रोचक काम लगता है।
असल में, मुझे लगता है कि मुझमें लोगों का विश्लेषण करने की क्षमता है। जब मैं उनसे बात करता हूँ, तो कभी-कभी सोचता हूँ कि वे कैसा जीवन जी रहे होंगे, किस प्रकार की पृष्ठभूमि से आए होंगे, उनका परिवार कैसा होगा और क्या चीज उन्हें कामयाबी दिलाती है? निश्चित रूप से एक पेशेवर अभिनेता के रूप में मेरे व्यवसाय ने मुझे इस प्रक्रिया ने स्वयं को माँजने में मदद की है, क्योंकि अपने चरित्र को समझना और उसके अंदर घुसना आपके प्रदर्शन को अधिक विश्वसनीय बनाता है?
परंतु मेरे लिए, दूसरों के विश्लेषण पर बात खत्म नहीं होती। मैंने लगातार खुद का विश्लेषण और अपने आप को नए रूप में सामने लाने का प्रयास किया है। आप 50 फिल्मों में किसी चरित्र को, जैसे पिता का चरित्र, एक ही तरीके से नहीं निभा सकते। आपको भिन्न होना होगा और अपने आप को नया रूप देना होगा। और वह प्रक्रिया तभी शुरू होती है, जब आप अपने आप को फिर से खोजते हैं।
मेरे लिए खुद को खोजने की वह प्रक्रिया तब शुरू हुई, जब कुछ वर्ष पहले मैं अपने नाटक 'कुछ भी हो सकता है' की योजना बना रहा था। यदि आप मेरी फिल्मों की संख्या देखें, तो मैं एक बहुत कामयाब अभिनेता था। मुझे मिली आलोचकों की सराहना और मेरे हिस्से में आए पुरस्कारों को देखें, तो वे मुझे एक बेहतर अभिनेता ही प्रमाणित करते हैं।
शिमला में एक अवर श्रेणी लिपिक (लोअर डिविजन क्लर्क) के परिवार में पले, सपने देखनेवाले एक लड़के के रूप में, मैंने अपनी कल्पना से कहीं अधिक व्याति और पैसा हासिल किया था। और फिर, जैसा कि हममें से अधिकतर के साथ होता है, सपनों ने मुझे अभिभूत कर लिया। मुझे ऐसा लगा कि मेरे पास जादुई शक्ति है और कुछ भी गलत नहीं हो सकता। एक दशक पहले के चलन के मुताबिक मैंने भी इस उद्योग के लिए 'सॉक्टवेयर' बनाने के लिए एक विशाल प्रोडक्शन हाउस स्थापित कर लिया।
आरंभ में, मेरे पास काफी कामयाब टेलीविजन कार्यक्रम थे। उनसे संतुष्ट न होकर, मैंने और भी विविधता लाने का फैसला किया। मैं इवेंट मैनेजमेंट के क्षेत्र में चला गया, क्योंकि उन दिनों वह सबसे आधुनिक व्यवसाय था और कई बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया।
वही हुआ जो होना था। जल्दी ही, बहुत सारे प्रोडक्शनों और कार्यक्रमों, और हमारे व्यवसाय के अभिशाप खराब वित्तीय प्रबंधन के चलते आर्थिक स्थिति खराब हो गई। मुझे ऋणदाताओं के बहुत से मुकदमों का सामना करना पड़ा। तभी मैंने अपने आप को पुन: खोजा और अपना उपचार स्वयं करना शुरू किया। मैंने अपने आप से पूछा—
• मैं महान् क्यों बनना चाहता था?
• मैं किस चीज की तलाश में था? पैसा या खुशी? या सिर्फ अपनी विरोधी प्रोडक्शन कंपनी से बड़ी हेडलाइन?
इस प्रक्रिया में मुझे बहुत से सच मेरे सामने आए। और मैंने कई सिद्धांत बनाए, जो अपने एक्टिंग स्कूल 'ऐक्टर प्रिपेयर्स' (यह स्कूल मैंने 2005 में मुंबई में शुरू किया था) में लागू किए। आज, 'ऐक्टर प्रिपेयर्स' चंडीगढ़, अहमदाबाद और लंदन में भी चल रहा है। यह लोगों को अपनी तलाश करना सिखाता है।
इस प्रकार मैंने 'अपने भीतर परिवर्तन' कॉन्सेप्ट की रचना की। इस खंड में मैं इस लाइफ कोचिंग प्रोग्राम के कुछ पहलुओं की चर्चा करूँगा। यह छोटी सी पुस्तक लिखने का मेरा उद्देश्य हमारे जीवन में बदलाव लाना है, जो बेहतरी के लिए हों।
—अनुपम खेर
आभार
यह पुस्तक तैयार करने में कई वर्ष लगे, जो जीवन से तालमेल बिठाने और जीने की कला के बारे में है। यह उन लोगों से मिलने और सीखने के अनुभवों के बिना संभव नहीं होता, जिनका इतने सालों के दौरान मुझसे सामना हुआ है।
मैंने हमेशा यह माना है, और अब तो इस धारणा को शोध द्वारा पुष्ट भी किया जा चुका है, कि जीवन में हमारा भावनात्मक चरित्र हमारे बचपन में ही जुड़ जाता है। शेष जीवन हम सिर्फ उसे माँजते रहते हैं, जो पहले से हमारे अंदर होता है। इसलिए, मैं अपने माता-पिता, अपने पिता पुष्करनाथ और अपनी माता दुलारी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने मुझे एक बहुत बढिय़ा भावनात्मक आधार प्रदान किया, जिस पर मैं अपना जीवन निर्मित कर सकता था। विशेष रूप से, मेरे पिता हमेशा सकारात्मकता प्रदर्शित करते थे; वह एक साधारण व्यक्ति हैं, परंतु मैंने जीवन को जितना अधिक देखा है, उतना ही अधिक यह महसूस किया है कि वह साधारण होते हुए असाधारण हैं। मेरे शुरुआती वर्षों में मेरे आज्ञाकारी छोटे भाई राजू, और मेरे सबसे करीबी मित्र विजय सहगल की भूमिकाएँ भी बहुत महत्वपूर्ण रहीं। विजय सहगल अब भी मेरे लिए सरलता के मानदंड हैं।
लेखन के हर कार्य में लेखक के करीबी लोगों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। इस मामले में मेरी पत्नी किरण का मुझमें विश्वास मेरे कई विचारों का आधार रहा है। इसके बाद मुंबई में मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों के स्कूल, दिलखुश स्पेशल स्कूल की स्वर्गीय सिस्टर मारिया डोलोरेस का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ। अविश्वास से भरी दुनिया में, उन्होंने मुझे अजनबियों पर भरोसा करने का महत्व सिखाया। मैं वह सबक नहीं भूल सकता!
हालाँकि मैं उन सबका ऋणी हूँ, जिनसे मैं इस पुस्तक के लेखन के दौरान मिला और जिनसे प्रेरित हुआ, परंतु द डेक्कन क्रॉनिकल के प्रकाशकों और उसके मुख्य संपादक ए.टी. जयंती के सहयोग और मदद के बिना यह पुस्तक संभव नहीं हो पाती। मैं महेश भट्ट का आभारी हूँ, जिन्होंने सारांश (1984) में मुझे मेरा पहला ब्रेक दिया, जिसके बिना मैं वह नहीं बन पाता, जो आज हूँ, साथ ही मैं प्रीतिश नंदी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, जिन्होंने मुझे निर्भय होना सिखाया।
मेरे विचारों को स्पष्टता देने के लिए शैलेष कोठारी को विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहता हूँ। इस पुस्तक में शामिल किए गए खूबसूरत चित्रों के लिए फोटोग्राफर तारिणी चोपड़ा, जेसी रॉबर्टसन, राघव खट्टर और प्रेम कुमार सिंह तथा आवरण चित्र के लिए अतुल कासबेकर को धन्यवाद देना चाहता हूँ। नोनी चावला को धन्यवाद कैसे कहें? उन्होंने मेरे सामने हजारों फोटोग्राफों का अपना पूरा भंडार रख दिया और बस कहा—'आप जो भी चाहें, चुन लें। यह सब आपके हैं।'
1. हम सब दु:खी हैं
अपनी महान् कृति 'अन्ना केरेनिना' में महान् रूसी रहस्यवादी और उपन्यासकार लियो टॉल्सटॉय लिखते हैं : '...हर दु:खी परिवार एक अलग रूप में दु:खी है।' जी हाँ, यह सच है कि कोई भी सुखी नहीं है। हम सब दु:खी हैं, परंतु अलग-अलग रूप में। हमारी अप्रसन्नता की जड़ें अपनी समझ में कई विफलताओं से उपजती हैं—विफल रिश्ते; संतान न होना; पर्याप्तप्त सुविधाएँ जुटा पाने में नाकामयाबी; सुंदर न होना। ऐसे लाखों कारण हो सकते हैं।
आपने ध्यान दिया होगा कि मैंने 'अपनी समझ में' का प्रयोग किया है। वह इसलिए, क्योंकि ये चीजें वास्तव में हमारी विफलताएँ नहीं हैं। हम दूसरों के दृष्टिकोण से उन्हें विफलता समझते हैं। मैं ऐसी धारणा के प्रभावों पर बाद में आऊँगा। यहाँ मैं इस व्यापक रूप से प्रचलित धारणा की चर्चा करना चाहता हूँ कि खूब सारा पैसा हमारी सभी विफलताओं को समाप्त कर देगा। दुर्भाग्यवश, ऐसा नहीं है।
ऐसा नहीं है कि बिल गेट्स और वॉरेन बफे इस धरती के सबसे सुखी व्यक्ति हैं। गेट्स और बफे की चिंता यह नहीं होगी कि उनके अगले समय के भोजन का प्रबंध कैसे होगा, परंतु अन्य मनुष्यों की तरह वे भी अपने बच्चों, व्यक्तिगत संबंधों और अनगिनत अन्य चीजों की चिंता से ग्रस्त हैं। वे अपनी भारी प्रतिष्ठा की सुरक्षा को लेकर भी काफी चिंतित रहते हैं। क्योंकि जब आप अपने क्षेत्र में अग्रणी होते हैं, तो आगे बढऩे के लिए कोई जगह नहीं होती। आपको सिर्फ उस जगह बने रहने के लिए सारा समय संघर्ष करना होता है, चूँकि बहुत से प्रतिद्वंद्वी आपसे आगे बढऩे के लिए जबरदस्त मेहनत कर रहे होते हैं। अपने देश की बात करें, तो मुझे यकीन है कि रतन टाटा या मुकेश अंबानी और उनके छोटे भाई अनिल के साथ भी ऐसा ही होता होगा।
मुझे याद आता है कि 80 के दशक में दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में लगातार ब्रुनई के सुल्तान, हस्सनल बुल्किया का नाम सबसे ऊपर चल रहा था। आज भी उनके सोने से मढ़े बोइंग 747,1178 कमरोंवाले उनके शानदार महल और लक्जरी तथा हाई-परफॉर्मेंस कारों के सबसे बड़े संग्रह की तसवीरों से वेब भरा हुआ है।
परंतु सबसे बड़ा प्रश्न यह है—क्या वे सुखी हैं? नहीं। उनके भाई ने उनसे धोखे से 15 अरब डॉलर हड़प लिये और भाई के गलत व्यावसायिक सौदों में भी कई अरब डॉलरों का नुकसान हुआ। आखिर में सुल्तान परिवार ने उसे बेदखल कर दिया।
आप कह सकते हैं कि बु्रनई के सुल्तान का मामला एक असाधारण मामला था। तो, मैं आपको एक व्यक्तिगत उदाहरण देता हूँ। अभिनेता बनने की इच्छा रखनेवाले एक अकिंचन व्यक्ति से मैं एक प्रभावशाली व्यक्ति बन गया, जिसने अपनी कल्पना से भी कहीं अधिक पैसे कमाए। फिर, अपने कॅरियर के चरम के दौरान, मैं लगभग दिवालिया हो गया। और मैं आपको बता सकता हूँ, कि पैसा अपने साथ प्रसन्नता लेकर नहीं आया।
यही कारण है कि आध्यात्मिक गुरुओं के दर्शन की इच्छा रखनेवाले लोगों में हमेशा अमीर और प्रसिद्ध लोग होते हैं। इसलिए, पैसा या अकूत दौलत सुख की ओर नहीं ले जाती, जैसा कि जॉन स्टेनबेक के श्रेष्ठ लघु उपन्यास द पर्ल— जिसे द अमेरिकन ड्रीम की एक आलोचना माना जाता है—के पाठकों ने बहुत पहले समझ लिया था।
जिस तरह पैसा सुख का रास्ता नहीं है, उसी तरह आपको एक कृत्रिम संतुष्टि देनेवाली चीजें भी हैं, जो पैसे से खरीदी जा सकती हैं। अपने मूड को सही करने के लिए अमूमन खूब खरीदारी करने का नुस्खा बताया जाता है; इसके लिए एक नया शब्द—रिटेल थेरेपी गढ़ा गया है। या आपको चमत्कारी सुंदरता प्रदान करने के लिए सौंदर्य उपचार की नई दुनिया। दुर्भाग्यवश, इन उपचारों के लाभ कुछ ही समय में गायब हो जाते हैं और आप फिर उसी अवसाद में पहुँच जाते हैं, जहाँ थे।
हम यह महसूस करना शुरू कर रहे हैं कि खुशी सिर्फ बाहरी स्रोतों से नहीं आ सकती। सबसे पहले हमें अपने आप को जानने और अपने अस्तित्व में रहने की बातें सीखनी होंगी।
2. अपने आप को जानें, अपने व्यक्तित्व को स्वीकारें
हम भले सुख को प्राप्त करने का सजग प्रयास न करें, परंतु हम सभी अपने जीवन में दु:ख को कम करने की चाहत रखते हैं। और जब हम ऐसा करते हैं, हम स्वाभाविक रूप से ध्यान देते हैं कि हमारी प्रसन्नता का अनुपात बढ़ जाता है।
हम अप्रसन्नता को यदि समाप्त नहीं, तो कम कैसे कर सकते हैं? एक पुरानी कहावत है कि सभी सड़कें रोम की तरफ जाती हैं, जिसका अर्थ है कि एक ही लक्ष्य के कई रास्ते हैं। यह अपने जीवन में अप्रसन्नता को कम करने पर भी लागू होता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि हमें सबसे अधिक दु:ख किस चीज से होता है।
परंतु रास्ता जो भी हो, बुनियादी चीज, जो सुकरात के सिद्धांत जितनी पुरानी है, सबसे पहले अपने आप को जानना है। यह भले ही एक पुरानी ग्रीक कहावत हो, परंतु इसकी प्रासंगिकता हमेशा रहेगी। एक प्रकार से, हम जो हैं, वह इसलिए हैं, क्योंकि हम नहीं जानते कि हम कौन हैं।
हम अकसर ऐसे युवाओं से मिलते हैं जो अपनी किशोरावस्था के आखिरी दौर में भी अपने कॅरियर विकल्पों के बारे में अस्पष्ट होते हैं। या ऐसे युवा जो इस सोच में होते हैं कि विपरीत लिंग के अपने मित्रों में से किसके साथ जीवन बिताएँ। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि वे बहुत अनिश्चित होते हैं। वे असल में खुद को नहीं जानते।
बाहर के देशों में अपने आप को ढूँढऩे के लिए इधर-उधर भटकना और भी फैशनेबल है। बहुत से लोग पेचीदा नए सत्यों की तलाश में भारत आते हैं, परंतु सत्य उतना ही सरल होता है जितना कि सास्वत। जैसे कि अपने आप को जानना।
मैंने बहुत से लोगों को पूरा जीवन क्रोध में बिताते देखा है, हमारे समाज की सडऩ, हमारे बुनियादी ढाँचे की कमियों, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यापक भ्रष्टाचार, हमारी राजनीतिक व्यवस्था की निराशा के खिलाफ भड़कते हुए देखा है, जिन कठिन चीजों को वे करने में सक्षम नहीं हैं या खुश नहीं हैं। वे अपने माता-पिता या मित्रों से प्रभावित होते हैं। दूसरे लोग कोई कॅरियर अपना लेते हैं या शादी कर लेते हैं, क्योंकि वे अब भी खुद को नहीं जानते या इतने दभ्बू हैं कि बेहतर नहीं जान सकते। इसका नतीजा होता है, जीवन भर का दु:ख।
इसलिए यदि आपके जीवन में ऐसी वजह हैं जो आपको दु:खी करती हैं, तो अभी से अपने आप को परखना शुरू कर दीजिए। एक एकांत कोने में, अकेले बैठें और सोचें कि कौन सी चीज आपको दु:खी करती है? मानसिक रूप से अपने सामने एक दर्पण रखें और फिर ईमानदारी से उन सभी अवयवों की सूची बनाएँ, जो उस दु:ख में योगदान करनेवाले कारक हो सकते हैं।