आप और आपका आत्मा | Aap Aur Aapka Aatma Book PDF Download by Deep Trivedi

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पुस्तक का विवरण (Description of Book आप और आपका आत्मा | Aap Aur Aapka Aatma PDF Download) :-

नाम : आप और आपका आत्मा | Aap Aur Aapka Aatma Book PDF Download
लेखक :  
आकार : 1.9 MB
कुल पृष्ठ : 137
श्रेणी : आध्यात्मिकता / Sprituality
भाषा : हिंदी | Hindi
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इतिहास में पहली बार, आत्मा के अस्तित्व का वैज्ञानिक विश्लेषण
आत्मा और उसकी असीमित शक्तियों का अपने भीतर अनुभव करें

इस किताब में :

∙ मन, बुद्धि व अहंकार के मेकेनिज्म के साथ-साथ मनुष्य की पूरी सिस्टम को समझाया गया है
∙ आपके सोचने और करने के संपूर्ण विज्ञान को समझाया गया है
∙ आत्मा और उसकी शक्तियों का भगवद्गीता के आधार पर विश्लेषण किया गया है
∙ कौन अपनी आत्मा के कितने निकट हैं यह जानने के सरल टेस्ट दिए गए हैं
∙ आत्मा और उसकी असीमित शक्तियों के सहारे जीवन को बेहतर कैसे बनाना यह समझाया गया है

For the first time in history, a scientific analysis of the existence of the soul
Feel the soul and its infinite powers within you

In this book:

∙ Along with the mechanism of mind, intelligence and ego, the whole system of man has been explained.
∙ The whole science of your thinking and doing is explained
∙ Soul and its powers are analyzed on the basis of Bhagavad Gita
∙ Simple tests are given to know who is close to their soulmate
∙ Explained how to improve life with the help of soul and its unlimited powers

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पुस्तक का कुछ अंश (आप और आपका आत्मा | Aap Aur Aapka Aatma PDF Download)

रहस्यों का रहस्य
————-

जीवन एक, सवाल अनेक।
…यही मनुष्यजीवन की सच्चाई है।
————-
अब कायदे से जीवन है…तो उसे फलना-फूलना ही चाहिए। जीवन है…तो उसे हंसी, खुशी और सफलता से भरा होना ही चाहिए। परंतु ऐसा हो नहीं रहा। क्यों…? बस इस क्यों में ही पूरी मनुष्यजाति युगों से उलझी पड़ी है, लेकिन अब और अधिक इंतजार करना ठीक नहीं। सो अब आज के इस वैज्ञानिक युग में इस ‘क्यों’ का जवाब खोजना ही रहा। और अगर इसका सही-सही उत्तर खोजना हो तो सबसे पहले जिम्मेदारी तय करना आवश्यक है। क्योंकि यह तो तय है कि मनुष्य संकटों से घिरा एक असफल जीवन गुजार रहा है, तो फिर ऐसे में पहला सवाल यही उठता है कि इस हेतु जिम्मेदार कौन है? क्या मनुष्य स्वयं दोषी है? अब यदि पूरा दोष मनुष्य पर मढ़ा जाए तो फिर दूसरा सवाल यह उठता है कि क्या मनुष्य पूरी तरह स्वतंत्र है? क्योंकि यदि मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता उपलब्ध हो तो ही उसे पूरी तरह से दोषी भी ठहराया जा सकता है। और यदि मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता उपलब्ध नहीं है तो फिर वे कौन-सी शक्तियां हैं जो मनुष्य के जीवन को प्रभावित कर रही हैं? मोटा-मोटी तौरपर इन दो बातों के उत्तर मिल जाएं तो मनुष्य के जीवन का रहस्य अच्छे से समझ में आ सकता है। …और तभी हरेक के जीवन को सुख और सफलता से भरा जा सकता है।

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खैर, अब यदि चांद-तारों, हवा-पानी या जानवरों से तुलना की जाए तो मनुष्य निश्चित ही उनके मुकाबले कहीं ज्यादा स्वतंत्र दिखाई पड़ता है। लेकिन तब सवाल यह उठता है कि क्या वह पूरी तरह से स्वतंत्र है या फिर वह चंद प्रभावों से बंधा हुआ भी है? तो इस संदर्भ में इतना स्पष्ट समझ लो कि प्रकृति की कई रहस्यपूर्ण शक्तियां मनुष्य के जीवन को प्रभावित कर रही हैं और ये सारे प्रभाव समझने जरूरी हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मनुष्य स्वतंत्र होते हुए भी कई प्राकृतिक शक्तियों के नियमों से बंधा ही हुआ है।
चलो, इस बात को एक उदाहरण से समझाने की कोशिश करता हूँ और उस हेतु एक प्रयोग आपको अपने स्वयं के साथ करना होगा। सो, पहले आप जमीन पर खड़े हो जाइए। खड़े होने के पश्चात आप अपना एक पैर ऊपर उठाइए। आप चाहें तो दायां पैर ऊपर उठाएं और चाहें तो बायां पैर ऊपर उठाएं…यह आपकी मरजी। अभी तो आप दूसरा पैर भी ऊपर उठाइए। फंस गए ना…। बस यही मनुष्य की स्वतंत्रता है। वह दायां या बायां पैर उठाने को तो स्वतंत्र है परंतु फिर प्रकृति के भिन्न-भिन्न रहस्यपूर्ण नियमों से तथा उसके परिणाम से वह हाथोहाथ बंध भी जाता है।
अब यहां एक बात आप विशेष रूप से समझ लेना कि प्रकृति के सारे रहस्य पूरी तरह से विरोधाभासी हैं। इसी बात को मनुष्य की स्वतंत्रता के संदर्भ में समझें तो जहां मनुष्य एक ओर पूरी तरह से स्वतंत्र है, वहीं दूसरी ओर लिये गए निर्णयों के आधार पर उसके आने वाले परिणामों को भोगने हेतु वह बंधा भी हुआ है। यानी मनुष्य कदम उठाने को भी स्वतंत्र है और परिणामों से बंधा हुआ भी है। इसलिए मनुष्य स्वतंत्र है, यह कहना भी गलत है तथा वह परतंत्र है, यह कहना भी गलत है। सत्य तो दोनों के मध्य में ही है। और प्रकृति का यह विरोधाभास उसके तमाम रहस्यों में मौजूद है। परंतु चूंकि विरोधाभासी बातों के मध्य को पकड़ने की समझ आम मनुष्य में नहीं है, इसीलिए जिसे देखो वह जीवन को लेकर भ्रमित है। कोई स्वतंत्रता की बात करते हुए नास्तिकता का पक्ष लेता है तो कोई परतंत्रता की बात कर धार्मिक क्रियाओं की वकालत करता है। लेकिन चूंकि एकांतत: दोनों गलत हैं…इसलिए इन दोनों में से किसी भी एक बात से ना तो जीवन बन पा रहा है और ना ही जीवन समझ में आ रहा है।[adinserter block=”1″]

खैर, अभी तो जीवन से संबंधित सबसे बड़े विरोधाभास को हमने समझ लिया। हमने समझ लिया कि मनुष्य स्वतंत्र भी है तथा परतंत्र भी। हालांकि इससे बात सबकी समझ में आ गई हो, यह जरूरी नहीं। सो, एक सामान्य उदाहरण से इसे फिर समझाने की कोशिश करता हूँ। मानो, आप एक साउथ इंडियन रेस्टोरेन्ट में खाना खाने गए। अब आप वहां अपनी मरजी से भी जा सकते हैं तथा किसी अन्य के दबाव में भी जा सकते हैं। यहां कहने की जरूरत नहीं कि अपनी मरजी से ही जाना चाहते हो तो किसी के भी दबाव में न आने हेतु आप पूरी तरह से स्वतंत्र हो ही। खैर, आप अपनी मरजी से जाओ या किसी के दबाव से, परंतु वहां पहुंचकर एकबार फिर से आप अपनी पसंद का ऑर्डर देने को स्वतंत्र हो ही। लेकिन इस स्वतंत्रता के साथ ही आप एक परतंत्रता से भी बंध ही जाते हो। आपको ऑर्डर वही देना पड़ता है जो मेन्यू में उपलब्ध हो।
बस ऐसा ही जीवन में है। आपको रेस्टोरेन्ट चुनने की तो स्वतंत्रता है परंतु रेस्टोरेन्ट चुनने के बाद आप वहां के मेन्यू से बंध जाते हैं। अब थोड़ा और पीछे जाएं तो किसको क्या पसंद आएगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन कहां रह रहा है? कौन कहां पैदा हुआ है? और यह एकबार फिर से मनुष्य के अपने मन तथा कुदरत के रहस्यों, दोनों से मिलकर तय होता चला जाता है। यानी मनुष्य की स्वतंत्रता तथा परतंत्रता का यह खेल निरंतर साथ-साथ चलता रहता है तथा इस खेल से ही मनुष्य के जीवन के तमाम फैसले हो रहे हैं।[adinserter block=”1″]

सो, कहने का तात्पर्य यह है कि प्रकृति के इस खेल को समझे बगैर जीवन नहीं बनाया जा सकता है। और यह खेल समझने हेतु मनुष्य के मन की कार्यप्रणाली के साथ-साथ कुदरत के तमाम रहस्यों को भी एक-एक कर समझना होगा। यह समझते ही मनुष्य के जीवन से संबंधित तमाम सवालों के उत्तर मिल जाएंगे। और यही रहस्यों का वह रहस्य है जिसे एक-एक कर उजागर करने हेतु मैं मनुष्यों के जीवन को प्रभावित करने वाली तमाम शक्तियों जैसे मनुष्य का मन, उसकी सायकोलॉजी, उसकी संरचना तथा उसकी कार्यप्रणाली के साथ-साथ…उसे प्रभावित करने वाले कुदरत की तमाम शक्तियों जैसे समय, प्रकृति, कर्म व फल, जन्म व पुनर्जन्म, ऑटोमेशन जैसे अनेक अन्य विषयों पर किताबें लिख रहा हूँ। इन सब किताबों को सिलसिलेवार पढ़ने के बाद निश्चित ही सबको यह समझ में आ ही जाएगा कि उसका जीवन कहां व क्यों उलझा है? साथ ही उसे यह भी समझ में आ जाएगा कि उलझन से कैसे निकलना है। और यह दो बातें अगर समझ में आ जाएं तो जीवन बनते क्या देर लगेगी?
यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कि मनुष्य का मन हो या कुदरत के रहस्य, सब-के-सब नियमपूर्वक बरतते हैं। अत: इन्हें ना सिर्फ समझा जा सकता है बल्कि इनकी एनालिसिस भी की जा सकती है। और यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मनुष्य के मन की कुदरत के रहस्यों से ट्यूनिंग हुए बगैर जीवन को सही दिशा नहीं मिल सकती है। यहां एक बात और स्पष्ट कर दूं कि अपने मन को कुदरत के रहस्यों से ट्यून्ड करने हेतु इन सब बातों को पढ़ना और समझना जरूरी नहीं है। कुदरत की ओर से मनुष्य के लिए यह व्यवस्था है ही कि कोई भी अपने मन को एक ऊंचाई तक पहुंचाकर सीधे ही तमाम रहस्यों के साथ चाल-से-ताल मिलाकर जी सकता है। खैर, अब चाहे जाने हो या अनजाने, परंतु यह तय है कि महान जीवन वही जी सकता है जो कुदरत की ताल-से-चाल मिलाकर बढ़ रहा हो। विश्‍व इतिहास का कोई भी ‘महान-जीवन’ इससे आजाद नहीं है। सभी ने महानता कुदरत की ताल-से-चाल मिलाकर ही पायी है। और जब इतनी बात चली है तो एक बात और कह दूं कि अधिकांश महान लोग अनजाने ही मन की ऊंचाई छूकर महानता को उपलब्ध हुए हैं। उन्हें मन, जीवन या कुदरत के रहस्यों का कुछ पता नहीं था। यह मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि रहस्यों का पता होना महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्व उन रहस्यों से ट्यून्ड होने का ही है।[adinserter block=”1″]

कुल-मिलाकर समझें तो मनुष्य अपना जीवन अपने हिसाब से जीने हेतु पूरी तरह स्वतंत्र है। लेकिन उसके उठाए हर कदम के साथ वह प्रकृति की नियमपूर्वक बरत रही भिन्न-भिन्न शक्तियों के द्वारा तदनुरूपी परिणाम पाने हेतु बंध भी जाता है। और यह परिणाम भोगना ही उसकी तमाम नाकामियों की जड़ है। अब यदि विपरीत परिणामों से मनुष्य बचना चाहता है तो उसका एक ही उपाय है कि वह कुदरत की शक्तियों के साथ बहे। और कुदरत की शक्तियों के साथ मनुष्य या तो इन शक्तियों के रहस्यों को समझकर बह सकता है या उनसे ट्यून्ड होकर। लेकिन चाहे जो हो, इन शक्तियों के साथ बहे बगैर मनुष्य का जीवन नहीं बन सकता है, यह तय है। यानी मनुष्य स्वतंत्र तो है परंतु सिर्फ अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर वह अपना जीवन नहीं बना सकता है। जीवन बनाने हेतु उसे अपनी स्वतंत्रता का ‘‘कुदरत की शक्तियों के साथ तालमेल’’ बिठाना ही होगा। कोई यह सोचे कि वह सिर्फ अपने निर्णयों तथा अपनी जानकारियों की बदौलत जीवन बना लेगा…तो वह नहीं होने वाला।
खैर, इसी बात को और सीधे शब्दों में समझाऊं तो जीवन का हाल उड़ते हवाई जहाज जैसा है। पायलट को हवाई जहाज एक ऊंचाई तक पहुंचाना होता है। एक ऊंचाई पर पहुंचाने के बाद तो उसे जहाज को ऑटो-मोड पर छोड़कर आराम से सफर का मजा लेना होता है। हां, उस समय भी उसे चौकन्ना अवश्य रहना होता है। बस यही हाल मनुष्यजीवन का भी है। मनुष्य को भी सिर्फ अपने मन को एक ऊंचाई तक उठाना होता है। मन के एक ऊंचाई पर उठते ही उस जीवन को फिर कुदरत के तमाम रहस्य स्वत: ही थाम लेते हैं। और थामते ही वे उसे मंजिल तक भी पहुंचा ही देते हैं। आगे की इस यात्रा में फिर मनुष्य को सिवाय चौकन्ना रहने के और कुछ नहीं करना होता है। इस चौकन्ने रहने को ही पुराने ज्ञानी ‘होश’ से जीना कहते हैं।[adinserter block=”1″]

कुल-मिलाकर समझें तो मनुष्य का जीवन बनाने हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षाएं वे ही हैं जो मनुष्य के मन को नयी ऊंचाइयां प्रदान करने में सक्षम हों। अत: तमाम रहस्यों को समझते वक्त अपने कर्मों से मन की ऊंचाई कैसे छूना, आप उसपर भी ध्यान देना तथा कुदरत के रहस्यों द्वारा थामते ही सबकुछ उन्हें सौंपकर कैसे सफर का मजा लेना, उसपर भी गौर करना। वहीं उस सफर का मजा लेते वक्त होश कैसे बनाये रखना, आप उसपर भी बराबर ध्यान देना। फिर जीवन में कभी उलझन महसूस करोगे ही नहीं।
सो, मुझे उम्मीद ही नहीं यकीन भी है कि रहस्यों पर आधारित भिन्न-भिन्न विषयों पर आने वाली इन किताबों को पढ़ने के बाद मनुष्य के जीवन से संबंधित तमाम सवालों का अंत आ जाएगा। और इस यकीन के साथ ही एक-एक कर तमाम किताबें मैं आपलोगों को प्रस्तुत करने जा रहा हूँ।

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हमने आप और आपका आत्मा | Aap Aur Aapka Aatma PDF Book Free में डाउनलोड करने के लिए Google Drive की link नीचे दिया है , जहाँ से आप आसानी से PDF अपने मोबाइल और कंप्यूटर में Save कर सकते है। इस क़िताब का साइज 1.9 MB है और कुल पेजों की संख्या 137 है। इस PDF की भाषा हिंदी है। इस पुस्तक के लेखक दीप त्रिवेदी / Deep Trivedi हैं। यह बिलकुल मुफ्त है और आपको इसे डाउनलोड करने के लिए कोई भी चार्ज नहीं देना होगा। यह किताब PDF में अच्छी quality में है जिससे आपको पढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। आशा करते है कि आपको हमारी यह कोशिश पसंद आएगी और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ आप और आपका आत्मा | Aap Aur Aapka Aatma की PDF को जरूर शेयर करेंगे।

Q. आप और आपका आत्मा | Aap Aur Aapka Aatma किताब के लेखक कौन है?
 

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