‘हेरी ग्लेब’ बांड स्ट्रीट अण्डरग्राउण्ड स्टेशन से बाहर निकला तो बारिश हो रही थी।
जमीन पर कई इंच पानी था। कुछ ठिठककर उसने काले आकाश का निरीक्षण किया, जहां बादल ही बादल थे।
“उफ! मेरी किस्मत!” वह सोचने लगा—”टैक्सी की भी कोई उम्मीद नहीं है, पैदल ही चलना होगा। देर हो गयी तो वह बूढ़ी नाराज होगी।” उसने आस्तीन ऊपर चढ़ाकर घड़ी देखी—“अगर यह घड़ी सही है तो, इसका मतलब है कि मुझे पहले ही देर हो चुकी है!”
कुछ देर की हिचक के बाद उसने कोट के कॉलर खड़े कर लिये और बड़बड़ाता हुआ चल पड़ा। बारिश के कारण उसने सिर झुका लिया था।
“आज सारा दिन बुरा ही रहा।” वह फिर बड़बड़ाया—“पहले सिगरेट वाला सौदा खत्म हुआ, फिर वह आ गया, चालीस पौंड पानी में बह गये और अब यह बारिशा” अपनी आदत के अनुसार वह अंधेरै का सहारा लेता हुआ और स्ट्रीट लाइट से बचता हुआ चल रहा था। न्यू बांड स्ट्रीट आधी पार कर लेने के बाद उसे एक पुलिस वाला दिखाई दे गया।
उसने फौरन सड़क पार कर ली।
“वैस्ट एण्ड पुलिस वालों से भरा पड़ा है। कमबख्त तगड़ा भी तो बहुत है। बैल की तरह। कहीं खान में होता तो ज्यादा काम का आदमी साबित होता।”
जब पुलिस वाले और उसमें सौ गज का फासला हो गया तो उसने फिर सड़क पार कर ली। मेफेयर स्ट्रीट की तरफ मुड़ गया। कुछ गज चलने के बाद उसने मुड़कर देखा। जब उसे….